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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 19 Apr, 2023
  • 27 min read
प्रारंभिक परीक्षा

भारत का विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र

हाल ही में भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में सक्षम युवा स्टार्टअप को शामिल करने एवं पहचानने हेतु YUVA पोर्टल लॉन्च किया गया है।

  • इससे पहले "वन वीक - वन लैब" अभियान शुरू किया गया था। हरियाणा के करनाल में खगोल विज्ञान प्रयोगशाला भी शुरू की गई, जो दिव्यांग लोगों को कौशल, कला और शिल्प के विभिन्न रूपों में उत्कृष्टता प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।

भारत का विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी हाल के विकास: 

  • परिचय
    • हाल ही में 108वीं भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस में प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया कि कैसे भारत नवाचार, स्टार्टअप और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है।
    • वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index- GII) 2022 के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 132 शीर्ष नवोन्मेषी अर्थव्यवस्थाओं में भारत 40वें स्थान पर है।
  • भारतीय सांकेतिक भाषा एस्ट्रोलैब: 
    • भारतीय सांकेतिक भाषा एस्ट्रोलैब सांकेतिक भाषा में निर्देशात्मक वीडियो तक आभासी पहुँच प्रदान करके समावेशिता को बढ़ावा देती है और यह विशाल दूरबीन तथा दृश्य-श्रव्य सहायता सहित 65 उपकरणों से लैस है।
  • CSIR-NPL: 
    • वायुमंडलीय प्रदूषण की निगरानी के उद्देश्य से गैसों और वायुवाहित कणों के मानकीकरण के अतिरिक्त वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद - राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला [Council of Scientific and Industrial Research (CSIR) - National Physical Laboratory (NPL)] ने भारतीय मानक समय (Indian Standard Time- IST) के संरक्षक के रूप में कार्य किया है जो सीज़ियम परमाणु घड़ियों और हाइड्रोजन मेसर्स से बने एक एटॉमिक टाइम स्केल के उपयोग से उत्पन्न होता है।
    • जीनोम से लेकर भू-विज्ञान, भोजन से लेकर ईंधन, खनिज़ों से लेकर सामग्री तक अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता के साथ CSIR प्रयोगशालाएँ भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति में योगदान करती हैं।
    • NPL भविष्य के क्वांटम मानकों और आगामी तकनीकों को स्थापित करने के लिये बहु-विषयक अनुसंधान एवं विकास के साथ ही "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम के तहत आयात विकल्प विकसित करती है तथा "कौशल भारत" कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण प्रदान करती है।
  • वन वीक - वन लैब अभियान:
    • ‘वन वीक - वन लैब’ कार्यक्रम का उद्देश्य CSIR-NPL द्वारा प्रदान की जाने वाली तकनीकों और सेवाओं के बारे में जागरूकता पैदा करना, सामाजिक समस्याओं का समाधान प्रदान करना और छात्रों में वैज्ञानिक स्वभाव विकसित करना है। 
      • दिल्ली-NCR के 180 स्कूलों को विभिन्न गतिविधियों के लिये NPL प्रयोगशालाओं से अवगत कराया गया है तथा भविष्य में इसमें और अधिक स्कूलों को शामिल किया जाएगा।
  • विज्ञान और विरासत अनुसंधान पहल (SHRI):
    • SHRI कार्यक्रम के तहत कपास के धागों और कोरई घास के प्रयोग से बुनी या इंटरलेस से बनाई गई ध्वनिरोधी पट्टामदाई चटाई का निर्माण किया जाता है, ताकि कक्षाओं के साथ-साथ बाहरी शोर के खिलाफ इसका उपयोग रिकॉर्डिंग स्टूडियो के रूप में किया जा सके।
      • इससे तमिलनाडु के तिरुनेलवेली की इस पारंपरिक कला की मांग बढ़ सकती है। 
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उन्नत अध्ययन संस्थान (IASST): 
    • IASST के वैज्ञानिकों ने बायोडिग्रेडेबल, बायोपॉलिमर नैनोकम्पोज़िट विकसित किया है जो सापेक्ष आर्द्रता का पता लगा सकता है और विशेष रूप से खाद्य उद्योग में स्मार्ट पैकेजिंग सामग्री के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। 
  • नवाचारों के विकास और दोहन के लिये राष्ट्रीय पहल (NIDHI):
    • यह स्टार्टअप्स के लिये एक एंड-टू-एंड (End to End) योजना है जिसका लक्ष्य पाँच वर्ष की अवधि में इनक्यूबेटरों और स्टार्टअप्स की संख्या को दोगुना करना है।
  • राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार: 
    • यह कार्यक्रम उत्कृष्ट स्टार्टअप्स और इकोसिस्टम एनेबलर्स की पहचान कर उन्हें पुरस्कृत करता है, जो नवाचार एवं प्रेरक प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करके आर्थिक गतिशीलता में योगदान देता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


