डेली न्यूज़ (28 Oct, 2022)



वित्तीय कार्रवाई कार्य बल

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बच्चों पर हीटवेव का प्रभाव: UNICEF

प्रिलिम्स के लिये:

यूनिसेफ, COP-27, हीटवेव्स, जलवायु परिवर्तन, UNFCCC

मेन्स के लिये:

बच्चों पर हीटवेव का प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में UNICEF (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष) ने ‘कोल्डेस्ट ईयर ऑफ द रेस्ट ऑफ देयर लाइव्स- प्रोटेक्टिंग चिल्ड्रेन फ्रॉम द एस्केलेटिंग इम्पैक्ट ऑफ हीटवेव’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2050 तक दुनिया भर में लगभग सभी बच्चे बार-बार अधिक गंभीर हीटवेव से प्रभावित होंगे।

  • UNICEF संयुक्त राष्ट्र (यूएन) का एक विशेष कार्यक्रम है जो बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और कल्याण में सुधार के लिये किये जाने वाले राष्ट्रीय प्रयासों की सहायता हेतु समर्पित है। 

यूनिसेफ की रिपोर्ट के निष्कर्ष: 

  • वर्तमान परिदृश्य: 
    • लगभग 559 मिलियन बच्चे उच्च हीटवेव आवृत्ति के दायरे में हैं और लगभग 624 मिलियन बच्चे अन्य तीन उच्च हीट उपागमों- उच्च हीटवेव अवधि, उच्च हीटवेव गंभीरता एवं अत्यधिक उच्च तापमान में से एक के दायरे में हैं।
    • वर्ष 2020 के अनुसार, चार में से एक बच्चा ऐसे क्षेत्रों में रहता है जहाँ औसत हीटवेव 4.7 दिन या उससे अधिक समय तक रहती है।  
      • यह प्रतिशत वर्ष 2050 तक कम उत्सर्जन वाले परिदृश्य में भी चार में से तीन बच्चों तक विस्तारित हो जाएगा।
      • दक्षिणी, पश्चिमी और दक्षिण-पूर्वी एशिया, पूर्वी एवं दक्षिणी यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका के बच्चे लंबी अवधि की हीटवेव का सामना करते हैं।
  • भविष्य के प्रभाव:
    • उच्च हीटवेव के संपर्क में आने वाले बच्चों की संख्या वर्ष 2050 तक चार गुना बढ़कर दो बिलियन से अधिक हो जाएगी, जो वर्ष 2020 की तुलना में 24% अधिक है। 
    •  यह लगभग 1.5 बिलियन बच्चों की वृद्धि के बराबर है। 
    • वर्ष 2050 में अनुमानित 1.7 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के साथ आंशिक रुप से पृथ्वी पर लगभग हर बच्चा कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन परिदृश्य के तहत भी गंभीर हीटवेव का सामना करेगा।
    • केवल दक्षिणी अमेरिका, मध्य अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया/Australasia और एशिया के कुछ क्षेत्र, जो लंबी अवधि की हीटवेव का सामना नहीं करते हैं, 2.4 डिग्री वार्मिंग पर 94% बच्चे इससे प्रभावित होंगे  
  • बच्चों की उच्च संवेदनशीलता:
    • लंबी अवधि वाली हीटवेव बच्चों के लिये अधिक जोखिम पैदा करती हैं क्योंकि बच्चे खेल और अन्य गतिविधियों में वयस्कों की तुलना में अधिक समय बाहर बिताते हैं जो उन्हें गर्मी से होने वाले जोखिमों में डालते हैं।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: 
    • बच्चों और किशोरों में पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) तथा अवसाद जैसे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों में वृद्धि, उच्च तापमान से संबंधित हैं।
    • अत्यधिक गर्मी के कारण मुख्य रूप से बच्चों की शिक्षा और भविष्य की आजीविका प्रभावित होगी।
    • स्वास्थ्य संबंधी हीटवेव जोखिमों में शामिल हैं- हीट स्ट्रोक, हीट स्ट्रेस, एलर्जी, z, अस्थमा, मच्छर जनित रोग, हृदय रोग, अल्पपोषण और दस्त की शिकायत।
  • बच्चों की सुरक्षा के लिये खतरा:
    • जैसे-जैसे चरागाहों और घरेलू आय में कमी आती जाती है, समुदायों को भोजन एवं पानी की आपूर्ति की तलाश में प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये मजबूर होना पड़ता है। प्रवास, विस्थापन तथा संघर्ष के परिणामस्वरूप बच्चों को शारीरिक नुकसान व अनेक जोखिमों का सामना करना पड़ता है।

नोट:  

सिफारिशें

  • यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कमज़ोर लोगों के पास उनकी सुरक्षा के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सेवाओं को अपनाने हेतु संसाधन हों।
  • यह उचित समय है जब देशों को निम्नलिखित कार्य करना चाहिये:
    • सामाजिक सेवाओं को बढ़ावा देकर बच्चों को जलवायु ज़ोखिम से बचाना
    • बच्चों को जलवायु-परिवर्तित दुनिया में रहने के लिये तैयार करना
    • जलवायु वित्त और संसाधनों में बच्चों एवं युवाओं को प्राथमिकता देना
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके जलवायु आपदा को रोकना
  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की पार्टियों के 27वें सम्मेलन (COP-27) की कार्रवाई और समर्थन पर चर्चा के केंद्र में बच्चों एवं उनके समुदायों के लचीलेपन को रखते हुए नुकसान और क्षति में हुई वृद्धि ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।

अन्य संबंधित सूचकांक: 

  • चिल्ड्रेन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स: यूनिसेफ:
    • यह आवश्यक सेवाओं तक बच्चों की पहुँच के आधार पर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय घटनाओं, जैसे कि चक्रवात एवं हीटवेव आदि के प्रति बच्चों की भेद्यता के आधार पर विभिन्न देशों को रैंक प्रदान करता है।
  • नोट्रे डेम ग्लोबल एडाप्टेशन इनिशिएटिव’ (ND-GAIN) इंडेक्स:
    • यह दुनिया भर के बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दर्शाता है।
    • यह बताता है कि बच्चे भोजन की कमी, बीमारियों और अन्य स्वास्थ्य खतरों जैसे- पानी की कमी या बढ़ता जलस्तर जोखिम या इन कारकों के संयोजन से प्रभावित होंगे।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विकास का अधिकार
  2. अभिव्यक्ति का अधिकार
  3. मनोरंजन का अधिकार

उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का/के अधिकार है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण

प्रिलिम्स के लिये:

RBI, रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण, मौद्रिक नीति 

मेन्स के लिये:

रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण और संबंधित मुद्दे, विकास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के डिप्टी गवर्नर ने रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभों और ज़ोखिमों को रेखांकित किया।

रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण:

  • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सीमा पार लेन-देन में स्थानीय मुद्रा के उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है।
  • इसमें आयात और निर्यात व्यापार के लिये रुपए को बढ़ावा देना और अन्य चालू खाता लेन-देन के साथ-साथ पूंजी खाता लेन-देन में इसके उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना शामिल है।
    • जहाँ तक रुपए का सवाल है, यह पूंजी खाते में आंशिक रूप से जबकि चालू खाते में पूरी तरह से परिवर्तनीय है।
    • चालू और पूंजी खाता भुगतान संतुलन के दो घटक हैं। पूंजी खाते में ऋण एवं निवेश के माध्यम से पूंजी की सीमा पार आवाजाही होती है तथा चालू खाता मुख्य रूप से वस्तुओं व सेवाओं के आयात और निर्यात से संबंधित होता है।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता क्यों?

