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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-फ्राँस: ग्रह के लिये साझेदारी

  • 08 Jul 2024
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 03/07/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “France: India’s steady partner in green growth” लेख पर आधारित है। इसमें फ्राँसीसी विकास एजेंसी (AFD) समूह के लिये एक भागीदार के रूप में भारत के दीर्घकालिक महत्त्व पर बल दिया गया है। AFD ने वर्ष 2008 से भारत में लगभग 100 परियोजनाओं के लिये 4 बिलियन यूरो से अधिक देने का वचन दिया है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत और फ्राँस, फ्राँसीसी विकास एजेंसी (AFD), राफेल जेट, P75 कार्यक्रम, सुपरकंप्यूटिंग, ब्लू इकोनॉमी, अभ्यास शक्ति, अभ्यास वरुण, अभ्यास गरुड़, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, पेरिस समझौता, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, हिंद महासागर क्षेत्र, इंडो-पैसिफिक त्रिपक्षीय विकास सहयोग निधि। 

मेन्स के लिये:

भारत-फ्राँस संबंधों में महत्त्व, चुनौतियाँ और सहयोग के क्षेत्र

हाल ही में पेरिस में आयोजित एक कार्यक्रम में भारत और फ्राँस ने ‘इंडिया-फ्राँस होराइज़न 2047 रोडमैप’ हेतु ‘ग्रह के लिये साझेदारी’ (Partnership for the Planet) को महत्त्वपूर्ण बताया तथा जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर परस्पर बढ़ते सहयोग को उजागर किया।

यह साझेदारी हिंद-प्रशांत जैव विविधता पहलों को शामिल करने और नवाचार पर बल देने के लिये विकसित हो रही है। फ्राँस, फ्राँसीसी विकास एजेंसी (French Development Agency- AFD) के माध्यम से प्रत्यास्थता एवं समतामूलकता की दिशा में भारत की यात्रा के समर्थन के लिये प्रतिबद्ध है, जहाँ वर्ष 2026 में आगामी भारत-फ्राँस नवाचार वर्ष के दौरान सहयोगी नवाचारों को प्रदर्शित करने की योजना बनाई गई है।

इसके अलावा, यह पर्यावरण संरक्षण के साथ सामाजिक-आर्थिक विकास को सुसंगत बनाने, वैश्विक असमानताओं को दूर करने और संवहनीय समाधान की दिशा में सहयोग एवं विकास को आगे बढ़ाने की संयुक्त प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है ।

भारत-फ्राँस संबंध: ऐतिहासिक विकास क्रम

  • स्वतंत्रता के बाद की अवधि (1947-1991):
    • भारतीय स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही राजनयिक संबंध स्थापित हो गए थे।
    • सैन्य सहयोग का आरंभ 1960 के दशक में हुआ जब फ्राँसीसी विमान और हेलीकॉप्टर (ओरागन, मिस्टेयर, एलीज़, अलौएट, जगुआर) भारत के हवाई बेड़े में शामिल हुए।
    • जब अमेरिका ने तारापुर विद्युत संयंत्र से अपना हाथ पीछे खींच लिया, तब फ्राँस ने ही उसे परमाणु ईंधन की आपूर्ति कर महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र में आरंभिक सहयोग में श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल की स्थापना में फ्राँस की सहायता तथा 1970 के दशक में फ्राँस द्वारा सेंटॉर एवं वाइकिंग रॉकेट प्रौद्योगिकी प्रदान करना शामिल था।
    • इन सहयोगों के बावजूद, शीत युद्ध संबंधी समीकरणों ने भारत-फ्राँस द्विपक्षीय संबंधों के पूर्ण विकास को सीमित कर रखा था।
  • शीत युद्धोत्तर युग (1991-वर्तमान):
    • भारत और फ्राँस ने वर्ष 1998 में रणनीतिक साझेदारी को औपचारिक रूप प्रदान दिया, जिससे द्विपक्षीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण विस्तार हुआ।
    • यह साझेदारी तीन प्रमुख स्तंभों पर केंद्रित है:
      • रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग
      • अंतरिक्ष सहयोग
      • असैन्य परमाणु सहयोग

