इन्फोग्राफिक्स
सामाजिक न्याय
बच्चे और घरेलू श्रम
प्रिलिम्स के लिये:बाल श्रम, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 मेन्स के लिये:घरेलू कार्य में बाल श्रम के संभावित जोखिम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक परिवार द्वारा अपने 4 वर्ष के बेटे की देखभाल और घरेलू कामों के लिये रखी गई 10 वर्षीय बालिका को कथित तौर पर शारीरिक एवं मानसिक तौर पर प्रताड़ित किये जाने का मामला सामने आया है।
- यह घटना घरेलू कामकाज के जगहों पर बाल श्रम के मुद्दे पर प्रकाश डालती है।
बाल श्रम:
- घरेलू बाल श्रम:
- यदि कोई व्यक्ति अथवा नियोक्ता अपने अथवा किसी अन्य के घरेलू कार्यों को पूरा करने के लिये बच्चों को काम पर रखता है, ऐसे में इसे आम तौर पर घरेलु बाल श्रम कहा जाता है।
- घरेलू कार्य में बाल श्रम से तात्पर्य उन स्थितियों से है जहाँ घरेलू काम के लिये निर्दिष्ट न्यूनतम आयु से कम उम्र के बच्चे खतरनाक परिस्थितियों अथवा वातावरण में काम करते है।
- घरेलू बाल श्रम के खतरे:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) ने घरेलू कामगार के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील कई खतरों की पहचान की है, घरेलू कार्य में लगे बच्चों द्वारा सामना किये जाने वाले कुछ सबसे सामान्य जोखिमों इस प्रकार हैं:
- थकान भरे और लंबे काम के दिन; विषैले रसायनों का उपयोग; भारी वस्तुएँ उठाने का कार्य; चाकू तथा गर्म तवे जैसी खतरनाक वस्तुओं के उपयोग से संबंधित काम; अपर्याप्त भोजन और आवास आदि।
- यह जोखिम तब और बढ़ जाता है जब कोई बच्चा वही रह रहा होता जहाँ काम करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) ने घरेलू कामगार के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील कई खतरों की पहचान की है, घरेलू कार्य में लगे बच्चों द्वारा सामना किये जाने वाले कुछ सबसे सामान्य जोखिमों इस प्रकार हैं:
- भारत में बाल श्रम की स्थिति:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट 2022 के अनुसार, वर्ष 2021 में बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत लगभग 982 मामले दर्ज किये गए, जिनमें सबसे अधिक मामले तेलंगाना राज्य में दर्ज किये गए, इसके पश्चात् असम का स्थान है।
- बाल श्रम के विरुद्ध अभियान के एक अध्ययन के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल 818 बच्चों में से कामकाजी बच्चों के अनुपात में 28.2% से 79.6% तक उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण कोविड-19 महामारी में विद्यालयों का बंद होना है।
- भारत में सबसे अधिक बाल श्रमिक नियोक्ता वाले राज्य- उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र हैं।
भारत में घरेलू कार्यों में बाल श्रमिकों की संलग्नता का कारण:
- परिवारों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियाँ:
- भारत में घरेलू काम में बाल श्रम की वृद्धि के पीछे परिवारों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, वयस्क श्रमिकों को पर्याप्त मज़दूरी सुनिश्चित करने वाली प्रभावी नीतियों की कमी और परिवार की आय के पूरक हेतु निर्धन परिवारों के बच्चों पर पड़ने वाला बोझ शामिल है।
- इस स्थिति के कारण अक्सर बच्चों को न्यूनतम वेतन दिया जाता है और उन्हें उनकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता से अधिक कार्य करने के लिये मजबूर किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप 24x7 घरेलू नौकर रोज़गार के रूप में गुलामी का एक व्यवस्थित जाल बन जाता है।
- सीमांत समुदाय आसान लक्ष्य होते हैं:
- कुछ समुदायों और परिवारों में अपने बच्चों को कृषि, कालीन बुनाई या घरेलू सेवा जैसे कुछ व्यवसायों में कार्य कराने की परंपरा है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लड़कियों के लिये शिक्षा महत्त्वपूर्ण या उपयुक्त नहीं है।
- भारत के पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जसे गरीब क्षेत्रों से बड़े शहरों में पलायन करने वाले जनजातीय लोगों एवं दलितों का आसानी से शोषण किया जा सकता है।
- विद्यालयों की खराब अवसंरचनात्मक स्थिति:
- भारत में कई स्कूलों में पर्याप्त सुविधाओं, शिक्षकों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी है। गरीब परिवार कुछ स्कूलों द्वारा ली जाने वाली फीस अथवा अन्य खर्च वहन करने में सक्षम नहीं होते हैं।
- ये कुछ सामान्य कारक हैं जिस कारण माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते हैं और अंततः उनके बच्चे स्कूल जाना बंद कर देते हैं।
- अप्रत्याशित व्यवधान/क्षति:
- प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों का समाज (विशेष रूप से बच्चों पर सबसे अधिक) के सामान्य कामकाज एवं व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- ऐसे में काफी बच्चे अपने माता-पिता को खो देते हैं, घर अथवा बुनियादी सेवाओं तक उनकी पहुँच कम हो जाती है। जीवित रहने के लिये उन्हें किसी भी प्रकार का काम करने के लिये बाध्य किया जा सकता है या फिर तस्करों और अन्य अपराधियों द्वारा उनका शोषण भी किया जा सकता है।
बाल श्रम के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
- मानव पूंजी संचय में कमी:
- बाल श्रम का बच्चों के कौशल और ज्ञान संचय क्षमता पर प्रभाव पड़ता है, इसके साथ ही यह उनकी भविष्य की उत्पादकता तथा आय पर भी प्रभाव डालता है।
- निर्धनता और बाल श्रम की स्थिति का बना रहना:
- बाल श्रम अकुशल नौकरियों की वजह से कम आय के चलते गरीबी और मौजूदा बाल श्रम के चक्र में फँस जाते हैं।
- तकनीकी प्रगति और आर्थिक विकास में बाधा:
- बाल श्रम तकनीकी प्रगति और नवाचार को बाधित करता है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि एवं विकास धीमा हो जाता है।
- अधिकारों और अवसरों का अभाव:
- बाल श्रम बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और भागीदारी के उनके अधिकारों से वंचित करता है, जिससे उनके लिये भविष्य के अवसर तथा सामाजिक गतिशीलता सीमित हो जाती है।
- सामाजिक विकास और एकजुटता की कमी:
- बाल श्रम किसी देश के भीतर सामाजिक विकास और एकजुटता को कमज़ोर करता है, साथ ही यह सामाजिक स्थिरता एवं लोकतंत्र को प्रभावित करता है।
- स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव:
- बाल श्रम के कारण बच्चों को विभिन्न जोखिमों, शारीरिक चोटों, बीमारियों, दुर्व्यवहार और शोषण का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य, मृत्यु दर एवं जीवन प्रत्याशा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
भारत में बाल श्रम को रोकने के लिये सरकार की प्रमुख पहलें:
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009):
- अनुच्छेद 24:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 24 किसी फैक्ट्री, खान अथवा अन्य संकटमय गतिविधियों तथा निर्माण कार्य या रेलवे में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध करता है। हालाँकि यह किसी नुकसान न पहुँचने वाले अथवा गैर-जोखिम युक्त कार्यों में नियोजन का प्रतिषेध नहीं करता है।
- बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम (1986):
- वर्ष 2016 में इस अधिनियम को बाल और किशोर श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के रूप में संशोधित किया गया। इसके अंतर्गत व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोज़गार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया।
- कारखाना अधिनियम (1948)
- राष्ट्रीय बाल श्रम नीति (1987)
- पेंसिल (Platform for Effective Enforcement for No Child Labour- PENCIL) पोर्टल
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन पर अभिसमय को अनुसमर्थन प्रदान करना:
- ‘द मिनिमम एज कन्वेंशन’ (1973) – संख्या 138:
- ‘द वर्स्ट फॉर्म्स ऑफ चाइल्ड लेबर कन्वेंशन’ (1999) – संख्या 182:
आगे की राह
- सरकार को बाल श्रम को प्रतिबंधित एवं विनियमित करने वाले कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों एवं अभिसमयों के अनुरूप अधिनियमित एवं संशोधित करना चाहिये।
- सरकार को पर्याप्त संसाधन आवंटन, क्षमता, समन्वय, डेटा, जवाबदेही और राजनीतिक इच्छाशक्ति के माध्यम से यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि कानूनों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित एवं प्रवर्तित किया जाए।