  • डॉलर का वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार के कारोबार में 88.3% हिस्सा है, इसके बाद यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग का स्थान आता है; चूँकि रुपए की हिस्सेदारी मात्र 1.7% है, अतः यह स्पष्ट है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्रा को बढ़ावा देने के लिये इस दिशा में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • डॉलर, जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा है, 'अत्यधिक' विशेषाधिकारों के अंतर्गत भुगतान संतुलन संकट से प्रतिरक्षा प्रदान करता है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका अपने विदेशी घाटे को अपनी मुद्रा के साथ कवर कर सकता है।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के विभिन्न लाभ:

  • सीमा पार लेनदेन में रुपए का उपयोग भारतीय व्यापार के लिये मुद्रा जोखिम को कम करता है। मुद्रा की अस्थिरता से सुरक्षा न केवल व्यापार की लागत को कम करती है, बल्कि यह व्यापार के बेहतर विकास को भी सक्षम बनाती है, जिससे भारतीय व्यापार के विश्व स्तर पर बढ़ने की संभावना में सुधार होता है।
  • यह विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता को कम करता है। जबकि भंडार विनिमय दर की अस्थिरता को प्रबंधित करने और बाहरी स्थिरता को बनाए रखने में मदद करता है, यह अर्थव्यवस्था पर एक लागत आरोपित करता हैं।
  • विदेशी मुद्रा पर निर्भरता को कम करने से भारत बाहरी जोखिमों के प्रति कम संवेदनशील हो जाता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में मौद्रिक नीति सख्त होने और डॉलर को मज़बूत करने के चरणों के दौरान, घरेलू व्यापार की अत्यधिक विदेशी मुद्रा देनदारियों के परिणामस्वरूप वास्तविक घरेलू अर्थव्यवस्था मज़बूत होती है। मुद्रा जोखिम के कम होने से पूंजी प्रवाह के उत्क्रमण को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। 
  • जैसे-जैसे रुपए का उपयोग महत्त्वपूर्ण होता जाएगा, भारतीय व्यापार की सौदेबाज़ी की शक्ति भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने, भारत के वैश्विक कद और सम्मान को बढ़ाने में मदद करेगी।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण में चुनौतियाँ:

  • भारत एक पूंजी की कमी वाला देश है इसलिये इसके विकास हेतु विदेशी पूंजी की आवश्यकता है। यदि इसके व्यापार का एक बड़ा हिस्सा रुपए में होगा तो अनिवासियों के पास भारतीय रुपए की शेष राशि होगी जिसका उपयोग भारतीय संपत्ति हासिल करने के लिये किया जाएगा। ऐसी वित्तीय आस्तियों की बड़ी होल्डिंग बाहरी जोखिमों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा सकती है, जिसके प्रबंधन के लिये अधिक प्रभावी नीतिगत साधनों की आवश्यकता होगी।
  • बाहरी लेन-देन में परिवर्तनीय मुद्राओं की कम भूमिका से आरक्षित निधि में कमी आ सकती है। हालाँकि भंडार की आवश्यकता भी उस सीमा तक कम हो जाएगी जिस सीमा तक व्यापार घाटे को रुपए में वित्तपोषित किया जाता है।
  • रुपए की अनिवासी होल्डिंग घरेलू वित्तीय बाज़ारों में बाहरी प्रोत्साहन के पास-थ्रू को बढ़ा सकती है, जिससे अस्थिरता बढ़ सकती है। उदाहरण के लिये वैश्विक रूप से कम जोखिम अनिवासियों को अपनी रुपए होल्डिंग्स को परिवर्तित करने और भारत से बाहर भेजने के लिये प्रेरित कर सकता है।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये उठाए गए कदम: 

  • जुलाई 2022 में RBI ने रुपए में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रोत्साहन प्रणाली शुरु की।
  • रुपए में बाह्य वाणिज्यिक उधार की सुविधा प्रदान करना (विशेषकर मसाला बांड के संदर्भ में)।
  • एशियाई क्लीयरिंग यूनियन, सेटलमेंट  के लिये घरेलू मुद्राओं का उपयोग करने की एक योजना के लिये प्रयासरत है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें द्विपक्षीय या व्यापारिक संदर्भ में प्रत्येक देश के आयातकों को घरेलू मुद्रा में भुगतान करने का विकल्प होता है, सभी देशों के इसके पक्ष में होने की संभावना के चलते यह महत्त्वपूर्ण है।

आगे की राह

  • रुपए में भुगतान की हालिया पहल एक अलग वैश्विक आवश्यकता और व्यवस्था से संबंधित है लेकिन वास्तविक अंतर्राष्ट्रीयकरण तथा विदेशों में रुपए के व्यापक उपयोग के लिये केवल रुपए में व्यापार समझौता करना पर्याप्त नहीं होगा। भारत व विदेशी बाजारों दोनों में विभिन्न वित्तीय साधनों के संदर्भ में रुपए के और उदारीकृत भुगतान एवं निपटान को अपनाना अधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये एक कुशल स्वैप बाज़ार और एक मज़बूत विदेशी मुद्रा बाज़ार की भी आवश्यकता हो सकती है।
  • समग्र आर्थिक बुनियादी आयामों में सुधार और वित्तीय क्षेत्र की मज़बूती के साथ सॉवरेन रेटिंग में वृद्धि से भी रुपए की स्वीकार्यता को मज़बूती मिलेगी जिससे इस मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा मिलेगा। 

  विगत वर्षों के प्रश्न  

प्र. रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015)

(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना

उत्तर: (c) 


प्र.भुगतान संतुलन के संदर्भ में निम्नलिखित में से किससे/किनसे चालू खाता बनता है? (2014)

  1. व्यापार संतुलन
  2. विदेशी परिसंपत्तियाँ
  3. अदृश्यों का संतुलन
  4. विशेष आहरण अधिकार

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत में सिक्का प्रणाली का विकास

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में सिक्का प्रणाली, प्राचीन एवं आधुनिक भारत के सिक्के

मेन्स के लिये:

भारत में सिक्का प्रणाली का विकास, प्राचीन एवं आधुनिक भारत की सिक्का प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में दिल्ली एनसीटी की सरकार ने भारत के प्रधानमंत्री से नोटों (मुद्रा) पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश के चित्र छापने का अनुरोध किया।

  • भारत में देवी-देवताओं के चित्रों के साथ सिक्के बनाने की एक लंबी परंपरा है। तीसरी शताब्दी ईस्वी तक शासन करने वाले कुषाणों ने सबसे पहले अपने सिक्कों पर देवी लक्ष्मी के चित्र का उपयोग किया था।

भारत में सिक्कों का इतिहास:

