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डेली न्यूज़

  • 31 May, 2022
  • 89 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत का व्यापार

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-अमेरिका संबंध, भारत-प्रशांत रणनीति। 

मेन्स के लिये:

भारत और इसके पड़ोसी, भारत-प्रशांत क्षेत्र, भारत-अमेरिका संबंध- चुनौतियाँ और सहयोग के क्षेत्र। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने आँकड़े जारी किये, जिससे पता चलता है कि अमेरिका ने वर्ष 2021-22 में भारत के शीर्ष व्यापारिक भागीदार बनने वाले चीन को पीछे छोड़ दिया है।  

  • भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले प्रमुख वस्तुओं में पेट्रोलियम, पॉलिश किये गए हीरे, दवा उत्पाद, आभूषण, फ्रोज़न झींगा शामिल हैं, जबकि अमेरिका से आयातित प्रमुख वस्तुओं में पेट्रोलियम, कच्चे हीरे, तरल प्राकृतिक गैस, सोना, कोयला, अपशिष्ट, बादाम आदि शामिल हैं। . 
  • आँकड़ों से पता चला है कि वर्ष 2013-14 से वर्ष 2017-18 तक और वर्ष 2020-21 में भी चीन भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदार था। 
    • चीन से पहले यूएई भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। 

प्रमुख बिंदु 

  • अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार: 
    • अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार 119.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2021-2022) का हुआ, जबकि वर्ष 2020-21 में यह 80.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 
    • अमेरिका को निर्यात वर्ष 2021-22 में बढ़कर 76.11 बिलियन अमेरिकी डॉलरा हो गया, जो पिछले वित्त वर्ष में 51.62 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि  2020-21 में आयात लगभग 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 43.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। 
    • अमेरिका उन कुछ देशों में से एक है जिनके साथ भारत का व्यापार अधिशेष है। 
      • वर्ष 2021-22 में भारत का अमेरिका के साथ 32.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार अधिशेष था। 
  • इसी अवधि के दौरान चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार: 
    • वर्ष 2021-22 के दौरान चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2020-21 के 86.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 115.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।  
    • पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में चीन को निर्यात मामूली रूप से बढ़कर 21.25 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2020-21 में 21.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 

अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार बनने के कारक: 

  • भारत एक विश्वसनीय व्यापारिक भागीदार के रूप में उभर रहा है और वैश्विक फर्में आपूर्ति के लिये चीन पर अपनी निर्भरता को कम कर रही हैं तथा भारत जैसे अन्य देशों के माध्यम से व्यापार में विविधता ला रही हैं। 
  • भारत एक इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) स्थापित करने के लिये अमेरिका के नेतृत्व वाली पहल में शामिल हो गया है एवं इस कदम से आर्थिक संबंधों को और बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। 
  • सेवाओं के निर्यात के लिये अमेरिका लगातार भारत का सबसे बड़ा बाज़ार रहा है, हाल ही में अमेरिका को सामान की बिक्री के मामले में भी इसने चीन को पीछे छोड़ दिया, जिससे यह भारत का सबसे बड़ा द्विपक्षीय व्यापारिक भागीदार बन गया।
    • भारत का कुल व्यापारिक निर्यात 2021-22 में रिकॉर्ड 418 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा, जो केंद्र के लक्ष्य से लगभग 5% अधिक है और इसने पिछले वर्ष की तुलना में 40% की वृद्धि दर्ज की है। 

भारत-अमेरिका संबंधों की वर्तमान स्थिति: 

  • भारत-अमेरिका द्विपक्षीय साझेदारी में वर्तमान में कोविड-19 की प्रतिक्रिया, महामारी के बाद आर्थिक सुधार, जलवायु संकट और सतत् विकास, महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियाँ, आपूर्ति शृंखला अनुकूलन, शिक्षा, प्रवासी  रक्षा एवं सुरक्षा सहित कई मुद्दों को शामिल किया गया है। 
  • भारत-अमेरिका संबंधों की प्रगाढ़ता बेजोड़ है और इस साझेदारी के प्रेरक तत्त्व भी अभूतपूर्व दर से बढ़ रहे हैं। 
    • भारत -अमेरिका के मध्य यह संबंध अद्वितीय बना हुआ है क्योंकि यह दोनों स्तरों- रणनीतिक अभिजात वर्ग के साथ-साथ लोगों-से-लोगों के स्तर पर संचालित होता है। 
  • हालाँकि रूस-यूक्रेन संकट को लेकर भारत और अमेरिका की प्रतिक्रियाएँ परस्पर विरोधाभासी रही हैं। 
  • भारत और अमेरिका ने हाल के वर्षों में अपने संबंधों को जारी रखने और व्यापक रणनीतिक साझेदारी को बनाे रखने की अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है। 

भारत-अमेरिका संबंधों से संबद्ध चुनौतियाँ: 

  • टैरिफ अधिरोपण: वर्ष 2018 में अमेरिका ने कुछ स्टील उत्पादों पर 25% टैरिफ और भारत द्वारा कुछ अल्युमीनियम उत्पादों पर 10% टैरिफ लगाया गया था  
    • भारत ने जून 2019 में अमेरिकी आयात पर लगभग 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के 28 उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाकर जवाबी कार्रवाई की। 
      • हालाँकि धारा 232 टैरिफ लागू करने के बाद अमेरिका में स्टील निर्यात में साल-दर-साल 46% की गिरावट आई है।  
  • आत्मनिर्भरता को संरक्षणवाद के रूप में गलत समझना: आत्मनिर्भर भारत अभियान ने इस विचार को और बढ़ावा दिया है कि भारत तेजी से एक संरक्षणवादी बंद बाज़ार अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है। 
  • अमेरिका की वरीयता की सामान्यीकृत प्रणाली (GSP) से छूट: जून 2019 से प्रभावी, अमेरिका ने GSP कार्यक्रम के तहत भारतीय निर्यातकों से शुल्क मुक्त निर्यात के प्रावधान को वापस ले लिया। 
    • परिणामस्वरूप अमेरिका को 5.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात पर विशेष शुल्क उपचार को हटा दिया गया, जिससे भारत के निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों जैसे- फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा, कृषि उत्पाद और ऑटोमोटिव पार्ट्स आदि क्षेत्र प्रभावित हुए। 
  • अन्य देशों के प्रति अमेरिका की शत्रुता: 
    • भारत और अमेरिका के बीच कुछ मतभेद भारत-अमेरिका संबंधों के प्रत्यक्ष परिणाम नहीं हैं, बल्कि ईरान और रूस जैसे तीसरे देशों के प्रति अमेरिका की शत्रुता के कारण हैं जो कि भारत के पारंपरिक सहयोगी देश हैं । 
    • भारत-अमेरिका संबंधों को चुनौती देने वाले अन्य मुद्दों में ईरान के साथ भारत के संबंध और रूस से भारत द्वारा एस-400 की खरीद शामिल है। 
    • भारत के रूस से दूरी बनाने के अमेरिका के आह्वान का दक्षिण एशिया की यथास्थिति पर दूरगामी परिणाम हो सकता है। 
  • अफगानिस्तान में अमेरिका की नीति: 
    • भारत, अफगानिस्तान में अमेरिका की नीति से भी चिंतित है क्योंकि अमेरिका इस क्षेत्र में भारत की सुरक्षा और हितों को खतरे में डाल रहा है। 

आगे की राह 

  • जनसांख्यिकीय लाभांश अमेरिकी एवं भारतीय फर्मों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, विनिर्माण, व्यापार और निवेश के लिये अत्यधिक अवसर प्रदान करता है। 
  • भारत अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुज़र रही अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में  प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में उभर रहा है। यह अपनी वर्तमान स्थिति का उपयोग अपने महत्त्वपूर्ण हितों को आगे बढ़ाने के अवसरों का पता लगाने के लिये करेगा 
  • वर्तमान में भारत और अमेरिका सही अर्थों में रणनीतिक साझेदार हैं, इनका उद्देश्य प्रमुख शक्तियों के बीच  साझेदारी को बढ़ावा देकर निरंतर संवाद सुनिश्चित करके मतभेदों का हल निकालकर नए अवसरों की तलाश करना  है। 
  • यूक्रेन संकट के परिणामस्वरूप चीन के साथ रूस का मज़बूत गठजोड़, चीन के प्रति संतुलन के रूप में रूस पर भरोसा करने की भारत की क्षमता को जटिल बनाता है। इसलिये सुरक्षा क्षेत्रों में सहयोग जारी रखना दोनों देशों के हित में है। 
  • चीनी सेना की बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताओं के कारण साझा चुनौतियों से प्रेरित होकर अमेरिका-भारत द्विपक्षीय संबंध के केंद्र में अंतरिक्ष क्षेत्र का विकास प्रमुख विषय बन गया है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


भारतीय अर्थव्यवस्था

पूर्वोत्तर भारत में बुनियादी ढांँचे का विकास

प्रिलिम्स के लिये:

हॉर्नबिल फेस्टिवल, कलादान मल्टीमॉडल ट्रांँजिट प्रोजेक्ट, NEIDS, नेशनल बैम्बू मिशन, नॉर्थ ईस्टर्न रीजन विज़न 2020, डिजिटल नॉर्थ ईस्ट विज़न 2022, BCIM कॉरिडोर। 

मेन्स के लिये:

उत्तर-पूर्व कनेक्टिविटी और इसके महत्त्व को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल। 

चर्चा में क्यों?     

