डेली न्यूज़ (30 Nov, 2024)



लघु चित्रकारी

प्रिलिम्स के लिये:

लघु चित्रकला, भीमबेटका गुफाएँ, दिल्ली सल्तनत, पाल कला विद्यालय, मुगल काल की लघु चित्रकला, उच्च पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल, ताम्रपाषाण काल

मेन्स के लिये:

भारत में चित्रकला का विकास, प्रागैतिहासिक चित्रकला के संरक्षण की आवश्यकता, अतीत के ऐतिहासिक अभिलेख के रूप में चित्रकला, सांस्कृतिक पहचान के रूप में लघु चित्रकला, उच्च पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल, ताम्रपाषाण काल

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित एक प्रदर्शनी में 20 विविध कलाकारों ने भाग लिया, जिसमे दक्षिण एशियाई लघु चित्रकारी या मिनिएचर पेंटिंग की उभरती प्रासंगिकता और वैश्विक व्याख्या को प्रदर्शित किया गया तथा इसके गतिशील सांस्कृतिक महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।   

लघु चित्रकारी या मिनिएचर पेंटिंग क्या हैं?

  • के बारे में:
    • 'मिनिएचर' शब्द लैटिन शब्द 'मिनियम' से आया है, जिसका अर्थ है सीसे का लाल रंग, जिसका उपयोग पुनर्जागरणकालीन प्रकाशित पांडुलिपियों में किया गया था। 
    • ये छोटी, विस्तृत पेंटिंग आमतौर पर 25 वर्ग इंच से बड़ी नहीं होती हैं, तथा विषयों को उनके वास्तविक आकार के 1/6वें हिस्से में चित्रित किया जाता है। आम विशेषताओं में उभरी हुई आँखें, नुकीली नाक और पतली कमर शामिल हैं।
  • प्रारंभिक लघुचित्र: प्रारंभिक लघुचित्रों में कम परिष्कृत और कम-से-कम सजावट होती थी। समय के साथ, उनमे अधिक विस्तृत अलंकरण शामिल किये जाने लगे, अंततः वर्तमान के लघुचित्रों के समान हो गए।
    • इन्हें अक्सर किताबों या एल्बमों के लिये कागज़, ताड़ के पत्तों और कपड़े जैसी नाशवान सामग्री पर चित्रित किया जाता था। ये पेंटिंग 8वीं और 12वीं शताब्दी के मध्य विकसित हुईं जिसका श्रेय पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों को दिया जा सकता है। प्रारंभिक लघु चित्रकला के दो प्रमुख रूप (स्कूल) हैं:
    • पाल कला (Pala School of Art): यह कला 750-1150 ई. के दौरान विकसित हुआ था। ये चित्र आमतौर पर बौद्ध पांडुलिपियों के एक भाग के रूप में पाए जाते हैं और आमतौर पर ताड़ के पत्ते या चर्मपत्र पर बनाए जाते थे।
      • इन चित्रों की विशेषता घुमावदार रेखाएँ और पृष्ठभूमि की छवि की मंद टोन हैं। चित्रों में एकल आकृतियाँ हैं और समूह चित्र शायद ही कभी मिलते हैं।
      • बौद्ध धर्म के वज्रयान संप्रदाय के समर्थकों ने भी इन चित्रों का प्रयोग किया तथा इन्हें संरक्षण प्रदान किया।
    • अपभ्रंश कला (Apabhramsa School of Art): यह कला गुजरात और मेवाड़, राजस्थान में विकसित हुई, जिसने 11वीं से 15वीं शताब्दी तक पश्चिमी भारतीय चित्रकला पर अपना प्रभुत्व बनाए रखा। शुरुआत में जैन विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, बाद में इसमें वैष्णव विषयों को भी शामिल किया गया।
  • दिल्ली सल्तनत के दौरान लघुचित्र कला: इन चित्रों ने अपने मूल के फारसी तत्त्वों को भारतीय पारंपरिक तत्त्वों के साथ एक साथ लाने की कोशिश की।
    • इसका एक उदाहरण है निमतनामा (Nimatnama), जो मांडू पर शासन करने वाले नासिर शाह के शासनकाल के दौरान बनाई गई एक पाक-कला पुस्तक है।
  • मुगलकालीन लघु चित्रकला: मुगल काल में बनाई गई चित्रकलाओं की एक विशिष्ट शैली थी क्योंकि वे फारसी पूर्वजों से ग्रहण की गई थीं।
    • मुगल कला को धार्मिक विषयों से परे अपने विविध विषयों के लिये जाना जाता है। देवताओं के चित्रण से हटकर शासकों और उनके जीवन का महिमामंडन करने पर ज़ोर दिया गया। कलाकारों ने शिकार के दृश्यों पर ध्यान केंद्रित किया।
    • वे भारतीय चित्रकारों के प्रदर्शन में फॉरशॉर्टनिंग की तकनीक लेकर आए। इस तकनीक के तहत, "वस्तुओं को इस तरह से चित्रित किया जाता था कि वे वास्तव में जितनी छोटी और नज़दीक होती हैं, उससे कहीं ज़्यादा छोटी दिखाई देती हैं"। 
  • मुगल शासकों का योगदान:
    • अकबर: एक आर्टिस्टिक स्टूडियो (Artistic Studio), तस्वीर खाना की स्थापना की और सुलेख को बढ़ावा दिया। 
    • जहाँगीर: मुगल चित्रकला अपने चरम पर थी, जिसमें प्राकृतिक विषय-वस्तु (वनस्पति और जीव) और सजावटी हाशिये को प्राथमिकता दी गई। उदाहरण: ज़ेबरा और कोक पेंटिंग। 
    • शाहजहाँ: यूरोपीय कला से प्रेरित होकर, इसमें स्थिरता और पेंसिल रेखाचित्रण को शामिल किया गया तथा अधिक सोने, चांदी और चमकीले रंगों का प्रयोग किया गया।