इंडिया-फ्राँस होराइज़न 2047 रोडमैप’ से संबंधित प्रमुख क्षेत्र और पहलें

  • ग्रह एवं वैश्विक मुद्दों के लिये साझेदारी (Partnership for the Planet and Global Issues):
    • पर्यावरण: दोनों देश सतत् शहरी विकास, अपशिष्ट प्रबंधन और जल संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने वाली पहलों के माध्यम से पर्यावरणीय संवहनीयता को बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
      • AFD द्वारा समर्थित पुणे मेट्रो प्रणाली और चंडीगढ़ की जल आपूर्ति प्रणाली जैसी परियोजनाएँ सतत् शहरी अवसंरचना के विकास पर बल देती हैं।
      • अंतर्राष्ट्रीय समझौतों, पुनर्चक्रण कार्यक्रमों और नवोन्मेषी समाधानों के माध्यम से प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने की प्रतिबद्धता।
    • जलवायु परिवर्तन: स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये समर्थन, डी-कार्बोनाइज़्ड हाइड्रोजन उत्पादन और संवहनीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण पहल। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना, ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना और ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना शामिल है। 
      • भारत और फ्राँस द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिये सौर-समृद्ध देशों में सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देता है।
      • वर्ष 2008 से अब तक फ्राँस ने भारत में जलवायु परियोजनाओं में AFD जैसी एजेंसियों के माध्यम से 4 बिलियन यूरो से अधिक का निवेश किया है, जो नवीकरणीय ऊर्जा से लेकर जलवायु-प्रत्यास्थी अवसंरचना तक विभिन्न पहलों का समर्थन करता है।
    • जैव विविधता: दोनों देश जैव विविधता हॉटस्पॉट और लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिये संरक्षण प्रयासों में संलग्न हैं। असम में एक सींग वाले गैंडों के संरक्षण जैसी परियोजनाएँ, जिन्हें AFD द्वारा समर्थन दिया गया है, भारत की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करने के लिये संयुक्त प्रयासों को प्रदर्शित करती हैं।
      • वित्तीय प्रतिबद्धता के मामले में भारत AFD का शीर्ष भागीदार है। इसके पोर्टफोलियो का 63% भाग लैंगिक समानता को संबोधित करने के लिये समर्पित है।
  • लोगों के लिये साझेदारी (Partnership for People):
    • छात्रों का प्रवास: वर्ष 2030 तक फ्राँस में 30,000 भारतीय छात्रों को लाने का लक्ष्य तथा भारतीय स्नातकोत्तर डिग्री धारकों के लिये 5-वर्षीय अल्प-प्रवास वीज़ा जारी करना।
    • राजनयिक और वाणिज्य दूतावास नेटवर्क: मासेय (Marseille) और हैदराबाद में नए वाणिज्य दूतावास खोलना।
    • संस्कृति: नई दिल्ली में एक नए राष्ट्रीय संग्रहालय स्थापित करने और दृश्य-श्रव्य सामग्री के आदान-प्रदान पर सहयोग।
    • अनुसंधान: इंडो-फ्रेंच सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च के लिये वित्तपोषण में वृद्धि।
  • सुरक्षा और संप्रभुता के लिये साझेदारी:
    • हिंद-प्रशांत: भारत और फ्राँस ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिये संयुक्त रणनीति तैयार की है, जिसमें समुद्री सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • रक्षा: रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने नौसेना के लिये 26 राफेल विमानों के अधिग्रहण को मंज़ूरी दे दी है। मूल्य निर्धारण और अनुबंध प्रक्रियाओं पर बातचीत सक्रिय रूप से आगे बढ़ रही है, हालाँकि इसकी आधिकारिक घोषणा में अभी कुछ समय लग सकता है।
      • इसके अतिरिक्त, DAC ने तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन पनडुब्बियों (जिन्हें कलवरी श्रेणी के नाम से जाना जाता है) के निर्माण को भी मंज़ूरी प्रदान की है।
    • अंतरिक्ष: इसरो (ISRO) और फ्राँसीसी अंतरिक्ष एजेंसी (CNES) विभिन्न संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रम चला रहे हैं तथा उपग्रह प्रक्षेपण में सहयोग कर रहे हैं।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के जीसैट-24 संचार उपग्रह को फ्रेंच गुयाना के कौरौ से एरियन-5 के माध्यम से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।
    • असैन्य परमाणु ऊर्जा: भारत और फ्राँस के बीच असैन्य परमाणु सहयोग पर वर्ष 2008 में एक समझौता संपन्न हुआ। फ्राँस जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना के निर्माण से संलग्न है। 

