शासन व्यवस्था
खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन- ऑयल पाम, न्यूनतम समर्थन मूल्य, केंद्र प्रायोजित योजना मेन्स के लिये:खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन तथा पाम ऑयल बागानों को लगाने से पर्यावरणीय हानि |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने पाँच वर्ष की अवधि में 11,000 करोड़ रुपए से अधिक के निवेश के साथ ‘खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन’- ऑयल पाम (NMEO-OP) की घोषणा की।
- हालाँकि कुछ पर्यावरणविदों ने पाम ऑयल के बागानों को लगाने के विनाशकारी प्रभाव पर चिंता जताई है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- NMEO-OP एक नई केंद्र प्रायोजित योजना है। वर्ष 2025-26 तक पाम ऑयल के लिये अतिरिक्त 6.5 लाख हेक्टेयर का प्रस्ताव है।
- इसमें 2025-26 तक पाम ऑयल की खेती के क्षेत्र को 10 लाख हेक्टेयर और 2029-30 तक 16.7 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना शामिल होगा।
- पाम ऑयल किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी और उन्हें मूल्य एवं व्यवहार्यता सूत्र के तहत पारिश्रमिक मिलेगा।
- व्यवहार्यता सूत्र एक न्यूनतम समर्थन मूल्य है और सरकार इसे अब कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) मूल्य के 14.3% पर तय करेगी।
- अंतत: यह बढ़कर 15.3% हो जाएगा।
- योजना का एक अन्य फोकस क्षेत्र इनपुट/हस्तक्षेपों के समर्थन में पर्याप्त वृद्धि करना है।
- पुराने बागानों को उनके कायाकल्प के लिये विशेष सहायता दी जाएगी।
- विशेष ध्यान:
- इस योजना का विशेष ध्यान भारत के उत्तर-पूर्वी (NE) राज्यों तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इन क्षेत्रों की अनुकूल मौसमी स्थिति के कारण होगा।
- इस उद्योग को पूर्वोत्तर और अंडमान क्षेत्रों में आकर्षित करने के लिये उच्च क्षमता की आनुपातिक वृद्धि के साथ 5 करोड़ रुपए प्रति घंटा (मिलियन टन प्रति हेक्टेयर) का प्रावधान किया जाएगा।
- उद्देश्य:
- घरेलू खाद्य तेल की कीमतों का दोहन करना जो कि महँगे पाम ऑयल के आयात से तय होती हैं और खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनना।
- वर्ष 2025-26 तक पाम ऑयल का घरेलू उत्पादन तीन गुना बढ़ाकर 11 लाख मीट्रिक टन करना।
- योजना का महत्त्व:
- किसानों की आय में वृद्धि:
- इससे आयात पर निर्भरता कम करने और किसानों को बाज़ार में नकदी संबंधी मदद करने से पाम ऑयल के उत्पादन को प्रोत्साहित करने की उम्मीद है।
- पैदावार में वृद्धि और आयात में कमी:
- भारत विश्व में वनस्पति तेल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसमें से पाम ऑयल का आयात उसके कुल वनस्पति तेल आयात का लगभग 55% है।
- यह इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम ऑयल, ब्राज़ील और अर्जेंटीना से सोया तेल तथा मुख्य रूप से रूस व यूक्रेन से सूरजमुखी तेल का आयात करता है।
- भारत में 94.1% पाम ऑयल का उपयोग खाद्य उत्पादों में किया जाता है, विशेष रूप से खाना पकाने के लिये। यह पाम ऑयल को भारत की खाद्य तेल अर्थव्यवस्था हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण बनाता है।
- भारत विश्व में वनस्पति तेल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसमें से पाम ऑयल का आयात उसके कुल वनस्पति तेल आयात का लगभग 55% है।
- किसानों की आय में वृद्धि:
- चिंताएँ
- जनजातीय समुदायों की भूमि पर प्रभाव:
- ऑयल पॉम एक लंबी अवधि के साथ पानी की खपत वाली, मोनोकल्चर फसल है, अतः इसकी लंबी अवधि छोटे किसानों के लिये अनुपयुक्त होती है और ऑयल पॉम के लिये भूमि उत्पादकता तिलहन की तुलना में अधिक होती है, जो ऑयल पॉम की खेती के लिये अधिक भूमि प्रयोग करने पर एक सवाल उत्पन्न करती है।
- दक्षिण-पूर्व एशिया में ऑयल पॉम/ताड़ के तेल के वृक्षारोपण ने वर्षावनों के विशाल भूभाग की जगह ले ली है।
- यह जनजातीय/आदिवासियों को भूमि के सामुदायिक स्वामित्व से जुड़ी उनकी पहचान से अलग कर सकता है और "सामाजिक ताने-बाने को अस्त-व्यस्त कर सकता है"।
