एडिटोरियल (27 May, 2024)



जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभाव

यह एडिटोरियल 23/05/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The growing cost of climate change” लेख पर आधारित है। इसमें जलवायु परिवर्तन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव और शमन के साथ-साथ अनुकूलन उपायों की आवश्यकता के बारे चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, भू-आर्थिक परिदृश्य, चरम मौसमी घटनाएँ, नील नदी बेसिन, आर्कटिक सागर की बर्फ पिघलना, जलवायु परिवर्तन, भारतीय रिज़र्व बैंक, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना, पंचामृत प्रतिबद्धताएँ, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन

मेन्स के लिये:

भारत में जलवायु परिवर्तन का अर्थशास्त्र, वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।

जलवायु परिवर्तन, वैश्विक भू-आर्थिक परिदृश्य को लगातार बदल रहा है और इसके बढ़ते आर्थिक प्रभाव को अब अनदेखा नहीं किया जा सकता। हाल ही में किये गए दो अध्ययनों ने खतरे की घंटी बजा दी है। पहले अध्ययन में अमेरिका के राष्ट्रीय आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो (National Bureau of Economic Research) द्वारा अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 1960 के बाद से वैश्विक तापमान में वृद्धि नहीं हुई होती तो आज वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 37% अधिक होता, जबकि दूसरे अध्ययन में ‘नेचर’ (Nature) द्वारा अनुमान लगाया गया है कि जलवायु प्रभावों के कारण अगले 26 वर्षों में वैश्विक औसत आय में लगभग पाँचवें भाग तक गिरावट आ सकती है।

वैश्विक जलवायु नीति ने उपयुक्त ही शमन पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन अनुकूलन आवश्यकताओं के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद इसके लिये पर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त नहीं हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रत्यास्थता में निवेश करना केवल पर्यावरणीय अनिवार्यता ही नहीं है, बल्कि सतत विकास की सुरक्षा के लिये एक आर्थिक आवश्यकता भी है।

जलवायु परिवर्तन वैश्विक भू-आर्थिक परिदृश्य को किस प्रकार बदल रहा है?

  • कृषि पैटर्न में बदलाव: बढ़ते तापमान, वर्षा पैटर्न में बदलाव और चरम मौसमी घटनाएँ कृषि के लिये अनुकूल क्षेत्रों के भौगोलिक वितरण को बदल रही हैं।
    • उदाहरण के लिये, मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका जैसे पारंपरिक रूप से उपजाऊ क्षेत्रों में सूखे और मरुस्थलीकरण के कारण फसल की पैदावार में गिरावट आ रही है, जिससे खाद्य असुरक्षा और संभावित आर्थिक अस्थिरता बढ़ रही है।
  • संसाधनों की कमी: जलवायु परिवर्तन के कारण जल की कमी बढ़ रही है, जिससे साझा जल संसाधनों को लेकर संघर्ष बढ़ रहा है।
    • नील नदी बेसिन (जो कई अफ्रीकी देशों द्वारा साझा किया जाता है) में तनाव बढ़ रहा है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण इसके जल स्तर में उतार-चढ़ाव की स्थिति बन रही है, जिससे कृषि, जल विद्युत और आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित हो रही हैं।
  • पलायन और विस्थापन: जलवायु-जनित घटनाएँ लोगों को अपने घरों से पलायन करने के लिये विवश कर रही हैं, जिससे मेजबान समुदायों के लिये आर्थिक चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं और संसाधनों को लेकर संभावित संघर्ष उत्पन्न हो रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, ‘नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल’ के अनुसार समुद्र का बढ़ता स्तर वर्ष 2050 तक बांग्लादेश की लगभग 17% तटीय भूमि को जलमग्न कर देगा और लगभग 20 मिलियन लोगों को विस्थापित कर देगा।
  • आर्कटिक में आर्थिक अवसर: आर्कटिक महासागर में हिम के पिघलने से नए नौवहन मार्ग खुल रहे हैं और वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच बन रही है, जिससे इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले देशों के बीच संभावित आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो रही है।
    • उदाहरण के लिये, रूस वाणिज्यिक नौवहन के लिये अपने उत्तरी समुद्री मार्ग के विकास में निवेश कर रहा है, जबकि चीन और भारत जैसे देश इस क्षेत्र में आर्थिक अवसर तलाश रहे हैं।
  • जलवायु-प्रेरित संघर्ष: जलवायु परिवर्तन ‘थ्रेट मल्टीप्लायर’ की तरह कार्य कर रहा है जो संसाधनों के लिये पहले से मौजूद तनावों एवं संघर्षों को और बढ़ा रहा है। राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे भूभागों में विशेष रूप से यह परिस्थिति उत्पन्न हो रही है।
  • जलवायु के कारण आपूर्ति शृंखला व्यवधान: चरम मौसमी घटनाएँ और जलवायु-जनित आपदाएँ वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकती हैं, जिससे आर्थिक हानि और महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की संभावित कमी की स्थिति बन सकती है।
    • उदाहरण के लिये, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोटिव पार्ट्स के प्रमुख विनिर्माण केंद्र थाईलैंड में वर्ष 2011 में आई बाढ़ के कारण वैश्विक स्तर पर आपूर्ति शृंखला में व्यापक व्यवधान और आर्थिक प्रभाव उत्पन्न हुआ।
  • ‘क्लाइमेट जेंट्रीफिकेशन’ (Climate Gentrification): चूँकि कुछ क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों (जैसे समुद्र का बढ़ता स्तर या चरम मौसमी घटनाएँ) के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए हैं, ‘क्लाइमेट जेंट्रीफिकेशन’ का खतरा उत्पन्न हुआ है, जहाँ समृद्ध व्यक्ति और व्यवसाय सुरक्षित या अधिक प्रत्यास्थी माने जाने वाले भूभागों में स्थानांतरित हो जाते हैं।
    • इससे आर्थिक विस्थापन की स्थिति बन सकती है तथा कमज़ोर समुदायों का और अधिक हाशियाकरण (marginalization) हो सकता है।

