शासन व्यवस्था
आभासी डिजिटल परिसंपत्ति का विनियमन
प्रिलिम्स के लिये:PMLA, VDA, क्रिप्टोकरेंसी, फिएट मुद्रा। मेन्स के लिये:आभासी डिजिटल परिसंपत्ति का विनियमन करना। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने धन शोधन रोधी प्रावधानों (Anti-money Laundering provisions) का दायरा आभासी डिजिटल परिसंपत्ति (Virtual Digital Assets- VDA) व्यवसायों एवं सेवा प्रदाताओं तक बढ़ा दिया है।
- मंत्रालय ने अधिनियम के तहत VDA और क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित गतिविधियों को शामिल कर धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act- PMLA), 2002 का दायरा बढ़ाया है।
PMLA 2002 के तहत VDA को शामिल करने की प्रक्रिया:
- विस्तारित गतिविधियाँ:
- VDA और फिएट मुद्राओं के बीच विनिमय (केंद्र सरकार द्वारा कानूनी निविदा)।
- VDA के एक या अधिक रूपों के बीच आदान-प्रदान।
- VDA का स्थानांतरण।
- VDAs या VDAs पर नियंत्रण को सक्षम करने वाले उपकरणों की सुरक्षा या प्रशासन।
- जारीकर्त्ता की पेशकश और VDA की बिक्री से संबंधित वित्तीय सेवाओं में भागीदारी एवं प्रावधान।
- अब VDA को वित्तीय खुफिया इकाई-भारत (Financial Intelligence Unit-India- FIU-IND) के साथ एक रिपोर्टिंग इकाई के रूप में पंजीकृत होना होगा।
- FIU-IND संयुक्त राज्य अमेरिका में FinCEN के समान कार्य करती है। वित्त मंत्रालय के तहत इसे वर्ष 2004 में संदिग्ध वित्तीय लेन-देन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने, विश्लेषण एवं प्रसारित करने हेतु नोडल एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया था।
- उदाहरण के लिये CoinSwitch जैसे रिपोर्टिंग इकाई प्लेटफॉर्म अब नो योर कस्टमर, सभी लेन-देन रिकॉर्ड एवं निगरानी करने तथा किसी भी संदिग्ध गतिविधि का पता चलने पर FIU-IND को रिपोर्ट करने के लिये अधिकृत हैं।
- वैश्विक दिशा-निर्देशों के अनुरूप: यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) द्वारा जोखिम को कम करने हेतु निर्देशित वैश्विक दिशा-निर्देशों के अनुरूप है।
- FATF के पास वर्चुअल एसेट सर्विस प्रोवाइडर्स (VASPs) की व्यापक परिभाषा के साथ-साथ बिचौलियों, दलालों, एक्सचेंजों, कस्टोडियन, हेज फंड और यहाँ तक कि खनन निकायों को सम्मिलित करने वाली एक व्यापक सूची है।
- इस तरह के दिशा-निर्देश वर्चुअल डिजिटल एसेट इकोसिस्टम के नियमन और निरीक्षण में VASP की भूमिका को स्वीकार करते हैं।
पहल का महत्त्व और उससे संबंधित चिंताएँ:
- महत्त्व:
- इस तरह के नियम पहले से ही बैंकों, वित्तीय संस्थानों और प्रतिभूतियों तथा अचल संपत्ति संबंधी बाज़ारों में कुछ मध्यस्थों पर लागू होते हैं।
- इसे वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों तक विस्तारित करने से इस प्लेटफॉर्म को अधिक सतर्कता से निगरानी करने और कदाचार के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद मिलेगी।
- ऐसे मानदंडों का मानकीकरण भारतीय वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्ति क्षेत्र को पारदर्शी बनाने में काफी मदद करेगा।
- यह पारिस्थितिकी तंत्र में विश्वास स्थापित करेगा और सरकार को वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्ति लेन-देन पर अधिक निगरानी करने में मदद करेगा जो सभी के लिये फायदेमंद होगा।
- चिंताएँ:
- एक केंद्रीकृत नियामक की अनुपस्थिति में VDA संस्थाओं को प्रवर्तन निदेशालय जैसे अभिकरणों के साथ सीधे व्यवहार करना पड़ सकता है।
- वर्तमान कर व्यवस्था के कारण कई भारतीय VDA उपयोगकर्त्ता पहले ही घरेलू एक्सचेंजों से विदेशी समकक्ष विकल्प अपना चुके हैं, जिससे कर राजस्व में कमी आई है और लेन-देन के विषय में पता लगाना मुश्किल हो गया है। इससे अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भी हतोत्साहित हो सकते है जिसके परिणामस्वरूप पूंजी बहिर्वाह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
आभासी डिजिटल परिसंपत्ति:
- सरकार ने केंद्रीय बजट 2022-23 में आभासी डिजिटल परिसंपत्ति (Virtual Digital Assets) पर टैक्स लगाने और उन पर नज़र रखने के उद्देश्य से नए प्रावधान पेश किये हैं। कराधान के ढाँचे के साथ बजट ने पहली बार आभासी डिजिटल परिसंपत्ति को परिभाषित किया।
- इसने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2 के तहत नए सम्मिलित खंड (47A) में आभासी डिजिटल संपत्ति को परिभाषित किया है।