Apabhramsa School of Art

  • दक्षिण भारत में लघुचित्र:
    • तंजौर चित्रकला: यह सजावटी चित्रकला के लिये प्रसिद्ध है। 18वीं शताब्दी के दौरान मराठा शासकों द्वारा इन्हें संरक्षण प्रदान किया गया था।
    • मैसूर पेंटिंग: मैसूर पेंटिंग में हिंदू देवी-देवताओं को दर्शाया जाता है। इनमें कई आकृतियाँ होती हैं, जिनमें से आकृति आकार और रंग में प्रमुख होती है।
  • क्षेत्रीय कला स्कूल:
    • राजस्थानी चित्रकला शैली: 
      • मेवाड़ चित्रकला शैली: मेवाड़ चित्रकला में साहिबदीन की असाधारण छवि पर आधारित है। 
      • किशनगढ़ चित्रकला स्कूल: चित्रकलाएँ सबसे रोमांटिक किंवदंतियों- सावंत सिंह और उनकी प्रेमिका बानी थनी, और जीवन एवं मिथकों, रोमांस व भक्ति के अंतर्संबंध से संबंधित थीं। 
    • पहाड़ी चित्रकला शैलियाँ: चित्रकला की यह शैली उप-हिमालयी राज्यों में विकसित हुई: जम्मू या डोगरा कला (उत्तरी शृंखला) और बशोली और कांगड़ा कला (दक्षिणी शृंखला)।
  • आधुनिक चित्रकला: औपनिवेशिक काल के दौरान, कंपनी चित्रकला का उदय हुआ, जिसमें राजपूत, मुगल और भारतीय शैलियों को यूरोपीय तत्त्वों के साथ मिश्रित किया गया। ब्रिटिश अधिकारियों ने भारतीय प्रशिक्षित चित्रकारों को नियुक्त किया, जिसमें यूरोपीय कला को भारतीय तकनीकों के साथ मिलाया गया।
    • बाज़ार चित्रकला: यह कला भी भारत में यूरोपीय मुठभेड़ से प्रभावित थी। वे कंपनी चित्रकला से अलग थे क्योंकि उस कला में भारतीय लोगों के साथ यूरोपीय तकनीकों और विषयों को शामिल किया गया था।
    • कला की बंगाल शैली : इस शैली का 1940-1960 के दशक में चित्रकला की मौजूदा शैलियों के प्रति प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोण था। उन्होंने सामान्य रंगों का उपयोग किया।
    • चित्रकला की क्यूबिस्ट शैली: यूरोपीय क्यूबिज्म से प्रेरित, जिसमें वस्तुओं को तोड़ा जाता था, उनका विश्लेषण किया जाता था तथा रेखाओं एवं रंग के प्रयोग को संतुलित करते हुए अमूर्त रूपों का उपयोग करके उन्हें पुनः जोड़ा जाता था। 

लघु चित्रकारी को पुनर्जीवित करने के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं?

  • आर्थिक अवसर: लघु चित्रकला में रुचि के पुनरुत्थान से कलाकारों और कारीगरों के लिये रोज़गार के अवसर उत्पन्न होते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को योगदान मिलता है।
    • कला प्रदर्शनियों से कलाकृतियों के विक्रय को बढ़ावा मिलता है, जिससे भाग लेने वाले कलाकारों की आय में वृद्धि होती है।
  • सांस्कृतिक पर्यटन: लघु चित्रकलाएं सांस्कृतिक विरासत में रुचि रखने वाले पर्यटकों को आकर्षित करती हैं, जिससे पर्यटन संबंधी राजस्व में वृद्धि होती है।
    • राजस्थान जैसे समृद्ध लघु कला परम्परा वाले क्षेत्र, स्थानीय शिल्प को बढ़ावा देने के लिये पर्यटकों के अवसरों का लाभ उठा सकते हैं।
  • सामुदायिक सहभागिता: कार्यशालाएँ और प्रदर्शनियाँ पारंपरिक कलाओं के बारे में सामुदायिक सहभागिता और जागरूकता को बढ़ावा देती हैं।
    • शैक्षिक कार्यक्रम युवा पीढ़ी को इन पारंपरिक कौशलों में निपुणता प्राप्त करने और उन्हें बनाए रखने के लिये ज्ञान और तकनीक से समृद्ध कर सकते हैं।

चित्रकला उस समय की सांस्कृतिक पहचान को किस प्रकार प्रतिबिम्बित करती है?

  • ऐतिहासिक संदर्भ: लघु चित्रकला के मूल मुगल, राजपूत और फारसी परंपराओं में हैं, जो 16 वीं और 17 वीं शताब्दियों के बीच विकसित हुई।
    • इसने कहानी वर्णन के माध्यम के रूप में कार्य किया तथा पवित्र एवं धर्मनिरपेक्ष दोनों प्रकार की कहानियों को जटिल विवरणों के साथ प्रस्तुत किया।
  • क्षेत्रीय विविधता: भारत की विविध चित्रकला शैलियाँ स्थानीय सामाजिक-धार्मिक दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती हैं। 
    • उदाहरण: अपभ्रंश कला शैली में जैन एवं  वैष्णव संबंधी विषयों का चित्रण किया गया है।
  • सार्वजनिक पहल: 'घर-घर म्यूजियम' जैसी परियोजनाएँ सामुदायिक संग्रहालयों को प्रोत्साहित करके, पारंपरिक कला रूपों को बनाए रखकर तथा सांस्कृतिक पहचान एवं गौरव को बढ़ावा देकर स्थानीय कला को संरक्षित करती हैं।
  • समकालीन व्याख्याएँ: आज कलाकार आधुनिक दृष्टिकोण से पारंपरिक विषयों की पुनर्व्याख्या करते हैं, तथा पहचान, आध्यात्मिकता और सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणी जैसे समकालीन मुद्दों को संबोधित करते हैं।
  • सामाजिक टिप्पणी: चित्रकलाएँ लैंगिक भूमिकाओं, जातिगत भेदभाव और राजनीतिक अशांति जैसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों का सामना करती हैं। 
    • भारत माता की अपनी पेंटिंग के लिये प्रसिद्ध अवनींद्र नाथ टैगोर (कला की बंगाल शैली) जैसे दूरदर्शी लोगों ने पश्चिमी प्रभावों का विरोध करते हुए स्वदेशी कला शैलियों के पुनरुत्थान का समर्थन किया। 
  • सांस्कृतिक संरक्षण बनाम नवाचार: पारंपरिक तकनीकों को संरक्षित करते हुए, समकालीन कलाकार नए रूपांकनों और माध्यमों (जैसे, डिजिटल कला) के साथ प्रयोग करते हैं।
    • यह दोहरा दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि लघु चित्रकला आज के कला परिदृश्य में जीवंत और प्रासंगिक बनी रहे।

कौन सी कार्यान्वयन योग्य रणनीतियाँ लघु चित्रकला के विकास में सहायक हो सकती हैं?

