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एडिटोरियल

  • 12 Dec, 2024
  • 27 min read
शासन व्यवस्था

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज

यह एडिटोरियल 12/12/2024 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित “Whither universal health coverage in India?” पर आधारित है। इस लेख में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की दिशा में भारत की यात्रा में चुनौतियों का उल्लेख किया गया है जो सीमित बीमा कवरेज (41% परिवार) और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की अपर्याप्तता व निम्नस्तरीय गुणवत्ता पर प्रकाश डालता है। यह असमानताओं को कम करने, सेवाओं में सुधार करने और देश भर में समान स्वास्थ्य परिणाम सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।

प्रिलिम्स के लिये:

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, मेडिकल टूरिज़्म, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, आयुष्मान भारत योजना, आउट-ऑफ-पॉकेट, फिट इंडिया मूवमेंट, पोषण अभियान, आयुष्मान आरोग्य मंदिर, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति- 2017, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, आधार, गैर-संक्रामक रोग, व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) योजना 

मेन्स के लिये:

भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में बाधा डालने वाले मुद्दे। 

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की दिशा में भारत की यात्रा महत्त्वपूर्ण चुनौतियों और वृद्धिशील प्रगति से चिह्नित है। वर्ष 1948 से विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं को लागू करने के बावजूद, केवल 41% भारतीय परिवारों के पास स्वास्थ्य बीमा है और आधे लोग स्वास्थ्य देखभाल की निम्न गुणवत्ता व अपर्याप्तता के कारण सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं से बचते हैं। वास्तव में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का मार्ग एक केंद्रित दृष्टिकोण की मांग करता है जो असमानताओं को कम करने, सेवा की गुणवत्ता में सुधार करने और सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों व क्षेत्रों में सुसंगत स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त करने को प्राथमिकता दे।

भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के संदर्भ में: स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र वर्ष 2023 में 372 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्यांकन पर पहुँच गया, जिसमें 7.5 मिलियन लोगों को रोज़गार मिला, साथ ही टेलीमेडिसिन, स्वास्थ्य-तकनीक एवं चिकित्सा पर्यटन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 
    • भारत का अस्पताल बाज़ार, जिसका मूल्य वर्ष 2023 में 98.98 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, वर्ष 2032 तक दोगुना होने का अनुमान है। 
    • टेलीमेडिसिन बाज़ार वर्ष 2025 तक 5.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ जाएगा, जबकि ई-हेल्थ बाज़ार उसी अवधि में 10.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
  • डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात और चिकित्सा पर्यटन: भारत का डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:854 है, जिसमें एलोपैथिक और आयुष चिकित्सक दोनों शामिल हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, मेडिकल टूरिज़्म ने भारत को एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित कर दिया है, जो वर्ष 2024 में 7.69 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान देगा तथा वर्ष 2029 तक 14.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है।
  • विदेशी निवेश: मार्च 2024 तक ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स में विदेशी निवेश 22.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो भारत के स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र में प्रबल विकास और वैश्विक विश्वास का संकेत है।

भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में बाधा डालने वाले मुद्दे क्या हैं? 

  • अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय और कमज़ोर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली: विश्व के सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद, भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.9% स्वास्थ्य सेवा पर खर्च (आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24) करता है। 
    • भारत का स्वास्थ्य देखभाल संरचना विपरीत है, जिसमें तृतीयक देखभाल पर अत्यधिक निर्भरता और प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणालियों की उपेक्षा की जाती है। 
      • मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियाँ, जिन्हें प्रारंभिक जाँच तथा इंटरवेंशन के माध्यम से प्राथमिक स्तर पर प्रबंधित किया जा सकता है, प्रायः तब तक निदान नहीं हो पातीं, जब तक जटिलताएँ उत्पन्न नहीं हो जाती, जिससे रोगियों को उच्च स्तरीय देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। 
      • उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों में प्राथमिक स्तर पर सुदृढ़ स्क्रीनिंग कार्यक्रमों का अभाव इस समस्या को और बढ़ा देता है।
  • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में क्षेत्रीय असमानताएँ: स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी अवसंरचना असमान रूप से वितरित है, शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर सुविधाएँ हैं। 
    • उदाहरण के लिये, यद्यपि भारत के 70% स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं, 65% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
    • हाल ही में जारी ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी में ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बहुत बड़ी कमी को उजागर किया गया है, जहाँ शल्य चिकित्सकों, फिज़ीशियनों, बाल रोग विशेषज्ञों की संख्या में 80% से अधिक तथा प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञों की संख्या में लगभग 75% की कमी है।
  • गैर-संक्रामक रोगों का उच्च बोझ: भारत में गैर-संक्रामक रोगों की ओर तीव्र बदलाव (WHO, 2022) देखने को मिल रहा है, जो अब कुल मौतों का 65-66% है। 
    • अकेले वायु प्रदूषण के कारण भारत में वर्ष 2019 में 1.67 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई। इसके अलावा 40% ग्रामीण परिवारों के पास सुरक्षित पेयजल की सुलभता नहीं है, जिससे हैज़ा और टाइफाइड जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। 
    • मधुमेह, हृदय संबंधी विकार और कैंसर जैसी बीमारियाँ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव डालती हैं, जो अभी भी संक्रामक रोगों पर ही केंद्रित है। 
    • प्रदूषण, अपर्याप्त स्वच्छता और कुपोषण जैसे कारक स्वास्थ्य असमानताओं को बढ़ाते हैं। 
  • सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में अकुशलता: आयुष्मान भारत जैसी प्रमुख योजनाओं का लक्ष्य 50 करोड़ नागरिकों को स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना है, फिर भी उनका अभिगम अपर्याप्त जागरूकता और असमान कार्यान्वयन से बाधित है। 
    • हाल ही में आई CAG रिपोर्ट के अनुसार, आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थी डेटाबेस में लगभग 7.5 लाख लोग एक ही सेल फोन नंबर से जुड़े हुए थे।
    • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन मरीज़ों को पहले मृत दिखाया गया था, वे भी इस योजना के तहत उपचार प्राप्त कर रहे हैं। 
      • ऐसे मामलों की अधिकतम संख्या छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, केरल और मध्य प्रदेश में थी। 
  • स्वास्थ्य बीमा की अपर्याप्त सुलभता: भारत की 95% आबादी बीमा रहित है, 73% के पास स्वास्थ्य कवरेज नहीं है। 
    • असंगठित क्षेत्र और अनौपचारिक श्रमिक, जो कार्यबल का 90% हिस्सा हैं, नियोक्ता-आधारित बीमा से बाहर रखे गए हैं। 
    • परिणामस्वरूप, स्वास्थ्य पर उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय के कारण प्रतिवर्ष लगभग 55 मिलियन भारतीय गरीब हो रहे हैं तथा 17% से अधिक परिवार स्वास्थ्य पर अत्यधिक व्यय कर रहे हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा प्रशासन में विखंडन: भारत का संघीय संरचना प्रायः विखंडित स्वास्थ्य सेवा नीतियों की ओर ले जाता है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सीमित समन्वय होता है। 
    • उदाहरण के लिये, कोविड-19 के दौरान एक समान परीक्षण नीति की कमी से रोग प्रबंधन में भ्रम और अकुशलता की स्थिति उत्पन्न हुई। 
    • केरल जैसे बेहतर स्वास्थ्य प्रशासन वाले राज्यों ने प्रकोपों ​​के प्रबंधन में अन्य राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया, जो प्रशासनिक क्षमता में असमानताओं को दर्शाता है।
  • निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर कम ध्यान: टीकाकरण, जाँच और जीवनशैली में हस्तक्षेप जैसे निवारक उपायों का लागत-प्रभावशीलता के बावजूद कम उपयोग किया जाता है। 
    • वर्ष 2021 (NFHS-5) में केवल 76.4% भारतीय बच्चों का पूर्ण टीकाकरण किया गया, जिससे लाखों बच्चे ऐसी बीमारियों के जोखिम में पड़ गए, जिनसे बचा जा सकता था।
    • इसके अतिरिक्त, फिट इंडिया मूवमेंट और पोषण अभियान का कार्यान्वयन धीमा है, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य बोझ को कम करने पर उनका प्रभाव सीमित हो रहा है।
  • प्रौद्योगिकी और डिजिटल स्वास्थ्य का सीमित उपयोग: यद्यपि आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) जैसी पहलों का उद्देश्य स्वास्थ्य रिकॉर्ड को डिजिटल बनाना है, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल पहुँच अभी भी कम है। 
    • मानकीकृत डेटा विनिमय प्रोटोकॉल का अभाव विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल तंत्रों के बीच निर्बाध सूचना साझाकरण को जटिल बनाता है, जिससे समन्वित रोगी देखभाल और ABDM जैसी राष्ट्रव्यापी स्वास्थ्य पहलों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है।
  • निजी क्षेत्र पर निर्भरता: अत्यधिक बोझ से दबे सार्वजनिक अस्पताल प्रायः लोगों को महंगे निजी क्षेत्र में उपचार कराने के लिये विवश करते हैं। 
    • निजी क्षेत्र 70% बाह्य रोगी देखभाल और 60% से अधिक अस्पताल-भर्ती सेवाएँ (स्वास्थ्य के सामाजिक उपभोग पर NSSO का 75वें दौर का सर्वेक्षण, 2017-18) प्रदान करता है। 
    • निजी स्वास्थ्य सेवा की अनियमित प्रकृति के कारण मूल्य संवृद्धि और असमान अभिगम को बढ़ावा मिलता है, जिससे किफायती UHC का लक्ष्य कमज़ोर होता है। 

भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में तेज़ी लाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय और स्वास्थ्य बीमा में वृद्धि: भारत को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति- 2017 में परिकल्पित अनुसार वर्ष 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 2.5% तक बढ़ाना होगा।
    • इससे बेहतर बुनियादी अवसंरचना, अधिक स्वास्थ्य कर्मियों के लिये धन जुटाया जा सकेगा तथा सार्वजनिक सुविधाओं पर आवश्यक दवाएँ उपलब्ध कराई जा सकेंगी। 
    • प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन जैसे कार्यक्रमों का विस्तार, जो प्रत्येक ज़िले में गहन देखभाल अस्पताल बनाने पर केंद्रित है, अवसंरचना संबंधी अंतराल को कम कर सकता है। 
    • लक्षित योजनाओं के माध्यम से बीमा का विस्तार करने से कमज़ोर आबादी पर वित्तीय बोझ और कम हो जाएगा।
    • भारत करों के माध्यम से वित्तपोषित सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा को लागू करके तथा आवश्यक सेवाओं तक समान अभिगम सुनिश्चित करके बेवरिज मॉडल (यू.के., नॉर्डिक देश) से सीख ले सकता है। 
      • बिस्मार्क मॉडल (फ्राँस, जापान) से सीख लेते हुए, भारत नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के योगदान के साथ बीमा-आधारित स्वास्थ्य सेवा की रूपरेखा अपना सकता है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को सुदृढ़ बनाना: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) और उप-केंद्रों को पर्याप्त स्टाफ, उपकरण तथा दवाओं के साथ पुनर्जीवित करना आवश्यक है। 
    • आयुष्मान भारत के अंतर्गत आयुष्मान आरोग्य मंदिर जैसी पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये तथा गैर-संक्रामक रोगों (NCD) की निवारक देखभाल और प्रबंधन पर अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिये, ई-संजीवनी जैसी टेलीमेडिसिन सेवाओं को इन केंद्रों के साथ एकीकृत करने से ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच में सुधार हो सकता है।
    • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर पर NCD और अन्य बीमारियों के लिये अनिवार्य निवारक स्वास्थ्य जाँच से दीर्घकालिक रोग बोझ को कम किया जा सकता है। 
      • राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY) के समान बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन करके समस्याओं का शीघ्र पता लगाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में। 
  • कार्यबल की कमी को दूर करना: एक सुदृढ़ स्वास्थ्य कार्यबल के लिये कार्य स्थितियों में सुधार के साथ-साथ चिकित्सा और पैरामेडिकल शिक्षा को प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
    • नर्सों, प्रसाविकाओं और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के लिये स्वास्थ्य देखभाल-विशिष्ट प्रशिक्षण को शामिल करने की दिशा में कौशल भारत पहल का विस्तार करने से यह कमी दूर हो जाएगी।
    • उदाहरण के लिये, मेडिकल कॉलेजों में सीटें बढ़ाना तथा उच्च वेतन और कैरियर उन्नति के अवसरों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में नियुक्ति को प्रोत्साहित करना, ग्रामीण-शहरी विभाजन को समाप्त कर सकता है। 
      • असम ने दूर-दराज़ के क्षेत्रों में डॉक्टरों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन की शुरुआत की, जिससे एक अनुकरणीय मिसाल कायम हुई।
  • डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य ID बनाने के लिये आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के क्रियान्वयन में तीव्रता लाने से रोगी रिकॉर्ड को सुव्यवस्थित किया जा सकता है और स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार किया जा सकता है। 
    • भारतनेट के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी स्थापित करना और स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को डिजिटल प्रशिक्षण प्रदान करना समावेशिता सुनिश्चित करेगा। 
    • मानसिक स्वास्थ्य के लिये टेली-मानस जैसे टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्मों का एकीकरण अपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। 
  • निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रन: टीकाकरण, स्वास्थ्य शिक्षा और जीवनशैली में संशोधन जैसे निवारक उपाय रोग के बोझ एवं लागत को कम कर सकते हैं।
    • बाल कुपोषण के साथ-साथ वयस्क कुपोषण को दूर करने के लिये पोषण अभियान के दायरे का विस्तार करने से बढ़ती गैर-संक्रामक बीमारियों से निपटा जा सकेगा।
    • स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत शहरी स्वच्छता को सुदृढ़ करने और गैर-संक्रामक रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NPCDCS) जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों के लिये वित्तपोषण बढ़ाने से दूरगामी प्रभाव होंगे।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: बुनियादी अवसंरचना के विकास, निदान और तृतीयक देखभाल के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी का लाभ उठाया जा सकता है। 
    • वंचित क्षेत्रों में निजी अस्पतालों के लिये व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) योजना जैसी योजनाएँ अत्यधिक लागत के बिना पहुँच में सुधार ला सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, राजस्थान की मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना ने सस्ती दवाइयों की आपूर्ति के लिये फार्मा कंपनियों के साथ साझेदारी की। इसी तरह के सहयोग का विस्तार करके सेवा वितरण को बढ़ाया जा सकता है।