  • पंचमार्क (आहात) सिक्के: 
    • 7वीं-6वीं शताब्दी ईसा पूर्व तथा पहली शताब्दी ईस्वी के बीच जारी 'पंचमार्क' सिक्कों को पहला प्रलेखित सिक्का माना जाता है।
    • इन सिक्कों को उनकी निर्माण तकनीक के कारण 'पंचमार्क' सिक्के कहा जाता है। ये अधिकतर चांदी के हैं एवं इन पर कई प्रतीक बनें हैं, जिनमें से प्रत्येक को एक अलग पंच (ठप्पा) द्वारा बनाया गया था।
    • इन्हें सामान्य तौर पर दो अवधियों में वर्गीकृत किया गया है:  
      • पहली अवधि का श्रेय जनपदों या छोटे स्थानीय राज्यों को दिया जाता है।
      • दूसरी अवधि का श्रेय शाही मौर्य काल को जाता है।
      • इन सिक्कों पर पाए जाने वाले रूपाँकन ज़्यादातर प्रकृति जैसे सूर्य, विभिन्न जानवरों के रूपांकनों, पेड़ों, पहाड़ियों आदि से लिये गए थे।

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  • राजवंशीय सिक्के: 
    • ये सिक्के सबसे प्राचीन हिंद-यूनानी, शक-पहलवों और कुषाणों से संबंधित हैं। ये सिक्के आमतौर पर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व तथा दूसरी शताब्दी ईस्वी के बीच प्रचलन में थे।
    • हिंद-यवन: 
      • हिद-यवन के चांदी के सिक्के हेलेनिस्टिक परंपरा की विशेषता हैं, जिनमें ग्रीक देवी-देवताओं को प्रमुखता से चित्रित किया गया है, इसके अलावा इनमें जारी करने वालों के चित्र भी हैं।  
    • शक: 
      • पश्चिमी क्षत्रपों के शक सिक्के शायद सबसे पुराने दिनांकित सिक्के हैं, जो कि 78 ईस्वी में शुरू हुये शक युग से संबंधित हैं।
      • शक युग से भारतीय गणराज्य का आधिकारिक कैलेंडर प्रेरित है। 
    • कुषाण: 
      • मध्य एशियाई क्षेत्र के कुषाणों ने अपने सिक्के में ओशो (शिव), चंद्र देवता मिरो और बुद्ध को चित्रित किया।
      • सबसे पुराने कुषाण सिक्के का श्रेय आमतौर पर विम कडफिसेस को दिया जाता है।
      • कुषाण सिक्कों में आमतौर पर ग्रीक, मेसोपोटामिया, जोरोस्ट्रियन और भारतीय पौराणिक कथाओं से लिये गए प्रतीकात्मक रूपों को दर्शाया गया है।
      • शिव, बुद्ध और कार्तिकेय चित्रित किये जाने वाले प्रमुख भारतीय देवता थे। 

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सातवाहन:

  • उनके सत्ता में आने की तिथियाँ विवादास्पद हैं और विभिन्न रूप से 270 ईसा पूर्व से 30 ईसा पूर्व के बीच रखी गई हैं।
  • उनके सिक्के मुख्यतः तांबे और सीसे के थे, हालाँकि चाँदी के मुद्दों को भी जाना जाता है।
  • इन सिक्कों में हाथी, शेर, बैल, घोड़े आदि जैसे जीव-जंतुओं के रूपांकन होते थे, जिन्हें अक्सर प्रकृति के रूपांकनों जैसे- पहाड़ियों, पेड़ आदि के साथ जोड़ा जाता था।
  • सातवाहनों के चांदी के सिक्कों में चित्र और द्विभाषी किंवदंतियाँ थीं, जो क्षत्रप प्रकारों से प्रेरित थीं।

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पश्चिमी क्षत्रप:

  • सिक्कों पर किंवदंतियाँआमतौर पर ग्रीक में थीं और ब्राह्मी, खरोष्ठी का भी इस्तेमाल किया गया था।
  • पश्चिमी क्षत्रप के सिक्कों को तारीखों वाले सबसे पुराने सिक्के माना जाता है।
  • आम तांबे के सिक्के 'बैल और पहाड़ी' तथा 'हाथी एवं पहाड़ी' प्रकार हैं।

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गुप्तकालीन सिक्के:

  • गुप्तकालीन सिक्के (चौथी-छठी शताब्दी ईस्वी) कुषाणों की परंपरा का पालन करता है, जिसमें राजा को अग्रभाग पर और एक देवता को पीछे की ओर दर्शाया गया है; देवता भारतीय थे और किंवदंतियाँ ब्राह्मी में थीं।
  • सबसे पुराने गुप्तकालीन सिक्के का श्रेय समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय और कुमारगुप्त को दिया जाता है तथा उनके सिक्के अक्सर राजवंशीय उत्तराधिकार महत्त्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं, जैसे- विवाह गठबंधन, घोड़े की बलि या शाही सदस्यों की कलात्मक और व्यक्तिगत उपलब्धियों (गीतकार,धनुर्धर, सिंह आदि) को दर्शाते हैं।

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दक्षिणी भारत के सिक्के: 

चेर: 

Cheras

चोल: 

Cholas

उडुपी के अलुपस: 

Alupas

  • विदेशी सिक्के
    • यूरोपीय सिक्के: 
      • मद्रास प्रेसीडेंसी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने थ्री स्वामी पैगोडा के रूप में लेबल किये गए सिक्कों को ढाला, जिसमें भगवान बालाजी को श्रीदेवी और भूदेवी के दोनों ओर दिखाया गया है।
    • अन्य सिक्के:
      • प्राचीन भारत का मध्य-पूर्व, यूरोप (ग्रीस और रोम) के साथ-साथ चीन के साथ मज़बूत व्यापारिक संबंध था। यह व्यापार आंशिक रूप से रेशम मार्ग से और आंशिक रूप से समुद्री व्यापार के माध्यम से भूमि मार्ग द्वारा किया जाता था।
      • दक्षिण भारत में जहाँ समुद्री व्यापार ले मामले में संपन्न था, रोमन सिक्के भी अपने मूल रूप में परिचालित हुए, हालाँकि कई बार विदेशी संप्रभुता की घुसपैठ के विरोध में इनके परिचालन में कटौती भी की गई।

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  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. आप इस विचार को कि गुप्तकालीन सिक्का शास्त्रीय कला की उत्कृष्टता का स्तर बाद के समय में देखने को नहीं मिलता, किस प्रकार सिद्ध करेंगे?(2017) 

स्रोत: द हिंदू


संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर-संसदीय संघ, ECI, सामाजिक गतिशीलता, विधानसभा सदस्य, अनुच्छेद 243D, PRI

मेन्स के लिये:

संसद में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व का कारण।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में न्यूज़ीलैंड में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 50% का आँकड़ा पार कर गया है। 

  • अंतर-संसदीय संघ के अनुसार, न्यूज़ीलैंड दुनिया के ऐसे आधा दर्जन देशों में से एक है जो वर्ष 2022 तक संसद में कम-से-कम 50% महिला प्रतिनिधित्व का दावा कर सकता है।
  • वर्ष 1893 में न्यूज़ीलैंड महिलाओं को वोट देने की अनुमति देने वाला पहला देश बना।
  • अन्य देशों में क्यूबा, मेक्सिको, निकारागुआ, रवांडा और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं।
  • विश्व स्तर पर लगभग 26% सांसद महिलाएँ हैं।

भारतीय परिदृश्य: 