  • सरकारी सहायता: कलाकारों को वित्तीय सहायता देने के लिये अनुदान और सब्सिडी देने वाली नीतियों को लागू किया जाना चाहिये। समर्पित कला निधि बनाने से लघु चित्रकला के लिये अनुसंधान, प्रशिक्षण और प्रदर्शनियों को बढ़ावा मिल सकता है।
  • शैक्षिक पहल: स्कूल के पाठ्यक्रम में लघु चित्रकला को शामिल करने से युवाओं में कला के प्रति रुचि पैदा हो सकती है। कला संस्थानों के साथ सहयोग करके पारंपरिक और समकालीन तकनीकों को मिलाकर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं।
    • साहित्य अकादमी क्षेत्रीय कला को बढ़ावा देने, कलाकारों के कौशल को बढ़ाने और प्रदर्शित करने के लिये देश भर में कार्यशालाएँ आयोजित करती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय कला दीर्घाओं और वैश्विक कला मेलों के साथ साझेदारी भारतीय कलाकारों को वैश्विक स्तर पर अपना काम प्रदर्शित करने के लिये मंच प्रदान कर सकती है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म: कलाकृतियों के मुद्रीकरण के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग करने से स्थानीय सीमाओं से परे बाज़ार पहुँच का विस्तार कर सकता है।
    • सोशल मीडिया अभियान लघु चित्रकला के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं और व्यापक दर्शकों को आकर्षित कर सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: परीक्षण कीजिये कि लघु चित्रकला आधुनिक कलात्मक अभिव्यक्तियों को अपनाते हुए सांस्कृतिक पहचान को किस प्रकार संरक्षित करती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. बोधिसत्व पद्मपाणि का चित्र सर्वाधिक प्रसिद्ध और प्रायः चित्रित चित्रकारी है, जो (2017) 

(a) अजंता में है 
(b) बादामी में है
(c) बाघ में है
(d) एलोरा में है

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों पर विचार कीजिये: (2013) 

  1. अजंता की गुफाएँ 
  2. लेपाक्षी मंदिर 
  3. साँची स्तूप

उपर्युक्त स्थलों में से कौन-सा/से भित्ति चित्रकला के लिये भी जाना जाता है/जाने जाते हैं?

(a)केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: (b)


प्रश्न. प्राचीन भारत में गुप्त काल के गुफा चित्रों के केवल दो ज्ञात उदाहरण हैं। इन्हीं में से एक है अजंता की गुफाओं के चित्र। गुप्तकालीन चित्रों का अन्य मौजूद उदाहरण कहाँ है?  (2010)  

(a) बाग गुफाएँ 
(b) एलोरा की गुफाएँ 
(c) लोमस ऋषि गुफाएँ 
(d) नासिक की गुफाएँ  

उत्तर: (b)


प्रश्न. सुप्रसिद्ध चित्र "बणी-ठनी" किस शैली का है? (2018)

(a) बूँदी शैली
(b) जयपुर शैली
(c) काँगड़ा शैली
(d) किशनगढ़ शैली

उत्तर: (d)


प्रश्न. कलमकारी चित्रकला निर्दिष्ट (रेफर) करती है: (2015) 

(a) दक्षिण भारत में सूती वस्त्र पर हाथ से की गई चित्रकारी
(b) पूर्वोत्तर भारत में बाँस के हस्तशिल्प पर हाथ से किया गया चित्रांकन
(c) भारत के पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में ऊनी वस्त्र पर ठप्पे (ब्लॉक) से की गई चित्रकारी 
(d) उत्तर-पश्चिमी भारत में सजावटी रेशमी वस्त्र पर हाथ से की गई चित्रकारी 

उत्तर: (a)


मनरेगा जॉब कार्डों को निरस्त किया जाना

प्रिलिम्स के लिये:

मनरेगा, मनरेगा योजना, नगर निगम, प्रबंधन सूचना प्रणाली, आधार-आधारित भुगतान प्रणाली, काम करने का कानूनी अधिकार, बेरोज़गारी, ग्राम पंचायत, बेरोज़गारी भत्ता

मुख्य परीक्षा के लिये:

गरीबी, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, विकास से संबंधित मुद्दे, मनरेगा और संबंधित मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) के अंतर्गत जॉब कार्डों से श्रमिकों के नाम विलोपित किये जाने की हालिया वृद्धि ने काम के अधिकार और कार्यान्वयन में पारदर्शिता को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं।

  • अकेले वर्ष 2022-23 में 5.53 करोड़ से अधिक श्रमिकों को हटा दिया गया, जो वर्ष 2021-22 से 247% की वृद्धि दर्शाता है। 

मनरेगा जॉब कार्ड हटाने के लिये मुख्य प्रावधान क्या हैं?

  • विलोपन के आधार: मनरेगा अधिनियम, 2005 की अनुसूची II, पैराग्राफ 23 के अनुसार, जॉब कार्ड को केवल विशिष्ट, सुपरिभाषित शर्तों के तहत ही हटाया जा सकता है:
    • स्थायी प्रवास: यदि कोई परिवार संबंधित ग्राम पंचायत से स्थायी रूप से स्थानांतरित हो जाता है।
    • डुप्लीकेट जॉब कार्ड: यदि कोई जॉब कार्ड डुप्लीकेट पाया जाता है।
    • जाली दस्तावेज़: यदि जॉब कार्ड जाली दस्तावेज़ों के आधार पर जारी किया गया हो।
    • क्षेत्र का पुनर्वर्गीकरण: यदि किसी ग्राम पंचायत को नगर निगम के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया जाता है, तो उससे संबंधित सभी जॉब कार्ड हटा दिये जाते हैं।
    • अन्य वैध कारण: मनरेगा प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) में "डुप्लीकेट आवेदक", "फेक आवेदक" और "काम करने के लिये इच्छुक नहीं" जैसे कारण सूचीबद्ध हैं।
  • ABPS की भूमिका: वर्ष 2022-23 के दौरान मनरेगा जॉब कार्ड विलोपन में वृद्धि अनिवार्य आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) के कार्यान्वयन के साथ हुई, जिसके तहत श्रमिकों को अपने आधार नंबर को अपने जॉब कार्ड से जोड़ना आवश्यक हो गया। 
    • जिन श्रमिकों के आधार कार्ड लिंक नहीं थे या गलत तरीके से लिंक थे, उनके जॉब कार्ड निरस्त कर दिये गए।
  • विलोपन की उचित प्रक्रिया: विलोपन के लिये प्रस्तावित श्रमिकों की सुनवाई दो स्वतंत्र व्यक्तियों की उपस्थिति में की जानी चाहिये, हटाने के कारणों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि की जानी चाहिये, कार्यवाही का दस्तावेज़ीकरण किया जाना चाहिये, तथा पारदर्शिता के लिये रिपोर्ट ग्राम सभा या वार्ड सभा के साथ साझा की जानी चाहिये।

नोट: एबीपीएस एक भुगतान प्रणाली है जो सरकारी सब्सिडी और लाभों को लाभार्थियों के आधार से जुड़े बैंक खातों में इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजने के लिये आधार संख्या का उपयोग करती है।

मनरेगा जॉब कार्डों के निरस्त के क्या परिणाम होंगे?

