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एडिटोरियल

  • 10 Sep, 2024
  • 27 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का दूरसंचार क्षेत्र

यह एडिटोरियल 07/09/2024 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Telecom sector must get a fair share” लेख पर आधारित है। इसमें बड़े ट्रैफ़िक-जनरेटिंग प्लेटफॉर्म की ओर से दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को उचित-हिस्सेदारी योगदान पर जारी बहस की चर्चा की गई है। लेख में इस बात पर बल दिया गया है कि दूरसंचार अवसंरचना से लाभ कमाने वाले LTGs को सस्ती एवं संवहनीय डिजिटल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिये नेटवर्क लागत में योगदान देना चाहिये।

मेन्स के लिये:

भारत का दूरसंचार क्षेत्र, दूरसंचार सेवा प्रदाता, डिजिटल इंडिया कार्यक्रम, भारतनेट, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, समायोजित सकल राजस्व, ओटीटी प्लेटफॉर्म, 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी, प्रधान मंत्री वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (पीएम-वाणी), भारत नेट परियोजना, वन नेशन फुल मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी,

मेन्स के लिये:

भारत में दूरसंचार क्षेत्र के प्रमुख विकास चालक, भारत में दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ।

भारत का दूरसंचार क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जो नेटवर्क अवसंरचना लागत और डेटा ट्रैफ़िक की विस्फोटक वृद्धि को संतुलित करने की चुनौती से जूझ रहा है। यह वृद्धि मुख्य रूप से बड़े प्रौद्योगिकी दिग्गजों (Large Technology Giants- LTGs) द्वारा संचालित है, जिनकी सेवाएँ नेटवर्क बैंडविड्थ के एक बड़े भाग का उपभोग करती हैं। दूरसंचार क्षेत्र का तर्क है कि जबकि ये LTGs भारतीय उपयोगकर्त्ताओं से पर्याप्त लाभ कमाते हैं, वे उस अंतर्निहित अवसंरचना में बहुत कम योगदान देते हैं जो उनकी सेवाओं को संभव बनाता है।

दूरसंचार सेवा प्रदाता (Telecom Service Providers- TSPs) एक निष्पक्ष-साझा तंत्र की वकालत कर रहे हैं, जहाँ LTGs अपने डेटा उपयोग के अनुपात में नेटवर्क लागत में योगदान दें। इस प्रस्ताव ने वैश्विक स्तर पर गति पकड़ी है, जहाँ दक्षिण कोरिया जैसे देशों में कंटेंट प्रदाताओं और नेटवर्क ऑपरेटरों के बीच समझौते संपन्न हो रहे हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका इस तरह के मुद्दों को संबोधित करने के लिये विधान लाने पर विचार कर रहा है। चूँकि भारत सभी के लिये सस्ती डिजिटल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखता है, उसे अपने दूरसंचार क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधारों की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। इन सुधारों का ध्यान एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण पर होना चाहिये, जहाँ LTGs सहित सभी खिलाड़ी डिजिटल अवसंरचना के विकास एवं संवहनीयता में उचित रूप से योगदान दें, जिससे अंततः भारतीय अर्थव्यवस्था और उसके नागरिकों को लाभ प्राप्त हो।

भारत में दूरसंचार क्षेत्र के प्रमुख विकास चालक कौन-से हैं?