हाल ही में भारत के वित्त मंत्री ने पूर्वोत्तर में 1,34,200 करोड़ रुपए की कई रेल, सड़क और हवाई कनेक्टिविटी परियोजनाओं के निष्पादन की घोषणा की। 

  • ये परियोजनाएंँ शेष भारत को उत्तर-पूर्व के करीब लाने में मदद करेंगी। 
  • दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ कनेक्टिविटी भी फोकस का क्षेत्र रहेगा। 

पूर्वोत्तर में प्रमुख बुनियादी ढांँचा परियोजनाएंँ: 

  • रेल, सड़क और हवाई कनेक्टिविटी: 
    • 4,000 किमी. सड़कें, 2,011 किमी. की 20 रेलवे परियोजनाएंँ और 15 हवाई कनेक्टिविटी परियोजनाएंँ विकसित की जा रही हैं। 
  • जलमार्ग कनेक्टिविटी: 
    • गंगा, ब्रह्मपुत्र व बराक नदियों के राष्ट्रीय जलमार्ग ( गंगा पर NW-1, ब्रह्मपुत्र पर NW-2 और बराक पर NW-16) बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये विकास के चरण में हैं। 
    • चूंँकि हवाई, सड़क और रेल नेटवर्क की तुलना में जल के माध्यम से यात्रा की लागत बहुत कम है, इसलिये भारत तथा बांग्लादेश की नदी प्रणालियों का सभी प्रकार के परिवहन के लिये लाभ उठाया जा सकता है। 
    • 'इंडो-बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट्स' की संख्या 8 से बढ़ाकर 10 कर दी गई है। 
    • असम में ब्रह्मपुत्र नदी के आसपास सदिया और धुबरी के बीच के पूरे क्षेत्र को विकसित किया जा रहा है ताकि बेहतर कनेक्टिविटी सुविधा दी जा सके। 
    • मल्टीमॉडल हब जिसमें पांडु में एक जहाज़ मरम्मत बंदरगाह, चार पर्यटक घाट और गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र पर 11 फ्लोटिंग टर्मिनल शामिल हैं, निर्माणाधीन है। 
  • ईस्टर्न वाटरवेज़ कनेक्टिविटी ट्रांसपोर्ट ग्रिड: 
    • यह 5,000 किमी. नौगम्य जलमार्ग प्रदान करके पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ेगा। 
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना (NERPSIP): 
    • NERPSIP इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को मज़बूत करने हेतु पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है। 
    • सरकार विद्युत पारेषण और वितरण, मोबाइल नेटवर्क, 4जी तथा ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी से संबंधित परियोजनाओं पर भी ज़ोर दे रही है। 
  • पूर्वोत्तर के लिये प्रधानमंत्री विकास पहल (PM- DevINE): वित्त वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में इसकी घोषणा की गई थी। यह प्रधानमंत्री गति शक्ति के तहत उत्तर-पूर्व की ज़रूरतों पर आधारित सामाजिक विकास परियोजनाओं के लिये बुनियादी ढांँचे को निधि प्रदान करेगी 

पूर्वोत्तर क्षेत्र का महत्त्व : 

Arunachal-pradesh

  • सामरिक स्थान: पूर्वोत्तर क्षेत् रणनीतिक रूप से पूर्वी भारत के पारंपरिक घरेलू बाज़ार तक पहुंँच के साथ-साथ पूर्वी राज्य पड़ोसी देशों जैसे- बांग्लादेश और म्यांँमार से निकटता के साथ स्थित है। 
  • दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संबंध: एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (ASEAN) की भागीदारी भारत की विदेश नीति का केंद्रीय स्तंभ बनने के साथ, उत्तर-पूर्वी राज्य भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच भौतिक सेतु के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत पूर्वोत्तर राज्य भारत के पूर्व की ओर जुड़ाव की क्षेत्रीय सीमा पर हैं। 
  • आर्थिक महत्त्व: उत्तर-पूर्व में अपार प्राकृतिक संसाधन हैं, जो देश के जल संसाधनों का लगभग 34% और भारत की जलविद्युत क्षमता का लगभग 40% है। 
    • सिक्किम भारत का पहला जैविक राज्य है। 
  • पर्यटन क्षमता: भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र कई वन्यजीव अभयारण्यों का घर है, जैसे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एक सींग वाले गैंडे के लिये प्रसिद्ध है, वहीं अन्य राष्ट्रीय उद्यानों में मानस राष्ट्रीय उद्यान, नामेरी, ओरंग, असम में डिब्रू सैखोवा, अरुणाचल प्रदेश में नामदफा, मेघालय में बालपक्रम, मणिपुर में केबुल लामजाओ, नगालैंड में इटांकी, सिक्किम में कंचनजंगा स्थित हैं। 
  • सांस्कृतिक महत्त्व: उत्तर-पूर्व में जनजातियों की अपनी संस्कृति है। लोकप्रिय त्योहारों में नगालैंड का हॉर्नबिल महोत्सव, सिक्किम का पांग ल्हाबसोल आदि शामिल हैं। 

पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये सरकारी पहल: 

  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER): वर्ष 2001 में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास विभाग (Ministry of Development of North Eastern Region- DoNER) की स्थापना हुई। वर्ष 2004 में इसे एक पूर्ण मंत्रालय का दर्जा प्रदान कर दिया गया। 
  • अवसंरचना संबंधी पहल: 
    • भारतमाला परियोजना (Bharatmala Pariyojana- BMP) के तहत पूर्वोत्तर में लगभग 5,301 किलोमीटर सड़क के विस्तार व सुधार के लिये अनुमोदन प्रदान किया गया है। 
    • उत्तर-पूर्व को आरसीएस-उड़ान (उड़ान को और अधिक किफायती बनाने हेतु) के तहत प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है। 
  • कनेक्टिविटी परियोजनाएंँ: कलादान मल्टी मॉडल पारगमन परिवहन परियोजना (म्याँमार) और बांग्लादेश-चीन-भारत-म्याँमार (Bangladesh-China-India-Myanmar- BCIM) कॉरिडोर। 
  • पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजन के तहत पिछले पांँच वर्षों में पूर्वोत्तर के लिये 140.03 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है। 
  • मिशन पूर्वोदय: पूर्वोदय का उद्देश्य इस्पात क्षेत्र में एक एकीकृत इस्पात हब की स्थापना के माध्यम से पूर्वी भारत के त्वरित विकास को गति प्रदान करना है। 
    • एकीकृत स्टील हब, जिसमें ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और उत्तरी आंध्र प्रदेश शामिल हैं, पूर्वी भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु एक पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करेगा। 
  • पूर्वोत्‍तर औद्योगिक विकास योजना (NEIDS): पूर्वोत्तर राज्यों में रोज़गार को बढ़ावा देने हेतु सरकार मुख्य रूप से इस योजना के माध्यम से एमएसएमई क्षेत्र को प्रोत्साहित कर रही है। 
  • पूर्वोत्तर के लिये राष्ट्रीय बांँस मिशन का विशेष महत्त्व है। 
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र विज़न 2020: यह दस्तावेज़ पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिये एक व्यापक ढांँचा प्रदान करता है ताकि इस क्षेत्र को अन्य विकसित क्षेत्रों के बराबर लाया जा सके जिसके तहत उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय सहित अन्य मंत्रालयों ने विभिन्न पहलें शुरू की हैं।   
  • डिजिटल नॉर्थ ईस्ट विज़न 2022: यह पूर्वोत्तर के लोगों के जीवन-स्तर में सुधार लाने और उसे सुगम बनाने हेतु डिजिटल तकनीकों का लाभ उठाने पर ज़ोर देता है। 

आगे की राह 

  • बुनियादी ढाँचे में निवेश से रोज़गार का सृजन होगा और यह पूर्वोत्तर क्षेत्र में अलगाववादी आंदोलनों को विफल करने में प्रमुख भूमिका निभाएगा। 
  • भारत का उत्तर-पूर्व क्षेत्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से घिरा हुआ है, इसलिये भारत के पूर्वोत्तर में समावेशी विकास के लिये राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय परियोजना के अंतर्गत बुनियादी ढाँचा विकास सबसे अच्छा विकल्प होगा। 