भारत-फ्राँस संबंधों का क्या महत्त्व है?

  • हिंद-प्रशांत सुरक्षा: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने और इस क्षेत्र में चीनी आक्रामकता का मुक़ाबला करने में भारत के लिये फ्राँस का समर्थन महत्त्वपूर्ण है। हिंद महासागर सहयोग के लिये भारत-फ्राँस संयुक्त रणनीतिक विजन (2018) से इसकी पुष्टि होती है।
  • पारस्परिक रणनीतिक स्वायत्तता: यह संबंध अद्वितीय रूप से संतुलित है, जो फ्राँस में एंग्लो-सैक्सन प्रभाव और भारत में पश्चिम-विरोधी भावनाओं से मुक्त है। इसके अलावा, मई 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद जब भारत ने स्वयं को परमाणु-हथियार संपन्न देश घोषित किया तो फ्राँस भारत के साथ बातचीत शुरू करने वाला पहला प्रमुख देश था।
  • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में प्रवेश के लिये समर्थन: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) जैसी प्रमुख संस्थाओं में शामिल होने की भारत की आकांक्षाओं के लिये फ्राँस का समर्थन महत्त्वपूर्ण है।
  • वैश्विक शक्ति संतुलन: भारत-फ्राँस साझेदारी यूरोप में रूसी प्रभाव और एशिया में चीनी प्रभाव को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा वैश्विक स्थिरता और संतुलित विश्व व्यवस्था में योगदान देती है।
  • रक्षा सहयोग: प्रबल रणनीतिक साझेदारी एवं सहयोग के माध्यम से फ्राँस भारत के रक्षा क्षेत्र के लिये व्यापक महत्त्व रखता है। फ्राँस से राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के साथ ही फ्राँस और भारत संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास में सहयोग में संलग्न हैं।
  • भविष्योन्मुखी सहयोग: होराइज़न 2047 समझौता द्विपक्षीय सहयोग के लिये 25 वर्ष का रोडमैप प्रस्तुत करता है। यह सुपरकंप्यूटिंग, AI और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी उन्नत तकनीकों में सहयोग पर बल देता है , जो भारत के भविष्य के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

भारत-फ्राँस संबंधों से संबंधित विभिन्न चुनौतियाँ:

  • आर्थिक सीमाएँ:
    • मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का अभाव गहरे आर्थिक संबंधों में बाधा उत्पन्न करता है तथा भारत-यूरोपीय संघ व्यापक व्यापार एवं निवेश समझौते (India-EU Broad-based Trade and Investment Agreement- BTIA) पर प्रगति रुक गई है, जिससे आगे और आर्थिक एकीकरण की संभावना सीमित हो गई है।
  • व्यापार और बौद्धिक संपदा संबंधी मुद्दे:
    • व्यापार असंतुलन फ्राँस के पक्ष में झुका हुआ है, जहाँ भारत को अधिक निर्यात किया जाता है। इसके अलावा, फ्राँस ने भारत में फ्राँसीसी व्यवसायों के लिये बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रायः अपर्याप्त संरक्षण के बारे में चिंता व्यक्त की है।
      • कुछ वार्तागत परियोजनाओं को परिचालन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे जैतापुर परमाणु परियोजना।
  • भिन्न भू-राजनीतिक रुख:
    • वैश्विक मुद्दों पर दोनों देश के भिन्न दृष्टिकोण प्रकट रहे हैं। उदाहरण के लिये, फ्राँस ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की मुखर आलोचना की है, जबकि भारत ने अधिक तटस्थ रुख बनाए रखा है।

भारत-फ्राँस संबंधों में गति लाने के लिये कौन-से कदम उठाए जाने चाहिये?

  • आर्थिक सहभागिता:
    • फ्राँस को यूरोपीय संघ के भीतर एक प्रमुख समर्थक के रूप में शामिल करते हुए भारत-यूरोपीय संघ BTIA पर वार्ता में गति लाई जाए। एक अंतरिम उपाय के रूप में द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी समझौते की संभावना तलाश की जाए। इंडो-फ्रेंच सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एडवांस्ड रिसर्च (CEFIPRA) जैसे मॉडल का विस्तार अन्य क्षेत्रों में भी किया जा सकता है।
      • जापान-भारत व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है।
  • व्यापार और बौद्धिक संपदा पर वार्ता:
    • IP संरक्षण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर एक संयुक्त कार्य समूह की स्थापना की जाए। क्षेत्र-विशिष्ट व्यापार सुविधा तंत्रों का निर्माण किया जाए।
      • तकनीकी और वित्तीय बाधाओं को दूर करने के लिये निजी क्षेत्र विशेषज्ञता को संलग्न किया जाए। राफेल जेट सौदे की सफलता से पुष्टि होती है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति बाधाओं को दूर कर सकती है।
  • भू-राजनीतिक स्थितियों का प्रबंधन:
    • वैश्विक मुद्दों पर दृष्टिकोणों को संरेखित करने तथा हिंद-प्रशांत सुरक्षा जैसे पारस्परिक हित के क्षेत्रों पर सहयोग करने के लिये रणनीतिक वार्ताओं को आगे बढ़ाया जाए।
      • भारत-फ्राँस-ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय पहल समन्वित हितों की क्षमता को प्रदर्शित करती है।
  • उभरते वैश्विक तनावों को संबोधित करना:
    • खुफिया जानकारी साझेदारी और संयुक्त रणनीतिक आकलन को बेहतर बनाया जाए तथा संयुक्त संकट प्रतिक्रिया तंत्र का विकास किया जाए। क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) ढाँचे का विस्तार कर कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में फ्राँस को भी शामिल किया जा सकता है।
      • मानवीय सहायता और संघर्ष समाधान पहल पर सहयोग किया जाए।
    • चीन की आक्रामकता के विरुद्ध हिंद महासागर में नौसैनिक सहयोग को सुदृढ़ किया जाए। उदाहरण के लिये, ‘वरुण’ जैसे संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों का विस्तार कर इसमें अन्य क्षेत्रीय साझेदारों को भी शामिल किया जाए।

निष्कर्ष;

वैश्विक गतिशीलता में बदलाव के साथ, भारत-फ्राँस साझेदारी एक संतुलित और स्थिर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये तैयार है। अपनी पूरक शक्तियों का लाभ उठाकर और मौजूदा चुनौतियों का समाधान कर, भारत और फ्राँस अपनी साझेदारी को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकते हैं, जिससे न केवल इन दोनों देशों को लाभ होगा बल्कि वैश्विक शांति, सुरक्षा और समृद्धि में भी योगदान प्राप्त होगा।

अभ्यास प्रश्न: महत्त्व और चुनौतियाँ क्या हैं ? अपने संबंधों को और बेहतर बनाने के लिये आवश्यक उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) को वर्ष 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रारंभ किया गया था। 
  2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश सम्मिलित हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (a)


मेन्स: 

प्रश्न. I2U2 (भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका) समूहन वैश्विक राजनीति में भारत की स्थिति को किस प्रकार रूपांतरित करेगा? (2022)

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