- ऑयल पॉम एक लंबी अवधि के साथ पानी की खपत वाली, मोनोकल्चर फसल है, अतः इसकी लंबी अवधि छोटे किसानों के लिये अनुपयुक्त होती है और ऑयल पॉम के लिये भूमि उत्पादकता तिलहन की तुलना में अधिक होती है, जो ऑयल पॉम की खेती के लिये अधिक भूमि प्रयोग करने पर एक सवाल उत्पन्न करती है।
- वन्यजीवों के लिये खतरा:
- "जैव विविधता हॉटस्पॉट और पारिस्थितिक रूप से नाजुक" क्षेत्र इसके मुख्य फोकस क्षेत्र हैं, ऑयल पॉम के बागान लगाने से वन क्षेत्र में कमी होगी जिससे लुप्तप्राय वन्यजीवों (Endangered Wildlife) के आवास नष्ट होने का खतरा उत्पन्न होगा।
- आक्रामक प्रजाति:
- पाम/ताड़ एक आक्रामक प्रजाति है जो पूर्वोत्तर भारत का प्राकृतिक वन उत्पाद नहीं है और यदि इसे गैर-वन क्षेत्रों में भी उगाया जाता है तो जैव विविधता के साथ-साथ मिट्टी की स्थिति पर इसके प्रभाव का विश्लेषण किया जाना चाहिये।
- आक्रामक प्रजातियांँ देशज प्रजातियांँ नहीं हैं जो देशज/स्थानिक जैव विविधता के लिये गंभीर खतरा बनकर एक नए पारिस्थितिकी तंत्र में फैलती हैं और उसे नुकसान पहुँचा सकती हैं। वे स्थानीय प्रजातियों और वन्यजीवों की वृद्धि में बाधा उत्पन्न करती हैं।
- पाम/ताड़ एक आक्रामक प्रजाति है जो पूर्वोत्तर भारत का प्राकृतिक वन उत्पाद नहीं है और यदि इसे गैर-वन क्षेत्रों में भी उगाया जाता है तो जैव विविधता के साथ-साथ मिट्टी की स्थिति पर इसके प्रभाव का विश्लेषण किया जाना चाहिये।
- स्वास्थ्य से संबंधित चिंताएँ:
- पाम ऑयल के प्रति पेड़ को प्रतिदिन 300 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, साथ ही उन क्षेत्रों में उच्च कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता होती है जहांँ यह एक देशी फसल नहीं है, जिससे उपभोक्ता स्वास्थ्य संबंधी चिंताएंँ भी पैदा होती हैं।
- किसानों को उचित मूल्य की प्राप्ति नहीं:
- पाम ऑयल की खेती में सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा ताज़ेफलों के गुच्छों (fresh fruit Bunches- FFBs) का किसानों को उचित मूल्य न मिल पाना है।
- पाम ऑयल के ताज़े फलों के गुच्छे (FFBs) अत्यधिक भंगुर/नाज़ुक होते हैं जिन्हें कटाई के चौबीस घंटे के भीतर संसाधित (Processed) करने की आवश्यकता होती है।
- जनजातीय समुदायों की भूमि पर प्रभाव:
आगे की राह
- यदि इसी तरह की सब्सिडी और समर्थन उन तिलहनों को दिया जाता है जो भारत के लिये स्वदेशी हैं तथा शुष्क भूमि पर भी कृषि के लिये उपयुक्त हैं, तो पाम ऑयल पर निर्भरता के बिना भी आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सकती है।
- यदि किसान पाम ऑयल की खेती करने के इच्छुक हैं और सरकार इसे प्रोत्साहित करती है तो कृषि भूमि पर पाम आयल के वृक्षों को उगाना एक समाधान होगा।
- अंत में, मिशन ऑयल पाम की सफलता कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क पर भी निर्भर करेगी।
- वर्ष 2012 में यह सिफारिश की गई थी कि जब भी कच्चे पाम तेल का आयात मूल्य 800 अमेरिकी डॉलर प्रति टन से नीचे आता है, तो आयात शुल्क को बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
- इस फसल से आंध्र प्रदेश में किसान समुदायों के जीवन में जो परिवर्तन आया है, वह अन्य संभावित राज्यों में भी इसका अनुकरण करने में मदद कर सकता है। एक मज़बूत और दीर्घकालिक नीति तंत्र इस फसल को पूरे भारत में आवश्यक रूप से प्रोत्साहन देगा।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
निवास और अबाध संचरण का अधिकार
प्रिलिम्स के लिये‘भारत के किसी भी भाग में निवास करने’ और ‘भारतीय राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण’ का अधिकार मेन्स के लियेउपर्युक्त मौलिक अधिकारों का महत्त्व और इनके प्रयोग संबंधी प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक पत्रकार के खिलाफ ‘निर्वासन आदेश’ को रद्द करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि ‘भारत के किसी भी भाग में निवास करने’ और ‘भारतीय राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण’ के मौलिक अधिकार को किसी ‘सामान्य या सारहीन आधार’ पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- ‘निर्वासन आदेश’ कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में किसी व्यक्ति की आवाजाही को प्रतिबंधित करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक, किसी इलाके में कानून और व्यवस्था बनाए रखने और/या सार्वजनिक शांति के उल्लंघन को रोकने के लिये असाधारण मामलों में ही इस प्रकार की कठोर कार्रवाई की जानी चाहिये।