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. यदि आप कोहिमा से कोट्टायम तक सड़क मार्ग से यात्रा करते हैं, तो आपको मूल स्थान और गंतव्य स्थान को मिलाकर भारत के अंदर कम-से-कम कितने राज्यों से होकर गुज़रना होगा? (2017) 

(a) 6 
(b) 7 
(c) 8 
(d) 9 

उत्तर: (B) 

व्याख्या: 

  • यदि कोई व्यक्ति कोहिमा (नगालैंड) से कोट्टायम (केरल) तक सड़क मार्ग से यात्रा करता है, तो उसे कम-से-कम 7 राज्यों से गुज़रना होगा और वह दो वैकल्पिक मार्गों का चयन कर सकता है: 
    • मार्ग 1: नगालैंड, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा,आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल। 
    • मार्ग 2: नगालैंड, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल। 

अतः विकल्प (B) सही है। 


प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014) 

  1. दम्पा टाइगर रिज़र्व  : मिज़ोरम
  2. गुमटी वन्यजीव अभयारण्य : सिक्किम
  3. सारामती शिखर : नगालैंड

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (C) 

स्रोत: द हिंदू 


जैव विविधता और पर्यावरण

गैर CO2 प्रदूषक

प्रिलिम्स के लिये:

प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, आईपीसीसी, CoP26, CO2 और गैर-CO2 प्रदूषक, डीकार्बोनाइज़ेेशन 

मेन्स के लिये:

प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, आईपीसीसी, CoP26, डीकार्बोनाइज़ेेशन, पर्यावरण क्षरण। 

चर्चा में क्यों? 

एक नए अध्ययन के अनुसार, दुनिया को जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये गैर-CO2  प्रदूषकों और CO2  प्रदूषकों दोनों को लक्षित करने की आवश्यकता है। 

  • यदि केवल डीकार्बोनाइज़ेेशन प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो वैश्विक तापमान वर्ष 2035 तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों पर 1.5 डिग्री सेल्सियस और 2050 तक 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की संभावना है 

गैर-CO2  प्रदूषक: 

  • परिचय: 
    • गैर-CO2  प्रदूषकों में मीथेन, ब्लैक कार्बन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC), ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन और नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। 
    • मीथेन: मीथेन शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। यह ओज़ोन के निर्माण में योगदान देती है। 
    • ब्लैक कार्बन: ब्लैक कार्बन PM2.5 का एक प्रमुख घटक है और वातावरण में शक्तिशाली उष्मण कारक है, जो क्षेत्रीय पर्यावरणीय असंतुलन और ग्लेशियर के पिघलने में तेज़ी लाने में योगदान देता है। 
    • हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC): हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) ग्रीनहाउस गैसें (GHG) हैं जिनका उपयोग आमतौर पर प्रशीतन, एयर-कंडीशनिंग (AC), बिल्डिंग इंसुलेशन, आग बुझाने की प्रणाली और एरोसोल में किया जाता है। 
    • ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन का निर्माण हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ सूर्य के प्रकाश, विशेष रूप से पराबैंगनी प्रकाश की अंतर्क्रिया से होता है, जो ऑटोमोबाइल टेलपाइप और स्मोकस्टैक्स द्वारा उत्सर्जित होते हैं। 
    • नाइट्रस ऑक्साइड: नाइट्रस ऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस है जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से 300 गुना अधिक शक्तिशाली है। N2O उत्सर्जन का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र से आता है। 
  • स्रोत: ये गैसें कई क्षेत्रों और स्रोतों से उत्सर्जित होती हैं: 
    • मीथेन ज़्यादातर जीवाश्म ईंधन, औद्योगिक प्रक्रियाओं, आंत्र किण्वन, चावल की खेती, खाद प्रबंधन, अन्य कृषि स्रोतों और अपशिष्ट क्षेत्र के निष्कर्षण, वितरण और दहन से उत्सर्जित होता है। 
    • N2O ज़्यादातर औद्योगिक प्रक्रियाओं, कृषि मृदा, खाद प्रबंधन और अपशिष्ट जल से उत्सर्जित होती है। 
    • F-गैसें ज़्यादातर औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्सर्जित होती हैं। 
  • ग्लोबल वार्मिंग में योगदान: ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने वाले गैर-CO2 प्रदूषकों की हिस्सेदारी लगभग कार्बन डाइऑक्साइड जितनी है। 

संबंधित मुद्दा: 

  • ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज’ (IPCC) की वर्किंग ग्रुप III की रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन को कम करने से संबंधित है, यह CO2 और कुछ ग्रीनहाउस गैसों पर ध्यान केंद्रित करती है, लेकिन अन्य गैर-CO2 प्रदूषकों को बाहर करती है। 
  • गैर-CO2  ग्रीनहाउस गैसों और ब्लैक कार्बन से वार्मिंग 80% के करीब थी। 
  • गैर-CO2 प्रदूषकों से निपटे बिना, ये गैसें ऊष्मा को एकत्रित करती रहेंगी और वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रखेंगी। 

गैर-CO2 प्रदूषकों से निपटने के लिये हाल की पहल: 

  • ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट, 2021 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (CoP26) के दौरान हस्ताक्षरित एक समझौते ने वर्ष 2030 तक मीथेन सहित गैर-कार्बन डाइऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये आगे की कार्रवाई पर विचार करने की आवश्यकता को मान्यता दी। 
    • वैश्विक मीथेन प्रतिबद्धता: अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ग्लासगो में COP26 में वैश्विक मीथेन प्रतिबद्धता का शुभारंभ किया। 100 से अधिक देशों ने वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 30% की कटौती करने की प्रतिबद्धता जताई है। 
    • भारत ने वैश्विक मीथेन प्रतिबद्धता को हस्ताक्षरित नहीं किया है 
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने एक एंटी-मिथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट 'हरित धारा' (HD) विकसित की है, जो मवेशियों द्वारा मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकती है।  

विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में इस्पात उद्योग द्वारा छोड़े गए कुछ महत्त्वपूर्ण प्रदूषक निम्नलिखित में से कौन से हैं? (2014) 

  1. सल्फर के ऑक्साइड
  2. नाइट्रोजन के ऑक्साइड
  3. कार्बन मोनोऑक्साइड
  4. कार्बन डाइऑक्साइड

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(A) केवल 1, 3 और 4 
(B) केवल 2 और 3 
(C) केवल 1 और 4 
(D) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (D) 

  • इस्पात उद्योग प्रदूषण पैदा करता है क्योंकि यह कोयले और लौह अयस्क का उपयोग करता है जिसका दहन विभिन्न पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) यौगिकों तथा ऑक्साइड को हवा में छोड़ता है। 
  • स्टील भट्ठी में कोक, लौह अयस्क के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे लौह बनता है और प्रमुख पर्यावरण प्रदूषक उत्पन्न होते हैं 
  • इस्पात उत्पादक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषक हैं: 
    • कार्बन मोनोऑक्साइड (CO); अतः 3 सही है। 
    • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2); अत 4 सही है। 
    • सल्फर के ऑक्साइड (SOx); अत: 1 सही है। 
    • नाइट्रोजन के आक्साइड (NOx); अत: 2 सही है। 
    • PM 2.5; 
    • अपशिष्ट जल; 
    • खतरनाक अपशिष्ट; 
    • ठोस अपशिष्ट। 
  • हालांँकि एयर फिल्टर, वॉटर फिल्टर और अन्य प्रकार से पानी की बचत, बिजली की बचत और बंद कंटेनर के रूप में तकनीकी हस्तक्षेप उत्सर्जन को कम कर सकते हैं। अतः विकल्प (D) सही उत्तर है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


शासन व्यवस्था

आधार डेटा की सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

CAG, UIDAI, आधार अधिनियम 2016 

मेन्स के लिये:

आधार और संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने पहले जनता को अपने आधार की एक फोटोकॉपी किसी भी संगठन के साथ साझा नहीं करने की चेतावनी जारी की और बाद में इस चेतावनी कोे वापस ले लिया। 

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण: 

  • सांविधिक प्राधिकरण: UIDAI 12 जुलाई, 2016 को आधार अधिनियम 2016 के प्रावधानों का पालन करते हुए ‘इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ के अधिकार क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वैधानिक प्राधिकरण है। 
    • UIDAI की स्थापना भारत सरकार द्वारा जनवरी 2009 में योजना आयोग के तत्त्वावधान में एक संलग्न कार्यालय के रूप में की गई थी। 
  • जनादेश: UIDAI को भारत के सभी निवासियों को एक 12-अंकीय विशिष्ट पहचान (UID) संख्या (आधार) प्रदान करने का कार्य सौंपा गया है। 
    • 31 अक्तूबर, 2021 तक UIDAI ने 131.68 करोड़ आधार नंबर जारी किये थे। 

