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आंतरिक सुरक्षा

आदिवासी समूह समझौता

  • 16 Sep 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पूर्वोत्तर भारत, असम के जनजातीय समूह, पूर्वोत्तर भारत में शांति के लिये समझौते

मेन्स के लिये:

शांति बनाए रखने में सरकारी हस्तक्षेप, पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार, असम सरकार और आठ सशस्त्र आदिवासी समूहों के प्रतिनिधियों ने एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • असम में आदिवासियों और चाय बागान श्रमिकों के दशकों पुराने संकट को समाप्त करने के लिये इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।

Myanmar

आदिवासी समूह समझौता:

  • परिचय:
    • इस त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर के साथ ही असम के आदिवासी समूहों के 1182 कार्यकर्त्ता आत्मसर्पण कर मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं।
  • उद्देश्य:
    • समझौते का उद्देश्य समूहों की सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी और समुदाय-आधारित पहचान की रक्षा करना तथा उसे मज़बूत करना है।
    • इसका उद्देश्य आदिवासी समूहों की राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक आकांक्षाओं को पूरा करना भी है।
    • इसका उद्देश्य पूरे राज्य में आदिवासी गाँवों/क्षेत्रों के साथ-साथ चाय बागानों का तीव्र एवं केंद्रित विकास सुनिश्चित करना है।
  • समझौते के प्रावधान:
    • समझौते में चाय बागानों का त्वरित और केंद्रित विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक आदिवासी कल्याण एवं विकास परिषद की स्थापना करने का भी प्रावधान किया गया है।
    • समझौते में सशस्त्र कैडरों के पुनर्वास व पुनर्स्थापन तथा चाय बागान श्रमिकों के कल्याण के उपाय करने का भी प्रावधान है।
    • आदिवासी आबादी वाले गाँवों/क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये पाँच साल की अवधि में 1000 करोड़ रुपए का विशेष विकास पैकेज प्रदान किया जाएगा।
  • उग्रवाद संबंधी आँकड़े:
    • वर्ष 2014 से अब तक लगभग 8,000 उग्रवादी हथियार डालकर समाज की मुख्यधारा में शामिल हुए हैं।
    • पिछले दो दशकों में सबसे कम उग्रवाद की घटनाएँ वर्ष 2020 में दर्ज हुई हैं।
    • वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2021 में उग्रवाद की घटनाओं में 74 प्रतिशत की कमी आई है।
      • इसी अवधि में सुरक्षा बलों की मृत्यु के आंकड़े में 60 प्रतिशत और आम नागरिकों की मृत्यु में 89 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

पूर्वोत्तर भारत में शांति के लिये सरकार के प्रयास:

  • समझौते:
    • NLFT समझौता 2019:
      • ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) को वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है और यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपने शिविरों के माध्यम से हिंसा फैलाने के लिये उत्तरदायी है।
      • समझौता 2019 के परिणामस्वरूप 44 हथियारों के साथ 88 कैडरों का आत्मसमर्पण कराया गया।
    • ब्रू-रियांग (BRU-REANG):
      • ब्रू या रियांग पूर्वोत्तर भारत का एक स्थानीय समुदाय है, जो ज़्यादातर त्रिपुरा, मिज़ोरम और असम में रहता है। त्रिपुरा में उन्हें विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है।
      • 23 साल पुराने ब्रू-रियांग शरणार्थी संकट को हल करने के लिये 16 जनवरी, 2020 को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके द्वारा 37,000 से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को त्रिपुरा में बसाया जा रहा है।
    • बोडो समझौता 2020:
      • असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है।
        • वे वर्ष 1967-68 से बोडो राज्य की मांग कर रहे हैं।
      • असम में पाँच दशक पुराने बोडो मुद्दे को हल करने के लिये 27 जनवरी, 2020 को बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके परिणामस्वरूप 30 जनवरी, 2020 को गुवाहाटी में भारी मात्रा में हथियारों और गोला-बारूद के साथ 1615 समूहों ने आत्मसमर्पण किया।
    • कार्बी आंगलोंग समझौता 2021:
      • असम के कार्बी क्षेत्रों में लंबे समय से चल रहे विवाद को हल करने के लिये इस पर हस्ताक्षर किये गए थे जिसमें 1000 से अधिक सशस्त्र कैडरों ने हिंसा को त्याग दिया और समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।
    • असम-मेघालय अंतर-राज्य सीमा समझौता 2022 (AMISB):
      • असम और मेघालय राज्यों के बीच अंतर-राज्यीय सीमा विवाद के कुल 12 क्षेत्रों में से 6 पर विवाद को निपटाने के लिये 29 मार्च, 2022 को AMISB समझौते 2022 पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • AFSPA की आंशिक वापसी:
    • भारत सरकार ने अप्रैल 2022 में तीन पूर्वोत्तर राज्यों असम, नगालैंड और मणिपुर से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA), 1958 को आंशिक रूप से वापस ले लिया।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रश्न. मानवाधिकार कार्यकर्त्ता हमेशा ही इस तथ्य को उजागर करते हैं कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSPA) एक सख्त अधिनियम है जिसके कारण सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकारों के हनन के मामले सामने आते रहते हैं। ये कार्यकर्त्ता अफस्पा (AFSPA) के किस भाग का विरोध कर रहे हैं? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रखे गए दृष्टिकोण के संदर्भ में इसकी आवश्यकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015)

स्रोत: पी.आई.बी.

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