- सरकार को गरीब और कमज़ोर परिवारों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिये ताकि उन्हें बाल श्रम का विवशतापूर्ण सहारा लेने से रोका जा सके।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 और संविधान के अनुच्छेद 21A के अनुरूप सभी बच्चों को 14 वर्ष की आयु तक निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त हो।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन 138 और 182 किससे संबंधित हैं? (2018) (a) बाल श्रम उत्तर: (a) |
मेन्स:प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (वर्ष 2016) |
स्रोत: द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन मानक
हाल ही में विद्युत मंत्रालय (Ministry of Power) ने लोकसभा को सूचित किया है कि सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन मानकों के अनुपालन के लिये थर्मल पावर प्लांट फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (Flue Gas Desulphurisation- FGD) उपकरण स्थापित कर रहे हैं।
- इस मंत्रालय ने सितंबर 2022 में सल्फर उत्सर्जन में कटौती हेतु कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के लिये FGD स्थापित करने की समय-सीमा दो वर्ष बढ़ा दी थी।
FGD स्थापित करने के लिये विद्युत संयंत्रों का वर्गीकरण:
वर्ग | स्थान/क्षेत्र | अनुपालन के लिये समय-सीमा |
वर्ग A | राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Region- NCR) के 10 कि.मी. के दायरे में या दस लाख से अधिक आबादी वाले शहर (भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार) | 31 दिसंबर, 2024 तक |
वर्ग B |
गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या गैर-प्राप्ति शहरों के 10 कि.मी. के दायरे में (CPCB द्वारा परिभाषित) | 31 दिसंबर, 2025 तक |
वर्ग C |
वर्ग A और B में शामिल लोगों के अलावा अन्य | 31 दिसंबर, 2026 तक |
फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD):
- परिचय:
- FGD जीवाश्म-ईंधन वाले विद्युत स्टेशनों से उत्सर्जन के माध्यम से सल्फर यौगिकों को पृथक करने की प्रक्रिया है।
- इसका प्रयोग अतिरिक्त अवशोषक के रूप में किया जाता है, जो ग्रिप गैस से 95% तक सल्फर डाइऑक्साइड को पृथक कर सकता है।
- जब कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस अथवा लकड़ी जैसे जीवाश्म ईंधन को ऊष्मा या विद्युत उत्पादन के लिये जलाया जाता है, तब इससे निकलने वाले पदार्थ को फ्लू गैस के रूप में जाना जाता है।
- भारत में FGD की आवश्यकता:
- भारतीय शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से हैं। वर्तमान में भारत सबसे बड़े देश रूस की तुलना में लगभग दोगुनी मात्रा में SO2 उत्सर्जित करता है।
- तापीय संयंत्र (सल्फर और नाइट्रस-ऑक्साइड के लगभग 80% औद्योगिक उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार) देश की 75% विद्युत का उत्पादन करते हैं, जो फेफड़ों की बीमारियाँ, अम्ल वर्षा और स्मॉग का कारण बनते हैं।
- निर्धारित मानदंडों के कार्यान्वयन में प्रतिदिन विलंब और FGD प्रणाली स्थापित नहीं होने से हमारे समाज को भारी स्वास्थ्य और आर्थिक क्षति हो रही है।
- भारत में हानिकारक SO2 प्रदूषण के उच्च स्तर को बहुत जल्द टाला जा सकता है क्योंकि फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन सिस्टम चीन में उत्सर्जन के स्तर को कम करने में सफल साबित हुए हैं, जो वर्ष 2005 में उच्चतम स्तर के लिये ज़िम्मेदार देश था।
सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण:
- स्रोत:
- वातावरण में SO2 उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत विद्युत संयंत्रों और अन्य औद्योगिक गतिविधियों में जीवाश्म ईंधन का दहन है।
- SO2 उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में अयस्कों से धातु निष्कर्षण जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ, प्राकृतिक स्रोत जैसे- ज्वालामुखी विस्फोट, इंजन, जहाज़ और अन्य वाहन तथा भारी उपकरणों में उच्च सल्फर ईंधन सामग्री का प्रयोग शामिल है।