  • अंतर-संसदीय संघ (Inter-Parliamentary Union- IPU), जिसका भारत भी एक सदस्य है, द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार, विश्व भर में महिलाएँ लोकसभा के कुल सदस्यों के 14.44% का प्रतिनिधित्व करती हैं।  
  •  भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) के नवीनतम आँकड़े के अनुसार:   
    • अक्तूबर 2021 तक महिलाएँ संसद के कुल सदस्यों के 10.5% का प्रतिनिधित्व कर रही थीं।  
    • भारत में सभी राज्य विधानसभाओं को एक साथ देखें तो महिला सदस्यों (विधायकों) की स्थिति और भी बदतर है, जहाँ राष्ट्रीय औसत मात्र 9% है।  
    • आज़ादी के पिछले 75 वर्षों में लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत तक भी नहीं बढ़ा है।
  • चुनावी प्रतिनिधित्व के मामले में भारत, अंतर-संसदीय संघ की संसद में महिला प्रतिनिधियों की संख्या के मामले में वैश्विक रैंकिंग में कई स्थान नीचे आ गया है जिसमें वर्ष 2014 के 117वे स्थान से गिरकर जनवरी 2020 तक 143वे स्थान पर आ गया।
  • भारत वर्तमान में पाकिस्तान (106), बांग्लादेश (98) और नेपाल (43) से पीछे एवं श्रीलंका (182) से आगे है। 

कम प्रतिनिधित्व का कारण:

  • लिंग संबंधी रूढ़ियाँ: 
    • पारंपरिक रूप से घरेलू गतिविधियों के प्रबंधन की भूमिका महिलाओं को सौंपी गई है।
    • महिलाओं को उनकी रूढ़ीवादी भूमिकाओं से बाहर निकलने और देश की निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।  
  • प्रतिस्पर्द्धा: 
    • राजनीति किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह प्रतिस्पर्द्धा का क्षेत्र है। अंततः महिला राजनेता भी प्रतिस्पर्द्धी ही मानी जाती हैं।  
    • कई राजनेताओं को भय है कि महिला आरक्षण लागू किये जाने पर उनकी सीटें बारी-बारी से महिला उम्मीदवारों के लिये आरक्षित की जा सकती हैं, जिससे स्वयं अपनी सीटों से चुनाव लड़ सकने का अवसर वे गँवा सकते हैं।  
  • राजनीतिक शिक्षा का अभाव: 
    • शिक्षा महिलाओं की सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है। शैक्षिक संस्थानों में प्रदान की जाने वाली औपचारिक शिक्षा नेतृत्व के अवसर पैदा करती है और नेतृत्व को आवश्यक कौशल प्रदान करती है।  
    • राजनीति की समझ की कमी के कारण वे अपने मूल अधिकारों और राजनीतिक अधिकारों से अवगत नहीं हैं।  
  • कार्य और परिवार: 
    • पारिवारिक देखभाल उत्तरदायित्वों के असमान वितरण का परिणाम यह होता है कि महिलाएँ घर और बच्चों की देखभाल में पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक समय देती हैं। 
    • एक महिला को न केवल गर्भावस्था और प्रसव के दौरान अपना समय देना पड़ता है, बल्कि यह तब तक जारी रहता है जब तक कि बच्चा देखभाल के लिये माता-पिता पर निर्भर न रह जाए।  
  • राजनीतिक नेटवर्क का अभाव: 
    • राजनीतिक निर्णय-निर्माण में पारदर्शिता की कमी और अलोकतांत्रिक आंतरिक प्रक्रियाएँ सभी नए प्रवेशकों के लिये चुनौती पेश करती हैं, लेकिन महिलाएँ इससे विशेष रूप से प्रभावित होती हैं, क्योंकि उनके पास राजनीतिक नेटवर्क की कमी होती है।    
  • संसाधनों की अल्पता:
    • भारत की आंतरिक राजनीतिक दल संरचना में उनके कम अनुपात के कारण, महिलाएँ अपने राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों के पोषण के लिये संसाधन और समर्थन इकट्ठा करने में विफल होती हैं।
    • महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिये राजनीतिक दलों से पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिलती है।
  • सामाजिक शर्तें: 
    • उन्हें अपने ऊपर अधिरोपित हुक्मों को स्वीकार करना होगा और समाज का भार उठाना होगा।
    • सार्वजनिक दृष्टिकोण न केवल यह निर्धारित करता है कि आम चुनाव में कितनी महिला उम्मीदवार विजयी होती हैं, बल्कि यह भी प्रभावित करती है कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कितनी महिला उम्मीदवारों को कार्यालय के लिये उचित माना और नामांकित किया जाता है।
  • अमैत्रीपूर्ण वातावरण:
    • कुल मिलाकर राजनीतिक दलों का माहौल भी महिलाओं के अनुकूल नहीं है, उन्हें पार्टी में अपनी जगह बनाने के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है और कई स्तर पर अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    • राजनीति में हिंसा बढ़ती जा रही है। अपराधीकरण, भ्रष्टाचार, असुरक्षा में उल्लेखनीय वृद्धि ने महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र से बाहर कर दिया है।

सरकार के प्रयास:

  • महिला आरक्षण विधेयक 2008:
    • यह भारत की संसद के निचले सदन, लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में कुल सीटों में से महिलाओं के लिये 1/3 सीटों को आरक्षित करने हेतु भारत के संविधान में संशोधन करने का प्रस्ताव करता है।
  • पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिये आरक्षण:
    • संविधान का अनुच्छेद 243डी पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करता है, जिसमें प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरी जाने वाली सीटों की कुल संख्या और पंचायतों के अध्यक्षों के पदों की संख्या में से महिलाओं के लिये कम से कम एक-तिहाई आरक्षण अनिवार्य है।
  • महिला अधिकारिता पर संसदीय समिति:
    •  महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिये संसद की 11वीं लोकसभा के दौरान 1997 में पहली बार महिला अधिकारिता समिति का गठन किया गया था।
    • समिति के सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे सभी पार्टी संबद्धताओं में महिलाओं के शसक्तीकरण के लिये मिलकर काम करें।

आगे की राह

  • भारत जैसे देश में मुख्यधारा की राजनीतिक गतिविधियों में समाज के सभी वर्गों की समान भागीदारी होना समय की मांग है, इसलिये इसे बढ़ावा देने के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।
  • सभी राजनीतिक दलों को आम सहमति पर पहुँचना होगा और महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाना सुनिश्चित करना होगा, जिसमें संसद तथा सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करने का आह्वान किया गया है।
  • महिलाओं का एक पूल है जो तीन दशकों की अवधि में स्थानीय स्तर पर शासन के अनुभव के साथ सरपंच और स्थानीय निकायों के सदस्य रहे हैं।
  • वे राज्य विधानसभाओं और संसद में बड़ी भूमिका निभाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  • मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिये राज्य विधानसभा और संसदीय चुनावों में महिलाओं हेतु न्यूनतम सहमत प्रतिशत सुनिश्चित करने के भारत के चुनाव आयोग (ECI) के प्रस्ताव को लागू करने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों के रूप में मान्यता बनाए रखने की अनुमति मिल सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


2024 तक राज्यों में एनआईए कार्यालय होगा

प्रिलिम्स के लिये:

आतंकवाद, एनआईए, राज्य सूची

मेन्स के लिये:

संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने घोषणा की कि देश के सभी राज्यों में आतंकवाद का मुकाबला करने की रणनीति के रूप में वर्ष 2024 तक राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के कार्यालय होंगे।

  • गृह मंत्री स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान भारत के प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 'विज़न 2047' और 'पंच प्रण' के कार्यान्वयन हेतु एक कार्ययोजना तैयार करने के उद्देश्य से आयोजित दो दिवसीय 'चिंतन शिविर' को संबोधित कर रहे थे।

संबोधन के मुख्य बिंदु:

  • ‘नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड’ (NATGRID): 
    • राज्यों से नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) का उपयोग करने का आग्रह किया गया है जो अभी चालू था।
      • NATGRID 11 एजेंसियों के डेटासेट को एक साझा मंच पर ले आता है। 
  • आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार:
    • संसद में जल्द ही भारतीय दंड संहिता (IPC) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में संशोधन के साथ पेश किया जाएगा। 
  • वन डेटा वन एंट्री:
    • सीमा और तटीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सीमावर्ती राज्यों को केंद्रीय एजेंसियों एवं सुरक्षा बलों के साथ समन्वय करना चाहिये।
    • राष्ट्र के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों से लड़ने के लिये आंतरिक सुरक्षा संसाधनों के इष्टतम और तर्कसंगत उपयोग की आवश्यकता है।
    • "वन डेटा वन एंट्री" के सिद्धांत के बाद एनआईए को एक राष्ट्रीय आतंकवादी डेटाबेस बनाए रखने के लिये वित्तीय अपराधों पर प्रवर्तन निदेशालय और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) को नार्को अपराधों पर एक डेटासेट बनाए रखने के लिये सौंपा गया था।
  • FCRA में संशोधन: 
    • वर्ष 2020 में विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (FCRA) में हुए संशोधनों से विदेशी धन के दुरुपयोग को सफलतापूर्वक रोकने के साथ इसकी प्रभावी निगरानी संभव हुई ।
    • विदेशी धन प्राप्त करने के लिये FCRA अनिवार्य था। 

भारत में कानून-व्यवस्था की स्थिति से संबंधित मुद्दे:

  • सामान्य प्रशासन: 
    • विभिन्न सरकारी एजेंसियों में समन्वय की कमी है।
    • कानूनों का खराब प्रवर्तन और प्रशासन की सामान्य विफलता का होना।  
  • पुलिस से संबंधित समस्याएँ: 
    • संगठनात्मक, आधारभूत संरचना और कार्यप्रणाली से संबंधित समस्याएँ
    • अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप का होना।
    • प्रमुख पदाधिकारियों के सशक्तिकरण का अभाव।
    • आधुनिक तकनीक/जाँच के तरीकों का अभाव। 
  • संगठनात्मक व्यवहार: 
    • प्रशिक्षण का अभाव।
    • अहंकार, संवेदनहीनता और परंपरागत विचारों के होने की गहरी वृत्ति।
  • नैतिक मुद्धे: 
    • भ्रष्टाचार, मिलीभगत और जबरन वसूली की समस्या।
    • मानवाधिकारों के प्रति असंवेदनशीलता।
    • पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया और कार्मिक नीतियों का अभाव। 
  • अभियोजन से संबंधित मुद्दे: 
    • लोक अभियोजक सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को आकर्षित नहीं कर पाते हैं।
    • जाँच और अभियोजन एजेंसियों के बीच समन्वय का अभाव देखने को मिलता है।
    • साक्ष्य प्रस्तुत करने के संदर्भ में पुलिस का अविश्वास। 
  • न्यायिक प्रक्रिया से संबंधित समस्याएँ: 
    • बड़ी संख्या में मामलों का लंबित होना।
    • दोषसिद्धि की दर का कम होना।

संबंधित संवैधानिक और कानूनी प्रावधान:

  • कानून और व्यवस्था सातवीं अनुसूची के तहत एक राज्य का विषय है, संविधान के अनुसार गृह मंत्रालय (MHA) राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है और मंत्रालय समय-समय पर राज्यों को सलाह भेज सकता है।
  • अपराध को रोकना, पता लगाना, पंजीकृत करना और जाँच करना और अपराधियों पर मुकदमा चलाना राज्य सरकारों का प्राथमिक कर्तव्य है।
  • हालांकि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को उनके पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करके उनके प्रयासों को पूरक बनाती है।
  • इसके अलावा अपराध तथा कानून व्यवस्था से संबंधित घटनाओं को रोकने के लिये केंद्रीय सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों द्वारा राज्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ खुफिया जानकारी नियमित रूप से साझा की जाती है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी), एमएचए के तहत एक नोडल एजेंसी, अपराध के आँकड़ों को इकट्ठा करने, संकलित करने और विश्लेषण करने की प्रक्रिया में लगी हुई है ताकि राज्यों को अपराध के रोकथाम और नियंत्रण के लिये उपयुक्त रणनीति विकसित करने में मदद मिल सके।
  • इसके अलावा ब्यूरो ने 'अपराध आपराधिक सूचना प्रणाली (सीसीआईएस)' नामक एक परियोजना के तहत देश भर में प्रत्येक ज़िला अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (डीसीआरबी) एवं राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एससीआरबी) में कम्प्यूटरीकृत सिस्टम स्थापित किये हैं।

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA):

  • विषय: 
    • NIA भारत की केंद्रीय आतंक रोधी कानून प्रवर्तन एजेंसी है, जो भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता को प्रभावित करने वाले सभी अपराधों की जाँच करने के लिये अनिवार्य है। उसमें समाविष्ट हैं:
      • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध।
      • परमाणु और नाभिकीय सुविधाओं के विरुद्ध।
      • हथियारों, ड्रग्स और नकली भारतीय मुद्रा की तस्करी तथा सीमाओं के पार से घुसपैठ।
      • संयुक्त राष्ट्र, इसकी एजेंसियों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की अंतर्राष्ट्रीय संधियों, समझौतों, सम्मेलनों एवं प्रस्तावों को लागू करने के लिये अधिनियमित वैधानिक कानूनों के तहत अपराध।
    • इसका गठन राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) अधिनियम, 2008 के तहत किया गया था।
    • एजेंसी को गृह मंत्रालय से लिखित उद्घोषणा के तहत राज्यों से विशेष अनुमति के बिना राज्यों में आतंकवाद से संबंधित अपराधों की जाँच करने का अधिकार है।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली 

आगे की राह

  • अपराधों की प्रकृति बदल रही है, और वे सीमाहीन होते जा रहे हैं, इसलिये सभी राज्यों को एक साझा रणनीति बनाकर इसके विरुद्ध लड़ना होगा।
  • “सहकारी संघवाद” की भावना के तहत इस रणनीति को तैयार करने और लागू करने के लिये केंद्र व राज्यों के बीच समन्वय एवं सहयोग की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सीमा पार से होने वाले साइबर हमलों के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। साथ ही, इन परिष्कृत हमलों के विरुद्ध रक्षात्मक उपायों की चर्चा कीजिये। (2021) 

स्रोत: द हिंदू


उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2022: UNEP

प्रिलिम्स के लिये:

उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2022, पेरिस समझौता, महामारी, GHG, COP-26, उत्सर्जन कम करने की पहल।

मेन्स के लिये:

उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, UNEP ।

चर्चा में क्यों? 

