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भारतीय अर्थव्यवस्था

ब्लू इकोनॉमी का महत्त्व

  • 09 Jun 2021
  • 9 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 07/06/2021 को 'द हिंदुस्तान टाइम्स'में प्रकाशित लेख “After the pandemic, the centrality of the Blue Economy in recovery” पर आधारित है। इसमें विकास के ब्लू इकोनॉमी मॉडल के महत्त्व पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

महामारी के बाद प्रमुख समस्याओं में से एक रोज़गार एवं आजीविका की चुनौती है। इसका समाधान समुद्री संसाधनों के उचित उपयोग से किया जा सकता है। ब्लू इकोनॉमी में आर्थिक गतिविधियों और रोज़गार सृजन की अपार संभावनाएॅं है।

भारत की समुद्री स्थिति अद्वितीय है। इसकी 7,517 किलोमीटर लंबी तटरेखा एवं दो मिलियन वर्ग किलोमीटर  का अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone -EEZ) है। भारत के पास विशाल समुद्री संसाधन है। अतः आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, बेरोज़गारी, खाद्य सुरक्षा और गरीबी से निपटने के लिये एक उपयुक्त अवसर है।

ब्लू इकोनॉमी में निवेश भारत के आर्थिक विकास, जलवायु एवं पर्यावरण की दृष्टि से भी फायदेमंद रहेगा।

ब्लू इकोनॉमी बनाम महासागरीय अर्थव्यवस्था

  • 'ब्लू इकोनॉमी' एक उभरती हुई अवधारणा है जो हमारे महासागर या जलीय संसाधनों के बेहतर प्रबंधन को प्रोत्साहित करती है।
  • ग्रीन इकोनॉमी के समान, ब्लू इकोनॉमी मॉडल का उद्देश्य मानव कल्याण और सामाजिक समानता में सुधार करना है साथ ही, पर्यावरणीय जोखिमों और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन को कम करना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदायों का मानना है कि ब्लू इकोनॉमी में तीन बिंदु शामिल हैं:
    • वैश्विक जल संकट से जूझ रही अर्थव्यवस्था
    • अभिनव विकास संबंधित अर्थव्यवस्था
    • समुद्री अर्थव्यवस्था का विकास
  • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि ब्लू इकोनॉमी समुद्री संसाधनों को केवल आर्थिक विकास के लिये एक तंत्र के रूप में देखने से परे है।
  • महासागरीय अर्थव्यवस्था मॉडल में बड़े पैमाने पर औद्योगिक राष्ट्रों ने बिना भविष्य में परिस्थिति तंत्र, मानव समुदाय के स्वास्थ्य एवं इन संसाधनों की उत्पादकता पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन किये महासागरीय एवं समुद्री संसाधनों का दोहन किया है।
    • उदाहरण के लिये शिपिंग, वाणिज्यिक मछली पकड़ने और तेल, गैस, खनिज और खनन उद्योगों के माध्यम से।
  • ब्लू इकोनॉमी केवल बाज़ार में नए अवसर नहीं उत्पन्न करता है बल्कि यह अधिक अमूर्त समुद्री संसाधनों के संरक्षण और विकास का भी प्रावधान करता है।
    • उदाहरण के लिये जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को कम करने में कमज़ोर राज्यों की मदद करने के लिये जीवन के पारंपरिक तरीके, कार्बन पृथक्करण इत्यादि का प्रयोग करना।
  • यह एक समावेशी मॉडल प्रदान करता है जिसमें तटीय राज्य, जिनके पास अपने समृद्ध समुद्री संसाधनों के प्रबंधन करने की क्षमता का अभाव होता है, उन संसाधनों का लाभ सभी तक पहुॅंचाना शुरू कर सकते हैं।

