OTT प्लेटफॉर्म्स
प्रिलिम्स के लिये:OTT प्लेटफॉर्म, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता) नियम 2021 मेन्स के लिये:OTT प्लेटफॉर्म्स का बढ़ता महत्त्व और इसके निहितार्थ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में SBI रिसर्च द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें कहा गया कि ओवर द टॉप (Over The Top- OTT) बाज़ार वर्ष 2023 तक 12,000 करोड़ रुपए का उद्योग बनने के लिये तैयार है, जो वर्ष 2018 में 2,590 करोड़ रुपए था।
प्रमुख बिंदु
- संबंधित आँकड़े:
- OTT बाज़ार वर्ष 2018 में 2,590 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2023 तक 36% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि के साथ 11,944 करोड़ रुपए तक पहुँचने की उम्मीद है।
- OTT ने पहले ही मनोरंजन उद्योग की हिस्सेदारी और राजस्व का 7-9% हिस्सा रखता है, और लगातार 40 से अधिक अभिकर्त्ताओं के साथ लगातार बढ़ रहा है और सभी भाषाओं में मूल मीडिया सामग्री प्रस्तुत कर रहा है।
- देश में आज 45 करोड़ से अधिक OTT ग्राहक हैं और इसके वर्ष 2023 के अंत तक 50 करोड़ तक पहुँचने की उम्मीद है।
- पे-पर-व्यू सेगमेंट (टेलीविजन देखने की प्रणाली जिसमें लोग अपने द्वारा देखे जाने वाले विशेष कार्यक्रमों के लिये भुगतान करते हैं) वर्ष 2018 में 3.5 करोड़ रुपए था और वर्ष 2022 में 8.9 करोड़ रुपए और 2027 में 11.7 करोड़ रुपए तक छूने की राह पर है।
- इस अवधि के दौरान वीडियो डाउनलोड क्रमशः 4.2 करोड़ और 7.7 करोड़, 8.6 करोड़, जबकि वीडियो स्ट्रीमिंग क्रमशः 1.9 करोड़, 6.8 करोड़ और 10.8 करोड़ होने की उम्मीद है।
- वृद्धि के कारण:
- यह मज़बूत वृद्धि सस्ती हाई-स्पीड मोबाइल इंटरनेट, इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के दोगुने होने, डिजिटल भुगतानों को अपनाने में वृद्धि और वैश्विक अभिकर्त्ताओं द्वारा दी जाने वाली रियायती कीमतों के कारण है।
- कोविड के कारण लॉकडाउन जिसने सिनेमाघरों को पूरी तरह से बंद कर दिया।
- निहितार्थ:
- इससे वीडियो कैसेट रिकॉर्डर/ वीडियो कैसेट प्लेयर्स/ डिजिटल वीडियो डिस्क (VCR/VCP/DVD) उद्योगों के अप्रचलित होने की पुनरावृत्ति हो सकती है, जो 1980 के दशक में मेट्रो/शहरी क्षेत्रों में तथा 2000 के दशक की शुरुआत से मल्टीप्लेक्स/सिनेमाघरों की संख्या बढ़ने के साथ तेज़ी से बढ़ा।
- 1980 के दशक में VCR/VCP के प्रचलन में वृद्धि देखी गई, जिसने पहली बार फिल्म देखने के पारंपरिक तरीकों को चुनौती दी।
- OTT के बढ़ने से सिनेमाघरों के लाभ पर प्रभाव पड़ने की आशंका है क्योंकि 50% से ज़्यादा लोग महीने में 5 घंटे से ज्यादा OTT का इस्तेमाल करते हैं।
- यह उम्मीद की जाती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और फिटनेस में OTT प्लेटफॉर्म के विस्तार से इसके भविष्य को भी मज़बूती मिलेगी।
- इसने सामग्री निर्माताओं के लिये नए मार्ग खोल दिये हैं, और दर्शकों के लिये यह केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि सामाजिक मुद्दों पर जागरूक होने का माध्यम भी बन गया है।
- इससे वीडियो कैसेट रिकॉर्डर/ वीडियो कैसेट प्लेयर्स/ डिजिटल वीडियो डिस्क (VCR/VCP/DVD) उद्योगों के अप्रचलित होने की पुनरावृत्ति हो सकती है, जो 1980 के दशक में मेट्रो/शहरी क्षेत्रों में तथा 2000 के दशक की शुरुआत से मल्टीप्लेक्स/सिनेमाघरों की संख्या बढ़ने के साथ तेज़ी से बढ़ा।
ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म:
- प्रायः ओटीटी (OTT) या ओवर-द-टॉप प्लेटफॉर्म का प्रयोग ऑडियो और वीडियो होस्टिंग तथा स्ट्रीमिंग सेवा प्रदाता के रूप में किया जाता है, जिनकी शुरुआत तो असल में कंटेंट होस्टिंग प्लेटफॉर्म के रूप में हुई थी, किंतु वर्तमान में ये स्वयं ही शॉर्ट फिल्म, फीचर फिल्म, वृत्तचित्रों और वेब-फिल्म का निर्माण कर रहे हैं।
- ये प्लेटफॉर्म उपयोगकर्त्ताओं को व्यापक कंटेंट प्रदान करने साथ-साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का इस्तेमाल करते हुए उन्हें कंटेंट के संबंध में सुझाव भी प्रदान करते हैं।
- अधिकांश OTT प्लेटफॉर्म आम तौर पर कुछ सामग्री निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं और प्रीमियम सामग्री के लिये मासिक सदस्यता शुल्क लेते हैं जो आमतौर पर कहीं और उपलब्ध नहीं होता है।
- प्रीमियम सामग्री का आमतौर पर OTT प्लेटफॉर्म द्वारा स्वयं निर्माण और विपणन किया जाता है, प्रोडक्शन हाउस के सहयोग से इन्होंने कई फीचर फिल्मों का निर्माण किया है।
- उदाहरण: नेटफ्लिक्स, डिज़नी+, हुलु, अमेज़ॅन प्राइम वीडियो, हुलु, पीकॉक, क्यूरियोसिटी स्ट्रीम, प्लूटो टीवी आदि।
OTT प्लेटफार्मों को विनियमित करने वाले कानून:
- सरकार ने OTT प्लेटफार्मों को विनियमित करने के लिये फरवरी 2022 में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता) नियम वर्ष 2021 को अधिसूचित किया था।