- प्रस्तावित नए खंड के अनुसार, एक आभासी डिजिटल परिसंपत्ति का अर्थ क्रिप्टोग्राफिक माध्यमों से किसी भी जानकारी, कोड, संख्या या टोकन (न तो भारतीय मुद्रा में या न किसी विदेशी मुद्रा में) उत्पन्न करना है।
- आभासी डिजिटल परिसंपत्ति का अर्थ है क्रिप्टोकरेंसी, DeFi (विकेंद्रीकृत वित्त) और नॉन-फंजिबल टोकन (NFT)।
- अप्रैल 2022 से भारत में क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन से होने वाली आय पर 30% आयकर लागू हुआ।
- जुलाई 2022 से क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित स्रोतों पर 1% कर कटौती के नियम लागू हुए।
आगे की राह
- भारत को आभासी डिजिटल परिसंपत्तियों पर उच्च कर की दरों पर पुनर्विचार करना चाहिये, जो वर्तमान में अन्य परिसंपत्ति वर्गों की तुलना में अधिक हैं।
- मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) और टेरर फाइनेंसिंग (आतंकी वित्तपोषण) के जोखिमों को कम करने वाली नवीन PMLA अधिसूचना के साथ आभासी डिजिटल परिसंपत्ति करों को अन्य परिसंपत्ति वर्गों के साथ संरेखित करने का अवसर देना चाहिये।
- ऐसा करने हेतु मनमाने करों (टैक्स आर्बिट्रेज) को न्यूनतम करना होगा, जो देश की आतंरिक पूंजी, उपभोक्ताओं, निवेश एवं प्रतिभा को बनाए रखने में मदद करेगा तथा आभासी डिजिटल परिसंपत्ति के लिये अनौपचारिक क्षेत्र या ग्रे अर्थव्यवस्था के आकार को कम करेगा।
- एशिया में जापान और दक्षिण कोरिया ने VASP को लाइसेंस देने के लिये एक ढाँचा स्थापित किया है, जबकि यूरोप में क्रिप्टो-एसेट्स (MiCA) में बाज़ार यूरोपीय संसद द्वारा पारित किया गया है। आगे बढ़ते हुए एक प्रगतिशील नियामक ढाँचा भारत में नवोन्मेषी अर्थव्यवस्था की भावना उत्त्पन्न करेगा और भारत के आभासी डिजिटल संपत्ति नेतृत्त्व को स्थापित करेगा।
- परिभाषा के अनुसार, क्रिप्टोकरेंसी परिसंपत्तियाँ सीमाहीन हैं और नियामक मध्यस्थता को रोकने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। इसलिये विनियमन या प्रतिबंध लगाने के लिये कोई भी कानून जोखिमों एवं लाभों के मूल्यांकन तथा सामान्य वर्गीकरण व मानकों के विकास पर महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ ही प्रभावी हो सकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
संज्ञेय अपराधों में FIR का प्रावधान
प्रिलिम्स के लिये:प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) प्रावधान, शून्य प्राथमिकी, संज्ञेय अपराध, POCSO अधिनियम मेन्स के लिये:FIR- प्रावधान, सर्वोच्च न्यायालय का विचार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पहलवानों द्वारा दायर याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है, जिसमें यौन उत्पीड़न के आरोपों पर भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के अध्यक्ष के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने की मांग की गई है।
- सॉलिसिटर जनरल ने न्यायालय से कहा कि दिल्ली पुलिस को लगता है कि प्राथमिकी दर्ज करने से पहले एक 'प्रारंभिक जाँच' करने की आवश्यकता है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की यौन उत्पीड़न एवं यौन हमले से संबंधित धाराएँ संज्ञेय अपराधों की श्रेणी में आती हैं।
- चूँकि शिकायतकर्त्ताओं में एक नाबालिग शामिल है, इसलिये लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम 2012 के तहत FIR के प्रावधान लागू होते हैं।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR):
- परिचय:
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) पुलिस द्वारा तैयार किया गया एक लिखित दस्तावेज़ है, जिसे एक संज्ञेय अपराध के किये जाने की सूचना पर दर्ज किया जाता है।
- FIR दर्ज करना जाँच की दिशा में पहला कदम है।
- यह जाँच को गति प्रदान करता है जिसके तहत पुलिस निम्नलिखित कार्यवाही कर सकती है:
- आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ
- साक्ष्यों के आधार पर चार्जशीट दायर करना
- यदि प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों की जाँच से कोई परिणाम नहीं निकलता है तो क्लोज़र रिपोर्ट दर्ज करना
- संज्ञेय अपराधों में FIR का पंजीकरण:
- धारा 154 (1), CrPC एक संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना प्राप्त होने के बाद पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने में सक्षम बनाती है।