  • कार्य करने के अधिकार का उल्लंघन: "कार्य करने के इच्छुक नहीं होने" के आधार पर जॉब कार्ड से श्रमिकों के नाम हटाना, श्रमिक को कार्य  करने के उसके विधिक अधिकार से वंचित करना है।
    • जिन श्रमिकों पर "कार्य करने के लिये तैयार नहीं" के रूप में चिह्नित किया गया था, उनमें से कई ने वास्तव में अपने हटाए जाने के वित्तीय वर्ष में काम किया था या काम के लिये अनुरोध किया था।
  • असंगत प्रक्रिया: केवल कुछ श्रमिकों के जॉब कार्ड हटाने के लिये प्रयुक्त किया गया आधिकारिक कारण "ग्रामीण शहरी बन जाता है" अधिनियम की इस शर्त का खंडन करता है कि शहरी क्षेत्र में सभी जॉब कार्ड हटा दिए जाने चाहिये। 
    • नाम हटाने में अक्सर ग्राम सभा की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती, जो अधिनियम का उल्लंघन है तथा कई श्रमिकों को उनकी जानकारी के बिना गलत तरीके से नाम हटा दिए जाते हैं।
  • सत्यापन का अभाव: कई श्रमिक गलत तरीके से नाम हटाए जाने के शिकार हुए, जब हटाए जाने के कारणों की वैधता का आकलन करने के लिये किसी सत्यापन या विश्लेषण के बिना ही उनका नाम हटा दिया गया।
    • यद्यपि नाम हटाने की प्रक्रिया एमआईएस में दर्ज की जाती है, लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नाम हटाने के कारणों, जिनमें 'कार्य करने के लिये तैयार नहीं होना' का कारण भी शामिल है, का  कोई सत्यापन और विश्लेषण नहीं किया है।
  • वंचित समुदाय पर प्रभाव: "कार्य करने के लिये तैयार नहीं होने" जैसे कारणों से श्रमिकों को हटाना, विशेष रूप से उच्च ग्रामीण बेरोज़गारी दरों के मद्देनजर, प्रत्यक्ष तौर पर उनके आजीविका के अवसरों को कम करता है। 
  • डेटा-संचालित चिंताएँ: डेटा से ज्ञात होता है कि विलोपन में वृद्धि एबीपीएस पर बढ़ते फोकस के साथ संरेखित है, जो यह दर्शाता है कि विलोपन वास्तविक कारणों के बजाय अनुपालन प्रोत्साहनों से प्रेरित हो सकता है। 

मनरेगा योजना क्या है?

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 को सितंबर 2005 में पारित किया गया ताकि मनरेगा योजना के तहत रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान की जा सके।
  • उद्देश्य: अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्यों को प्रति वित्तीय वर्ष 100 दिनों का रोज़गार प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा में वृद्धि करता है। 
  • पात्रता:  
    • लक्षित समूह: रोज़गार की आवश्यकता वाले सभी ग्रामीण परिवार जो शारीरिक, अकुशल कार्य करने के लिये तैयार हों।
    • पंजीकरण: आवेदक अपना आवेदन ग्राम पंचायत को प्रस्तुत करते हैं, जिसके द्वारा परिवारों को पंजीकृत करने के साथ सत्यापन के बाद जॉब कार्ड जारी किया जाता है।
    • प्राथमिकता: वेतन चाहने वालों में कम से कम एक तिहाई महिलाएँ होनी चाहिये।
    • रोज़गार की शर्तें: रोज़गार कम से कम 14 दिनों तक लगातार चलना चाहिये तथा प्रति सप्ताह अधिकतम छह कार्यदिवस होने चाहिये। 
  • रोज़गार प्रावधान: 
    • रोज़गार समयसीमा: ग्राम पंचायत या ब्लॉक कार्यक्रम अधिकारी को आवेदन के 15 दिनों के अंदर आवेदक के गाँव के 5 किलोमीटर की सीमा में कार्य उपलब्ध कराना होता है।
      • 5 किलोमीटर की सीमा के बाहर कार्य प्रदान करने की स्थिति में परिवहन तथा अन्य लागत हेतु 10% अतिरिक्त वेतन का प्रावधान है।
    • बेरोज़गारी भत्ता: यदि 15 दिनों के अंदर रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो बेरोज़गारी भत्ता देने का प्रावधान है जो प्रथम 30 दिनों के लिये मजदूरी दर का एक-चौथाई तथा शेष के लिये कम से कम आधा होता है। 
  • अनुमेय कार्य: 
    • जल एवं भूमि विकास: संरक्षण एवं संचयन।
    • वनरोपण एवं सूखा निवारण: वृक्षारोपण।
    • सिंचाई एवं कृषि अवसंरचना: नहरें, तालाब और सिंचाई।
    • ग्रामीण संपर्कता: सड़कें एवं पुलिया।
    • स्वच्छता एवं स्वास्थ्य: शौचालय तथा अपशिष्ट प्रबंधन।
    • ग्रामीण बुनियादी ढाँचा: सामुदायिक केंद्र एवं भंडारण केंद्र।
    • रोज़गार से संबंधित परियोजनाएँ: खाद बनाना, पशुधन आश्रय, मत्स्य पालन।
  • प्रतिबंध: ठेकेदारों एवं श्रमिक-विस्थापन मशीनों का उपयोग निषिद्ध है। 
  • मनरेगा और सतत विकास लक्ष्य:

SGD GOALS

आगे की राह 

  • सत्यापन की प्रक्रियाएँ: मनमाने ढंग से नाम हटाने की घटनाओं को कम करने तथा श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि चयन में मनरेगा अधिनियम, 2005 तथा मास्टर सर्कुलर प्रोटोकॉल का पालन किया जाए।
  • लेखापरीक्षा एवं निरीक्षण: निरंतरता तथा पारदर्शिता सुनिश्चित करने के क्रम में समय-समय पर रिकॉर्ड में हेरफेर एवं जॉब कार्ड के निरस्त होने के कारणों की लेखापरीक्षा करने हेतु स्वतंत्र निकायों या तीसरे पक्ष की एजेंसियों की स्थापना करनी चाहिये।
  • शिकायत निवारण: श्रमिकों को शिकायत दर्ज करने और गलत तरीके से हटाए गए नामों के लिये निवारण की मांग करने हेतु एक स्पष्ट और कुशल प्रक्रिया प्रदान करने हेतु प्रणालियों का निर्माण या सुदृढ़ीकरण करना।
  • ग्राम सभाओं को सशक्त बनाना: यह सुनिश्चित करना कि सभी विलोपनों की समीक्षा की जाए और ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित किया जाए, जैसा कि मनरेगा अधिनियम, 2005 में अनिवार्य किया गया है।
  • MIS को उन्नत करना: जॉब कार्ड को सटीक रूप से ट्रैक करने और रिकॉर्ड करने के लिये MIS को बेहतर निगरानी के लिये वास्तविक समय अधिसूचना एवं सख्त रिपोर्टिंग सुविधाओं के साथ उन्नत बनाना।
    • समय पर हस्तक्षेप और सुधारात्मक कार्रवाई के लिये जॉब कार्ड को निरस्त करने की प्रवृत्तियों और अनियमितताओं का पता लगाने के लिये डेटा विश्लेषण का उपयोग करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: मनरेगा सत्यापन प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाकर मनमाने ढंग से कार्ड को निरस्त करने को रोकने हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 1991 में आर्थिक नीतियों के उदारीकरण के बाद भारत में निम्नलिखित में से क्या प्रभाव उत्पन्न हुआ है? (2017)

  1. सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी में भारी वृद्धि हुई। 
  2.  विश्व व्यापार में भारत के निर्यात का हिस्सा बढ़ा।
  3.  FDI प्रवाह बढ़ा।
  4.  भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भारी वृद्धि हुई।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभ पाने के पात्र हैं? (2011)

(A) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों के वयस्क सदस्य।
(B) गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों के वयस्क सदस्य।
(C) सभी पिछड़े समुदायों के परिवारों के वयस्क सदस्य।
(D) किसी भी घर के वयस्क सदस्य।

उत्तर: (D)


मेन्स

प्रश्न: "भारत में स्थानीय स्वशासन पद्धति, शासन का प्रभावी साधन साबित नहीं हुई है।" इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए तथा स्थिति में सुधार के लिये अपने विचार प्रस्तुत कीजिये। (2017)

प्रश्न: क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसांधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं ? (2014)


SASCI योजना द्वारा वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों का विकास

प्रिलिम्स के लिये:

पूंजीगत निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता के लिये योजना, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वदेश दर्शन योजना

मेन्स के लिये:

पूंजीगत निवेश, सतत पर्यटन एवं बुनियादी ढाँचे के लिये राज्यों को विशेष सहायता के लिये योजना

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

केंद्र सरकार ने पूंजीगत निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता के लिये योजना(SASCI) - वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों के विकास के तहत 23 राज्यों में 40 पर्यटन परियोजनाओं के विकास के लिये 3,295 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। 

  • यद्यपि पूंजीगत निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता के लिये योजना(SASCI) वित्तीय वर्ष 2020-21 से लागू है, यह पहली बार है जब पर्यटन के लिये विशेष रूप से धनराशि आवंटित की गई है।

वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केन्द्रों का SASCI विकास क्या है?

  • SASCI योजना के तहत वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों के विकास घटक का उद्देश्य भारत में पर्यटन के बुनियादी ढाँचे को विकसित करना, पर्यटन में विविधता लाने के लिये बटेश्वर (उत्तर प्रदेश), पोंडा (गोवा) और गंडिकोटा (आंध्र प्रदेश) जैसे कम देखे जाने वाले स्थलों को बढ़ावा देना है।
    • उद्देश्य: यह योजना राज्यों को प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों के विकास, ब्रांडिंग और वैश्विक विपणन के लिये 50 वर्षों के लिये ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करती है।
    • इसका उद्देश्य चुनौतीपूर्ण परियोजनाओं के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना, रोज़गार सृजन करना, स्थायी पर्यटन को बढ़ावा देना और संपूर्ण पर्यटन मूल्य शृंखला (जिसमें परिवहन, आवास, गतिविधियाँ और सेवाएँ शामिल हैं) को मज़बूत करना है।
  • योजना की मुख्य विशेषताएँ: राज्य द्वारा प्रस्तुत केवल चयनित प्रस्तावों के लिये ही वित्तपोषण प्रदान किया जाता है जो योजना के दिशानिर्देशों और उद्देश्यों को पूरा करते हैं। 
    • पर्यटन मंत्रालय कनेक्टिविटी, मौजूदा पर्यटन पारिस्थितिकी तंत्र, साइट क्षमता, उपयोगिताओं की उपलब्धता, परियोजना प्रभाव, वित्तीय व्यवहार्यता और स्थिरता जैसे मानदंडों के आधार पर प्रस्तावों का मूल्याँकन करेगा।
    • प्रस्तावों को चुनौतीपूर्ण विकास प्रक्रिया का पालन करना होगा। 
      • चुनौतीपूर्ण विकास प्रक्रिया निर्धारित मानदंडों के आधार पर प्रतिस्पर्द्धी मूल्याँकन के माध्यम से सर्वोत्तम प्रस्तावों का चयन करती है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाली, नवीन परियोजनाएँ सुनिश्चित होती हैं।
    • राज्यों को बिना किसी कीमत के बिना किसी बाधा के भूमि उपलब्ध करानी चाहिये। परियोजनाएँ धारणीय होनी चाहिये, जिनका संचालन और रखरखाव लंबे समय तक हो।
    • परियोजनाओं के पूरा होने की अवधि दो वर्ष निर्धारित की गई है तथा धनराशि 31 मार्च 2026 तक उपलब्ध रहेगी।
    • राज्य सरकार संभवतः सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मोड के माध्यम से परियोजना के संचालन और रखरखाव के लिये पूरी तरह से ज़िम्मेदार है।
    • राज्य विश्व स्तरीय पर्यटन विकास के लिये निजी फर्मों को आकर्षित करने हेतु प्रोत्साहन दे सकते हैं।
  • सहायता का स्वरूप: राज्य एकाधिक परियोजनाएँ प्रस्तुत कर सकते हैं, जिनमें से प्रत्येक परियोजना के लिये अधिकतम वित्तपोषण 100 करोड़ रुपए होगा। 
    • असाधारण परियोजनाओं के लिये, पर्यटन मंत्रालय व्यय विभाग (DoE) के अनुमोदन के अधीन, अधिक धनराशि का प्रस्ताव कर सकता है। 
    • भारत सरकार परियोजना लागत का 100% वहन करेगी, जबकि राज्यों को परिधीय बुनियादी ढाँचे, सुरक्षा, कनेक्टिविटी और क्षमता निर्माण में योगदान देना होगा। 
      • किसी भी राज्य को 250 करोड़ रुपए से अधिक धनराशि नहीं मिलेगी, तथा धनराशि पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर आवंटित की जाएगी।
  • कार्यान्वयन और निगरानी: राज्य परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार हैं, जबकि पर्यटन मंत्रालय उनकी प्रगति की देखरेख करेगा।

SASCI योजना क्या है?