प्रारंभिक परीक्षा

विद्युत चुंबकीय आयन साइक्लोट्रॉन तरंगें

वैज्ञानिकों ने भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन मैत्री में ऐसी विद्युत चुंबकीय (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक)  आयन साइक्लोट्रॉन (EMIC) तरंगों की पहचान की है, जो प्लाज़्मा तरंगों का ही एक रूप है और इनकी विशेषताओं का अध्ययन किया है।

  • ये तरंगें ऐसे किलर इलेक्ट्रॉनों (इलेक्ट्रॉनों की गति प्रकाश की गति के करीब होती हैं, जो पृथ्वी ग्रह की विकिरण पट्टी बेल्ट का निर्माण करती हैं) की वर्षा/अवक्षेपण (Precipitation) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जो अंतरिक्ष-जनित हमारी प्रौद्योगिकी/उपकरणों के लिये हानिकारक हैं।
  • यह अध्ययन निम्न कक्षाओं में स्थापित उपग्रहों पर विकिरण पट्टी/रेडिएशन बेल्ट में ऊर्जावान कणों के प्रभाव को समझने में सहायक बन सकता है।

विद्युत चुंबकीय आवेश साइक्लोट्रॉन तरंगें:

  • EMIC तरंगें पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर में पाई जाने वाली सूक्ष्म विद्युत चुंबकीय उत्सर्जन हैं।
  • ये तरंगें भूमध्यरेखीय अक्षांशों में उत्पन्न होती हैं और चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ उच्च अक्षांश आयनमंडल तक फैली होती हैं।
  • अंतरिक्ष के साथ-साथ भू-आधारित मैग्नेटोमीटर दोनों में उनके बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। 

मैग्नेटोस्फीयर:

  • मैग्नेटोस्फीयर वह गुहा है जिसमें पृथ्वी स्थित है और सूर्य के प्रभाव से सुरक्षित रहती है।
  • यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और सौर पवन के बीच परस्पर क्रिया से निर्मित होता है, जो सूर्य से प्रवाहित होने वाले आवेशित कणों, मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनों एवं प्रोटॉन की एक सतत् धारा है।
    • पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र उसके बाह्य कोर में पिघले हुए लोहे की गति से उत्पन्न होता है।

मैग्नेटोमीटर:

  • मैग्नेटोमीटर एक वैज्ञानिक उपकरण है जिसका उपयोग चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति और दिशा को मापने हेतु किया जाता है।
  • इसका उपयोग पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र, साथ ही अन्य खगोलीय पिंडों, जैसे ग्रहों, चंद्रमाओं, सितारों एवं आकाशगंगाओं के चुंबकीय क्षेत्रों का अध्ययन करने हेतु किया जा सकता है।
  • मैग्नेटोमीटर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन या चुंबकत्त्व के सिद्धांतों के आधार पर काम करते हैं।

प्लाज़्मा तरंगें:  