प्रमुख बिंदु
- ‘भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण’ का आधिकार
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(d) प्रत्येक नागरिक को देश के संपूर्ण राज्यक्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार प्रदान करता है।
- यह अधिकार केवल राज्य की कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करता है, न कि निजी व्यक्तियों से।
- इसके अलावा यह अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिये उपलब्ध है, न कि विदेशी नागरिकों या कानूनी व्यक्तियों- जैसे कंपनियों या निगमों आदि के लिये।
- ‘अबाध संचरण’ की स्वतंत्रता के दो आयाम हैं, आंतरिक (देश के अंदर जाने का अधिकार) और बाहरी (देश से बाहर जाने का अधिकार तथा देश में वापस आने का अधिकार)।
- अनुच्छेद-19 केवल प्रथम आयाम की रक्षा करता है।
- दूसरा आयाम अनुच्छेद-21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत विनियमित किया जाता है।
- इस स्वतंत्रता पर प्रतिबंध केवल दो आधारों पर लगाया जा सकता है जिनका उल्लेख स्वयं संविधान के अनुच्छेद 19(5) में किया गया है, जिसमें आम जनता के हित और किसी अनुसूचित जनजाति के हितों की सुरक्षा करना शामिल है। उदाहरण के लिये:
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के आधार पर और सार्वजनिक नैतिकता के हित में वेश्यावृत्ति में संलग्न लोगों की आवाजाही की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
- अनुसूचित जनजातियों की विशिष्ट संस्कृति, भाषा, परंपराओं और शिष्टाचार की रक्षा करने तथा उनके पारंपरिक व्यवसाय एवं संपत्तियों को शोषण से बचाने के लिये आदिवासी क्षेत्रों में बाहरी लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है।
- भारत में किसी भी भाग में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता
- संविधान के अनुच्छेद 19(1)(e) के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक को ‘भारत में किसी भी भाग में निवास करने और बसने का अधिकार है।’
- इस प्रावधान का उद्देश्य देश भर के भीतर या किसी विशिष्ट हिस्से में आंतरिक बाधाओं को दूर करना है।
- यह अधिकार अनुच्छेद 19 के खंड (5) में उल्लिखित उचित प्रतिबंधों के अधीन भी है।
- ‘भारत में किसी भी भाग में निवास करने’ और ‘भारतीय राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण’ के मौलिक अधिकार प्रायः एक-दूसरे के पूरक हैं और इन्हें एक साथ देखा जाता है।
संविधान का अनुच्छेद 19
- अनुच्छेद 19 में वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान है।
- इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक नागरिक को अपने विचारों, विश्वासों और उन्हें मौखिक, लेखन, मुद्रण, चित्र या किसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के छह अधिकारों की गारंटी देता है, जो इस प्रकार हैं:
- वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।
- शांतिपूर्वक सम्मेलन में भाग लेने की स्वतंत्रता का अधिकार।
- संगम या संघ बनाने का अधिकार।
- अबाध संचरण की स्वतंत्रता का अधिकार।
- भारत के किसी भी क्षेत्र में निवास का अधिकार।
- व्यवसाय आदि की स्वतंत्रता का अधिकार।
- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध (अनुच्छेद 19(2))
- इस तरह के प्रतिबंध देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता, विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता के साथ-साथ द्वेषपूर्ण भाषा, मानहानि, न्यायालय की अवमानना के संदर्भ में उपयोगी हो सकते हैं।