  • परिचय: कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2020-21 में 'पूंजीगत निवेश के लिये राज्यों को विशेष सहायता योजना' शुरू की गई थी। इसके बाद इसे वर्ष 2022-23 और 2023-24 में 'पूंजी निवेश के लिये राज्यों को विशेष सहायता योजना' के रूप में लागू किया गया।
  • उद्देश्य: राज्यों को 50 वर्ष के ब्याज मुक्त ऋण के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • योजना की संरचना: यह योजना प्रमुख विकास क्षेत्रों पर केंद्रित है, जिसमें वाहन परिमार्जन (स्क्रैपेज) पहल, शहरी नियोजन सुधार, पुलिस कर्मियों के लिये आवास और यूनिटी मॉल परियोजनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना शामिल है।
    • यह शैक्षिक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये पंचायत और वार्ड स्तर पर डिजिटल बुनियादी ढाँचे के साथ पुस्तकालयों की स्थापना का भी समर्थन करता है।
  • योजना का उद्देश्य:  इस योजना का उद्देश्य मांग को प्रोत्साहित और रोज़गार सृजन करके अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है, साथ ही राज्य के वित्तपोषण के माध्यम से जल जीवन मिशन और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी प्रमुख परियोजनाओं को गति देना है।
    • यह शहरों में जीवन की गुणवत्ता और शासन को बढ़ाने के लिये शहरी नियोजन और वित्त में सुधारों को भी प्रोत्साहित करता है।

पूंजीगत व्यय

  • पूंजीगत व्यय (Capex) से तात्पर्य बुनियादी ढाँचे और मशीनरी जैसी भौतिक परिसंपत्तियों के अधिग्रहण या सुधार, आर्थिक उत्पादकता और रोज़गार बढ़ाने हेतु सरकारी निधियों से है। 
  • केंद्रीय बजट 2024-25 में पूंजीगत व्यय के लिये 11.11 लाख करोड़ रुपए (या सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 3.4%) आवंटित किया गया है।

पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु भारत की पहल 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न:  पूंजी निवेश योजना हेतु राज्यों को विशेष सहायता से धारणीय पर्यटन को बढ़ावा मिलने के साथ राज्य के पूंजीगत व्यय में किस प्रकार वृद्धि होती है? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

प्रश्न. पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र को विकास पहलों और पर्यटन के ऋणात्मक प्रभाव से किस प्रकार पुनःस्थापित किया जा सकता है ? (2019)

प्रश्न. पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिकी वहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं? समालोचनात्मक मूल्याँकान कीजिये। (2015)


डिजिटल अरेस्ट

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल अरेस्ट, CBI, प्रवर्तन निदेशालय, नारकोटिक्स ब्यूरो, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र, CBDC, क्रिप्टोकरेंसी, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल, वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क, पोंजी या पिरामिड योजनाएँ, राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइनआधार 

मेन्स के लिये:

साइबर धोखाधड़ी की आर्थिक लागत, संबंधित जोखिम एवं आगे की राह।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

डिजिटल अरेस्ट साइबर स्कैम का सबसे नवीन रूप है जिससे वर्ष 2024 में 92,000 से अधिक भारतीय प्रभावित हुए हैं, जिसमें कर या कानूनी बकाया को हल करने की आड़ में ऑनलाइन अंतरण के माध्यम से धन निकाला जाता है। 

डिजिटल अरेस्ट के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • डिजिटल अरेस्ट घोटाले में साइबर अपराधी विधि प्रवर्तन अधिकारियों या सरकारी एजेंसियों जैसे राज्य पुलिस, CBI, ED और नारकोटिक्स ब्यूरो की नकली पहचान बनाकर आम लोगों से ठगी करते हैं
    • घोटालेबाज लोग बिना किसी संदेह के लोगों को फोन करके दावा करते हैं कि उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है तथा अपने आरोपों को विश्वसनीय बनाने के लिये वे फेक पुलिस थाने का भी इस्तेमाल करते हैं।
  • साइबर अपराधी फोन या ईमेल के माध्यम से पीड़ितों से संपर्क करते हैं। ये शुरुआत ऑडियो कॉल से करते हैं और फिर हवाई अड्डों, पुलिस स्टेशनों या न्यायालयों जैसे स्थानों से वीडियो कॉल करते हैं।
    • ये वैध दिखने के लिये अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पुलिस अधिकारियों, वकीलों और न्यायाधीशों की तस्वीरों को डिस्प्ले पिक्चर के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
    • ये ईमेल या मैसेजिंग ऐप के माध्यम से फेक गिरफ्तारी वारंट, कानूनी नोटिस या आधिकारिक दिखने वाले दस्तावेज़ भी भेज सकते हैं।
  • पीड़ितों को फँसाना: साइबर अपराधी आमतौर पर पीड़ितों पर गंभीर अपराधों जैसे धन शोधन, मादक पदार्थों की तस्करी या साइबर अपराध का आरोप लगाते हैं।
    • वे अपने आरोपों को विश्वसनीय बनाने के लिये नकली साक्ष्य बना सकते हैं। 
  • लोगों की भेद्यता:  
    • भय और घबराहट: गिरफ्तारी की धमकी या भय से पीड़ित बिना सोचे-समझे ऐसे लोगों की बात सही मान लेते हैं।
    • जानकारी का अभाव: विधि प्रवर्तन प्रक्रियाओं से अनभिज्ञता के कारण पीड़ितों के लिये वैध दावों और धोखाधड़ी के बीच अंतर करना कठिन हो जाता है।
    • सामाजिक कलंक: सामाजिक कलंक एवं परिवार पर पड़ने वाले प्रभाव के डर से पीड़ित ठगी का शिकार होते हैं।
    • तकनीक का प्रयोग: विश्वसनीय दिखने के लिये इसमें AI आवाज़ो, पेशेवर लोगों और नकली वीडियो कॉल का उपयोग किया जाता है।
    • तकनीकी संवेदनशीलता: तकनीकी की कम जानकारी रखने वाले या तनावग्रस्त व्यक्ति आसानी से धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं।

भारत में ‘साइबर स्कैम’ की स्थिति क्या है?

