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कृषि

पीएम कुसुम योजना

  • 16 Dec 2020
  • 12 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान या पीएम कुसुम योजना के देश के कृषि और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े संभावित लाभ व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

वर्ष 2018 के बजट में 28,250 मेगावाट तक के विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा उत्पादन  से संबंधित किसान-उन्मुख योजना’ प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम कुसुम) योजना’ को प्रोत्साहन प्रदान किया गया है।  पीएम कुसुम योजना किसानों को अपनी बंजर भूमि पर स्थापित सौर ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से ग्रिड को बिजली बेचने का विकल्प प्रदान करते हुए अतिरिक्त आय अर्जित करने का अवसर प्रदान करेगी। 

यदि पीएम कुसुम योजना को प्रभावी रूप से लागू किया जाता है तो यह भारत में ऊर्जा सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिये सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने की दिशा में एक मज़बूत आधार के रूप में कार्य कर सकती है।

पीएम कुसुम योजना के घटक: 

  • पीएम कुसुम योजना के तीन घटक हैं और  इन घटकों के तहत वर्ष 2022 तक 30.8 गीगावाट की अतिरिक्त सौर क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
    • घटक A :  भूमि पर स्थापित 10,000 मेगावाट के विकेंद्रीकृत ग्रिडों को नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों से जोड़ना।
    •  घटक B : 20 लाख सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों की स्थापना।
    • घटक C : ग्रिड से जुड़े 15 लाख सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों का सौरीकरण (Solarisation)।
  • इस योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा कुल 34,000 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।

योजना के अपेक्षित लाभ:

  • डिस्कॉम की सहायता: वर्तमान में कृषि क्षेत्र के लिये बिजली पर अत्यधिक सब्सिडी दी जाती है, इसके लिये अधिकांशतः भूजल स्तर की तीव्र गिरावट और डिस्कॉम की खराब वित्तीय स्थिति को प्रमुख कारण माना जाता है। 
    • इस योजना के तहत सौर ऊर्जा चालित पंपों की स्थापना से सिंचाई के लिये ग्रिडों से होने वाली विद्युत आपूर्ति पर किसानों की निर्भरता कम होगी। इस प्रकार यह योजना कृषि क्षेत्र में सब्सिडी के बोझ को कम करते हुए डिस्कॉम की वित्तीय स्थिति को सुधारने में सहायक होगी।
  • राज्यों की सहायता:  इस योजना के तहत विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे आपूर्ति के दौरान होने वाली विद्युत क्षति या ट्रांसमिशन हानि (Transmission Loss) को कम किया जा सकेगा। 
    • राज्य सरकारों के लिये यह योजना सिंचाई पर सब्सिडी के रूप में होने वाले परिव्यय को कम करने का एक संभावित विकल्प हो सकती है।
    •  इसके अलावा यह योजना राज्यों को अपने ‘अक्षय खरीद दायित्त्वों’ (RPO) के लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक होगी।
  • किसानों की सहायता: यदि किसान अपने सौर ऊर्जा संयंत्रों से उत्पादित अधिशेष विद्युत को बेचने में सक्षम होते हैं, तो इससे उन्हें बिजली बचाने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा और भूजल का उचित एवं कुशल उपयोग सुनिश्चित किया जा सकेगा।
    •  यह योजना किसानों को सौर जल पंपों (ऑफ-ग्रिड और ग्रिड-कनेक्टेड दोनों) के माध्यम से जल सुरक्षा प्रदान करने में सहायक हो सकती है।
  • पर्यावरण के संदर्भ में:  इस योजना के तहत कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिये सौर चालित पंपों की स्थापना के माध्यम से सिंचित क्षेत्र में वृद्धि के साथ ही प्रदूषण में वृद्धि करने वाले डीज़ल पंपों के प्रयोग में कमी लाने में सफलता प्राप्त होगी।
    • साथ ही यह योजना छतों और बड़े संयंत्रों के बीच मध्यवर्ती स्तर सौर ऊर्जा उत्पादन के रिक्त स्थान को भरने में सहायक होगी।

चुनौतियाँ: 

