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एडिटोरियल

  • 12 Jul, 2024
  • 32 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

समकालीन भू-राजनीति में भारत

यह एडिटोरियल 11/072024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Message from Moscow: India-Russia relationship is not in terminal decline” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की सूक्ष्म बहु-संरेखण रणनीति पर प्रकाश डाला गया है, जहाँ वह वैश्विक भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच रूस के साथ संबंधों को संतुलित कर रहा है और द्विपक्षीय प्रत्यास्थता को सुदृढ़ करने तथा अंतर्राष्ट्रीय जटिलताओं के बीच प्रभावी रूप से आगे बढ़ने के लिये कूटनीतिक कौशल, आर्थिक सहयोग एवं रणनीतिक संलग्नता पर बल डे रहा है।

प्रिलिम्स के लिये:

22वाँ भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन, भारत की G20 अध्यक्षता 2023, अफ्रीकी संघ, नई दिल्ली घोषणापत्र, G7 शिखर सम्मेलन, चतुर्भुज सुरक्षा संवाद, शंघाई सहयोग संगठन, I2U2 समूह, चाबहार बंदरगाह विकास, S-400 मिसाइल, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, आर्टेमिस समझौते

मेन्स के लिये:

वैश्विक भू-राजनीति में भारत का बहु-आयामी दृष्टिकोण, बदलती विश्व व्यवस्था के आलोक में भारत की विदेश नीति से संबंधित मुद्दे।

22वीं भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक के लिये हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री की रूस की यात्रा ने भारत की कुशल बहु-गठबंधन या बहु-संरेखण रणनीति (multi-alignment strategy) को प्रदर्शित किया है। रूस के साथ मधुर संबंध बनाए रखते हुए, जिसमें व्यापार वृद्धि एवं विभिन्न मोर्चों पर सहयोग बढ़ाने के समझौते शामिल हैं, भारत ने यूक्रेन युद्ध और शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता के बारे में विद्यमान चिंताओं को भी संबोधित किया। प्रधानमंत्री की यह यात्रा जटिल भू-राजनीतिक स्थितियों के बीच आगे बढ़ने और मतभेदों के बावजूद प्रमुख शक्तियों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखने की भारत की क्षमता को उजागर करती है। 

हालाँकि रूस के साथ व्यापार असंतुलन की स्थिति और प्रतिबंधों के कारण सैन्य सहयोग में संभावित सीमाओं के कारण भारत को बहुआयामी समाधान खोजने की आवश्यकता है। अपने बहु-संरेखण दृष्टिकोण की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये, भारत को विभिन्न शक्तियों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक संतुलित करने और इन उभरते मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता होगी।

वैश्विक भू-राजनीति में भारत ने बहु-संरेखण का रुख कैसे बनाए रख रहा है?

