जैव विविधता और पर्यावरण
कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के उपयोग पर राष्ट्रीय मिशन
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP), वायु प्रदूषण, राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (NTPC), अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, उजाला (UJALA) योजना मेन्स के लियेबायोमास के उपयोग एवं महत्त्व, वायु प्रदूषण के कारण और निवारण, वायु प्रदूषण को कम करने संबंधी प्रमुख योजनाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास का उपयोग बढ़ाने के लिये एक राष्ट्रीय मिशन स्थापित करने का फैसला किया है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- बायोमास पर प्रस्तावित राष्ट्रीय मिशन राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) में भी योगदान देगा।
- यह देश में ऊर्जा संबंधी बदलाव और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने के हमारे लक्ष्यों में मदद करेगा।
लक्ष्य:
- खेत में पराली जलाने (stubble burning) से होने वाले वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान करना और ताप विद्युत उत्पादन के कार्बन फुटप्रिंट को कम करना।
उद्देश्य:
- ताप विद्युत संयंत्रों से कार्बन न्यूट्रल बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा पाने के लिये बायोमास को-फायरिंग (co-firing) के स्तर को वर्तमान 5 प्रतिशत से बढ़ाकर उच्च स्तर तक ले जाना।
- बायोमास को-फायरिंग उच्च दक्षता वाले कोयला बॉयलरों में ईंधन के एक आंशिक विकल्प के रूप में बायोमास को जोड़ने को संदर्भित करता है।
- बायोमास पेलेट (Pellets) में सिलिका, क्षार की अधिक मात्रा को संभालने के लिये बॉयलर डिज़ाइन में अनुसंधान एवं विकास (R&D) गतिविधि शुरू करना।
- बायोमास पेलेट एवं कृषि-अवशेषों की आपूर्ति शृंखला में बाधाओं को दूर करने और बिजली संयंत्रों तक इसके परिवहन को सुगम बनाना।
- बायोमास को-फायरिंग में नियामक मुद्दों पर विचार करना।
प्रस्तावित संरचना:
- इस मिशन के अंतर्गत सचिव (विद्युत मंत्रालय) की अध्यक्षता में एक संचालन समिति का गठन किया जाएगा जिसमें पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MOPNG), नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) आदि के प्रतिनिधियों सहित सभी हितधारक शामिल होंगे।
- राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (NTPC) प्रस्तावित राष्ट्रीय मिशन में रसद और बुनियादी ढाँचा संबंधी सहायता प्रदान करने में बड़ी भूमिका निभाएगा।
अवधि:
- प्रस्तावित राष्ट्रीय मिशन की अवधि न्यूनतम 5 वर्ष की होगी।
कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से प्रदूषण कम करने की पहल:
- कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों के लिये कठोर उत्सर्जन मानकों को अधिसूचित किया गया है।
- विषाक्त सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती हेतु फ्ल्यू गैस डिसल्फराइज़ेशन (Flue Gas Desulphurization- FGD) इकाइयों को स्थापित करने के लिये उत्सर्जन मानकों का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिये।
- पुराने के स्थान पर सुपरक्रिटिकल इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा देने के लिये कुछ शर्तों के अधीन अक्षम विद्युत संयंत्रों से नए सुपर क्रिटिकल संयंत्रों को कोयला लिंकेज के स्वचालित हस्तांतरण को मंज़ूरी दी गई।
- सीवेज उपचार सुविधाओं के 50 किमी. के अंदर स्थापित ताप विद्युत संयंत्र अनिवार्य रूप से उपचारित सीवेज जल का उपयोग करेंगे।
वायु प्रदूषण को कम करने के लिये अन्य पहलें:
- भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्ज़न मानक।
- उजाला (UJALA) योजना।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC)।
बायोमास (Biomass)
परिचय:
- बायोमास वह संयंत्र या पशु सामग्री है जिसका उपयोग बिजली या ऊष्मा का उत्पादन करने के लिये ईंधन के रूप में किया जाता है। इनमें प्रमुख रूप से लकड़ी, ऊर्जा फसलें और वनों, मैदान (Yards) या खेतों से निकलने वाले अपशिष्ट शामिल हैं।
- देश के लिये बायोमास सदैव एक महत्त्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत रहा है, जो इसके द्वारा प्रदान किये जाने वाले लाभों को संदर्भित करता है।
लाभ:
- बायोमास अक्षय या नवीकरणीय, व्यापक रूप से उपलब्ध और कार्बन-तटस्थ है तथा इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रोज़गार प्रदान करने की क्षमता है।
- इसमें दृढ़ ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता है। देश में कुल प्राथमिक ऊर्जा उपयोग का लगभग 32% अभी भी बायोमास से प्राप्त होता है और देश की 70% से अधिक आबादी अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिये इस पर निर्भर है।
बायोमास विद्युत और सह उत्पादन कार्यक्रम:
- परिचय:
- इस कार्यक्रम को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा शुरू किया गया है।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत बायोमास के कुशल उपयोग के लिये चीनी मिलों में खोई (Bagasse) आधारित सह-उत्पादन और बायोमास बिजली उत्पादन शुरू किया गया है।
- विद्युत उत्पादन के लिये उपयोग की जाने वाली बायोमास सामग्री में चावल की भूसी, पुआल, कपास की डंठल, नारियल के गोले, सोया भूसी, डी-ऑयल केक, कॉफी अपशिष्ट, जूट अपशिष्ट, मूँगफली के गोले, धूल आदि शामिल हैं।
- उद्देश्य:
- ग्रिड विद्युत उत्पादन हेतु देश के बायोमास संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिये प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
स्रोत : पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
इज़रायल और फिलिस्तीनी क्षेत्रों के लिये स्थायी आयोग
प्रिलिम्स के लिये:इस्लामिक सहयोग संगठन, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद मेन्स के लिये:इज़रायल और फिलिस्तीन के मध्य वर्तमान विवाद |
चर्चा में क्यों?
इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के सदस्य देश संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) से इज़रायल, गाजा और वेस्ट बैंक में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर रिपोर्ट करने के लिये एक स्थायी आयोग स्थापित करने का आह्वान कर रहे हैं।
- यह कदम इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में हिंसा में नवीनतम वृद्धि के मद्देनज़र उठाया गया है।
प्रमुख बिंदु:
प्रस्तावित स्थायी आयोग के बारे में:
- यह UNHRC अध्यक्ष द्वारा इज़रायल और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय मानवीय और मानवाधिकार कानून के उल्लंघन की जाँच के लिये नियुक्त एक स्वतंत्र, अंतर्राष्ट्रीय जाँच आयोग होगा।
- जाँच आयोग (COI) द्वारा की जाने वाली जाँच उच्चतम स्तर की होती है जिसे परिषद अधिकृत कर सकती है।
- उदाहरण के लिये एक अन्य COI एक दशक पहले सीरिया युद्ध की स्थापना के बाद से नियमित रूप से रिपोर्टिंग कर रहा है। यह आंशिक रूप से सबूत इकट्ठा करते हैं जो एक दिन न्यायालय में प्रयोग किया जा सकते है।
- आयोग भेदभाव और दमन सहित बार-बार होने उत्पन्न वाले तनाव के कारण अस्थिरता और संघर्ष के सभी अंतर्निहित मूल कारणों की भी जाँच करेगा।
- इज़रायल, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा कई बार समर्थित इजरायल विरोधी पूर्वाग्रह का आरोप लगाता है और आम तौर पर अपने जाँचकर्ताओं के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया है।
इस्लामी सहयोग संगठन:
- OIC संयुक्त राष्ट्र के बाद 57 राज्यों की सदस्यता के साथ दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है।
- भारत OIC का सदस्य नहीं है। हालाँकि वर्ष 2019 में विदेश मंत्री परिषद के 46वें सत्र में भारत को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।
- यह मुस्लिम जगत की सामूहिक आवाज का प्रतिनिधित्व करता है। यह दुनिया के विभिन्न लोगों के बीच अंतर्राष्ट्रीय शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने की भावना से मुस्लिम दुनिया के हितों की रक्षा के लिये काम करता है।
- यह वर्ष 1969 में मोरक्को के रबात में हुए ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन के निर्णय के आधार पर स्थापित किया गया था।
- मुख्यालय: जेद्दा, सऊदी अरब।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद:
- संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय जो दुनिया भर में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण को मज़बूत करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह परिषद वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा बनाई गई थी। इसने मानवाधिकार पर पूर्व संयुक्त राष्ट्र आयोग की जगह ली।
- मानवाधिकार के लिये उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) मानवाधिकार परिषद के सचिवालय के रूप में कार्य करता है।
- OHCHR का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
- यह 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य राज्यों से बना है, जिन्हें समान भौगोलिक वितरण के सिद्धांत के आधार पर UNGA द्वारा चुना जाता है।
- परिषद के सदस्य तीन साल की अवधि के लिये चुने जाते हैं और लगातार दो कार्यकालों की सेवा के बाद तत्काल पुन: चुनाव हेतु पात्र नहीं हैं।
- भारत को 1 जनवरी 2019 से तीन साल की अवधि के लिये परिषद हेतु चुना गया था।
- तंत्र:
- यूनिवर्सल पीरियोडिक रिव्यू: UPR संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों में मानवाधिकार स्थितियों का आकलन करने का काम करता है।
- संयुक्त राष्ट्र विशेष प्रक्रियाएँ: ये विशेष प्रतिवेदक, विशेष प्रतिनिधि, स्वतंत्र विशेषज्ञ और कार्य समूहों से बने होते हैं जो विशिष्ट देशों में विषयगत मुद्दों या मानवाधिकार स्थितियों पर निगरानी, जाँच, सलाह और सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट करते हैं।
- नव गतिविधियाँ:
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने घोषणा की है कि वह UNHRC में फिर से शामिल होगा जिसे उसने वर्ष 2018 में छोड़ा था।
- परिषद ने श्रीलंका में मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन की जाँच के लिये एक प्रस्ताव अपनाया है।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली और अटल पेंशन योजना
