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जैव विविधता और पर्यावरण

कैलिफोर्निया के अतीत के सहारे वर्तमान जलवायवीय चुनौतियों पर प्रकाश

  • 22 Aug 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वनाग्नि, प्लेइस्टोसिन/अत्यंत नूतन युग, ला ब्रे टार पिट्स, होलोसीन/अभिनव युग, भू-वैज्ञानिक काल मापक्रम, मैमथ, विशाल भालू, भयानक भेड़िये, ऊँट

मेन्स के लिये:

भविष्य में बड़े पैमाने पर विलुप्ति को रोकने की प्राथमिकता

चर्चा में क्यों? 

मानव-जनित जलवायु परिवर्तन और विघटनकारी भूमि प्रबंधन प्रथाओं के कारण घातक वनाग्नि की घटनाओं की व्यापकता बढ़ गई है। हाल ही में किया गया एक नवीन अध्ययन प्लेइस्टोसिन युग के दौरान कैलिफोर्निया के इतिहास पर प्रकाश डालता है, पृथ्वी 60 मिलियन से अधिक वर्षों में वर्तमान में सबसे बड़ी विलुप्ति की आपदा के साथ-साथ गंभीर जलवायु परिवर्तन का भी सामना कर रही है।

प्लेइस्टोसिन युग:

  • यह भू-वैज्ञानिक युग है जिसकी कालावधि लगभग 2,580,000 से 11,700 वर्ष पूर्व तक है, इसमें पृथ्वी पर हिमनदीकरण की सबसे हालिया अवधि शामिल है।
    • प्लेइस्टोसिन युग के दौरान वैश्विक शीतलन या हिमयुग की सबसे हालिया घटनाएँ घटित हुईं।
  • इस युग में हिमयुग के विशाल जीव शामिल थे, जैसे- वूली मैमथ (मैमथस प्रिमिजेनियस), विशाल भालू, भयानक भेड़िये और ऊँट, इनमें से कई प्लेइस्टोसिन युग के अंत में विलुप्त हो गए।
    • इसके परिणामस्वरूप काफी नुकसान हुआ, उत्तरी अमेरिका में 97 पाउंड से अधिक वज़न वाले 70% से अधिक, दक्षिण अमेरिका में 80% से अधिक और ऑस्ट्रेलिया में लगभग 90% स्तनधारी विलुप्त हो गए।
  • प्लेइस्टोसिन युग का अंत होलोसीन युग की शुरुआत का भी प्रतीक है, यह वर्तमान युग है जिसमें हम रह रहे हैं।

अध्ययन की प्रमुख विशेषताएँ:

  • ला ब्रे टार पिट्स से प्राप्त जानकारी: ला ब्रे टार पिट्स लॉस एंजिल्स, अमेरिका में एक विपुल हिमयुग जीवाश्म स्थल है जहाँ डामर के रिसाव में फँसे हज़ारों बड़े स्तनधारियों के संरक्षित अवशेष हैं।
    • जीवाश्मों से प्राप्त प्रोटीन के अध्ययन से लंबे समय तक सूखे और तीव्र मानव जनसंख्या वृद्धि के कारण गर्म जलवायु के एक घातक संयोजन का पता चलता है।
      • इन कारकों ने दक्षिणी कैलिफोर्निया के पारिस्थितिकी तंत्र को चरम बिंदु पर धकेल दिया, जिससे वनस्पति और मेगा-स्तनपायी आबादी में काफी परिवर्तन हुए।
      • पिछले हिमयुग के बाद जैसे-जैसे कैलिफोर्निया गर्म होता गया, परिदृश्य शुष्क होता गया और जंगल कम होते गए।
        • ला ब्रे में संभवतः मानव शिकार और निवास स्थान के नुकसान के संयोजन से शाकाहारी आबादी में भी गिरावट आई। पेड़ों से जुड़ी प्रजातियाँ, जैसे ऊँट, पूरी तरह से लुप्त हो गईं।
  • एक नया प्रतिमान- आग की भूमिका: यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि आग दक्षिणी कैलिफोर्निया में अपेक्षाकृत हाल की घटना है, आग लगने की घटना अक्सर मानव आगमन के बाद ही होती है।
    • तटीय कैलिफोर्निया में 90% से अधिक आग की घटनाओं का कारण मानवीय गतिविधियाँ जैसे- बिजली लाइन का गिरना और कैम्प फायर है। 
    • प्लेइस्टोसिन में विलुप्तियों और समकालीन संकटों के बीच समानता जैसे मिश्रित तनाव पारिस्थितिक तंत्र की भेद्यता को रेखांकित करते हैं।
  • जलवायु और जैवविविधता संकट की प्रासंगिकता: वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, मानव जनसंख्या का विस्तार, जैवविविधता हानि तथा मानव-जनित आग की घटनाएँ अतीत को प्रतिबिंबित करती हैं।
    • वर्तमान में तापमान वृद्धि की दर, मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने से प्रेरित, हिमयुग के अंत से कहीं अधिक है।
    • अध्ययन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, आग की घटनाओं को रोकने और मेगाफौना की सुरक्षा के प्रयासों को तेज़ करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।