  • परिचय:  
    • प्लाज़्मा तरंगें एक प्रकार की विद्युत चुंबकीय तरंगें हैं जो प्लाज़्मा के माध्यम से प्रसारित होती हैं, जो पदार्थ की एक अवस्था है।
      • प्लाज़्मा तब बनता है जब एक गैस को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है या मज़बूत विद्युत क्षेत्रों के अधीन किया जाता है जिससे इसके परमाणु आयनित हो जाते हैं, जिसका अर्थ है कि वह इलेक्ट्रॉनों को खो देते हैं या प्राप्त कर लेते हैं और आवेशित कण बन जाते हैं। 
    • दृश्यमान ब्रह्मांड में 99 प्रतिशत से अधिक पदार्थ में प्लाज़्मा होता है। 
      • हमारा सूर्य, सौर हवा, ग्रहों के बीच का माध्यम, पृथ्वी के निकट क्षेत्र, मैग्नेटोस्फीयर और हमारे वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में सभी प्लाज़्मा शामिल हैं।
  • अनुप्रयोग:  
    • खगोल भौतिकी, अंतरिक्ष विज्ञान, प्लाज़्मा भौतिकी और संचार प्रौद्योगिकी सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्लाज़्मा तरंगों के महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग हैं। 
      • उदाहरण के लिये वह औरोरा की पीढ़ी में शामिल है।
    • प्लाज़्मा तरंगों का अध्ययन हमें उन क्षेत्रों के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है जो हमारे लिये दुर्गम हैं, विभिन्न क्षेत्रों में द्रव्यमान और ऊर्जा का परिवहन करते हैं, कैसे वे आवेशित कणों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं तथा पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर की समग्र गतिशीलता को नियंत्रित करते हैं

पदार्थ की अन्य अवस्थाएँ:  

  • विषय:  
    • पदार्थ की अवस्थाएँ विभिन्न भौतिक रूप हैं जिनमें पदार्थ अपने अद्वितीय गुणों जैसे- आकार, आयतन और कण व्यवस्था के आधार पर मौजूद हो सकते हैं।
    • पदार्थ की तीन सबसे अधिक ज्ञात अवस्थाएँ ठोस, तरल और गैस हैं।
      • इसके अतिरिक्त प्लाज़्मा और बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट के रूप में ज्ञात पदार्थ की दो कम सामान्य अवस्थाएँ हैं।
  • बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट: यह पदार्थ की एक अवस्था है जो पूर्ण शून्य के करीब बहुत कम तापमान पर होती है। इसकी भविष्यवाणी पहली बार 1920 के दशक में अल्बर्ट आइंस्टीन और भारतीय भौतिक विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बोस ने की थी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. प्रो. सत्येंद्र नाथ बोस द्वारा किये गए 'बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी' के कार्य पर चर्चा कीजिये और कैसे इसने भौतिकी के क्षेत्र में क्रांति ला दी। चर्चा कीजिये।  (2018) 

स्रोत: पी. आई. बी.


प्रारंभिक परीक्षा

TeLEOS-2 उपग्रह

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सिंगापुर के TeLEOS-2 उपग्रह को लॉन्च करने के लिये तैयार है।

  • यह प्रक्षेपण इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle- PSLV) द्वारा किया जाएगा।
  • यह न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के माध्यम से एक समर्पित वाणिज्यिक मिशन है जिसमें प्राथमिक उपग्रह के रूप में TeLEOS-2 और सह-यात्री उपग्रह के रूप में Lumelite-4 है।

TeLEOS-2 उपग्रह: 

  • परिचय: 
    • TeLEOS-2 ST इंजीनियरिंग द्वारा विकसित एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है जिसका वज़न 741 किलोग्राम है और इसमें सिंथेटिक एपर्चर रडार है जो 1 मीटर रिज़ॉल्यूशन में डेटा प्रदान करने में सक्षम है।
    • यह एक उच्च रिज़ॉल्यूशन कैमरे से युक्त है जो एक मीटर तक के ग्राउंड रिज़ॉल्यूशन के साथ छवि रिकॉर्ड कर सकता है।
  • उद्देश्य:  
    • TeLEOS-2 का प्राथमिक उद्देश्य शहरी नियोजन, आपदा प्रबंधन, समुद्री सुरक्षा और पर्यावरण निगरानी सहित विभिन्न अनुप्रयोगों हेतु पृथ्वी की सतह की उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजरी प्रदान करना है।
    • इस उपग्रह द्वारा सिंगापुर की स्मार्ट राष्ट्र पहल का सहयोग किये जाने की भी उम्मीद है, जिसका उद्देश्य नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है।