- यह नियम OTT प्लेटफॉर्म के लिये आचार संहिता और त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र के साथ एक सॉफ्ट-टच स्व-नियामक आर्किटेक्चर स्थापित करते हैं।
- प्रत्येक प्रकाशक को 15 दिनों के भीतर शिकायतें प्राप्त करने और उनके निवारण के लिये भारत में स्थित एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करना चाहिये।
- साथ ही, प्रत्येक प्रकाशक को एक स्व-नियामक निकाय का सदस्य बनने की आवश्यकता है। ऐसे निकाय को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में पंजीकरण कराना होगा और उन शिकायतों का समाधान करना होगा जिनका समाधान प्रकाशक द्वारा 15 दिनों के भीतर नहीं किया गया है।
- सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा गठित अंतर-विभागीय समिति त्रि-स्तरीय निगरानी तंत्र का गठन करती है।
- यह कानून केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की भागीदारी के बिना सामग्री के स्व-वर्गीकरण का प्रावधान करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. COVID-19 महामारी ने पूरे विश्व में अभूतपूर्व तबाही मचाई है। हालाँकि, संकट से उभरने के लिये तकनीकी प्रगति का लाभ उठाया जा रहा है। महामारी के प्रबंधन में सहायता के लिये प्रौद्योगिकी की क्या ज़रुरत पड़ी, इसका विवरण दीजिये। (2020) |
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
समुद्री सुरक्षा
प्रिलिम्स के लिये:समुद्री सुरक्षा, युआंग वांग 5, सरकार की पहल। मेन्स के लिये:समुद्री सुरक्षा का महत्त्व, समुद्री सुरक्षा में चुनौतियाँ, सरकार की पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत में श्रीलंका के राजदूत ने कहा कि भारत-श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह में युआंग वांग 5, चीनी उपग्रह और मिसाइल ट्रैकिंग जहाज़ की उपस्थिति जैसी समुद्री सुरक्षा चिंताओं पर चर्चा करने के लिये एक रूपरेखा का निर्माण करना चाहिये।
युआंग वांग 5:
- परिचय :
- यह युआंग वांग शृंखला की तीसरी पीढ़ी का पोत है जो वर्ष 2007 से सेवारत है।
- पोत की इस शृंखला में "मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम का समर्थन एवं उपग्रह ट्रैकिंग" भी शामिल हैं।
- अर्थात् इसमें उपग्रहों और अंतर-महाद्वीपीय मिसाइलों को ट्रैक करने की क्षमता है।
- हंबनटोटा बंदरगाह:
- हंबनटोटा इंटरनेशनल पोर्ट समूह श्रीलंका सरकार एवं चीन मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स (CMPort) के मध्य एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी की रणनीतिक विकास परियोजना है।
- श्रीलंका द्वारा चीनी ऋण चुकाने में विफल रहने के बाद यह बंदरगाह चीन को 99 वर्ष के पट्टे पर दिया गया था।
- इसे चीन के "ऋण जाल" कूटनीति के रूप में देखा जाता है।
भारत में समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता:
- परिचय:
- समुद्री सुरक्षा की आमतौर पर कोई सहमत परिभाषा नहीं होती है।
- यह राष्ट्रीय सुरक्षा, समुद्री पर्यावरण, आर्थिक विकास और मानव सुरक्षा सहित समुद्री क्षेत्र में मुद्दों को वर्गीकृत करता है।
- दुनिया के महासागरों के अलावा यह क्षेत्रीय समुद्रों, क्षेत्रीय जल, नदियों और बंदरगाहों से भी संबंधित है।
- समुद्री सुरक्षा की आमतौर पर कोई सहमत परिभाषा नहीं होती है।
- महत्त्व:
- विश्व समुदाय के लिये समुद्री सुरक्षा का अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि समुद्र में लूट-पाट से लेकर अवैध अप्रवास और हथियारों की तस्करी जैसी चिंताएँ व्याप्त हैं।
- यह आतंकवादी हमलों और पर्यावरणीय आपदाओं के खतरों से भी निपटता है।
- भारत के संदर्भ में समुद्री सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है क्योंकि इसकी तटरेखा 7,500 किलोमीटर से भी अधिक है।
- प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ, समुद्री क्षेत्र में भौतिक खतरों से ज़्यादा, तकनीकी खतरों से सुरक्षा की आवश्यकता है।
- भारत का निर्यात और आयात ज़्यादातर हिंद महासागर के शिपिंग क्षेत्र से होता है। इसलिये, 21वीं सदी में संचार के समुद्री मार्ग (SLOCs) को सुरक्षित करना भारत के लिए एक अहम मुद्दा रहा है।
- विश्व समुदाय के लिये समुद्री सुरक्षा का अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि समुद्र में लूट-पाट से लेकर अवैध अप्रवास और हथियारों की तस्करी जैसी चिंताएँ व्याप्त हैं।
- चीन की उपस्थिति:
- वर्ष 2019 में चीनी पोत शियान 1 को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास देखा गया था।
- अगस्त 2020 में चीन-भारत सीमा पर पूर्वी लद्दाख में चल रहे संघर्ष के बीच चीन ने अपने युआंग वांग वर्ग के पोत को हिंद महासागर में भेजा।
समुद्री सुरक्षा के लिये भारत की पहल:
- क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (SAGAR) नीति:
- भारत की सागर नीति एक एकीकृत क्षेत्रीय ढाँचा है, जिसका अनावरण भारतीय प्रधानमंत्री ने मार्च 2015 में मॉरीशस की यात्रा के दौरान किया था। सागर(SAGAR) नीति के आधारभूत स्तंभ हैं:
- हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका।
- भारत IOR क्षेत्र में अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने और उनकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के प्रयास ज़ारी रखेगा।
- IOR के भविष्य पर अधिक एकीकृत और सहयोगात्मक फोकस इस क्षेत्र के सभी देशों के सतत विकास की संभावनाओं को बढ़ाएगा।
- IOR में शांति, स्थिरता और समृद्धि की प्राथमिक ज़िम्मेदारी "इस क्षेत्र में रहने वाले" लोगों की होगी।
- भारत की सागर नीति एक एकीकृत क्षेत्रीय ढाँचा है, जिसका अनावरण भारतीय प्रधानमंत्री ने मार्च 2015 में मॉरीशस की यात्रा के दौरान किया था। सागर(SAGAR) नीति के आधारभूत स्तंभ हैं:
- मिशन सागर:
- मई 2020 में शुरू किया गया 'मिशन सागर' हिंद महासागर के तटवर्ती राज्यों में देशों को कोविड-19 संबंधित सहायता प्रदान करने हेतु भारत की पहल थी। इसके तहत मालदीव, मॉरीशस, मेडागास्कर, कोमोरोस और सेशेल्स जैसे देश शामिल थे।
- मिशन सागर ’के तहत भारतीय नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) और उसके तटवर्ती देशों में चिकित्सा और मानवीय सहायता भेजने के लिये अपने जहाज़ों को तैनात कर रही है।
- मई 2020 में शुरू किया गया 'मिशन सागर' हिंद महासागर के तटवर्ती राज्यों में देशों को कोविड-19 संबंधित सहायता प्रदान करने हेतु भारत की पहल थी। इसके तहत मालदीव, मॉरीशस, मेडागास्कर, कोमोरोस और सेशेल्स जैसे देश शामिल थे।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन:
- भारत और बांग्लादेश के बीच समुद्री सीमा मध्यस्थता पर संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) ट्रिब्यूनल अवार्ड को भारत ने स्वीकार किया है।
- इसने बंगाल की खाड़ी (BIMSTEC) के तटवर्ती राज्यों के बीच प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिये एक नए आवेग का योगदान देने की परिकल्पना की है।
- डेटा साझा करना:
- वाणिज्यिक नौवहन के खतरों पर डेटा साझा करना समुद्री सुरक्षा बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- इस संदर्भ में, भारत ने वर्ष 2018 में गुरुग्राम में हिंद महासागर क्षेत्र के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संलयन केंद्र (IFC) की स्थापना की।
- IFC को भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल संयुक्त रूप से प्रशासित करते हैं।
- IFC सुरक्षा और सुरक्षा के मुद्दों पर समुद्री क्षेत्र की जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य को पूरा करता है।
आगे की राह:
- भारत का बहुआयामी दृष्टिकोण:
- भारत की केवल मज़बूत सैन्य रणनीति ही चीन का मुकाबला करने के लिये पर्याप्त नहीं है, उसे अवसंरचना के घटक, प्रौद्योगिकी से संबंधित पहलू सहित एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
- हिंद महासागर में भारत को अपनी प्रमुखता और मुखरता बनाए रखनी चाहिये तथा चीन को उन क्षेत्रों में संचालन से रोकना चाहिये जो भारत के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- अपने भागीदारों के साथ सहभागिता बढ़ाकर और उनसे अपने संबंधों में सुधार लाकर भारत को प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहिये क्योंकि इस क्षेत्र में चीन की स्थिति अत्यधिक अस्थिर और संवेदनशील है।
- भारत की सामुद्रिक नीतियों को चीन की नीतियों के अनुसार तैयार करना होगा।
- चीन के बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं के स्तर से तालमेल:
- अमेरिका के विरोध के बावज़ूद चीन इज़रायल में एक बंदरगाह बनाने की योजना बना रहा है।
- चीन का एक बंदरगाह अफ्रीका के जिबूती (Djibouti) तथा एक पाकिस्तान के ग्वादर (Gwadar) जो ईरान के भी करीब है, में स्थापित हैं तथा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के ज़रिये चीन की पहुँच यूरोप में भी है।
- भारत की रणनीति को चीन के स्तर तक संतुलित करना होगा जो वह अफ्रीकी देशों में बुनियादी ढांँचे के निर्माण में कर रहा है।
- देश के आर्थिक वृद्धि और विकास के लिये भारतीय बुनियादी ढाँचे का विकास आवश्यक है। जैसा कि भारत ने विकास-आधारित आर्थिक नीति अपनाई है, भारत को अपने समुद्री बुनियादी ढाँचे को विकसित करने की आवश्यकता है, जैसे बंदरगाहों एवं बंदरगाहों के विकास, कनेक्टिविटी, लॉजिस्टिक्स आदि।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न. 'मौसम' परियोजना को अपने पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने के लिये भारत सरकार की अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या परियोजना का कोई रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2015) प्रश्न. दक्षिण चीन सागर के संबंध में समुद्री क्षेत्रीय विवाद और बढ़ते तनाव पूरे क्षेत्र में नौवहन एवं ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की सुरक्षा की आवश्यकता की पुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014) |
