एडिटोरियल (05 Nov, 2024)



भारत के वित्तीय प्रहरी संस्थानों में सुधार

यह संपादकीय 04/11/2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित " Needed: A road map to regulate the regulators " पर आधारित है। लेख भारत के वित्तीय नियामकों की बढ़ती जाँच को उजागर करता है और नियामक स्वायत्तता तथा जवाबदेही के मध्य संतुलन की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। निगरानी तंत्र को सशक्त बनाना अब आवश्यक हो गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के वित्तीय नियामक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, भारतीय रिज़र्व बैंक , भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण, पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण, सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली, पेटीएम पेमेंट्स बैंक, डिजिटल उधार, केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा, टी + 0 निपटान चक्र के लिये सेबी का प्रयास। 

मेन्स के लिये:

भारत में प्रमुख वित्तीय नियामक निकाय, भारत के वित्तीय नियामकों में वर्तमान जवाबदेही संबंधी चिंताएँ। 

भारत के वित्तीय विनियामकों को अभूतपूर्व जाँच का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) अडानी मामले से निपटने के कारण चर्चा में है और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) पारंपरिक बैंकों की तुलना में फिनटेक फिनटेक फर्मों के प्रति अपने दृष्टिकोण के लिये, पारंपरिक बैंकों की तुलना में, आलोचना का सामना कर रहा है। जैसे-जैसे भारत के वित्तीय बाज़ारों में दाँव बढ़ते हैं, विनियामक स्वायत्तता और जवाबदेही के बीच संतुलन अत्यंत महत्वपूर्ण होता जा रहा है। इतिहास से स्पष्ट होता है कि प्रभावी विनियमन के लिये स्वतंत्रता और निगरानी दोनों की आवश्यकता होती है। अब भारत के लिये अपने विनियामक जवाबदेही तंत्र को मज़बूत करने का समय आ गया है। 

भारत में प्रमुख वित्तीय नियामक निकाय कौन-से हैं? 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI): वर्ष 1934 में स्थापित, यह प्राथमिक बैंकिंग और मौद्रिक प्राधिकरण के रूप में व्यापक नियामक शक्तियों के साथ भारत के केंद्रीय बैंक की भूमिका निभाता है।
    • RBI मुख्य रूप से सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, NBFC और विदेशी मुद्रा बाज़ारों को नियंत्रित करता है। 
  • भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी): वर्ष 1992 में प्रतिभूति बाज़ारों के नियमन और निवेशकों के हितों की रक्षा के लिये इसकी स्थापना की गई। 
    • स्टॉक एक्सचेंजों, म्यूचुअल फंडों और अन्य बाज़ार मध्यस्थों की देखरेख करता है।
      • सेबी दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंजों (NSI और BSE) को नियंत्रित करता है।
  • भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI): बीमा क्षेत्र को विनियमित और विकसित करने के लिये वर्ष 1999 में इसकी स्थापना की गई। 
    • जीवन बीमा कंपनियों, सामान्य बीमा कंपनियों और विशेष बीमा कंपनियों का पर्यवेक्षण करता है। 
    • वर्ष 2022 तक भारत की बीमा प्रीमियम मात्रा 131 बिलियन अमेरिकी डॉलर ( जीवन – 77%, गैर-जीवन – 23%) है।
  • पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA): पेंशन उत्पादों को विनियमित करने और वृद्धावस्था आय सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2003 में स्थापित किया गया। 

भारत में बाज़ार स्थिरता और नियामक निगरानी सुनिश्चित करने में RBI और सेबी की क्या भूमिका है?