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय पेंशन प्रणाली, अटल पेंशन योजना मेन्स के लियेराष्ट्रीय पेंशन प्रणाली का भारतीय नागरिकों और अटल पेंशन योजना का श्रमिकों के लिये महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पेंशन निधि नियामक और विकास प्राधिकरण (Pension Fund Regulatory and Development Authority- PFRDA) ने घोषणा की है कि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (National Pension System- NPS) और अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana- APY) के अंतर्गत एसेट अंडर मैनेजमेंट (Assets Under Management- AUM) 6 लाख करोड़ (6 ट्रिलियन) रुपए की सीमा को पार कर गया है।
- एसेट अंडर मैनेजमेंट निवेश का कुल बाज़ार मूल्य है जिसे कोई व्यक्ति या संस्था निवेशकों की तरफ से संभालती है।
प्रमुख बिंदु
राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली:
- राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के विषय में:
- इस प्रणाली की शुरुआत केंद्र सरकार ने जनवरी 2004 में (सशस्त्र बलों को छोड़कर) की।
- इसको वर्ष 2018 में सुव्यवस्थित करने तथा इसे और अधिक आकर्षक बनाने के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसके अंतर्गत आने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों को लाभपहुँचाने हेतु योजना में बदलाव को मंज़ूरी दी।
- एनपीएस को देश में पीएफआरडीए द्वारा कार्यान्वित और विनियमित किया जा रहा है।
- पीएफआरडीए द्वारा स्थापित राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली ट्रस्ट (National Pension System Trust) एनपीएस के तहत आने वाली सभी संपत्तियों का पंजीकृत मालिक है।
- इस प्रणाली की शुरुआत केंद्र सरकार ने जनवरी 2004 में (सशस्त्र बलों को छोड़कर) की।
- संरचना: एनपीएस की संरचना द्विस्तरीय है:
- टियर- 1 खाता:
- यह गैर-निकासी योग्य स्थायी सेवानिवृत्ति खाता है, जिसमें संग्रहीत राशि को ग्राहक के विकल्प के अनुसार निवेश किया जाता है।
- टियर- 2 खाता:
- यह एक स्वैच्छिक निकासी योग्य खाता है जिसकी अनुमति केवल तभी दी जाती है जब ग्राहक के नाम पर एक सक्रिय टियर-I खाता हो।
- अभिदाता अपनी इच्छानुसार इस खाते से अपनी बचत राशि को निकालने के लिये स्वतंत्र है।
- टियर- 1 खाता:
- लाभार्थी:
- एनपीएस मई 2009 से भारत के सभी नागरिकों के लिये उपलब्ध है।
- 18-65 वर्ष के आयु वर्ग में भारत का कोई भी नागरिक (निवासी और अनिवासी दोनों) एनपीएस में शामिल हो सकता है।
- लेकिन इसके अंतर्गत ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (Overseas Citizens of India) और भारतीय मूल के व्यक्ति (Person of Indian Origin) कार्डधारक तथा हिंदू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family) खाते खोलने के लिये पात्र नहीं हैं।
अटल पेंशन योजना:
- अटल पेंशन योजना के विषय में:
- यह योजना मई 2015 में सभी भारतीयों, विशेष रूप से गरीबों, वंचितों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
- इस योजना को पूरे देश में बड़े पैमाने पर लागू किया गया है जिसमें सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में इस योजना से जुड़ने वालों में पुरुषों एवं महिलाओं का अनुपात 57:43 का है।
- हालाँकि इसके अंतर्गत अभी तक केवल 5% पात्र आबादी को कवर किया गया है।
- प्रशासित:
- इस योजना को एनपीएस के माध्यम से ‘पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण’ द्वारा प्रशासित किया जाता है।
- योग्यता:
- इस योजना में 18-40 वर्ष के बीच की आयु वाला भारत का कोई भी नागरिक शामिल हो सकता है।
- इस योजना में देर से शामिल होने वाले ग्राहक की योगदान राशि ज़्यादा और जल्दी शामिल होने वाले ग्राहक की योगदान राशि कम होती है।
- लाभ:
- यह 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर 1000 रुपए से 5000 रुपए तक की न्यूनतम गारंटीड पेंशन प्रदान करता है।
- अभिदाता की मृत्यु होने पर पति या पत्नी को जीवन भर के लिये पेंशन की गारंटी दी जाती है।
- अभिदाता और उसकी/उसका पत्नी/पति दोनों की मृत्यु की स्थिति में नॉमिनी को पूरी पेंशन राशि का भुगतान किया जाता है।
पेंशन निधि नियामक और विकास प्राधिकरण
पेंशन निधि नियामक और विकास प्राधिकरण के विषय में:
- यह राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के व्यवस्थित विकास को विनियमित करने, बढ़ावा देने और सुनिश्चित करने के लिये संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित वैधानिक प्राधिकरण है।
- यह वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग (Department of Financial Service) के अंतर्गत काम करता है।
कार्य:
- यह विभिन्न मध्यवर्ती एजेंसियों जैसे- पेंशन फंड मैनेज़र (Pension Fund Manager), सेंट्रल रिकॉर्ड कीपिंग एजेंसी (Central Record Keeping Agency) आदि की नियुक्ति का कार्य करता है।
- यह एनपीएस के तहत पेंशन उद्योग को विकसित, बढ़ावा और नियंत्रित करता है तथा एपीवाई का प्रबंधन भी करता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश से संबंधित नए नियम