स्रोत: द हिंदू
भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट 2021: NCRB
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, NCRB की रिपोर्ट, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय आँकड़े। मेन्स के लिये:जनसंख्या और संबद्ध मुद्दे, NCRB रिपोर्ट की मुख्य निष्कर्ष, NCRB की रिपोर्ट, NCRB के कार्य। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने "भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट 2021" जारी की है।
- रिपोर्ट में "महिलाओं के खिलाफ अपराध", "आत्महत्या" और "अपराध दर" के आँकड़े दिये गए हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराध
- राष्ट्रीय आँकड़े:
- महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर (प्रति 1 लाख जनसंख्या पर घटनाओं की संख्या) वर्ष 2020 में 56.5% से बढ़कर वर्ष 2021 में 64.5% हो गई।
- 31.8%: पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता,
- 20.8%: उसकी विनम्रता को अपमानित करने के इरादे से महिलाओं पर हमला,
- 17.66%: अपहरण,
- 7.40%: बलात्कार।
- महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर (प्रति 1 लाख जनसंख्या पर घटनाओं की संख्या) वर्ष 2020 में 56.5% से बढ़कर वर्ष 2021 में 64.5% हो गई।
- राज्य:
- वर्ष 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की उच्चतम दर असम में 168.3% दर्ज की गई, इसके बाद ओडिशा, हरियाणा, तेलंगाना और राजस्थान का स्थान रहा।
- राजस्थान मेंं महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की वास्तविक संख्या में मामूली कमी देखी गई है, जबकि तीन अन्य राज्यों (ओडिशा, हरियाणा और तेलंगाना) में वृद्धि दर्ज की गई है।
- वर्ष 2021 में दर्ज मामलों की वास्तविक संख्या के संदर्भ में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है, इसके बाद क्रमशः राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और ओडिशा का स्थान आता है।
- नगालैंड में पिछले तीन वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे कम मामले दर्ज किये गए।
- वर्ष 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की उच्चतम दर असम में 168.3% दर्ज की गई, इसके बाद ओडिशा, हरियाणा, तेलंगाना और राजस्थान का स्थान रहा।
- केंद्रशासित प्रदेश:
- केंद्रशासित प्रदेशों के वर्ग में दिल्ली में वर्ष 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की उच्चतम दर 147.6% थी।
- शहर:
- जयपुर में सबसे अधिक 194% से अधिक की दर थी, इसके बाद दिल्ली, इंदौर और लखनऊ का स्थान था।
- चेन्नई और कोयंबटूर (दोनों चेन्नई में) की दर सबसे कम थी।
- इन शहरों में वास्तविक संख्या में दिल्ली वर्ष 2021 (13,892) में सबसे ऊपर है, उसके बाद मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद का स्थान है।
- जयपुर में सबसे अधिक 194% से अधिक की दर थी, इसके बाद दिल्ली, इंदौर और लखनऊ का स्थान था।
- घरेलू हिंसा और दहेज से होने वाली मौतें:
- घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत वर्ष 2021 में देश में केवल 507 मामले दर्ज किये गए, जो महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल मामलों का 0.1% है।
- सबसे अधिक मामले (270) केरल में दर्ज किये गए।
- वर्ष 2021 में दहेज हत्या के 6,589 मामले दर्ज किये गए, जिनमें सबसे अधिक ऐसी मौतें उत्तर और बिहार में दर्ज की गईं।
- घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत वर्ष 2021 में देश में केवल 507 मामले दर्ज किये गए, जो महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल मामलों का 0.1% है।
आत्महत्या दर से संबंधित रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- दैनिक वेतन भोगी:
- वर्ष 2021 में आत्महत्या पीड़ितों के बीच दैनिक वेतन भोगी सबसे बड़ा पेशा-वार समूह बना रहा, जो 42,004 आत्महत्याओं (25.6%) के लिये जिम्मेदार है।
- आत्महत्या से दिहाड़ी मजदूरों की मृत्यु का हिस्सा पहली बार चतुर्थांश आंकड़े को पार कर गया है।
- राष्ट्रीय स्तर पर आत्महत्याओं की संख्या में वर्ष 2020 से वर्ष 2021 तक 7.17% की वृद्धि हुई।
- हालाँकि, इस अवधि के दौरान दैनिक वेतन भोगी समूह में आत्महत्या करने वालों की संख्या में 11.52% की वृद्धि हुई।
- कृषि क्षेत्र:
- कुल दर्ज आत्महत्याओं में "कृषि क्षेत्र में लगे व्यक्तियों" की कुल हिस्सेदारी वर्ष 2021 के दौरान 6.6% थी।
- पेशे के अनुसार वितरण:
- 16.73% की उच्चतम वृद्धि "स्व-नियोजित व्यक्तियों" द्वारा दर्ज की गई थी।
