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डेली न्यूज़

  • 30 Jun, 2022
  • 69 min read
आंतरिक सुरक्षा

मासिक भत्तों के वितरण हेतु ‘पे रोल ऑटोमेशन’ (PADMA)

प्रिलिम्स के लिये:

PADMA, भारतीय तटरक्षक बल, केंद्रीकृत वेतन प्रणाली, डिजिटल भारत, आत्मनिर्भर भारत, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ), RTGS, NEFT

मेन्स के लिये:

विभिन्न सुरक्षा बल और एजेंसियाँ तथा उनके अधिदेश, केंद्रीकृत और विकेंद्रीकृत भुगतान प्रणाली, भारतीय तटरक्षक बल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने ‘मासिक भत्तों के वितरण के लिये पे रोल ऑटोमेशन’ (PADMA) का उद्घाटन किया, जो भारतीय तटरक्षक बल के लिये एक स्वचालित वेतन और भत्ता मॉड्यूल है।

PADMA के संबंध में मुख्य बिंदु:

  • परिचय:
    • PADMA नवीनतम तकनीक का लाभ उठाने वाला एक स्वचालित मंच है जो लगभग 15,000 भारतीय तटरक्षक कर्मियों को वेतन और भत्तों का निर्बाध एवं समय पर वितरण सुनिश्चित करेगा।
    • यह मॉड्यूल रक्षा लेखा विभाग के तत्त्वावधान में विकसित किया गया है और वेतन लेखा कार्यालय तटरक्षक, नोएडा द्वारा संचालित किया जाएगा।
  • महत्त्व:
    • इस पहल ने उस केंद्रीकृत वेतन प्रणाली की शुरुआत को चिह्नित किया है, जिसकी नींव रक्षा लेखा विभाग मुख्यालय द्वारा मंत्रालय के तहत सभी संगठनों के लिये ‘वन स्टॉप पे अकाउंटिंग’ समाधान प्रदान करने के लिये रखी जा रही है।
    • PADMA के लॉन्च से डिजिटल इंडिया विज़न की अवधारणा को मज़बूती मिलेगी। साथ ही यह एक 'आत्मनिर्भर भारत' पहल है क्योंकि पूरे मॉड्यूल को डोमेन विशेषज्ञों द्वारा सहायता प्राप्त भारतीय उद्यमियों ने डिज़ाइन और विकसित किया है।

केंद्रीकृत और विकेंद्रीकृत भुगतान प्रणाली

  • भारत में केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) प्रणाली और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (NEFT) प्रणाली किसी भी अन्य प्रणाली के रूप में शामिल होंगे जिस पर समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्णय लिया जा सकता है।
  • RTGS: यह लाभार्थियों के खाते में वास्तविक समय पर धनराशि के हस्तांतरण की सुविधा को सक्षम बनाता है और इसका प्रयोग मुख्य तौर पर बड़े लेन-देनों के लिये किया जाता है।
    • यहाँ ‘रियल टाइम’ अथवा वास्तविक समय का अभिप्राय निर्देश प्राप्त करने के साथ ही उनके प्रसंस्करण (Processing) से है, जबकि ‘ग्रॉस सेटलमेंट’ या सकल निपटान का तात्पर्य है कि धन हस्तांतरण निर्देशों का निपटान व्यक्तिगत रूप से किया जाता है।
  • NEFT: यह एक देशव्यापी भुगतान प्रणाली है, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से धन के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है।
    • इसका उपयोग आमतौर पर 2 लाख रुपए तक के फंड ट्रांसफर के लिये किया जाता है।
  • विकेंद्रीकरण भुगतान प्रणाली में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समाशोधन व्यवस्था [चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS)] के साथ-साथ अन्य बैंक [एक्सप्रेस चेक क्लियरिंग सिस्टम (ECCS) केंद्रों की जाँच] और किसी अन्य प्रणाली के रूप शामिल होंगे जिसमें समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
    • चेक ट्रंकेशन: यह भुगतानकर्त्ता बैंक द्वारा भुगतानकर्त्ता बैंक शाखा के रास्ते में किसी बिंदु पर ड्रॉअर द्वारा जारी किये गए भौतिक चेक के प्रवाह को रोकने की प्रक्रिया है।

भारतीय तटरक्षक बल:

  • परिचय:
    • यह भारत की एक समुद्री कानून प्रवर्तन और खोज एवं बचाव एजेंसी है, जिसका क्षेत्राधिकार इसके निकटवर्ती क्षेत्र एवं अनन्य आर्थिक क्षेत्र सहित अपने क्षेत्रीय जल पर है।
      • सन्निहित क्षेत्र: यह जल का एक बैंड है जो क्षेत्रीय समुद्र के बाहरी किनारे बेसलाइन से 24 समुद्री मील तक फैला होता है।
      • विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ): यह किसी देश में एक ऐसा क्षेत्र होता है जो एक ही देश के भीतर अन्य क्षेत्रों की तुलना में विभिन्न आर्थिक नियमों के अधीन होता है।
    • यह रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
    • ICG के गठन की अवधारणा 1971 के युद्ध के बाद अस्तित्व में आई।
    • दूरदर्शी रुस्तमजी समिति द्वारा बहुआयामी तटरक्षक बल के लिये खाका तैयार किया गया था।
  • कार्य:
    • तस्करी को रोकना: ICG के प्राथमिक कर्तव्यों में से एक समुद्री मार्गों से तस्करी को रोकना है।
    • नागरिकों को सहायता: इसने अपने विभिन्न कार्यों के दौरान अब तक लगभग 13,000 नागरिकों को बचाया है। बाढ़, चक्रवात एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी नागरिकों को सहायता प्रदान की।
    • समुद्री सुरक्षा: यह अंतर्राष्ट्रीय समुद्री अपराधों का मुकाबला करने और अपने अधिकार वाले क्षेत्र के साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने हेतु तटवर्ती देशों के साथ भी सहयोग करता है।
    • सागर पहल (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) तथा नेबरहुड फर्स्ट’ (Neighbourhood First) की नीति के तहत ICG ने महासागरों में व्यावसायिक संबंधों का विकास किया है और महासागर शांति स्थापना के लिये हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ संबंध स्थापित किये हैं।
    • आपदा प्रबंधन में भूमिका: ICG ने बड़ी पारिस्थितिक आपदाओं के दौरान सफलतापूर्वक सुरक्षा प्रदान की है और इस क्षेत्र में 'प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता' (First Responder) के रूप में उभरा है।
      • उदाहरण के लिये आईसीजी ने हाल ही में श्रीलंका तट पर सागर आरक्षा-II के रासायनिक वाहक एमवी एक्सप्रेस पर्ल जहाज़ पर आग बुझाकर गंभीर पारिस्थितिक आपदा को सफलतापूर्वक टाल दिया।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हॉर्न ऑफ अफ्रीका में चीन की उपस्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

हॉर्न ऑफ अफ्रीका, मिडिल ईस्ट, रेड सी, ईस्ट अफ्रीका कम्युनिटी।

मेन्स के लिये:

भारत के लिये हॉर्न ऑफ अफ्रीका का महत्त्व, हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र में चीन की उपस्थिति।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पहले "चीन-हॉर्न ऑफ अफ्रीका शांति, शासन और विकास सम्मेलन" (China-Horn of Africa Peace, Governance and Development Conference) का आयोजन किया गया।

  • यह पहली बार है जब चीन का लक्ष्य "सुरक्षा के क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाना" है।
  • इथियोपिया में आयोजित सम्मेलन में हॉर्न के निम्नलिखित देशों- केन्या, जिबूती, इथियोपिया, सूडान, सोमालिया, दक्षिण सूडान और युगांडा के विदेश मंत्रालयों की भागीदारी देखी गई।

प्रमुख बिंदु

हॉर्न ऑफ अफ्रीका:

  • हॉर्न ऑफ अफ्रीका पूर्वोत्तर अफ्रीका में एक प्रायद्वीप है।
  • अफ्रीकी मुख्य भूमि के पूर्वी भाग में स्थित यह विश्व का चौथा सबसे बड़ा प्रायद्वीप है।
  • यह लाल सागर की दक्षिणी सीमा के साथ स्थित है तथा गार्डाफुई चैनल, अदन की खाड़ी और हिंद महासागर में सैकड़ों किलोमीटर तक फैला हुआ है।
  • अफ्रीका का हॉर्न क्षेत्र भूमध्य रेखा और कर्क रेखा से समान दूरी पर है।
  • हॉर्न में इथियोपियाई पठार, ओगाडेन रेगिस्तान, इरिट्रिया और सोमालियाई तटों के ऊंँचे इलाकों के जैवविविधता वाले क्षेत्र शामिल हैं।
  • अफ्रीका का हॉर्न क्षेत्र जिबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया और सोमालिया के देशों वाले क्षेत्र को दर्शाता है।
  • इस क्षेत्र ने साम्राज्यवाद, नव-उपनिवेशवाद, शीत युद्ध, जातीय संघर्ष, अंतर-अफ्रीकी संघर्ष, गरीबी, बीमारी, अकाल आदि का अनुभव किया है।

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चीन की हालिया परियोजनाएंँ:

  • जनवरी 2022 में चीन ने अफ्रीका में अपने तीन उद्देश्यों पर ज़ोर दिया जिनमें शामिल हैं- महामारी को नियंत्रित करना, चीन-अफ्रीका सहयोग मंच (FOCAC) के परिणामों को लागू करना और आधिपत्य की राजनीति से लड़ते हुए सामान्य हितों को बनाए रखना।
  • वर्ष 2021 फोरम में हॉर्न के पूरे क्षेत्र ने भाग लिया, जिसमें चार प्रस्तावों को अपनाया गया:
    • डकार एक्शन प्लान:
      • दोनों पक्ष चीन और अफ्रीका के बीच संबंधों के विकास की सराहना करते हुए मानते हैं कि फोरम ने अपनी स्थापना के बाद से पिछले 21 वर्षों में चीन एवं अफ्रीका के बीच संबंधों के विकास को दृढ़ता से बढ़ावा दिया है तथा अफ्रीका के साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये एक महत्त्वपूर्ण मानक को स्थापित किया है।
    • चीन-अफ्रीका कोऑपरेशन विज़न 2035:
      • यह मध्य और दीर्घकालिक सहयोग के निर्देशों एवं उद्देश्यों को निर्धारित करने तथा चीन व अफ्रीका के साझा भविष्य के साथ करीबी संबंध को बढ़ावा देने के लिये तैयार किया गया था।
    • जलवायु परिवर्तन पर चीन-अफ्रीकी घोषणा:
      • इसका उद्देश्य जलवायु पर बहुपक्षीय प्रक्रिया में समन्वय और सहयोग बढ़ाना है, साथ ही संयुक्त रूप से चीन, अफ्रीका तथा अन्य विकासशील देशों के वैध अधिकारों व हितों की रक्षा करना है।
    • FOCAC के आठवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की घोषणा:
      • थीम के तहत "चीन-अफ्रीका साझेदारी को मज़बूत करना और नए युग में एक साझा भविष्य के साथ चीन-अफ्रीका समुदाय के निर्माण के लिये सतत् विकास को बढ़ावा देंना," साथ ही FOCAC के विकास एवं चीन-अफ्रीका व्यापक रणनीतिक व सहकारी साझेदारी को सुदृढ़ करने के लिये प्रतिबद्धता है। दोनों ने FOCAC के आठवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की डकार घोषणा को सर्वसम्मति से अपनाया।
      • FOCAC हॉर्न के ढांँचागत और सामाजिक विकास में चीन की भूमिका को बढ़ावा देता है।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान चीन ने इथियोपिया और युगांडा को 3,00,000 से अधिक टीके तथा केन्या एवं सोमालिया को 2,00,000 टीके दान किये। चीन की वैक्सीन डिप्लोमेसी से सूडान व इरिट्रिया को भी फायदा हुआ है।

इस क्षेत्र में चीन के प्राथमिक हित:

  • अवसंरचना:
    • अदीस अबाबा में चीन की एक ऐतिहासिक परियोजना द्वारा 200 मिलियन अमरीकी डालर की मदद से अफ्रीकी संघ मुख्यालय को पूर्ण रूप से वित्तपोषित किया गया।
    • चीन ने केन्या में मोम्बासा-नैरोबी रेल लिंक में भी निवेश किया है, इसके अलावा पहले ही सूडान में रेलवे परियोजनाओं पर काम कर चुका है।
    • इथियोपिया में इसका एक व्यवहार्य सैन्य हार्डवेयर बाज़ार भी है और इसने सोमालिया में अस्पतालों, सड़कों, स्कूलों एवं स्टेडियमों सहित 80 से अधिक ढांँचागत परियोजनाओं का निर्माण किया है।
    • जिबूती में 14 बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं को चीन द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा है।
  • वित्तीय सहायता:
    • इथियोपिया, चीनी निवेश के शीर्ष पांँच अफ्रीकी प्राप्तकर्त्ताओं में से एक है और उस पर लगभग 14 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का कर्ज भी है।
    • केन्या के द्विपक्षीय कर्ज में चीन की हिस्सेदारी 67 फीसदी है।
    • 2022 में चीन ने इरिट्रिया को 15.7 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की सहायता प्रदान करने का वादा किया।
  • प्राकृतिक संसाधन (तेल और कोयला):
    • चीन इथियोपिया में सोना, लौह-अयस्क, कीमती पत्थर, रसायन, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे खनिजों में भी रुचि रखता है।
    • दक्षिण सूडान के पेट्रोलियम उद्योग में 1995 में प्रवेश के बाद से बीजिंग (चीन) ने निवेश जारी रखा है।
  • समुद्री हित:
    • अपनी मुख्य भूमि के बाहर चीन का पहला और एकमात्र सैन्य अड्डा जिबूती में है।
    • वर्ष 2022 में चीन ने इरिट्रिया के तट को विकसित करने की अपनी इच्छा का संकेत दिया, जिससे भू-आबद्ध इथियोपिया चीन के निवेश से जुड़ जाएगा।
    • अमेरिका का अनुमान है कि केन्या और तंजानिया में चीन एक और सैन्य अड्डा बनाना चाहता है, जिससे इस क्षेत्र में उसकी सैन्य उपस्थिति बढ़ जाएगी।

क्या चीन अपने अहस्तक्षेप के सिद्धांत से हट गया है?

  • अफ्रीका के लिये चीनी निवेश से स्थिर वातावरण बन सकता है जो देशों को उनके शांति और विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा। चीन को इस क्षेत्र में संघर्ष की स्थिति की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
  • इथियोपिया में जब संघर्ष छिड़ा, तो विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रहे 600 से अधिक चीनी नागरिकों को वापस बुला लिया गया, जिससे कई निवेश जोखिम में पड़ गए।
  • व्यापारिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र चीन-अफ्रीका सहयोग विज़न 2035 के उद्देश्यों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • अफ्रीका में शांति की दिशा में चीन का कदम उसके अहस्तक्षेप के सिद्धांत में बदलाव का संकेत देता है।
  • चीन ने इस बात का संकेत दिया है कि महाद्वीप में उसकी उपस्थिति का एक बड़ा उद्देश्य है और इसके हॉर्न ऑफ अफ्रीक तक ही सीमित होने की संभावना नहीं है।
  • इसमें खुद को एक वैश्विक नेता के रूप में पेश करना और अपनी अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को बढ़ावा देना शामिल है।
  • इसके अलावा हाल के घटनाक्रमों का अर्थ है कि चीन लंबे समय से महाद्वीप में बहुआयामी विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
  • अफ्रीका में चीन की उपस्थिति यूरोपीय शक्तियों का एक विकल्प है, जिनमें से कई को अफ्रीकी सरकारों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
  • इसके अलावा वे अफ्रीकी सरकारें, जो लोकतंत्र के पश्चिमी मानकों के अनुरूप नहीं हैं, चीन और रूस जैसी शक्तियों के साथ बेहतर समन्वय रखती हैं।

