भारतीय अर्थव्यवस्था
13वाँ वैश्विक शिखर सम्मेलन, 2022
- 30 Sep 2022
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:13वाँ FICCI वैश्विक शिखर सम्मलेन 2022, नई शिक्षा नीति (NEP), संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य 4, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, संकल्प (SANKALP) कार्यक्रम, STRIVE परियोजना। मेन्स के लिये:भारत में कौशल विकास का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री ने 13वें भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (The Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI) वैश्विक शिखर सम्मलेन 2022 का उद्घाटन किया।
- थीम: शिक्षा से रोज़गार तक-इसे संभव बनाना (Education to Employability-Making It Happen)
FICCI:
- यह एक गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी संगठन है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1927 में हुई थी तथा यह भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना शीर्ष व्यापार संगठन है। इसका इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है।
- यह नीति निर्माताओं और नागरिक समाज के साथ जुड़कर बहस को प्रोत्साहित करने के लिये नीति को प्रभावित करता है। FICCI उद्योग संबंधी विचारों और चिंताओं को व्यक्त करता है। यह भारतीय निजी और सार्वजनिक कॉर्पोरेट क्षेत्रों एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अपने सदस्यों को सेवाएँ प्रदान करता है।
- यह भारतीय उद्योग, नीति निर्माताओं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुदायों के बीच नेटवर्किंग एवं आम सहमति बनाने के लिये मंच प्रदान करता है।
13वें वैश्विक शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ:
- यह देश के युवाओं के लिये शिक्षा से रोज़गार तक के मार्ग को आसान बनाने पर केंद्रित है।
- यह शिखर सम्मेलन नई शिक्षा नीति (NEP) के नज़रिये से इस बात पर ध्यान केंद्रित करेगा कि भारत संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य 4 (SDG 4) को एक आधार मानते हुए "विश्व की कौशल राजधानी" कैसे बन सकता है।
भारत में कौशल विकास की स्थिति:
- विषय:
- राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता नीति पर वर्ष 2015 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि भारत में कुल कार्यबल के केवल 7% ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया था, जबकि अमेरिका में यह 52%, जापान में 80% और दक्षिण कोरिया में 96% था।
- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skill Development Corporation- NSDC) द्वारा वर्ष 2010-2014 की अवधि के लिये किये गए एक कौशल अंतराल अध्ययन से पता चला कि वर्ष 2022 तक 24 प्रमुख क्षेत्रों में 10.97 करोड़ कुशल जनशक्ति की अतिरिक्त निवल वृद्धिशील आवश्यकता होगी।
- इसके अलावा 29.82 करोड़ कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र के कामगारों की स्किलिंग, री-स्किलिंग एवं अप-स्किलिंग की आवश्यकता होगी।
- समस्याएँ:
- उत्तरदायित्त्व का अतिरिक्त बोझ: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का तीसरा चरण वर्ष 2020-21 में 8 लाख से अधिक व्यक्तियों के कौशल विकास के लिये शुरू किया गया।
- तथापि यह ज़िला कलेक्टरों की अध्यक्षता वाली ज़िला कौशल विकास समितियों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण परेशान है, जो कि अपने अन्य कामों को देखते हुए इस भूमिका को प्राथमिकता देने में सक्षम नहीं होंगे।
- नीति प्रक्रिया में अनिरंतरता: राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी (NSDA) की स्थापना वर्ष 2013 में अंतर-मंत्रालयी और अंतर-विभागीय मुद्दों को हल करने तथा केंद्र के प्रयासों के दोहराव को खत्म करने के लिये की गई थी।
- अब इसे राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद (NCVT) के भाग के रूप में समाहित कर लिया गया है।
- यह न केवल नीति प्रक्रिया में अस्थिरता बल्कि नीति निर्माताओं के बीच अस्पष्टता को भी दर्शाता है।
- रोज़गार बाज़ार में लोगों की अधिक संख्या: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, 15-59 वर्ष आयु वर्ग के 7 करोड़ अतिरिक्त लोगों के वर्ष 2023 तक श्रम बाज़ार में शामिल होने की उम्मीद है।
- नियोक्ताओं की अनिच्छा: भारत की बेरोज़गारी का मुद्दा केवल कौशल की समस्या नहीं है बल्कि यह रोज़गार देने में उद्योगपतियों और SMEs की उदासीनता को भी दर्शाता है।
- बैंकों के NPAs के कारण ऋण तक सीमित पहुँच के साथ निवेश दर में गिरावट आई है जिससे रोज़गार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- उत्तरदायित्त्व का अतिरिक्त बोझ: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का तीसरा चरण वर्ष 2020-21 में 8 लाख से अधिक व्यक्तियों के कौशल विकास के लिये शुरू किया गया।
कार्यबल के कौशल विकास की आवश्यकता क्यों है?