COP27 से पहले संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2022: द क्लोज़िग विंडो- क्लाइमेट क्राइसिस कॉल्स फॉर रैपिड ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ सोसाइटीज़' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

  • यह UNEP उत्सर्जन गैप रिपोर्ट का 13वाँ संस्करण है। इसके तहत वर्ष 2030 में अनुमानित उत्सर्जन और पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस और 2 डिग्री सेल्सियस लक्ष्यों के स्तरों के बीच के अंतर का आकलन किया जाता है। हर साल इस रिपोर्ट में अंतराल को कम करने की सिफारिस की जाती है।

निष्कर्ष: 

  • शीर्ष 7 उत्सर्जक (चीन, EU27, भारत, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, रूसी संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका) के साथ अंतर्राष्ट्रीय परिवहन की वर्ष 2020 में वैश्विक GHG उत्सर्जन में 55% भागीदारी रही। 
    • इन देशों में GHG उत्सर्जन वर्ष 2021 में फिर से बढ़ गया, जो कि पूर्व-महामारी (वर्ष 2019)  के स्तर से अधिक है।
  • सामूहिक रूप से, G20 सदस्य देश वैश्विक GHG (ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन) उत्सर्जन के 75% के लिये ज़िम्मेदार हैं। 
  • वर्ष 2020 में औसत प्रति व्यक्ति वैश्विक GHG उत्सर्जन 6.3 टन CO2 समतुल्य (tCO2e) था।  
    • भारत विश्व औसत 2.4 tCO2e से काफी नीचे है।
  • विश्व वर्ष 2015 में अपनाए गए पेरिस जलवायु समझौते में निर्धारित लक्ष्यों से पीछे रहा है, जिससे 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक पहुँचने का कोई विश्वसनीय मार्ग नहीं दिख रहा है।
    • पेरिस समझौते ने पूर्व-औद्योगिक स्तर (अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस) से ऊपर 2 डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग सीमा को परिभाषित किया, जिसे पार करने पर अत्यधिक हीटवेब, सूखा, जल का अभाव आदि जैसी चरम मौसमी घटनाएँ हो सकती हैं।
  • COP26 (ग्लासगो, यूके) के बाद से राष्ट्रीय प्रतिज्ञाएँ 2030 उत्सर्जन की भविष्यवाणी करने के लिये एक नगण्य अंतर बनाती हैं।

सिफारिशें:

  • विश्व को अगले आठ वर्षों में ग्रीनहाउस गैसों को अभूतपूर्व स्तर तक कम करने की आवश्यकता है।
  • वैश्विक इस्पात उत्पादन की कार्बन तीव्रता में वृद्धि को कम करने के लिये भारी उद्योग में वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है।
  • वर्ष 2030 तक जीएचजी उत्सर्जन को सीमित करने के लिये भारी कटौती करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • बिना शर्त और सशर्त राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) से मौज़ूदा नीतियों की तुलना में वर्ष 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को क्रमशः 5% और 10% कम करने की उम्मीद है।
    • ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस या 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये सबसे अधिक लागत प्रभावी बनाकर इन प्रतिशतों को 30% और 45% तक पहुँचाना चाहिये।

भारत में उत्सर्जन कम करने हेतु पहलें:

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम:

  • परिचय:
    • यह 5 जून, 1972 को स्थापित एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
    • यह वैश्विक पर्यावरण एजेंडा निर्धारित करता है, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देता है और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
    • मुख्यालय: नैरोबी, केन्या।
    • प्रमुख रिपोर्ट: एमिशन गैप रिपोर्ट, एडेप्टेशन गैप रिपोर्ट, ग्लोबल एन्वायरनमेंट आउटलुक, फ्रंटियर्स, इन्वेस्ट इन हेल्दी प्लैनेट।
    • प्रमुख अभियान: बीट पॉल्यूशन, UN75, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. UNEP द्वारा समर्थित 'कॉमन कार्बन मीट्रिक' को किसके लिये विकसित किया गया है? 

(A) दुनिया भर में निर्माण कार्यों के कार्बन फुटप्रिंट का आकलन
(B) दुनिया भर में वाणिज्यिक फैनिंग संस्थाओं को कार्बन उत्सर्जन व्यापार में प्रवेश करने में सक्षम बनाना
(C) सरकारों को अपने देशों के कारण समग्र कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करने में सक्षम बनाना
(D) एक इकाई समय में दुनिया द्वारा जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण होने वाले समग्र कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करना 

उत्तर: (a) 


मेन्स 

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने हेतु नियंत्रण उपायों की व्याख्या कीजिये। (2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


GM सरसों की व्यावसायिक खेती

प्रिलिम्स के लिये:

जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (GEAC), आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों, धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH-11), सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स।

मेन्स के लिये:

GM फसलें और उनका महत्त्व। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्य करने वाली आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों के व्यावसायिक रिलीज़ से पहले बीज उत्पादन को मंज़ूरी दी है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें: 

  • परिचय: 
    • GM फसलों के जीन कृत्रिम रूप से संशोधित किये जाते हैं, आमतौर इसमें किसी अन्य फसल  से आनुवंशिक गुणों जैसे- उपज में वृद्धि, खरपतवार के प्रति सहिष्णुता, रोग या सूखे से  प्रतिरोध, या बेहतर पोषण मूल्य का समामेलन किया जा सके।
    • GM चावल की सबसे प्रसिद्ध किस्म गोल्डन राइस है।
      • गोल्डन राइस के एक पौधे में डैफोडील्स और मक्का के जीन का उपयोग किया गया है जिसके परिणामस्वरूप इसमें विटामिन A की मात्रा समृद्ध हो जाती है।
    • इससे पहले, भारत ने केवल एक GM फसल, BT कपास की व्यावसायिक खेती को मंज़ूरी दी थी, लेकिन GEAC ने व्यावसायिक उपयोग के लिये GM सरसों की सिफारिश की है। 
  • लाभ:  
    • बढ़ती उपज: आनुवंशिक रूप से संशोधित बीज पौधे की उपज में वृद्धि देखी गई है। इसका मतलब है कि उतनी भूमि के साथ ही किसान अब काफी अधिक फसल पैदा कर सकता है।
    • विशिष्ट जलवायु में लाभकारी: विशिष्ट परिस्थितियों या जलवायु के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों का उत्पादन भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, सूखा प्रतिरोधी बीजों का उपयोग कम पानी वाले स्थानों पर किया जा सकता है ताकि फसल विकास सुनिश्चित किया जा सके। 
  • हानि: 
    • बीज लागत में जटिलता: संशोधित बीज बनाने और बेचने के लिये केवल कुछ कंपनियांँ ही प्रभारी हैं। एकाधिकार की स्थिति में बीज खरीदने वालों के पास केवल कुछ ही विकल्प उपलब्ध हैं।
    • बीजों का प्रयोग दोबारा नहीं किया जा सकता: आनुवंशिक रूप से संशोधित बीज डिज़ाइन द्वारा व्यवहार्य बीज नहीं बनाते हैं। इसका मतलब यह है कि हर बार जब आप एक नई फसल बोना चाहते हैं, तो आपको नए बीजों का प्रयोग करना होगा।
    • पर्यावरणीय चिंता: वे प्रजातियों की विविधता को कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, कीट-प्रतिरोधी पौधे उन कीड़ों को नुकसान पहुंँचा सकते हैं जो उनका इच्छित लक्ष्य नहीं हैं और उस विशेष कीट प्रजाति को नष्ट कर सकते हैं।
    • नैतिक चिंता: GM फसल प्रजातियों के बीच मिश्रण करके प्राकृतिक जीवों के आंतरिक मूल्यों का उल्लंघन है।
    • पौधों में जानवरों के जीन के मिश्रण की भी चिंताएंँ हैं।.  