  • प्रणालीगत जोखिम की रोकथाम: भारत के वित्तीय नियामक ढाँचे की आधारशिला, बाज़ार स्थिरता बनाए रखने और प्रणालीगत जोखिमों को रोकने के लिये RBI और सेबी के समन्वित प्रयासों के दोहरे स्तंभों पर निर्भर करती है। 
    • परिष्कृत निगरानी प्रणालियों के माध्यम से, दोनों नियामक अपने-अपने क्षेत्रों की निरंतर निगरानी करते हैं। RBI तनाव परीक्षण और पूंजी पर्याप्तता मानदंडों के माध्यम से बैंकिंग क्षेत्र के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि सेबी सर्किट ब्रेकर और वास्तविक समय की निगरानी के ज़रिए बाज़ार की अखंडता की देखरेख करता है।
    • यह बात एफएंडओ से संबंधित सेबी के हालिया निर्देश में विशेष रूप से प्रदर्शित हुई, जिसके अनुसार, ऑप्शन खरीदारों को प्रीमियम का भुगतान कारोबारी दिन के अंत में करने के बजाय अग्रिम भुगतान करना होगा। 
      • यह परिवर्तन डिफ़ॉल्ट जोखिम को कम करता है तथा ऑर्डर दिये जाने पर पूर्ण भुगतान प्रतिबद्धता सुनिश्चित करके बाज़ार अखंडता को मज़बूत करता है।
    • इसके अतिरिक्त, RBI के सख्त रुख ने बैंकिंग क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखी है और बैंकों के लिये सकल गैर-निष्पादित आस्तियाँ (GNPA) वित्त वर्ष 25 में एक दशक के निचले स्तर 2.5% तक गिरने का अनुमान है, जबकि वैश्विक अस्थिरता के बावजूद व्यवस्थित बाज़ार सुनिश्चित किया गया है। 
  • उपभोक्ता संरक्षण और पारदर्शिता: उपभोक्ता संरक्षण दोनों नियामकों के लिये एक केंद्रीय अधिदेश है, जिसे व्यापक ढाँचे के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है, जो खुदरा निवेशकों और बैंकिंग ग्राहकों की सुरक्षा करता है। 
    • उदाहरण के लिये, सेबी ने नियम 51ए के तहत ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्मों को सहायक कंपनियों के माध्यम से असूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों और अनियमित उत्पादों को प्रस्तुत करने से प्रतिबंधित कर दिया है। 
      • इसका उद्देश्य गैर-सूचीबद्ध और संभावित रूप से उच्च जोखिम वाले उत्पादों में निवेश को सीमित करके निवेशकों की सुरक्षा करना है।
    • इसके अतिरिक्त, RBI ने तेज़ी से बढ़ते डिजिटल ऋण परिदृश्य को विनियमित करने के लिये सितंबर 2022 में व्यापक दिशा-निर्देश प्रस्तुत किये।
    • इसके अतिरिक्त, नियामकों का उपभोक्ता-केंद्रित दृष्टिकोण विशेष रूप से उच्च-प्रोफाइल मामलों में स्पष्ट रूप से देखने को मिला है। इसमें RBI द्वारा पेटीएम पेमेंट्स बैंक के  के खिलाफ अनुपालन उल्लंघनों के लिये की गई निर्णायक कार्रवाई और निवेशक स्पष्टता को बढ़ाने के लिए सेबी द्वारा म्यूचुअल फंड के वर्गीकरण और युक्तिकरण को शामिल किया जा सकता है।
  • प्रौद्योगिकी अपनाना और नवाचार: भारत के वित्तीय क्षेत्र का आधुनिकीकरण, सुरक्षा मानकों को बनाए रखते हुए प्रौद्योगिकी अपनाने के प्रति दोनों नियामकों के प्रगतिशील दृष्टिकोण से प्रेरित है। 
  • कॉर्पोरेट प्रशासन और अनुपालन: दोनों नियामकों ने कड़े निरीक्षण तंत्र स्थापित किये हैं जो विनियमित संस्थाओं के लिये एक समग्र प्रशासनिक ढाँचा प्रदान करते हैं। 

भारत के वित्तीय नियामकों के समक्ष वर्तमान में जवाबदेही संबंधी क्या चिंताएँ हैं? 

