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प्रश्न :
भारत जनसांख्यिकीय संक्रमण के एक ऐसे चरण में है कि यदि नीति निर्माता इस जनसांख्यिकीय बदलाव के साथ विकासात्मक नीतियों को संरेखित करते हैं तो यह देश के तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये एक सुनहरा अवसर प्रदान करेगा। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
06 Sep, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- जनसांख्यिकीय लाभांश के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये और बताइये कि यह किस प्रकार भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये एक सुनहरा अवसर है।
- भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश की प्राप्ति के समक्ष आने वाले मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- सुझाव दीजिये कि जनसांख्यिकीय लाभांश की प्राप्ति के लिये क्या नीति होनी चाहिये।
परिचय
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार, जनसांख्यिकीय लाभांश का अर्थ है, "आर्थिक विकास क्षमता जो जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप प्राप्त हो सकती है, मुख्य रूप से तब जब कार्यशील आबादी (15 से 64 वर्ष) की हिस्सेदारी गैर-कार्यशील (14 और उससे कम, तथा 65 एवं उससे अधिक) की आबादी से अधिक हो"।
भारत में 15-59 वर्ष आयु वर्ग में 62.5% आबादी है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2036 के आसपास यह चरम पर होगी तथा लगभग 65% तक पहुँच जाएगी। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, वर्ष 2041 के आस-पास भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश चरम पर होगा, जब कामकाजी आबादी का हिस्सा कुल जनसंख्या के 59% तक पहुँचने की संभावना व्यक्त की गई है।
प्रारूप
जनसांख्यिकीय लाभांश सुनहरा अवसर प्रदान करता है:
- कामकाजी उम्र की अधिक आबादी और आश्रित आबादी में कमी के कारण आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि होगी जिनके परिणामस्वरूप बेहतर आर्थिक विकास होगा। इसे निम्नलिखित के माध्यम से समझा जा सकता है:
- बढ़ी हुई श्रम शक्ति अर्थव्यवस्था की उत्पादकता को बढ़ाती है।
- महिलाओं के कार्यबल में वृद्धि, जो स्वाभाविक रूप से प्रजनन क्षमता में गिरावट लाती है, विकास का एक नया स्रोत हो सकती है।
- बचत दर में वृद्धि, काम करने की उम्र भी बचत के लिये प्रमुख अवधि होती है।
जनसांख्यिकीय लाभांश से जुड़ी चुनौतियाँ
- कौशल की कमी: भविष्य में सृजित होने वाली अधिकांश नई नौकरियाँ अत्यधिक कौशल केंद्रित होंगी और भारतीय कार्यबल में कौशल की कमी एक बड़ी चुनौती है। निम्न मानव पूंजी आधार और कौशल की कमी के कारण भारत अवसरों का लाभ उठाने में चूक सकता है।
- निम्न मानव विकास मानदंड: यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक में भारत की स्थिति चिंताजनक है। इसलिये भारतीय कार्यबल को कुशल बनाने हेतु स्वास्थ्य तथा शिक्षा के मानकों में पर्याप्त सुधार करने की आवश्यकता है।
- भारत में अर्थव्यवस्था की अनौपचारिक प्रकृति भारत में जनसांख्यिकीय संक्रमण के लाभों को प्राप्त करने में आने वाली एक और बाधा है।
- रोज़गारविहीन विकास: इस बात की चिंता बढ़ती जा रही है कि गैर-औद्योगीकरण, वि-वैश्वीकरण, चौथी औद्योगिक क्रांति और तकनीकी प्रगति के कारण भविष्य में बेरोज़गारी में वृद्धि हो सकती है। एनएसएसओ के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, 15-59 वर्ष के आयु वर्ग के लिये भारत की श्रम शक्ति भागीदारी दर लगभग 53% है, यानी कामकाजी उम्र की आबादी का लगभग आधा बेरोज़गार है।
आगे की राह:
नीति निर्माण की आवश्यकता
- मानव पूंजी का निर्माण: स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नौकरियों और कौशल के माध्यम से लोगों में निवेश करने से मानव पूंजी का निर्माण होता है, जो आर्थिक विकास का समर्थन करने, अत्यधिक गरीबी को समाप्त करने तथा अधिक समावेशी समाज के निर्माण हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- युवा आबादी की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये कौशल विकास: भारत की श्रम शक्ति को आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिये सही कौशल के साथ सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
- शिक्षा: प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में उचित निवेश करके शैक्षिक स्तर को बढ़ाना होगा। भारत, जिसकी लगभग 41% आबादी 20 वर्ष से कम उम्र की है, एक बेहतर शिक्षा प्रणाली के साथ ही जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त कर सकता है। साथ ही आधुनिक उद्योग की मांगों और शिक्षाविदों में सीखने के स्तर के बीच तालमेल स्थापित करने के लिये अकादमिक-उद्योग सहयोग की आवश्यकता है।
- स्वास्थ्य: स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे में सुधार से युवा श्रमशक्ति के लिये अधिक संख्या में उत्पादक दिन सुनिश्चित होंगे, जिससे अर्थव्यवस्था की उत्पादकता में वृद्धि होगी।
- रोज़गार सृजन: युवाओं को कार्यबल में शामिल करने के लिये राष्ट्र को प्रति वर्ष दस मिलियन रोज़गार सृजित करने की आवश्यकता है।
- व्यवसायों के हितों और उद्यमिता को बढ़ावा देने से बड़े श्रमबल को रोज़गार प्रदान करने के लिये रोज़गार सृजन में मदद मिलेगी।
- विश्व बैंक के ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत की बेहतर रैंकिंग इस दिशा में एक अच्छा संकेत है।
- शहरीकरण: आने वाले वर्षों में बड़ी युवा और कामकाजी आबादी अपने और अन्य राज्यों के शहरी क्षेत्रों में प्रवास करेगी, जिससे शहरी आबादी में तेज़ी से और बड़े पैमाने पर वृद्धि होगी।
- शहरी क्षेत्रों में इन प्रवासी लोगों की बुनियादी सुविधाओं, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु इस पर शहरी नीति नियोजन का ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
जापान और कोरिया जैसे देशों के वैश्विक दृष्टिकोण से सीखकर और घरेलू जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए समाधान तैयार करके हम जनसांख्यिकीय लाभांश के लाभों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं।
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