सी. राजगोपालाचारी की जयंती
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री ने श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (जिन्हें राजाजी के नाम से भी जाना जाता है) को उनकी जयंती (10 दिसंबर) पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम, शासन एवं सामाजिक सशक्तीकरण में उनके अमूल्य योगदान पर प्रकाश डाला।
सी. राजगोपालाचारी कौन थे?
- प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा: सी. राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को सलेम, मद्रास प्रांत (वर्तमान तमिलनाडु) में हुआ था। वर्ष 1899 में उन्होंने विधि में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही सलेम में अपनी वकालत शुरू की।
- राजनीतिक तथा सामाजिक सुधार: राजगोपालाचारी, लॉर्ड कर्ज़न द्वारा सांप्रदायिक आधार पर किये जाने वाले बंगाल के विभाजन के फैसले से प्रभावित होने के साथ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के पूर्ण स्वतंत्रता के आह्वान से प्रेरित हुए।
- यह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) में शामिल हुए तथा उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- वर्ष 1917 में राजगोपालाचारी सलेम नगर पालिका के अध्यक्ष बने तथा उन्होंने पिछड़े वर्गों के सामाजिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया। वर्ष 1925 में उन्होंने सामाजिक उत्थान हेतु मद्रास प्रांत में एक आश्रम की स्थापना की।
- इस आश्रम द्वारा दो पत्रिकाएँ प्रकाशित की गईं- विमोचनम (तमिल) और प्रोहिबिशन (अंग्रेज़ी)।
- स्वतंत्रता संग्राम: रॉलेट एक्ट के विरोध में हुए आंदोलन के दौरान राजाजी ने चेन्नई, तमिलनाडु में इस आंदोलन का नेतृत्व किया।
- वर्ष 1930 में दांडी मार्च के दौरान राजगोपालाचारी ने मद्रास प्रांत में तिरुचि से वेदारण्यम तक नमक मार्च का नेतृत्व किया (जिसे वेदारण्यम सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है)।
- वेदारण्यम सत्याग्रह के दौरान उनकी गिरफ्तारी के साथ ही उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में एक नेता के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।
- भारत छोड़ो आंदोलन के बाद राजगोपालाचारी के पैम्फलेट "द वे आउट" में मुस्लिम लीग एवं कॉन्ग्रेस के बीच एक अलग मुस्लिम राज्य के संबंध में संवैधानिक गतिरोध को हल करने के क्रम में सी.आर. फार्मूले की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी।
- वर्ष 1930 में दांडी मार्च के दौरान राजगोपालाचारी ने मद्रास प्रांत में तिरुचि से वेदारण्यम तक नमक मार्च का नेतृत्व किया (जिसे वेदारण्यम सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है)।
- मद्रास प्रांत के प्रधानमंत्री: वर्ष 1937 में राजगोपालाचारी मद्रास प्रांत के प्रधानमंत्री बने।
- उन्होंने खादी को बढ़ावा देने के साथ जमींदारी उन्मूलन एवं स्कूलों में हिंदी की शुरुआत सहित अन्य सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों को लागू करने में भूमिका निभाई।
- उन्होंने दलितों के जीवन स्तर को बेहतर करने एवं सामाजिक समानता को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया।
- स्वतंत्रता के बाद योगदान: राजगोपालाचारी को पश्चिम बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया तथा आगे चलकर वर्ष 1947 में वे स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर-जनरल भी बने (वर्ष 1950 में इस पद को स्थायी रूप से समाप्त कर दिया गया)।
- उन्होंने मुस्लिमों को मुख्यधारा में एकीकृत करने के साथ भारत के पंथनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने की दिशा में कार्य किया।
- उन्होंने सरदार पटेल की मृत्यु के बाद केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में कार्य किया तथा प्रथम पंचवर्षीय योजना के साथ ही प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- वर्ष 1959 में राजगोपालाचारी ने बाज़ार अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ ही सरकारी नियंत्रण को कम करने का समर्थन करने के क्रम में स्वतंत्र पार्टी का गठन किया।
- वर्ष 1962 में राजाजी ने अमेरिका में गांधी पीस फाउंडेशन के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया।
- राजगोपालाचारी ने चक्रवर्ती थिरुमगन (जिसे वर्ष 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला) नाम से रामायण का तमिल में अनुवाद किया।
- विरासत: सी. राजगोपालाचारी को वर्ष 1954 में 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। वे यह सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पाने वाले पहले व्यक्ति थे।
- 25 दिसम्बर 1972 को राजगोपालाचारी का निधन हुआ।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: भारत छोड़ो आंदोलन के बाद सी. राजा गोपालाचारी ने "द वे आउट" शीर्षक से एक पुस्तिका जारी की। इस पुस्तिका में निम्नलिखित में से कौन सा प्रस्ताव था? (2010) (a) ब्रिटिश भारत और भारतीय राज्यों के प्रतिनिधियों से बनी "युद्ध सलाहकार परिषद" की स्थापना उत्तर: (D) |
SFB द्वारा UPI-आधारित ऋण सुविधाएँ प्रदान करना
स्रोत: इकोनोमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने लघु वित्त बैंकों (SFB) को एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के माध्यम से पूर्व-स्वीकृत ऋण (लोन) लाइनें बढ़ाने की अनुमति देने का निर्णय लिया है।
- इसका उद्देश्य विशेष रूप से 'क्रेडिट के लिये नए' ग्राहकों के लिये वित्तीय समावेशन में वृद्धि करना और औपचारिक ऋण को बढ़ाना है।
नोट: सितंबर 2023 में, UPI के दायरे का विस्तार किया गया ताकि पूर्व-स्वीकृत क्रेडिट लाइनों को UPI के माध्यम से जोड़ा जा सके और अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा फंडिंग खाते के रूप में उपयोग किया जा सके।
- हालाँकि, इसमें भुगतान बैंक, लघु वित्त बैंक (SFB) और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक शामिल नहीं हैं।
लघु वित्त बैंक (SFB) क्या हैं?
- परिचय: SFB विशेष वित्तीय संस्थान हैं जो बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत RBI द्वारा विनियमित होते हैं।
- उच्च प्रौद्योगिकी और कम लागत वाले संचालनों का उपयोग करके ऋण आपूर्ति बढ़ाने के लिये वर्ष 2014-15 के केंद्रीय बजट में इसकी घोषणा की गई थी।
- इसकी स्थापना नचिकेत मोर समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
- पंजीकरण: SFB को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत किया जाता है।
- उद्देश्य: इसका प्राथमिक उद्देश्य समाज के वंचित और असेवित वर्गों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है।
- यह लघु व्यवसाय इकाइयों, छोटे और सीमांत किसानों, सूक्ष्म और लघु उद्योगों और अन्य असंगठित क्षेत्र की संस्थाओं की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- SFB का अधिदेश: उन्हें अपने समायोजित शुद्ध बैंक ऋण (ANBC) का 75% कृषि, MSME और कमज़ोर वर्गों सहित प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को आवंटित करना होगा।
- ग्रामीण बैंकिंग पहुँच में सुधार के लिये SFB की कम-से-कम 25% शाखाएँ बैंकिंग सुविधा रहित ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित होनी चाहिये।
- पूंजी की आवश्यकता: SFB बैंक स्थापित करने के लिये न्यूनतम 200 करोड़ रुपए की पूंजी की आवश्यकता होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: भारत में लघु वित्त बैंकों (एस.एफ.बी.) की स्थापना का उद्देश्य क्या है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |
INS तुशील
स्रोत: पी.आई.बी
भारत के उन्नत बहु-भूमिका वाले स्टील्थ-गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट INS तुशील (F70) को रूस में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया, जो भारत-रूस रक्षा सहयोग और समुद्री क्षमता में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है।
- परिचय: INS तुशील परियोजना 1135.6 (तलवार श्रेणी) का उन्नत क्रिवाक III श्रेणी का फ्रिगेट है। यह तीन तलवार श्रेणी और तीन तेग श्रेणी के फ्रिगेट के बाद शृंखला का 7 वाँ फ्रिगेट है।
- INS तुशील, भारत सरकार और JSC रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (एक रूसी कंपनी) के बीच वर्ष 2016 के अनुबंध के तहत दो उन्नत फ्रिगेट में से पहला है।
- फ्रिगेट एक बहुमुखी युद्धपोत है जिसका उपयोग अनुरक्षण, गश्त और युद्ध संचालन के लिये किया जाता है, जो आधुनिक नौसेनाओं के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- तुशील नाम का अर्थ है "रक्षक ढाल", जो समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिये भारतीय नौसेना की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- उन्नत हथियार: INS तुशील ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों, एंटी सब-मरीन टॉरपीडो और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों से सुसज्जित है।
- परिचालन क्षमता: इसे वायु, सतह, जल के नीचे और विद्युत चुंबकीय आयामों में ब्लू वाटर ऑपरेशन के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो भारत के सागर (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) के साथ संरेखित है, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में स्थिरता सुनिश्चित होती है।
- INS तुशील, भारत सरकार और JSC रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (एक रूसी कंपनी) के बीच वर्ष 2016 के अनुबंध के तहत दो उन्नत फ्रिगेट में से पहला है।
- भारत-रूस रक्षा सहयोग:
- सैन्य तकनीकी सहयोग पर समझौता (2021-2031)
- भारत-रूस 2+2 वार्ता
- द्विपक्षीय परियोजनाएँ: T-90 टैंक, Su-30-MKI विमान, मिग-29-K विमान
- सैन्य अभ्यास : इंद्र (त्रि-सेवा), अविया इंद्र (वायु सेना), और अभ्यास वोस्तोक (थल सेना)।
और पढ़ें: भारत-रूस संबंध: कूटनीतिक क्षमता
लेसन अल्बाट्रॉस
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में 74 वर्षीय लेसन अल्बाट्रॉस (Phoebastria immutabilis) ने मिडवे एटाॅल नेशनल वाइल्डलाइफ रिफ्यूज में चार वर्षों में अपना पहला अंडा दिया है।
- लेसन अल्बाट्रॉस एक बड़ा पक्षी है जिसका प्रजनन क्षेत्र हवाई में केंद्रित है। सभी अल्बाट्रॉस की तरह ये गतिशील उड़ान के साथ लंबी दूरी तय करने में कुशल हैं। ये मुख्य रूप से रात में तथा ब्रीडिंग कॉलोनियों से दूर भोजन (फीडिंग) करते हैं।
- नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, लेसन अल्बाट्रॉस का औसत जीवनकाल आमतौर पर लगभग 68 वर्ष होता है।
- नोट: स्नोई अल्बाट्रॉस या वांडरिंग अल्बाट्रॉस (Diomedea exulans) पंखों के फैलाव के संदर्भ में सबसे बड़ा उड़ने वाला समुद्री पक्षी है।
- लेसन अल्बाट्रॉस पक्षी धीरे-धीरे परिपक्व होने के साथ तीन या चार वर्ष की उम्र में प्रजनन करना शुरू कर देता है लेकिन आमतौर पर आठ या नौ वर्ष की उम्र में ही यह सफल प्रजनन की स्थिति प्राप्त कर पाता है।
- कॉलोनियों में घोंसला बनाने के साथ लंबे समय तक इनमें जुड़ाव बना रहता है। इनके द्वारा एक मौसम में केवल एक अंडा दिया जाता है और अंडे को बारी-बारी से नर एवं मादा पक्षी द्वारा इन्क्यूबेट किया जाता है।
- संरक्षण स्थिति– IUCN रेड लिस्ट:
- लेसन अल्बाट्रॉस: संकटापन्न
- स्नोई अल्बाट्रॉस (वांडरिंग अल्बाट्रॉस): सुभेद्य
- वेव्ड अल्बाट्रॉस: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- ट्रिस्टन अल्बाट्रॉस: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
और पढ़ें: वांडरिंग अल्बाट्रॉस
QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग: सस्टेनेबिलिटी 2025
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
क्वाक्वेरेली साइमंड्स (QS) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग: स्थिरता 2025 (QS World University Rankings: Sustainability 2025) अपने तीसरे संस्करण में शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से पर्यावरणीय तथा सामाजिक चुनौतियों से निपटने में वैश्विक संस्थानों की प्रगति का मूल्यांकन करती है।
- ये रैंकिंग तीन प्रमुख स्तंभों- पर्यावरणीय प्रभाव, सामाजिक प्रभाव और शासन- पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्थिरता में विश्वविद्यालयों के योगदान का आकलन करती है। वर्ष 2025 की रैंकिंग में 78 भारतीय विश्वविद्यालय शामिल हैं।
भारत में शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता:
- IIT दिल्ली: भारत में प्रथम तथा विश्व स्तर पर 171वे स्थान पर।
- IIT खड़गपुर: भारत में दूसरा और विश्व स्तर पर 202वाँ स्थान।
- IIT बॉम्बे: भारत में तीसरा और विश्व स्तर पर 234वाँ स्थान।
- IIT कानपुर: भारत में चौथा तथा विश्व स्तर पर 245वाँ स्थान।
- IIT मद्रास: भारत में 5 वें तथा विश्व स्तर पर 277वाँ स्थान पर।
उल्लेखनीय प्रदर्शन:
- पर्यावरणीय प्रभाव: IIT दिल्ली (55) और आईआईटी कानपुर (87) वैश्विक शीर्ष 100 में स्थान पर हैं।
- पर्यावरणीय स्थिरता: IIT बॉम्बे भारत में शीर्ष पर है (विश्व स्तर पर 38 वें स्थान पर )।
- पर्यावरण शिक्षा: IIT विश्वभर में 32वें स्थान पर है।
- शासन और समानता: मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE) शासन श्रेणी में भारत में अग्रणी है और समानता के लिये भारत में सर्वोच्च स्थान पर है (विश्व स्तर पर 390 वें स्थान पर )।
- सामाजिक प्रभाव: IIT दिल्ली को वैश्विक स्तर पर 362वाँ स्थान मिला है रोज़गार और परिणाम के मामले में भारत में इसका प्रदर्शन शीर्ष पर है (विश्व स्तर पर 116वाँ स्थान)।
- ज्ञान का आदान-प्रदान: डीयू भारत में शीर्ष पर है (विश्व स्तर पर 121वें स्थान पर )।
- हालाँकि भारतीय विश्वविद्यालयों को स्वास्थ्य एवं कल्याण तथा शिक्षा के प्रभाव के मामले में सुधार करने की आवश्यकता है, जहाँ कोई भी भारतीय संस्थान शीर्ष 350 में शामिल नहीं है।
- QS एक लंदन स्थित वैश्विक उच्च शिक्षा विश्लेषक है जो अपनी व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के लिये जाना जाता है।
और पढ़ें: QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2025
घोस्ट गन एवं 3D प्रिंटिंग
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
घोस्ट गन ऐसे फायरआर्म हैं जिन्हें अक्सर किट या 3D-मुद्रित भागों का उपयोग करके घर पर ही असेंबल किया जाता है।
- इन हथियारों पर सीरियल नंबर न होने से विधि प्रवर्तन एजेंसियों को इनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
- प्रिंटिंग इनेबल घोस्ट गन: फायरआर्म के संदर्भ में 3D प्रिंटर से प्लास्टिक या धातु जैसी सामग्रियों का उपयोग करके रिसीवर, बैरल या ग्रिप जैसे घटकों का उत्पादन हो सकता है।
- इन भागों को जब अन्य आसानी से उपलब्ध घटकों के साथ मिलाया जाता है तो एक कार्यात्मक फायरआर्म निर्मित होता है।
- घोस्ट गन से गंभीर सुरक्षा जोखिम पैदा होते हैं।
- 3D प्रिंटिंग: 3D प्रिंटिंग या एडिटिव मैन्युफ़ैक्चरिंग, डिजिटल डिज़ाइन से परत दर परत ऑब्जेक्ट बनाती है। 3D प्रिंटिंग की मुख्य विशेषताएँ हैं:
- अनुकूलन: विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप सटीक डिज़ाइन।
- सुलभता: किफायती प्रिंटर और ओपन-सोर्स डिज़ाइन व्यक्तियों के लिये प्रयोग करना आसान बनाते हैं।
- रैपिड प्रोटोटाइपिंग: डिजिटल डिज़ाइन को शीघ्रता से भौतिक वस्तुओं में परिवर्तित करता है।
और पढ़ें: 3D प्रिंटिंग और इसके अनुप्रयोग