UIDAI की प्रारंभिक चेतावनी: 

  • UIDAI ने "आम जनता को किसी भी संगठन के साथ अपने आधार की फोटोकॉपी साझा नहीं करने की चेतावनी दी, क्योंकि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है"।  
    • इसके स्थान पर ‘मास्क्ड’ आधार का उपयोग करने की सिफारिश की, जो आधार संख्या के केवल अंतिम चार अंक प्रदर्शित करता है"। 
  • इसने जनता से अपने ई-आधार को डाउनलोड करने के लिये सार्वजनिक कंप्यूटरों का उपयोग करने से बचने के लिये भी कहा। 
    • उस स्थिति में उन्हें उसी की भी डाउनलोड की गई प्रतियों को "स्थायी रूप से हटाने" के लिये कहा गया था। 
  • केवल वे संगठन जिन्होंने यूआईडीएआई से उपयोगाकर्त्ता लाइसेंस प्राप्त किया है, वे किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिये आधार का उपयोग कर सकते हैं। 
    • इसके अलावा आधार अधिनियम के कारण होटल और मूवी थियेटर को आधार कार्ड की प्रतियाँ एकत्र करने या बनाए रखने की अनुमति नहीं है। 

आधार से संबंधित चिंताएंँ:  

  • आधार डेटा का दुरुपयोग: 
    • देश में कई निजी संस्थाएँं आधार कार्ड पर ज़ोर देती हैं और उपयोगाकर्त्ता अक्सर विवरण साझा करते हैं। 
    • इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि यें संस्थाएँ कैसे इन डेटा को निजी और सुरक्षित रखती हैं। 
    • हाल ही में कोविड -19 परीक्षण के साथ, कई लोगों ने देखा होगा कि अधिकांश प्रयोगशालाएँ आधार कार्ड के डेटा पर ज़ोर देती हैं, जिसमें एक फोटोकॉपी भी शामिल है। 
      • यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि कोविड-19 परीक्षण करवाने के लिये इसे साझा करना अनिवार्य नहीं है। 
  • ज़बरन थोपना:  
    • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि आधार प्रमाणीकरण को केवल भारत के समेकित कोष से भुगतान किये गए लाभों के लिये अनिवार्य बनाया जा सकता है और आधार के विफल होने पर पहचान सत्यापन के वैकल्पिक साधन हमेशा प्रदान किये जाने चाहिये। 
      • बच्चों को छूट दी गई थी लेकिन आंँगनवाड़ी सेवाओं या स्कूल में नामांकन जैसे बुनियादी अधिकारों के लिये बच्चों से नियमित रूप से आधार की मांग की जाती रही है। 
  • मनमाना बहिष्करण:  
    • केंद्र और राज्य सरकारों ने आधार के साथ कल्याणकारी लाभों के जुड़ाव को लागू करने के लिये "अल्टीमेटम पद्धति" का नियमित उपयोग किया है।  
    • इस पद्धति में यदि प्राप्तकर्त्ता सही समय में लिंकेज निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, जैसे कि अपने जॉब कार्ड, राशन कार्ड या बैंक खाते को आधार से लिंक करने में विफल होने पर लाभ को वापस ले लिया जाता है या निलंबित कर दिया जाता है। 
  • धोखाधड़ी-प्रवृत्त आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS):  
    • AePS एक ऐसी सुविधा है जो किसी ऐसे व्यक्ति को सक्षम बनाती है जिसके पास आधार से जुड़ा खाता है, वह भारत में कहीं से भी "बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट" के साथ बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के माध्यम से पैसे निकाल सकता है- एक तरह का मिनी-एटीएम। 
      • भ्रष्ट व्यापार कॉरेस्पोंडेंट द्वारा इस सुविधा का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया है। 

हाल ही में उठा मुद्दा: 

आधार का महत्त्व: 

  • पारदर्शिता और सुशासन को बढ़ावा देना: आधार नंबर ऑनलाइन एवं किफायती तरीके से सत्यापन योग्य है 
    • यह डुप्लीकेट और नकली पहचान को खत्म करने में अद्वितीय है तथा इसका उपयोग कई सरकारी कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने हेतु किया जाता है जिससे पारदर्शिता एवं सुशासन को बढ़ावा मिलता है। 
  • निचले स्तर तक मदद: आधार ने बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को पहचान प्रदान की है जिनकी पहले कोई पहचान नहीं थी। 
    • इसका उपयोग कई प्रकार की सेवाओं में किया गया है तथा इसने वित्तीय समावेशन, ब्रॉडबैंड और दूरसंचार सेवाओं, नागरिकों के बैंक खाते में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण में पारदर्शिता लाने में मदद की है। 
  • तटस्थ: आधार संख्या किसी भी जाति, धर्म, आय, स्वास्थ्य और भूगोल के आधार पर लोगों को वर्गीकृत नहीं करती है। 
    • आधार संख्या पहचान का प्रमाण है, हालांँकि आधार संख्या इसके धारक को नागरिकता या अधिवास का कोई अधिकार प्रदान नहीं करती है। 
  • जन-केंद्रित शासन: आधार सामाजिक और वित्तीय समावेशन, सार्वजनिक क्षेत्र के सुविधाओं के पहुँच में सुधारों, वित्तीय बजटों के प्रबंधन, सुविधा बढ़ाने और समस्या मुक्त जन-केंद्रित शासन को बढ़ावा देने के लिये एक रणनीतिक नीति उपकरण है।
  • स्थायी वित्तीय पता: आधार को स्थायी वित्तीय पते के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, यह समाज के वंचित और कमज़ोर वर्गों के वित्तीय समावेशन की सुविधा प्रदान करता है, अतः न्याय और समानता का एक उपकरण है। 
    • इस प्रकार आधार पहचान मंच 'डिजिटल इंडिया' के प्रमुख स्तंभों में से एक है। 

आगे की राह 

  • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पालन करें: 
    • सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करना चाहिये और उन्हें लागू करना चाहिये, जिनमें शामिल हैं: 
      • अनुमत उद्देश्यों के लिये अनिवार्य आधार का प्रतिबंध। 
      • आधार प्रमाणीकरण विफल होने पर विकल्प का प्रावधान। 
      • बच्चों के लिये बिना शर्त छूट। 
  • लाभ वंचना निषेध: 
    • लाभों को वापस या निलंबित नहीं करना चाहिये: 
      • उन नामों का अग्रिम प्रकटीकरण, जिन्हें हटाए जाने की संभावना है, साथ ही प्रस्तावित विलोपन का कारण। 
      • प्रभावित लोगों को कारण बताओ नोटिस जारी करना और उन्हें जवाब देने या अपील करने का अवसर (पर्याप्त समय के साथ) प्रदान करना। 
      • दिनांक और कारण सहित विलोपन के सभी मामलों का पूर्व एवं पश्चात प्रकटीकरण। 
  • मज़बूत सुरक्षा उपायों की ज़रूरत है: 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)  

  1. आधार कार्ड का उपयोग नागरिकता या अधिवास के प्रमाण के रूप में किया जा सकता हैै। 
  2. एक बार जारी होने के बाद आधार संख्या को जारीकर्त्ता प्राधिकारी द्वारा समाप्त या छोड़ा नहीं जा सकता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों  
(d) न तो 1 और न ही 2  

उत्तर: (d) 

  • आधार प्लेटफॉर्म सेवा प्रदाताओं को निवासियों की पहचान को सुरक्षित और त्वरित तरीके से इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित करने में मदद करता है, जिससे सेवा वितरण अधिक लागत प्रभावी एवं कुशल हो जाता है। भारत सरकार और UIDAI के अनुसार आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। 
  • हालाँकि UIDAI ने आकस्मिकताओं का एक सेट भी प्रकाशित किया है जो उसके द्वारा जारी आधार अस्वीकृति के लिये उत्तरदायी है। मिश्रित या विषम बायोमेट्रिक जानकारी वाला आधार निष्क्रिय किया जा सकता है। आधार का लगातार तीन वर्षों तक उपयोग न करने पर भी उसे निष्क्रिय किया जा सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत की समुद्री भूमिका में बाधाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

क्वाड, समुद्री कार्यक्षेत्र जागरूकता पहल (MDA), हिंद-प्रशांत क्षेत्र, आईएफ-आईओआर। 

मेन्स के लिये:

क्वाड ग्रुप, हिंद -प्रशांत क्षेत्र पहल, मुद्दे और चुनौतियाँ। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका से मिलकर बने क्वाड समूह ने सूचना साझा करने तथा समुद्री निगरानी के लिये एक हिंद-प्रशांत समुद्री कार्यक्षेत्र जागरूकता (IPMDA) पहल शुरू की है। 

  • बुनियादी ढाँचे की कमी और भारत में संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति में निरंतर देरी ने भारत की भूमिका को  सीमित कर दिया है। 