  • रूस और पश्चिम के बीच संतुलन: रूस और पश्चिम के साथ भारत के संबंध इसके बहु-संरेखण दृष्टिकोण का उदाहरण हैं।
    • पश्चिमी सहयोगियों के दबाव के बावजूद, भारत ने रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी बनाए रखी है, जैसा कि भारतीय प्रधानमंत्री की हाल की मास्को यात्रा से स्पष्ट है।
      • इसके साथ ही, भारत ने रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ किया है।
    • यह नाजुक संतुलनकारी दृष्टिकोण भारत को रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों का लाभ उठाने के साथ-साथ पश्चिमी शक्तियों के साथ प्रौद्योगिकीय एवं रणनीतिक साझेदारी से भी लाभान्वित होने का अवसर देता है।
  • G-20 में अफ्रीकी संघ का समावेश: वर्ष 2023 में भारत की G-20 अध्यक्षता ने एक महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि को चिह्नित किया, जहां भारत ने खंडित वैश्विक परिदृश्य में विभाजन को दूर कर सकने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया।
    • एक प्रमुख उपलब्धि यह रही कि भारत ने G-20 में अफ्रीकी संघ (African Union- AU) की स्थायी सदस्यता के लिये सफलतापूर्वक प्रयास किया, जिससे इस समूह में ‘वैश्विक दक्षिण’ (Global South) का प्रतिनिधित्व बढ़ गया।
    • इस कदम से वैश्विक शासन संरचनाओं में सुधार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और विकासशील देशों की आवाज़ के रूप में उसकी भूमिका प्रदर्शित हुई, साथ ही अफ्रीकी देशों के साथ उसके संबंधों को मज़बूती मिली।
    • भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद नई दिल्ली घोषणापत्र (New Delhi Leaders' Declaration) की स्वीकृति ने महत्त्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर आम सहमति बना सकने की भारत की कूटनीतिक क्षमता को और अधिक पुष्ट किया।
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का रुख उसकी सूक्ष्म कूटनीति को प्रकट करता है।
    • रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को बनाए रखते हुए, जिसमें रियायती दरों पर तेल की खरीद जारी रखना भी शामिल है, भारत ने इस संघर्ष पर अपनी चिंता भी व्यक्त की है।
    • भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा रूसी राष्ट्रपति से कहे गए शब्द कि “वर्तमान युग युद्ध के लिये नहीं है” (today's era is not of war) ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया।
      • इसके अलावा, भारत के प्रधानमंत्री ने इटली में आयोजित G-7 शिखर सम्मेलन के दौरान यूक्रेन के राष्ट्रपति से भी मुलाकात की।
      • यह संतुलित दृष्टिकोण भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के साथ-साथ वैश्विक संघर्षों में क्षमतावान मध्यस्थ के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत करने की अनुमति देता है।
  • इज़राइल-हमास संघर्ष के प्रति संतुलित दृष्टिकोण: इज़राइल-हमास संघर्ष के प्रति भारत की प्रतिक्रिया विदेश नीति में उसके बहुआयामी दृष्टिकोण के प्रयोग का उदाहरण है।
    • 7 अक्टूबर 2023 के हमास हमले की तीव्र निंदा करते हुए और इज़राइल के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए भारत ने साथ ही साथ तनाव को कम करने, संवाद करने और कूटनीति की ओर लौटने का आह्वान किया।
    • भारत ने द्वि-राज्य समाधान (two-state solution) के प्रति अपने दीर्घकालिक समर्थन को कायम रखते हुए इज़राइल की सीमा पर एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य का पक्षसमर्थन करना जारी रखा है।
    • इस दृष्टिकोण के माध्यम से भारत इज़राइल के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखने, फिलिस्तीनी मुद्दे के लिये समर्थन बनाए रखने, अपने आतंकवाद विरोधी रुख को दृढ़ता से पेश करने और जटिल भू-राजनीतिक मुद्दों को सुलझाने में सक्षम एक ज़िम्मेदार वैश्विक शक्ति रूप में स्वयं को स्थापित करने में सफल रहा है।