TeLEOS-2

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV):

  • PSLV इसरो द्वारा विकसित अत्यधिक सक्षम तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है। वर्षों से लगातार बेहतर प्रदर्शन के कारण इसे प्रायः "इसरो का वर्कहॉर्स" कहा जाता है।
    • PSLV में चार चरण हैं: 
      • पहले चरण के ठोस रॉकेट मोटर में छह ठोस स्ट्रैप-ऑन बूस्टर जोड़े गए हैं। 
      • दूसरा चरण एक पृथ्वी भंडारण योग्य तरल रॉकेट इंजन द्वारा संचालित है जिसे विकास इंजन कहा जाता है, जिसे लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर द्वारा विकसित किया गया है।
      • तीसरा चरण एक ठोस रॉकेट मोटर है जो प्रक्षेपण यान द्वारा पृथ्वी के वायुमंडल को पार करने के बाद ऊपरी चरणों के लिये उच्च थ्रस्ट प्रदान करता है।  
      • अंत में PSLV का सबसे ऊपरी चरण दो पृथ्वी-भंडारण योग्य तरल इंजनों से सुसज्जित है।
    • यह लिक्विड स्टेज से लैस पहला भारतीय लॉन्च व्हीकल है।
    • इस लॉन्च व्हीकल की सहायता से दो अंतरिक्षयान- वर्ष 2008 में चंद्रयान-1 और वर्ष 2013 में मार्स ऑर्बिटर अंतरिक्षयान को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया जिसने बाद में क्रमशः चंद्रमा और मंगल तक की यात्रा की। 

इसरो और सिंगापुर के बीच पिछला अंतरिक्ष सहयोग: 

  • TeLEOS-1 सिंगापुर का एक वाणिज्यिक मिशन है। इसका उद्देश्य समय-संवेदी घटनाओं (Time-sensitive Events) की त्वरित प्रतिक्रिया में सहायता के लिये उच्च अस्थायी इमेज़री की सुविधाजनक पहुँच प्रदान करना है।
    • वर्ष 2015 में TeLEOS-1 के सफल प्रक्षेपण के बाद TeLEOS-2 इसरो द्वारा सिंगापुर के लिये लॉन्च किया गया दूसरा उपग्रह होगा।
      • यह सिंगापुर का पहला वाणिज्यिक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है।
  • सिंगापुर में एक उपग्रह ग्राउंड स्टेशन के डिज़ाइन और विकास कार्य के रूप में इसरो और ST इंजीनियरिंग के बीच सहयोग से अंतरिक्ष से संबंधित अन्य परियोजनाओं का विकास भी हुआ है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत  वर्ष के प्रश्न  

    प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

    1. PSLV से वे उपग्रह प्रमोचित किये जाते हैं जो पृथ्वी के संसाधनों के नियंत्रण में उपयोगी हैं, जबकि GSLV को मुख्यत: संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
    2.  PSLV द्वारा प्रमोचित उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप में स्थिर रहते प्रतीत होते हैं जैसा कि पृथ्वी के एक विशिष्ट स्थान से देखा जाता है।
    3.  GSLV Mk III, एक चार-स्टेज वाला प्रमोचन वाहन है, जिसमें प्रथम और तृतीय चरणों में ठोस रॉकेट मोटरों का तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरणों में द्रव रॉकेट इंजनों का प्रयोग होता है।

    उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 1 और 2
    (d) केवल 3

    उत्तर: (a) 

    स्रोत: द हिंदू


    विविध

    Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 19 अप्रैल, 2023

    टी मॉस्किटो बग

    टी मॉस्किटो बग (TMB) के संक्रमण के कारण भारत में चाय का उत्पादन खतरे में है। टी मॉस्किटो बग (Helopeltis Theivora) एक आम कीट है जो चाय के पौधों के कोमल भागों से रस चूसता है, जिससे फसल को भारी नुकसान होता है। यह पौधों के ऊतकों में अंडे डालकर उन्हें नुकसान भी पहुँचाता है। TMB ने निम्न और उच्च उँचाई वाले दोनों प्रकार के चाय बागानों को प्रभावित किया है। यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन ऑफ सदर्न इंडिया (UPASI) ने कीट के तेज़ी से फैलने के कारण दक्षिण भारत के सभी चाय की खेती वाले ज़िलों में फसल के भारी नुकसान पर चिंता जताई है। भारतीय चाय बोर्ड ने भारतीय चाय को हानिकारक कीटनाशकों से मुक्त करने के लिये पौध संरक्षण कोड (PPC) की अपनी अनुमोदित सूची से कई कीटनाशकों को हटा दिया है। वर्तमान में PPC के तहत दक्षिण भारत में उपयोग के लिये केवल सात कीटनाशक स्वीकृत हैं और चाय उत्पादक इस कीट के प्रभावी नियंत्रण में असमर्थ हैं। UPASI ने भारत में अन्य फसलों के लिये केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (CIBRC) द्वारा मूल्यांकन एवं अनुमोदित प्रभावी अणुओं का उपयोग करने के लिये सरकार की मंज़ूरी मांगी है ताकि चाय उत्पादन पर पड़ने वाला प्रभाव न्यूनतम हो। CIBRC की स्थापना कृषि मंत्रालय द्वारा वर्ष 1970 में कीटनाशी अधिनियम, 1968 और कीटनाशक नियम, 1971 के तहत कीटनाशकों को विनियमित करने के लिये की गई थी। CIB तकनीकी मामलों पर सरकार को सलाह देता है तथा उसे अन्य कार्य भी सौंपे गए हैं। कीटनाशक आयातकों और निर्माताओं को पंजीकरण समिति में पंजीकरण कराना होता है।

    और पढ़े… भारत का चाय उद्योग

    G20 स्वास्थ्य कार्य समूह: डिजिटल स्वास्थ्य और नवाचार का लाभ उठाना 

    भारत की अध्यक्षता में G20 की दूसरी स्वास्थ्य कार्य समूह की बैठक में डिजिटल स्वास्थ्य और नवाचार का लाभ उठाने, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिये नागरिक केंद्रित स्वास्थ्य वितरण पारिस्थितिकी तंत्र पर एक महत्त्वपूर्ण चर्चा हुई। भारत में आयुष मंत्रालय ने कुशल, किफायती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मॉडल स्थापित करने के लिये पारंपरिक चिकित्सा को प्रौद्योगिकी के साथ एकीकृत करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु उन्होंने "आयुष ग्रिड" नामक एक व्यापक आईटी आधार पेश किया है, जो आयुष क्षेत्र में बदलाव लाने के लिये एक सुरक्षित और इंटरऑपरेबल डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करेगा। आयुष ग्रिड चार स्तरों पर संचालित होता है, जो सभी हितधारकों के बीच सहज डिजिटल जुड़ाव सुनिश्चित करता है और मेडिकल रिकॉर्ड बनाए रखने, सूचना का आदान-प्रदान तथा स्वास्थ्य देखभाल के विभिन्न तौर-तरीकों की प्रभावशीलता के मूल्यांकन में डिजिटल उपकरणों के उपयोग के महत्त्व पर प्रकाश डालता है। आयुष मंत्रालय ने कहा कि भारत में WHO के पारंपरिक चिकित्सा के लिये वैश्विक केंद्र का कार्य आगामी पारंपरिक चिकित्सा में डेटा विश्लेषण और प्रौद्योगिकी पर काम करना है।