- अनुच्छेद 19 के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- असहमति का अधिकार: शाहीन बाग विरोध के मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की कि विरोध करने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है और यह स्थान एवं समय के संबंध में प्राधिकरण के आदेशों के अधीन हो सकता है।
- सत्य और अभद्र भाषण: मुक्त भाषण की सीमाओं और अभद्र भाषा के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि "ऐतिहासिक सत्य को किसी भी तरह से विभिन्न वर्गों या समुदायों के बीच घृणा या दुश्मनी को प्रकट या प्रोत्साहित किये बिना चित्रित किया जाना चाहिये।"
- सूचना प्रसार के माध्यम के रूप में इंटरनेट: जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बंद होने के मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इंटरनेट के उपयोग के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने के विचार से परहेज किया, लेकिन फिर भी इंटरनेट को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक अभिन्न अंग बना दिया।
- प्रेस की स्वतंत्रता: रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य का मामला 1950, SC द्वारा तय किये जाने वाले शुरुआती मामलों में से एक था, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक हिस्सा घोषित किया गया था।
- सूचना का अधिकार: भारत संघ बनाम वी. असन मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स केस 2002 के लिये यह माना गया कि 'वाक् एवं अभिव्यक्ति' की स्वतंत्रता में न केवल सूचना को व्यक्त करने, प्रकाशित करने और प्रचारित करने का अधिकार है बल्कि सूचना प्राप्त करने का अधिकार भी शामिल है।
- राष्ट्रीय सीमाओं से परे अभिव्यक्ति का अधिकार: मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामला 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) भारतीय क्षेत्र तक ही सीमित था और यह भी माना गया कि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं है।
- मौन रहने का अधिकार: बिजो इमैनुएल बनाम केरल राज्य 1986 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बोलने का अधिकार या मौन रहने का अधिकार भी वाक् एवं अभिव्यक्ति के अधिकार में शामिल है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
सौर ऊर्जा हेतु पर्याप्त निवेश सब्सिडी
प्रिलिम्स के लिये:पीएम कुसुम योजना, स्पार्क कार्यक्रम, शून्य-कार्बन फुटप्रिंट मेन्स के लिये:पर्याप्त निवेश सब्सिडी (SIP) से मिलने वाले लाभ एवं इसकी आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल के वर्षों में भारत सरकार द्वारा पीएम कुसुम योजना, सूर्यमित्र कौशल विकास कार्यक्रम, स्पार्क कार्यक्रम (SPaRC Program) आदि जैसी कई सौर सिंचाई योजनाएंँ शुरू की गई हैं।
- ये योजनाएंँ पर्याप्त निवेश सब्सिडी (Substantial Investment Subsidies- SIP) प्रदान करती हैं तथा किसानों को भूजल और ऊर्जा के संरक्षण, उनकी आय बढ़ाने एवं अधिक कुशल तरीके से सिंचाई करने हेतु प्रोत्साहित करती हैं।
- SIPs कम कार्बन फुटप्रिंट, लगातार ऊर्जा की उपलब्धता, शून्य ईंधन लागत और कम परिचालन लागत आधारित है। हालाँकि इन योजनाओं से जुड़े कुछ मुद्दे भी हैं।
प्रमुख बिंदु
- पर्याप्त निवेश सब्सिडी के बारे में:
- भारत सरकार पीएम कुसुम योजना के माध्यम से पर्याप्त निवेश सब्सिडी की पेशकश कर सौर सिंचाई पंपों को बढ़ावा दे रही है।
- SIP का उद्देश्य किसानों को सोलर पंप और बिजली संयंत्रों की खरीद और उन्हें स्थापित करने हेतु सब्सिडी प्रदान करना है।
- किसान सिंचाई की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये नए तरीकों से सौर ऊर्जा का उपयोग करने में सक्षम होंगे तथा अतिरिक्त सौर ऊर्जा को विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMs) को पूर्व-निर्धारित टैरिफ पर बेचा जाएगा।
- आवश्यकता:
- भारतीय कृषि क्षेत्र में भारी विद्युत सब्सिडी ने सिंचाई-ऊर्जा गठजोड़ (Irrigation-Energy Nexus) को विकसित किया है।
- कृषि क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति सब्सिडी दरों पर की जाती है।