  • ‘क्वाड’ से संलग्नता और हिंद-प्रशांत रणनीति: अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ ‘क्वाड’ (Quadrilateral Security Dialogue- Quad) में भारत की सक्रिय भागीदारी इसकी हिंद-प्रशांत रणनीति (Indo-Pacific strategy) का एक प्रमुख पहलू है।
    • इसके साथ ही साथ, भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और BRICS जैसे अन्य क्षेत्रीय मंचों में अपनी भागीदारी बनाए रखी है, जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिये विरोधी गुटों के साथ जुड़ने की उसकी क्षमता का प्रदर्शन होता है।
  • मध्य पूर्व कूटनीति: I2U2 (India, Israel, UAE, USA) समूह में भारत की भागीदारी इसकी मध्य पूर्व कूटनीति (Middle East Diplomacy) में एक नए अध्याय के आरंभ को चिह्नित करती है।
    • इस चतुर्भुज आर्थिक मंच का उद्देश्य अवसंरचना को आधुनिक बनाने, निम्न कार्बन विकास को आगे बढ़ाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिये निजी क्षेत्र की पूंजी एवं विशेषज्ञता का लाभ उठाना है।
    • इसके साथ ही, भारत ने ईरान (चाबहार बंदरगाह विकास के माध्यम से) और सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना जारी रखा है, जिससे जटिल क्षेत्रीय गतिशीलता को नियंत्रित कर सकने की उसकी क्षमता प्रदर्शित होती है।
  • रक्षा अधिग्रहण में रणनीतिक स्वायत्तता: भारत की रक्षा खरीद रणनीति इसकी बहु-संरेखण दृष्टिकोण का प्रतीक है।
  • जलवायु नेतृत्व और ऊर्जा साझेदारी: भारत ने अपनी विकास आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए जलवायु कार्रवाई में स्वयं को अग्रणी देश के रूप में स्थापित किया है।
    • भारत के नेतृत्व में गठित अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) में 100 से अधिक सदस्य देश शामिल हैं।
    • भारत का महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य और हाल ही में G-20 शिखर सम्मेलन में वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuels Alliance- GBA) का शुभारंभ सतत् विकास के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • इसके साथ ही, भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिये अनेक भागीदारों के साथ संलग्न है, जिसमें रूस से तेल आयात और फ्राँस एवं अमेरिका जैसे देशों के साथ परमाणु सहयोग शामिल है।
  • अंतरिक्ष कूटनीति और प्रौद्योगिकीय सहयोग: भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम इसके विविध अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रकट करता है।
    • सफल चंद्रयान-3 मिशन ने न केवल भारत की तकनीकी क्षमताओं को प्रदर्शित किया, बल्कि नासा (NASA) के डीप स्पेस नेटवर्क (Deep Space Network) द्वारा प्रदत्त सहयोग के साथ इसके सहकार्यात्मक दृष्टिकोण को भी प्रदर्शित किया।
    • भारत चंद्र अन्वेषण के लिये अमेरिका के नेतृत्व वाली पहल आर्टेमिस एकॉर्ड’ (Artemis Accords) का भी अंग है, जबकि उसने ‘गगनयान’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से रूस के साथ भी अंतरिक्ष सहयोग बनाए रखा है।
    • यह बहुआयामी अंतरिक्ष कूटनीति भारत को विभिन्न साझेदारियों से लाभान्वित होने के साथ-साथ एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने का अवसर भी प्रदान करती है।
  • ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’ और स्वास्थ्य भागीदारियाँ: ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल के माध्यम से कोविड-19 महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया ने वैश्विक स्वास्थ्य भागीदार के रूप में उसकी क्षमता को प्रदर्शित किया।
    • पश्चिमी देशों और वैश्विक दक्षिण के भागीदारों सहित अनेक देशों को वैक्सीन की आपूर्ति कर भारत ने ‘दुनिया का दवाख़ाना’ होने की अपनी छवि को सुदृढ़ किया।
    • वैक्सीन की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने और अमेरिका (नोवावैक्स के लिये) एवं रूस (स्पुतनिक वी के लिये) सहित कई देशों के साथ वैक्सीन विकास पर सहयोग करने के साथ इसे संतुलित किया गया।