Impacts of Climate Change on the  Economy

भारतीय अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव

  • कृषि उत्पादकता और पैदावार में कमी: जलवायु परिवर्तन से फसल चक्र गंभीर रूप से बाधित हो सकता है और कृषि पैदावार में कमी आ सकती है।
    • कृषि भारत की लगभग 55% आबादी की आजीविका का प्राथमिक स्रोत है और अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
    • कम पैदावार से ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है और शहरी क्षेत्रों में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
      • उदाहरण के लिये, अनुकूलन उपायों को न अपनाने की स्थिति में, भारत में वर्षा-सिंचित चावल की पैदावार वर्ष 2050 में 20% तक कम होने का अनुमान है।
  • औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र के लिये आघात: औद्योगिक क्षेत्र में परिचालन लागत में वृद्धि हो सकती है और लाभ में कमी आ सकती है।
    • इसके कारणों में नए जलवायु-अनुकूल नियमों को लागू करना, पुराने स्टॉक का कम उपयोग, और हरित अवसंरचना ओर निवेश का रुख मोड़ना शामिल है।
      • जलवायु संबंधी हानियों के कारण उत्पादन प्रक्रियाओं और गतिविधियों का स्थानांतरण भी आर्थिक हानि में वृद्धि कर सकता है।
    • इसके अलावा, बीमा दावों में वृद्धि और पर्यटन एवं आतिथ्य में व्यवधान से सेवा क्षेत्र के लिये विभिन्न खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।
  • अवसंरचना को क्षति: जलवायु परिवर्तन से प्रेरित बाढ़ और ग्रीष्म लहर (heatwaves) जैसी चरम मौसमी घटनाएँ आधारभूत संरचना को व्यापक क्षति पहुँचा सकती हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने पिछले दशक में बाढ़ से हुई आर्थिक क्षति पर 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर व्यय किये, जो वैश्विक आर्थिक हानि का 10% है।
  • श्रम बाज़ार पर प्रभाव: जलवायु से प्रेरित स्वास्थ्य संबंधी खतरों के कारण उत्पादकता में कमी आ सकती है और जलवायु जोखिमों से अधिक प्रभावित क्षेत्रों से पलायन की स्थिति बन सकती है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का अनुमान है कि अत्यधिक गर्मी और आर्द्रता के कारण श्रम घंटों की हानि के कारण वर्ष 2030 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 4.5% तक जोखिम में पड़ सकता है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2030 तक हीट स्ट्रेस (heat stress) के कारण अनुमानित 8 करोड़ वैश्विक रोज़गार हानि में से लगभग 3.4 करोड़ रोज़गार हानि भारत में होगी।
  • बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिये जोखिम: RBI ने जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिमों को भौतिक जोखिमों (चरम मौसमी घटनाएँ, तापमान में परिवर्तन आदि) और संक्रमण जोखिमों (ऋण, बाज़ार, तरलता, परिचालन और प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम) में वर्गीकृत किया है।
    • इन जोखिमों का बैंकों और वित्तीय संस्थाओं पर प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष एवं अतिव्यापी प्रभाव (अंतर-अर्थव्यवस्था, सीमा-पार प्रभाव या संक्रामक जोखिम) पड़ सकता है।
  • उच्च उत्सर्जन उद्योगों पर प्रभाव: बिजली उत्पादन, धातु उत्पाद उत्पादन, परिवहन और खनन जैसे उद्योग अधिकतम ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का कारण बनते हैं।
    • RBI ने कहा है कि भारत में वर्तमान वार्षिक कार्बन उत्सर्जन के लगभग 40% को जीवाश्म ईंधन के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग कर और 15% उत्सर्जन को इलेक्ट्रिक वाहनों एवं ऊर्जा-कुशल विद्युत उपकरणों के उपयोग द्वारा कम किया जा सकता है।
      • शेष 45% उत्सर्जन भारी उद्योग, पशुपालन और कृषि जैसे क्षेत्रों से संबंधित हैं जहाँ उत्सर्जन कम करना एक दुरूह चुनौती है।

cost of climate change on GDP

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये भारत की प्रमुख पहलें:

भारतीय अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने हेतु उपाय:

  • औद्योगिक सहजीवन की खोज: भारत को चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल में क्रांतिकारी बदलाव लाना चाहिये, जो अपशिष्ट के न्यूनीकरण, सामग्रियों के पुनः उपयोग और प्राकृतिक प्रणालियों के पुनर्जनन पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • भारत सरकार कंपनियों को चक्रीय व्यापार मॉडल अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है, जैसे उत्पाद-के-रूप-में-सेवा या औद्योगिक सहजीवन, जहाँ एक उद्योग का अपशिष्ट दूसरे उद्योग के लिये कच्चा माल बन जाता है।
  • हरित नवाचार के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना: भारत हरित प्रौद्योगिकियों और समाधानों के विकास एवं क्रियान्वयन में तेज़ी लाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • जलवायु-जागरूक शहरी नियोजन को बढ़ावा देना: भारत को संवहनीय एवं प्रत्यास्थी शहरों के निर्माण के लिये जलवायु-जागरूक शहरी नियोजन को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • जलवायु-प्रत्यास्थी विशेष आर्थिक क्षेत्रों का विकास करना: भारत जलवायु-प्रत्यास्थी विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones- SEZs) का निर्माण कर सकता है जो संवहनीय अभ्यासों और हरित अवसंरचना को प्राथमिकता देते हैं।
    • ये SEZs ऐसे व्यवसायों एवं उद्योगों को आकर्षित कर सकते हैं जो अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और प्रत्यास्थता बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
    • यूएई का मसदर शहर (Masdar City) एक योजनाबद्ध इको-सिटी है जिससे भारत भी प्रेरणा ग्रहण कर सकता है।
  • राष्ट्रीय हरित वर्गीकरण (National Green Taxonomy): भारत एक राष्ट्रीय हरित वर्गीकरण व्यवस्था स्थापित कर सकता है। यह एक वर्गीकरण प्रणाली है जो पर्यावरणीय रूप से संवहनीय आर्थिक गतिविधियों को परिभाषित करती है।
    • यह वर्गीकरण जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन में योगदान देने वाले क्षेत्रों और परियोजनाओं के लिये निवेश, ऋण संबंधी निर्णय एवं नीतिगत हस्तक्षेप का मार्गदर्शन कर सकता है।
    • यूरोपीय संघ का सतत वित्त वर्गीकरण (sustainable finance taxonomy) भारत के लिये भी एक उल्लेखनीय मॉडल बन सकता है।
  • अवसंरचना के लिये ग्रीन बॉण्ड वित्तपोषण: भारत जलवायु-प्रत्यास्थी अवसंरचना के निर्माण के लिये घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पूंजी को आकर्षित करने के लिये ‘सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड’ जारी करने में तेज़ी ला सकता है।
    • इन निधियों का उपयोग बाढ़-प्रतिरोधी तटबंधों, ताप-प्रतिरोधी भवनों और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये किया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों और वैश्विक भू-आर्थिक परिदृश्य के परिवर्तन में उनके योगदान पर विचार कीजिये। इससे प्रभावित होने वाले प्रमुख क्षेत्रों की चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-  (2021)

  1. भारत में ‘जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)’ दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी.सी.ए.एफ.एस.) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
  2.   सी.सी.ए.एफ.एस. परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी.जी.आई.ए.आर.) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय प्राँस में है।
  3.   भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आई.सी.आर.आई.एस.ए.टी.), सी.जी.आई.ए.आर. के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2           
(b)  केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य को सर्वोत्तम रूप से वर्णित करता है/हैं? (2016)

1- पर्यावरणीय लाभों एवं लागतों को केंद्र एवं राज्य के बजट में सम्मिलित करते हुए तद्द्वारा 'हरित लेखाकरण (ग्रीन अकाउंटिंग)' को अमल में लाना।
2- कृषि उत्पाद के संवर्धन हेतु द्वितीय हरित क्रांति आरंभ करना जिससे भविष्य में सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो।
3- वन आच्छादन की पुनप्राप्ति और संवर्धन करना तथा अनुकूलन एवं न्यनीकरण के संयुक्त उपायों से जलवायु परिवर्तन का प्रत्युतर देना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न.‘भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि (ग्लोबल क्लाइमेट, चेंज एलाएन्स)’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

1- यह यूरोपीय संघ की पहल है।
2- यह लक्ष्याधीन विकासशील देशों को उनकी विकास नीतियों और बजटों में जलवायु परिवर्तन के एकीकरण हेतु तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
3- इसका समन्वय विश्व संसाधन संस्थान (WRI) और धारणीय विकास हेतु विश्व व्यापार परिषद् (WBCSD) द्वारा किया जाता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स 

प्रश्न.1 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गईं वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)

प्रश्न.2 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017)