भू-वैज्ञानिक काल मापक्रम: 

  • भू-वैज्ञानिक काल मापक्रम एक विशाल समयरेखा की तरह है जो हमें अपने ग्रह के इतिहास को समझने में मदद करता है।
    • जिस प्रकार एक कैलेंडर वर्षों, महीनों और दिनों को विभाजित करता है, उसी प्रकार भू-वैज्ञानिक काल मापक्रम पृथ्वी के इतिहास को ईयान (Eon), महाकल्प (Era), कल्प (Period), युग (Epoch) और आयु (Age) समय क्रमों में विभाजित करता है।
  • ईयान को महाकल्पों में, महाकल्पों को कल्पों में, कल्पों को युगों में और युगों को आयु में विभाजित किया गया है। 

भविष्य में व्यापक विलुप्तिकरण को रोकने के लिये हमारी प्राथमिकताएँ: 

  • समग्र पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और संरक्षण:
    • अभिनव पारिस्थितिकी तंत्र मानचित्रण: पारिस्थितिकी तंत्र की अवस्था का आकलन करने और बहाली के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान करने हेतु उन्नत मानचित्रण प्रौद्योगिकियों का विकास करना।
    • जैव-गलियारा निर्माण: खंडित आवासों को जोड़ने के लिये पारिस्थितिक गलियारे स्थापित करना, ताकि प्रजातियों को विविध वातावरणों में स्थानांतरित और विकसित होने में सक्षम बनाया जा सके।
    • निवारक संरक्षण: दीर्घकालिक पारिस्थितिकी तंत्र लचीलेपन के लिये महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने हेतु प्रमुख प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकता देना।
  • प्रजातियों के लचीलेपन के लिए संश्लेषित जीवविज्ञान का उपयोग:
    • आनुवंशिक वृद्धि: सुभेद्य प्रजातियों के भीतर आनुवंशिक विविधता को बढ़ाने, बदलती परिस्थितियों के प्रति उनकी अनुकूलन क्षमता में वृद्धि हेतु संश्लेषित जीवविज्ञान तकनीकों का प्रयोग करना।
    • विकास हेतु समर्थन: प्रजातियों के अनुकूलन के लिये नियंत्रित हस्तक्षेपों के माध्यम से पर्यावरणीय बदलावों के प्रति प्रतिक्रिया को तेज़ करना।
    • नैतिक विमर्श: संरक्षण प्रयासों में संश्लेषित जीवविज्ञान के उत्तरदायित्वपूर्ण उपयोग के लिये एक वैश्विक नीति ढाँचा तैयार करना।
  • संसाधनों के सतत् उपयोग के लिये हरित नवाचार: 
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: संसाधनों की कमी और बर्बादी को कम करने के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्थाओं (Circular Economies) को बढ़ावा देना, ताकि पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव को कम किया जा सके।
    • बायोमिमिक्री और सस्टेनेबल डिज़ाइन: उद्योगों के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिये पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद विकसित करना।
    • हरित अवसंरचना: टिकाऊ बुनियादी ढाँचे में निवेश करना, जो वन्यजीवों के आवास (Habitat Destruction) को कम क्षति पहुँचाता हो, जैसे वन्यजीव-अनुकूल सड़क मार्ग के निर्माण के माध्यम से धारणीय विकास को बढ़ावा देना।
  • डेटा-संचालित संरक्षण प्रबंधन:
    • पूर्वानुमानित विश्लेषण: पारिस्थितिकी तंत्र की गतिशीलता को बनाए रखने के लिये मशीन लर्निंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करना, ताकि व्यवधानों को रोकने के लिये समय पर हस्तक्षेप किया जा सके।
    • वास्तविक समय निगरानी: पारिस्थितिकी तंत्र की वास्तविक समय निगरानी और दबावकारी कारकों का शीघ्र पता लगाने के लिये रिमोट सेंसर तथा उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
      • सीमाओं के पार सहयोगात्मक संरक्षण प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिये इंटरकनेक्टेड डेटा-शेयरिंग नेटवर्क स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
  • युवाओं और समुदायों का सशक्तीकरण: 
    • पर्यावरण शिक्षा में सुधार: जैवविविधता के महत्त्व की गहरी समझ को बढ़ावा देने तथा कम आयु से ही नेतृत्व की भावना जागृत करने के लिये शैक्षिक पाठ्यक्रम में सुधार करना।
    • युवा-प्रेरित पहल: नीतियों के निर्माण में उनके प्रभाव तथा भागीदारी को बढ़ाने के लिये युवाओं के नेतृत्व वाली संरक्षण परियोजनाओं और प्लेटफॉर्मों को प्रोत्साहित करना।
    • सांस्कृतिक एकीकरण: सामुदायिक स्वामित्व और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देते हुए स्वदेशी एवं स्थानीय ज्ञान प्रणालियों की संरक्षण रणनीतियों में एकीकृत करना।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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