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भारतीय राजनीति

बोडो समझौता: संभावित समस्याएँ

  • 13 Mar 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

बोडो समझौता, कामतपुर राज्य, BTAD की जनसांख्यिकी संरचना

मेन्स के लिये:

बोडो समझौते की व्यावहारिकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने बोडो समूहों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, परंतु ऐसा माना जा रहा है कि यह समझौता बोडो आंदोलन को समाप्त करने में कारगर साबित नहीं हो पाएगा।

मुख्य बिंदु:

  • भारतीय ‘संविधान की छठी अनुसूची’ को ‘सत्ता में साझेदारी एवं बेहतर शासन के प्रयोग के लिये संविधान में शामिल किया गया था तथा ऐसी कल्पना की गई थी कि यह प्रावधान पूर्वोत्तर राज्यों के जातीय-राष्ट्रवादी पहचान संबंधी सवालों का समाधान करने में रामबाण साबित होगा।
  • परंतु हाल ही में हस्ताक्षरित ‘तीसरे बोडो समझौते’ के प्रति गुस्से एवं उत्साह वाली मिलीजुली प्रतिक्रिया एक साथ दिखाई दी है, ऐसे में इस समझौते की व्यावहारिकता को लेकर प्रश्न खड़े किये जा रहे हैं।

बोडो समझौता:

  • ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (All Bodo Students’ Union- ABSU), यूनाइटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (United Bodo People’s Organisation- UBPO) तथा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (National Democratic Front of Boroland- NDFB) संगठन के सभी चार गुटों के बीच दिल्ली और दिसपुर में बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
  • इस समझौते के अनुसार, बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (Bodoland Territorial Council- BTC) को छठी अनुसूची के तहत अधिक विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान की जाएगी।
  • इस समझौते में बोडोलैंड राज्य की मांग को स्वीकार नहीं किया गया है लेकिन BTC क्षेत्र का विस्तार किया गया है तथा इसमें बोडो वर्चस्व वाले गाँव जो वर्तमान में BTC क्षेत्र से बाहर हैं, उन्हें BTC क्षेत्र में शामिल किया जाएगा।
  • बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र ज़िला (Bodo Territorial Area District- BTAD) जो BTC द्वारा शासित स्वायत्त क्षेत्र है, संवर्द्धित क्षेत्र के सीमांकन के बाद इसे बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (Bodoland Territorial Region- BTR) के रूप में जाना जाएगा।

पूर्ववर्ती बोडो समझौता:

  • पूर्ववर्ती बोडो समझौते पर 10 फरवरी, 2003 को विद्रोही संगठन ‘बोडो लिबरेशन टाइगर्स’ (Bodo Liberation Tigers- BLT) द्वारा दिल्ली और दिसपुर में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें छठी अनुसूची के तहत क्षेत्रीय स्वायत्तता के एक नवीन प्रयोग के रूप में BTC का निर्माण किया गया था।
  • हालाँकि BTC की विधायी शक्ति वास्तविकता में कम हो गई क्योंकि राज्यपाल ने BTC विधानसभा द्वारा पारित किसी भी विधान को स्वीकृति प्रदान नहीं की।

कमियाँ:

‘कामतपुर ’ (Kamatapur) राज्य की मांग:

  • बोडो समूहों ने राज्य में जारी आंदोलन को रोक दिया है, लेकिन कूच-राजबंशी (Koch-Rajbongshi) समुदाय के संगठन ने ‘कामतपुर ’ (Kamatapur) राज्य की मांग को लेकर बोडो समझौते के खिलाफ आंदोलन को तेज़ कर दिया है।
  • कामतपुर राज्य की मांग का क्षेत्र वर्तमान BTAD, प्रस्तावित BTR तथा बोडोलैंड राज्य के मांग क्षेत्र की सीमाओं का अतिव्यापन करता है।
  • इस नृजातीय-केंद्रित शक्ति साझाकरण मॉडल (Ethno-Centric Power Sharing Model) में अनेक दोष उत्पन्न होने की संभावना है क्योंकि केंद्र सरकार ने आदिवासियों के साथ-साथ गैर-आदिवासियों को भी एसटी का दर्जा देने की मांग को स्वीकार किया है। ऐसे में BTC में आरक्षण सिर्फ बोडो समुदाय को प्रदान किया जाएगा या इसमें अन्य समूह भी शामिल किये जाएंगे, नए समझौते में ऐसे महत्त्वपूर्ण सवालों का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है।