हिंद-प्रशांत समुद्री कार्यक्षेत्र जागरूकता (IPMDA) पहल: 

  • टोक्यो में वर्ष 2022 में आयोजित क्वाड नेताओं के सम्मलेन में IPMDA पहल की घोषणा की गई थी ताकि हिंद-प्रशांत, प्रशांत द्वीप समूह, दक्षिण-पूर्व एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में "डार्क शिपिंग" की निगरानी की जा सके और तीन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को एकीकृत करते हुए "साझेदारों द्वारा समुद्र में निकट-वास्तविक समय की गतिविधियों की तेज़, व्यापक और अधिक सटीक समुद्री तकनीक " का निर्माण किया जा सके।  
    • डार्क शिप वे जहाज़ होते हैं जिनकी स्वचालित पहचान प्रणाली (ASI) के ट्रांसपोंडर को बंद कर दिया जाता है ताकि उनका पता न चल सके। 
  • यह अन्य सामरिक-स्तरीय गतिविधियों पर नज़र रखने की भी अनुमति देगा, जैसे कि समुद्र में संकेत-स्थान, जलवायु और मानवीय घटनाओं पर प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिये भागीदारों की क्षमता में सुधार करेगा, साथ ही उनकी मत्स्य पालन गतिविधियों की रक्षा करेगा, जो कि इंडो-पैसिफिक अर्थव्यवस्थाओं के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • IPMDA पूरे क्षेत्र में चीनी नौसैनिक उपस्थिति के विस्तार की पृष्ठभूमि में क्वाड देशों के साथ-साथ तटवर्ती राज्यों की मदद करेगा। 
  • इससे देश में विभिन्न एजेंसियों के साथ संबंध स्थापित करने में भारतीय संपर्क अधिकारियों की मौज़ूदा भूमिका में और वृद्धि होगी। 

वे दो मुद्दे जो भारत की भूमिका को सीमित करते हैं: 

  • बुनियादी ढांँचे की कमी: इसमें न केवल जहाज़ निर्माण और जहाज़ की मरम्मत शामिल है, बल्कि भारत के तटीय एवं आंतरिक क्षेत्रों के एकीकृत विकास के लिये रेल और सड़क नेटवर्क के माध्यम से आधुनिकीकरण एवं आंतरिक संपर्क भी शामिल है। 
    • इसमें तटीय नौवहन भी शामिल है। बुनियादी ढांँचे की कमी के कारण भारत भारतीय नौसेना के सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) में अंतर्राष्ट्रीय संपर्क अधिकारी (ILO) की पोस्टिंग स्वीकार करने में असमर्थ है। 
      • भारत ने 22 देशों और एक बहुराष्ट्रीय समूह के साथ व्हाइट शिपिंग एक्सचेंज समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं। 
      • व्हाइट शिपिंग जानकारी वाणिज्यिक गैर-सैन्य व्यापारी जहाज़ोंं की पहचान और आवाजाही पर प्रासंगिक अग्रिम सूचनाओं के आदान-प्रदान को संदर्भित करती है। 
      • जहाज़ो को सफेद (वाणिज्यिक जहाज़ोंं), ग्रे (सैन्य जहाज़ों), और काले (अवैध जहाज़ोंं) में वर्गीकृत किया जाता है। 
      • न केवल भारत में ILO का होना महत्त्वपूर्ण है, बल्कि अन्य देशों में समान केंद्रों पर भारतीय नौसेना के अधिकारियों को तैनात करना भी आवश्यक है। 
  • क्षेत्र में अन्य सुविधाओं और केंद्रों पर भारतीय संपर्क अधिकारियों की तैनाती में लगातार देरी: 
    • क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र (RMIFC), मेडागास्कर और क्षेत्रीय समन्वय संचालन केंद्र, सेशेल्स में भारतीय नौसेना संपर्क अधिकारियों (LO) को तैनात करने का प्रस्ताव दो वर्ष से अधिक समय से लंबित है। 
    • अबू धाबी में स्ट्रेट ऑफ होर्मुज (EMASOH) में यूरोपीय नेतृत्व वाले मिशन में संपर्क अधिकारी को तैनात करने के एक अन्य प्रस्ताव को भी अब तक मंज़ूूरी नहीं मिली है। 
    • एलओ की तैनाती में भी देरी हो रही है। उदाहरण के लिये, भारत का सिंगापुर में भारतीय LOकी नियुक्ति   2009 में की गई थी।  

सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR): 

  • भारतीय नौसेना ने दिसंबर 2018 में गुरुग्राम में सामुद्रिक नौवहन की निगरानी के लिये 'सूचना प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र' (Information Management and Analysis Centre- IMAC) के रूप में ‘हिंद महासागर क्षेत्र के लिये सूचना संलयन केंद्र’ की स्थापना की है। 
  • IFC-IOR की परिकल्पना विश्व व्यापार और सुरक्षा के संबंध में क्षेत्र के महत्त्व को देखते हुए समुद्री सुरक्षा  के लिये सहयोग को बढ़ावा देने हेतु की गई थी। 
  • अपनी स्थापना के बाद से केंद्र ने 50 से अधिक देशों और बहुराष्ट्रीय/समुद्री सुरक्षा केंद्रों के साथ कार्य स्तर के संबंध स्थापित किये हैं। 

आगे की राह 

  • IPMDA को प्रोत्साहन प्रदान कर अन्य IFC के साथ संबंधों में सुधार लाने और लंबित प्रस्तावों को शीघ्रता से संबोधित करने की आवश्यकता है अन्यथा भारत इस अवसर को खो देगा। 
  • यदि तुरंत कार्रवाई नहीं की गई तो यह पहल उत्साह खो देगी क्योंकि देशों की दिलचस्पी खत्म हो जाएगी। 
  • देश के आर्थिक विकास और वृद्धि के लिये भारतीय बुनियादी ढाँचे का विकास आवश्यक है। जैसा कि भारत ने विकास आधारित आर्थिक नीति को अपनाया है, भारत को समुद्री बुनियादी ढाँचे को विकसित करने की ज़रूरत है, जैसे- बंदरगाहों का विकास, कनेक्टिविटी, रसद आदि। 

विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न. समाचारों में देखे जाने वाले शब्द 'डिजिटल सिंगल मार्केट स्ट्रैटेजी' पद किसे निर्दिष्ट करता है? (2017) 

(a) आसियान  
(b) ब्रिक्स'  
(c) यूरोपियन यूनियन  
(d) जी-20 

उत्तर: (c)  

व्याख्या: 

  • यूरोपीय संघ द्वारा 6 मई, 2015 को 'डिजिटल सिंगल मार्केट स्ट्रैटेजी' को अपनाया गया था। इसमें 16 विशिष्ट पहल शामिल हैं जिनका उद्देश्य लोगों और व्यापार के लिये डिजिटल अवसरों को खोलना तथा डिजिटल अर्थव्यवस्था में विश्व नेता के रूप में यूरोप की स्थिति को बढ़ाना है।  
  • यह रणनीति तीन नीतिगत स्तंभों पर आधारित है:  
  • पहुँच: उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिये पूरे यूरोप में डिजिटल वस्तुओं एवं सेवाओं तक बेहतर पहुँच। 
  • पर्यावरण: डिजिटल नेटवर्क और नवोन्मेषी सेवाओं के फलने-फूलने के लिये सही परिस्थितियों व समान अवसर प्रदान करना 
  • अर्थव्यवस्था और समाज: डिजिटल अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता को अधिकतम करना। अतः विकल्प (c) सही है। 

स्रोत: द हिंदू 


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, MSME 

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों का महत्त्व तथा चुनौतियांँ। 

चर्चा में क्यों? 