भारत के लिये हॉर्न ऑफ अफ्रीका का महत्त्व:

  • अफ्रीका में बढ़ती दिलचस्पी:
    • अफ्रीका में राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा कारणों से भारत की दिलचस्पी बढ़ रही है, विशेष रूप से उपक्षेत्र- हॉर्न ऑफ अफ्रीका।
  • तेल उत्पादक क्षेत्र से निकटता:
    • हॉर्न ऑफ अफ्रीका रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक क्षेत्र के निकट है।
    • मध्य-पूर्व में उत्पादित तेल का लगभग 40% लाल सागर की शिपिंग लेन से होकर गुज़रता है।
  • शिपिंग रूट:
    • जिबूती इस शिपिंग रूट का मुख्य बिंदु है। यही कारण है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांँस और चीन जैसे देशों का जिबूती में सैन्य अड्डा है।
    • भारत के आर्थिक विकास के लिये संचार की नई समुद्री लाइनों पर निर्भरता के साथ दिल्ली ने घोषणा किया कि उसके राष्ट्रीय हित अब उपमहाद्वीप तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि "अदन से मलक्का तक" विस्तृत हैं।

चीन की मौजूदगी पर भारत की चिंता:

  • हिंद महासागर में प्रभुत्त्व:
    • हिंद महासागर के उत्तर-पश्चिमी किनारे पर स्थित जिबूती चीन के "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" में से एक बन सकता है एवं बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका सहित भारत के सैन्य गठजोड़ व संपत्ति के लिये एक खतरा बन सकता है।
    • चीन ने हिंद महासागर में गतिविधियाँ तेज़ कर दी हैं, जिसे हाल के दिनों में समुद्री डकैती रोधी गश्त और नेविगेशन की स्वतंत्रता का हवाला देते हुए भारत अपने प्रभाव क्षेत्र में मानता है। इसने भारतीय नौसेना को सामरिक जल की निगरानी कड़ी करने के लिये मजबूर किया है।
  • चीन की महत्त्वपूर्ण नौवहन मार्गों पर नियंत्रण करने की इच्छा:
    • हिंद महासागर शिपिंग लेन दुनिया के 80% तेल और वैश्विक थोक कार्गो का एक-तिहाई है। चीन महत्त्वपूर्ण शिपिंग मार्ग के साथ अपनी ऊर्जा एवं व्यापार परिवहन लिंक को सुरक्षित करना चाहता है।
  • हिंद महासागर के देशों को प्रभावित करना:
    • हिंद महासागर वैश्विक मामलों में बड़ी भूमिका निभाने वाले देशों के लिये एक प्रमुख स्थल के रूप में भी उभर रहा है। चीन बंदरगाहों, सड़कों और रेलवे जैसी परियोजनाओं में निवेश करके हिंद महासागर के देशों में सद्भावना व प्रभाव पैदा करना चाहता है।
    • चीन हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति का विस्तार करना चाहता है और श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान में बंदरगाहों तथा अन्य बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर रहा है।
  • OBOR के माध्यम से विस्तार:
    • एक नया रेशम मार्ग बनाने के लिये चीन की महत्त्वाकांक्षी वन बेल्ट, वन रोड (OBOR) पहल में हिंद महासागर का प्रमुख स्थान है।
    • भारत ने OBOR से स्वयं को दूर रखा है।

आगे की राह

  • इस क्षेत्र में जो कुछ भी होता है उसका भारत की सुरक्षा और कल्याण पर सीधा असर पड़ता है, इसलिये भारत को ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीक’' में मौजूदा परिस्थितियों एवं शक्ति की गतिशीलता पर अधिक ध्यान देना चाहिये।
  • भारत को इस जटिल समस्या को लेकर पूर्वी अफ्रीका, अफ्रीकी संघ तथा अन्य संबंधित सरकारों के साथ गंभीरता से चर्चा करनी चाहिये ताकि वह इसके समाधान में सार्थक योगदान दे सके।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

वस्तु और सेवा कर परिषद

प्रिलिम्स के लिये:

जीएसटी काउंसिल, वन नेशन वन टैक्स।

मेन्स के लिये:

जीएसटी से जुड़े महत्त्व और चुनौतियांँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में वस्तु और सेवा कर (GST) परिषद की 47वीं बैठक में अधिकारियों ने दर संरचना को सरल बनाने के लिये बड़े पैमाने पर कई उपभोग वस्तुओं की छूट को समाप्त करते हुए कुछ वस्तुओं और सेवाओं के लिये दरों में बढ़ोतरी को मंज़ूरी दी।

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GST परिषद:

  • पृष्ठभूमि:
    • 2016 में संसद के दोनों सदनों द्वारा संवैधानिक (122वांँ संशोधन) विधेयक पारित होने के बाद वस्तु और सेवा कर व्यवस्था लागू हुई।
    • इसके बाद 15 से अधिक भारतीय राज्यों ने अपने राज्य विधानसभाओं में इसकी पुष्टि की जिसके बाद राष्ट्रपति ने अपनी सहमति दी।
  • परिचय:
    • GST परिषद केंद्र और राज्यों का एक संयुक्त मंच है।
    • इसे राष्ट्रपति द्वारा संशोधित संविधान के अनुच्छेद 279A(1) के अनुसार स्थापित किया गया था।
  • सदस्य:
    • परिषद के सदस्यों में केंद्रीय वित्त मंत्री (अध्यक्ष), केंद्रीय राज्य मंत्री (वित्त) शामिल हैं।
    • प्रत्येक राज्य वित्त या कराधान के प्रभारी मंत्री या किसी अन्य मंत्री को सदस्य के रूप में नामित किया जा सकता है।
  • कार्य:
    • परिषद अनुच्छेद 279 के अनुसार, "GST से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्र और राज्यों को सिफारिशें करने के लिये है, जैसे- वस्तुओं और सेवाओं पर GST, मॉडल GST कानूनों के अधीन है या छूट दी जा सकती है"।
    • यह GST के विभिन्न दर स्लैब पर भी निर्णय लेता है।
      • उदाहरण के लिये मंत्रियों के एक पैनल की अंतरिम रिपोर्ट में कैसीनो, ऑनलाइन गेमिंग और घुड़दौड़ पर 28% कर लगाने का सुझाव दिया गया है।
  • हाल के घटनाक्रम:
    • मई 2022 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद यह पहली बैठक है, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि GST परिषद की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हैं।
    • न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 246A संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों को GST पर कानून बनाने की "एक साथ" शक्ति देता है तथा परिषद की सिफारिशें "संघ एवं राज्यों को शामिल करने वाली वार्ता का परिणाम हैं"।
      • केरल और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों ने इसका स्वागत किया, जो मानते हैं कि राज्य अपने अनुकूल सिफारिशों को स्वीकार करने में अधिक लचीले हो सकते हैं।

वस्तु एवं सेवा कर (GST):