  • ‘डिजिटल इंडिया’ पहल: सरकार का डिजिटल इंडिया कार्यक्रम दूरसंचार विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक रहा है।
    • वर्ष 2015 में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज में परिणत करना है। इस पहल के कारण शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाओं की मांग में वृद्धि हुई है।
    • उदाहरण के लिये, भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या मार्च 2023 में 88.1 करोड़ से बढ़कर मार्च 2024 तक 95.4 करोड़ हो गई।
    • भारतनेट (BharatNet) जैसी परियोजनाओं ने, जिसका लक्ष्य सभी 250,000 ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ना है, ग्रामीण कनेक्टिविटी को और बढ़ावा दिया है, जिससे पहले सेवा-वंचित रहे क्षेत्रों में दूरसंचार का विस्तार हुआ है।
  • सस्ते/वहनीय स्मार्टफोन का प्रसार: निम्न-लागत स्मार्टफोन की उपलब्धता ने दूरसंचार क्षेत्र की वृद्धि को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया है।
    • भारत के स्मार्टफोन बाज़ार में वर्ष 2023 में 146 मिलियन स्मार्टफोन की बिक्री हुई। यह वृद्धि बजट-अनुकूल उपकरणों के कारण हुई है।
    • गूगल के ‘एंड्रॉयड वन’ कार्यक्रम और स्थानीय स्तर पर निर्मित उपकरणों के लिये सरकार के प्रोत्साहन जैसी पहलों ने इस प्रवृत्ति को और तेज़ कर दिया है, जिससे दूरसंचार सेवाओं के लिये, विशेष रूप से टियर 2 और टियर 3 शहरों में, ग्राहक आधार का विस्तार हुआ है।
  • 5G क्रांति: भारत में 5G सेवाओं की शुरुआत, जो अक्तूबर 2022 में शुरू हुई, दूरसंचार क्षेत्र के लिये एक ‘गेम-चेंजर’ है।
    • भारत विश्व में सबसे तेज़ 5G रोलआउट का साक्षी बना है, जहाँ नवीनतम दूरसंचार प्रौद्योगिकी दिसंबर 2023 तक 738 ज़िलों और लगभग 100 मिलियन लोगों तक पहुँच गई थी।
    • प्रौद्योगिकी से IoT, स्मार्ट सिटीज़ और औद्योगिक स्वचालन जैसे क्षेत्रों में नए उपयोग संभव होने की उम्मीद है।
      • वैश्विक दूरसंचार उद्योग निकाय GSMA को उम्मीद है कि भारत वर्ष में 2025 तक 920 मिलियन विशिष्ट मोबाइल उपभोक्ता होंगे, जिनमें 88 मिलियन 5G कनेक्शन से संपन्न होंगे, जिससे दूरसंचार कंपनियों के लिये राजस्व के नए स्रोत सृजित होंगे।
  • डिजिटल भुगतान में वृद्धि: डिजिटल भुगतान में वृद्धि दूरसंचार विकास का प्रमुख चालक बन गई है।
    • यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) लेनदेन वित्त वर्ष 2017-18 में 92 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 8,375 करोड़ तक पहुँच गया।
    • डिजिटल लेनदेन की ओर इस बदलाव ने मोबाइल इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ा दी है, जिससे डेटा उपभोग बढ़ गया है।
      • दूरसंचार कंपनियों ने वित्तीय सेवाओं के लिये विशेषीकृत डेटा प्लान पेश कर और फिनटेक कंपनियों के साथ साझेदारी कर इस प्रवृत्ति का लाभ उठाया है, जिससे राजस्व के नए स्रोत सृजित हुए हैं और ग्राहकों के साथ उनकी संलग्नता बढ़ी है।
  • ओवर-द-टॉप (OTT) कंटेंट में प्रबल वृद्धि: भारत में OTT प्लेटफॉर्मों की विस्फोटक वृद्धि ने डेटा उपभोग को व्यापक रूप से बढ़ा दिया है।
    • भारतीय OTT स्ट्रीमिंग उद्योग अगले दशक में 22-25% की CAGR से वृद्धि करते हुए 13-15 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
    • इस वृद्धि के कारण वीडियो स्ट्रीमिंग जैसी उच्च-बैंडविड्थ गतिविधियों में भी उछाल आया है।
      • उदाहरण के लिये, हॉटस्टार ने IPL 2023 सीज़न के दौरान 50.5 करोड़ व्यूज़ की सूचना दी।
    • दूरसंचार परिचालकों ने OTT सदस्यता के साथ बंडल सेवाएँ प्रदान करते हुए प्रतिक्रिया दी है, जिससे ग्राहक अधिग्रहण और डेटा उपयोग दोनों में वृद्धि हुई है। इससे कंटेंट प्रदाताओं और दूरसंचार कंपनियों के बीच एक सहजीवी संबंध का निर्माण हुआ है।
  • दूरस्थ कार्य और शिक्षा: कोविड-19 महामारी ने दूरस्थ कार्य और ऑनलाइन शिक्षा के अंगीकरण को गति प्रदान की है, जो दूरसंचार क्षेत्र के लिये अप्रत्याशित वृद्धि का चालक बन गया है।
    • इस बदलाव के कारण पूरे भारत में डेटा उपभोग में 30-40% की वृद्धि हुई। दूरसंचार कंपनियों ने नेटवर्क क्षमताओं को उन्नत कर और ‘वर्क-फ्रॉम-होम’ की विशेष योजनाएँ पेश कर इसमें सहयोग किया।
    • यह प्रवृत्ति महामारी के बाद भी जारी रही है और कई कंपनियों ने हाइब्रिड कार्य मॉडल को अपनाया है, जिससे विश्वसनीय एवं हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी की निरंतर उच्च मांग सुनिश्चित हुई है।