- “बेरोज़गार व्यक्ति” समूह ही एकमात्र ऐसा समूह था जिसने आत्महत्याओं की संख्या में गिरावट देखी, जिसमें वर्ष 2020 में 15,652 से 12.38% की गिरावट के साथ वर्ष 2021 में 13,714 आत्महत्याएँ हुईं।
- आत्महत्या के कारण:
- 33.2%: पारिवारिक समस्याएँ (विवाह संबंधी समस्याओं के अलावा)
- 4.8%: विवाह संबंधी समस्याएँ
- 18.6%: बीमारी
- राज्य:
- वर्ष 2021 में रिपोर्ट की गई आत्महत्याओं की संख्या के मामले में महाराष्ट्र देश में सबसे ऊपर है, उसके बाद तमिलनाडु और मध्य प्रदेश हैं।
- वर्ष 2021 में देश भर में दर्ज आत्महत्याओं की कुल संख्या में महाराष्ट्र का योगदान 13.5% था।
- वर्ष 2021 में रिपोर्ट की गई आत्महत्याओं की संख्या के मामले में महाराष्ट्र देश में सबसे ऊपर है, उसके बाद तमिलनाडु और मध्य प्रदेश हैं।
- केंद्रशासित प्रदेश:
- दिल्ली में सबसे अधिक 2,840 आत्महत्याएँ दर्ज की गईं।
अपराध दर के लिये रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- परिचय:
- बलात्कार, अपहरण, बच्चों के खिलाफ अपराध और डकैती जैसे पंजीकृत हिंसक अपराध पूरे भारत में वर्ष 2021 में फिर से बढ़े।
- महामारी संबंधी प्रतिबंधों के कारण वर्ष 2020 में इन गंभीर अपराधों में कमी आई है।
- हत्या के मामलों में वर्ष 2020 में भी कमी नहीं आई थी जो वर्ष 2021 में भी बढ़ते रहे ।
- बलात्कार, अपहरण, बच्चों के खिलाफ अपराध और डकैती जैसे पंजीकृत हिंसक अपराध पूरे भारत में वर्ष 2021 में फिर से बढ़े।
- अपराध वार आँकड़े:
- बलात्कार के मामले:
- 13% की वृद्धि (वर्ष 2020 में 28,046)।
- राजस्थान में वर्ष 2021 में बलात्कार की उच्चतम दर 16.4% थी जो वास्तविक संख्या में 6,337 मामलों के साथ शीर्ष पर रहा है।
- अपहरण:
- 20% की वृद्धि (वर्ष 2020 में 84,805)।
- हत्या:
- वर्ष 2021 में 29,272 मामले बढ़कर 2020 में 29,193 हो गए।
- उत्तर प्रदेश राज्य में हत्या के सबसे अधिक मामले दर्ज किये गए, उसके बाद बिहार और महाराष्ट्र का स्थान रहा है।
- बच्चों के खिलाफ अपराध:
- कोविड से संबंधित प्रतिबंध के कारण वर्ष 2020 में गिरावट के बाद बच्चों के खिलाफ अपराध महामारी पूर्व के स्तर को पार कर गया।
- वर्ष 2021 में 49 लाख ऐसे मामले दर्ज किये गए, जो वर्ष 2019 में 1.48 लाख से अधिक हैं।
- केरल, मेघालय, हरियाणा और मिज़ोरम के बाद सिक्किम में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की दर सबसे अधिक है।
- बलात्कार के मामले:
- कोविड-19 उल्लंघन:
- वर्ष 2021 में समग्र अपराधों में गिरावट को "एक लोक सेवक, IPC की धारा 188 द्वारा विधिवत रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा" के तहत दर्ज मामलों में तीव्र कमी के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- ऐसे मामले मुख्य रूप से कोविड-19 मानदंडों के उल्लंघन को लेकर दर्ज किये गए थे। उन्हें 'अन्य IPC अपराध' और 'अन्य राज्य स्थानीय अधिनियमों' के तहत भी दर्ज किया गया था।
- IPC की धारा 188 के तहत दर्ज मामलों की संख्या वर्ष 2020 में 6.12 लाख मामलों से लगभग 50% कम होकर वर्ष 2021 में 3.22 लाख हो गई है।
- वर्ष 2021 में समग्र अपराधों में गिरावट को "एक लोक सेवक, IPC की धारा 188 द्वारा विधिवत रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा" के तहत दर्ज मामलों में तीव्र कमी के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो:
- परिचय:
- नई दिल्ली में NCRB के मुख्यालय की स्थापना वर्ष 1986 में गृह मंत्रालय के तहत अपराध और अपराधियों पर सूचना के भंडार के रूप में कार्य करने के लिये की गई थी ताकि अपराधियों के संबंध में जांचकर्त्ताओं की सहायता की जा सके।
- इसकी स्थापना राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) और गृह मंत्रालय कार्य बल (1985) की सलाह के आधार पर किया गया था।
- कार्य:
- ब्यूरो को यौन अपराधियों के राष्ट्रीय डेटाबेस (NDSO) को बनाए रखने और इसे नियमित रूप से राज्यों/केंद्रशासित राज्यों के साथ साझा करने का काम सौंपा गया है।
- NCRB को 'ऑनलाइन साइबर-अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल' के तकनीकी और परिचालन कार्यों का प्रबंधन करने के लिये केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में भी नामित किया गया है, जिस पोर्टल पर कोई भी नागरिक शिकायत दर्ज करा सकता है या चाइल्ड पोर्नोग्राफी या बलात्कार/सामूहिक बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के संबद्ध में सबूत के तौर पर विडियो अपलोड कर सकता है।
- इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS) के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी भी NCRB को दी गई है।
- ICJS देश में आपराधिक न्याय प्रदान करने के लिये प्रयोग की जाने वाली मुख्य आईटी प्रणाली के एकीकरण को सक्षम करने के लिये एक राष्ट्रीय मंच है।