  • परिचय:
    • GST को 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के माध्यम से पेश किया गया था।
    • यह देश के सबसे बड़े अप्रत्यक्ष कर सुधारों में से एक है।
      • इसे 'वन नेशन वन टैक्स' (One Nation One Tax) के नारे के साथ पेश किया गया था।
    • GST में उत्पाद शुल्क, मूल्यवर्द्धित कर (VAT), सेवा कर, विलासिता कर आदि जैसे अप्रत्यक्ष करों को सम्मिलित किया गया है।
    • जीएसटी कर के व्यापक प्रभाव या कर के भार को कम करता जो अंतिम उपभोक्ता पर भारित होता है।
  • GST के अंतर्गत कर संरचना:
    • उत्पाद शुल्क, सेवा कर आदि को कवर करने के लिये केंद्रीय जीएसटी।
    • VAT, लक्ज़री टैक्स आदि को कवर करने के लिये राज्य जीएसटी।
    • अंतर्राज्यीय व्यापार को कवर करने के लिये एकीकृत जीएसटी (IGST)।
      • IGST स्वयं एक कर नहीं है बल्कि राज्य और संघ के करों के समन्वय के लिये एक कर प्रणाली है।
    • इसमें स्लैब के तहत सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिये 4-स्तरीय कर संरचना 5%, 12%, 18% और 28% है।.
  • जीएसटी लागू करने के कारण:
    • दोहरे कराधान, करों के व्यापक प्रभाव, करों की बहुलता, वर्गीकरण आदि जैसे मुद्दों को कम करने के लिये और एक साझा राष्ट्रीय बाज़ार का निर्माण करना।
    • वस्तु या सेवाओं (यानी इनपुट पर) की खरीद के लिये एक व्यापारी जो जीएसटी का भुगतान करता है, उसे बाद में अंतिम वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर लागू करने के लिये तैयार या सेट किया जा सकता है।
      • सेट ऑफ टैक्स को इनपुट टैक्स क्रेडिट कहा जाता है।
    • इस प्रकार जीएसटी कर पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव को कम कर सकता है क्योंकि इससे अंतिम उपभोक्ता पर कर का बोझ बढ़ जाता है।

जीएसटी का महत्त्व:

  • एक साझा राष्ट्रीय बाज़ार का निर्माण: यह भारत के लिये एक एकीकृत साझा राष्ट्रीय बाज़ार बनाने में मदद करेगा। यह विदेशी निवेश और "मेक इन इंडिया" अभियान को भी बढ़ावा देगा।
  • कराधान को सुव्यवस्थित करना: केंद्र और राज्यों तथा केंद्रशासित राज्यों के बीच कानूनों, प्रक्रियाओं और कर की दरों में सामंजस्य स्थापित होगा।
  • कर अनुपालन में वृद्धि: अनुपालन के लिये बेहतर वातावरण बनेगा क्योंकि सभी रिटर्न ऑनलाइन दाखिल किये जाएंगे, इनपुट क्रेडिट को ऑनलाइन सत्यापित किया जाएगा, आपूर्ति शृंखला के प्रत्येक स्तर पर कागज़ रहित लेन-देन को प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • कर चोरी को हतोत्साहित करना: समान SGST और IGST दरें पड़ोसी राज्यों के बीच तथा अंतर-राज्यीय बिक्री के बीच दर मध्यस्थता को समाप्त करके चोरी के लिये प्रोत्साहन को कम करेंगी।
  • निश्चितता लाना: करदाताओं के पंजीकरण के लिये सामान्य प्रक्रियाएँ, करों की वापसी, कर रिटर्न के समान प्रारूप, सामान्य कर आधार, वस्तुओं और सेवाओं के वर्गीकरण की सामान्य प्रणाली कराधान प्रणाली को अधिक निश्चितता प्रदान करेगी।
  • भ्रष्टाचार में कमी: आईटी के अधिक उपयोग से करदाता और कर प्रशासन के बीच मानवीय संपर्क कम होगा, जो भ्रष्टाचार को कम करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।
  • माध्यमिक क्षेत्र को बढ़ावा देना: यह निर्यात और विनिर्माण गतिविधि को बढ़ावा देगा, अधिक रोज़गार पैदा करेगा और इस प्रकार लाभकारी रोज़गार के साथ सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि करेगा जिससे वास्तविक आर्थिक विकास होगा।

जीएसटी से जुड़े मुद्दे:

  • कई कर दरें: कई अन्य अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत, जिन्होंने इस कर व्यवस्था को लागू किया है, भारत में कई कर दरें हैं। यह देश में सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिये एकल अप्रत्यक्ष कर की दर की प्रगति को बाधित करता है।
  • नए उपकर: जहाँ जीएसटी ने करों और उपकरों की बहुलता को समाप्त कर दिया, वहीं विलासिता वाली वस्तुओं के लिये क्षतिपूर्ति उपकर के रूप में एक नई लेवी शुरू की गई। बाद में इसे ऑटोमोबाइल को शामिल करने के लिये विस्तारित किया गया।
  • विश्वास की कमी: केंद्र सरकार की राज्यों के साथ साझा किये बिना खुद के लिये उपकर और उचित उपकर लगाने की प्रवृत्ति ने राज्यों हेतु गारंटीकृत मुआवज़े को विश्वसनीयता प्रदान की है।
    • यह सही साबित हुआ क्योंकि जीएसटी अपने आर्थिक वादों को पूरा करने में विफल रहा और इस गारंटी के माध्यम से राज्यों के राजस्व की रक्षा की गई।
  • अर्थव्यवस्था जीएसटी के दायरे से बाहर: करीब आधी अर्थव्यवस्था जीएसटी से बाहर है। उदाहरण पेट्रोलियम, रियल एस्टेट, बिजली शुल्क जीएसटी के दायरे से बाहर हैं।
  • टैक्स फाइलिंग की जटिलता: जीएसटी कानून में जीएसटी ऑडिट के साथ-साथ करदाताओं की निर्दिष्ट श्रेणियों द्वारा जीएसटी वार्षिक रिटर्न दाखिल करने की आवश्यकता होती है लेकिन वार्षिक रिटर्न दाखिल करना करदाताओं के लिये एक जटिल और भ्रमित करने वाला काम है। इसके अलावा वार्षिक फाइलिंग में कई विवरण भी शामिल होते हैं जिन्हें मासिक व त्रैमासिक फाइलिंग में माफ कर दिया जाता है।
  • उच्च कर दरें: हालांँकि दरों को युक्तिसंगत बनाया गया है फिर भी 50% आइटम 18% ब्रैकेट (Bracket) के अंतर्गत हैं। इसके अलावा महामारी से निपटने के लिये कुछ आवश्यक वस्तुएंँ हैं जिन पर अधिक कर भी लगाया गया था। उदाहरण के लिये ऑक्सीजन सांद्रता पर 12% कर, टीकों पर 5% और विदेशों से राहत आपूर्ति पर कर।

आगे की राह

  • निर्णय लेने की परामर्शी और सहमतिपूर्ण प्रकृति जिसने अब तक परिषद के निर्णयों को निर्देशित करने में मदद की है, का पालन किया जाना चाहिये।
  • विवादास्पद मुद्दों को संबोधित करने के लिये सबसे पहले और सबसे महत्त्वपूर्ण केंद्र एवं राज्यों के बीच विश्वास की कमी को पाटने की आवश्यकता होगी। सहकारी संघवाद की भावना, जिसकी अक्सर सत्तारूढ़ सरकार द्वारा वकालत की जाती है, को बरकरार रखा जाना चाहिये।
  • विश्वास की कमी को केवल अच्छे विश्वासपरक कृत्यों के माध्यम से ही भरा जा सकता है। केंद्र सरकार को राज्यों के प्रति वचनबद्ध होना चाहिये कि वह उन उपकरों और अधिभारों का सहारा नहीं लेगी जो राजस्व के बँटवारे योग्य पूल से बाहर हैं। इसे राज्यों के प्रति राजस्व गारंटी प्रतिबद्धता का सम्मान करने का संकल्प लेना चाहिये। इसे न केवल राजकोषीय संघवाद बल्कि राजनीतिक और संवैधानिक संघवाद की सच्ची भावना का भी सम्मान व समर्थन करना चाहिये।
  • भारत में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों के पास प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कराधान दोनों को आरोपित करने हेतु समान अधिकार नहीं हैं। जीएसटी ने भारत के अप्रत्यक्ष कराधान को केंद्रीकृत किया। राज्यों को प्रत्यक्ष कराधान के लिये अधिकार देकर विकेंद्रीकरण की ओर बढ़ते हुए एक राष्ट्रीय चर्चा शुरू करने का समय आ गया है। केंद्र सरकार द्वारा इस तरह की चर्चा शुरू करने की प्रतिबद्धता राज्यों के विश्वास और वित्तीय स्वतंत्रता के लिये एक स्वस्थ संकेत होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