प्रिलिम्स के लियेभारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण मेन्स के लियेभारतीय बीमा क्षेत्र और उसे संबंधित चुनौतियाँ, इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने भारतीय बीमा कंपनी (विदेशी निवेश) नियम, 2015 में संशोधन करते हुए बीमा क्षेत्र में अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये अंतिम नियमों पर स्पष्टीकरण दिया है।
- संसद ने बीमा क्षेत्र में FDI की सीमा को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने के लिये बीमा संशोधन विधेयक, 2021 पारित किया था।
- वित्त मंत्रालय ने 'भारतीय बीमा कंपनी (विदेशी निवेश) संशोधन नियम, 2021' को अधिसूचित किया है।
प्रमुख बिंदु
नए नियमों संबंधी मुख्य प्रावधान
- प्रबंधन का निवासी भारतीय होना अनिवार्य
- विदेशी निवेश प्राप्त करने वाली भारतीय बीमा कंपनी के लिये यह अनिवार्य है कि उसके अधिकांश निदेशक, प्रमुख प्रबंधन, बोर्ड के अध्यक्ष में से कम-से-कम एक, प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी- निवासी भारतीय नागरिक हों।
- विदेशी निवेश का अर्थ
- विदेशी निवेश का अर्थ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों तरह के विदेशी निवेश से होगा।
- किसी विदेशी द्वारा किये गए प्रत्यक्ष निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहा जाता है, जबकि एक भारतीय कंपनी (जो किसी विदेशी व्यक्ति के स्वामित्व अथवा नियंत्रण में है) द्वारा किसी अन्य भारतीय इकाई में निवेश को अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश माना जाता है।
- विदेशी निवेश का अर्थ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों तरह के विदेशी निवेश से होगा।
महत्त्व
- विदेशी स्वामित्व की सीमा को 74 प्रतिशत तक बढ़ाने से भारत में बीमा उत्पादों के संदर्भ में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल करने में मदद मिलेगी। साथ ही यह भारत में बीमा उत्पादों की लागत को कम करने में भी मददगार साबित होगा।
- यह भारतीय प्रमोटरों की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, जो उन्हें प्रबंधन और बोर्ड पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करेगा, साथ ही अतिरिक्त पूंजी प्रवाह से उन्हें अपने उत्पाद को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
- यह छोटी बीमा कंपनियों या उन लोगों को भी लाभांवित करेगा, हाँ प्रमोटरों के पास अधिक पूंजी लगाने की क्षमता नहीं है, इस तरह ये नियम उन कंपनियों को उद्योग में प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाएंगे।
- इससे स्थानीय निजी बीमा कंपनियों को तेज़ी से बढ़ने और पूरे भारत में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने में मदद मिलने की संभावना है।
भारत में बीमा उत्पादों की उपस्थिति
- भारत में बीमा उत्पादों की उपस्थिति वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का तकरीबन 3.7 प्रतिशत है, जबकि विश्व औसत लगभग 6.31 प्रतिशत है।
- वर्तमान में जीवन बीमा क्षेत्र में वृद्धि 11-12 प्रतिशत तक सीमित हो गई है, जो कि विकास वित्त वर्ष 2020 तक 15-20 प्रतिशत पर था, क्योंकि महामारी ने ग्राहकों को स्टॉक या जीवन बीमा पॉलिसियों पर खर्च करने के बजाय नकदी बचाने के लिये मजबूर किया है।
- 31 मार्च, 2021 तक भारत में केवल 24 जीवन बीमाकर्त्ता और 34 गैर-जीवन प्रत्यक्ष बीमाकर्ता मौजूद थे, जबकि राष्ट्रीयकरण के समय देश में 243 जीवन बीमा कंपनियाँ (1956) और 107 गैर-जीवन बीमा कंपनियाँ (1973) मौजूद थीं।
अन्य संबंधित प्रयास (मॉडल इंश्योरेंस विलेज)
- भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने ग्रामीण क्षेत्रों में बीमा संबंधी सेवाओं की उपस्थिति को बढ़ावा देने के लिये ‘मॉडल इंश्योरेंस विलेज’ (MIV) की अवधारणा को प्रस्तुत किया है।
- इस अवधारणा के तहत ग्रामीणों के समक्ष आने वाले सभी बीमा योग्य जोखिमों के लिये व्यापक बीमा सुरक्षा प्रदान करने तथा रियायती अथवा सस्ती दरों पर बीमा कवर उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा।
भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI)
- मल्होत्रा समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के बाद, वर्ष 1999 में बीमा उद्योग को विनियमित करने और उसका विकास सुनिश्चित करने के लिये एक स्वायत्त निकाय के रूप में ‘बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण’ (IRDA) का गठन किया गया था।
- अप्रैल 2000 में IRDA को एक सांविधिक निकाय के रूप में निगमित किया गया।