- यह प्रणाली के पाँच स्तंभों जैसे पुलिस (अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग और नेटवर्क सिस्टम के माध्यम से), फोरेंसिक लैब के लिये ई-फोरेंसिक, न्यायालयों के लिये ई-कोर्ट, लोक अभियोजकों के लिये ई-अभियोजन और जेलों के लिये ई-जेल को एकीकृत करने का प्रयास करता है।
- प्रमुख प्रकाशन:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. भारत के सबसे समृद्ध क्षेत्रों में भी महिलाओं का लिंगानुपात प्रतिकूल क्यों है? अपने तर्क दीजिये। (2014) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़
प्रिलिम्स के लिये:भौगोलिक घटना, बाढ़, भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार। मुख्य परीक्षा के लिये:बाढ़ के कारण, जीवन और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
भारत, पाकिस्तान में भीषण मानसून के कारण आई विनाशकारी बाढ़ से निपटने हेतु मानवीय सहायता प्रदान करेगा।
- जलवायु संकट पाकिस्तान में विनाशकारी पैमाने पर बाढ़ का प्रमुख कारण है, जिसमें 1,000 से अधिक लोग मारे गए हैं और 30 मिलियन प्रभावित हुए हैं।
पाकिस्तान को भारतीय सहायता:
- वर्ष 2014 के बाद यह पहली बार होगा जब भारत प्राकृतिक आपदा के कारण पाकिस्तान को सहायता प्रदान करेगा।
- पूर्व में भारत ने वर्ष 2010 में आई बाढ़ और वर्ष 2005 में आए भूकंप के दौरान पाकिस्तान को सहायता प्रदान की थी।
भारत और पाकिस्तान के मध्य द्विपक्षीय व्यापार:
- पाकिस्तान ने भारत के साथ सभी व्यापार को निलंबित करने के दो वर्ष पुराने निर्णय को आंशिक रूप से पलटते हुए वर्ष 2021 में भारत से कपास और चीनी के आयात की अनुमति दी।
- भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 में संशोधन एवं जम्मू और कश्मीर को पुनर्गठित करने के कुछ दिनों बाद, अगस्त 2019 में पाकिस्तान सरकार द्वारा व्यापार गतिविधियों को रद्द करने का निर्णय लिया था
- वर्षों से भारत का पाकिस्तान के साथ व्यापार अधिशेष रहा है, निर्यात की तुलना में बहुत कम आयात रहा है।
- उरी आतंकी हमले और वर्ष 2016 में पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर (PoK) में भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के पश्चात संबंध बिगड़ने के बाद वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2016-17 में पाकिस्तान को भारत का निर्यात लगभग 16% गिरकर82 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था।
- निरंतर तनाव के बावजूद, बाद के वर्षों में दोनों देशों के मध्य व्यापार में मामूली वृद्धि हुई।
पाकिस्तान में भयंकर बाढ़ का कारण:
- अत्यधिक आर्द्र मानसून::
- वर्तमान बाढ़ इस वर्ष अत्यधिक आर्द्र मानसून के मौसम का प्रत्यक्ष परिणाम है।
- वही दक्षिण-पश्चिम मानसून जो भारत की वार्षिक वर्षा का बड़ा हिस्सा लाता है, पाकिस्तान में भी वर्षा का कारण बनता है।
- हालाँकि, पाकिस्तान में मानसून का मौसम भारत की तुलना में थोड़ा कम अवधि का है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्षा वाली मानसूनी हवाएंँ भारत को पार करके से उत्तर की ओर पाकिस्तान में जाने में समय लेती हैं।
- बलूचिस्तान और सिंध जैसे क्षेत्रों में औसत वर्षा में 400% की वृद्धि हुई है, जिसके कारण अत्यधिक बाढ़ आई है।
- अत्यधिक तापमान:
- मई 2022 में पाकिस्तान में तापमान लगातार 45C० (113F०) से ऊपर रहा।
- गर्म हवा में प्रति डिग्री सेल्सियस (4% प्रति डिग्री फारेनहाइट) लगभग 7% अधिक नमी होती है।
- अतिरिक्त वर्षा से नदियों में बाढ़ आने के साथ, पाकिस्तान अचानक बाढ़/फ्लैश फ्लड के एक और स्रोत से प्रभावित है।
- अत्यधिक गर्मी या चरम तापमान ग्लेशियर की पिघलने की प्रक्रिया को दीर्घकालिक रूप से तेज़ करती है, जिसके कारण हिमालय से पाकिस्तान तक जल प्रवाह की गति अत्यधिक हो जाती है और खतरनाक घटना का रूप धारण कर लेती है, जिसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड/अचानक बाढ़/फ्लैश फ्लड कहा जाता है।
- अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO):
- अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) अपने ला नीना चरण में प्रतीत होता है।
- "ला नीना कुछ क्षेत्रो में बहुत दृढ़ता से व्यवहार कर रहा है और मानसूनी वर्षा को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण कारक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. उच्च तीव्रता वाली वर्षा के कारण शहरी बाढ़ की आवृत्ति वर्षों से बढ़ रही है। शहरी बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए, ऐसी घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारी के लिये तंत्र पर प्रकाश डालिये। (मुख्य परीक्षा, 2016) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सिविल सेवक एवं सोशल मीडिया
मेन्स के लिये:सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग से संबंधित पक्ष और विपक्ष। |
चर्चा में क्यों?