इंटरनेट शटडाउन का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR), #KEEPITON गठबंधन, विश्व बैंक।

मेन्स के लिये:

इंटरनेट शटडाउन और उसके निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) द्वारा इंटरनेट शटडाउन नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई: जिसमें इसके रुझान, कारण, कानूनी निहितार्थ और मानवाधिकारों पर प्रभाव, वर्णित हैं तथा कहा गया है कि इंटरनेट बंद करने से लोगों की सुरक्षा और कल्याण प्रभावित होता है, सूचना प्रवाह में बाधा आती है और अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंँचती है।

इंटरनेट शटडाउन:

  • परिचय:
    • इंटरनेट शटडाउन के उपाय का उपयोग आमतौर पर तब किया जाता है जब नागरिक अशांति की स्थिति होती है, ताकि सरकारी कार्रवाइयों के संबंध में सूचनाओं के प्रवाह को अवरुद्ध किया जा सके।
    • शटडाउन में अक्सर इंटरनेट कनेक्टिविटी या प्रभावित सेवाओं की पहुंँच को पूर्णतः प्रतिबंधित किया जाता है। हालांँकि सरकारें तेज़ी से बैंडविड्थ को कम करने या मोबाइल सेवा को 2G तक सीमित करने का सहारा लेती हैं, जो नाममात्र की पहुंँच बनाए रखते हुए इंटरनेट का सार्थक उपयोग करना बेहद मुश्किल बना देती है।
    • दुनिया भर की सरकारों ने कई कारणों का हवाला देते हुए इंटरनेट को बंद करने का सहारा लिया है
    • इसके अलावा वीडियो, लाइव प्रसारण और अन्य पत्रकारिता कार्यों को साझा करना तथा देखना मुश्किल हो जाता है, जिन्हें अक्सर नागरिक समाज आंदोलनों, सुरक्षा उपायों के साथ-साथ चुनावी कार्यवाही के दौरान आदेश दिया जाता है और मानवाधिकारों की निगरानी व रिपोर्टिंग को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करता है।
  • संबंधित अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे:
    • इंटरनेट शटडाउन कई मानवाधिकारों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, साथ ही यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा तथा लोकतांत्रिक समाजों की नींव में से एक व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिये अनिवार्य शर्त की जानकारी तक पहुँच को त्वरित रूप से प्रभावित करता है।
    • यह नागरिक और राजनीतिक अधिकारों और अन्य मानवाधिकार उपकरणों (अर्थात् मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा) पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध में गारंटीकृत अन्य सभी अधिकारों के लिये एक मानदंड है।
    • सतत् विकास लक्ष्य अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों से मुक्त, सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध और सुलभ इंटरनेट द्वारा कार्य करने के लिये राज्यों के मानवाधिकार दायित्वों को सुदृढ़ करते हैं।
    • संचार नेटवर्क में अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी की सुविधा के लिये स्थापित, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) मानकों को अपनाने पर कार्य करता है जो सुनिश्चित करता है कि नेटवर्क और प्रौद्योगिकियांँ आपस में जुड़ती हैं तथा इंटरनेट तक पहुंँच में सुधार करने का प्रयास करती हैं।

प्रमुख निष्कर्ष:

  • वैश्विक परिदृश्य:
    • दुनिया का ध्यान खींचने वाला पहला बड़ा इंटरनेट शटडाउन वर्ष 2011 में मिस्र में हुआ था और इसके साथ ही सैकड़ों गिरफ्तारियांँ और हत्याएंँ भी हुई थीं।
    • #कीपइटऑन गठबंधन (#KeepItOn coalition), जो दुनिया भर में इंटरनेट शटडाउन एपिसोड की निगरानी करता है, द्वारा वर्ष 2016-2021 तक 74 देशों में 931 शटडाउन का दस्तावेजीकरण किया गया।
    • उस अवधि के दौरान 12 देशों द्वारा 10 से अधिक शटडाउन लागू किये गए। वैश्विक स्तर पर सभी क्षेत्रों में कई शटडाउन का सामना किया गया है, लेकिन अधिकांश रिपोर्ट एशिया और अफ्रीका में हुई है।
    • नागरिक समाज समूहों द्वारा दर्ज किये गए शटडाउन में से 132 को आधिकारिक तौर पर अभद्र भाषा, दुष्प्रचार या अवैध या हानिकारक समझी जाने वाली सामग्री के अन्य रूपों के प्रसार को नियंत्रित करने की आवश्यकता द्वारा उचित ठहराया गया था।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • भारत ने इंटरनेट कनेक्शन को 106 बार अवरुद्ध या बाधित किया तथा भारत के कम-से-कम 85 इंटरनेट शटडाउन एपिसोड जम्मू और कश्मीर में हुए।
    • नागरिक समाज समूहों द्वारा वर्ष 2016-2021 तक दर्ज किये गए सभी शटडाउन में से लगभग आधे को विरोध और राजनीतिक संकटों के संदर्भ में किया गया था, जिसमें सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक शिकायतों की एक विशाल शृंखला से संबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनों के दौरान 225 शटडाउन दर्ज किये गए थे।
  • चुनाव के दौरान शटडाउन:
    • यह डिजिटल उपकरणों तक पहुँच को समाप्त करता है जो चुनाव प्रचार, सार्वजनिक चर्चा को बढ़ावा देने, मतदान करने और चुनावी प्रक्रियाओं की देख-रेख के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • अकेले वर्ष 2019 में 14 अफ्रीकी देशों ने चुनावी अवधि के दौरान इंटरनेट तक पहुँच को बाधित कर दिया।
    • ये व्यवधान निष्पक्ष पत्रकारों और मीडिया के काम को सामान्य रूप से बाधित करते हैं। युगांडा में शटडाउन ने हिंसक दमनकारी उपायों की रिपोर्टों के बीच वर्ष 2021 में चुनावों के मीडिया कवरेज को कमज़ोर कर दिया।
    • चुनावी अवधि के दौरान विरोध के बाद शटडाउन बेलारूस और नाइजर जैसे देशों में भी रिपोर्ट किये गए थे।
  • इंटरनेट शटडाउन का प्रभाव:
    • आर्थिक गतिविधियों पर: यह सभी क्षेत्रों के लिये बड़ी आर्थिक लागत का कारण बनता है, वित्तीय लेनदेन, वाणिज्य और उद्योग को बाधित करता है।
      • विश्व बैंक ने हाल ही में गणना की है कि अकेले म्यांमार में इंटरनेट शटडाउन की लागत फरवरी-दिसंबर 2021 से लगभग 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो पिछले दशक में हुई आर्थिक प्रगति को उलट देती है।
    • शिक्षा पर: यह सीखने के परिणामों को कमज़ोर करता है और शिक्षकों, स्कूल प्रशासकों, परिवारों के बीच शिक्षा योजना एवं संचार में हस्तक्षेप करता है।
    • स्वास्थ्य और मानवीय सहायता तक पहुँच पर:
      • अध्ययनों ने स्वास्थ्य प्रणालियों पर शटडाउन के महत्त्वपूर्ण प्रभावों को दिखाया है, जिसमें तत्काल चिकित्सा देखभाल जुटाना, आवश्यक दवाओं की डिलीवरी और उपकरणों के रखरखाव में बाधा डालना, चिकित्सा कर्मियों के बीच स्वास्थ्य सूचनाओं के आदान-प्रदान को सीमित करना और आवश्यक मानसिक स्वास्थ्य सहायता को बाधित करना शामिल है।
      • सहायता प्रदान करने के लिये मानवीय अभिकर्त्ताओं की क्षमता पर इंटरनेट शटडाउन का गहरा प्रभाव पड़ता है। आपूर्ति व वस्तुओं और सेवाओं के वितरण के लिये महत्त्वपूर्ण सूचना के प्रवाह को बाधित किया जा सकता है।
        • म्यांँमार में इंटरनेट शटडाउन ने कथित तौर पर स्थानीय सहायता संगठनों को संकट में डाल दिया, क्योंकि इसने उन्हें धन मांगने और प्राप्त करने से रोका था।