  • संसाधन और उपकरणों की उपलब्धता:  इस योजना को व्यापक स्तर पर लागू किये जाने के मार्ग में एक बड़ी बाधा उपकरणों की स्थानीय अनुपलब्धता है। वर्तमान में स्थानीय आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये पारंपरिक विद्युत या डीज़ल पंप की तुलना में सोलर पंप की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।  
    • इसके अलावा ‘घरेलू सामग्री आवश्यकता’ (Domestic Content Requirements- DCR) संबंधी नियमों की सख्ती के कारण  सौर ऊर्जा उपकरणों के आपूर्तिकर्त्ताओं को स्थानीय सोलर सेल (Solar Cell) निर्माताओं पर निर्भर रहना पड़ता है, हालाँकि वर्तमान में देश में स्थानीय स्तर पर पर्याप्त घरेलू सोलर सेल निर्माण क्षमता नहीं विकसित की जा सकी है।   
  • छोटे और सीमांत किसानों की अनदेखी: इस योजना में छोटे और सीमांत किसानों की अनदेखी किये जाने का आरोप भी लगता रहा है, क्योंकि यह योजना 3 हॉर्स पावर (HP) और उससे उच्च क्षमता वाले पंपों पर केंद्रित है।    
    • इस योजना के तहत किसानों की एक बड़ी आबादी तक सौर पंपों की पहुँच सुनिश्चित नहीं की जा सकी है क्योंकि वर्तमान में देश के लगभग 85%  किसान छोटे और सीमांत श्रेणी में आते हैं। 
    • विशेषकर उत्तर भारत और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भू-जल स्तर में हो रही गिरावट किसानों के लिये छोटे पंपों की उपयोगिता को सीमित करती है।
  • भू-जल स्तर में गिरावट: 
    • केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, वर्तमान में देश में लगभग 30 मिलियन कृषि पंप संचालित हैं जिनमें से लगभग 22 मिलियन विद्युत चालित, जबकि 8 मिलियन डीज़ल पंप चालित हैं। 
    • गौरतलब है कि वर्तमान में देश के कृषि क्षेत्र में वार्षिक विद्युत खपत लगभग 200 बिलियन यूनिट है, जो कि देश की कुल विद्युत खपत का लगभग 18% है। 
    • कृषि क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति को लेकर सरकार द्वारा भारी सब्सिडी दिये जाने के कारण सिंचाई के लिये खर्च की जाने वाली विद्युत की लागत बहुत ही कम होती है, जिसके कारण कई किसान अनावश्यक रूप से जल का दोहन करते रहते हैं। कृषि क्षेत्र में भू-जल का यह अनियंत्रित दोहन जल स्तर में गिरावट का एक प्रमुख कारण है।
    • सिंचाई के लिये सौर ऊर्जा प्रणाली की स्थापना करने के बाद भू-जल स्तर में गिरावट की स्थिति में उच्च क्षमता के पंपों को लगाना और भी कठिन तथा खर्चीला कार्य होगा, क्योंकि इसके लिये किसानों को पंप से साथ-साथ बढ़ी हुई क्षमता के लिये सोलर पैनलों की संख्या में वृद्धि करनी होगी।
  • क्रियान्वयन में देरी: गौरतलब है तत्कालीन केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री द्वारा वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट की घोषणा के 20 दिनों के अंदर ही मार्च 2018 में इस योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ूरी मिलने की बात कही गई थी जबकि इस योजना के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ूरी फरवरी 2019 में प्राप्त हुई।
    • हालाँकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा इसके तहत 20 लाख किसानों को सोलर पंप स्थापित करने और अन्य 15 लाख किसानों को अपने विद्युत चालित पंप के सौरीकरण में सहयोग देने की बात कहते हुए इस योजना के दायरे को बढ़ाने की घोषणा की गई।

आगे की राह:

  • राज्यों को एक साथ लाना:   इस विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा योजना की सफलता के लिये केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति का होना बहुत ही आवश्यक है।  
    • भारत में ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ा कोई भी सुधार तब तक प्रभावी रूप से लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि केंद्र, राज्य और अन्य सभी हितधारकों के बीच  इस संदर्भ में आम सहमति न बन जाए। 
  • संधारणीय कृषि (Sustainable Agriculture): सिंचाई के लिये पारंपरिक डीज़ल या विद्युत चालित पंपों से सौर पंपों की तरफ बढ़ने के साथ ही किसानों को 'ड्रिप इर्रिगेशन' (Drip irrigation) जैसे आधुनिक उपायों को भी अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जो फसल उत्पादन में वृद्धि के साथ  ही पानी और बिजली की बचत भी करती है।
  • आकर्षक सौर ऊर्जा मूल्य निर्धारण: इस योजना के प्रभावी कार्यान्वयन और हितधारकों की इस पहल में गंभीरता के साथ भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये कार्यान्वयन की उच्च लागत और व्यापक रखरखाव की चुनौतियों को देखते हुए योजना की बेंचमार्क कीमतों को अधिक आकर्षक बनाना होगा।

निष्कर्ष: 

सरकार की अन्य कई योजनाओं की तरह ही पीएम कुसुम योजना भी जनहित और एक आत्मनिर्भर भारत के भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है। परंतु भारत में सोलर सेल के निर्माण को बढ़ावा देने या विद्युत सब्सिडी को चरणबद्ध रूप से हटाए जाने से जुड़े नीतिगत हस्तक्षेप इस योजना के लिये अपने लक्ष्य की प्राप्ति में एक उत्प्रेरक का कार्य कर सकते हैं। 

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अभ्यास प्रश्न:  ‘पीएम कुसुम योजना भारतीय कृषि क्षेत्र में ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अतिरिक्त समर्थन प्रदान करने में सहायक हो सकती है’। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

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