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भारतीय अर्थव्यवस्था

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2019-20

  • 26 Jul 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये 

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण

मेन्स के लिये 

बेरोज़गारी से निपटने के लिये सरकार द्वारा की गई पहलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने जुलाई 2019 और जून 2020 के बीच आयोजित ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (PLFS) पर तीसरी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है।

  • श्रम संकेतकों में पिछले दो वर्षों यानी वर्ष 2017-18 और वर्ष 2018-19 की तुलना में वर्ष 2019-20 में सुधार दर्ज किया गया है।

Labour-Indicators

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय

  • यह सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत ‘सांख्यिकीय सेवा अधिनियम 1980’ के तहत स्थापित सरकार की केंद्रीय सांख्यिकीय एजेंसी है।
  • यह सरकार और अन्य उपयोगकर्त्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये सांख्यिकीय सूचना सेवाएँ प्रदान करने हेतु उत्तरदायी है, जिसके आधार पर नीति-निर्माण, नियोजन, निगरानी और प्रबंधन संबंधी निर्णय लिये जा सकें।
    • इसमें आधिकारिक सांख्यिकीय सूचना एकत्र करना, संकलित करना और प्रसारित करना शामिल है।
  • NSO द्वारा संकलित अन्य रिपोर्ट और सूचकांक:

प्रमुख बिंदु

बेरोज़गारी दर:

  • वित्तीय वर्ष 2019-20 में बेरोज़गारी दर गिरकर 4.8% तक पहुँच गई है, जबकि वर्ष 2018-19 में यह 5.8% और वर्ष 2017-18 में 6.1% पर थी।

कामगार जनसंख्या दर:

  • इसमें वर्ष 2018-19 में 35.3% और वर्ष 2017-18 में 34.7% की तुलना में वर्ष 2019-20 में सुधार हुआ है तथा यह 38.2% पर पहुँच गई है।

श्रम बल भागीदारी अनुपात:

  • वर्ष 2019-20 में यह पिछले दो वर्षों में क्रमशः 37.5% और 36.9% की तुलना में बढ़कर 40.1% हो गया है। अर्थव्यवस्था में ‘श्रम बल भागीदारी अनुपात’ जितना अधिक होता है यह अर्थव्यवस्था के लिये उतना ही बेहतर होता है। 

लिंग आधारित बेरोज़गारी दर:

  • आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वर्ष 2019-20 में पुरुष और महिला दोनों के लिये बेरोज़गारी दर गिरकर क्रमशः 5.1% और 4.2% पर पहुँच गई है, जो कि वर्ष 2018-19 में क्रमशः 6% और 5.2% पर थी।
    • वर्ष के दौरान ‘कामगार जनसंख्या दर’ और ‘श्रम बल भागीदारी अनुपात’ में भी तुलनात्मक रूप से सुधार हुआ है।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS):

  • परिचय:
    • यह वर्ष 2017 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO)  द्वारा शुरू किया गया भारत का पहला कंप्यूटर-आधारित सर्वेक्षण है।
    • इसका गठन अमिताभ कुंडू (Amitabh Kundu) की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिश के आधार पर किया गया है।
    • यह अनिवार्य रूप से देश में रोज़गार की स्थिति का मानचित्रण के साथ -साथ कई चरणों पर डेटा एकत्र करता है जैसे- बेरोज़गारी का स्तर, रोज़गारी के प्रकार और संबंधित भागीदार, विभिन्न प्रकार की नौकरियों से अर्जित मज़दूरी, किये गए कार्य के घंटों की संख्या आदि।
    • PLFS से पूर्व राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) - इसे पूर्व में NSO के नाम से जाना जाता था। यह अपने पंचवर्षीय (प्रत्येक 5 वर्ष) घरेलू सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण कार्यक्रम के आधार पर रोज़गार और बेरोज़गारी से संबंधित डेटा एकत्रित करता था।
  • उद्देश्य:
    • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
    •  प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति तथा सीडब्‍ल्‍यूएस दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।

बेरोज़गारी से निपटने के लिये सरकार द्वारा की गई पहलें:

  • केंद्र सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था का समर्थन और रोज़गार सृजित करने के लिये आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत एक आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज प्रस्तुत किया है।
    • पीएम स्वनिधि (Pradhan Mantri Street Vendor's Atma Nirbhar Nidhi- PM SVANidhi) के तहत केंद्र सरकार स्ट्रीट वेंडर्स को किफायती ऋण उपलब्ध करा रही है।
    • वर्ष 2020 में सरकार ने प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में मनरेगा के लिये 40,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त निधि आवंटित की।
    • सरकार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये क्रेडिट गारंटी की पेशकश कर रही है जो उन्हें आसानी से ऋण प्राप्त करने तथा उनके कामकाज को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
    • लघु उद्यम शुरू करने के लिये उद्यमियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
  • सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिये कई अन्य पहलें भी की गई हैं जिनमें कंपनी अधिनियम और दिवाला कार्यवाही में छूट, कृषि-विपणन में सुधार आदि शामिल हैं।
  • सरकार ने मज़दूरी, भर्ती और रोज़गार की शर्तों में लिंग आधारित भेदभाव को कम करने के लिये नई श्रम संहिता 2019 जैसी पहल भी की है।
  • राज्य सरकारें भी अपनी अर्थव्यवस्था को सहारा देने और नौकरियों में वृद्धि हेतु विभिन्न पहलों के साथ आगे आई हैं। उदाहरण के लिये:

महत्त्वपूर्ण मामले

बेरोज़गारी दर (UR):

  • बेरोज़गारी दर की गणना श्रम बल से बेरोज़गारों की संख्या को विभाजित करके की जाती है। 

श्रम बल भागीदारी दर (LFPR):

  • इसे आबादी में श्रम बल (अर्थात् जो या तो कार्य कर रहे हैं या काम की तलाश कर रहे हैं अथवा काम के लिये उपलब्ध हैं) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।

कामगार जनसंख्या अनुपात (WPR): 

  • WPR को कुल जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।

गतिविधि की स्थिति:

  • किसी भी व्‍यक्ति के कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण निर्दिष्‍ट संदर्भ अवधि के दौरान उस व्‍यक्ति द्वारा किये गए कार्यों के आधार पर किया जाता है। 
    • सामान्य स्थिति: सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य कार्यकलाप की स्थिति के तौर पर जाना जाता है।
    • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS): सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति की वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (CWS) के रूप में जाना जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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