- प्रभाव:
- SO2 के अल्पकालिक जोखिम मानव श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंँचा सकते हैं और साँस लेने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं। विशेषकर बच्चे SO2 के इन प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- WHO के अनुसार, प्रतिवर्ष विश्व स्तर पर 4.2 मिलियन लोगों की मौत SO2 के कारण होती है।
- SO2 का उत्सर्जन हवा में SO2 की उच्च सांद्रता के कारण होता है, सामान्यत: यह सल्फर के अन्य ऑक्साइड (SOx) का निर्माण करती है।
- (SOx) वातावरण में अन्य यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया कर छोटे कणों का निर्माण कर सकती है। ये पार्टिकुलेट मैटर (PM) प्रदूषण को बढ़ाने में सहायक हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था
कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार विकास निधि
प्रिलिम्स के लिये:कॉर्पोरेट ऋण के लिये गारंटी योजना, कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार विकास निधि, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), कॉर्पोरेट ऋण के लिये गारंटी निधि (GFCD) मेन्स के लिये:कॉरपोरेट बाॅण्ड बाज़ार में CDMDF की भूमिका, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार विकास निधि (Corporate Debt Market Development Fund- CDMDF) द्वारा उठाए गए ऋण के लिये गारंटी कवर प्रदान करने हेतु कॉर्पोरेट ऋण के लिये गारंटी योजना (Guarantee Scheme for Corporate Debt- GSCD) को मंज़ूरी दे दी है, जिसका उद्देश्य दबाव के समय में कॉर्पोरेट बाॅण्ड बाज़ार को स्थिर करना है।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) ने योजना के संचालन और एवं फंड के प्रबंधन के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
कॉर्पोरेट ऋण के लिये गारंटी योजना (GSCD):
- कॉर्पोरेट ऋण के लिये गारंटी योजना, कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार विकास निधि द्वारा उठाए गए ऋण के लिये पूर्ण गारंटी कवर प्रदान करता है।
- GSCD का प्राथमिक उद्देश्य निवेशकों का विश्वास बढ़ाना और कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार को स्थिरता प्रदान करना है।
- GSCD का प्रबंधन कॉर्पोरेट ऋण के लिये गारंटी फंड (GFCD) द्वारा किया जाता है।
- GFCD आर्थिक मामलों के विभाग (Department of Economic Affairs- DEA) द्वारा गठित और नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड द्वारा प्रबंधित एक ट्रस्ट फंड है, जो वित्त मंत्रालय के तहत वित्तीय सेवा विभाग के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है।
- इस योजना को बाज़ार अव्यवस्था के दौरान CDMDF द्वारा निवेश-श्रेणी की कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियों के क्रय करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- निवेश-श्रेणी की कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियाँ उन कंपनियों द्वारा जारी किये गए बाॅण्ड या नोट होते हैं जिनमें डिफ़ॉल्ट/कमी पाए जाने का जोखिम कम होता है और क्रेडिट रेटिंग भी अच्छी होती है।
- GSCD द्वारा प्रदान किया गया गारंटी कवर यह सुनिश्चित करता है कि निवेशक, निवेश-श्रेणी की कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियों से संबंधित संभावित जोखिमों से सुरक्षित हैं।
- CDMDF द्वितीयक बाज़ार की तरलता/चलनिधि को बढ़ाता है जो GSCD के अंतर्गत सुनिश्चित प्रतिभूतियों को क्रय करने और कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार की समग्र स्थिरता का समर्थन करता है।
कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार विकास निधि (CDMDF):
- CDMDF भारत में कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु स्थापित एक वैकल्पिक निवेश निधि है, इसे एक क्लोज़-एंडेड योजना के रूप में लॉन्च किया जाएगा।
- CDMDF, निवेश-श्रेणी की कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियों के लिये बैकस्टॉप सुविधा के रूप में कार्य करता है, जो स्थिरता प्रदान करने के साथ-साथ बाज़ार में निवेश के लिये निवेशकों का विश्वास बढ़ाता है।