भारत के बहु-संरेखण दृष्टिकोण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ 

  • परस्पर विरोधी हितों में संतुलन: प्राथमिक चुनौतियों में से एक है विभिन्न भागीदारों के परस्पर विरोधी हितों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना।
    • उदाहरण के लिये, यूक्रेन संघर्ष के बीच भारत द्वारा रूस से लगातार तेल खरीदे जाने से पश्चिमी सहयोगियों, विशेषकर यूरोपीय संघ (EU) के साथ उसके संबंध में तनाव आया है।
    • भू-राजनीतिक तनाव में वृद्धि के साथ-साथ यह संतुलन बनाना कठिन होता जा रहा है, जिसके कारण भारत को ऐसे कठिन निर्णय लेने पड़ सकते हैं, जिससे किसी भागीदार देश को निराशा हो सकती है।
  • क्षेत्रीय शक्ति गतिशीलता पर प्रतिक्रिया: भारत के बहु-संरेखण दृष्टिकोण को क्षेत्रीय शक्ति गतिशीलता में परिवर्तन के कारण, विशेष रूप से इसके पड़ोस में, निरंतर परीक्षण का सामना करना पड़ता है।
    • नेपाल, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों (जहाँ चीन का प्रभाव बढ़ा है) के साथ संबंधों को संतुलित करने के लिये सतर्क कूटनीति की आवश्यकता है।
    • मालदीव की नई सरकार के चीन समर्थक रुख के कारण भारत-मालदीव संबंधों में हाल में आया तनाव इस चुनौती का एक उदाहरण है।
  • विश्वसनीयता संबंधी चिंताएँ: भारत की बहु-संरेखण रणनीति से उसके साझेदारों के बीच अविश्वसनीयता की धारणा पैदा हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से भारत के बाहर निकलने से आर्थिक एकीकरण पहलों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठे।
    • इसी प्रकार, डेटा स्थानीयकरण और ई-कॉमर्स विनियमन जैसे मुद्दों पर भारत के रुख ने कभी-कभी इसे अमेरिका और अन्य पश्चिमी साझेदारों के साथ विवाद में संलग्न किया है, जिससे एक विश्वसनीय रणनीतिक सहयोगी के रूप में इसकी छवि पर असर पड़ सकता है।
  • आर्थिक दबावों से निपटना: आर्थिक अंतर-निर्भरता भारत की वास्तविक रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की क्षमता को सीमित कर सकती है।
    • रूस या ईरान के साथ लेन-देन के कारण अमेरिका की ओर से द्वितीयक प्रतिबंधों का खतरा भारत को एक कठिन स्थिति में रखता है, जिससे उसे आर्थिक हितों और रणनीतिक साझेदारियों के बीच चयन करने के लिये बाध्य होना पड़ सकता है।
    • आर्थिक संलग्नता को बनाए रखने के साथ-साथ चीनी आयात पर निर्भरता कम करने की चुनौती, आर्थिक बहु-संरेखण की जटिलताओं को उजागर करती है।
  • प्रौद्योगिकीय और रणनीतिक स्वायत्तता: साझेदारी से लाभ उठाते हुए प्रौद्योगिकीय स्वतंत्रता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।
    • क्वाड के महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकी कार्य समूह (critical and emerging technology working group) जैसी पहलों में भारत की भागीदारी को उसके अपने प्रौद्योगिकी विकास लक्ष्यों के साथ संतुलित किया जाना चाहिये।
    • 5G प्रौद्योगिकी पर बहस और हुआवेई (Huawei) जैसी चीनी कंपनियों को इससे बाहर रखना, सुरक्षा चिंताओं और प्रौद्योगिकीय प्रगति के बीच संतुलन की राह की कठिनाई को प्रकट करता है।
  • रक्षा सहयोग और अंतर-संचालनीयता: विविध स्रोतों (जैसे रूस से S-400 प्रणाली और अमेरिका से P-8I विमान) से रक्षा उपकरणों की खरीद से अंतर-संचालनीयता (Interoperability) का मुद्दा खड़ा होता है और विभिन्न साझेदारों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास एवं संचालन जटिल बन सकता है।
    • इससे साझेदार देशों के प्रतिबंधों या निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं का भी सामना करने का जोखिम उत्पन्न होता है, जैसा कि S-400 की खरीद पर संभावित CAATSA प्रतिबंधों से प्रकट होता है।
  • जलवायु कार्रवाई बनाम विकास आवश्यकताएँ: जलवायु कार्रवाई (जैसे अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता प्रायः इसकी विकास आवश्यकताओं और ऊर्जा सुरक्षा चिंताओं के साथ टकराव रखती है।
    • महत्त्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को कोयले एवं तेल आयात पर निरंतर निर्भरता के साथ संतुलित करना, विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय जलवायु मंचों पर विश्वसनीयता बनाए रखने में एक महत्त्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है।
  • प्रवासी गतिशीलता: भारत का विशाल एवं प्रभावशाली प्रवासी समुदाय, एक परिसंपत्ति होने के साथ-साथ इसकी बहु-संरेखण रणनीति को जटिल भी बना सकता है।
    • उदाहरण के लिये, खाड़ी देशों में प्रवासी भारतीयों के हितों (जैसे कतर में हाल ही में भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त सैनिकों की रिहाई) को इज़राइल के साथ भारत के बढ़ते संबंधों के साथ संतुलित करने के लिये सतर्क कूटनीति की आवश्यकता है।
    • इसी प्रकार, कनाडा और यूके जैसे देशों में भारतीय प्रवासियों का प्रभाव (जैसे हाल ही में खालिस्तान आंदोलन का उभार) कभी-कभी कूटनीतिक दबाव पैदा कर सकता है, जो भारत की व्यापक विदेश नीति के उद्देश्यों के साथ टकराव उत्पन्न कर सकता है।
  • गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियाँ: आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और महामारी जैसे गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों से निपटने के लिये भारत को विभिन्न (कभी-कभी प्रतिस्पर्द्धी) अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिये, अमेरिका के साथ आतंकवाद-रोधी सहयोग ईरान या तुर्की जैसे देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने में बाधा उत्पन्न कर सकता है।

अधिक चिरस्थायी कूटनीति के लिये भारत कौन-सी रणनीतियाँ लागू कर सकता है?