GM सरसों:

  • परिचय: 
    • धारा सरसों हाइब्रिड (DMH-11) एक स्वदेशी रूप से विकसित ट्रांसजेनिक सरसों है। यह हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) सरसों का आनुवंशिक तौर पर संशोधित रूप है।
    • इसमें दो एलियन जीन ('बार्नेज' और 'बारस्टार') होते हैं जो बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स नामक मिट्टी के जीवाणु से आइसोलेट होते हैं जो उच्च उपज वाली वाणिज्यिक सरसों की संकर प्रजाति विकसित करने में सहायक है।
    • इसे दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (CGMCP) द्वारा विकसित किया गया है।
    • 2017 में GEAC ने HT सरसों की फसल के वाणिज्यिक अनुमोदन की सिफारिश की थी। हालांँकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी और केंद्र सरकार से इस संदर्भ में जनता की राय लेने को कहा। 
  • महत्त्व: भारत प्रतिवर्ष केवल 8.5-9 मिलियन टन (mt) खाद्य तेल का उत्पादन करता है जबकि यह 14-14.5 मिलियन टन आयात करता है जिसमें 31 मार्च, 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में 18.99 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा व्यय किया गया। इसके अलावा जीएम सरसों भारत को तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने और विदेशी मुद्रा बचाने में सहायक होगी।
    • भारत में सरसों की किस्मों का आनुवंशिक आधार संकीर्ण है। 'बार्नेज'-बारस्टार प्रणाली पूर्वी यूरोपीय मूल की सरसों जैसे 'हीरा' और 'डोंस्काजा' सहित सरसों की किस्मों की एक विस्तृत शृंखला का मार्ग प्रशस्त करती है। 

भारत में अन्य GM फसलों की स्थिति:

  • BT कपास:
    • अतीत में कपास की फसलों को तबाह करने वाले बॉलवर्म के हमले से निपटने के लिये BT कपास की शुरुआत की गई थी, जिसे महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी (महिको) और अमेरिकी बीज कंपनी मोनसेंटो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया था।
    • 2002 में GEAC ने आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे 6 राज्यों में व्यावसायिक खेती के लिये BT कपास को मंज़ूरी दी। यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि BT कपास जीईएसी द्वारा अनुमोदित पहली और एकमात्र ट्रांसजेनिक फसल है।
  • BT बैंगन:
    • माहिको ने धारवाड़ कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के साथ संयुक्त रूप से BT बैंगन विकसित किया।
    • भले ही GEAC ने वर्ष  2007 में BT बैंगन की व्यावसायिक रिलीज़ की सिफारिश की थी, लेकिन वर्ष  2010 में इस पहल को रोक दिया गया था।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC): 

  • यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों और पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से जुड़ी गतिविधियों के मूल्यांकन के लिये ज़िम्मेदार है।
  • समिति प्रायोगिक क्षेत्र परीक्षणों सहित पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उत्पादों के निर्गमन से संबंधित प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिये भी ज़िम्मेदार है।
  • GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC के विशेष सचिव/अतिरिक्त सचिव करते हैं और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा सह-अध्यक्षता की जाती है।

आगे की राह

  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिये कठोर निगरानी की आवश्यकता है, और अवैध GM फसलों के प्रसार को रोकने के लिये प्रवर्तन को गंभीरता से लिया जाना चाहिये।
  • इसके अलावा पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन स्वतंत्र पर्यावरणविदों द्वारा किया जाना चाहिये, क्योंकि किसान पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य पर GM फसलों के दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन नहीं कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

Q. पीड़को को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ है जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपो का निर्माण किया गया है?

1- सूखा सहन करने के लिये उन्हे सक्षम बनाना
2- उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना
3- अंतरिक्ष यानों और स्टेशनों में उन्हें उगने और प्रकाश-संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना
4- उनकी शेत्फ लाइफ बढ़ाना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: C 

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें (जीएम फसलें या बायोटेक फसलें) कृषि में उपयोग किये जाने वाले पौधे हैं, जिनके डीएनए को आनुवंशिक इंजीनियरिंग विधियों का उपयोग करके संशोधित किया गया है। अधिकतर मामलों में इसका उद्देश्य पौधे में एक नया लक्षण पैदा करना है जो प्रजातियों में स्वाभाविक रूप से नहीं होता है। खाद्य फसलों में लक्षणों के उदाहरणों में कुछ कीटों, रोगों, पर्यावरणीय परिस्थितियों, खराब होने में कमी, रासायनिक उपचारों के प्रतिरोध (जैसे- जड़ी-बूटियों के प्रतिरोध) या फसल के पोषक तत्त्व प्रोफाइल में सुधार शामिल हैं।
  •  जीएम फसल प्रौद्योगिकी के कुछ संभावित अनुप्रयोग हैं:
    • पोषण वृद्धि - उच्च विटामिन सामग्री; अधिक स्वस्थ फैटी एसिड प्रोफाइल; अत: 2 सही है।
    • तनाव सहनशीलता - उच्च और निम्न तापमान, लवणता और सूखे के प्रति सहनशीलता; अत: 1 सही है।
    • ऐसी कोई संभावना नहीं है जो जीएम फसलों को अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष स्टेशनों में बढ़ने और प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम बनाती हो। अत: 3 सही नहीं है।
    • वैज्ञानिक कुछ आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें बनाने में सक्षम हैं जो सामान्य रूप से  एक महीने तक ताज़ा रहती हैं। अत: 4 सही है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

प्रश्न. बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया गया है?

(a) फसल पौधों का क्लोनल प्रवर्धन
(b) आनुवंशिक रूप से संशोधित फसली पौधों का विकास
(c) पादप वृद्धिकर पदार्थों का उत्पादन
(d) जैव उर्वरकों का उत्पादन

उत्तर:b

  • बोल्गार्ड I बीटी कपास (एकल-जीन प्रौद्योगिकी) 2002 में भारत में व्यावसायीकरण के लिये अनुमोदित पहली बायोटेक फसल प्रौद्योगिकी है, इसके बाद वर्ष 2006 के मध्य में बोल्गार्ड II- डबल-जीन प्रौद्योगिकी, जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति, बायोटेक के लिये भारतीय नियामक निकाय द्वारा अनुमोदित फसलें है।
  • बोल्गार्ड I कपास एक कीट-प्रतिरोधी ट्रांसजेनिक फसल है जिसे बोलवर्म से निपटने के लिये डिज़ाइन किया गया है। यह जीवाणु बैसिलस थुरिंगिनेसिस से एक माइक्रोबियल प्रोटीन को व्यक्त करने के लिये कपास जीनोम को आनुवंशिक रूप से बदलकर बनाया गया था।
  • बोल्गार्ड II तकनीक में एक बेहतर डबल-जीन तकनीक शामिल है - cry1ac और cry2ab, जो बोलवर्म तथा स्पोडोप्टेरा कैटरपिलर से सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे बेहतर बोलवर्म प्रतिधारण, अधिकतम उपज, कम कीटनाशकों की लागत एवं कीट प्रतिरोध के खिलाफ सुरक्षा मिलती है।
  • बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II दोनों कीट-संरक्षित कपास दुनिया भर में व्यापक रूप से बोलवर्म को नियंत्रित करने के पर्यावरण के अनुकूल तरीके के रूप में अपनाए जाते हैं। अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।
  • प्रश्न. किसानों के जीवन स्तर को सुधारने में जैव प्रौद्योगिकी कैसे मदद कर सकती है? (मेन्स-2019)