  • अवलोकन: भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के अनुसार, भारत में साइबर स्कैम/साइबर धोखाधड़ी की आवृत्ति और वित्तीय प्रभाव दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • यह चिंताजनक प्रवृत्ति भारत के डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में लगातार बढ़ते खतरे का संकेत देती है।
  • शिकायतें और नुकसान: पिछले कुछ वर्षों में शिकायतों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, वर्ष 2021 में 1,35,242, वर्ष 2022 में 5,14,741 और वर्ष 2023 में 11,31,221 शिकायतें दर्ज की गई हैं
    • वर्ष 2021 से सितंबर, 2024 के बीच साइबर स्कैम से कुल मौद्रिक नुकसान 27,914 करोड़ रुपए तक पहुँच गया है। 
  • प्रमुख स्कैम: 
    • स्टॉक ट्रेडिंग स्कैम: 2,28,094 शिकायतों से 4,636 करोड़ रुपए की हानि के साथ यह नुकसान का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
      • स्कैम करने वाले इसका उपयोग इक्विटी, विदेशी मुद्रा या क्रिप्टोकरेंसी का व्यापार करते समय अतार्किक लाभ का वादा करने के लिये करते हैं, लेकिन पीड़ित अंततः धोखे का शिकार हो जाते हैं।
    • पोंजी स्कीम स्कैम: 1,00,360 शिकायतों के कारण 3,216 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
    • "डिजिटल अरेस्ट" धोखाधड़ी: 63,481 शिकायतों से 1,616 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
  • धन के धोखाधड़ी की नई रणनीति: साइबर अपराधियों ने धन के धोखाधड़ी के लिये अपनी रणनीतियाँ अपना ली हैं।
    • निकासी के तरीके: चोरी किये गए पैसे अक्सर विभिन्न चैनलों के माध्यम से निकाले जाते हैं, जिनमें चेक, CBDC, फिनटेक क्रिप्टोकरेंसी, ATM, मर्चेंट पेमेंट और ई-वॉलेट शामिल हैं
    • मुले अकाउंट (Mule Accounts): I4C ने लगभग 4.5 लाख मुले अकाउंट की पहचान की है और उन्हें फ्रीज कर दिया है, जिनका उपयोग मुख्य रूप से साइबर अपराध से धन शोधन के लिये किया जाता था।

भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C):

  • परिचय: I4C को गृह मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में ‘साइबर स्कैम सहित सभी प्रकार के साइबर अपराधों से व्यापक और समन्वित तरीके से निपटने के लिये लॉन्च किया गया था।
  • I4C के उद्देश्य: 
    • देश में साइबर अपराध पर अंकुश लगाने के लिये एक नोडल निकाय के रूप में कार्य करना।
    • महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध के विरुद्ध लड़ाई को मजबूत करना। 
    • साइबर अपराध से संबंधित शिकायतों को आसानी से दर्ज करने और साइबर अपराध की प्रवृत्तियों और पैटर्न की पहचान करने में  सुविधा प्रदान करना।
    • सक्रिय साइबर अपराध की रोकथाम और पता लगाने के लिये  कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य करना।
    • साइबर अपराध को रोकने के बारे में जनता में  जागरूकता उत्पन्न करना।
    • साइबर फोरेंसिक, जाँच, साइबर स्वच्छता, साइबर अपराध विज्ञान आदि के क्षेत्र में  पुलिस अधिकारियों, सरकारी अभियोजकों और न्यायिक अधिकारियों की क्षमता निर्माण में राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की सहायता करना।
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: 
    • I4C के तहत, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल एक नागरिक-केंद्रित पहल है जो नागरिकों को साइबर धोखाधड़ी की ऑनलाइन रिपोर्ट करने में सक्षम बनाएगी और सभी शिकायतों तक संबंधित कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा विधि के अनुसार कार्रवाई करने के लिये पहुँच सुनिश्चित की जाएगी।

साइबर स्कैम के निपटान हेतु क्या चुनौतियाँ हैं?

  • गोपनीयता: साइबर अपराधी अपनी पहचान और स्थान को छिपाने के लिये वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPNA) और एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप जैसे उपकरणों का उपयोग करते हैं, जिससे उन्हें पता लगाने और गिरफ्तार करने के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय दायरा: साइबर स्कैम अक्सर कई देशों तक फैले होते हैं, जिससे स्थानीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है। 
  • स्कैम का एक बड़ा हिस्सा दक्षिण पूर्व एशिया और चीन से आता है।
  • तेज़ी से विकसित हो रही रणनीतियाँ: फिशिंग घोटाले ईमेल के माध्यम से अधिक परिष्कृत तरीकों से किये जाते हैं, जिनमें सोशल इंजीनियरिंग, टेक्स्ट मैसेज और वॉयस कॉल शामिल हैं, जिससे धोखाधड़ी का पता लगाना कठिन हो गया है।
  • उन्नत मैलवेयर : साइबर स्कैम उन्नत मैलवेयर का उपयोग करते हैं जो डेटा चोरी करने या अनधिकृत पहुँच प्राप्त करने के लिये एंटीवायरस प्रोग्राम और फायरवॉल को बायपास कर सकते हैं।
  • विनियामक विखंडन : विभिन्न देशों के अलग-अलग नियम हैं, जिससे साइबर अपराध से निपटने के लिये सुसंगत अंतर्राष्ट्रीय रणनीति बनाना कठिन हो जाता है।
    • इसके अलावा, देशों के पास डेटा साझा किये बिना उभरते साइबर स्कैम के रुझान और रणनीति की पहचान करने के लिये व्यापक खतरा खुफिया जानकारी का अभाव है।
  • बढ़ता डिजिटल बाज़ार : ई-कॉमर्स और डिजिटल भुगतान प्रणालियों के विकास के कारण फेक ऑनलाइन स्टोर, कार्ड स्कीमिंग और धोखाधड़ी भुगतान योजनाओं जैसे स्कैम में वृद्धि हुई है।