  • अनुकूली रणनीतिक रूपरेखाएँ: ऐसे लचीले, परिदृश्य-आधारित रणनीतिक रूपरेखाएँ विकसित की जाएँ जो बदलती वैश्विक गतिशीलता के साथ शीघ्रता से अनुकूलित हो सकें।
    • इसमें एक बहु-स्तरीय सहभागिता मॉडल का निर्माण करना शामिल हो सकता है, जहाँ संबंधों को साझा हितों, मूल्यों और रणनीतिक महत्त्व के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जिससे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों के लिये सूक्ष्म प्रतिक्रियाएँ संभव हो पाती हैं।
  • उन्नत अंतर-मंत्रालयी समन्वय: एक अधिक सुदृढ़ अंतर-मंत्रालयी समन्वय तंत्र, संभवतः एक ‘राजनयिक रणनीति समूह’ की स्थापना की जाए, जो विभिन्न मंत्रालयों (विदेश, रक्षा, वाणिज्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि) के प्रतिनिधियों को एक साथ लाए, ताकि विभिन्न क्षेत्रों में भारत की अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों में सामंजस्य सुनिश्चित किया जा सके।
  • विशिष्ट राजनयिक कैडर: टेक कूटनीति, जलवायु कूटनीति और स्वास्थ्य कूटनीति जैसे उभरते क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विशिष्ट राजनयिक कैडर विकसित किये जाएँ।
    • ये विशेषज्ञ भू-राजनीति के साथ इन क्षेत्रों के जटिल अंतर्संबंधों में आगे बढ़ सकते हैं, जिससे इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अधिक सूचित एवं सूक्ष्म सहभागिता सुनिश्चित हो सकेगी।
  • प्रवासी नेटवर्क का रणनीतिक रूप से लाभ उठाना: राजनयिक प्रयासों में भारतीय प्रवासियों को संलग्न करने के लिये एक संरचित कार्यक्रम का निर्माण किया जाए। 
    • इसमें एक ‘प्रवासी कूटनीति परिषद’ ('Diaspora Diplomacy Council) का गठन करना शामिल हो सकता है, जो भारत के ‘सॉफ्ट पावर’ और आर्थिक कूटनीति को बढ़ाने के लिये प्रवासी भारतीयों की विशेषज्ञता एवं नेटवर्क का लाभ उठाएगी।
  • क्षेत्रीय सहभागिता मंच: क्षेत्रीय संवाद मंचों की शुरुआत करना जो पड़ोसी देशों के विविध हितधारकों को एक साथ लाएँ।
    • ये मंच जलवायु परिवर्तन, जल सुरक्षा या क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण जैसी साझा चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जिससे भारत एक रचनात्मक क्षेत्रीय नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित हो सकेगा।
  • स्तरीकृत आर्थिक भागीदारी मॉडल: एक स्तरीकृत आर्थिक भागीदारी मॉडल विकसित करना जो विभिन्न भागीदारों के साथ आर्थिक एकीकरण के विभिन्न स्तरों की अनुमति दे।
    • इससे संरक्षणवादी आवश्यकताओं को वैश्विक आर्थिक संलग्नता की अनिवार्यता के साथ संतुलित करने में मदद मिल सकती है और व्यापार वार्ता में लचीलापन प्राप्त हो सकता है।
  • सांस्कृतिक कूटनीति 2.0: ‘सांस्कृतिक कूटनीति 2.0’ (Cultural Diplomacy 2.0) पहल का शुभारंभ करना जो पारंपरिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान तक सीमित न रहे।
    • इसमें डिजिटल आर्ट, भारतीय धरोहर के वर्चुअल रियलिटी अनुभव या वैश्विक ई-स्पोर्ट्स टूर्नामेंट जैसे क्षेत्रों में सहयोगात्मक परियोजनाएँ शामिल हो सकती हैं, जो युवा और तकनीक-प्रेमी वैश्विक दर्शकों को आकर्षित कर सकें।
  • सतत् विकास कूटनीति: ‘वैश्विक दक्षिण संवहनीयता गठबंधन’ (Global South Sustainability Alliance) के रूप में एक पहल के माध्यम से भारत को सतत् विकास कूटनीति में अग्रणी देश के रूप में स्थापित किया जाए।
    • यह मंच विकासशील देशों के बीच सतत् विकास के लिये सर्वोत्तम अभ्यासों, प्रौद्योगिकियों और संसाधनों की साझेदारी पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिससे इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में भारत के सॉफ्ट पावर और नेतृत्व को बढ़ावा मिलेगा।