- CDMDF म्यूचुअल फंड के लिये 33,000 करोड़ रुपए की बैकस्टॉप सुविधा प्रदान करता है। इसमें सरकार 30,000 करोड़ रुपए का योगदान देने के साथ-साथ परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों को बकाया 3,000 करोड़ रुपए प्रदान करेंगी।
- CDMDF का उद्देश्य एक स्थायी संस्थागत संरचना का निर्माण कर द्वितीयक बाज़ार की तरलता/चलनिधि को बढ़ाना है, जिसे बाज़ार में बढ़ने वाले दबाव (Market Stress) की अवधि के दौरान सक्रिय किया जा सकता है।
- यह फंड बाज़ार की अव्यवस्था के समय निवेशकों के लिये सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करता है, कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार को समर्थन एवं स्थिरता प्रदान करता है।
CDMDF के लिये SEBI दिशा-निर्देश:
- निवेश:
- सामान्य बाज़ार स्थितियों के दौरान CDMDF कम अवधि की सरकारी प्रतिभूतियों (Government Securities/G-sec), ट्रेज़री बिल और सात दिनों से अधिक की परिपक्वता अवधि वाले गारंटीकृत कॉर्पोरेट बॉण्ड रेपो से निपटने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- बाज़ार अव्यवस्था का अनुभव होने पर CDMDF निवेशकों के लिये सुरक्षा जाल प्रदान करते हुए निवेश-श्रेणी की कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियों को खरीदने के लिये कदम उठाता है।
- बाज़ार अव्यवस्था के दौरान म्यूचुअल फंड योजनाओं द्वारा CDMDF को बेची गई कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियों को रिक्वेस्ट फॉर कोट (Request for Quote- RFQ) प्लेटफॉर्म पर निष्पादित व्यापार के रूप में माना जाएगा।
- योग्य प्रतिभूतियाँ:
- CDMDF केवल पाँच वर्ष तक की शेष परिपक्वता अवधि वाली सूचीबद्ध कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियों को खरीदने के लिये अधिकृत है।
- बहिष्करण की शर्त:
- फंड असूचीबद्ध, निवेश-ग्रेड से नीचे, या डिफॉल्ट ऋण प्रतिभूतियों को प्राप्त करने से परहेज करता है।
- ऐसी प्रतिभूतियाँ जो डिफॉल्ट या प्रतिकूल क्रेडिट समाचार या विचारों की भौतिक संभावना प्रस्तुत करती हैं, उन्हें भी बाहर रखा गया है।
- उचित मूल्य निर्धारण तंत्र:
- CDMDF पारदर्शिता एवं बाज़ार स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये तरलता जोखिम, ब्याज दर जोखिम तथा क्रेडिट जोखिम को ध्यान में रखते हुए उचित मूल्य पर प्रतिभूतियाँ खरीदता है।
- इसके तहत खरीदारी अथवा व्यापार उचित मूल्य पर किया जाता है, न कि संकटापन्न मूल्य (Distress Price) पर।
- बाज़ार के स्थिर होते ही प्रतिभूतियों की बिक्री लाभ के लिये की जाने लगती है, जिसका लक्ष्य उधार को जल्द-से-जल्द कम करना होता है।
- CDMDF पारदर्शिता एवं बाज़ार स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये तरलता जोखिम, ब्याज दर जोखिम तथा क्रेडिट जोखिम को ध्यान में रखते हुए उचित मूल्य पर प्रतिभूतियाँ खरीदता है।
- सदस्यता और योगदान:
- CDMDF की इकाइयों को म्यूचुअल फंड की परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (Asset Management Companies- AMCs) और निर्दिष्ट ऋण-उन्मुख म्यूचुअल फंड योजनाओं द्वारा सदस्यता प्रदान की जाती है।
- CDMDF के संचालन का समर्थन करने के लिये विशिष्ट ऋण-उन्मुख म्यूचुअल फंड योजनाओं के AMCs प्रबंधन के तहत उनकी परिसंपत्ति के दो आधार अंकों (basis points- bps) के बराबर एकमुश्त योगदान करते हैं।
- कार्यकाल:
- 15 वर्ष के शुरुआती कार्यकाल के साथ CDMDF को एक क्लोज़्ड-एंडेड योजना के रूप में लॉन्च किया जाएगा।
- SEBI के सहयोग से आर्थिक कार्य विभाग (Department of Economic Affairs- DEA) के पास इसके विस्तार संबंधी निर्णय लेने की शक्ति होगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों, जो स्वयं को सीधे पंजीकृत कराए बिना भारतीय स्टॉक बाज़ार का हिस्सा बनना चाहते है, को निम्नलिखित में से क्या जारी किया जाता है? (2019) (a) जमा प्रमाण-पत्र (b) वाणिज्यिक पत्र (c) वचन-पत्र (प्रॉमिसरी नोट) (d) सहभागिता पत्र (पार्टिसिपेटरी नोट) उत्तर: (d) |
जैव विविधता और पर्यावरण
समुद्री घास के मैदान