भारत में दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वित्तीय तनाव: ICRA के अनुसार, दूरसंचार उद्योग का कुल ऋण 31 मार्च, 2023 तक 6.4 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया।
    • यह वित्तीय तनाव उच्च स्पेक्ट्रम लागत, टैरिफ युद्धों का कारण बनने वाली तीव्र प्रतिस्पर्धा और अवसंरचना में वृहत निवेश से उत्पन्न होता है।
      • उदाहरण के लिये, वोडाफोन आइडिया पर सरकार का 2.1 लाख करोड़ रुपए का ऋण बकाया है।
    • इस परिदृश्य के कारण पूंजीगत व्यय में कमी आई है, 5G के क्रियान्वयन में देरी हुई है और चरम मामलों में बाज़ार से बाहर निकलने की स्थिति उत्पन्न हुई है।
  • समायोजित सकल राजस्व (AGR) विवाद: AGR (Adjusted Gross Revenue) का मुद्दा भारतीय दूरसंचार ऑपरेटरों के लिये लगातार समस्याजनक बना रहा है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2019 के निर्णय (जिसने AGR की परिभाषा को व्यापक बनाते हुए इसमें गैर-दूरसंचार राजस्व को भी शामिल किया) के परिणामस्वरूप दूरसंचार कंपनियों पर 1.69 लाख करोड़ रुपए की संचयी देनदारी का निर्माण हुआ।
    • हालाँकि सरकार ने ऋण स्थगन और बकाया राशि को इक्विटी में परिवर्तित करने का विकल्प प्रदान किया है, फिर भी यह मुद्दा बैलेंस शीट पर दबाव बना रहा है।
      • उदाहरण के लिये, प्रौद्योगिकी विभाग ने एयरटेल के पूर्व के AGR बकाये की गणना 43,980 करोड़ रुपए की है, जिसमें से केवल 18,004 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है।
    • यह सतत वित्तीय बोझ इस क्षेत्र की नई प्रौद्योगिकियों और अवसंरचना में निवेश करने की क्षमता को बाधित करता है।
  • अवसंरचना में अंतराल: व्यापक प्रगति के बावजूद, भारत की दूरसंचार अवसंरचना अभी भी शहरी-ग्रामीण अंतराल से ग्रस्त है।
    • मार्च 2023 तक, शहरी दूरसंचार घनत्व 133.81% था जबकि ग्रामीण दूरसंचार घनत्व केवल 57.71% तक पहुँच सका था।
    • ग्रामीण क्षेत्रों से संबंद्ध चुनौतियों में दुर्गम भूभाग, निरंतर बिजली आपूर्ति का अभाव और निवेश पर कम प्रतिफल शामिल हैं।
  • स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण: स्पेक्ट्रम के उच्च मूल्य दूरसंचार ऑपरेटरों के लिये एक प्रमुख बाधा है।
    • वर्ष 2022 की 5G स्पेक्ट्रम नीलामी में, जबकि सरकार ने 1.5 लाख करोड़ रुपए अर्जित किये, ऑपरेटरों का तर्क है कि ये उच्च लागतें नेटवर्क विस्तार और गुणवत्ता सुधार में बाधा उत्पन्न करती हैं।
    • भारत में स्पेक्ट्रम के मूल्य विश्व में सबसे अधिक है। यह मुद्दा न केवल दूरसंचार कंपनियों की वित्तीय सेहत को प्रभावित करता है, बल्कि संभावित रूप से 5G जैसी नई प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण की गति को भी धीमा कर देता है, जिससे भारत की डिजिटल परिवर्तन यात्रा प्रभावित होती है।
  • सेवा की गुणवत्ता: सुधारों के बावजूद, भारत के दूरसंचार क्षेत्र में सेवा की गुणवत्ता एक सतत समस्या बनी हुई है।
    • TRAI के हाल के आँकडों से पता चलता है कि प्रमुख ऑपरेटर कई सर्किलों में कॉल ड्रॉप दर और कनेक्शन सफलता दर जैसे क्षेत्रों में बेंचमार्क प्राप्त करने में विफल रहे।
    • खराब सेवा गुणवत्ता के कारण ग्राहक असंतुष्ट होते हैं और ऑपरेटर के राजस्व पर असर पड़ता है।
  • साइबर सुरक्षा संबंधी खतरे: जैसे-जैसे भारत का डिजिटल क्षेत्र विस्तृत हो रहा है, साइबर सुरक्षा दूरसंचार क्षेत्र के लिये एक गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है।
    • CERT-In की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में 13.91 लाख से अधिक साइबर सुरक्षा संबंधी घटनाएँ हुईं।
    • डिजिटल अवसंरचना की रीढ़ होने के कारण दूरसंचार नेटवर्क इन साइबर हमलों के मुख्य लक्ष्य हैं। 5G प्रौद्योगिकी का प्रवेश आशाजनक तो है लेकिन ‘अटैक सर्फेस’ (attack surface) या संभावित भेद्यताओं को बढ़ाती भी है।
    • ऐसी घटनाओं से न केवल वित्तीय हानि होती है, बल्कि ग्राहकों का भरोसा भी घटता है।
  • नियामक चुनौतियाँ: भारत में दूरसंचार क्षेत्र जटिल और कभी-कभी अप्रत्याशित नियामक वातावरण का सामना करता है।
    • बार-बार नीतिगत परिवर्तन, विविध शुल्क (लाइसेंस शुल्क, स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क, आदि) जैसे मुद्दे परिचालन संबंधी अनिश्चितताएँ पैदा करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, ओवर-द-टॉप (OTT) सेवाओं को परिभाषित करने और पारंपरिक दूरसंचार सेवाओं के संबंध में उनका विनियमन करने का लंबे समय से लंबित मुद्दा अभी भी अनसुलझा है।
    • वर्ष 2023 में यह बहस बढ़ी थी जब दूरसंचार ऑपरेटरों ने ‘समान सेवा, समान नियम’ के सिद्धांत पर बल दिया था, जहाँ उनका तर्क था कि OTT खिलाड़ी समकक्ष नियामक दायित्वों के बिना दूरसंचार अवसंरचना से लाभान्वित होते हैं।
      • यह नियामक अस्पष्टता क्षेत्र में दीर्घकालिक योजना और निवेश निर्णयों को प्रभावित करती है।

दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें: 

भारत के दूरसंचार क्षेत्र में सुधार के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण को तर्कसंगत बनाना: दूरसंचार कंपनियों पर वित्तीय बोझ कम करने के लिये अधिक संतुलित स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण मॉडल को लागू किया जाए।
    • उदाहरण के लिये, स्पेक्ट्रम शुल्क के लिये अग्रिम भुगतान के बजाय राजस्व-साझाकरण मॉडल अपनाया जाए।
    • सुदीर्घ भुगतान अवधि लागू किये जाएँ, जैसे वर्तमान 10-16 वर्षों के स्थान पर 20 वर्ष।
    • इससे अवसंरचना में निवेश के लिये पूंजी मुक्त हो सकती है। उदाहरण के लिये, यदि इसे लागू किया जाता है तो इससे ऑपरेटरों के लिये स्पेक्ट्रम लागत का बोझ 30-40% तक कम हो सकता है, जिससे वे नेटवर्क विस्तार और गुणवत्ता सुधार में अधिक निवेश कर सकेंगे।
  • अवसंरचना साझेदारी पहल: दूरसंचार कंपनियों के बीच अवसंरचना की साझेदारी के लिये प्रबल नीतिगत प्रोत्साहन लागू किये जाएँ।
    • सक्रिय अवसंरचना साझाकरण में संलग्न कंपनियों के लिये कर छूट प्रणाली लागू की जाए।
    • आसान सहयोग निर्माण के लिये साझा करने योग्य परिसंपत्तियों का एक केंद्रीकृत डेटाबेस सृजित किया जाए।
    • उदाहरण के लिये, टावर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन (TAIPA) का अनुमान है कि अवसंरचना साझेदारी से पूंजीगत व्यय में 60% तक की कमी आ सकती है। यह दृष्टिकोण 5G रोलआउट को, विशेष रूप से अर्द्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में, व्यापक रूप से गति प्रदान कर सकता है।
  • ग्रामीण संपर्क निधि: सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि (Universal Service Obligation Fund) के समान, लेकिन अधिक कुशल उपयोग के साथ एक समर्पित ग्रामीण संपर्क निधि (Rural Connectivity Fund) की स्थापना की जाए।
    • दूरसंचार कंपनियों से प्राप्त AGR का एक निश्चित प्रतिशत विशेष रूप से ग्रामीण अवसंरचना विकास के लिये आवंटित किया जाए।
    • एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल लागू किया जाए, जहाँ सरकार भूमि और ‘राइट-ऑफ-वे’ प्रदान करे, जबकि दूरसंचार कंपनियाँ आधारभूत संरचना की स्थापना करें।
  • नवाचार के लिये ‘रेगुलरिटी सैंडबॉक्स’: दूरसंचार कंपनियों और प्रौद्योगिकी कंपनियों को विनियामक लचीलेपन के साथ नवोन्मेषी सेवाओं एवं व्यापार मॉडल का परीक्षण करने की अनुमति देने के लिये एक ‘रेगुलरिटी सैंडबॉक्स’ का सृजन किया जाए।
    • इस सैंडबॉक्स की देखरेख के लिये TRAI, दूरसंचार विभाग और उद्योग प्रतिनिधियों की एक समिति गठित की जाए।
    • नेटवर्क स्लाइसिंग (network slicing), एज कंप्यूटिंग (edge computing) और IoT अनुप्रयोगों जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये तत्काल विनियामक बाधाओं के बिना परीक्षण की अनुमति प्रदान की जाए।