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) को वित्त वर्ष 2026 तक पांँच साल के लिये विस्तार की मंज़ूरी दे दी है। 

  • PMEGP को अब 13,554.42 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ 2021-22 से 2025-26 तक पांच साल के लिये 15वें वित्त आयोग अवधि तक जारी रखने की मंज़ूरी दी गई है। 

PMEGP योजना: 

  • शुरुआत:  
    • भारत सरकार ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) नामक एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम की शुरुआत को मंज़ूरी दी। 
    • यह उद्यमियों को कारखाने या इकाइयाँ स्थापित करने की अनुमति देता है 
  • प्रशासन 
    • यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MoMSME) द्वारा प्रशासित एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। 
    • ‘केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय’ के तहत संचालित इस योजना का क्रियान्वयन ‘खादी और ग्रामोद्योग आयोग’ (Khadi and Village Industries Commission- KVIC) द्वारा किया जाता है। 
  • विशेषताएँ: 
    • पात्रता: 
      • कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक हो। 
      • इस कार्यक्रम के तहत केवल नई इकाइयों की स्थापना के लिये सहायता प्रदान की जाती है। 
      • इसके साथ ही ऐसे स्वयं सहायता समूह जिन्हें किसी अन्य सरकारी योजना का लाभ न मिल रहा हो, ‘सोसायटी रजिस्‍ट्रेशन अधिनियम, 1860’ के तहत पंजीकृत संस्‍थान, उत्‍पादक कोऑपरेटिव सोसायटी और चैरिटेबल ट्रस्‍ट आदि इसके तहत लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 
    • परियोजना / यूनिट की अधिकतम स्वीकार्य लागत: 
      • विनिर्माण क्षेत्र: 50 लाख रुपए 
      • सेवा क्षेत्र: 20 लाख रुपए 
    • सरकारी सब्सिडी: 
      • ग्रामीण क्षेत्र: सामान्य वर्ग के लिये 25% और विशेष श्रेणी के लिये 35%, जिसमें एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक, एनईआर, पहाड़ी और सीमावर्ती क्षेत्र, ट्रांसजेंडर, शारीरिक रूप से अक्षम, उत्तर पूर्वी क्षेत्र, आकांक्षी व सीमावर्ती ज़िले के लाभार्थी शामिल हैं। 
      • शहरी क्षेत्र: सामान्य श्रेणी के लिये 15% और विशेष श्रेणी के लिये 25%। 
    • बैंकों की भूमिका: संबंधित राज्य टास्क फोर्स समिति द्वारा अनुमोदित सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों और निजी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण प्रदान किये जाते हैं। 
  • बदलाव: 
    • योजना के लिये ग्रामोद्योग और ग्रामीण क्षेत्र की परिभाषा में बदलाव किया गया है। 
    • पंचायती राज संस्थाओं के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को ग्रामीण क्षेत्रों के अंतर्गत, जबकि नगर पालिका के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को शहरी क्षेत्रों के रूप में माना जाएगा। 
  • महत्त्व: 
    • यह योजना पाँच वित्तीय वर्षों में लगभग 40 लाख व्यक्तियों के लिये स्थायी रोज़गार के अवसर पैदा करेगी। 
    • यह गैर-कृषि क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना में सहायता करके देश भर में बेरोज़गार युवाओं के लिये रोज़गार के अवसर पैदा करने की सुविधा प्रदान करती है। 
    • 2008-09 में इसकी स्थापना के बाद से लगभग 7.8 लाख सूक्ष्म उद्यमों को 19,995 करोड़ रुपए की सब्सिडी के साथ अनुमानित 64 लाख व्यक्तियों के लिये स्थायी रोज़गार पैदा करने में सहायता मिली है। सहायता प्राप्त इकाइयों में से लगभग 80% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और लगभग 50% इकाइयाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला श्रेणियों के स्वामित्व में हैं। 

चुनौतियांँ: 

  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 से वित्तीय वर्ष 2018-19 के बीच इस कार्यक्रम के तहत 10,169 रुपए आवंटित किये गए थे जिनमें से 1,537 करोड़ रुपए NPA में बदल गए। 
  • कौशल में कमी, बाज़ार अध्ययन की कमी, कम मांग और कड़ी प्रतिस्पर्द्धा को इतनी बड़ी संख्या में एनपीए का प्रमुख कारण माना जाता है। 
  • जब आमतौर पर सभी केंद्रीय योजनाओं को निश्चित वार्षिक लक्ष्य दिये जाते हैं तो यह योजना ऐसे किसी लक्ष्य से प्रेरित नहीं है। चूँकि राज्य और बैंक दोनों ऋणों के वितरण के वार्षिक लक्ष्य को पूरा करने के उद्देश्य के बिना कार्य करते हैं, जिससे कार्यक्रम अपनी गति खो सकता है। 

आगे की राह 

  • वित्तीय सहायता प्रदान करने के अलावा सरकार को संभावित उद्यमियों को सही बाज़ार और सही उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद के लिये एक गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता है। 
  • यह योजना ऐसे समय में फायदेमंद साबित हो सकती है जब अर्थव्यवस्था को कोविड-19 महामारी के प्रभाव से उबरने की ज़रूरत है। परियोजनाओं के निष्पादन और देश में रोज़गार पैदा करने के लिये धन का समय पर वितरण आवश्यक है। 
  • सरकार को बेहतर तकनीक और मार्केटिंग सपोर्ट के साथ माइक्रो सेगमेंट पर फोकस करना होगा। केवल वित्तीय सहायता ही पर्याप्त नहीं है। योजना के बारे में जागरूकता एक अन्य चुनौती है। 

स्रोत: पी.आई.बी. 


भारतीय अर्थव्यवस्था

बैंकों का निजीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में बैंकिंग और संबंधित कानून, RBI के कार्य, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (बैड बैंक)। 

मेंन्स के लिये:

बैंकों का निजीकरण, इसके महत्त्व और संबंधित मुद्दे, उदारीकरण से पहल के वर्षो में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रभाव। 

चर्चा में क्यों? 

सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के लिये 'अग्रिम कार्रवाई (Advanced Action)' करने की प्रक्रिया में है 

  • सरकार मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के साथ-साथ आर्थिक स्थिरता और विकास को बनाए रखने के लिये निरंतर प्रयासरत है। 

निजीकरण: 

  • सरकार से निजी क्षेत्र में स्वामित्व, संपत्ति या व्यवसाय के हस्तांतरण को निजीकरण कहा जाता है। इसमें सरकार इकाई या व्यवसाय की स्वामी नहीं रह जाती है। 
  • निजीकरण कंपनी में अधिक दक्षता और निष्पक्षता लाने के लिये किया जाता है, ऐसा सुधार जिसके बारे में एक सरकारी कंपनी चिंतित नहीं होती है। 
  • भारत 1991 के ऐतिहासिक सुधार बजट में निजीकरण को बढ़ावा दिया गया जिसे 'नई आर्थिक नीति या LPG नीति' के रूप में भी जाना जाता है। 

पृष्ठभूमि : 

  • सरकार ने 1969 में 14 सबसे बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया। इसका उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र को तत्कालीन सरकार के समाजवादी दृष्टिकोण के साथ समायोजित करना था। 
    • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का 1955 में ही राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था और 1956 में बीमा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण किया गया था। 
  • पिछले 20 वर्षों में विभिन्न सरकारें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) बैंकों के निजीकरण के पक्ष में और विरोध में रही हैं। 2015 में सरकार ने निजीकरण का सुझाव दिया था लेकिन तत्कालीन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर ने इस विचार का समर्थन नहीं किया। 
  • निजीकरण के मौजूदा कदम पूरी तरह से बैंकों के स्वामित्व वाली परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (बैड बैंक) की स्थापना के साथ वित्तीय क्षेत्र की चुनौतियों के लिये बाज़ार के नेतृत्व वाले समाधान खोजने के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हैं। 
  • केंद्र ने 2021-22 के बजट में दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की घोषणा की, लेकिन अभी तक संबंधित बैंकिंग कानूनों में संशोधन नहीं किया है ताकि उनमें अपनी बहुमत हिस्सेदारी की बिक्री की अनुमति मिल सके। 

निजीकरण का कारण: 

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति में गिरावट: 
    • वर्षों से पूंजीगत निवेश और शासन सुधार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं कर पाए हैं। 
    • उनमें से कई के पास निजी बैंकों की तुलना में तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का उच्च स्तर है और लाभप्रदता, बाज़ार पूंजीकरण तथा लाभांश भुगतान रिकॉर्ड  के मामले में भी पीछे है। 
  • एक दीर्घकालिक परियोजना का हिस्सा: 
    • दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से एक दीर्घकालिक परियोजना की शुरुआत होगी, जिसके तहत भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कुछ चुनिंदा सार्वजनिक बैंकों की परिकल्पना की गई है। यह कार्य या तो मज़बूत बैंकों को समेकित करके या फिर बैंकों का निजीकरण कर किया जाएगा। 
      • सरकार की प्रारंभिक योजना चार बैंकों के निजीकरण की थी। पहले दो बैंकों के सफल निजीकरण के बाद सरकार आने वाले वित्तीय वर्षों में अन्य दो या तीन बैंकों के विनिवेश पर ज़ोर दे सकती है। 
    • यह निर्णय सरकार, जो कि बैंकों में सबसे बड़ी हिस्सेदार है, को बैंकों को वर्ष-प्रतिवर्ष वित्तीय सहायता प्रदान करने के दायित्व से मुक्त करेगा। 
      • बीते कुछ वर्षों में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप अब सरकार के पास केवल 12 सार्वजनिक बैंक मौजूद हैं, जिनकी संख्या पूर्व में कुल 28 थी। 
  • बैंकों को मज़बूती प्रदान करना: 
    • सरकार बड़े बैंकों को और अधिक मज़बूत बनाने का प्रयास कर रही है तथा साथ ही निजीकरण के माध्यम से बैंकों की संख्या में भी कमी की जा रही है। 
  • अलग-अलग समितियों की सिफारिशें: 
    • कई समितियों ने सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा है: 
      • नरसिम्हन समिति ने हिस्सेदारी को 33 प्रतिशत तक सीमित करने की बात की थी। 
      • पी.जे. नायक समिति ने हिस्सेदारी को 50 प्रतिशत से कम करने का सुझाव दिया था। 
    • RBI के एक कार्यकारी समूह ने हाल ही में बैंकिंग क्षेत्र में बड़े व्यावसायिक घरानों के प्रवेश का सुझाव दिया है। 
  • बड़े बैंकों का निर्माण: 
    • निजीकरण का एक उद्देश्य बड़े बैंक बनाना भी है। जब तक निजीकृत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मौजूदा बड़े निजी बैंकों में विलय नहीं किया जाता है, तब तक वे उच्च जोखिम लेने की क्षमता और उधार देने की क्षमता विकसित नहीं कर सकते हैं। 
    • ऐसे में निजीकरण एक बहुआयामी कार्य है, जिसमें कई चुनौतियों से निपटने और नए विचारों की खोज करने के लिये सभी दृष्टिकोण पर विचार किया जाता है, लेकिन यह सभी हितधारकों को लाभान्वित करने के लिये एक अधिक सतत् और मज़बूत बैंकिंग प्रणाली विकसित करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। 