- एक संज्ञेय अपराध/मामला वह अपराध है जिसमें पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकता है।
- इस कानून में 'ज़ीरो एफआईआर' दर्ज करने का भी प्रावधान है।
- ऐसे मामले जिसमें कथित अपराध संबंधित थाने के अधिकार क्षेत्र में नहीं किया गया है, वहाँ भी पुलिस प्राथमिकी दर्ज कर सकती है और इसे संबंधित पुलिस थाने में स्थानांतरित कर सकती है।
- धारा 154 (1), CrPC एक संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना प्राप्त होने के बाद पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने में सक्षम बनाती है।
- प्राथमिकी दर्ज करने में विफलता:
- न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति (2013) की सिफारिश के आधार पर भारतीय दंड संहिता में धारा 166A शामिल की गई थी।
- इस धारा में कहा गया है कि अगर कोई लोक सेवक जान-बूझकर कानून के किसी भी निर्देश की अवज्ञा करता है, जैसे कि संज्ञेय अपराध के संबंध में उसे दी गई किसी भी जानकारी को रिकॉर्ड करने में विफल होना, तो उसे दो वर्ष तक की कैद हो सकती है व उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
POCSO अधिनियम, 2012 के तहत प्राथमिकी का प्रावधान:
- अधिनियम की धारा 19 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जिसे यह आशंका है कि POCSO अधिनियम के तहत अपराध किया गया है, ऐसी जानकारी विशेष किशोर पुलिस इकाई या स्थानीय पुलिस को प्रदान करेगा।
- अनुभाग को लिखित रूप में प्राथमिकी दर्ज करने की भी आवश्यकता होती है।
- अधिनियम की धारा 21 में यह भी कहा गया है कि किसी अपराध की रिपोर्ट या रिकॉर्डिंग नहीं करने पर छह महीने तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
- इसलिये अधिनियम कोई शिकायत प्राप्त होने पर, जिसमें एक बच्चा भी शामिल है, रिपोर्ट दर्ज करना अनिवार्य बनाता है।
प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जाँच:
- सर्वोच्च न्यायालय ने ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार एवं अन्य (2013) मामले में कहा कि अगर संज्ञेय अपराध की सूचना मिलती है तो CrPC की धारा 154 के तहत प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य है।
- FIR दर्ज करने के चरणो में अन्य विचार प्रासंगिक नहीं हैं जैसे कि कौन-सी सूचना गलत दी गई है, कौन-सी सूचना वास्तविक है, कौन-सी सूचना विश्वसनीय है आदि।
- उसने यह भी कहा, "प्रारंभिक जाँच का दायरा प्राप्त सूचनाओं की सत्यता या अन्यथा की पुष्टि करना नहीं है, बल्कि केवल यह पता लगाना है कि कौन-सी सूचना किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है।"
- उसने उन मामलों की श्रेणियों की एक विस्तृत सूची दी, जहाँ इस तरह की जाँच की जा सकती है, जिसमें पारिवारिक विवाद, व्यावसायिक अपराध, चिकित्सकीय लापरवाही और भ्रष्टाचार के मामले या ऐसे मामले शामिल हैं, जहाँ मामले की सूचना देने में असामान्य देरी हुई है।
- न्यायालय ने कहा कि सात दिन से अधिक जाँच नहीं होनी चाहिये।
पुलिस द्वारा प्राथमिकी न दर्ज करने पर किये जाने योग्य उपाय:
- CrPC की धारा 154 (3) कहती है कि एक व्यक्ति जो पुलिस प्रभारी द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार किये जाने से व्यथित है, पुलिस अधीक्षक को सूचना भेज सकता है।
- CrPC की धारा 156 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार करने से व्यथित है, तो मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत की जा सकती है। मजिस्ट्रेट तब पुलिस स्टेशन को मामला दर्ज करने का आदेश दे सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत को प्राथमिकी माना जाएगा और पुलिस इसकी जाँच शुरू कर सकती है।
- यह पुलिस को बिना किसी औपचारिक प्रथम सूचना रिपोर्ट के अपराध की जाँच करने की भी अनुमति देता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
मादक पदार्थों के उन्मूलन हेतु भारत के प्रयास
प्रिलिम्स के लिये:NDPS अधिनियम, NCB, गोल्डन क्रिसेंट और गोल्डन ट्रायंगल, मादक पदार्थों के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष, मादक पदार्थों की मांग में कमी के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना मेन्स के लिये:मादक पदार्थ: उपयोग की सीमा, चुनौतियाँ, पहल, मादक पदार्थों के दुरुपयोग की समस्या एवं संबंधित पहल। |
चर्चा में क्यों?