- सिंचाई-ऊर्जा के मध्य यह साझेदारी मुख्य रूप से घटते भूजल और बिजली वितरण कंपनियों के बढ़ते कर्ज़ के बोझ के कारण उत्पन्न हुआ है।
- SIP सिंचाई-ऊर्जा एवं ऊर्जा के मध्य उत्पन्न इस गठजोड़ को समाप्त करने और अन्य लाभ प्रदान करने में मदद कर सकता है।
- भारतीय कृषि क्षेत्र में भारी विद्युत सब्सिडी ने सिंचाई-ऊर्जा गठजोड़ (Irrigation-Energy Nexus) को विकसित किया है।
- पर्याप्त निवेश सब्सिडी (SIP) में मिलने वाले लाभ:
- पर्यावरण अनुकूल दृष्टिकोण: SIPs जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन पर निर्भरता को कम करके भूजल अर्थव्यवस्था में शून्य-कार्बन फुटप्रिंट (Zero-Carbon Footprint) की ओर बढ़ने में मदद करेगा।
- जल और विद्युत सुरक्षा प्रदान करना: पंजाब से तमिलनाडु तक फैले पश्चिम-दक्षिण गलियारे में गंगा-ब्रह्मपुत्र बेल्ट की तुलना में भूजल की उपलब्धता कम है।
- इस कॉरिडोर में किसानों को भी लगातार बिजली कटौती, कम वोल्टेज संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और रात में ही स्थिर बिजली मिलती है।
- पश्चिम-दक्षिण गलियारे को SIPs शुरू करने से काफी लाभ होगा क्योंकि इस क्षेत्र में कई सौर हॉटस्पॉट हैं और सूर्य प्रकाश भी अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध है।
- DiSCOMs के बोझ को कम करना: यह DISCOM के सब्सिडी बोझ को 30,000-35,000 रुपए प्रतिवर्ष प्रति SIP से राहत देने में भी मदद करेगा।
- सौर ऊर्जा विकास हेतु अनुकूल स्थिति: सौर फोटोवोल्टिक [PV] सेल की गिरती कीमत के कारण अब SIP अधिक किफायती है।
- डीज़ल की कीमतों में हालिया वृद्धि ने स्वाभाविक रूप से सिंचाई की लागत में वृद्धि की है।
- इसलिये SIP शुरू करने से ग्रामीण विद्युत नेटवर्क बिछाने की आवश्यकता पर अंकुश लगाते हुए कृषि विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
- संबंधित चुनौतियाँ:
- भूजल का अत्यधिक दोहन: SIP का एकमात्र संभावित दोष भूजल के अत्यधिक दोहन का जोखिम हो सकता है क्योंकि कॉरिडोर में SIP की शुरुआत के बाद मांग आधारित सस्ती बिजली हमेशा उपलब्ध रहेगी।
- मध्यम और बड़े स्तर के किसानों के पक्ष में: सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई योजनाओं में उन किसानों को प्राथमिकता दी जाती है जो पहले से ही पानी की बचत करने वाली सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं।
- उच्च प्रारंभिक लागत: सब्सिडी के बावजूद प्रारंभिक पूंजी निवेश अधिक रहता है, जिससे SIP की व्यवहार्यता पर सवाल उठते हैं।
- इसके अलावा सौर पीवी सिस्टम के संचालन और रखरखाव के लिये प्रशिक्षित पेशेवरों और मशीनी घटकों की आवश्यकता होती है, जिनका ग्रामीण क्षेत्रों में मिलना मुश्किल हो सकता है।
- महंँगा ग्रिड कनेक्शन: ग्रिड कनेक्शन से जुड़ी वित्तीय लागत बहुत अधिक हो सकती है।
- ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट’ के अनुसार, बिजली ग्रिड में 100 किलोवाट का सौर ऊर्जा से चलने वाला सिस्टम स्थापित करने में लगभग 85 लाख रुपए का खर्च आता है।
- इसके कारण सिंचाई-ऊर्जा संयोजन को हल करने के लिये SIP अच्छा विकल्प नहीं हो सकता है।
आगे की राह:
- कुशल जल प्रबंधन प्रथाओं और SIP के लाभों के बारे में जागरूकता कार्यक्रम किसानों के मौजूदा नेटवर्क के माध्यम से शुरू किये जाने चाहिये।
- छोटे और सीमांत किसानों के बीच संयुक्त देयता समूहों (JLG) को बढ़ावा देने के अलावा मौजूदा सौर सिंचाई योजनाओं में उनकी समावेशिता भी सुनिश्चित की जानी चाहिये।
स्रोत-डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
लघु वित्त बैंक
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, लघु वित्त बैंक, नकद आरक्षित अनुपात, वैधानिक तरलता अनुपात मेन्स के लिये:ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को वर्ष 2019 के "ऑन-टैप" लघु वित्त बैंक लाइसेंसिंग दिशा-निर्देशों के अंतर्गत दो और संस्थाओं से आवेदन प्राप्त हुए हैं।
- RBI "ऑन-टैप" सुविधा के अंतर्गत पूरे वर्ष आवेदन स्वीकार करता है और बैंकों को लाइसेंस देता है।
प्रमुख बिंदु