महत्त्व

  • निवेश पर उच्च लाभ: नॉर्वे के प्रधानमंत्री की सह-अध्यक्षता में एक स्थायी महासागरीय अर्थव्यवस्था के लिये उच्च-स्तरीय पैनल द्वारा किये गए नए शोध से पता चलता है कि प्रमुख महासागरीय गतिविधियों में निवेश किये जाने वाले प्रत्येक डॉलर के बदले पाॅंच गुना या उससे अधिक मूल्य प्राप्त होता है।
    • भारत सरकार द्वारा जारी न्यू इंडिया विज़न में ब्लू इकोनॉमी को 10 प्रमुख आयामों में से एक बताया गया है।
  • सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग : इससे संयुक्त राष्ट्र के सभी सतत् विकास लक्ष्यों, विशेष रूप से एसडीजी 14 'जल के नीचे जीवन' (लाइफ Below Water) को पूरा करने में सहायता मिलेगी।
  • सतत् ऊर्जा: अक्षय ऊर्जा की बढ़ती मांग का समर्थन करते हुए, अपतटीय क्षेत्रों में अपतटीय पवन, लहरों, ज्वारीय धाराओं सहित महासागरीय धाराओं और तापीय ऊर्जा के लिये व्यापक संभावनाएॅं हैं।
  • भारत के लिये महत्त्व: नौ तटीय राज्यों, 12 प्रमुख और 200 छोटे बंदरगाहों में फैली 7,500 किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा के साथ, व्यापार का 95% समुद्री मार्ग के जरिए होता है और इसके सकल घरेलू उत्पाद में 4% (अनुमानित) का योगदान करती है। 
    • ब्लू इकोनॉमी के सभी क्षेत्रों में एक बड़े कार्यबल को शामिल करने की क्षमता है और पिछले कई दशकों से कम से कम मछली पकड़ने, जलीय कृषि, मछली प्रसंस्करण, समुद्री पर्यटन, शिपिंग और बंदरगाह गतिविधियों जैसे क्षेत्रों में ऐसा दृष्टव्य है।
    • अब अपतटीय पवन, समुद्री जीव विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी, और जहाज निर्माण एवं जहाज तोड़ने जैसी अन्य गतिविधियाॅं भी बड़े पैमाने पर बढ़ रहा है।

आगे की राह

  • ब्लू इकोनॉमी को प्रोत्साहित करने हेतु पैकेज़ प्रदान करना: COVID-19 जैसे संकट से निपटने के लिये ब्लू इकोनॉमी हेतु एक सतत् और न्यायपूर्ण प्रोत्साहन पैकेज़ प्रदान की जानी चाहिये। जिससे वैश्विक स्तर पर एवं भारत के लिये भी स्थायी समुद्री तंत्र का निर्माण हो। इसमें निम्नलिखित पाॅंच प्रोत्साहन कार्रवाइयों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये:
    1. तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण हेतु निवेश, 
    2. तटीय समुदायों के लिये सीवेज और अपशिष्ट जल अवसंरचना, 
    3. टिकाऊ समुद्री जलीय कृषि,
    4. शून्य-उत्सर्जन समुद्री परिवहन, और  
    5. महासागर-आधारित नवीकरणीय ऊर्जा के लिये प्रोत्साहन।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत-नॉर्वे एकीकृत महासागर प्रबंधन पहल (India-Norway Integrated Ocean Management Initiative) एक अच्छा उदाहरण है, जिसके तहत शोधकर्ता और अधिकारी समुद्री स्थानिक योजना(Marine Spatial Planning) के माध्यम से समुद्री संसाधनों के शासन में सुधार के लिये सहयोग कर रहे हैं।
  • ब्लू इकोनॉमी में शिक्षा: विश्वविद्यालयों और इंजीनियरिंग / तकनीकी संस्थानों में ब्लू इकोनॉमी के पारंपरिक और उभरते दोनों क्षेत्रों से जुड़े शैक्षिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिये। इससे संबंधित प्रशिक्षकों को बहाल किया जाना चाहिये।
  • गांधीवादी दृष्टिकोण: भारत को विकास, रोज़गार सृजन, समानता और पर्यावरण की सुरक्षा के व्यापक लक्ष्यों को पूरा करने के साथ आर्थिक लाभों को संतुलित करने के लिये गांधीवादी दृष्टिकोण को अपनाना चाहिये।

निष्कर्ष

आर्थिक और पर्यावरणीय संघर्ष के प्रति संतुलन को बनाए रखने में महासागर की भूमिका है। शिपिंग डी-कार्बोनाइजेशन, सी फूड (Sea Food) का उत्पादन और महासागर आधारित नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश से बेहतर स्वास्थ्य परिणाम, समृद्ध जैव विविधता, अधिक सुरक्षित नौकरियाॅं और आने वाली पीढ़ियों के लिये एक सुरक्षित ग्रह उपलब्ध होता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के लिये ब्लू इकोनॉमी का अर्थ है महासागरीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित कई ऐसे आर्थिक अवसर, जो सतत्् आजीविका हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चर्चा कीजिये।

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