गृह मंत्रालय (MHA) देश में मादक पदार्थों के उन्मूलन हेतु एक रणनीतिक प्रयास कर रहा है। विगत तीन वर्षों में सरकार ने देश के कई राज्यों में 89000 फुटबॉल मैदान के आकार के भाँग और अफीम उत्पादक क्षेत्रों को नष्ट कर दिया है।
- सरकार का लक्ष्य 2047 तक भारत को "मादक पदार्थ मुक्त" बनाना है।
भारत में मादक पदार्थों के दुरुपयोग की सीमा:
- भारत मादक पदार्थों के दुरुपयोग और तस्करी संबंधी गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है, जो लाखों लोगों, विशेषकर युवाओं के स्वास्थ्य, कल्याण और सुरक्षा को प्रभावित करता है।
- वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में 2020 में ज़ब्त की गई अफीम की चौथी सबसे बड़ी मात्रा 5.2 टन है और उसी वर्ष ज़ब्त की गई मॉर्फिन की तीसरी सबसे बड़ी मात्रा 0.7 टन थी।
- ड्रग्स एंड क्राइम पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) के अनुसार, भारत ने 2019 में विश्व भर में 7% अफीम तथा 2% हेरोइन को ज़ब्त की।
- भारत दो प्रमुख ड्रग उत्पादक क्षेत्रों- गोल्डन क्रिसेंट (ईरान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान) और गोल्डन ट्रायंगल (थाईलैंड-लाओस-म्याँमार) के बीच स्थित है, जो इसे अवैध मादक पदार्थों की तस्करी के लिये संवेदनशील बनाता है।
भारत द्वारा अफीम और भाँग की खेती को खत्म करने के लिये किये गए प्रयास:
- भारत में व्यापक रूप से उत्पादित और उपयोग किये जाने वाले दो ड्रग्स अफीम और भाँग हैं।
- पोस्ता के पौधे से अफीम और भाँग के पौधे से भाँग प्राप्त होती है। दोनों को साइकोएक्टिव ड्रग्स कहा जाता है, जिनके प्रयोग से लत और स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- सरकार ने अवैध फसलों को नष्ट करने, ड्रग्स को जब्त करने, तस्करों को गिरफ्तार करने और जागरूकता उत्पन्न करने जैसे विभिन्न उपायों के साथ ड्रग्स पर कार्रवाई तीव्र कर दी है।
- इस संबंध में सरकार की कुछ उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:
- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) के अनुसार, विगत तीन वर्षों में 89,000 से अधिक फुटबॉल मैदानों के आकार के क्षेत्र में अफीम और भाँग की खेती को नष्ट कर दिया गया है।
- NCB ने बताया है कि विगत तीन वर्षों में देश भर में 35,592 एकड़ में अफीम की खेती और 82,691 एकड़ में भाँग की फसल नष्ट हो चुकी है।
- जिन राज्यों में फसलें नष्ट हुई हैं उनमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, झारखंड, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, त्रिपुरा और तेलंगाना शामिल हैं।
- NCB ने यह भी कहा कि उसने पिछले तीन वर्षों में 3,000 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की 6.7 लाख किलोग्राम से अधिक दवाएँ जब्त की हैं।
- जब्त दवाओं में हेरोइन, अफीम, भाँग, कोकीन, मेथामफेटामाइन, MDMA (एक्स्टसी), केटामाइन आदि शामिल हैं।
सरकार ड्रग समस्या से कैसे निपट रही है?
- विधायी उपाय: सरकार ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 जैसे विभिन्न कानून बनाए हैं- नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट, (NDPS) 1985 और अवैध व्यापार की रोकथाम में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट (PITNDPS), 1988।
- दवाओं के निर्माण, वितरण, कब्ज़े और खपत को विनियमित और प्रतिबंधित करना।
- NDPS अधिनियम में नशीली दवाओं के अपराधों के लिये कड़े दंड का प्रावधान है।
- संस्थागत उपाय: सरकार ने NCB, राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI), सीमा शुल्क विभाग आदि जैसे संस्थान बनाए हैं।
- ये संस्थान ड्रग कानूनों को लागू करते हैं तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय करते हैं।
- NCB विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय पहलों जैसे- SAARC ड्रग अपराध निगरानी डेस्क (SDOMD) का भी हिस्सा है।
- निवारक उपाय:
- सरकार ने नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPDDR), नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA) आदि जैसी विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की है।
- ये योजनाएँ नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकती हैं और नशा करने वालों को उपचार तथा पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करती हैं।
- NAPDDR का उद्देश्य जागरूकता सृजन, क्षमता निर्माण, नशा मुक्ति और पुनर्वास के माध्यम से ड्रग की मांग को कम करना है।
- NMBA का उद्देश्य स्कूली बच्चों में नशीली दवाओं के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
- सरकार ने नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPDDR), नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA) आदि जैसी विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की है।
- NIDAAN और NCORD पोर्टल:
- यह एक डेटाबेस है जिसमें NPDS अधिनियम के तहत गिरफ्तार किये गए सभी संदिग्धों और दोषियों की तस्वीरें, उंगलियों के निशान, अदालती आदेश, जानकारी एवं विवरण शामिल हैं, जिसे राज्य तथा केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा एक्सेस किया जा सकता है।
