भारतीय इतिहास
भारत-पाक युद्ध: 1971
- 07 Dec 2021
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प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय कैडेट कोर, वर्ष 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध मेन्स के लियेभारत-पाक युद्ध के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) ने ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ (भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ) के हिस्से के रूप में 'आज़ादी की विजय शृंखला और संस्कृतियों का महासंगम' कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है।
- ‘आज़ादी की विजय शृंखला और संस्कृतियों का महासंगम’ कार्यक्रम के तहत भारत-पाकिस्तान वर्ष 1971 युद्ध के वीरों को पूरे देश में 75 स्थानों पर सम्मानित किया जा रहा है।
- संस्कृतियों का महासंगम नई दिल्ली में एक विशेष राष्ट्रीय एकता शिविर आयोजित करेगा, जिसमें देश भर के उम्मीदवार सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भाग लेंगे।
प्रमुख बिंदु
- भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 की समयरेखा:
- राजनीतिक असंतुलन: 1950 के दशक में पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता पर पश्चिमी पाकिस्तान का दबदबा था। पाकिस्तान पर सैन्य-नौकरशाही का राज था जो पूरे देश (पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान) पर बेहद अलोकतांत्रिक ढंग से शासन कर रहे थे।
- शासन की इस प्रणाली में बंगालवासियों का कोई राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं था किंतु वर्ष 1970 के आम चुनावों के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान के इस प्रभुत्व को चुनौती दी गई थी।
- अवामी लीग की विजय: वर्ष 1970 के आम चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुज़ीबुर्र रहमान की अवामी लीग को स्पष्ट बहुमत प्राप्त था, जो प्रधानमंत्री बनने के लिये पर्याप्त था।
- हालाँकि पश्चिमी पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान के किसी नेता को देश पर शासन करने देने के लिये तैयार नहीं था।
- सांस्कृतिक अंतर: तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) ने ‘याहया खान’ के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के लोगों का सांस्कृतिक रूप से दमन करने की कोशिश की। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान पर भाषा पहनावा-ओढ़ावा इत्यादि को लेकर तानाशाही रवैया अपनाना शुरू किया। ज्ञातव्य है कि पूर्वी पाकिस्तान बंगाल से काटकर बनाया गया था अतः यहाॅं की भाषा मुख्यतः बंगाली थी जबकि, पश्चिमी पाकिस्तान की भाषा मुख्यतः उर्दू थी।
- राजनीतिक वार्ता विफल होने के बाद जनरल याहया खान के नेतृत्त्व में पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का फैसला किया।
- ऑपरेशन सर्चलाइट: 26 मार्च, 1971 को पश्चिम पाकिस्तान ने पूरे पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू की।
- इसके परिणामस्वरूप लाखों बांग्लादेशी भारत भागकर भारत आ गए। मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा जैसे राज्यों में क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश के सबसे करीबी राज्य हैं।
- विशेष रूप से पश्चिम बंगाल पर शरणार्थियों का बोझ बढ़ने लगा और राज्य ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी सरकार से भोजन और आश्रय के लिये सहायता की अपील की।
- इंडो-बांग्ला सहयोग: बांग्लादेश के स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाली 'मुक्तिवाहिनी सेना' एवं भारतीय सैनिकों की बहादुरी से पाकिस्तानी सेना को मुॅंह की खानी पड़ी। ज्ञातव्य है कि मुक्तिवाहिनी सेना में बांग्लादेश के सैनिक, अर्द्ध-सैनिक और नागरिक भी शामिल थे। ये मुख्यत: गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करते थे।
- पाकिस्तानी सेना की हार: 16 दिसंबर, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक और पूर्वी पाकिस्तान में स्थित पाकिस्तानी सेना बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर’ पर हस्ताक्षर किये।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे अधिक 93,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना और बांग्लादेश मुक्ति सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। भारत के हस्तक्षेप से मात्र 13 दिनों के इस छोटे से युद्ध से एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ।
- भारतीय हस्तक्षेप ने 13 दिनों में युद्ध को समाप्त कर दिया और इस प्रकार एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ।
- राजनीतिक असंतुलन: 1950 के दशक में पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता पर पश्चिमी पाकिस्तान का दबदबा था। पाकिस्तान पर सैन्य-नौकरशाही का राज था जो पूरे देश (पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान) पर बेहद अलोकतांत्रिक ढंग से शासन कर रहे थे।
- भारत के लिये भारत-पाकिस्तान युद्ध का महत्त्व:
- एक साथ दो मोर्चों पर युद्ध का खतरा: भविष्य में कभी भी पाकिस्तान से युद्ध होने पर भारत को दोनों मोर्चों से युद्ध का खतरा था। पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह से भारत को इस खतरे को समाप्त करने का बहाना मिल गया।
- यद्यपि वर्ष 1965 में पूर्वी मोर्चा काफी हद तक निष्क्रिय रहा, लेकिन इसने पर्याप्त सैन्य संसाधनों को अपने पास रोक लिया था जो पश्चिमी मोर्चे पर अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
- गुटनिरपेक्षता की नीति में बदलाव: भारत-पाकिस्तान युद्ध अगस्त 1971 में भारत-सोवियत संधि पर हस्ताक्षर से पहले हुआ था, जिसने भारत को कूटनीतिक रूप से बढ़ावा दिया था।
- इस जीत ने विदेशी राजनीति में भारत की व्यापक भूमिका सुनिश्चित की।
- संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों ने महसूस किया कि शक्ति संतुलन दक्षिण एशिया में भारत में स्थानांतरित हो गया है।
- एक साथ दो मोर्चों पर युद्ध का खतरा: भविष्य में कभी भी पाकिस्तान से युद्ध होने पर भारत को दोनों मोर्चों से युद्ध का खतरा था। पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह से भारत को इस खतरे को समाप्त करने का बहाना मिल गया।