  • निर्णय लेने में पारदर्शिता: विनियामक परामर्श और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सार्वजनिक प्रकटीकरण की कमी जवाबदेही से संबंधित महत्त्वपूर्ण चिंताओं को उत्पन्न करती है।
    • उदाहरण के लिये, RBI ने क्रिप्टोकरेंसी निवेश के खिलाफ बार-बार चेतावनी दी है और इसे वित्तीय स्थिरता के लिये खतरा बताया है, फिर भी इसके दीर्घकालिक नियामक दृष्टिकोण में पारदर्शिता सीमित बनी हुई है। 
    • सेबी को अपर्याप्त हितधारक सहभागिता के लिये भी आलोचना का सामना करना पड़ा है, जो विशेष रूप से हाल ही में अदानी-हिंडरबर्ग जाँच के संदर्भ में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। 
  • हितों के टकराव का प्रबंधन: नियामक निकायों के भीतर हितों के टकराव के प्रबंधन के लिये मौजूदा ढाँचे में चिंताजनक कमियाँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं।
    • सेबी अध्यक्ष के हितों के टकराव के हालिया आरोप प्रणालीगत कमज़ोरियों को उजागर करते हैं। 
    • निजी क्षेत्र में भूमिकाएँ निभाने वाले वरिष्ठ विनियामक अधिकारियों के लिये कूलिंग-ऑफ अवधि का अभाव संभावित समझौते की स्थिति उत्पन्न करता है। 
  • संसदीय निगरानी का अभाव: नियामक निकायों के सीमित संसदीय पर्यवेक्षण के कारण जवाबदेही का अभाव उत्पन्न हो गया है। 
    • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की 2009 की सिफारिशों के बावजूद, नियमित संसदीय समिति की समीक्षा असंगत और अपर्याप्त बनी हुई है। 
    • लोक लेखा समिति ने हाल ही में संसदीय अधिनियमों द्वारा स्थापित नियामक निकायों के प्रदर्शन की समीक्षा करने का निर्णय लिया है। 
      • हालाँकि सतत् निगरानी और जवाबदेही में महत्त्वपूर्ण अंतराल बने हुए हैं।
  • कर्मचारी जवाबदेही और आंतरिक शासन: नियामक निकायों के भीतर आंतरिक जवाबदेही तंत्र में महत्त्वपूर्ण कमज़ोरियाँ दिखाई देती हैं, विशेष रूप से कर्मचारी प्रदर्शन मूल्यांकन और निर्णय लेने की प्रक्रिया में। 
    • सितंबर 2024 में सेबी मुख्यालय पर कर्मचारियों का विरोध प्रदर्शन और अक्तूबर 2024 में RBI की मौद्रिक नीति समिति के भीतर कथित असहमति शासन संबंधी चुनौतियों को उजागर करती है। 
  • प्रवर्तन कार्रवाइयों में विलंब: उल्लंघन का पता लगाने और प्रवर्तन कार्रवाई के बीच काफी समय का अंतराल नियामक प्रभावशीलता से समझौता करता है। 
    • डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म के लिये विशिष्ट विनियमनों को RBI द्वारा विलंबित रूप से प्रस्तुत किये जाने से एक विनियामक शून्य उत्पन्न हो गया, जिसके कारण अनियमित ऋण ऐप्स द्वारा शोषणकारी व्यवहार को बढ़ावा मिला।
    • इसके अतिरिक्त, सेबी की एल्गोरिथम ट्रेडिंग के संबंध में सख्त नियमों को लागू करने में विलंब के लिये भी आलोचना की गई है, जिसके कारण बाज़ार में कई बार अस्थिरता उत्पन्न हुई है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप: कुछ मामलों में, नियामक निकायों को ठोस नियामक सिद्धांतों के बजाय राजनीतिक उद्देश्यों के अनुरूप निर्णय लेने के लिये सरकार के दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
    • राजनीतिक हस्तक्षेप नियामक निकायों की स्वतंत्रता और निष्पक्ष निर्णय लेने की उनकी क्षमता को कमज़ोर कर सकता है। 
    • हाल के वर्षों में RBI पर सरकार को लाभांश भुगतान बढ़ाने का दबाव रहा है, विशेष रूप से बजटीय लक्ष्यों को पूरा करने और राजकोषीय घाटे का प्रबंधन करने के लिये।

फिनटेक का उदय भारत में पारंपरिक नियामक दृष्टिकोण को कैसे प्रभावित करता है? 