कामतपुर (Kamatapur):

Kamtapur

  • ऑल कूच-राजबंशी स्टूडेंट यूनियन’ ( All Koch-Rajbongshi Students' Union- AKRSU) कामतपुर राज्य निर्माण तथा इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रही हैं।
  • कूच-राजबंशी समुदाय की आबादी असम के 15 एवं पश्चिम बंगाल के 6 ज़िलों में फैली है।
  • कूच-राजबंशी समुदाय की अलग राज्य की मांग कूच बिहार साम्राज्य की देन है। वर्ष 1949 में कूच बिहार को भारत में शामिल किया गया था।

BTAD की जनसांख्यिकी संरचना:

कुल जनसंख्या 31,51,047
ST समुदाय 33.50%
ST में बोडो समुदाय 90%
  • ‘छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त ज़िला परिषदों’ में BTAD के अलावा अन्य सभी 9 परिषदों में ST समुदाय बहुमत में हैं। BTAD की ऐसी जनसांख्यिकीय संरचना के कारण राजनेता गैर-बोडो समुदायों की राजनीतिक लामबंदी कर सकते हैं तथा इस बात को प्रचारित कर सकते हैं कि BTC एक दोषपूर्ण मॉडल है और यह अल्पसंख्यकों को बहुमत पर शासन करने की अनुमति देता है।

आयोग की नियुक्ति:

  • नए समझौते के अनुसार संस्पर्शी (Contiguous: अविछिन्न रूप से) BTAD के निर्माण के लिये असम सरकार द्वारा एक आयोग की नियुक्ति की जाएगी ताकि ऐसे गाँव जहाँ बोडो जनसंख्या बहुमत में हो उनको BTAD में शामिल किया जा सके।
  • हालाँकि BTAD के मुख्य क्षेत्र में बहुसंख्यक गैर-एसटी आबादी वाले कई गाँव, जिन्हें अस्थायी रूप से शामिल किया गया था, आगे भी BTAD में शामिल रहेंगे।

संवैधानिक प्रावधान:

  • छठी अनुसूची के अनुसार, “अगर एक स्वायत्त ज़िले में विभिन्न अनुसूचित जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उन क्षेत्रों को स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।”
  • हालाँकि यह प्रावधान BTAD के संबंध में लागू न हो, यह सुनिश्चित करने के लिये कि पिछले बोडो समझौते के बाद संविधान में संशोधन किये गए थे।

क्षेत्रीय स्वायत्त परिषद:

  • तत्कालीन पावी-लखेर (Pawi-Lakher) क्षेत्रीय परिषद देश की एकमात्र क्षेत्रीय स्वायत्त परिषद थी।
  • 1972 में पावी-लखेर क्षेत्रीय परिषद को तीन क्षेत्रीय स्वायत्त परिषदों (चकमा स्वायत्त ज़िला परिषद, लाई स्वायत्त ज़िला परिषद, मारा स्वायत्त ज़िला परिषद)में विभाजित किया गया। इन तीनों परिषदों को बाद में मिज़ोरम राज्य में छठी अनुसूची के तहत पूर्ण स्वायत्त ज़िला परिषद का दर्जा दिया गया।

राजनीतिक लामबंदी :

  • बोडो समुदाय का उत्साह समझौते में NDFB के सभी चार गुटों को शामिल करने के साथ ही समाप्त हो गया। ये गुट दो खेमों में बँटे हैं: पहला, असम में सत्तारुढ़ भाजपा सरकार का एक सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (Bodoland People’s Front- BPF) तथा दूसरा ABSU समर्थित यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (United Peoples Party Liberal- UPPL)।
  • नया समझौता BTC चुनावों के दौरान BTAD में राजनीतिक लामबंदी को बढ़ाएगा।

सरकार और अन्य एजेंसियों को गैर-अनुसूचित क्षेत्र की आबादी का विश्वास जीतने एवं उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही राजनीतिक दलों को लोकलुभावन राजनीति से ऊपर उठकर कार्य करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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