साइबर स्कैम के प्रकार

  • फ़िशिंग स्कैम : धोखेबाज़, विश्वसनीय संगठनों की नकल करते हुए नकली ईमेल या संदेश भेजते हैं, ताकि पीड़ितों से पासवर्ड या वित्तीय विवरण जैसी संवेदनशील जानकारी साझा करवा सकें।
  • लॉटरी और पुरस्कार स्कैम : पीड़ितों को सूचना मिलती है कि उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण पुरस्कार जीता है और उसे प्राप्त करने के लिये उनसे प्रोसेसिंग शुल्क या कर का भुगतान करने के लिये कहा जाता है।
  • भावनात्मक हेरफेर स्कैम : डेटिंग ऐप्स पर स्कैमर पीड़ितों के साथ संबंध बनाते हैं और बाद में आपात स्थिति के लिये पैसे मांगते हैं, अक्सर क्रिप्टोकरेंसी में भुगतान की मांग करते हैं।
  • जॉब स्कैम : स्कैमर जॉब चाहने वालों, विशेष रूप से नए स्नातकों को व्यक्तिगत जानकारी या पैसा देने के लिये भर्ती प्लेटफार्मों या सोशल मीडिया पर फेक जॉब लिस्टिंग पोस्ट करते हैं।
  • निवेश स्कैम : ये स्कैम पोंजी या पिरामिड योजनाओं के माध्यम से उच्च, अवास्तविक रिटर्न का वादा करके पीड़ित की त्वरित धन कमाने की इच्छा को आकर्षित करते हैं।
  • कैश-ऑन-डिलीवरी (CoD) स्कैम : स्कैमर नकली ऑनलाइन स्टोर बनाते हैं जो CoD ऑर्डर स्वीकार करते हैं। जब उत्पाद डिलीवर किया जाता है, तो यह या तो नकली होता है या विज्ञापित के अनुसार नहीं होता है।
  • फेक चैरिटी अपील स्कैम : स्कैमर आपदा राहत या स्वास्थ्य पहल जैसे अनुपयुक्त कारणों के लिये फेक वेबसाइट या सोशल मीडिया पेज बनाते हैं, तथा तात्कालिकता और सहानुभूति पैदा करने के लिये भावनात्मक कहानियों या छवियों का उपयोग करते हैं।
  • गलत तरीके से धन-हस्तांतरण स्कैम : स्कैमर पीड़ितों से संपर्क कर दावा करते हैं कि उनके खाते में गलती से धन भेज दिया गया है, तथा कानूनी परेशानी से बचने के लिये धन वापस करने के लिये उन पर दबाव डालने के लिये फेक लेनदेन रसीदों का उपयोग करते हैं।
  • क्रेडिट कार्ड स्कैम : स्कैमर कम ब्याज दरों पर ऋण की पेशकश करते हैं और उसे तुरंत मंज़ूरी दे देते हैं। पीड़ित द्वारा ऋण सुरक्षित करने के लिये अग्रिम शुल्क का भुगतान करने के बाद, स्कैमर गायब हो जाते हैं।

Cyber_Security

भारत में साइबर स्कैम से संबंधित प्रमुख सरकारी पहल क्या हैं? 

आगे की राह

  • डिजिटल सुरक्षा: भारत के प्रधानमंत्री ने डिजिटल अरेस्ट से बचाव के लिये एक सरल तीन-चरणीय सुरक्षा प्रोटोकॉल की रूपरेखा प्रस्तुत की।
  • साइबर सुरक्षा के सर्वोत्तम अभ्यास: फायरवॉल का उपयोग करना, जो कंप्यूटरों के लिये सुरक्षा की प्रथम पंक्ति के रूप में कार्य करते हैं, अनधिकृत पहुँच को रोकने के लिये नेटवर्क ट्रैफिक की निगरानी और फिल्टर करते हैं। 
    • सुरक्षा संबंधित कमियों को दूर करने के लिये सभी सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर प्रणालियों को अद्यतन रखना। 
  • उन्नत सुरक्षा: सुरक्षा की एक अतिरिक्त स्तर जोड़ने के लिये टू-फैक्टर प्रमाणीकरण लागू करना। वित्तीय रिकॉर्ड सहित संवेदनशील डेटा की सुरक्षा के लिये एन्क्रिप्शन का उपयोग करना। 
  • सतर्कता में वृद्धि: बैंकों को कम शेष वाले या वेतनभोगी खातों में उच्च मूल्य के लेनदेन की निगरानी करनी चाहिये तथा प्राधिकारियों को सचेत करना चाहिये, क्योंकि चोरी का पैसा अक्सर इन खातों में स्थानांतरित कर दिया जाता है तथा उसके बाद उसे क्रिप्टोकरेंसी में परिवर्तित कर विदेश भेज दिया जाता है।
  • जागरूकता: कोई भी व्यक्तिगत जानकारी (जैसे आधार या पैन कार्ड विवरण) एवं पैसा न देना।  
    • हमेशा आधिकारिक चैनलों के माध्यम से कॉल करने वाले की पहचान स्वतंत्र रूप से सत्यापित करना।
    • सामान्य धोखाधड़ी की रणनीति के बारे में जानें और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये इस जानकारी को अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : समान कानून बनाने, खुफिया जानकारी साझा करने और प्रतिक्रियाओं में समन्वय स्थापित करने के लिये राष्ट्रों के बीच सहयोग से सीमा पार साइबर अपराध से निपटने में सहायता मिल सकती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: साइबर स्कैम के विभिन्न प्रकार क्या हैं? साइबर स्कैम से निपटने में क्या चुनौतियाँ विद्यमान हैं?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स  

 प्रश्न. भारत में, किसी व्यक्ति के साइबर बीमा कराने पर, निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त

निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं? (2020)

  1. यदि कोई किसी मैलवेयर कंप्यूटर तक उसकी पहुँच को बाधित कर देता है तो कंप्यूटर प्रणाली को पुनः प्रचालित करने में लगने वाली लागत
  2. यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि किसी शरारती तत्त्व द्वारा जानबूझ कर कंप्यूटर को नुकसान पहुँचाया गया है तो एक नए कंप्यूटर की लागत
  3. यदि साइबर बलात्-ग्रहण होता है तो इस हानि को न्यूनतम करने के लिये विशेष परामर्शदाता की की सेवाएँ पर लगने वाली लागत
  4. यदि कोई तीसरा पक्ष मुकदमा दायर करता है तो न्यायालय में बचाव करने में लगने वाली लागत

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1,2 और 4
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है? (2017)

  1. सेवा प्रदाता
  2. डेटा सेंटर
  3. कॉर्पोरेट निकाय

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d) 


मेन्स

प्रश्न: साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022)