- IRDA के प्रमुख उद्देश्यों में बीमा बाज़ार की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उपभोक्ता की पसंद और कम प्रीमियम के माध्यम से ग्राहकों की संतुष्टि को बढ़ाने के साथ ही प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना भी शामिल है।
- इसका मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है।
आगे की राह
- सॉवरेन वेल्थ फंड, ग्लोबल पेंशन फंड और बीमा फर्मों सहित लंबी अवधि के निवेशकों से निवेश के लिये भारत में बीमा की आवश्यक मांग होनी अनिवार्य है, अतः देश में बीमा उत्पादों की आवश्यकता को लेकर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
- भारत में वैश्विक उत्पादों के विकास और उपलब्धता एवं बेहतर उपस्थिति के लिये बीमा क्षेत्र को पूंजी एवं अंतर्राष्ट्रीय साझेदार की बड़ी भागीदारी की आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
वन गुज्जरों के अधिकार
प्रिलिम्स के लिये:वन अधिकार अधिनियम 2006, अनुच्छेद-21, गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान, वन गुज्जर मेन्स के लिये:वन गुज्जरों के अधिकार संबंधी मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने ‘गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान’ से कुछ वन गुज्जर परिवारों को हटाने के लिये राज्य सरकार को फटकार लगाई और कहा कि अधिकारियों द्वारा उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- वन गुज्जर गर्मियों में उत्तराखंड के तराई-भाबर और शिवालिक क्षेत्र से पश्चिमी हिमालय के ऊँचे बुग्याल और सर्दियों में इसके विपरीत मौसमी प्रवास करते हैं।
- समुदाय द्वारा अपनाई गई पारगमन की यह घटना कुछ जलवायु अनुकूलित रणनीतियों में से एक है जो सुनिश्चित करती है कि उनकी आजीविका व्यवहार्य में ग्रामीण और टिकाऊ बनी रहे।
- हालाँकि वन गुज्जरों के पास गर्मियों (गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान) और सर्दियों के घरों के लिये वैध परमिट हैं परंतु उन्हें अधिकारियों द्वारा पार्क में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत पशुपालकों के अधिकार:
- इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि चरागाहों के पास भी सामुदायिक वन संसाधन तथा चरागाहों तक पहुँचने का अधिकार हो, जिसके वे पात्र हैं।
- धारा 2 (ए) एक गाँव की पारंपरिक या प्रथागत सीमाओं के भीतर प्रथागत आम वन भूमि पर देहाती समुदायों के अधिकारों को निर्धारित करती है।
- यह देहाती समुदायों के मामले में किसी परिदृश्य के मौसमी उपयोग को भी निर्धारित करता है, जिसमें अवर्गीकृत वन, आरक्षित वन, गैर-सीमांकित वन, मानित वन, संरक्षित वन, अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं।
उच्च न्यायालय का आदेश:
- उच्च न्यायालय गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित बुग्याल (हिमालयी अल्पाइन घास के मैदान) में अपने ग्रीष्मकालीन घरों में प्रवास करने के लिये वन गुर्जरों के अधिकार का समर्थन करता है।
- उच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) का भी जिक्र किया।
संविधान का अनुच्छेद 21:
- यह घोषणा करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
- यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये उपलब्ध है।
- जीवन का अधिकार केवल अस्तित्व या जीवित रहने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार और जीवन के वे सभी पहलू शामिल हैं जो मनुष्य के जीवन को सार्थक, पूर्ण और जीने लायक बनाते हैं।
वन गुज्जर:
- वन गुज्जर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर जैसे हिमालयी राज्यों की तलहटी के जंगल में रहने वाले खानाबदोश समुदाय हैं।
- आमतौर पर वे अपनी भैंसों के साथ ऊपरी हिमालय में स्थित बुग्यालों (घास के मैदानों) में चले जाते हैं और केवल मानसून के अंत में तलहटी में अपनी अस्थायी झोपड़ियों (डेरों) में लौटते हैं।
- वे परंपरागत रूप से भैंस पालन करते हैं। वे आजीविका के लिये भैंस के दूध पर निर्भर हैं, जिसकी उन्हें उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बाज़ारों में अच्छी कीमत मिलती है।
गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय उद्यान:
अवस्थिति:
- यह उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी ज़िले में गढ़वाल हिमालय के उच्च क्षेत्र में स्थित है।
स्थापना:
- इस उद्यान को वर्ष 1955 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया था तथा वर्ष 1990 में एक राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था।
वनस्पति एवं प्राणीजात:
- जीवों में हिम तेंदुआ, ब्राउन बीयर, कस्तूरी मृग, पश्चिमी ट्रैगोपैन आदि शामिल हैं।