 स्रोत: द हिंदू


FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर हुआ पाकिस्तान

प्रिलिम्स के लिये:

FATF, ग्रे लिस्ट, ब्लैक लिस्ट, G7, OECD, यूरोपीय आयोग, गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल

मेन्स के लिये:

FATF- ग्रे लिस्ट और ब्लैक लिस्ट, आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने में FATF की दक्षता, FATF ग्रे लिस्ट से पाकिस्तान का निष्कासन और भारत पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में आतंकी वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग पर अंतर्राष्ट्रीय निगरानी संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्य बल  (Financial Action Task Force- FATF) ने पाकिस्तान को " निगरानी सूची" (ग्रे लिस्ट) के तहत देशों की सूची से हटा दिया है।

  • ग्रे लिस्ट में भारत के दूसरे पड़ोसी, म्याँमार को वर्ष 2021 के तख्तापलट के बाद सैन्य नेतृत्व द्वारा की गई कार्रवाई के कारण "ब्लैक लिस्ट" में वर्गीकृत कर दिया गया था। 

 वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) 

  • परिचय:  
  • सदस्य:  
    • FATF में वर्तमान में 37 सदस्य क्षेत्राधिकार और दो क्षेत्रीय संगठन (यूरोपीय आयोग खाड़ी सहयोग परिषद) शामिल हैं, जो दुनिया के के लगभग सभी हिस्सों के सबसे प्रमुख वित्तीय केंद्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
      • इंडोनेशिया FATF का एकमात्र पर्यवेक्षक देश है।
    • भारत वर्ष 2006 में 'पर्यवेक्षक' देशों की सूची में शामिल हुआ और वर्ष 2010 में FATF का पूर्ण सदस्य बन गया।
  • ग्रे लिस्ट और ब्लैक लिस्ट देश: 
    • एफएटीएफ प्लेनरी (FATF Plenary) की निर्णय करने वाले देशों की "पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट्स" (MER) के लिये प्रतिवर्ष तीन बार (फरवरी, जून और अक्तूबर) इसके सत्र का आयोजन होता है।
    • जिन देशों को आतंकी वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग का समर्थन करने के लिये सुरक्षित स्थल माना जाता है, उन्हें FATF की ग्रे लिस्ट में डाल दिया जाता है। इस सूची में शामिल किया जाना संबंधित देश के लिये एक चेतावनी के रूप में कार्य करता है कि उसे ब्लैक लिस्ट में शामिल किया जाता है।
      • AML/CFT का अर्थ "धन शोधन रोधी/आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करना" है
      • ब्लैक लिस्ट में असहयोगी देश या क्षेत्र (Non-Cooperative Countries or Territories-NCCT) शामिल हैं ये देश आतंकी वित्तीयन और मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों का समर्थन करते हैं। अभी तक ईरान, उत्तर कोरिया और म्याँमार तीन ब्लैक लिस्टेड देश हैं।
    • सूचीबद्ध देशों में वित्तीय सख्ती बढ़ गई है, इस प्रकार उनके लिये FATF से संबद्ध वित्तीय संस्थानों (पर्यवेक्षकों के रूप में) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक आदि से ऋण प्राप्त करना मुश्किल हो गया है।

FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर हुए पाकिस्तान से संबंधित मुख्य बिंदु:  

  • FATF का स्टैंड: FATF ने "पाकिस्तान की महत्त्वपूर्ण प्रगति" की सराहना करते हुए कहा कि देश ने वर्ष 2018 से इस अवधि में 34-सूत्रीय कार्यसूची वाली दो कार्य योजनाओं को पूरा किया है।
    • पाकिस्तान को चार साल बाद सूची से हटा दिया गया है। पाकिस्तान को पहली बार वर्ष 2008 में सूची में रखा गया था, वर्ष 2009 में इसे सूची से हटा दिया गया और वर्ष 2012 से वर्ष 2015 तक यह पुनः निगरानी के अधीन रहा।
  • भारत की प्रतिक्रिया: भारत ने देश पर हमलों के लिये ज़िम्मेदार सीमा पार आतंकवादी समूहों के खिलाफ पाकिस्तान की कार्रवाई में कमी का विरोध किया है, हालाँकि वह पाकिस्तान को सूची से हटाने के निर्णय पर सहमत हो गया, क्योंकि बाद में उसने नामित आतंकवादियों के खिलाफ अपनी कार्रवाई के "दस्तावेज़ी साक्ष्य" प्रस्तुत किये थे।
    • भारत का मानना ​​है कि पाकिस्तान को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में विकसित होने वाले आतंकी समूहों के खिलाफ "विश्वसनीय, सत्यापन योग्य, अपरिवर्तनीय और टिकाऊ" कार्रवाई जारी रखनी चाहिये।

पाकिस्तान को सूची से हटाने के निहितार्थ:

  • पाकिस्तान के लिये: "ग्रे लिस्ट" से निकाले जाने के परिणामस्वरूप, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने आतंकवाद के प्रायोजन के संबंध में पाकिस्तान को क्लीन बिल ऑफ़ हेल्थ के रूप में स्वीकार किया है जिससे पाकिस्तान की प्रतिष्ठा मज़बूती मिलेगी।
    • देश की अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, इसे अनिवार्य रूप से अन्य देशों से निवेश की सख्त ज़रूरत है। ग्रे लिस्ट से हटाने से निश्चित तौर पर इस संदर्भ में कार्रवाई होगी।
  • भारत के लिये: जबकि चार साल की ग्रेलिस्टिंग ने सीमा पार आतंक को कम कर दिया है, आतंकवादियों की घुसपैठ की सामयिक घटनाओं और सीमा पर हथियार-पेलोड वाले ड्रोनों के नियमित रूप से देखे जाने से पता चलता है कि भारत के खिलाफ निर्देशित पाकिस्तान का आतंकवाद का ढांँचा वर्तमान में एक शिथिल अवस्था में है लेकिन अभी भी समूल नष्ट होने से व्यापक रूप से दूर है।   
    • भारत को सभी उपलब्ध साधनों और विकल्पों को जुटाना जारी रखना होगा ताकि पाकिस्तान को आतंकी-हथियार चलाने के लिये परिचालन स्थान से वंचित किया जा सके।
    • भारत के हित इस क्षेत्र को अधिक स्थिर और सुरक्षित बनाने के लक्ष्य के साथ इन कूटनीतिक रणनीतियों को अनवरत रखने में निहित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस