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एडिटोरियल

  • 31 Jan, 2024
  • 17 min read
सामाजिक न्याय

अन्यायपूर्ण असमानताएँ: भारत में असमानता का अवलोकन

यह एडिटोरियल 30/01/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Growth mania can be injurious to society” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में जारी आर्थिक विकास के बावजूद बनी रही असमानता की चर्चा की गई है और इस मुद्दे के समाधान के लिये प्रभावी रणनीतियों पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

WEF, GDP, GST, संवृद्धि, GHI स्कोर, वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, OECD, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम योजना (MGNREGA), राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM), प्रधानमंत्री जन धन योजना

मेन्स के लिये:

भारत का हालिया आर्थिक विकास पथ, भारत में असमानता की प्रवृत्ति, भारत में बढ़ती असमानता, समावेशी विकास, भारत में समावेशी विकास हासिल करने के कदम।

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) के अध्यक्ष ने भारत की सराहना की और इसे निकट भविष्य के 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के रूप में देखा। हालाँकि, भले ही भारत अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रहा है, इस प्रगति का लाभ हर किसी तक नहीं पहुँच रहा है, विशेष रूप से उन लोगों तक जो हाशिये पर स्थित हैं।

आर्थिक विकास पर विशेष केंद्रित बने रहने के दृष्टिकोण पर भारत में चिंता बढ़ रही है। वृहत समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिये नीतिगत हस्तक्षेप और व्यापक सरकारी कार्रवाइयों की तत्काल आवश्यकता महसूस की जा रही है।

भारत का हालिया आर्थिक विकास प्रक्षेपवक्र:

  • वित्त वर्ष 2022/23: भारत की वास्तविक जीडीपी में अनुमानित 6.9% की वृद्धि हुई। यह वृद्धि मज़बूत घरेलू मांग, सरकार द्वारा प्रोत्साहित अवसंरचना निवेश में वृद्धि और विशेष रूप से उच्च आय अर्जकों के बीच मज़बूत निजी उपभोग से प्रेरित थी।
  • वित्त वर्ष 2023/24: 2023-24 के दौरान वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि वर्ष 2022-23 में 7.2% की तुलना में 7.3% अनुमानित है। वर्ष 2024 में वैश्विक जीडीपी रैंकिंग में भारत 5वें स्थान पर रहा। देश की अर्थव्यवस्था 3.7 ट्रिलियन डॉलर की बताई गई है, जो एक दशक पहले 1.9 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की स्थिति से एक उल्लेखनीय प्रगति को इंगित करता है।
  • भविष्य की संभावनाएँ:
    • ‘सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च’ के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2030 तक 7.3 ट्रिलियन डॉलर और वर्ष 2035 तक 10 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने की ओर अग्रसर है।
    • भारत सरकार ने वर्ष 2047 तक भारत को ‘विकसित राष्ट्र’ में बदलने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।

भारत में असमानता की कौन-सी प्रवृत्तियाँ नज़र आती हैं?

  • धन असमानता: भारत विश्व के सबसे असमान देशों में से एक है, जहाँ शीर्ष 10% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% भाग पाया जाता है। भारतीय आबादी के सबसे समृद्ध 1% के पास देश की 53% संपत्ति मौजूद है, जबकि आबादी का आधा गरीब हिस्सा राष्ट्रीय संपत्ति के मात्र 4.1% के लिये संघर्षरत है।
  • आय असमानता: विश्व असमानता रिपोर्ट (World Inequality Report), 2022 के अनुसार भारत विश्व के सबसे असमान देशों में से एक है, जहाँ शीर्ष 10% और शीर्ष 1% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का क्रमशः 57% और 22% हिस्सा है, जबकि निचले 50% की हिस्सेदारी घटकर 13% रह गई है।
  • गरीबों पर कर का बोझ: देश में कुल वस्तु एवं सेवा कर (GST) का लगभग 64% निचली 50% आबादी से प्राप्त होता है, जबकि इसमें शीर्ष 10% का योगदान मात्र 4% है।
  • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच का अभाव: कई आम भारतीयों को आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिल पाता है। उनमें से 63 मिलियन (लगभग प्रति सेकंड दो लोग) हर वर्ष स्वास्थ्य देखभाल की लागत के कारण गरीबी में धकेल दिये जाते हैं।
  • विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति, 2023: भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार ग्रहण कर सकने की वहनीयता नहीं रखती जबकि 39% को पर्याप्त पोषक तत्व प्राप्त नहीं होता।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2023: भारत का वर्ष 2023 का GHI स्कोर 28.7 रहा, जो GHI भुखमरी गंभीरता पैमाने (GHI Severity of Hunger Scale) पर गंभीर स्थिति है।
    • भारत में बच्चों की वेस्टिंग दर 18.7 है, जो कि रिपोर्ट में सर्वाधिक है।
  • लैंगिक असमानता: ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2023 में भारत 146 देशों में 127वें स्थान पर रहा और कार्यबल में ‘महिलाओं की अनुपस्थिति’ (missing women) लगातार बनी रही समस्या का सामना कर रहा है जो एक जटिल समस्या है।