सिविल सेवकों (सेवानिवृत्त एवं सेवारत) के सोशल मीडिया एकाउंट्स पर कुछ प्रकार के प्रतिबंधों की वकालत की गई है, क्योंकि ये उनके कार्य में बाधा डाल सकते हैं।
सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग से संबंधित पक्ष और विपक्ष:
- पक्ष:
- आम लोगों तक आसान पहुँच:
- सोशल मीडिया के माध्यम से सिविल सेवक तक आम लोगों की पहुँच आसान हो गई है और सार्वजनिक सेवा वितरण के मुद्दों को सोशल मीडिया के उपयोग के माध्यम से हल किया जा रहा है।
- सकारात्मक दृष्टिकोण का निर्माण:
- सोशल मीडिया ने लंबे समय से अपारदर्शी और दुर्गम मानी जाने वाली संस्था के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का निर्माण किया है।
- जागरूकता में वृद्धि:
- सोशल मीडिया के माध्यम से सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी है।
- सार्वजनिक सूचना का तीव्र प्रसार:
- यह नौकरशाहों को राजनीतिक रूप से तटस्थ रहते हुए सार्वजनिक सूचना को पहुँचाने और जनता के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
- सोशल मीडिया का उपयोग उस स्थिति में सिविल सेवकों के मध्य के अंध आज्ञाकारिता को कम करने में मदद करता है जब राजनेता नौकरशाहों से अपनी सुविधा/निजी हित के अनुसार सलाह प्राप्त करना चाहते हैं।
- आम लोगों तक आसान पहुँच:
- विपक्ष:
- अनामिकता:
- अनामिकता भारत सहित वेस्टमिंस्टर नौकरशाही का प्रमुख आधार रही है।
- लोक सेवा में अनामिकता वह परंपरा है जिसमें मंत्री और संसद जनता को सरकारी कार्यों के लिये उन लोक सेवकों का नाम लिये बगैर जवाब देते हैं जिन्होंने उस कार्य संबंधित सलाह दी थी या प्रशासनिक कार्रवाई की थी।
- एक ऐसी दुनिया में जहाँ सार्वजनिक शासन वाली दुनिया में गोपनीयता बनाए रखना है शासन के आदर्शों के प्रति प्रतिकूलता हैै।
- अनामिकता भारत सहित वेस्टमिंस्टर नौकरशाही का प्रमुख आधार रही है।
- मूल्यों का प्रभुत्व:
- इसके अलावा, सार्वजनिक नीति निर्माण में तथ्यों की तुलना में मूल्य अधिक प्रभावी होते जा रहे हैं।
- सार्वजनिक नीति के दायरे में फेक न्यूज़ और व्यवस्थित प्रचार के कारण मूल्यों और तथ्यों दोनों को नया रूप दिया जा रहा है।
- नतीजतन नौकरशाही, जिसे तथ्यों के संग्रह और सार्वजनिक मूल्यों के प्रतीक के रूप में काम करने की उम्मीद है, से निजी तौर पर शासन करने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिये।
- सोशल मीडिया का संस्थानीकरण:
- कई वेस्टमिंस्टर सिस्टम (केंद्रीय नगर /आधिकारिक तौर पर शहर) आधारित देशों में सोशल मीडिया का उपयोग धीरे-धीरे संस्थागत हो रहा है।
- में ब्रेक्सिट के दौरान कई सिविल सेवकों ने राजनीतिक रूप से तटस्थ रहते हुए भी सोशल मीडिया के उपयोग के माध्यम से सार्वजनिक बहस को आकार दिया।
- भारत में सिविल सेवकों ने डिजिटल नौकरशाही के इस पहलू पर विचार नहीं किया है।
- सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के माध्यम से गुमनामी और अपारदर्शिता को पहले ही कम कर दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद वे प्रमुख विशेषताएँ बनी हुई हैं।
- पहुँच और जवाबदेही:
- भारत में नौकरशाही में सोशल मीडिया की भूमिका ने अलग दिशा ले ली है।
- सिविल सेवकों द्वारा आत्म-प्रचार के लिये सोशल मीडिया का उपयोग किया जा रहा है।
- अपने चुनिंदा पोस्ट और अपने सोशल मीडिया प्रशंसकों द्वारा इन पोस्टों के प्रचार के माध्यम से सिविल सेवक अपने प्रदर्शन का आख्यान करते हैं, जो पहुँच और जवाबदेही के नाम पर उचित है।
- जन चेतना में यह गलत धारणा बन गई है कि सोशल मीडिया सिविल सेवकों तक पहुँचने और उन्हें जवाबदेह बनाने का एक तरीका है।
- अनामिकता:
आगे की राह
- सार्वजनिक नीति में सुधार:
- नौकरशाहों को सार्वजनिक नीतियों में सुधार के लिये सोशल मीडिया का उपयोग करना चाहिये। यदि वे सोशल मीडिया का उचित उपयोग नहीं करते हैं, तो स्वतंत्र सलाहकार के रूप में उनकी भूमिका खतरे में पड़ जाती है।
- सोशल मीडिया ने पहुँच और जवाबदेही में सुधार किया है, लेकिन यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि सिविल सेवकों को अपनी इच्छित जानकारी साझा करने एवं जो वे चाहते हैं उन्हें प्रतिक्रिया देने के लिये लाभदायक है।
- यह कोई औपचारिक व्यवस्था नहीं है जहाँ पहुँच और जवाबदेही उपचार की एकरूपता पर आधारित हो।
- सोशल मीडिया की जवाबदेही संस्थागत और नागरिक केंद्रित जवाबदेही का कोई विकल्प नहीं है।
- वास्तव में कार्यालय समय के दौरान सोशल मीडिया का उपयोग करना और इसे उचित ठहराना आंशिक रूप से अनैतिक है जब लंबी दूरी से आने वाले कुछ लोग कार्यालय के बाहर इंतजार कर रहे हैं।
- तथ्यों को सामने लाने के लिये सोशल मीडिया का उपयोग:
- अब समय आ गया है कि न केवल सोशल मीडिया का इस्तेमाल तथ्यों को सामने लाने के लिए किया जाना चाहिये बल्कि उपलब्धियों का प्रदर्शन भी किया जाना चाहिये।
- यह नकारात्मकता का मुकाबला करने के लिये व्यापक संदर्भ का एक हिस्सा है जो कि व्यापक होती जा रही है।