- नेशनल नारकोटिक्स कोऑर्डिनेशन पोर्टल (NCORD) पर ड्रग्स के स्रोत और इसके अंतिम लक्ष्य के विषय में बताया जाता है तथा ज़िला स्तर तक की जानकारी रखी जाती है।
भारत में ड्रग कंट्रोलिंग से जुड़ी चुनौतियाँ:
- पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का अभाव:
- नशीले पदार्थों की तस्करी और दुरुपयोग से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये प्रशिक्षित कर्मियों, विशेष उपकरणों और उचित बुनियादी ढाँचे की कमी है।
- नए साइकोएक्टिव पदार्थों का प्रसार:
- भारत में नए साइकोएक्टिव पदार्थों का उपयोग बढ़ रहा है और ये दवाएँ अकसर मौजूदा ड्रग नियंत्रण कानूनों के अंतर्गत नहीं आती हैं। इस कारण से कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये उन्हें प्रभावी ढंग से विनियमित करना जटिल हो जाता है।
- डार्क नेट ईजिंग ड्रग ट्रैफिकिंग:
- NCB के मुताबिक, अवैध ड्रग्स में 'डार्क नेट' और क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल बढ़ रहा है तथा वर्ष 2020, 2021 और 2022 में एजेंसी ने ऐसे 59 मामलों की जाँच की है।
- जागरूकता और शिक्षा की कमी:
- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में नशीली दवाओं के दुरुपयोग एवं लत से खतरों के बारे में जागरूकता और शिक्षा की कमी है।
- उच्च मांग:
- भारत में एक बड़ी आबादी के साथ-साथ दवाओं की उच्च मांग है, जो नशीली दवाओं के व्यापार को आसान बनाती है।
- सामाजिक कलंक:
- भारतीय समाज में मादक पदार्थों की लत को अभी भी अत्यधिक कलंकित माना जाता है, जिससे व्यक्तियों के लिये सहायता एवं उपचार प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
नशीली दवाओं/ड्रग्स के दुरुपयोग को समाप्त करने के उपाय:
- कानून प्रवर्तन को सख्त करना:
- कानून प्रवर्तन एजेंसियों को पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षण और आधुनिक उपकरण प्रदान करके NDPS अधिनियम और PITNDPS अधिनियम के कार्यान्वयन को मज़बूत करना।
- एजेंसियों के बीच समन्वय में सुधार के साथ-साथ मादक पदार्थों की तस्करी को प्रभावी ढंग से रोकने के लिये अधिक सख्त निगरानी एवं खुफिया जानकारी एकत्र करने हेतु तंत्र का गठन करना।
- निवारक उपायों में वृद्धि:
- नशीली दवाओं के व्यसनी लोगों हेतु किफायती उपचार और पुनर्वास सुविधाओं की उपलब्धता तथा नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खतरों एवं मदद के महत्त्व के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियानों को प्रोत्साहन।
- आपूर्ति में कमी को संबोधित करना:
- सीमा नियंत्रण में सुधार, उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि करके दवा आपूर्ति शृंखलाओं को रोकने पर ध्यान केंद्रित करना।
- अवैध कृषि में लगे किसानों हेतु वैकल्पिक आजीविका कार्यक्रमों के माध्यम से दवा उत्पादन को कम करना।
- झारखंड राज्य ने अवैध रूप से अफीम उत्पादक किसानों हेतु एक वैकल्पिक आजीविका योजना शुरू की है और यह अवैध फसलों को नष्ट करने के लिये नकद प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत बनाना:
- नशीले पदार्थों की तस्करी पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाने हेतु पड़ोसी देशों, विशेष रूप से गोल्डन क्रीसेंट और गोल्डन ट्रायंगल में सहयोग को मज़बूत करना।
- सूचना और सर्वोत्तम तरीकों के आदान-प्रदान हेतु UNODC तथा इंटरपोल जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ साझेदारी को मज़बूत करना।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- बिग डेटा और एनालिटिक्स एवं AI ड्रग ट्रैफिकिंग नेटवर्क की पहचान तथा ट्रैक करने, ड्रग मूवमेंट की निगरानी करने तथा ड्रग के दुरुपयोग व तस्करी से संबंधित गतिविधियों की पहचान करने पर ज़ोर देना।
- ड्रोन एवं उपग्रह द्वारा अवैध नशीली दवाओं की खेती की निगरानी और पता लगाने एवं संदिग्ध क्षेत्रों की उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियाँ प्राप्त करना।
- ऑनलाइन रिपोर्टिंग प्रणाली विकसित करना जहाँ नागरिक नशीली दवाओं के दुरुपयोग तथा तस्करी की गतिविधियों की रिपोर्ट कर सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. संसार के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उगाने वाले राज्यों से भारत की निकटता ने भारत की आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोध उपाय किये जाने चाहिये? (मुख्य परीक्षा, 2018) प्रश्न. एक सीमांत राज्य के एक जिले में स्वापकों (नशीले पदार्थों) का खतरा अनियंत्रित हो गया है। इसके परिणामस्वरूप काले धन का प्रचलन, पोस्त की खेती में वृद्धि, हथियारों की तस्करी व्यापक हो गई है तथा शिक्षा व्यवस्था भी ठप हो गई है। संपूर्ण व्यवस्था एक प्रकार से समाप्ति के कगार पर है। इन अपुष्ट खबरों से कि स्थानीय राजनेताओं के साथ-साथ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी ड्रग माफिया को गुप्त संरक्षण प्रदान कर रहे हैं, स्थिति और भी बदतर हो गई है। ऐसे समय में परिस्थितियों को सामान्य करने के लिये एक महिला पुलिस अधिकारी, जो ऐसी परिस्थिति को सामान्य करने के लिये जानी जाती है, को पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त किया जाता है। यदि आप वही पुलिस अधिकारी हैं, तो संकट के विभिन्न आयामों को चिह्नित कीजिये। अपनी समझ के आधार पर संकट का सामना करने के उपाय सुझाइये। (2019) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