  • डेटा स्थानीयकरण और गोपनीयता संबंधी चुनौतियाँ: भारत की डेटा स्थानीयकरण आवश्यकताओं ने फिनटेक परिचालनों को पूर्ण पुनर्गठन के लिये बाध्य कर दिया है, RBI ने अनिवार्य किया है कि सभी वित्तीय डेटा को विशेष रूप से भारत में संगृहित किया जाना चाहिये। 
    • इस नीति ने अंतर्राष्ट्रीय फिनटेक कंपनियों के लिये महत्त्वपूर्ण परिचालन संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न कर दी हैं, जबकि घरेलू डेटा सेंटर ने अवसंरचना विकास को संवर्द्धित किया है।
    • केवल फोनपे ने डेटा स्थानीयकरण को बढ़ावा देने के लिये भारत भर में डेटा केंद्रों सहित अवसंरचना का विस्तार करने के लिये 2,800 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है, जो अवसंरचना की आवश्यकताओं पर नियामक प्रभाव के बड़े पैमाने पर प्रकाश डालता है।
  • डिजिटल भुगतान प्रणाली एकीकरण: UPI पारिस्थितिकी प्रणाली ने अंतर-संचालन और निपटान प्रणालियों के लिये नए नियामक ढाँचे को आवश्यक बना दिया है, जिससे पारंपरिक बैंकिंग विनियमन को संस्था-केंद्रित दृष्टिकोण  से अग्रगेषित करने में सहायता मिली है।
    • UPI प्रणाली अब मासिक आधार पर 10 बिलियन से अधिक विनिमय को संधारित करती है, जिसके लिये वास्तविक समय निरीक्षण प्रणाली की आवश्यकता होती है, जो पहले पारंपरिक बैंकिंग में अनावश्यक था।
  • वैकल्पिक ऋण मॉडल: बाय नाऊ पे लेटर (BNPL) और सूक्ष्म ऋण प्लेटफार्मों के उदय ने पारंपरिक ऋण विनियमों को चुनौती दी है, जिससे अल्पकालिक, छोटे-टिकट ऋण  के लिये नए ढाँचे के निर्माण के लिये बाध्य होना पड़ा है ।
    • भारतीय BNPL बाज़ार विस्फोटक वृद्धि का अनुभव कर रहा है, जिसके वर्ष 2025 तक 100 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।

वित्तीय नियामकों के उत्तरदायित्व में वृद्धि के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है? 

  • उन्नत संसदीय निगरानी ढाँचा: कार्य निष्पादन समीक्षा के लिये समर्पित संसदीय समितियों के  समक्ष नियामक प्रमुखों की त्रैमासिक अनिवार्य उपस्थिति स्थापित करना।
    • विद्यमान संसदीय समितियों के भीतर विशेषीकृत उप-समितियों का निर्माण करना चाहिये जो विशेष रूप से वित्तीय विनियमन निरीक्षण पर ध्यान केंद्रित करें। 
    • समिति की सिफारिशों और विनियामक प्रतिक्रियाओं का सार्वजनिक प्रकटीकरण आवश्यक है।
  • मानकीकृत सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया: संरचित प्रतिपुष्टि तंत्र के साथ सभी प्रमुख विनियामक परिवर्तनों के लिये न्यूनतम सार्वजनिक परामर्श अवधि अनिवार्य करना। 
    • परामर्श की स्थिति और हितधारकों के प्रविष्टि का वास्तविक समय पर पदांकन करने के लिये ऑनलाइन पोर्टल का निर्माण किया जाना चाहिये।
    • विनियामकों को हितधारकों के सुझावों को स्वीकार/अस्वीकार करने के लिये विस्तृत तर्क प्रकाशित करने की आवश्यकता होगी। 
    • सिंगापुर में इसी प्रकार की प्रणालियों ने विनियामक निर्णयों में अधिक सार्वजनिक भागीदारी प्राप्त की।
  • स्वतंत्र विनियामक समीक्षा बोर्ड: विनियामक प्रदर्शन का आकलन करने के लिये वित्तीय विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और उद्योग के प्रमुख अभिकर्त्ताओं से संयोजित स्वायत्त बोर्ड स्थापित करना।
    • दक्षता, पारदर्शिता और प्रभावशीलता को सम्मिलित करने वाले पूर्व-निर्धारित मैट्रिक्स के आधार पर त्रैमासिक निष्पादन लेखापरीक्षण का कार्यान्वयन किया जाना चाहिये। 
    • सभी प्रमुख निर्णयों के लिये विनियामक प्रभाव आकलन की आवश्यकता होगी।
  • आंतरिक शासन संरचना का सुदृढ़ीकरण: प्रत्येक तीन वर्ष में नियामक निकायों में प्रमुख पदों का अनिवार्य चक्रण व्यवस्था का कार्यान्वयन करना। 
    • संसदीय समितियों को सीधे रिपोर्ट करने वाले आंतरिक लोकपाल कार्यालय का निर्माण करना चाहिये
    • विनियामक कर्मचारियों के लिये गुप्तचर सुरक्षा प्रणाली को स्थापित किया जाना चाहिये। सभी वरिष्ठ-स्तरीय नियुक्तियों और उनकी अर्हता मानदंडों के विषय में अनिवार्य सार्वजनिक प्रकटीकरण की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी-सक्षम पारदर्शिता मंच: नियामक कार्यों, निर्णयों और प्रवर्तन उपायों के वास्तविक समय प्रकटीकरण के लिये एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म का विकास किया जा सकता है।
    • अपरिवर्तनीय ऑडिट ट्रेल्स के लिये सभी विनियामक निर्णयों की ब्लॉकचेन-आधारित रिकॉर्डिंग को कार्यान्वित करना।
    • मासिक आधार पर अद्यतन किये जाने वाले विनियामक प्रदर्शन मीट्रिक्स को प्रदर्शित करने वाले सार्वजनिक डैशबोर्ड का निर्माण किया जाना चाहिये। 
  • व्यावसायिक विकास और जवाबदेही ढाँचा: सभी स्तरों पर नियामक कर्मचारियों के लिये अनिवार्य व्यावसायिक प्रमाणन आवश्यकताओं को स्थापित किया जाना चाहिये। 
    • फिनटेक, साइबर सुरक्षा और एआई विनियमन जैसे उभरते क्षेत्रों में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिये। 
    • विनियामक प्रभावशीलता से संबंधित स्पष्ट प्रदर्शन मीट्रिक को स्थापित किया जा सकता है। शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिये प्रतिस्पर्द्धी मुआवज़ा संरचना को कार्यान्वित किया जा सकता है। 
  • समन्वित प्रवर्तन प्रणाली: अतिव्यापी अधिकार क्षेत्रों के लिये विनियामकों में संयुक्त प्रवर्तन दल को स्थापित किया जा सकता है। 
    • सभी नियामक निकायों के लिये प्रवर्तन कार्रवाइयों हेतु एक केंद्रीकृत डाटाबेस तैयार किया जा सकता है। 
    • विनियामकों में मानकीकृत दंड और प्रवर्तन प्रक्रियाओं को कार्यान्वित किया जा सकता है