- #Nexusofgood सिविल सेवकों और समग्र रूप से समाज में उनके द्वारा किये जा रहे अच्छे काम को समझने, उसकी सराहना करने और उसके मूल्यांकन का एक क्षण है।
- विचार नकारात्मकता के लिये एक वैकल्पिक कथा विकसित करना है जो सोशल मीडिया और संचार के अन्य माध्यमों में व्यापक हो रही है। इस तरह की नकारात्मकता बड़ी संख्या में लोगों के विचारों और कार्यों को प्रभावित कर रही है।
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
ODOP का ONDC के साथ एकीकरण
प्रिलिम्स के लिये:एक ज़िला एक उत्पाद, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित पहल, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना का औपचारिकरण, आत्मनिर्भर अभियान, स्वयं सहायता समूह। मेन्स के लिये:एक ज़िला एक उत्पाद पहल का महत्त्व, कृषि विपणन में सुधार के तरीके। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्री ने ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) के साथ एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) पहल के एकीकरण का आह्वान किया।
- ONDC खरीददार और विक्रेताओं को एक निष्पक्ष व तटस्थ मंच पर एक साथ लाकर ODOP की सीमाओं को और विस्तारित करने में मदद करेगा।
- यह देश के सुदूर क्षेत्रों में समृद्धि लाने में सहायता करेगा।
एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) दृष्टिकोण:
- परिचय:
- ODOP, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम (PMFME) योजना के औपचारिकरण के अंतर्गत अपनाया गया एक दृष्टिकोण है।
- यह PMFME योजना के समर्थन बुनियादी ढाँचे की मूल्य शृंखला विकास और संरेखण के लिये रूप-रेखा प्रदान करेगा। एक ज़िले में ODOP उत्पादों के एक से अधिक समूह हो सकते हैं।
- एक राज्य में एक से अधिक निकटवर्ती ज़िलों को मिलाकर ODOP उत्पादों का एक समूह बनाया जा सकता है।
- राज्य मौजूदा समूहों और कच्चे माल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए ज़िलों के लिये खाद्य उत्पादों की पहचान करेंगे।
- ODOP खराब होने वाली उपज आधारित या अनाज आधारित या एक क्षेत्र में व्यापक रूप से उत्पादित खाद्य पदार्थ जैसे, आम, आलू, अचार, बाजरा आधारित उत्पाद, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, आदि हो सकता है।
- इस योजना के तहत अपशिष्ट से धन उत्पादों सहित कुछ अन्य पारंपरिक और नवीन उत्पादों को सहायता प्रदान की जा सकती है।
- उदाहरण के लिये आदिवासी क्षेत्रों में शहद, लघु वन उत्पाद, पारंपरिक भारतीय हर्बल खाद्य पदार्थ जैसे हल्दी, आँवला, आदि।
- महत्त्व:
- क्लस्टर दृष्टिकोण अपनाने से तुलनात्मक लाभ वाले ज़िलों में विशिष्ट कृषि उत्पादों के विकास में मदद मिलेगी।
- इससे सामान्य सुविधाएँ और अन्य सहायता सेवाएँ प्रदान करने में आसानी होगी।
PMFME योजना
- परिचय
- इसे आत्मनिर्भर अभियान (वर्ष 2020) के तहत शुरू किया गया है, इसका उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के असंगठित क्षेत्र में मौजूदा व्यक्तिगत सूक्ष्म उद्यमों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना और क्षेत्र की औपचारिकता को बढ़ावा देना तथा किसान उत्पादक संगठनों, स्वयं सहायता समूहों एवं उत्पादक सहकारी समितियों को सहायता प्रदान करना है।
- यह योजना आगत खरीद, सामान्य सेवाओं और उत्पादों के विपणन के संबंध में पैमाने का लाभ उठाने के लिये एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) दृष्टिकोण अपनाती है।
- इसे पाँच वर्ष (2020-21 से 2024-25) की अवधि के लिये लागू किया जाएगा।
- वित्तपोषण:
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसमें 10,000 करोड़ रुपए का परिव्यय शामिल है।
- इस योजना के तहत परिव्यय को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में साझा किया जाएगा। उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों के साथ 90:10 के अनुपात में, विधायिका वाले केंद्रशासित प्रदेशों के साथ 60:40 के अनुपात और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिये केंद्र द्वारा शतप्रतिशत व्यय किया जाएगा।
आगे की राह
- ODOP को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों, कार्यक्रमों, बैठकों और सम्मेलनों का एक हिस्सा बनाना चाहिये।
- जीआई टैगिंग प्रक्रिया को सरल, सुव्यवस्थित और तेज़ी से ट्रैक करने की आवश्यकता है।
- स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया, निर्यात हब के रूप में ज़िला आदि जैसे सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों को ODOP के विजन के साथ जोड़ा जाए।
- निफ्ट, एनआईडी और आईआईएफटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के छात्रों से ODOP को आगे बढ़ाने के लिये रचनात्मक तरीके खोजना चाहिये।
- ODOP उत्पादों को ब्रांड करने की आवश्यकता है, जिनमें से अधिकांश प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल हों।
- जीआई टैगिंग प्रक्रिया को सरल, सुसंगत और तेज करते हुए जीआई टैग उत्पादों की सूची का विस्तार करने की भी आवश्यकता है।