  • क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना: केंद्रीय योजनाओं को कम स्वास्थ्य सूचकांक वाले राज्यों को स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना और कार्यबल विकास में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • NITI आयोग की स्वास्थ्य सूचकांक रैंकिंग को 15वें वित्त आयोग के तहत प्रदर्शन-आधारित अनुदानों के साथ जोड़ने से बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों को सुधार के लिये प्रेरित किया जा सकता है। 
    • केरल का विकेंद्रीकृत शासन मॉडल, जो स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं को अधिक बजट आवंटित करता है, सफलता का रोडमैप प्रदान करता है।
  • नियामक तंत्र को सुदृढ़ करना: आवश्यक दवाओं के मूल्य नियंत्रण को सुनिश्चित करना और निजी अस्पतालों में उपचार लागत का मानकीकरण करना आवश्यक है। 
    • राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) के दायरे का विस्तार करने तथा क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट अधिनियम के तहत अस्पतालों के लिये पारदर्शी मूल्य निर्धारण प्रदर्शन अनिवार्य करने से शोषण पर अंकुश लगेगा। 
    • हृदय संबंधी स्टेंट और घुटने के प्रत्यारोपण की कीमतों में कमी से पहले ही मरीज़ों के व्यय में कमी आई है, जो विनियमन की प्रभावकारिता को दर्शाती है।
  • अनुसंधान और स्वदेशी नवाचारों में निवेश: भारत को किफायती, स्वदेशी स्वास्थ्य देखभाल समाधान विकसित करने के लिये ICMR जैसे संस्थानों को वित्तपोषित करके अनुसंधान और नवाचार को सुदृढ़ करना चाहिये।
    • कोविड-19 के दौरान स्थानीय स्तर पर विकसित कोवैक्सिन जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य नवाचार, आत्मनिर्भरता की क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। 
    • क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्रों की स्थापना से स्थानीय स्वास्थ्य चुनौतियों, जैसे कि पूर्वोत्तर में रोगवाहक जनित रोगों का समाधान किया जा सकता है।
  • पारंपरिक चिकित्सा को आधुनिक स्वास्थ्य सेवा के साथ एकीकृत करना: आयुष (आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) के माध्यम से भारत की पारंपरिक चिकित्सा का विशाल भंडार आधुनिक स्वास्थ्य सेवा का पूरक बन सकता है।   
    • आयुष्मान भारत के अंतर्गत आयुष चिकित्सकों को स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों (HWC) में एकीकृत करने से एलोपैथिक चिकित्सकों पर बोझ कम हो सकता है तथा सामाजिक रूप से स्वीकार्य विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं। 
  • व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कवरेज: बढ़ती आवश्यकताओं के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य को अपर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त है तथा इसे सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है। 
    • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) का विस्तार करना तथा इसे टेली-मानस जैसे टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्मों के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ एकीकृत करना, सेवाओं को सुलभ बना सकता है। 
  • एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को एकीकृत करना: एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण, जो मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के अंतर्संबंध का अभिनिर्धारण करता है, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने के लिये आवश्यक है। 
    • निपाह और एवियन इन्फ्लूएंज़ा जैसी जूनोटिक बीमारियों के लिये एकीकृत निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये, ताकि त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र सुनिश्चित हो सके।
    • पशु चिकित्सा और वन्यजीव विभागों के साथ सहयोग करने के लिये राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) के दायरे का विस्तार किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष: 

यद्यपि भारत ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में प्रगति की है, फिर भी कई महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इनमें अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय, क्षेत्रीय असमानताएँ, बीमा की अपर्याप्त सुलभता और अत्यधिक बोझ वाली स्वास्थ्य सेवा प्रणाली शामिल हैं। UHC को प्राप्त करने के लिये, भारत को सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय बढ़ाने, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ करने और सरकारी योजनाओं में अक्षमताओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

 प्रश्न. "भारत में समतापूर्ण और समावेशी विकास प्राप्त करने के लिये सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) आवश्यक है।" UHC प्राप्त करने में चुनौतियों पर चर्चा करते हुए सभी के लिये स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता, अभिगम और सामर्थ्य सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण से संबंधी जागरूकता उत्पन्न करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों तथा महिलाओं में रक्ताल्पता की समस्या को कम करना। 
  3. बाजरा, मोटा अनाज तथा अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना।
  4. मुर्गी के अंडों के उपभोग को बढ़ाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (2021)


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