- इस अभयारण्य में मौजूद कुछ उल्लेखनीय वृक्षों में देवदार, चीड़ देवदार, चांदी की देवदार, नीली देवदार और कई पर्णपाती प्रजातियाँ शामिल हैं।
अन्य विशेषताएँ:
- इस उद्यान के भीतर हर-की-दून घाटी है जो ट्रेकिंग के लिये एक प्रसिद्ध स्थान है, जबकि ‘रुइनसारा’ उच्च झील पर्यटन स्थल के रूप में भी लोकप्रिय है।
- यह उद्यान टोंस नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र का निर्माण करता है।
- टोंस नदी यमुना नदी की एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है और गढ़वाल के ऊपरी हिस्सों तक पहुँचती है।
उत्तराखंड में स्थित अन्य संरक्षित क्षेत्र:
- जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान)।
- फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान जो यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल हैं।
- राजाजी राष्ट्रीय उद्यान।
- गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान।
- नंधौर वन्यजीव अभयारण्य।
स्रोत-डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
असंगठित श्रमिकों का पंजीकरण
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय प्रवासी सूचना प्रणाली, असीम पोर्टल, गरीब कल्याण रोज़गार अभियान, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, वन नेशन-वन राशन कार्ड, अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 मैन्स के लियेभारत में कोविड-19 के समय असंगठित श्रमिकों के समक्ष उपस्थित परेशानियाँ और उनका समाधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को असंगठित श्रमिकों की पंजीकरण प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया है ताकि वे विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत दिये जाने वाले कल्याणकारी लाभों का लाभ उठा सकें।
प्रमुख बिंदु
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- प्रवासी श्रमिकों का रिकॉर्ड:
- इसने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से लौटने वाले प्रवासी मज़दूरों का रिकॉर्ड रखने को कहा है, जिसमें उनके कौशल, उनके पूर्व के रोज़गार आदि का विवरण शामिल हो, ताकि प्रशासन उन्हें आवश्यक मदद पहुँचा सके।
- कॉमन नेशनल डेटाबेस:
- विभिन्न राज्यों में स्थित सभी संगठित श्रमिकों के लिये एक समान राष्ट्रीय डेटाबेस होना चाहिये।
- श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा असंगठित कामगारों के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने की प्रक्रिया को राज्यों के सहयोग और समन्वय से पूरा किया जाना चाहिये।
- यह राज्यों और केंद्र द्वारा विभिन्न योजनाओं के विस्तार के लिये पंजीकरण के रूप में काम कर सकता है।
- पर्यवेक्षण के लिये तंत्र:
- कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लाभार्थियों तक पहुँचता है या नहीं यह देखने के लिये एक निगरानी और पर्यवेक्षण तंत्र होना चाहिये।
- असहाय श्रमिकों को राशन:
- देश भर में असहाय प्रवासी कामगारों को आत्मनिर्भर भारत योजना (AtmaNirbhar Bharat Scheme) या केंद्र और राज्यों द्वारा उपयुक्त किसी अन्य योजना के तहत राशन उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
भारत में प्रवासन:
- प्रवासन (Migration) का अर्थ लोगों का अपने सामान्य निवास स्थान से दूर देश के भीतर या अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार लोगों की आवाजाही से है।
- प्रवास पर नवीनतम सरकारी आँकड़े वर्ष 2011 की जनगणना से प्राप्त होते हैं।
- वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार देश में 31.5 करोड़ प्रवासी (जनसंख्या का 31%) थे तो वहीं यह संख्या वर्ष 2011 की जनगणना के समय 45.6 करोड़ (जनसंख्या का 38%) हो गई थी।
- प्रवासी श्रमिक काम की तलाश, अधिक मज़दूरी, काम की अवधि, काम की निरंतरता आदि के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं, इसलिये यह संभव नहीं है कि प्रवासी श्रमिक कार्यबल का रिकॉर्ड/डेटा रखें।
- कोविड-19 के कारण लगाए लॉकडाउन ने शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासी श्रमिकों के पलायन को प्रेरित किया है।
- लॉकडाउन के कारण शहरी क्षेत्र बंद होने के कारण लाखों प्रवासी कामगार बेरोज़गार हो गए।
- स्थानीय अधिकारियों द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम और उनसे मिलने वाली सहायता अब कम होने लगी है।
प्रवासी कामगारों से संबंधित प्रावधान:
- सामाजिक सुरक्षा संहिता (Code of Social Security), 2020 की धारा 112 में असंगठित कामगारों, गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के रजिस्ट्रेशन पर विचार किया गया।