संबंधित मुद्दे: 

  • क्रोनी कैपिटलिज़्म को बढ़ावा: 
    • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण बैंकों को निजी कंपनियों को बेचने के समान है, जिनमें से कई ने PSBs के ऋण को वापस नहीं किया है जिससे क्रोनी पूँजीवाद को बढावा मिला है। 
  • नौकरी के नुकसान: 
  • कमज़ोर वर्गों का वित्तीय बहिष्करण: 
    • निजी क्षेत्र के बैंक अधिक संपन्न वर्गों और महानगरीय/शहरी क्षेत्रों की आबादी पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे समाज के कमज़ोर वर्गों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय बहिष्कार होता है। 
      • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बैंकिंग की ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच और वित्तीय समावेशन को सुनिश्चित करते है। 
  • बेलआउट ऑपरेशन: 
    • बैंक यूनियनों ने निजीकरण प्रक्रिया को कॉरपोरेट डिफॉल्टरों के लिये "बेलआउट ऑपरेशन" का नाम दिया है। 
    • बड़े पैमाने पर फँसे ऋण के लिये निजी क्षेत्र ज़िम्मेदार हैं और उन्हें इस अपराध की सज़ा मिलनी चाहिये लेकिन सरकार बैंकों को निजी क्षेत्र के हवाले कर उन्हें पुरस्कृत कर रही है। 

आगे की राह 

  • PSBs के शासन और प्रबंधन में सुधार करना होगा। ऐसा करने का एक उपाय पी.जे. नायक समिति द्वारा सुझाया गया था, जहाँ सरकार और शीर्ष सार्वजनिक क्षेत्र नियुक्तियों (जिसके संबंध में सारे कार्य बैंक बोर्ड ब्यूरो को करने थे लेकिन वह अक्षम रहा) के बीच दूरी रखने की अनुशंसा की गई थी। 
  • अंधाधुंध निजीकरण के बजाय PSBs को जीवन बीमा निगम (LIC) जैसे निगम में रूपांतरित किया जा सकता है। सरकारी स्वामित्व बनाए रखते हुए इनका निगमीकरण PSBs को अधिक स्वायत्तता प्रदान करेगा। 

विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. शासन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010) 

  1. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह को प्रोत्साहित करना
  2. उच्च शिक्षण संस्थानों का निजीकरण
  3. नौकरशाही का आकार कम करना
  4. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों की बिक्री/ऑफलोडिंग

भारत में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के उपायों के रूप में उपरोक्त में से किसका उपयोग किया जा सकता है? 

(A) केवल 1, 2 और 3 
(B) केवल 2, 3 और 4 
(C) केवल 1, 2 और 4 
(D) केवल 3 और 4 

उत्तर: (D) 

  • सामान्य तौर पर राजकोषीय घाटा तब होता है जब सरकार का कुल व्यय उसके राजस्व से अधिक हो जाता है। सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने के लिये कई उपाय करती है जैसे कर-आधारित राजस्व बढ़ाना, सब्सिडी कम करना, विनिवेश आदि। 
  • नौकरशाही का आकार घटाने के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों को बेचने/ऑफलोड करने से राजकोषीय घाटे में कमी आती है। 
  • गंतव्य और एफडीआई प्रवाह के प्रभाव को जाने बिना राजकोषीय घाटे पर इसके वास्तविक प्रभाव को निर्धारित करना मुश्किल है। उच्च शिक्षण संस्थानों के निजीकरण से स्थिति में सुधार हो सकता है लेकिन इसका प्रभाव राजकोषीय घाटे को कम करने में कारगर नहीं हो सकता है। 
  • अतः कथन 3, 4 सही हैं और कथन 1, 2 सही नहीं हैं। अतः विकल्प (D) सही उत्तर है। 

स्रोत : द हिंदू 


भारतीय विरासत और संस्कृति

क्वाड के लिये प्रधानमंत्री के उपहारों का सांस्कृतिक महत्त्व

प्रिलिम्स के लिये :

भारतीय कलाएँ, क्वाड समूह 

मेन्स के लिये:

सांझी कला, रोगन चित्रकला, गोंड कला। 

चर्चा में क्यों? 

टोक्यो में आयोजित क्वाड शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री अपने साथ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नेताओं के लिये भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एवं कला रूपों को प्रदर्शित करने हेतु उपहार ले गए। 

उपहार और महत्त्व: 

  • अमेरिकी राष्ट्रपति के लिये सांझी कला पैनल: 
    • जटिल सांझी कला पैनल ठकुरानी घाट की थीम पर आधारित है, जो गोकुल में यमुना की पवित्र नदी के तट पर सबसे प्रसिद्ध घाटों में से एक है।  
    • पारंपरिक कला रूप जो कृष्णपंथ से उत्पन्न हुआ, में देवता के जीवन की घटनाओं के आधार पर स्टैंसिल बनाना और फिर कैंची का उपयोग करके कागज़ की पतली शीट पर हाथ से काटना शामिल है।  
    • पुराने समय में स्टेंसिल को मोटे कागज़ या केले के पत्तों का उपयोग करके बनाया जाता था, लेकिन अब यह हस्तनिर्मित और पुनर्नवीनीकरण कागज़ में बदल गया है।  
    • राधा, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, अपने प्रिय कृष्ण के लिये दीवारों पर सांझी पैटर्न पेंट करती थीं और बाद में वृंदावन की गोपियों ने उनका अनुसरण किया। 
    • बाद में भगवान कृष्ण को समर्पित मंदिरों में औपचारिक रंगोली बनाने के लिये इसका इस्तेमाल किया जाता था। 
    • वास्तव में 'सांझी' शब्द 'सांझ' या शाम (शाम) से लिया गया है और शाम को मंदिरों में रंगोली बनाने की प्रथा से संबंधित है। 
    • चित्रकला के रूप में, सांझी को वैष्णव मंदिरों द्वारा 15वीं और 16वीं शताब्दी में लोकप्रिय बनाया गया था और पुजारियों द्वारा इसका अभ्यास किया गया था। 
    • मुगल काल के दौरान समकालीन विषयों को जोड़ा गया था और कई परिवारों ने आज तक इसका अभ्यास करना जारी रखा है। 
    • वर्ष 2010 राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान पिक्टोग्राम पारंपरिक सांझी कला से प्रेरित थे। 