इंटरनेट शटडाउन हेतु भारत के सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश:

  • जैसा कि अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फैसला दिया गया कि इंटरनेट शटडाउन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन नहीं करता है। यह एक उचित प्रतिबंध के रूप में कार्य करता है और इसे केवल तभी अधिनियमित किया जाना चाहिये जब सार्वजनिक सुरक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये कोई वास्तविक खतरा हो। कुछ संतुलन परीक्षण किये जाने चाहिये तथा केवल अत्यधिक आवश्यक होने पर ही सरकार को इस अत्यंत प्रतिबंधात्मक कदम का प्रयोग करना चाहिये।

आगे की राह

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट शटडाउन की अधिक आवृत्ति की प्रवृत्ति को रोकने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक उपायों और उनके प्रभावों की सीमित दृश्यता है।
  • रिपोर्ट में राज्यों से शटडाउन से परहेज करने, इंटरनेट पहुँच को अधिकतम करने और संचार के रास्ते में कई बाधाओं को दूर करने का आग्रह किया गया है।
  • इसने कंपनियों से व्यवधानों पर सूचनाओं को तेज़ी से साझा करने और यह सुनिश्चित करने का भी आह्वान किया कि वे शटडाउन को रोकने के लिये सभी संभव कानूनी उपाय करें जिन्हें उन्हें लागू करने के लिये कहा गया है।
  • शटडाउन डिजिटल डिवाइड को कम करने के प्रयासों, त्वरित आर्थिक और सामाजिक विकास के वादे को कमज़ोर करते हैं, जिससे सतत् विकास लक्ष्यों की उपलब्धि को खतरा होगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

सड़क सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

सड़क सुरक्षा, शहरीकरण, एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम, सुभेद्य उपयोगकर्त्ता, रडार गन, ई चालान, सड़क सुरक्षा पर ब्रासीलिया घोषणा, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम।

मेन्स के लिये:

सड़क सुरक्षा, बुनियादी ढांँचा।

चर्चा में क्यों?

नवीनतम लैंसेटअध्ययन के अनुसार, वाहनों की तीव्र गति को रोकने हेतु उठाए गए कदम भारत में सालाना 20,000 लोगों की जान बचा सकते हैं।

  • चार प्रमुख जोखिम कारणों जैसे- तेज़ गति, नशे में गाड़ी चलाना, क्रैश हेलमेट और सीटबेल्ट का उपयोग न करना, पर पर ध्यान केंद्रित करने हर साल दुनिया भर में 13.5 लाख सडक दुर्घटनाओं में से 25% से 40% तक को रोक सकता है।

प्रमुख बिंदु

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की वर्ष 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण कुल 1,31,714 मौतें हुईं।
    • 69.3% मौतों के लिये स्पीडिंग ज़िम्मेदारहै।
    • हेलमेट न पहनने के कारण 30.1% मौतें हुईं।
    • सीटबेल्ट का प्रयोग न करने से 11.5% मौतें होती हैं।
  • 5-29 वर्ष आयु वर्ग में रोड ट्रैफिक इंजुरी (RTIs) सभी उम्र के लिये विश्व स्तर पर मौत का आठवांँ प्रमुख कारण है।
    • भारत में दुर्घटना से होने वाली सभी मौतों की लगभग 10% मौतें होती हैं, जबकि दुनिया के केवल 1% मौतों के लिये वाहन ज़िम्मेदार हैं।

road-accidents

भारत में सड़क सुरक्षा का महत्त्व:

  • परिचय:
    • यातायात हिस्सेदारी और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान के मामले में सड़क परिवहन भारत में परिवहन का प्रमुख साधन है।
    • सड़क परिवहन की मांग को पूरा करने के लिये पिछले कुछ वर्षों में वाहनों की संख्या और सड़क नेटवर्क की लंबाई में वृद्धि हुई है।
    • देश में सड़क नेटवर्क, मोटरीकरण और शहरीकरण के विस्तार का एक नकारात्मक बहिर्भाव/प्रभाव सड़क दुर्घटनाओं और खराब सड़कों की संख्या में वृद्धि है।
  • सड़क दुर्घटनाओं का कारण:
    • बुनियादी ढांँचे की कमी: सड़कों और वाहनों की दयनीय स्थिति, खराब दृश्यता, खराब सड़क डिज़ाइन और इंजीनियरिंग- सामग्री तथा निर्माण की गुणवत्ता में कमी, विशेष रूप से तीव्र मोड़ के के साथ सिंगल-लेन।
    • लापरवाही और ज़ोखिम: ओवर स्पीडिंग, शराब या ड्रग्स के प्रभाव में ड्राइविंग, थकान या बिना हेलमेट के सवारी, सीटबेल्ट के बिना ड्राइविंग आदि।
    • व्याकुलता: ड्राइविंग के दौरान मोबाइल फोन पर बात करना सड़क दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण बन गया है।
    • ओवरलोडिंग: परिवहन की लागत की बचत करने के लिये।
    • भारत में कमज़ोर वाहन सुरक्षा मानक: वर्ष 2014 में ग्लोबल न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (NCAP) द्वारा किये गए क्रैश टेस्ट से पता चला है कि भारत के कुछ सबसे अधिक बिकने वाले कार मॉडल संयुक्त राष्ट्र (UN) के फ्रंटल इम्पैक्ट क्रैश टेस्ट में विफल रहे हैं।
    • ज़ागरूकता की कमी: एयरबैग, एंटी लॉक ब्रेकिंग सिस्टम आदि जैसे सुरक्षा सुविधाओं के महत्त्व के बारे में जागरूकता की कमी है।
  • प्रभाव:
    • आर्थिक:
      • भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण अपने सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 3% का नुकसान होता है, जिनमें से अधिकांश को रोका जा सकता है
    • सामाजिक:
      • परिवारों पर बोझ:
        • सड़क दुर्घटना के कारण होने वाली मृत्यु की वजह से गरीब परिवारों की लगभग सात माह की घरेलू आय कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित परिवार गरीबी और कर्ज़ के चक्र में फँस जाता है।
      • संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (VRUs):
        • संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (Vulnerable Road Users- VRUs) वर्ग द्वारा दुर्घटनाओं के बड़े बोझ को सहन किया जाता है। देश में सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों और गंभीर चोटों के कुल मामलों में से आधे से अधिक हिस्सेदारी VRUs वर्ग की है।
          • VRUs वर्ग में सामान्यत: गरीब विशेष रूप से कामकाज़ी उम्र के पुरुष जिनके द्वारा सड़क का उपयोग किया जाता है, को शामिल किया जाता है।
      • लिंग विशिष्ट प्रभाव:
        • पीड़ितों के परिवारों में महिलाएँ गरीब और अमीर दोनों घरों में समस्याओं का सामना करती हैं, अक्सर अतिरिक्त काम करती हैं, अधिक जिम्मेदारियां लेती हैं, और देखभाल करने वाली गतिविधियां करती हैं।
        • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार "ट्रैफिक क्रैश इंजरी एंड डिसएबिलिटीज: द बर्डन ऑन इंडियन सोसाइटी, 2021।
          • लगभग 50% महिलाएँ दुर्घटना के बाद अपनी घरेलू आय में गिरावट से गंभीर रूप से प्रभावित हुईं।
          • लगभग 40% महिलाओं ने दुर्घटना के बाद अपने काम करने के तरीके में बदलाव की सूचना दी, जबकि लगभग 11% ने वित्तीय संकट से निपटने के लिये अतिरिक्त काम करने की सूचना दी।
          • कम आय वाले ग्रामीण परिवारों (56%) की आय में गिरावट निम्न-आय वाले शहरी (29.5%) और उच्च आय वाले ग्रामीण परिवारों (39.5%) की तुलना में सबसे गंभीर थी।