- इस संहिता की धारा 21 व्यावसायिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की स्थिति पर प्रवासी श्रमिकों के डेटाबेस को बनाए रखने, कौशल मानचित्रण तथा सरकारी योजनाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने में मदद करने के प्रावधान को सक्षम बनाती है।
- यह संहिता सुनिश्चित करती है कि प्रवासी श्रमिकों को वर्ष में एक बार नियोक्ताओं से उनके गृहनगर जाने के लिये यात्रा भत्ता मिले।
- अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम (Inter-State Migrant Workmen Act), 1979 के तहत उन सभी प्रतिष्ठानों को पंजीकृत करने की आवश्यकता है, जिन्होंने अंतर्राज्यीय प्रवासियों को काम पर रखा है, साथ ही उन सभी ठेकेदारों को भी लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता है जिन्होंने इन श्रमिकों को भर्ती किया है।
प्रवासियों से संबंधित पहलें:
- राशन कार्ड की इंटरऑपरेबिलिटी: वन नेशन-वन राशन कार्ड (One Nation-One Ration Card) के तहत एक राज्य के लाभार्थी अपने हिस्से का राशन दूसरे राज्यों में प्राप्त कर सकते हैं।
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना: यह योजना कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज’ (Pradhan Mantri Garib Kalyan Package) का एक हिस्सा है।
- गरीब कल्याण रोज़गार अभियान: यह योजना उन प्रवासी कामगारों और ग्रामीण नागरिकों को आजीविका के अवसर प्रदान करती है जो कोविड -19 प्रेरित लॉकडाउन के कारण अपने गृह राज्यों में वापस लौट आए हैं।
- असीम पोर्टल: कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (Ministry of Skill Development and Entrepreneurship) ने कुशल लोगों को स्थायी आजीविका के अवसर खोजने में मदद करने के लिये 'आत्मनिर्भर कुशल कर्मचारी-नियोक्ता मानचित्रण (Aatmanirbhar Skilled Employee Employer Mapping- ASEEM)' पोर्टल लॉन्च किया है।
- वंदे भारत मिशन (Vande Bharat Mission) के तहत भारत लौटे श्रमिक प्रवासियों का स्वदेश स्किल कार्ड (SWADES Skill Card) को असीम पोर्टल के साथ एकीकृत किया गया है।
- राष्ट्रीय प्रवासी सूचना प्रणाली: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority) ने एक ऑनलाइन डैशबोर्ड ‘राष्ट्रीय प्रवासी सूचना प्रणाली’ (National Migrant Information System) को विकसित किया है।
- यह ऑनलाइन पोर्टल प्रवासी कामगारों के बारे में केंद्रीय कोष बनाएगा और उनके मूल स्थानों तक उनकी यात्रा को सुचारु बनाने के लिये अंतर्राज्यीय संचार/तालमेल में मदद करेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
नए आईटी नियम, 2021 में ट्रेसेबिलिटी का प्रावधान
प्रिलिम्स के लियेसूचना और प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम 2000, आईटी नियम 2021, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता का अधिकार, अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 19(1)(a), अनुच्छेद 21, पुट्टास्वामी जजमेंट 2017 मेन्स के लियेसूचना और प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 के प्रमुख प्रावधान, एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन बनाम ट्रैसेबिलिटी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मैसेजिंग प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप ने नए आईटी नियम, 2021 में शामिल ट्रेसेबिलिटी (Traceability) प्रावधान को चुनौती देने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय की तरफ रुख किया है।
- इससे पूर्व इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (Ministry of Electronics and IT) ने व्हाट्सएप को नोटिस भेजकर अपनी गोपनीयता नीति के एक विवादास्पद अपडेट को वापस लेने के लिये कहा था, जो भारतीयों के डेटा संरक्षण हेतु खतरा हो सकता है।
प्रमुख बिंदु
ट्रेसेबिलिटी (Traceability) प्रावधान:
- इसके लिये मध्यस्थों को इस प्लेटफॉर्म पर सूचना के पहले संकेतक या उत्प्रेरक की पहचान करने हेतु सक्षम करने की आवश्यकता है।
- राज्यों की मध्यस्थता के नियम 4 (2) में यह प्रावधान किया गया है कि एक महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ जो मुख्य रूप से मैसेजिंग की प्रकृति में सेवाएँ प्रदान करता है, अपने कंप्यूटर संसाधन पर सूचना के पहले संकेतक की पहचान को सक्षम करेगा जैसा कि न्यायिक आदेश या आदेश द्वारा आवश्यक हो जो सूचना और प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 के तहत एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित किया गया।
- इन आवश्यकताओं का पालन करने में विफल पाए जाने पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 के तहत सोशल मीडिया मध्यस्थों को प्रदान की जाने वाली क्षतिपूर्ति को वापस ले लेगा।
उत्पन्न समस्याएँ:
- निजता और वाक-स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन:
- यह एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन (end-to-end encryption) प्रावधानों को खत्म करता है और उपयोगकर्ताओं की निजता और वाक्-स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार को जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक हिस्से के रूप में तथा संविधान के भाग III (पुट्टास्वामी जजमेंट 2017, Puttaswamy Judgement 2017) द्वारा स्वतंत्रता की गारंटी के अंग के रूप में संरक्षित किया गया है।
- विश्व भर के राष्ट्रों ने एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन (End-to-End Encryption) के "महत्त्वपूर्ण लाभ" और उस सुरक्षा प्रोटोकॉल को कमज़ोर करने वाले खतरों की पहचान की है।
- यह एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन (end-to-end encryption) प्रावधानों को खत्म करता है और उपयोगकर्ताओं की निजता और वाक्-स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हतोत्साहित करना:
- वाक्-स्वतंत्रता और निजता का अधिकार उपयोगकर्त्ताओं को अपने विचारों और विचारों को व्यक्त करने, गैरकानूनी गतिविधियों की रिपोर्ट करने और प्रतिशोध के डर के बिना लोकप्रिय विचारों को चुनौती देने के लिये प्रोत्साहित करता है, जबकि भारत में सूचना के पहले संकेतक की पहचान को सक्षम करने से गोपनीयता भंग होती है और यह विचारों की मुक्त अभिव्यक्ति को हतोत्साहित करता है।
- मीडिया की स्वतंत्रता पर रोक लगाना:
- इस तरह की आवश्यकता से पत्रकारों को अलोकप्रिय, नागरिक या कुछ अधिकारों पर चर्चा करने और राजनेताओं या नीतियों की आलोचना या वकालत करने वाले मुद्दों की जाँच पर प्रतिशोध का खतरा हो सकता है।
- ग्राहक और अधिवक्ता (Clients and Attorneys) इस डर से गोपनीय सूचना को साझा करने से मना कर सकते हैं कि उनके संचार की निजता और सुरक्षा अब लंबे समय तक सुनिश्चित नहीं है।
- ट्रेसेबिलिटी की क्षमता उत्प्रेरक खोजने में प्रभावी नहीं है:
- किसी विशेष संदेश के उत्प्रेरक या संकेतक का पता लगाने में ट्रेसेबिलिटी प्रभावी नहीं होगी क्योंकि लोग आमतौर पर वेबसाइटों या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामग्री देखते हैं और फिर उन्हें चैट में कॉपी-पेस्ट करते हैं।
- मूल रूप से इसे किस रूप में साझा किया गया था, इसके संदर्भ को समझना भी असंभव होगा।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79
- यह स्पष्ट करता है कि किसी भी मध्यस्थ को उसके प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध या होस्ट किये गए किसी भी तीसरे पक्ष की जानकारी, संचार या डेटा लिंक के लिये कानूनी या अन्यथा उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।
- तृतीय पक्ष की जानकारी से आशय एक नेटवर्क सेवा प्रदाता द्वारा मध्यस्थ के रूप में उसकी क्षमता से संबंधित किसी जानकारी से है।
- अधिनियम कहता है कि यह सुरक्षा तब लागू होगी जब उक्त मध्यस्थ किसी भी तरह से विचाराधीन संदेश के प्रसारण की पहल नहीं करता है, प्रसारण में निहित किसी भी जानकारी को संशोधित नहीं करता है या प्रेषित संदेश के रिसीवर का चयन नहीं करता है।
- सरकार या उसकी एजेंसियों द्वारा सूचित या अधिसूचित किये जाने के बावजूद यदि मध्यस्थ, प्रश्नाधीन सामग्री तक तत्काल पहुँच को अक्षम नहीं बनाता है, तो इसे अनुमोदित नहीं किया जाएगा ।
- इस अधिनियम के अनुसार, मध्यस्थ को इन संदेशों या उस मंच पर मौजूद सामग्री के किसी भी सबूत से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिये, ऐसा न करने पर वह अधिनियम के अंतर्गत अपनी प्रतिरक्षा खो देगा।
एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन बनाम ट्रेसेबिलिटी
- एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को यह सुनिश्चित करने में मदद करने हेतु तैयार किया गया था कि जिस व्यक्ति से आप बात कर रहे हैं, उसके अलावा कोई भी यह नहीं जान सकता कि आपने एक विशेष संदेश भेजा है। जबकि ट्रेसेबिलिटी यह पता लगाने की क्षमता के ठीक विपरीत है, जिससे पता चलता है कि किसने किसे क्या संदेश भेजा है।
- एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन एक संचार-प्रणाली है जहाँ केवल संचार करने वाले उपयोगकर्त्ता ही संदेशों को पढ़ सकते हैं।
- ट्रेसबिलिटी द्वारा निजी कंपनियों को प्रत्येक दिन भेजे जाने वाले अरबों संदेशों (किसने-क्या भेजा और क्या संग्रहीत किया) की जानकारी एकत्रित करने के लिये मज़बूर किया जाएगा। इसके लिये एक प्लेटफ़ॉर्म की आवश्यकता होगी जो इन सूचनाओं को केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सौंपने के उद्देश्य से अधिक डेटा एकत्र करने में सक्षम होगी।