दीमा हसाओ शांति समझौता: असम
प्रिलिम्स के लिये:दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी, NCHAC, छठी अनुसूची, अहोम नियम मेन्स के लिये:दीमा हसाओ शांति समझौता, दिमासा आदिवासी एवं छठी अनुसूची के तहत उनका संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी (DNLA) ने असम सरकार एवं केंद्र सरकार के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- सितंबर 2021 में DNLA ने मुख्यमंत्री की अपील के पश्चात् छह माह की अवधि के लिये एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की थी तभी से संघर्ष-विराम में वृद्धि हुई है।
समझौते का उद्देश्य:
- एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए हैं जो DNLA को अपने हथियार डालने और भारत के संविधान का पालन करने के लिये मज़बूर करता है।
- इससे समूह अपने सशस्त्र संगठन को भंग कर देगा, DNLA कैडरों के कब्ज़े वाले सभी शिविरों को खाली कर देगा और मुख्यधारा में शामिल हो जाएगा।
- कुल 179 DNLA कैडर अपने हथियार और गोला-बारूद सौंपेंगे।
- दिमासा आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिये केंद्र और राज्य सरकार प्रत्येक को 500 करोड़ रुपए प्रदान करेगी।
- दिमासा कल्याण परिषद की स्थापना असम सरकार द्वारा राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु एक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषायी पहचान की रक्षा, संरक्षण तथा बढ़ावा देने के लिये की जाएगी और यह उत्तरी कछार हिल्स स्वायत्त परिषद (NCHAC) के अधिकार क्षेत्र के बाहर रहने वाले दिमासा लोगों का त्वरित तथा केंद्रित विकास सुनिश्चित करेगा।
- NCHAC का संचालन दिमासा जनजातीय क्षेत्र में किया जाता है।
- समझौता ज्ञापन भारत के संविधान की छठी अनुसूची के अनुच्छेद 14 के तहत एक आयोग की नियुक्ति का भी प्रावधान करता है, जो परिषद के साथ NCHAC से जुड़े अतिरिक्त गाँवों को शामिल करने की मांग की जाँच करेगा।
- अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची स्वायत्त प्रशासनिक विभाग, जिनके पास राज्य के भीतर कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता है, स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADC) के गठन का प्रावधान करती है।
दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी (DNLA):
- यह असम के दीमा हसाओ और कार्बी आंगलोंग ज़िलों में सक्रिय एक विद्रोही समूह है।
- DNLA की स्थापना अप्रैल 2019 में दिमासा आदिवासियों के लिये एक संप्रभु क्षेत्र की मांग करते हुए की गई थी और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक सशस्त्र विद्रोह शुरू किया था।
- समूह का उद्देश्य "दिमासा के बीच भाईचारे की भावना विकसित करना और दिमासा साम्राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये दिमासा समाज के बीच विश्वास का पुनर्निर्माण करना" है।
- यह समूह ज़बरन वसूली और कराधान पर चलता है। यह नगालैंड के NSCN (IM) से समर्थन और जीविका प्राप्त करता है।
दिमासा:
- परिचय:
- दिमासा (या दिमासा-कछारी) असम के सबसे पहले ज्ञात शासक और मूलवासी हैं तथा अब मध्य एवं दक्षिणी असम के दीमा हसाओ, कार्बी आंगलोंग, कछार, होजई एवं नागाँव ज़िलों के साथ-साथ नगालैंड के कुछ हिस्सों में रहते हैं।
- कुछ इतिहासकार उन्हें "आदिवासी" या "ब्रह्मपुत्र घाटी के सबसे पहले ज्ञात निवासी" के रूप में वर्णित करते हैं।
- अहोम शासन से पहले दिमासा राजाओं- जिन्हें प्राचीन कामरूप साम्राज्य के शासकों का वंशज माना जाता था, ने 13वीं और 16वीं शताब्दी के बीच ब्रह्मपुत्र के दक्षिण तट के साथ असम के बड़े हिस्सों पर शासन किया था।
- उनकी सबसे पुरानी ऐतिहासिक रूप से ज्ञात राजधानी दीमापुर (अब नगालैंड में) थी और बाद में उत्तरी कछार हिल्स में मैबांग थी।
- यह एक शक्तिशाली राज्य था और 16वीं शताब्दी में इसने ब्रह्मपुत्र के लगभग पूरे दक्षिणी क्षेत्र को अपने नियंत्रण में रखा था।
- दिमासा (या दिमासा-कछारी) असम के सबसे पहले ज्ञात शासक और मूलवासी हैं तथा अब मध्य एवं दक्षिणी असम के दीमा हसाओ, कार्बी आंगलोंग, कछार, होजई एवं नागाँव ज़िलों के साथ-साथ नगालैंड के कुछ हिस्सों में रहते हैं।
- सुरक्षा:
- दीमा हसाओ ज़िला और कार्बी आंगलोंग दोनों को भारत के संविधान द्वारा दी गई छठी अनुसूची का दर्जा प्राप्त है।
- वे क्रमशः उत्तरी कछार पर्वतीय स्वायत्त परिषद (NCHAC) और कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) द्वारा चलाए जाते हैं।
- स्वायत्त परिषद एक शक्तिशाली निकाय है और पुलिस एवं कानून व्यवस्था को छोड़कर सरकार के लगभग सभी विभाग इसके नियंत्रण में हैं जो असम सरकार के अधीन हैं।
दीमा हसाओ क्षेत्र में उग्रवाद का इतिहास:
- उग्रवाद:
- असम के पहाड़ी ज़िलों, कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ में कार्बी एवं दिमासा समूहों के विद्रोह का एक लंबा इतिहास रहा है, जो वर्ष 1990 के दशक के मध्य में चरम पर था, यह मुख्य रूप से अलग राज्य की मांग पर आधारित था।
- दीमा हसाओ क्षेत्र में अविभाजित असम के अन्य आदिवासी वर्गों के साथ 1960 के दशक में अलग राज्य की मांग शुरू हुई।