निष्कर्ष: 

भारत के वित्तीय नियामक बाज़ार में स्थिरता हेतु और निवेशकों के हितों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। यद्यपि, उनकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये, उनके उत्तरदायित्व प्रणाली को सुदृढ़ करना अनिवार्य है। पारदर्शिता, हित संघर्ष प्रबंधन, संसदीय निगरानी, ​​आंतरिक शासन और प्रवर्तन को संवर्द्धित कर भारत अपने वित्तीय नियामक ढाँचे की विश्वसनीयता को बढ़ा सकता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने और निवेशकों के हितों के संरक्षण में भारत में वित्तीय नियामक निकायों की प्रभावशीलता का परीक्षण कीजिये। उनकी पारदर्शिता और उत्तरदायित्व में वृद्धि के लिये कौन से सुधार आवश्यक हैं?

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. मौद्रिक नीति समिति (मोनेटरी पॉलिसी कमिटी / MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह RBI की मानक (बेंचमार्क) ब्याज दरों का निर्धारण करती है।
  2. यह एक 12-सदस्यीय निकाय है जिसमें RBI का गवर्नर शामिल है तथा प्रत्येक वर्ष इसका पुनर्गठन किया जाता है।
  3. यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न 2. यदि RBI प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा?

  1. वैधानिक तरलता अनुपात को घटाकर उसे अनुकूलित करना
  2. सीमान्त स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना
  3. बैंक दर को घटाना तथा रेपो दर को भी घटाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न 3. पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों को, जो स्वयं को सीधे पंजीकृत कराए बिना भारतीय स्टॉक बाज़ार का हिस्सा बनना चाहते हैं, निम्नलिखित में से क्या जारी किया जाता है? (2019)

(a) जमा प्रमाण-पत्र
(b) वाणिज्यिक पत्र
(c) वचन-पत्र (प्रॉमिसरी नोट)
(d) सहभागिता-पत्र (पार्टिसिपेटरी नोट)

उत्तर: (d)


मेन्स:

Q. वित्तीय संस्थाओं व बीमा कंपनियों द्वारा की गई उत्पाद विविधता के फलस्वरूप उत्पादों व सेवाओं में उत्पन्न परस्पर व्यापन ने सेबी (SEBI) व इर्डा (IRDA) नामक दोनों नियामक अभिकरणों के विलय के प्रकरण को प्रबल बनाया है। औचित्य सिद्ध कीजिये। (2013)