प्रिलिम्स के लिये:समुद्री घास, कार्बन पृथक्करण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, ग्लोबल वार्मिंग, महासागरीय धाराएँ, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, महासागरों का अम्लीकरण, मन्नार की खाड़ी, बाल्टिक राष्ट्र मेन्स के लिये:समुद्री घास का महत्त्व और उससे संबंधित चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
उत्तरी जर्मनी में स्कूबा गोताखोर जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा इन समुद्री कार्बन सिंक को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से बंजर क्षेत्रों में दोबारा रोपण के लिये समुद्री घास को एकत्र कर रहे हैं।
समुद्री घास के मैदान:
- परिचय:
- समुद्री घास के मैदान पुष्पीय पादपों से बने होते हैं जो उथले तटीय जल में उगते हैं, जिससे सघन जलमग्न सतह का निर्माण होता है जो बड़े क्षेत्रों को कवर कर सकते हैं।
- वे उन क्षेत्रों में पनपते हैं जहाँ सूर्य का प्रकाश जल में प्रवेश कर सकता है, जिससे उन्हें विकास के लिये प्रकाश संश्लेषण से गुज़रने की अनुमति मिलती है।
- इसके अलावा वे आमतौर पर रेतीले या कीचड़युक्त सब्सट्रेट्स (Substrates) में उगते हैं, जहाँ उनकी जड़ें पौधे को पकड़ सकती हैं और स्थिर कर सकती हैं।
- महत्त्व:
- कार्बन पृथक्करण: हालाँकि वे समुद्र तल का केवल 0.1% कवर करते हैं, ये घास के मैदान अत्यधिक कुशल कार्बन सिंक हैं, जो विश्व के 18% तक समुद्री कार्बन का भंडारण करते हैं।
- इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग को भी कम करने में मदद मिलती है।
- जल गुणवत्ता में सुधार: ये जल से प्रदूषकों को फिल्टर/निस्यंदन करते हैं, आच्छादन, अपरदन को रोकते हैं, जिससे जल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- इससे सागरीय जीवन, मत्स्यग्रहण, पर्यटन और मनोरंजन जैसी मानवीय गतिविधियों में लाभ होता है।
- पर्यावास एवं जैव विविधता: ये पृथ्वी पर सबसे अधिक उत्पादक और विविध पारिस्थितिक तंत्रों से संबंधित होते हैं, जो मछली, कछुए, डुगोंग, केकड़े और समुद्री घोड़ों सहित कई सागरीय जीवों को आवास एवं भोजन प्रदान करते हैं।
- तटीय सुरक्षा: समुद्री घास के मैदान प्राकृतिक बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं, जो लहरों एवं ज्वारीय तरंगों के कारण होने वाले अपरदन से तटरेखाओं की रक्षा करते हैं।
- कार्बन पृथक्करण: हालाँकि वे समुद्र तल का केवल 0.1% कवर करते हैं, ये घास के मैदान अत्यधिक कुशल कार्बन सिंक हैं, जो विश्व के 18% तक समुद्री कार्बन का भंडारण करते हैं।
- चिंताएँ:
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की "आउट ऑफ द ब्लू: द वैल्यू ऑफ सीग्रास टू द एन्वायरनमेंट एंड टू पीपुल" रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में प्रत्येक वर्ष अनुमानित 7% समुद्री घास का निवास स्थान नष्ट हो रहा है।
- 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से विश्व भर में समुद्री घास के क्षेत्र का लगभग 30% भाग नष्ट हो गया है।
- समुद्री घास के नुकसान के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
- तटीय विकास: बंदरगाहों के निर्माण के परिणामस्वरूप समुद्री घास का पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो सकता है, जिससे प्रकाश की उपलब्धता भी कम हो सकती है।
- प्रदूषण: कृषि, उद्योग और शहरी क्षेत्रों से पोषक तत्त्वों, रसायनों तथा तलछट के अपवाह के कारण यूट्रोफिकेशन, शैवालीय प्रस्फुटन हो सकता है, जो समुद्री घास के पौधों को दबा सकता है या उन्हें नष्ट कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन: समुद्र के तापमान में वृद्धि, समुद्र के स्तर में वृद्धि, समुद्र का अम्लीकरण एवं चरम मौसम की घटनाएँ समुद्री घास के पौधों पर दबाव डाल सकती हैं या उन्हें नुकसान पहुँचा सकती हैं और उनके वितरण तथा विकास को बदल सकती हैं।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की "आउट ऑफ द ब्लू: द वैल्यू ऑफ सीग्रास टू द एन्वायरनमेंट एंड टू पीपुल" रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में प्रत्येक वर्ष अनुमानित 7% समुद्री घास का निवास स्थान नष्ट हो रहा है।