- जब मेघालय जैसे नए राज्यों की स्थापना की गई थी, कार्बी आंगलोंग और उत्तरी कछार सरकार द्वारा अधिक शक्ति प्रदान किये जाने के वादे की वजह से असम के साथ बने रहे, जिसमें अनुच्छेद 244 (A) को लागू करना शामिल था। यह अनुच्छेद कुछ जनजातीय क्षेत्रों में असम के भीतर एक 'स्वायत्त राज्य' की अनुमति देता है। इसे कभी लागू नहीं किया गया।
- दिमासा राष्ट्रीय सुरक्षा बल:
- 'दिमाराजी' के रूप में एक पूर्ण राज्य की मांग में काफी वृद्धि देखने के उपरांत वर्ष 1991 में उग्रवादी दिमासा राष्ट्रीय सुरक्षा बल (DNSF) का गठन किया गया।
- मांग करने वाले समूह ने वर्ष 1995 में आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन इसके कमांडर-इन-चीफ (जेवेल गोरलोसा) ने इससे अलग दीमा हलाम दाओगाह (DHD) का गठन किया।
- वर्ष 2003 में DHD ने सरकार के साथ बातचीत शुरू की, लेकिन इसके कमांडर-इन-चीफ ने ब्लैक विडो (Black Widow) नामक एक सशस्त्र समूह के साथ मिलकर नए DHD-J (जेवेल गोरलोसा) का गठन किया।
- यह समूह हिंसक था और इन्हें काफी समर्थन भी प्राप्त था। वर्ष 2012 इस समूह ने संघर्ष विराम पर हस्ताक्षर किये।
- 'दिमाराजी' के रूप में एक पूर्ण राज्य की मांग में काफी वृद्धि देखने के उपरांत वर्ष 1991 में उग्रवादी दिमासा राष्ट्रीय सुरक्षा बल (DNSF) का गठन किया गया।
पूर्वोत्तर भारत के अन्य शांति समझौते:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:मेन्स:प्रश्न. भारत का उत्तरी-पूर्वी प्रदेश बहुत लंबे समय से विद्रोह ग्रसित है। इस प्रदेश में सशस्त्र विद्रोह की अतिजीविता के मुख्य कारणों का विश्लेषण कीजिये। (2017) |
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
नेट ज़ीरो इनोवेशन वर्चुअल सेंटर
प्रिलिम्स के लिये:नेट ज़ीरो इनोवेशन वर्चुअल सेंटर, भारत-यूके विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग, भारत का नेट ज़ीरो लक्ष्य। मेंस के लिये:भारत-यूके संबंध, भारत का नेट ज़ीरो/शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत-यूके विज्ञान और नवाचार परिषद की बैठक में, भारत और यूनाइटेड किंगडम ने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय लक्ष्यों को संबोधित करने के उद्देश्य से 'नेट ज़ीरो' इनोवेशन वर्चुअल सेंटर की स्थापना की घोषणा की।
नेट ज़ीरो इनोवेशन वर्चुअल सेंटर क्या है?
- यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने के लिये भारत और यूके की एक संयुक्त पहल है।
- यह दोनों देशों के हितधारकों को एक साथ लाने के लिये एक फोरम प्रदान करेगा ताकि कुछ फोकस क्षेत्रों जैसे निर्माण प्रक्रिया और परिवहन प्रणालियों के डीकार्बोनाइजेशन तथा नवीकरणीय स्रोत के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन पर काम किया जा सके।
- यह उत्सर्जित और वातावरण से रिमूव किये गए ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को संतुलित करते हुए शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लक्ष्य का समर्थन करेगा।
- यह दोनों देशों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान, नवाचार, अनुसंधान और विकास, क्षमता निर्माण तथा नीतिगत संवाद की सुविधा भी प्रदान करेगा।
बैठक के मुख्य हाइलाइट्स:
- भारत-यूके विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग:
- यूके भारत के दूसरे सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और नवाचार भागीदार के रूप में उभरा है।
- भारत और यूके के बीच संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रम लगभग शून्य से बढ़कर 300-400 मिलियन पाउंड के करीब पहुँच गया है।
- भारत की आर्थिक और तकनीकी क्षमताएंँ:
- भारत अपनी असाधारण तकनीकी और नवीन क्षमताओं से संचालित एक आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है, विशेष रूप से कोविड वैक्सीन की सफलता के बाद।
- ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा केंद्रीय स्तंभ है जहाँ भारत सौर गठबंधन और स्वच्छ ऊर्जा मिशन जैसी विभिन्न पहलों के माध्यम से पहले ही नेतृत्व कर चुका है।
- भारत कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये पर्यावरण प्रदूषण और तकनीकी-आधारित मार्गों के समाधान तथा निगरानी समाधान विकसित करने की दिशा में निरंतर प्रयासों के माध्यम से महत्वाकांक्षी शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- उद्योग-अकादमिक सहयोग:
- यह सहयोग दोनों देशों के आर्थिक विकास के लिये एक साथ नए उत्पादों/प्रक्रियाओं को विकसित करने के लिये भारतीय और यूके शिक्षा तथा उद्योग के लिये एक अवसर प्रदान करेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा अभिसमय (UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। भारत द्वारा इस सम्मेलन में की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (2021) |
स्रोत: पीआईबी
शासन व्यवस्था
CGTMSE योजना
प्रिलिम्स के लिये:CGTMSE योजना, MSMEs, SIDBI, MSME क्रेडिट पहल। मेन्स के लिये:MSME - सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, उनको बढ़ावा देने हेतु पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में के केंद्रीय MSME मंत्री ने सूक्ष्म और लघु उद्यमों योजना हेतु संशोधित क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises- CGTMSE) लॉन्च किया।
CGTMSE योजना:
- परिचय:
- यह सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र को संपार्श्विक-मुक्त ऋण उपलब्ध कराने हेतु भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 में शुरू किया गया था।
- दायरा:
- विद्यमान और नए दोनों उद्यम इस योजना के तहत कवर किये जाने के पात्र हैं।
- वित्तीयन:
- CGTMSE में वित्तीयन भारत सरकार और सिडबी द्वारा क्रमशः 4:1 के अनुपात में किया जाता है।
- MSME मंत्रालय और भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) ने CGTMSE योजना को लागू करने के लिये माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (CGTMSE) हेतु क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट नाम से एक ट्रस्ट की स्थापना की।
- MSME के लिये वित्तीय समावेशन:
- CGTMSE के पुनरुद्धार की शुरुआत करते हुए, यह घोषणा की गई थी कि CGTMSE वित्तीय समावेशन केंद्र स्थापित करने के लिये राष्ट्रीय MSME संस्थान, हैदराबाद के साथ सहयोग करेगा।
- केंद्र से MSME को वित्तीय साक्षरता और क्रेडिट परामर्श प्रदान करने की उम्मीद है, जिससे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों को CGTMSE योजना के लाभों का बेहतर उपयोग करने में मदद मिलेगी।
नोट: SIDBI की स्थापना अप्रैल 1990 में भारतीय संसद के एक अधिनियम के तहत की गई थी, जो सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र के संवर्धन, वित्तपोषण और विकास के साथ-साथ समान गतिविधियों में संलग्न संस्थानों के कार्यों के समन्वय के लिये प्रमुख वित्तीय संस्थान के रूप में कार्य करता है।
संशोधित CGTMSE:
- बड़े बदलाव:
- वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में CGTMSE को 9000 करोड़ की अतिरिक्त सुरक्षा निधि सहायता प्रदान की गयी है, ताकि सूक्ष्म और लघु उद्यमों को अतिरिक्त 2,00,000 करोड़ रुपए की गारंटी प्रदान करने के लिये इस योजना में सुधार लाया जा सके।
- संशोधित संस्करण में किये गए अन्य प्रमुख परिवर्तनों में शामिल हैं:
- ₹1 करोड़ तक के ऋण के लिये गारंटीशुदा शुल्क में 50% की कमी।
- गारंटी की सीमा को ₹2 करोड़ से बढ़ाकर ₹5 करोड़ करना।
- न्यायालयी कार्यवाही के बाहर दावा निपटान की सीमा पिछली सीमा 5 लाख रुपए से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दी गई है।
- महत्त्व :
- यह न्यूनतम गारंटीशुदा शुल्क MSMEs के लिये ऋण प्राप्त करना आसान बना देगा।
- गारंटी के लिये बढ़ी हुई सीमा और दावा, निपटान के लिये उधारकर्त्ता द्वारा किसी भी डिफ़ॉल्ट के मामले में उधारदाताओं को बेहतर सुरक्षा प्रदान करेगी।
- इस योजना से MSE के लिये ऋण प्रवाह को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे देश में रोज़गार के अधिक अवसर पैदा होंगे।
- ये संशोधन विशेष रूप से कोविड-19 महामारी और व्यवसायों पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए MSME तक पहुँच, सामर्थ्य एवं ऋण की उपलब्धता में सुधार की दृष्टि से किये गए हैं।
MSME क्रेडिट से संबंधित अन्य पहलें:
- प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह नए सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना तथा देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना है।
- पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिये निधि की योजना (SFURTI): इसका उद्देश्य कारीगरों और पारंपरिक उद्योगों को समूहों में व्यवस्थित करना तथा इस प्रकार उन्हें वर्तमान बाज़ार परिदृश्य में प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- MSME को वृद्धिशील ऋण प्रदान करने के लिये ब्याज सबवेंशन योजना: यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू की गई थी, जिसमें सभी कानूनी MSME को उनकी वैधता की अवधि के दौरान उनके बकाया, वर्तमान/वृद्धिशील सावधि ऋण/कार्यशील पूंजी पर 2% तक की राहत प्रदान की जाती है।
- ब्याज सब्सिडी पात्रता प्रमाण पत्र (ISEC): योजना के तहत खादी और पॉलीवस्त्र उत्पादक संस्थान बैंकिंग संस्थानों से पूंजीगत धन प्राप्त करते हैं।
- MSME लोन इन 59 मिनट्स: 5 करोड़ रुपए तक के त्वरित एवं परेशानी मुक्त ऋण के लिये ऑनलाइन पोर्टल। यह डेटा का विश्लेषण करने और 59 मिनट के भीतर सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान करने के लिये उन्नत एल्गोरिदम का उपयोग करता है।
- MSMEs के लिये MUDRA ऋण योजनाएँ: विनिर्माण, व्यापार और सेवा क्षेत्रों में संलग्न सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को 10 लाख रुपए तक का ऋण (कम ब्याज दरों पर संपार्श्विक-मुक्त ऋण) प्रदान किया जाता है।
- राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (NSIC): MSME को प्रतिस्पर्द्धी ब्याज दरों और न्यूनतम दस्तावेज़ की प्रस्तुति पर भी विभिन्न बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है।
- क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी और टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन स्कीम (CLCS-TUS):
- MSME को उनकी तकनीक के उन्नयन और नए संयंत्र तथा मशीनरी स्थापित करने के लिये 15% (15 लाख रुपए तक) की पूंजीगत सब्सिडी प्रदान करता है।
- 50 से अधिक उप-क्षेत्रों को कवर करता है।
- इसका उदेश्य MSME की गुणवत्ता, उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करना है।