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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सुरक्षित हिंद महासागर

  • 09 Aug 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बाब अल मंदेब जलडमरूमध्य, लाल सागर होर्मुज़ जलडमरूमध्य, आसियान, मलक्का जलडमरूमध्य, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

मेन्स के लिये:

समुद्री सुरक्षा हेतु भारत की पहलें

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में भारत ने समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एक ओपन डिबेट बुलाने (Open Debate) का प्रस्ताव रखा है।

  • इस बहस का उद्देश्य समुद्री सुरक्षा के लिये प्राकृतिक और मानव निर्मित खतरों का समग्र रूप से जवाब देने हेतु प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सहयोग को मज़बूत करना है।
  • यह एक समुद्री राष्ट्र के रूप में भारत के अंतर्राष्ट्रीय को भी दर्शाता है। 

प्रमुख बिंदु 

भारत के लिये हिंद महासागर का महत्त्व:

  • लंबी समुद्री सीमा: 7,500 किमी. से अधिक लंबी की तटरेखा के साथ, समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने में भारत की स्वाभाविक रुचि है।
  • संचार के समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना: हिंद महासागर में तीन प्रमुख समुद्री संचार मार्ग  (SLOCS) ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि में महत्त्वपूर्ण  भूमिका निभाते हैं:
    • SLOC बाब अल मंदेब जलडमरूमध्य के माध्यम से लाल सागर को हिंद महासागर से जोड़ने वाला समुद्री मार्ग है। (यह यूरोप और अमेरिका में अपने प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ एशिया के अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को संचालित करता है)।
    • SLOC होर्मुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से फारस की खाड़ी को हिंद महासागर से जोड़ता है (भारत, आसियान और पूर्वी एशिया जैसे प्रमुख आयात स्थलों के लिये ऊर्जा निर्यात का बड़ा हिस्सा इसी रूट से होता है)।
    • SLOC मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से भारतीय और प्रशांत महासागरों को जोड़ता है (आसियान, पूर्वी एशिया, रूस के सुदूर पूर्व और अमेरिका के साथ व्यापार के सुचारू प्रवाह का अभिन्न अंग)।
    • हिंद महासागर क्षेत्र से विश्व  के समुद्री व्यापार का 75% और दैनिक वैश्विक तेल खपत के  50% का परिवहन होता है।

UNSC

भारत की समुद्री पहलें: 

  • आपदा प्रबंधन: वर्ष 2004 की सुनामी, जिसने मानव और प्राकृतिक संसाधनों पर भारी प्रभाव डाला था, के कारण वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘हिंद महासागर सुनामी चेतावनी और शमन प्रणाली’ का निर्माण किया गया था।
  • इसके माध्यम से एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क द्वारा ऐसी गंभीर आपदा की पुनरावृत्ति को रोका जा सकता है।
  • एंटी-पाइरेसी ऑपरेशन्स: वर्ष 2007 से सोमालिया के तट से शुरू होने वाली समुद्री डकैती के कारण पश्चिमी हिंद महासागर में शिपिंग के बढ़ते खतरे का सामना करने के लिये भारतीय नौसेना ने सोमालिया के समुद्र तट से समुद्री डकैती पर UNSC द्वारा अनिवार्य ‘60-कंट्री कांटेक्ट ग्रुप’ की गतिविधियों में मज़बूती से हिस्सा लिया है।
  • ‘सागर’ पहल: भारत की ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) नीति एक एकीकृत क्षेत्रीय ढाँचा है, जिसका अनावरण भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा मार्च 2015 में मॉरीशस की यात्रा के दौरान किया गया था। ‘सागर’ पहल के प्रमुख स्तंभ हैं:
    • हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका।
    • भारत ‘हिंद महासागर क्षेत्र’ में मित्र देशों की समुद्री सुरक्षा क्षमताओं और आर्थिक लचीलेपन को बढ़ावा देना जारी रखेगा।
    • ‘हिंद महासागर क्षेत्र’ के भविष्य पर अधिक एकीकृत और सहयोगात्मक फोकस, जो इस क्षेत्र के सभी देशों के सतत् विकास की संभावनाओं को बढ़ाएगा।
    • ‘हिंद महासागर क्षेत्र’ में शांति, स्थिरता और समृद्धि स्थापित करने का प्राथमिक दायित्व उनका है, जो ‘इस क्षेत्र में निवास करते हैं।’
  • अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन: भारत ने ‘भारत-बांग्लादेश’ के बीच समुद्री सीमा मध्यस्थता पर ‘यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन फॉर द लॉ ऑफ द सी’  (UNCLOS) न्यायाधिकरण के निर्णय को स्वीकार कर लिया था।
    • इसके तहत बिम्सटेक देशों के बीच प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग की परिकल्पना की गई है।
  • डेटा साझा करना: वाणिज्यिक नौवहन के खतरों पर डेटा साझा करना समुद्री सुरक्षा बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।

आगे की राह

  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बनाए रखने हेतु नीति और परिचालन क्षेत्रों में दो सहायक ढाँचे की आवश्यकता होती है।
    • नियम-कानून आधारित दृष्टिकोण: UNCLOS की परिचालन प्रभावशीलता की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
      • विशेष रूप से नौवहन की स्वतंत्रता, समुद्री संसाधनों के सतत् दोहन और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर इसके प्रावधानों को लागू करने के संबंध में।
    • संचार के समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना: समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने हेतु महासागरों को पार करने वाले SLOC को सुरक्षित करना केंद्र के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • इस प्रकार वैश्विक वार्ता के माध्यम से मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीकों से हल करते हुए राज्यों द्वारा SLOC तक समान और अप्रतिबंधित पहुँच सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • निजी क्षेत्र को शामिल करना: समुद्री क्षेत्र में निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका की आवश्यकता है, चाहे वह शिपिंग हो या नीली अर्थव्यवस्था के माध्यम से सतत् विकास।
    • इसके अलावा डिजिटल अर्थव्यवस्था का समर्थन करने वाले महत्त्वपूर्ण पनडुब्बी फाइबर-ऑप्टिक केबल प्रदान करने के लिये समुद्री डोमेन के उपयोग का लाभ उठाया जा सकता है।
  • समुद्री सुरक्षा बढ़ाने हेतु बहु-हितधारक दृष्टिकोण का समर्थन कर बहस द्वारा समाधान पाने के लिये UNSC की क्षमता एक महत्त्वपूर्ण परिणाम प्रदान कर सकती है, जो 21वीं सदी में "बहु-आयामी" सुरक्षा को बनाए रखकर एक प्रतिमान स्थापित करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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