सड़क दुर्घटनाओं पर नियंत्रण:

  • पारदर्शी मशीनरी:
    • ई-चालान लागू होने से ट्रैफिक उल्लंघन के जुर्माने के मुआवज़े के लिये भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है।
  • स्पीड-डिटेक्शन डिवाइस:
    • रडार और स्पीड डिटेक्शन कैमरा सिस्टम जैसे गति का पता लगाने वाले उपकरणों की स्थापना की जा सकती है।
      • चंडीगढ़ और नई दिल्ली ने ट्रैफिक कंट्रोल में डिजिटल स्टिल कैमरा (चंडीगढ़), स्पीड कैमरा (नई दिल्ली) और रडार गन (नई दिल्ली) जैसे स्पीड डिटेक्शन डिवाइस की सेवा पहले ही लागू कर दी है।
        • राडार गन एक हैंडहेल्ड डिवाइस है जिसका उपयोग ट्रैफिक पुलिस द्वारा गुज़रने वाले वाहन की गति का अनुमान लगाने के लिये किया जाता है।
  • बेहतर सुरक्षा उपाय:
    • स्पीड हम्प, उठे हुए प्लेटफॉर्म, गोल चक्कर और ऑप्टिकल मार्किंग सड़क दुर्घटनाओं को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
  • सख्त नियम और भारी जुर्माना:
    • यातायात नियमों के उल्लंघन को कम करने के लिये विशेष रूप से शराब, भांँग या अन्य नशीली दवाओं के प्रभाव में वाहन चलाने पर उल्लंघन करने वालों पर भारी मोटर वाहन जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • वाहन सुरक्षा मानक:
    • इलेक्ट्रॉनिक स्थिरता नियंत्रण, प्रभावी कार क्रैश मानक और उन्नत ब्रेकिंग जैसी वाहन सुरक्षा सुविधाओं को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
      • हाल ही में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने भारत NCAP (नई कार आकलन कार्यक्रम) की शुरुआत की।
  • दर्शकों की भूमिका:
    • दुर्घटना के बाद की देखभाल में दर्शक (बाईस्टैंडर्स) एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वे आपातकालीन देखभाल प्रणाली को सक्रिय करके और पेशेवर मदद उपलब्ध होने तक सरल, संभावित जीवन रक्षक कार्रवाई में योगदान करते हैं।
  • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:
    • सड़क सुरक्षा ऑडिट और सड़क सुरक्षा इंजीनियरिंग में क्षमता निर्माण के लिये प्रशिक्षण पाठ्यक्रम एवं प्रशिक्षण कार्यशालाएंँ आयोजित की जानी चाहिये।

सड़क सुरक्षा से संबंधित पहलें:

  • विश्व:
    • सड़क सुरक्षा पर ब्राज़ीलिया घोषणा (2015):
      • ब्राज़ील में आयोजित सड़क सुरक्षा पर दूसरे वैश्विक उच्च स्तरीय सम्मेलन में घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए। भारत घोषणापत्र का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
      • देशों ने सतत् विकास लक्ष्य 3.6 यानी वर्ष 2030 तक सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली वैश्विक मौतों और दुर्घटनाओं की आधी संख्या करने की योजना बनाई है।
    • सड़क सुरक्षा के लिये कार्रवाई का दशक 2021-2030:
      • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2030 तक कम-से-कम 50% सड़क यातायात मौतों और चोटों को रोकने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ "वैश्विक सड़क सुरक्षा में सुधार" संकल्प अपनाया।
      • वैश्विक योजना सड़क सुरक्षा के लिये समग्र दृष्टिकोण के महत्त्व पर बल देते हुए स्टॉकहोम घोषणा के अनुरूप है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सड़क मूल्यांकन कार्यक्रम (iRAP):
      • यह एक पंजीकृत चैरिटी है जो सुरक्षित सड़कों के माध्यम से लोगों की जान बचाने के लिये समर्पित है।
  • भारत:
    • मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019:
      • यह अधिनियम यातायात उल्लंघन, दोषपूर्ण वाहन, नाबलिकों द्वारा वाहन चलाने आदि के लिये दंड की मात्रा में वृद्धि करता है।
      • यह अधिनियम मोटर वाहन दुर्घटना हेतु निधि प्रदान करता है जो भारत में कुछ विशेष प्रकार की दुर्घटनाओं पर सभी सड़क उपयोगकर्त्ताओं को अनिवार्य बीमा कवरेज प्रदान करता है।
      • अधिनियम एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड को मंज़ूरी प्रदान करता है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा एक अधिसूचना के माध्यम से स्थापित किया जाना है।
      • यह मदद करने वाले व्यक्तियों के संरक्षण का भी प्रावधान करता है।
    • सड़क मार्ग द्वारा वाहन अधिनियम, 2007:
      • यह अधिनियम सामान्य माल वाहकों के विनियमन से संबंधित प्रावधान करता है, उनकी देयता को सीमित करता है और उन्हें वितरित किये गए माल के मूल्य की घोषणा करता है ताकि ऐसे सामानों के नुकसान या क्षति के लिये उनकी देयता का निर्धारण किया जा सके, जो लापरवाही या आपराधिक कृत्यों के कारण स्वयं, उनके नौकरों या एजेंटों के कारण हुआ हो।
    • राष्ट्रीय राजमार्ग नियंत्रण (भूमि और यातायात) अधिनियम, 2000:
      • यह अधिनियम राष्ट्रीय राजमार्गों के भीतर भूमि का नियंत्रण, रास्ते का अधिकार और राष्ट्रीय राजमार्गों पर यातायात का नियंत्रण करने संबंधी प्रावधान प्रदान करता है और साथ ही उन पर अनधिकृत कब्ज़े को हटाने का भी प्रावधान करता है।
    • भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1998:
      • यह अधिनियम राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिये एक प्राधिकरण के गठन तथा उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों से संबंधित प्रावधान प्रस्तुत करता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

प्रकृति आधारित समाधान

प्रिलिम्स के लिये:

प्रकृति आधारित समाधान, विश्व शहरी मंच, IUCN, स्थानीय नेतृत्व वाली अनुकूलन, हरी छत, विश्व जल दिवस, संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन, Cities4Forests

मेन्स के लिये:

स्थानीय नेतृत्व अनुकूलन, प्रकृति आधारित समाधान के प्रकार, NbS की पहचान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान (NIUA) क्लाइमेट सेंटर फॉर सिटीज़ (NIUA C-Cube), विश्व संसाधन संस्थान भारत (WRI India-World Resources Institute India) और उनके सहयोगियों ने पोलैंड में 11वें विश्व शहरी मंच में शहरी प्रकृति-आधारित समाधानों (NbS) के लिये भारत का पहला राष्ट्रीय गठबंधन मंच लॉन्च किया।

  • NIUA देश में टिकाऊ, समावेशी और उत्पादक शहरी पारिस्थितिक तंत्र को विकसित करने के लिये शहरी विकास एवं प्रबंधन पर अनुसंधान, ज्ञान प्रबंधन, नीति, वकालत तथा क्षमता निर्माण पर केंद्रित है।

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विश्व शहरी मंच:

  • विश्व शहरी मंच (WUF) स्थायी शहरीकरण पर प्रमुख वैश्विक सम्मेलन है।
  • WUF की स्थापना 2001 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा तेज़ी से शहरीकरण और समुदायों, शहरों, अर्थव्यवस्थाओं, जलवायु परिवर्तन तथा नीतियों पर इसके प्रभाव की जांँच करने के लिये की गई थी।
  • WUF11, UN-Habitat, पोलैंड के विकास निधि और क्षेत्रीय नीति मंत्रालय व केटोवाइस, पोलैंड के नगर कार्यालय द्वारा सह-संगठित है।

NbS राष्ट्रीय गठबंधन मंच:

  • प्रकृति-आधारित समाधानों के लिये इंडिया फोरम का उद्देश्य शहरी प्रकृति-आधारित समाधानों को बढ़ाने में मदद करने हेतु NbS उद्यमियों, सरकारी संस्थाओं और समान विचारधारा वाले संगठनों का एक समूह बनाना है।
  • एक साझा भाषा को परिभाषित करना और मौजूदा NbS हस्तक्षेपों को बढ़ाने सहित स्थानीय स्तर पर कार्रवाई को सूचित करने वाले लाभों का संचार करना।
  • बहु-हितधारक समन्वय के माध्यम से निवेश को बढ़ावा देना और वितरण तंत्र को मज़बूत करना।
  • सूचना नीति, योजनाओं और परियोजना हस्तक्षेपों के माध्यम से भारत में शहरी पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित सेवाओं व प्रकृति-आधारित समाधानों/नेचर बेस्ड सोल्यूशंस को मुख्यधारा में लाना।

प्रकृति आधारित समाधान(NbS)

  • प्रकृति आधारित समाधान के बारे में:
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा NbS को प्राकृतिक और संशोधित पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा, स्थायी प्रबंधन और पुनर्स्थापना करने के कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है जो सामाजिक चुनौतियों को प्रभावी व अनुकूल ढंग से संबोधित करने के साथ मानव कल्याण एवं जैवविविधता से जुड़े लाभ प्रदान करते हैं।
      • पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित सेवाएंँ और प्रकृति-आधारित समाधान जलवायु परिवर्तन प्रेरित चुनौतियों जैसे- गर्मी, शहरी बाढ़, वायु, जल प्रदूषण तथा तूफान की लहरों को दूर करने के लिये लागत प्रभावी व टिकाऊ तरीकों से तीव्र रूप से उभर रहे हैं।
      • NbS जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने, जलवायु परिवर्तन प्रेरित आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले वंचित और कमज़ोर शहरी समुदायों के निर्माण सहित कई पारिस्थितिक तंत्र में लाभ प्रदान करने में भी मदद करते हैं।
        • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दूर करने या कम करने के लिये स्थानीय नेतृत्व वाले अनुकूलन के विचार पर व्यापक रूप से चर्चा की गई है, जिसे NbS को निर्देशित किया गया है।

लोकल लेड एडेप्टेशन:

  • स्थानीय नेतृत्व चालित अनुकूलन या लोकल लेड एडेप्टेशन से आशय स्थानीय समुदायों और स्थानीय सरकारों द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये प्रभावी निर्णय लेने के सशक्त प्रयासों से है।
  • लोकल लेड एडेप्टेशन को अक्सर स्वदेशी समाधानों के आधार पर परिभाषित किया जाता है, जो प्रायः प्रकृति से जुड़े होते हैं।
  • यह देखते हुए कि सबसे कमज़ोर आबादी वे हैं जो प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक निर्भर हैं, इसलिये यह उम्मीद की जानी चाहिये कि समाधान भी अक्सर उसी स्रोत से अंकुरित होते हैं।
  • क्षमता:
    • बाढ़ के पानी से स्थानीय समुदायों को बचाने के लिये आर्द्रभूमि को बहाल करना या मैंग्रोव वनों का संरक्षण करना जो मछलियों के लिये नर्सरी प्रदान करते हैं और तूफान से होने वाले नुकसान से आस-पास के घरों की रक्षा करते हैं।
    • लवणीय दलदलों की रक्षा करने से लेकर वन आवासों को बहाल करने तक दुनिया भर में प्रकृति-आधारित समाधान पहले से ही चल रहे हैं।
    • हरे रंग की छतें या दीवारें प्रकृति-आधारित समाधान हैं, जिन्हें शहरों में उच्च तापमान के प्रभाव को कम करने, तूफान के पानी को नियंत्रित करने, प्रदूषण को कम करने और कार्बन सिंक के रूप में कार्य करने के साथ-साथ जैवविविधता को बढ़ाने के लिये लागू किया जा सकता है।
  • प्रकार:
    • पारिस्थितिक तंत्र में न्यूनतम हस्तक्षेप:
      • इसमें पारिस्थितिक तंत्र में कोई या न्यूनतम हस्तक्षेप नहीं होता है।
      • उदाहरणों में शामिल हैं तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव का संरक्षण, ताकि चरम मौसम की स्थिति से जुड़े जोखिमों को सीमित किया जा सके और स्थानीय आबादी को लाभ व अवसर प्रदान किये जा सकें।
    • पारिस्थितिक तंत्र और परिदृश्य में कुछ हस्तक्षेप:
      • यह प्रबंधन के दृष्टिकोण से मेल खाता है जो सतत् और बहुक्रियाशील पारिस्थितिक तंत्र एवं परिदृश्य (व्यापक रूप से या गहन रूप से प्रबंधित) विकसित करता है।
      • इस प्रकार का NbS प्राकृतिक प्रणाली कृषि, कृषि-पारिस्थितिकी और विकास-उन्मुख वानिकी जैसी अवधारणाओं से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है।
    • व्यापक तरीकों से पारिस्थितिक तंत्र का प्रबंधन:
      • इसमें पारिस्थितिक तंत्र को बहुत व्यापक तरीके से प्रबंधित करना या यहाँ तक कि नए पारिस्थितिक तंत्र (उदाहरण के लिये शहर की गर्मी और स्वच्छ प्रदूषित हवा को कम करने के लिये हरी छतों और दीवारों हेतु जीवों के नए संयोजन के साथ कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र) बनाना शामिल है।
      • यह हरे और नीले बुनियादी ढाँचे जैसी अवधारणाओं और भारी गिरावट वाले या प्रदूषित क्षेत्रों तथा हरित शहरों की बहाली जैसे उद्देश्यों से जुड़ा हुआ है।
  • मान्यता:
    • संयुक्त राष्ट्र:
      • संयुक्त राष्ट्र ने NbS को विश्व जल दिवस 2018 के विषय के रूप में "जल के लिये प्रकृति (Nature for Water)" के रूप में बढ़ावा दिया।
        • संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट का शीर्षक "जल के लिये प्रकृति आधारित समाधान" था।
        • यूएन क्लाइमेट एक्शन समिट, 2019 ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक प्रभावी तरीके के रूप में प्रकृति-आधारित समाधानों पर प्रकाश डाला गया।
        • चीन और न्यूज़ीलैंड के नेतृत्व में दर्जनों देशों सहित एक प्रकृति आधारित समाधान गठबंधन बनाया गया था।
    • यूरोपीय संघ:
      • 2016 के बाद से यूरोपीय संघ ने एक एकीकृत तरीके से बेहतर और अभिनव NbS के सह-डिज़ाइन, परीक्षण व तैनाती को बढ़ावा देने के लिये एक बहु-हितधारक संवाद मंच (थिंकनेचर) का समर्थन किया है।
    • भारत:
      • भारत ने Cities4Forests पहल के तहत शहरी प्रकृति-आधारित समाधान (NbS) के लिये अपना पहला राष्ट्रीय गठबंधन मंच लॉन्च किया।
        • Cities4Forests: यह जंगलों से जुड़ने के लिये दुनिया भर के शहरों के साथ मिलकर काम करता है, आर्द्रभूमि के महत्त्व पर ज़ोर देता है और शहरों में जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा जैवविविधता की रक्षा में मदद करने के लिये उनके कई लाभों पर ज़ोर देता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


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