- लघु वित्त बैंक के विषय में:
- लघु वित्त बैंक वे वित्तीय संस्थान हैं जो देश के उन क्षेत्रों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करते हैं जहाँ बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
- लघु वित्त बैंक, कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत हैं।
- इन्हें बैंक रहित ग्रामीण केंद्रों में अपने कम-से-कम 25% बैंकिंग आउटलेट खोलने की आवश्यकता होती है।
- SFB को अपने समायोजित निवल बैंक ऋण (Adjusted Net Bank Credit) का 75% प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार (Priority Sector Lending- PSL) में देना आवश्यक है।
- RBI ने बैंकों को अपने फंड का एक निश्चित हिस्सा कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs), निर्यात ऋण, शिक्षा, आवास, सामाजिक बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा जैसे अन्य क्षेत्रों को ऋण देने के लिये अनिवार्य किया है।
- इसके ऋण पोर्टफोलियो के कम-से-कम 50% में 25 लाख रुपए तक के ऋण और अग्रिम शामिल होने चाहिये।
- एकल और समूह देनदार के लिये अधिकतम ऋण आकार तथा निवेश सीमा जोखिम क्रमशः उसके पूंजीगत निधियों के 10% एवं 15% तक सीमित होगी। ये बड़े ऋण का विस्तार नहीं कर सकते।
- यदि बैंक में प्रमोटरों की प्रारंभिक शेयरधारिता पेड-अप वोटिंग इक्विटी पूंजी (Paid-Up Voting Equity Capital) के 40% से अधिक है, तो इसे 5 वर्षों की अवधि के भीतर 40% तक लाया जाना चाहिये।
- नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और ‘वैधानिक तरलता अनुपात’ (SLR) आवश्यकताओं के अधीन।
- बैंकों के लिये अपनी जमा राशि का एक निश्चित अनुपात नकदी के रूप में रखना आवश्यक होता है, जिसे ‘नकद आरक्षित अनुपात’ कहा जाता है।
- यह न्यूनतम अनुपात (जो कि नकद के रूप में रखी जाने वाली कुल जमा राशि का हिस्सा है) रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- ‘नेट डिमांड और टाइम लायबिलिटीज़’ का वह हिस्सा, जिसे एक बैंक को सुरक्षित और तरल संपत्ति जैसे- सरकारी प्रतिभूतियाँ, नकदी एवं सोना आदि के रूप में बनाए रखना होता है, ‘वैधानिक तरलता अनुपात’ कहलाता है।
- बैंकों के लिये अपनी जमा राशि का एक निश्चित अनुपात नकदी के रूप में रखना आवश्यक होता है, जिसे ‘नकद आरक्षित अनुपात’ कहा जाता है।
- SFBs की स्थापना हेतु पात्रता:
- भारतीय निवासी व्यक्ति/पेशेवर, जिसे बैंकिंग और वित्त क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव हो।
- भारतीय निवासियों के स्वामित्व एवं नियंत्रण वाली कंपनियाँ और सोसायटी।
- मौजूदा ‘गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियाँ’ (NBFCs), ‘सूक्ष्म वित्त संस्थान’ (MFIs), ‘स्थानीय क्षेत्र बैंक (LABs) और भुगतान बैंक जो निवासियों के स्वामित्व एवं नियंत्रण में हैं।
- गतिविधियाँ
- छोटी व्यावसायिक इकाइयों, छोटे एवं सीमांत किसानों, सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों और असंगठित क्षेत्र की संस्थाओं सहित असेवित वर्गों को जमा की स्वीकृति तथा उधार देने हेतु बुनियादी बैंकिंग सुविधाएँ प्रदान करना।
- रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन से अन्य गैर-जोखिमयुक्त साधारण वित्तीय सेवाओं जैसे- म्यूचुअल फंड इकाइयों, बीमा उत्पादों, पेंशन उत्पादों आदि का वितरण करना।
- नियम:
- SFB निम्नलिखित प्रावधानों द्वारा शासित होते हैं:
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934,
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949,
- विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999,
- भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007,
- क्रेडिट सूचना कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005,
- जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम अधिनियम, 1961,
- अन्य प्रासंगिक कानून तथा भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और अन्य नियामकों द्वारा समय-समय पर जारी किये गए निर्देश।
- SFB निम्नलिखित प्रावधानों द्वारा शासित होते हैं:
- 'ऑन-टैप' लाइसेंसिंग के लिये दिशा-निर्देश:
- पूंजी की आवश्यकता: न्यूनतम पेड-अप वोटिंग इक्विटी पूंजी/निवल मूल्य की आवश्यकता 200 करोड़ रुपए होगी।
- प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों (UCB) हेतु स्वेच्छा से SFB में स्थानांतरित होने के लिये निवल मूल्य की प्रारंभिक आवश्यकता 100 करोड़ रुपए होगी जिसे व्यवसाय शुरू होने की तारीख से 5 वर्षों के भीतर बढ़ाकर 200 करोड़ रुपए करना होगा।
- SFB बैंकों को अनुसूचित बैंक का दर्जा: SFB बैंकों को परिचालन शुरू होने के तुरंत बाद अनुसूचित बैंक का दर्जा दिया जाएगा।
- भुगतान बैंक का SFB में रूपांतरण: भुगतान बैंक 5 वर्ष के संचालन के बाद SFB में रूपांतरण के लिये आवेदन कर सकते हैं, यदि वे अन्यथा इन दिशा-निर्देशों के अनुसार पात्र हैं।
- पूंजी की आवश्यकता: न्यूनतम पेड-अप वोटिंग इक्विटी पूंजी/निवल मूल्य की आवश्यकता 200 करोड़ रुपए होगी।
अनुसूचित बैंक
- अनुसूचित बैंक वे बैंक हैं जो भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में सूचीबद्ध हैं।
- अनुसूचित बैंक के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिये बैंक की चुकता पूंजी और जुटाई गई धनराशि कम-से-कम 5 लाख रुपए होनी चाहिये।
- अनुसूचित बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से कम ब्याज वाले ऋण और समाशोधन गृहों में सदस्यता के लिये उत्तरदायी हैं।
- राष्ट्रीयकृत, अंतर्राष्ट्रीय, सहकारी और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित सभी वाणिज्यिक बैंक अनुसूचित बैंकों के अंतर्गत आते हैं।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
सीसा युक्त पेट्रोल पर रोक: यूएनईपी
प्रिलिम्स के लिये:ग्लोबल वार्मिंग, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, गैसोलीन, सीसा युक्त पेट्रोल मेन्स के लिये:सीसा युक्त पेट्रोल के उन्मूलन की आवश्यकता एवं इसके पर्यावरण तथा स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme-UNEP) ने घोषणा की है कि वैश्विक स्तर पर सीसा युक्त पेट्रोल का उपयोग समाप्त कर दिया गया है।
पेट्रोल/गैसोलीन
- गैसोलीन, जिसे गैस या पेट्रोल भी कहा जाता है, पेट्रोलियम से प्राप्त वाष्पशील, ज्वलनशील तरल हाइड्रोकार्बन का मिश्रण है, इसका उपयोग आंतरिक-दहन इंजन के लिये ईंधन के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग तेल और वसा के लिये विलायक के रूप में भी किया जाता है।
- गैसोलीन मूल रूप से पेट्रोलियम उद्योग का एक उप-उत्पाद (केरोसिन प्रमुख उत्पाद) है जो अपनी उच्च दहन ऊर्जा और कार्बोरेटर में हवा के साथ आसानी से मिश्रित होने की क्षमता के कारण पसंदीदा ऑटोमोबाइल ईंधन बन गया।
सीसायुक्त बनाम सीसामुक्त पेट्रोल
- सीसायुक्त और सीसामुक्त अर्थात् लेड और अनलेडेड ईंधन के बीच मुख्य अंतर एडिटिव टेट्राएथिल लेड (Additive Tetraethyl Lead) का है।
- सीसा युक्त पेट्रोल के दहन से हवा में सीसा मुक्त होता है।
- सीसा एक भारी प्रदूषक है जो न केवल पर्यावरण को बल्कि इसके संपर्क में आने वाले लोगों को भी नुकसान पहुंँचाता है।
प्रमुख बिंदु
- सीसा युक्त पेट्रोल के उन्मूलन के बारे में:
- यह निर्णय एक मील का पत्थर है जो समय से पहले होने वाली 1.2 मिलियन से अधिक मौतों को रोकने में मददगार साबित होगा तथा इससे वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को सालाना 2.4 ट्रिलियन अमेरीकी डाॅलर से अधिक की बचत होगी। यह वैश्विक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
- UNEP ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के भयावह प्रभावों को दूर करने के लिये जीवाश्म ईंधन के उपयोग को सामान्य रूप से अभी भी काफी कम किया जाना चाहिये।
- सीसायुक्त पेट्रोल का युग:
- 1970 के दशक तक वैश्विक स्तर पर बेचे जाने वाले लगभग सभी पेट्रोल/गैसोलीन में सीसा होता था।
- वर्ष 2002 में जब UNEP ने सीसायुक्त पेट्रोल के खिलाफ पार्टनरशिप फॉर क्लीन फ्यूल्स एंड व्हीकल्स (PCFV) नाम से अपना अभियान शुरू किया, तो अमेरिका, चीन और भारत सहित कई प्रमुख आर्थिक शक्तियों ने पहले ही सीसायुक्त ईंधन का उपयोग बंद कर दिया लेकिन निम्न-आय वाले देशों में स्थिति भयावह बनी रही।
- समय से पहले होने वाली मौतों, खराब स्वास्थ्य तथा मिट्टी और वायु प्रदूषण से जुड़े अध्ययनों के बावजूद वैश्विक स्तर पर 100 से अधिक देश अभी भी सीसायुक्त पेट्रोल का उपयोग कर रहे हैं। वर्ष 1924 की शुरुआत में पहली बार इसे लेकर चिंता ज़ाहिर की गई।
- जुलाई 2021 में अल्ज़ीरिया ने सीसायुक्त पेट्रोल के प्रयोग को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जो सीसायुक्त पेट्रोल का उपयोग करने वाला अंतिम देश था।
- उन्मूलन की आवश्यकता:
- प्रदूषण:
- परिवहन क्षेत्र, ऊर्जा से संबंधित वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग एक-चौथाई के लिये ज़िम्मेदार है और वर्ष 2050 तक इसके एक-तिहाई तक बढ़ने की आशंका है।
- साथ ही आने वाले दशकों में 1.2 अरब नए वाहन सड़कों पर होंगे।
- इसमें यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान से मध्यम एवं निम्न आय वाले देशों में निर्यात किये गए लाखों खराब गुणवत्ता वाले वाहन शामिल हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग:
- हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (आईपीसीसी) द्वारा क्लाइमेट चेंज, 2021 नामक एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि पृथ्वी के औसत तापमान में पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में वर्ष 2030 के आसपास 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।
- अनुमान से एक दशक पहले इस वृद्धि ने जीवाश्म ईंधन के उपयोग के बारे में खतरे की घंटी बजा दी है।
- हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (आईपीसीसी) द्वारा क्लाइमेट चेंज, 2021 नामक एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि पृथ्वी के औसत तापमान में पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में वर्ष 2030 के आसपास 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।
- स्वास्थ्य:
- सीसायुक्त पेट्रोल हृदय रोग, स्ट्रोक और कैंसर का कारण बनता है। यह मानव मस्तिष्क के विकास को भी प्रभावित करता है, खासकर बच्चों को नुकसान पहुंँचा रहा है।
- प्रदूषण:
- महत्त्व:
- सीसायुक्त पेट्रोल की समाप्ति से अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण (SDG3), स्वच्छ जल (SDG6), स्वच्छ ऊर्जा (SDG7), सतत् शहरों (SDG11), जलवायु एक्शन (SDG13) सहित कई सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) की प्राप्ति की उम्मीद है।
- यह पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने का अवसर भी प्रदान करता है, विशेष रूप से शहरी वातावरण में, जो कि विशेष रूप से ज़हरीले प्रदूषकों से प्रभावित हैं।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
परिचय
- 05 जून, 1972 को स्थापित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
- कार्य: इसका प्राथमिक कार्य वैश्विक पर्यावरण एजेंडा को निर्धारित करना, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देना और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक अधिवक्ता के रूप में कार्य करना है।
- प्रमुख रिपोर्ट्स: उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, इन्वेस्ट इनटू हेल्थी प्लैनेट रिपोर्ट।
- प्रमुख अभियान: ‘बीट पॉल्यूशन’, ‘UN75’, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।
- मुख्यालय: नैरोबी (केन्या)।
- समझौता प्रशासित/प्रदान किये गए सचिवीय कार्य:
- जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD)।
- वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES)।
- प्रवासी वन्यजीव प्रजातियों के संरक्षण के लिये सम्मेलन (CMS)।
- खतरनाक अपशिष्टों और उनके निपटान की सीमापारीय गतिविधियों के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन।
- स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन।
- पारे पर मिनामाता अभिसमय।
- ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वियना कन्वेंशन।