    • उदाहरण के लिये, इससे विनिर्माण या कृषि में स्थानीयकृत 5G अनुप्रयोगों के परीक्षण में सुविधा प्राप्त हो सकती है, जिससे दूरसंचार कंपनियों के लिये नए राजस्व स्रोत और विभिन्न क्षेत्रों के लिये नवोन्मेषी समाधान उपलब्ध हो सकते हैं।
  • कौशल विकास पहल: प्रतिभा की कमी को दूर करने के लिये दूरसंचार उद्योग के सहयोग से एक व्यापक कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किया जाए।
    • IoT और AI में विशेष पाठ्यक्रम शुरू करने के लिये विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी का निर्माण किया जाए।
    • कौशल विकास में निवेश करने वाली कंपनियों के लिये कर प्रोत्साहन की शुरुआत करें। यह पहल मौजूदा अंतराल को दूर करने और क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।
  • हरित दूरसंचार नीति: इस क्षेत्र में संवहनीय अभ्यासों को बढ़ावा देने के लिये एक व्यापक हरित दूरसंचार नीति (Green Telecom Policy) लागू की जाए।
    • दूरसंचार अवसंरचना में नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाया जाए, जहाँ किसी लक्षित वर्ष तक टावर ऊर्जा उपभोग का एक महत्त्वपूर्ण प्रतिशत नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया जाए।
    • नेटवर्क में ऊर्जा-कुशल उपकरणों को अनिवार्य बनाया जाए। उदाहरण के लिये, एयरटेल ने वर्ष 2031 तक अपने कार्बन फुटप्रिंट को 50% तक कम करने की प्रतिबद्धता जताई है।
    • क्षेत्र-व्यापी प्रोत्साहन से दीर्घकाल में दूरसंचार कंपनियों को महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय लाभ प्राप्त हो सकता है और परिचालन लागत में बचत हो सकती है।
  • सरलीकृत लाइसेंसिंग व्यवस्था: वर्तमान बहु-लाइसेंस प्रणाली को एकीकृत लाइसेंस ढाँचे के रूप में सुव्यवस्थित किया जाए।
    • सभी दूरसंचार-संबंधी अनुमोदनों के लिये ऑनलाइन एकल-खिड़की मंज़ूरी प्रणाली लागू की जाए।
    • इससे दूरसंचार कंपनियों की परिचालन लागत में संभावित रूप से 15-20% की कमी आ सकती है और इस क्षेत्र में अधिक विदेशी निवेश आकर्षित हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये, सरलीकृत लाइसेंसिंग के साथ सिंगापुर जैसे देशों में दूरसंचार क्षेत्र में अधिक FDI देखा गया है।
  • डेटा स्थानीयकरण का समर्थन: दूरसंचार क्षेत्र में डेटा स्थानीयकरण के लिये एक सहायक ढाँचा विकसित किया जाए।
    • दूरसंचार कंपनियों को कर प्रोत्साहन प्रदान किया जाए। टियर-2 और टियर-3 शहरों में डेटा सेंटर का नेटवर्क विकसित करने के लिये IT मंत्रालय के साथ सहयोग स्थापित किया जाए।
    • इस पहल से न केवल डेटा सुरक्षा बढ़ेगी बल्कि दूरसंचार कंपनियों के लिये राजस्व के नए स्रोत भी सृजित होंगे ।
    • उदाहरण के लिये, डेटा सेंटरों के लिये जियो की माइक्रोसॉफ्ट के साथ साझेदारी अन्य दूरसंचार कंपनियों के लिये अनुकरणीय मॉडल हो सकती है, जिससे संभावित रूप से अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न हो सकता है।

