अम्लीकरण के गंभीर स्तर पर विश्व के महासागर
स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, जर्मनी के पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (PIK) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में महासागरीय अम्लीकरण के संबंध में एक चिंताजनक प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया है।
- इस रिपोर्ट ने संकेत दिये हैं कि विश्व के समुद्र एक ऐसे बिंदु के निकट पहुँच रहे हैं जिसका समुद्री जीवन और जलवायु स्थिरता दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- ग्रहीय सीमाएँ: जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता ह्रास और प्रदूषण सहित पृथ्वी की नौ महत्त्वपूर्ण तंत्रों में से छह का उल्लंघन किया गया है।
- महासागरीय अम्लीकरण: बढ़ते CO2 उत्सर्जन के कारण महासागरों में अम्लीकरण के धारणीय स्तर से अधिक हो जाने की आशंका है।
- टिपिंग पॉइंट्स और संभावित रिकवरी: पारिस्थितिकी तंत्र के टिपिंग पॉइंट्स को पार करने से पारिस्थितिकी तंत्र को अपूरणीय क्षति होने का खतरा है और अरबों लोगों पर इसका असर पड़ता है। हालाँकि ओज़ोन परत में सुधार हो रहा है, लेकिन भविष्य में होने वाले पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिये अन्य पर्यावरणीय सीमाओं पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
ग्रहीय सीमाएँ
- परिचय:
- वर्ष 2009 में जोहान रॉकस्ट्रोम और 28 वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत ग्रहीय सीमा फ्रेमवर्क, मानव जीवन के सुरक्षित संचालन के लिये स्थिरता और जैव विविधता सुनिश्चित करने के लिये पृथ्वी की पर्यावरणीय सीमाओं को रेखांकित करती है।
- नौ ग्रहीय सीमाएँ:
- जलवायु परिवर्तन
- जैवमंडल अखंडता में परिवर्तन (जैव विविधता ह्रास और प्रजातियों का विलुप्त होना)
- समतापमंडलीय ओज़ोन परत का क्षय
- महासागरीय अम्लीकरण
- जैव-भू-रासायनिक प्रवाह (फॉस्फोरस और नाइट्रोजन चक्र)।
- भूमि-प्रणाली परिवर्तन (उदाहरण के लिये वनों की कटाई)।
- अलवण जल का उपयोग (पृथ्वी पर संपूर्ण जल चक्र में परिवर्तन)।
- वायुमंडलीय एरोसोल लोडिंग (वायुमंडल में सूक्ष्म कण जो जलवायु और सजीवों को प्रभावित करते हैं)।
- नवीन इकाइयों का परिचय (जिसमें माइक्रोप्लास्टिक्स, अंतःस्रावी विघटनकारी पदार्थ और कार्बनिक प्रदूषक शामिल हैं)।
- ग्रहीय सीमाओं का उल्लंघन:
- ग्रहीय सीमाओं का उल्लंघन तत्काल आपदा का संकेत नहीं है, लेकिन इससे पर्यावरण के अपूरणीय बदलावों का खतरा बढ़ जाएगा, जिससे पृथ्वी हमारे वर्तमान जीवन के लिये रहने योग्य नहीं रह जाएगी।
महासागरीय अम्लीकरण क्या है?
- परिचय:
- यह उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके तहत अतिरिक्त वायुमंडलीय CO₂ के अवशोषण के कारण महासागर का pH स्तर कम हो जाता है।
- जैसे-जैसे CO₂ का स्तर बढ़ता है, इसकी अधिक मात्रा समुद्री जल में घुल जाती है, जिससे कार्बोनिक एसिड बनता है, जो महासागर के pH स्तर को कम (अर्थात् अम्लीय) कर देता है।
- महासागर अम्लीकरण प्रक्रिया:
- जब समुद्री जल द्वारा CO2 का अवशोषण होता है, तो इससे रासायनिक अभिक्रियाएँ शुरू हो जाती हैं, जिससे हाइड्रोजन आयन (H+) की सांद्रता बढ़ जाती है।
- CO2 समुद्री जल में घुलकर कार्बोनिक एसिड (H2CO3 ) बनाती है, जो हाइड्रोजन आयनों (H+) और बाइकार्बोनेट आयनों ( HCO3 –) में विघटित हो जाती है।
- H+ की वृद्धि से समुद्री जल की अम्लीयता बढ़ जाती है, जिससे कार्बोनेट आयनों की मात्रा कम हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन से महासागरीय अम्लीकरण में तेज़ी:
- महासागर स्वाभाविक रूप से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, लेकिन वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि के कारण महासागरों में बहुत अधिक CO2 का अवशोषण हो चूका है, जिसके कारण 1800 के दशक से महासागरीय अम्लता में लगभग 30% की वृद्धि हुई है, जो पिछले 50 मिलियन वर्षों की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक है।
- यदि यह उत्सर्जन जारी रहा तो अगले 100 वर्षों में पृष्ठीय महासागर का pH 8.1 से घटकर 7.7 हो सकता है।
- तटीय क्षेत्र विशेष रूप से अम्लीय सल्फेट अपवाह के कारण संवेदनशील होते हैं, तथा जलवायु परिवर्तन से संबंधित समुद्र स्तर में वृद्धि इन प्रभावों को और भी बदतर बना देती है।
- महासागरीय अम्लीकरण का प्रभाव:
- अम्लता में यह परिवर्तन समुद्री जीवों पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है, विशेष रूप से कैल्शियम कार्बोनेट के शेल या कंकाल वाले जीवों, जैसे मूंगा/प्रवाल और शंख पर।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. महासागरों का अम्लीकरण बढ़ रहा है। यह घटना क्यों चिंता का विषय है? (2012)
उपर्युक्त्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1, 2 और. 3 उत्तर: (a) |
वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (GCI) 2024
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा प्रकाशित वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (GCI) 2024 के 5वें संस्करण में टियर 1 का दर्जा हासिल करके साइबर सुरक्षा में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
- GCI रिपोर्ट का चौथा संस्करण वर्ष 2020 में प्रकाशित किया गया था।
वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (GCI) क्या है?
- परिचय:
- ITU द्वारा वर्ष 2015 में शुरू किया गया GCI वैश्विक स्तर पर साइबर सुरक्षा के व्यापक विकास और प्रतिबद्धता को मापता है।
- GCI बहु-हितधारक दृष्टिकोण का उपयोग करता है तथा विभिन्न संगठनों की क्षमता और विशेषज्ञता का लाभ उठाता है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य सर्वेक्षण की गुणवत्ता में सुधार लाना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना, ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना तथा साइबर सुरक्षा के महत्त्व और विभिन्न आयामों के विषय में जागरूकता बढ़ाना है।
- मूल्यांकन के स्तंभ:
- मूल्यांकन 5 स्तंभों पर आधारित है: कानूनी उपाय, तकनीकी उपाय, संगठनात्मक उपाय, क्षमता विकास और सहयोग।
- यह सूचकांक प्रत्येक देश के लिये मूल्यांकन को समग्र स्कोर में परिवर्तित करता है।
- 5- स्तरीय विश्लेषण: देशों को उनके साइबर सुरक्षा प्रयासों के आधार पर पाँच स्तरों में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें टियर 1 सबसे उच्चतम स्तर का प्रतिनिधित्व करता है।
- टियर 1- रोल-मॉडलिंग (स्कोर 95-100)
- टियर 2- एडवांसिंग (स्कोर 85-95)
- टियर 3- स्थापना (स्कोर 55-85)
- टियर 4- विकासशील (स्कोर 20-55)
- टियर 5- बिल्डिंग (स्कोर 0-20)।
- GCI 2024 की मुख्य विशेषताएँ: GCI 2024 ने 194 देशों का मूल्यांकन किया और रैनसमवेयर हमलों, महत्त्वपूर्ण उद्योगों में उल्लंघनों, सिस्टम आउटेज और गोपनीयता उल्लंघन जैसे खतरों को उजागर किया।
- वैश्विक: वर्ष 2021 के बाद से, देशों ने साइबर सुरक्षा को तेज़ी से प्राथमिकता दी है, जिससे वैश्विक औसत स्कोर 65.7/100 हो गया है।
- GCI 2024 में 46 देशों को टियर 1 में रखा गया है, जबकि पिछले संस्करण में यह संख्या 30 थी।
- अधिकांश देशों (105) को टियर 3 और 4 में स्थान दिया गया है, जो डिजिटल सेवाओं के विस्तार में प्रगति को दर्शाता है, लेकिन साथ ही उनकी डिजिटल परिवर्तन रणनीतियों में मज़बूत साइबर सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है।
- GCI 2024 में भारत का प्रदर्शन
- भारत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ टियर 1 में है।
- भारत ने 98.49/100 स्कोर किया, जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (2000), डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (2023) जैसे मज़बूत कानूनी ढाँचे के कारण वर्ष 2020 संस्करण में 97.5 से बेहतर है।
- वैश्विक: वर्ष 2021 के बाद से, देशों ने साइबर सुरक्षा को तेज़ी से प्राथमिकता दी है, जिससे वैश्विक औसत स्कोर 65.7/100 हो गया है।
- रिपोर्ट में रेखांकित प्रमुख मुद्दे:
- चिंताजनक खतरे: बढ़ते रैनसमवेयर हमले, महत्त्वपूर्ण उद्योगों में साइबर उल्लंघन और महंगी प्रणाली रुकावटें।
- साइबर क्षमता अंतराल: साइबर सुरक्षा के लिये कौशल, नियुक्तिकरण, उपकरण और वित्तपोषण में निरंतर सीमाएँ।
- कार्यान्वयन चुनौतियाँ: साइबर सुरक्षा समझौतों को प्रभावी ढंग से संचालित करने में कठिनाई।
- प्रमुख अनुशंसाएँ:
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति: एक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा ढाँचे का विकास और नियमित रूप से अद्यतन करना।
- क्षमता निर्माण: साइबर सुरक्षा पेशेवरों, युवाओं और कमज़ोर समूहों के लिये प्रशिक्षण बढ़ाना।
- सहयोग: सूचना साझाकरण, प्रशिक्षण एवं साइबर सुरक्षा पहलों पर घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना।
अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union- ITU) क्या है?
- यह सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के लिये संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है।
- इसे संचार नेटवर्क में अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी की सुविधा के लिये वर्ष 1865 में स्थापित किया गया।
- इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
- यह वैश्विक रेडियो स्पेक्ट्रम और उपग्रह की कक्षाओं को आवंटित करता है, तकनीकी मानकों को विकसित करता है ताकि नेटवर्क एवं प्रौद्योगिकियों को निर्बाध रूप से आपस में जोड़ा जा सके और पूरे विश्व में वंचित समुदायों के लिये ICT तक पहुँच में सुधार करने का प्रयास किया जाए।
- ITU में वर्तमान में 193 देश और 900 से अधिक निजी क्षेत्र की संस्थाएँ एवं शैक्षणिक संस्थान सदस्य हैं।
- भारत वर्ष 1869 से ITU का सदस्य रहा है तथा वर्ष 1952 में इसकी स्थापना के बाद से ITU गवर्निंग काउंसिल का सदस्य रहा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में दूरसंचार, बीमा, विद्युत् आदि जैसे क्षेत्रकों में स्वतंत्र नियामकों का पुनरीक्षण निम्नलिखित में से कौन करते/करती हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. भारत में, ‘‘पब्लिक की इंफ्रास्ट्रक्चर’’ (Public Key Infrastructure) पदबंध किसके प्रसंग में प्रयुक्त किया जाता है? (2020) (a) डिजिटल सुरक्षा आधारभूत संरचना उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार का/के ‘‘डिजिटल इंडिया’’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
ओपन साइंस
स्रोत: TH
ओपन साइंस सिद्धांतों और प्रक्रियाओं का एक संग्रह है जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान को सभी के लिये सुलभ बनाना तथा यह सुनिश्चित करना है कि ज्ञान का संचार समावेशी, न्यायसंगत और संधारणीय हो।
- इसमें प्रकाशनों की निशुल्क उपलब्धता, डेटासेट की उपलब्धता, ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर उपयोग और नागरिक विज्ञान समन्वय जैसे सिद्धांत शामिल हैं।
- ओपन साइंस पर यूनेस्को की सिफारिश ओपन साइंस के लिये साझा मूल्यों और सिद्धांतों को परिभाषित व रेखांकित करती है।
- ओपन साइंस के लाभ:
- ओपन साइंस ज्ञान को निःशुल्क उपलब्ध कराता है, जिससे अनुसंधान की व्यापकता बढ़ती है और उसका महत्त्व बढ़ता है।
- ओपन साइंस संस्थाओं और देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है, जिससे संयुक्त परियोजनाएँ संभव हो पाती हैं।
- ओपन साइंस पारदर्शिता और पुनरावृत्ति को बढ़ावा देता है, अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार करता है तथा FAIR (अन्वेषण योग्य, सुलभ, अंतर-संचालनीय और पुन: प्रयोज्य) सिद्धांतों के माध्यम से वित्त पोषण के प्रभाव को अधिकतम करता है।
- ओपन साइंस से संबंधित नैतिक विचार: शोध की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये ओपन-एक्सेस प्रकाशन में प्रकाशकों से गहन समीक्षा करने, लेखकों से पारदर्शिता बरतने तथा शोधकर्त्ताओं से नैतिक मानदंडों को बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है।
- खुले विज्ञान पर एआई का प्रभाव: AI डेटा माइनिंग और विश्लेषण को बढ़ावा देता है, ओपन साइंस में सहयोग एवं डेटा साझाकरण को बढ़ावा देता है।
- हालाँकि, इससे पूर्वाग्रह और विश्वसनीयता जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- ओपन साइंस के लिये चुनौतियाँ: तकनीकी बाधाएँ, संस्थागत प्रतिरोध, आर्थिक बाधाएँ और कानूनी मुद्दे, जैसे बौद्धिक संपदा व डेटा गोपनीयता संबंधी चिंताएँ, व्यापक रूप से ओपन साइंस को अपनाने में बाधा डालती हैं।
अधिक पढ़ें: राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति का प्रारूप
कैलिफोर्निया का नया एंटी-डीप फेक बिल
स्रोत: TH
हाल ही में, कैलिफोर्निया के गवर्नर ने राजनीतिक अभियानों में डीप फेक के उपयोग को रोकने के उद्देश्य से तीन नए विधेयकों पर हस्ताक्षर किये।
- कानून के विषय में:
- इस कानून का उद्देश्य राजनीतिक विज्ञापनों में डीप फेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के भ्रामक उपयोग को रोककर चुनावी अखंडता की रक्षा करना एवं यह सुनिश्चित करना है कि मतदाता गुमराह न हों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास बना रहे।
बिल |
प्रावधान |
AB 2655 |
डिफेंडिंग डेमोक्रेसी फ्रॉम डीप फेक डिसेप्शन एक्ट, 2024
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AB 2839 |
चुनाव: विज्ञापनों में भ्रामक मीडिया
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AB 2355 |
राजनीतिक सुधार अधिनियम, 1974: राजनीतिक विज्ञापन: AI
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- डीप फेक AI द्वारा निर्मित सिंथेटिक मीडिया हैं जिन्हें विज़ुअल और ऑडियो कॉन्टेंट में हेरफेर करके धोखा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है। इन्हें जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क (GAN) का उपयोग करके बनाया जाता है।
- कैलिफोर्निया एक अमेरिकी राज्य है जो प्रशांत महासागर के समानांतर विस्तारित है।
- कैलिफोर्निया के प्राकृतिक संसाधनों में कैलिफोर्निया की खाड़ी (जो मछली पकड़ने और पर्यटन के लिये एक प्रमुख केंद्र है), मोजावे रेगिस्तान (जो अत्यधिक गर्मी के लिये जाना जाता है), डेथ वैली (जो पृथ्वी के सबसे गर्म स्थानों में से एक है) और साल्टन सागर शामिल हैं।
और पढ़ें: डीप फेक, कैलिफोर्निया के अतीत के सहारे वर्तमान जलवायवीय चुनौतियों पर प्रकाश
सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं का विवरण नहीं किया जाएगा प्रकाशित
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त परियोजनाओं का विवरण इसके परिवेश पोर्टल पर उपलब्ध नहीं कराया जाएगा।
- परियोजना का प्रसंस्करण PARIVESH 2.0 के माध्यम से होगा किंतु सुरक्षा-संबंधी परियोजनाओं का विवरण पोर्टल पर उपलब्ध नहीं कराया जाएगा और सार्वजानिक रूप से यह अप्राप्य होगा।
- वर्ष 2023 में संशोधित वन संरक्षण अधिनियम, 1980, के अंतर्गत विशिष्ट परियोजनाओं को वन मंज़ूरी प्राप्त करने की आवश्यकता से छूट प्रदान की गई जो निम्नवत है:
- अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं अथवा नियंत्रण रेखा/वास्तविक नियंत्रण से 100 किमी. के भीतर स्थित राष्ट्रीय महत्त्व की रणनीतिक अनुरेखीय परियोजनाएँ (सड़क, रेल इत्यादि)।
- 10 हेक्टेयर तक की वन भूमि से संबंधित सुरक्षा संबंधी आधारिक संरचना परियोजनाएँ।
- वामपंथी उग्रवाद (LWE) प्रभावित ज़िलों में 5 हेक्टेयर वन भूमि से संबंधित सुरक्षा संबंधी और जनोपयोगी संबंधी आधारिक संरचना परियोजनाएँ।
- सड़क/रेल सुविधाओं तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने हेतु 0.1 हेक्टेयर की वन-भूमि की आवश्यकता वाली परियोजनाएँ।
- परिवेश 2.0, वेब-आधारित एप्लीकेशन है जिसका उपयोग पर्यावरण, वन, वन्यजीव और तटीय विनियमन क्षेत्रों के लिये मंज़ूरी प्राप्त करने हेतु ऑनलाइन प्रस्ताव करने और उनको ट्रैक करने के लिये किया जाता है।
और पढ़ें: पर्यावरणीय प्रभाव आकलन
समुद्र का बढ़ता जलस्तर और तुवालू द्वीप
स्रोत: द हिंदू
हाल के दिनों में, 11,000 निवासियों वाला प्रशांत महासागर में स्थित तुवालू, समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण गंभीर रूप से खतरे का सामना कर रहा है।
- नासा के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक तुवालू के मुख्य एटोल, फुनाफुटी का आधा हिस्सा रोज़ाना आने वाले ज्वार के कारण पानी में डूब जाएगा।
- समुद्र का खारा पानी जमीन में मिल जाने से वहाँ की फसलें खराब हो रही हैं तथा भोजन के लिये वहाँ के लोग वर्षा जल टैंकों और केंद्रीय उद्यान पर निर्भर रहने को मज़बूर हो गए है।
- तुवालू 2100 तक प्रभाव को टालने के लिये समुद्री दीवारों का निर्माण तथा कृत्रिम भूमि का विस्तार कर रहा है।
- ऑस्ट्रेलिया के साथ वर्ष 2023 की जलवायु और सुरक्षा संधि प्रतिवर्ष 280 तुवालूवासियों के लिये प्रवास मार्ग प्रदान करती है।
- राजस्व की हानि और अवैध मत्स्य संग्रहण से चिंतित तुवालू चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र उसकी संप्रभुता एवं समुद्री सीमाओं को मान्यता प्रदान करे, भले ही वे जलमग्न हों।
- वह संयुक्त राष्ट्र और प्रशांत द्वीप समूह फोरम से कानूनी आश्वासन चाहता है।
- तुवालू:
- यह पश्चिम-मध्य प्रशांत महासागर में, हवाई और ऑस्ट्रेलिया के बीच में स्थित है।
- इसकी राजधानी फुनाफुटी है, तथा इसके उत्तर में किरिबाती और नौरू/नाउरू तथा दक्षिण में फिजी इसका निकटतम पड़ोसी द्वीप है।
- इसमें 3 मुख्य द्वीप समूह नानुमंगा (Nanumanga), निउताओ (Niutao) और निउलकिता (Niulakita) तथा 6 प्रवाल द्वीप (जैसे फुनाफुटी, नानूमिया (Nanumea), नुई (Nui) के साथ-साथ 100 से अधिक छोटे द्वीप शामिल हैं।
और पढ़ें: प्रशांत द्वीप राष्ट्रों के लिये ऋण सहायता।