- भारत में समुद्री घास:
- भारत में प्रमुख समुद्री घास के मैदान पूर्वी तट पर मन्नार की खाड़ी तथा पाक खाड़ी क्षेत्रों के समुद्र तट, पश्चिमी तट पर कच्छ क्षेत्र की खाड़ी, अरब सागर में लक्षद्वीप में द्वीपों के लैगून, बंगाल की खाड़ी एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मौजूद हैं।
- पुनरुद्धार के प्रयास:
- जर्मनी में बाल्टिक सागर, संयुक्त राज्य अमेरिका में चेसापीक खाड़ी और भारत में मन्नार की खाड़ी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में समुद्री घास की बहाली का प्रयास किया गया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रारंभिक परीक्षा
भारत ने पापुआ न्यू गिनी के साथ इंडिया स्टैक साझा करने हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर
हाल ही में भारत के इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology- MeitY) और पापुआ न्यू गिनी के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Information and Communication Technology- MICT) ने इंडिया स्टैक (India Stack) साझा करने को लेकर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके डिजिटल परिवर्तन की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है।
- इससे पहले जून 2023 में भारत ने पहले ही चार देशों आर्मेनिया, सिएरा लियोन, सूरीनाम और एंटीगुआ तथा बारबुडा के साथ इंडिया स्टैक साझा करने के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे, जो वैश्विक स्तर पर इस पहल की लोकप्रियता और स्वीकृति को दर्शाता है।
भारत और पापुआ न्यू गिनी के बीच समझौता ज्ञापन की मुख्य विशेषताएँ:
- यह MoU व्यापक स्तर पर पहचान, डेटा और भुगतान सेवाओं का समर्थन करने के लिये इंडिया स्टैक साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।
- यह MoU जीवन स्तर एवं शासन दक्षता में सुधार के लिये जनसंख्या-स्तरीय डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी संरचना और परिवर्तनकारी प्लेटफाॅर्मों/परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर केंद्रित है।
- यह सहयोग निर्बाध लेन-देन के लिये डिजिटल पहचान प्रणाली और डिजिटल भुगतान तंत्र को सुदृढ़ करने का प्रयास करता है।
इंडिया स्टैक:
- इंडिया स्टैक API (एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफ़ेस) का एक सेट है जो सरकारों, व्यवसायों, स्टार्टअप और डेवलपर्स को उपस्थिति-रहित, पेपरलेस और कैशलेस सेवा वितरण की दिशा में भारत की कठिन समस्याओं को हल करने के लिये एक अद्वितीय डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करने की अनुमति देता है।
- इंडिया स्टैक सरकार के नेतृत्व वाली एक पहल है जो विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की डिजिटल सेवाओं को सक्षम करने हेतु एक सुदृढ़ डिजिटल बुनियादी संरचना के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करती है।
- इस संग्रह के घटकों का स्वामित्व एवं रखरखाव विभिन्न संस्थानों द्वारा किया जाता है।
- इंडिया स्टैक का लक्ष्य पहचान सत्यापन, डेटा विनिमय एवं डिजिटल भुगतान प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के साथ वृद्धि करना है ताकि उन्हें नागरिकों के लिये अधिक सुलभ एवं कुशल बनाया जा सके।
- इसमें डिजिटल सार्वजनिक वस्तुएँ शामिल हैं, जो विभिन्न डिजिटल सेवाओं एवं पहलों का समर्थन करने के लिये जनता को उपलब्ध कराए गए डिजिटल संसाधन तथा उपकरण हैं।
- इंडिया स्टैक के प्रमुख घटकों में आधार (अद्वितीय बायोमेट्रिक-आधारित पहचान प्रणाली), तत्काल डिजिटल भुगतान के लिये यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) तथा व्यक्तिगत दस्तावेज़ों के सुरक्षित भंडारण के लिये डिजिटल लॉकर शामिल हैं।
- इंडिया स्टैक का दृष्टिकोण किसी एक देश (भारत) तक सीमित नहीं है, इसे किसी भी देश पर लागू किया जा सकता है, चाहे वह विकसित देश हो अथवा विकासशील देश हो।
पापुआ न्यू गिनी:
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युत्त कथनाें में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
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