- आपूर्ति और मांग के मुद्दे: आपूर्ति पक्ष के अनुरूप भारत पर्याप्त रोज़गार के अवसर पैदा करने में विफल हो रहा है; और मांग पक्ष में बाज़ार में रोज़गार पाने वालों में कौशल की कमी है जिससे रोज़गार की कमी के साथ-साथ बेरोज़गारी में वृद्धि देखी जा रही है।
- बढ़ती बेरोज़गारी: सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी दर वर्ष 2022 में लगभग 7% या 8% रही है, जो पाँच साल पहले की तुलना में लगभग 5% अधिक है।
- इसके अलावा कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण नौकरी की कमज़ोर संभावनाओं के चलते कार्यबल में कमी आई है।
- श्रम बल भागीदारी दर (यानी जो लोग काम कर रहे हैं या काम की तलाश कर रहे हैं) छह साल पहले के 46% से गिरकर 40% (वैध उम्र के 900 मिलियन भारतीय) पर आ गई है ।
- कार्यबल में कौशल की कमी: रोज़गार सृजन के साथ श्रम बाज़ार में प्रवेश करने वालों की रोज़गार के अनुसार क्षमता और उत्पादकता एक मुद्दा बना हुआ है।
- इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2015 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से केवल 37.22% को रोज़गार योग्य पाया गया जिसमें से पुरुषों में यह आँकड़ा 34.26% व महिलाओं में 37.88% था।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के 2019-20 के आँकड़े के अनुसार, 15 से 59 वर्ष के 1% लोगों ने कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था। शेष 13.9% ने विविध औपचारिक और अनौपचारिक माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
- कुशल कार्यबल की मांग: भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) द्वारा वृद्धिशील मानव संसाधन आवश्यकताओं का अनुमान वर्ष 2022 तक 201 मिलियन लगाया गया और कुशल कार्यबल की कुल आवश्यकता वर्ष 2023 तक 300 मिलियन होगी।
- इन नौकरियों का एक बड़ा हिस्सा विनिर्माण क्षेत्र से आना था। राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (2011) में वर्ष 2022 तक विनिर्माण क्षेत्र में 100 मिलियन नई नौकरियों का लक्ष्य रखा गया था।
- कौशल विकास मंत्रालय द्वारा जारी अध्ययन रिपोर्टों में वर्ष 2022 तक 24 क्षेत्रों में 109.73 मिलियन वृद्धिशील मानव संसाधन आवश्यकता का आकलन किया गया।
कौशल विकास के लिये की गई प्रमुख पहलें:
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना: सरकार की फ्लैगशिप ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ वर्ष 2015 में ITIs के माध्यम से और अप्रेंटिसशिप योजना (Apprenticeship Scheme) के तहत अल्पकालिक प्रशिक्षण व कौशल प्रदान करने के लिये शुरू की गई थी।
- वर्ष 2015 से अब तक सरकार इस योजना के तहत 10 मिलियन से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित कर चुकी है।
- ‘संकल्प’ और ‘स्ट्राइव’: संकल्प कार्यक्रम (SANKALP Programme) ज़िला-स्तरीय स्किलिंग पारितंत्र पर केंद्रित है और ‘स्ट्राइव योजना’ (STRIVE project) जिसका उद्देश्य ITIs के प्रदर्शन में सुधार करना है, एक अन्य महत्त्वपूर्ण कौशल निर्माण आयाम है।
- विभिन्न मंत्रालयों की पहल: 20 केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा लगभग 40 कौशल विकास कार्यक्रम कार्यान्वित किये जा रहे हैं। कुल कौशल निर्माण में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय’ का योगदान लगभग 55% है।
- इन सभी मंत्रालयों की पहल के परिणामस्वरूप वर्ष 2015 से लगभग चार करोड़ लोगों को विभिन्न औपचारिक कौशल कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया है।
- कौशल निर्माण में अनिवार्य CSR व्यय: कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत अनिवार्य CSR व्यय के कार्यान्वयन के बाद से भारत में निगमों ने विविध सामाजिक परियोजनाओं में 100,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया है।
- इनमेसे करीब 6,877 करोड़ रुपए स्किलिंग और आजीविका बढ़ाने वाली परियोजनाओं पर खर्च किये गए। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक और गुजरात शीर्ष पाँच प्राप्तकर्त्ता राज्य थे।
- कौशल के लिये TEJAS पहल: हाल ही में TEJAS (ट्रेनिंग फॉर अमीरात जॉब्स एंड स्किल्स), प्रवासी भारतियों को प्रशिक्षित करने के लिये एक स्किल इंडिया इंटरनेशनल प्रोजेक्ट दुबई एक्सपो, 2020 में लॉन्च किया गया था।
- इस परियोजना का उद्देश्य भारतीयों को कौशल प्रमाणन और विदेशों में रोज़गार प्राप्त करने में सक्षम बनाना तथा भारतीय कार्यबल को UAE जैसे देशों में कौशल एवं बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुसार सक्षम बनाने हेतु मार्ग प्रशस्त करना है।
आगे की राह
कौशल विकास हमारे देश के विकास का सबसे आवश्यक पहलू है। भारत के पास विशाल 'जनसांख्यिकीय लाभांश' है, जिसका अर्थ है कि इसमें श्रम बाज़ार को कुशल जनशक्ति प्रदान करने की बहुत अधिक संभावना है। इसके लिये सरकारी एजेंसियों, उद्योगों, शैक्षिक और प्रशिक्षण संस्थानों तथा छात्रों, प्रशिक्षुओं एवं नौकरी चाहने वालों सहित सभी हितधारकों के समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। प्रश्न: "भारत में जनसांख्यिकी लाभांश केवल सैद्धांतिक रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और रचनात्मक नहीं हो जाती।" हमारी जनसंख्या की क्षमता को अधिक उत्पादक एवं रोज़गार योग्य बनाने के लिये सरकार द्वारा क्या उपाय किये गए हैं? (मुख्य परीक्षा, 2016) |