    और पढ़ें… आयुष ग्रिड और नमस्ते पोर्टल, राष्ट्रीय आयुष मिशन

    रिपोर्ट किये गए अमेरिकी तेल एवं गैस क्षेत्रों से 70% अधिक मीथेन का उत्सर्जन 

    द प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, अमेरिकी तेल और गैस क्षेत्रों में मीथेन उत्सर्जन वर्ष 2010-2019 से अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (Environmental Protection Agency- EPA) द्वारा रिपोर्ट किये गए आधिकारिक आँकड़ों की तुलना में 70% अधिक था। अध्ययन का अनुमान है कि इस अवधि के दौरान वार्षिक 14.8 टेरा-ग्राम मीथेन उत्सर्जित की गई है। शोधकर्त्ताओं ने पाया कि EPA, ‘सुपर-एमिटर’ जैसे उपकरण जो खराब परिचालन प्रथाओं या खराबी के कारण बड़ी मात्रा में मीथेन का उत्सर्जन करते है, हेतु ज़िम्मेदार नहीं है। मीथेन प्राकृतिक गैस का प्राथमिक घटक है और जीवाश्म ईंधन अन्वेषण का उपोत्पाद है। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 20 वर्ष की अवधि में ऊष्मा को रोकने में यह 86 गुना अधिक कुशल है। यह आर्द्रभूमि, कृषि (पशुधन, चावल), अपशिष्ट (लैंडफिल, अपशिष्ट जल) एवं जीवाश्म ईंधन खनन (कोयला, तेल, गैस) सहित कई स्रोतों से उत्सर्जित होता है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि तेल तथा गैस के संचालन से 70% से अधिक उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि वर्ष 2017-2019 तक तेल तथा गैस के उत्पादन में वृद्धि के बावजूद मीथेन की तीव्रता में कमी आई है। हालाँकि इस गिरावट को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि तेल एवं गैस क्षेत्र परिपक्व और तेल कुएँ कम उत्पादक हो जाते हैं। 

    और पढ़ें…मीथेन उत्सर्जन

    इंडिया स्टील 2023 

    केंद्रीय इस्पात मंत्रालय द्वारा वाणिज्य विभाग, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय तथा FICCI (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) के सहयोग से इस्पात उद्योग पर एक सम्मेलन तथा प्रदर्शनी इंडिया स्टील 2023 का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के दौरान लॉजिस्टिक्स अवसंरचना, मांग गतिशीलता, हरित इस्पात उत्पादन तथा उत्पादकता एवं दक्षता बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी समाधानों जैसे विषयों को कवर किया जाएगा। इंडिया स्टील 2023 आकर्षक सत्रों की एक वर्गीकृत शृंखला प्रस्तुत करेगा जिसमें ‘‘सक्षम लॉजिस्टिक्स अवसंरचना का संवर्द्धन”, ‘‘भारतीय इस्पात उद्योग के लिये मांग गतिशीलता”, ‘‘हरित इस्पात के माध्यम से स्थिरता लक्ष्य: चुनौतियाँ और भावी परिदृश्य”, ‘‘अनुकूल नीति संरचना तथा भारतीय इस्पात के प्रमुख समर्थक” और “उत्पादकता एवं दक्षता बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी समाधानों” जैसे विषयों को कवर किया जाएगा। कच्चे इस्पात का विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के नाते भारत वैश्विक इस्पात उद्योग में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता है। वित्त वर्ष 2021-2022 में देश ने 120 मिलियन टन कच्चे इस्पात का उत्पादन किया। ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों में भारत के इस्पात भंडार का 80% से अधिक हिस्सा है। देश के कुछ महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादक केंद्र भिलाई, दुर्गापुर, बर्नपुर, जमशेदपुर, राउरकेला और बोकारो हैं। भारत वर्ष 2021 में 106.23 मिलियन टन की खपत के साथ इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। चीन विश्व स्तर पर सबसे बड़ा इस्पात उपभोक्ता है, जिसके बाद भारत का स्थान आता है

    और पढ़ें…हरित इस्पात


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