Sanjhi-painting

  • ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री के लिये गोंड कला पेंटिंग: 
    • भारत के सबसे बड़े जनजातीय समूहों में से एक, मध्य प्रदेश में गोंड समुदाय द्वारा प्रचलित चित्रकला का एक रूप। 
      • कला के दृश्य प्रायः जनगढ़ सिंह श्याम की कलाकृतियों से प्रेरित हैं, जिसने1970 और 80 के दशक में पाटनगढ़ गाँव में घरों की दीवारों पर बड़े पैमाने पर जनजातीय मौखिक मिथकों और किंवदंतियों को चित्रित करना शुरू किया था।  
    • बिंदीदार पैटर्न, दाँंतेदार पैटर्न, डॉट्स, लहरें और स्क्वीगल्स ने उनके देवी-देवताओं की कहानी साथ ही मध्य प्रदेश में गहरे जंगलों की वनस्पतियों एवं जीवों को बताया। 
    • प्रमुख नामों में भज्जू श्याम, वेंकट श्याम, दुर्गाबाई व्याम, राम सिंह उर्वेती और सुभाष व्याम शामिल हैं। 
    • ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री को पीएम मोदी द्वारा दिया गया उपहार- जटिल पैटर्न और रेखाओं से युक्त जीवन वृक्ष (ट्री ऑफ लाइफ) गोंड कला शैली के लोकप्रिय आदर्श का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है। 

painting

  • जापानी प्रधानमंत्री के लिये रोगन पेंटिंग के साथ लकड़ी के हस्तनिर्मित बॉक्स: 
    • रोगन कपड़े की पेंटिंग का एक रूप है जिसे चार शताब्दी से अधिक पुराना माना जाता है और यह मुख्य रूप से गुजरात के कच्छ ज़िले में प्रचलित है। 
    • 'रोगन' शब्द फारसी से आया है, जिसका अर्थ वार्निश या तेल है। 
    • शिल्प में उबले हुए तेल और वनस्पति रंगों से बने पेंट का उपयोग किया जाता है, जहांँ अरंडी के बीज को तेल निकालने के लिये हाथ से पीसा जाता है और उबालकर पेस्ट में बदल दिया जाता है।  
    • रंगीन पाउडर को पानी में घोलकर अलग-अलग रंगों के पेस्ट बनाने के लिये मिट्टी के बर्तनों में रखा जाता है। 
    • कलाकार पेंट पेस्ट की  कम मात्रा को अपनी हथेलियों में रखते हैं और कपड़े पर बनावट की उपस्थिति के लिये इसे रॉड से घुमाते हैं। छड़ वास्तव में कभी भी कपड़े के संपर्क में नहीं आती है और इसे ऊपर ले जाकर कलाकार कपड़े पर पतली रेखाएंँ बनाता है। 
    • आमतौर पर केवल आधा कपड़ा ही पेंट किया जाता है और इसे मिरर इमेज़ बनाने के लिये मोड़ा जाता है, जबकि मूल रूप से केवल पुरुष ही कला का अभ्यास करते थे, अब गुजरात में कई महिलाएंँ भी इसका अनुसरण करती हैं। 

Japani-Painting

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता पोर्टल

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता पोर्टल 

मेन्स के लिये:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, आईटी और कंप्यूटर 

चर्चा में क्यों? 

30 मई, 2022 को राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता पोर्टल की दूसरी वर्षगाँठ मनाई गई। 

राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता पोर्टल: 

  • पोर्टल के संबंध में:  
    • यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and IT- MeitY), राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीज़न (National e-Governance Division- NeGD) एवं नैसकॉम (NASSCOM) की एक संयुक्त पहल है। 
      • राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीज़न: वर्ष 2009 में डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन (MeitY द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी कंपनी) के तहत NeGD को एक स्वतंत्र व्यापार प्रभाग के रूप में स्थापित किया गया था। 
      • NASSCOM एक गैर-लाभकारी औद्योगिक संघ है जो भारत में IT उद्योग के लिये सर्वोच्च निकाय है। 
    • यह भारत और उसके बाहर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संबंधित समाचार, लेख, घटनाओं और गतिविधियों आदि के लिये एक केंद्रीय हब (Hub) के रूप में कार्य करता है। 
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संबंध में (AI): 
    • कंप्यूटर विज्ञान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से आशय किसी कंप्यूटर, रोबोट या अन्य मशीन द्वारा मनुष्यों के समान बुद्धिमत्ता के प्रदर्शन से है। 
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता किसी कंप्यूटर या मशीन द्वारा मानव मस्तिष्क के सामर्थ्य की नकल करने की क्षमता है, जिसमें उदाहरणों और अनुभवों से सीखना, वस्तुओं को पहचानना, भाषा को समझना तथा प्रतिक्रिया देना, निर्णय लेना, समस्याओं को हल करना तथा ऐसी ही अन्य क्षमताओं के संयोजन से मनुष्यों के समान ही कार्य कर पाने की क्षमता आदि शामिल है।  
    • AI में जटिल चीज़ें शामिल होती हैं जैसे मशीन में किसी विशेष डेटा को फीड करना और विभिन्न स्थितियों के अनुसार प्रतिक्रिया देना। 
    • AI का उपयोग वित्त और स्वास्थ्य सेवा सहित विभिन्न उद्योगों में किया जा रहा है। 
    • PwC (फर्मों का एक वैश्विक नेटवर्क) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने AI के उपयोग में 45% की वृद्धि दर्ज की, जो कि कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद सभी देशों में सबसे अधिक है। 
  • भारत में AI के उपयोग के हाल के उदाहरण: 
    • कोविड-19 से निपटने में: MyGov द्वारा संचार सुनिश्चित करने के लिये AI- सक्षम चैटबॉट का उपयोग किया गया था। 
    • न्यायिक प्रणाली में: AI आधारित पोर्टल 'SUPACE' का उद्देश्य न्यायाधीशों को कानूनी शोध में सहायता करना है। 
    • कृषि में: ICRISAT ने एक AI-पावर बुवाई एप विकसित किया है, जो स्थानीय फसल की उपज और वर्षा पर मौसम के मॉडल तथा डेटा का उपयोग करता है एवं स्थानीय किसानों को यह सलाह देता है कि उन्हें अपने बीज कब बोने चाहिये। 
    • आपदा प्रबंधन में: बिहार में लागू किया गया AI-आधारित बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल अब पूरे भारत को कवर करने के लिये विस्तारित किया जा रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लगभग 200 मिलियन लोगों को आसन्न बाढ़ जोखिम के बारे में 48 घंटे पहले अलर्ट और चेतावनी प्रदान की जा सके। 
    • बैंकिंग और वित्तीय सेवा उद्योग में: भारत में कुछ बैंकों ने ग्राहक अनुभव को बेहतर बनाने और जोखिम प्रबंधन में एल्गोरिदम का उपयोग करने के लिये डिजिटलीकरण को बढ़ाने हेतु AI को अपनाया है (उदाहरण के लिये धोखाधड़ी का पता लगाना)। 
  • AI के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये की गई पहल: 
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिये राष्ट्रीय रणनीति (नीति आयोग, जून 2018) जो कि समावेशी AI (सभी के लिये AI) पर केंद्रित है और नई शिक्षा नीति (NEP, 2020) जो पाठ्यक्रम में AI को शामिल करने की आवश्यकता को दर्शाती है, कोर और अनुप्रयुक्त अनुसंधान को प्रोत्साहित करने हेतु सही रणनीतिक कदम हैं। 
    • जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MTA) ने एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूलों (EMRS) और आश्रम स्कूलों जैसे स्कूलों के डिजिटल परिवर्तन के लिये माइक्रोसॉफ्ट के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। 
    • भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधों को बढ़ाने के लिये यूएस इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (US India Artificial Intelligence- USIAI) पहल शुरू की गई है। 
    • वर्ष 2020 में भारत AI के ज़िम्मेदार और मानव-केंद्रित विकास तथा उपयोग को बढ़ाने के लिये एक संस्थापक सदस्य के रूप में 'कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी' (GPAI) में शामिल हुआ। 
    • 'RAISE 2020- सामाजिक सशक्तीकरण के लिये ज़िम्मेदार कृत्रिम बुद्धिमत्ता 2020', एक मेगा वर्चुअल समिट है जिसे NITI Aayog और MeitY द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। 
    • "युवाओं के लिये ज़िम्मेदार AI" कार्यक्रम का बड़ा उद्देश्य सभी भारतीय युवाओं को भारत के शहरी, ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में मानव-केंद्रित डिज़ाइनर बनने के लिये समान अवसर प्रदान करना है जो भारत के आर्थिक तथा सामाजिक मुद्दों को हल करने के लिये वास्तविक AI समाधान प्रदान कर सकते हैं। 

आगे की राह 

  • वैश्विक सबक: चीन, अमेरिका और इज़रायल जैसे देश वर्तमान में AI को अपनाने के मामले में आगे हैं। भारत समग्र सामाजिक विकास तथा समावेशी एजेंडे को ध्यान में रखते हुए अपने AI पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक बढ़ाने के लिये इन देशों की सीख पर विचार कर सकता है। 
  • स्पष्ट केंद्रीय रणनीति और नीति ढाँचा: भारत में AI अपनाने की प्रक्रिया को नवाचार से संबंधित अधिक केंद्रित नीतियों के निर्माण के माध्यम से तेज़ किया जा सकता है, उदाहरण के लिये पेटेंट नियंत्रण और सुरक्षा। साथ ही AI के दुर्भावनापूर्ण उपयोग को भी प्रबंधित किया जाना चाहिये। 
  • सरकार, कॉरपोरेट्स और शिक्षाविदों के बीच सहयोग: इन तीन महत्त्वपूर्ण हितधारकों को उद्यमिता को पोषित करने, पुन: कौशल को बढ़ावा देने, अनुसंधान तथा विकास को प्रोत्साहित करने एवं नीतियों को ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वित करने जैसे कार्यों के लिये सहयोगात्मक रूप से काम करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: पी.आई.बी. 


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