निष्कर्ष:

भारत का दूरसंचार क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जहाँ वित्तीय चुनौतियों, विनियामक जटिलताओं और अवसंरचनात्मक कमियों को दूर करने के लिये व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण को तर्कसंगत बनाकर, अवसंरचना के साझाकरण को बढ़ावा देकर और रेगुलरिटी सैंडबॉक्स के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देकर, यह क्षेत्र अपनी पूर्ण क्षमता को साकार कर सकता है। दूरसंचार अधिनियम 2023 जैसी सरकारी पहलें हरित अभ्यासों और ग्रामीण कनेक्टिविटी पर ध्यान देने के साथ-साथ सतत विकास सुनिश्चित करेंगी।

अभ्यास प्रश्न: दूरसंचार क्षेत्र भारत के डिजिटल विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सतत विकास और वहनीय सेवाएँ सुनिश्चित करने में दूरसंचार उद्योग के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत सरकार की "डिजिटल इंडिया" योजना का लक्ष्य/उद्देश्य है/हैं? (वर्ष 2018)

  1. चीन जैसी भारत की अपनी इंटरनेट कंपनियों का गठन करना। 
  2. हमारी राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं के भीतर अपने बिग डेटा केंद्र बनाने के लिये बिग डेटा एकत्र करने वाले विदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों को प्रोत्साहित करने के लिए एक नीतिगत ढाँचा स्थापित करें।
  3. हमारे कई गाँवों को इंटरनेट से जोड़ना और हमारे कई स्कूलों, सार्वजनिक स्थानों और प्रमुख पर्यटन केंद्रों में वाई-फाई लाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 3
 (C) केवल 2 और 3
 (D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (B)


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