  • ट्रैक 1.5 कूटनीति संवर्द्धन (Track 1.5 Diplomacy Enhancement): थिंक टैंक, शैक्षणिक संस्थानों, खेल एथलीटों, उद्योग विशेषज्ञों आदि के एक नेटवर्क का निर्माण कर ट्रैक 1.5 कूटनीति प्रयासों को सुदृढ़ किया जाए जो अनौपचारिक कूटनीति में संलग्न हो सकें।
    • यह नेटवर्क नए कूटनीतिक विचारों के लिये परीक्षण स्थल तथा संवेदनशील चर्चाओं के लिये ‘बफ़र’ के रूप में कार्य कर सकता है।
    • क्रिकेट कूटनीति भारत के लिये अपने करिश्माई क्रिकेट पेशेवरों को प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त करने के माध्यम से पश्चिमी देशों के साथ संलग्न होने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
  • डिजिटल संप्रभुता पहल: एक ‘डिजिटल संप्रभुता पहल’ ('Digital Sovereignty Initiative) शुरू की जाए जो विकासशील देशों के लिये स्वदेशी डिजिटल अवसंरचना और मानकों को विकसित करने पर केंद्रित है।
    • इससे भारत को प्रौद्योगिकीय विखंडन की चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी, साथ ही वह वैश्विक डिजिटल मानदंडों को आकार देने में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर सकेगा।
  • बहुपक्षीय सुधार नेतृत्व: भारत द्वारा नवोन्मेषी शासन मॉडल का प्रस्ताव देकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार लाने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई जाए।
    • इसमें अधिक समावेशी निर्णयन प्रक्रियाओं की वकालत करना या वैश्विक सहयोग के लिये ऐसे नए ढाँचे का सुझाव देना शामिल हो सकता है जो वर्तमान बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को प्रतिबिंबित करता हो।
  • अंतरिक्ष-आधारित राजनयिक मिशन: भारत द्वारा अंतरिक्ष-आधारित राजनयिक मिशन (Space-Based Diplomatic Missions) या ‘कक्षीय दूतावास’ (orbital embassies) की अवधारणा का प्रस्ताव किया जाए।
  • यह भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक बन सकता है, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये एक अनूठे मंच का निर्माण भी कर सकता है।
  • असममित सहभागिता रणनीति: एक ‘असममित सहभागिता रणनीति’ (Asymmetric Engagement Strategy) का विकास किया जाए जो भारत को अपने मूल हितों से समझौता किये बिना विभिन्न भागीदारों के साथ विभिन्न स्तरों और प्रकारों की सहभागिता बनाए रखने की अनुमति दे।
    • इसमें प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय भागीदार के साथ विभिन्न क्षेत्रों (आर्थिक, रणनीतिक, सांस्कृतिक) में सहभागिता स्तरों का एक परिष्कृत आव्यूह या ‘मैट्रिक्स’ का निर्माण करना शामिल हो सकता है।

अभ्यास प्रश्न: बहुपक्षवाद के प्रति भारत के दृष्टिकोण का मूल्यांकन कीजिये। यह रणनीति वैश्विक भू-राजनीति में भारत की स्थिति और भूमिका को किस प्रकार प्रभावित करती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: निम्नलिखित में से किस एक समूह के चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंध, अन्य राष्ट्रों के हितों का सम्मान किये बिना स्वयं के राष्ट्रीय हित की प्रोन्नति की नीति द्वारा संचालित होते हैं। इससे राष्ट्रों के बीच द्वंद्व और तनाव उत्पन्न होते हैं। ऐसे तनावों के समाधान में नैतिक विचार किस प्रकार सहायक हो सकते हैं? विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. ‘उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है’। विस्तार से समझाइये। (2019)


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