भारत में उच्च आर्थिक विकास के बावजूद बढ़ती असमानता के कारण:

  • धन संचय:
    • धन का संकेंद्रण: कुछ लोगों के हाथों में धन का संकेंद्रण पीढ़ियों तक असमानता को कायम रख सकता है, क्योंकि अमीर अपने लाभ की स्थिति को अपने वंशजों में स्थानांतरित कर सकते हैं।
    • अपर्याप्त भूमि सुधार: अनुपयुक्त भूमि सुधारों के परिणामस्वरूप आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूमिहीन बना रह सकता है या उसके पास अपर्याप्त भूमि होगी, जिससे वे गरीबी और आर्थिक अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बन सकते हैं।
    • ‘क्रोनी कैपिटलिज़्म’: भ्रष्ट आचरण और पक्षपात के परिणामस्वरूप किसी चुनिंदा समूह के बीच धन संचय की स्थिति बन सकती है, जो असमानता में योगदान दे सकती है।
  • समावेशी विकास नीतियों का अभाव:
    • आर्थिक लाभ का विषम वितरण: आर्थिक विकास से कुछ क्षेत्रों या आय समूहों को असमान रूप से लाभ प्राप्त हो सकता है, जिससे धन के असमान वितरण की स्थिति बन सकती है।
    • प्रतिगामी कराधान नीतियाँ: कर प्रणालियाँ जो अमीरों के पक्ष में झुकी होती हैं या प्रगतिशीलता का अभाव रखती हैं, आय असमानता में योगदान कर सकती हैं।
    • सामाजिक सुरक्षा जाल की कमी: अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा जाल और कल्याण कार्यक्रम कमज़ोर आबादी को पर्याप्त समर्थन से रहित छोड़ सकते हैं, जिससे धन का अंतर बढ़ सकता है।
  • अपर्याप्त श्रम नीतियाँ:
    • अर्थव्यवस्था का वित्तीयकरण: वित्तीय बाज़ारों पर बल देने और उत्पादक निवेशों पर अटकलों से वित्तीय क्षेत्र में धन का संकेंद्रण हो सकता है।
    • वेतन/मज़दूरी अंतराल: कुशल और अकुशल श्रमिकों के बीच मज़दूरी अंतराल  आय असमानता में योगदान कर सकता है। निम्न वेतन और कम लाभ वाले अनौपचारिक श्रम बाज़ार आय विभाजन को बढ़ा सकते हैं।
    • कोई न्यूनतम वेतन नहीं: कमज़ोर श्रम बाज़ार नीतियाँ (अपर्याप्त न्यूनतम वेतन विनियमनों और सीमित सामूहिक सौदेबाजी अधिकारों सहित) आय असमानताओं में योगदान कर सकती हैं।
  • सामाजिक अपवर्जन:
    • जातिगत भेदभाव: जाति पर आधारित सामाजिक अपवर्जन ने कुछ समूहों को हाशिये पर धकेलकर और अवसरों, संसाधनों एवं लाभों तक उनकी पहुँच को सीमित कर भारत में असमानता को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • लैंगिक असमानता: लिंग (gender) के आधार पर भेदभाव से रोज़गार के अवसरों तक असमान पहुँच और वेतन असमानताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • शिक्षा तक पहुँच का अभाव: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक असमान पहुँच ने ऊर्ध्वगामी गतिशीलता के अवसरों को सीमित कर दिया है, जो मौजूदा असमानताओं को और प्रबल करता है।
    • प्रौद्योगिकी संबंधी वंचना: स्वचालन और प्रौद्योगिकीय प्रगति के कारण कुछ समूहों के लिये रोज़गार में विस्थापन और वेतन में गतिहीनता की स्थिति का निर्माण होता है, जिससे आय असमानता बढ़ जाती है।

समावेशी विकास:

  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development- OECD) के अनुसार, समावेशी विकास ऐसा आर्थिक विकास है जो संपूर्ण समाज में उचित रूप से वितरित होता है और सभी के लिये अवसर पैदा करता है।
  • इसका अर्थ स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं तक गरीबों की पहुँच सुनिश्चित होना है। इसमें अवसर की समानता प्रदान करना, शिक्षा एवं कौशल विकास के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाना आदि शामिल है।
  • समावेशी विकास के लिये सरकार द्वारा कार्यान्वित विभिन्न योजनाएँ:
  • भारत में समावेशी विकास प्राप्त करने हेतु आवश्यक कदम:
    • समावेशी ढाँचे को समर्थन देना:
    • संवैधानिक प्रावधान लागू करना: नीतिगत उपायों के माध्यम से मूल अधिकारों में निहित समता की संवैधानिक गारंटी लागू करें। इन अधिकारों को सुदृढ़ करने के लिये बनाई गई सरकारी नीतियों को सख्ती से लागू करने की ज़रूरत है।
    • प्रगतिशील कराधान: भारत में प्रगतिशील कराधान को लागू करने से यह सुनिश्चित करने के रूप में आय असमानता को कम करने में मदद मिल सकती है कि जो लोग अधिक आय अर्जित करते हैं, वे अपनी आय का अधिक अनुपात करों के रूप में चुकाते हैं।
      • भारतीय अरबपतियों पर मात्र 1% संपत्ति कर भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवा योजना ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन’ को वित्तपोषित करने के लिये पर्याप्त होगा।
      • भारतीय अरबपतियों पर 2% कर लगाने से तीन वर्ष तक भारत के कुपोषित लोगों को पोषण समर्थन प्रदान किया जा सकता है।
    • समावेशी शासन: नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित कर, पारदर्शिता को बढ़ावा देकर और भ्रष्टाचार को कम कर समावेशी शासन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाना और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में हाशिये पर स्थिति समुदायों को संलग्न करना भी सकारात्मक कदम होगा।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी: समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाली कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहलों को प्रोत्साहित करें। निजी कंपनियों को सामाजिक क्षेत्रों में निवेश करने और सामुदायिक विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये प्रोत्साहित करें।
  • बुनियादी सुविधाओं की पहुँच बढ़ाना:
    • सार्वजनिक सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच: सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा लाभ, रोज़गार गारंटी योजनाओं जैसी सार्वजनिक वित्त पोषित उच्च गुणवत्तापूर्ण सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित कर असमानता को व्यापक रूप से कम किया जा सकता है।
    • रोज़गार सृजन: भारत के श्रम-गहन विनिर्माण क्षेत्र में उन लाखों लोगों को शामिल करने की क्षमता है जो खेती करना छोड़ रहे हैं, जबकि सेवा क्षेत्र शहरी मध्यम वर्ग को लाभ पहुँचाता है।
    • महिला सशक्तीकरण: महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने के लिये शिक्षा, रोज़गार एवं उद्यमिता में लैंगिक समानता को बढ़ावा दें।
  • सामाजिक और वित्तीय समावेशन:
    • भूमि सुधार: भूमि स्वामित्व और किरायेदारी के मुद्दों के समाधान के लिये भूमि सुधार लागू करें। भूमि संसाधनों का निष्पक्ष एवं समतामूलक वितरण सुनिश्चित करें।
    • नागरिक समाज को बढ़ावा देना: पारंपरिक रूप से उत्पीड़ित और दबे हुए समूहों को वृहत आवाज़ प्रदान की जाए, जहाँ इन समूहों के भीतर यूनियनों और संघों जैसे नागरिक समाज समूहों को सक्षम करना शामिल है।
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार: सभी के लिये नए अवसर पैदा करने के लिये तकनीकी प्रगति को अपनाया जाए।
      • सुनिश्चित किया जाए कि तकनीकी प्रगति का लाभ समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुँचे।

निष्कर्ष:

असमानता के अंतर्निहित कारणों को संबोधित कर सकने वाली समावेशी नीतियों के अंगीकरण एवं क्रियान्वयन से भारत में एक अधिक समतामूलक समाज की ओर संक्रमण कर सकता है। यह परिवर्तनकारी दृष्टिकोण संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य 10 की आकांक्षाओं के भी अनुरूप है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के उच्च आर्थिक विकास के बावजूद बढ़ती असमानता के कारणों पर चर्चा कीजिये और भारत में समावेशी विकास प्राप्त करने के उपाय सुझाइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा

Q.ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में उल्लिखित समावेशी विकास में निम्नलिखित में से कौन सा एक शामिल नहीं है: (2010)

(a) गरीबी में कमी लाना
(b) रोज़गार के अवसरों का विस्तार करना
(c) पूंजी बाजार को मज़बूत बनाना
(d) लैंगिक असमानता में कमी लाना 

उत्तर: C


मुख्य परीक्षा:

प्र. कोविड-19 महामारी से भारत में वर्ग असमानताओं और गरीबी को बढ़ावा मिला है। टिप्पणी कीजिये। (2020)


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