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डेली न्यूज़

  • 27 Dec, 2023
  • 43 min read
शासन व्यवस्था

प्रेस, नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023

प्रिलिम्स के लिये:

प्रेस और पुस्तकों का रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1867, मेटकाफ अधिनियम, जॉन एडम्स द्वारा लाइसेंसिंग विनियम।

मेन्स के लिये:

भारत में प्रेस विनियमन, प्रेस की मुख्य विशेषताएँ और नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1867 के औपनिवेशिक युग के कानून को निरस्त करते हुए प्रेस, नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023 पारित किया।

  • यह विधेयक अगस्त 2023 में राज्यसभा द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है।

प्रेस, नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • पत्रिकाओं का रजिस्ट्रीकरण: यह विधेयक पत्रिकाओं के रजिस्ट्रीकरण का प्रावधान करता है, जिसमें सार्वजनिक समाचार या सार्वजनिक समाचार पर टिप्पणियों वाला कोई भी प्रकाशन शामिल है।
    • पत्रिकाओं में किताबें या विज्ञान से संबंधित और अकादमिक पत्रिकाएँ शामिल नहीं हैं।
      • जबकि अधिनियम समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और पुस्तकों के रजिस्ट्रीकरण का प्रावधान करता है। इसने पुस्तकों की सूचीकरण की भी व्यवस्था की।
    • पुस्तकों को विधेयक के दायरे से बाहर कर दिया गया है, क्योंकि एक विषय के रूप में पुस्तकों का प्रबंधन मानव संसाधन और विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • प्रकाशनों हेतु रजिस्ट्रीकरण प्रोटोकॉल: विधेयक आवधिक प्रकाशकों को प्रेस रजिस्ट्रार जनरल और निर्दिष्ट स्थानीय प्राधिकरण के माध्यम से ऑनलाइन रजिस्ट्रीकरण करने में सक्षम बनाता है।
    • इसके अलावा आतंकवाद या राज्य सुरक्षा के खिलाफ कार्रवाई के दोषी व्यक्तियों के लिये किसी पत्रिका का प्रकाशन निषिद्ध है।
    • जबकि अधिनियम में ज़िला मजिस्ट्रेट को एक घोषणा पत्र देना अनिवार्य था, जिसे इसे समाचार पत्र प्रकाशन के लिये प्रेस रजिस्ट्रार के पास भेजना था।
  • विदेशी पत्रिकाएँ: भारत के भीतर विदेशी पत्रिकाओं के मुद्रण के लिये केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होती है। ऐसी पत्रिकाओं के पंजीयन के लिये विशिष्ट प्रोटोकॉल की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
  • प्रेस महा-रजिस्ट्रार: यह विधेयक भारत के प्रेस महा-रजिस्ट्रार की भूमिका की व्याख्या करता है, जो सभी पत्रिकाओं के लिये रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी करने हेतु उत्तरदायी है।
    • इसके अतिरिक्त उसके कर्त्तव्यों में पत्र-पत्रिकाओं के रजिस्टर बनाए रखना, पत्र-पत्रिकाओं के शीर्षकों के लिये दिशा-निर्देश स्थापित करना, परिचालन आँकड़ों की पुष्टि करना तथा रजिस्ट्रीकरण संशोधन, निलंबन एवं रद्दीकरण का प्रबंधन करना शामिल है।
  • मुद्रण प्रेस रजिस्ट्रीकरण: प्रिंटिंग प्रेस से संबंधित घोषणाएँ अब ज़िला मजिस्ट्रेट के समक्ष की गई घोषणाओं की आवश्यकता से हटकर प्रेस महारजिस्ट्रार को ऑनलाइन जमा की जा सकती हैं।
  • रजिस्ट्रीकरण का निलंबन तथा रद्द करना: प्रेस रजिस्ट्रार जनरल के पास भ्रामक सूचना प्रस्तुत करने, प्रकाशन में रुकावट अथवा अनुचित वार्षिक विवरण प्रदान करने सहित विभिन्न कारणों से किसी पत्रिका के रजिस्ट्रीकरण को न्यूनतम 30 दिनों (180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है) के लिये निलंबित करने का अधिकार है।
    • इन मुद्दों को हाल करने में विफलता के परिणामस्वरूप रजिस्ट्रीकरण रद्द किया जा सकता है।
    • रद्द करने के अन्य आधारों में अन्य पत्रिकाओं के साथ शीर्षकों की समानता अथवा स्वामी/प्रकाशक द्वारा आतंकवाद अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध कृत्यों से संबंधित दोषसिद्धि शामिल है।
  • दंड और अपील: यह विधेयक महारजिस्ट्रार को अपंजीकृत पत्र-पत्रिका प्रकाशन अथवा निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर वार्षिक विवरण प्रस्तुत करने में विफलता के लिये ज़ुर्माना लगाने का अधिकार देता है।
    • इन निर्देशों का पालन न करने पर छह महीने तक की कैद हो सकती है।
    • इसके अतिरिक्त रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्रों को अस्वीकार करने, रजिस्ट्रीकरण के निलंबन/रद्दीकरण अथवा लगाए गए दंड के विरुद्ध अपील के प्रावधान प्रेस और रजिस्ट्रीकरण अपीलीय बोर्ड के समक्ष अपील दायर करने के लिये 60 दिनों की अवधि के साथ उपलब्ध हैं।

प्रेस विनियमन से संबंधित अन्य स्वतंत्रता-पूर्व कानून क्या हैं?

  • लॉर्ड वेलेज़ली (वर्ष 1799) के तहत सेंसरशिप: फ्राँसीसी आक्रमण की आशंकाओं के कारण पूर्व-सेंसरशिप सहित सख्त युद्धकालीन प्रेस नियंत्रण लागू किया गया।
    • बाद में सन् 1818 में लॉर्ड हेस्टिंग्स द्वारा प्री-सेंसरशिप हटाकर इसमें ढील/छूट दी गई।
  • जॉन एडम्स द्वारा लाइसेंसिंग विनियम (1823): बिना लाइसेंस के प्रेस शुरू करने या संचालित करने के लिये दंड का प्रावधान किया गया, जिसे बाद में बढ़ाते हुए विभिन्न प्रकाशनों पर लागू कर दिया गया।
    • मुख्य रूप से भारतीय भाषा के समाचार पत्रों या भारतीयों के नेतृत्व वाले समाचार पत्रों को निशाना बनाया गया, जिसके कारण राममोहन राय का मिरात-उल-अकबर बंद हो गया।
  • प्रेस अधिनियम, 1835 (मेटकाफ अधिनियम): प्रतिबंधात्मक 1823 अध्यादेश को निरस्त कर दिया गया, जिससे मेटकाफ को "भारतीय प्रेस के मुक्तिदाता" की उपाधि मिली।
    • मुद्रकों/प्रकाशकों द्वारा अपने परिसर के बारे में सटीक घोषणाएँ करना अनिवार्य की गईं और आवश्यकतानुसार समाप्ति की अनुमति दी गई।
  • वर्ष 1857 के विद्रोह के दौरान लाइसेंसिंग अधिनियम: 1857 के आपातकाल के कारण आगे लाइसेंसिंग प्रतिबंध लगाए गए।
    • मौजूदा रजिस्ट्रीकरण प्रक्रियाओं को संवर्द्धित किया गया, जिससे सरकार को किसी भी मुद्रित सामग्री के प्रसार को रोकने की शक्ति मिल गई।
  • वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम, 1878: इसे वर्नाक्यूलर प्रेस को विनियमित करने, राजद्रोह से संबंधित लेखन को प्रतिबंधित करने और विभिन्न समुदायों के बीच कलह को रोकने के लिये डिज़ाइन किया गया।
    • स्थानीय समाचार पत्रों के मुद्रकों और प्रकाशकों को सरकार विरोधी या विभाजनकारी विषयों का प्रसार करने से परहेज के लिये एक बॉण्ड पर हस्ताक्षर करने की मांग की गई।
    • मजिस्ट्रेट द्वारा लिये गए निर्णय न्यायालय में अपील के किसी भी अवसर के बिना अंतिम होते थे।
  • समाचार पत्र (अपराधों को उकसाना) अधिनियम, 1908: हिंसा या हत्या को उकसाने, आपत्तिजनक विषय-वस्तुओं को प्रकाशित करने वाली प्रेस संपत्तियों को ज़ब्त करने के लिये मजिस्ट्रेटों को अधिकार दिया गया।
    • उग्र राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक को राजद्रोह के आरोपों का सामना करना पड़ा और उन्हें मांडले ले जाया गया, जिससे व्यापक विरोध और हड़ताल के घटनाएँ हुईं।
  • भारतीय प्रेस अधिनियम, 1910: स्थानीय सरकार रजिस्ट्रीकरण के समय सुरक्षा की मांग कर सकती थी, उल्लंघन करने वाले समाचार पत्रों को दंडित कर सकती थी और जाँच के लिये निशुल्क प्रतियों की मांग कर सकती थी।
    • वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम के समान कड़े नियम लागू करके प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित किया गया।

सामाजिक न्याय

बाल-विवाह समाप्त करने की दिशा में प्रगति

प्रिलिम्स के लिये:

सतत् विकास लक्ष्य 5.3, UNICEF, बाल-विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006, बाल विवाह निषेध अधिकारी, धनलक्ष्मी योजना

मेन्स के लिये:

बाल विवाह से संबंधित प्रमुख कारक, विधायी ढाँचा और भारत में बाल विवाह की रोकथाम से संबंधित पहल

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

'द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ' जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन भारत में बाल-विवाह की मौजूदा स्थिति को उजागर करता है, जिससे समाज में गहनता से व्याप्त इस कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई में प्रगति तथा विफलता दोनों का पता चलता है।

अध्ययन में उजागर प्रमुख रुझान क्या हैं?

  • भारत में स्थिति:
    • वर्ष 1993 में बाल-विवाह के मामले 49% थे जो वर्ष 2021 में घटकर 22% हो गए। बालकों के बाल-विवाह के मामले वर्ष 2006 में 7% थे जो वर्ष 2021 में घटकर 2% हो गए, यह राष्ट्रीय स्तर पर समग्र गिरावट का संकेत देता है।
      • हालाँकि वर्ष 2016 से 2021 के बीच यह प्रगति धीमी हो गई तथा कुछ राज्यों में बाल-विवाह में चिंताजनक वृद्धि हुई।
      • विशेष रूप से छह राज्यों में बालिका बाल-विवाह में वृद्धि देखी गई, जिनमें मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा तथा पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
      • छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर तथा पंजाब सहित आठ राज्यों में बालकों के बाल-विवाह में वृद्धि देखी गई।
    • वैश्विक रुझान: विश्व स्तर पर बाल-विवाह के विरुद्ध हुई प्रगति उल्लेखनीय रही है किंतु कोविड-19 महामारी ने इस प्रगति को खतरे में डाल दिया, जिससे एक दशक में लगभग 10 मिलियन से अधिक बालिकाओं के बाल-विवाह का खतरा बढ़ गया है।

बाल-विवाह से संबंधित प्रमुख कारक क्या हैं?

  • आर्थिक कारक: गरीबी में जीवनयापन करने वाले परिवार विवाह को लड़की की ज़िम्मेदारी को उसके पति के परिवार को हस्तांतरित करके अपने आर्थिक बोझ को कम करने के साधन के रूप में देख सकते हैं
    • कुछ क्षेत्रों में दहेज देने की परंपरा परिवारों को बेटी के उचित आयु पूर्ण होने पर उच्च दहेज लागत से बचने के लिये कम उम्र में बेटियों का विवाह करने के लिये प्रभावित कर सकती है।
    • इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं अथवा कृषि संकट से ग्रस्त क्षेत्रों में आर्थिक कठिनाइयों का सामना करने वाले परिवार इस समस्या का सामना करने अथवा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये शीघ्र विवाह का विकल्प चुन सकते हैं।
  • सामाजिक मानदंड और पारंपरिक प्रथाएँ: लंबे समय से चली आ रहे रीति-रिवाज़ और परंपराएँ अक्सर एक सामाजिक आदर्श के रूप में कम उम्र में विवाह को प्राथमिकता देती हैं, जो पीढ़ियों तक इस प्रथा को कायम रखता है।
    • समुदाय या परिवार की ओर से प्रचलित रीति-रिवाज़ों और परंपराओं के अनुरूप दबाव डालने के कारण विशेषकर लड़कियों का विवाह जल्दी हो जाता है।
  • लैंगिक असमानता एवं भेदभाव: लड़कों की तुलना में लड़कियों की बड़े होने की क्षमता कम उम्र में विवाह में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
    • जो परिवार कम उम्र में शादी को अपनी बेटियों के भविष्य को सुरक्षित करने के साधन के रूप में देखते हैं, वे अक्सर अपनी बेटियों के लिये शिक्षा और कॅरियर में उन्नति के पारंपरिक तरीकों की बजाय इसे चुनते हैं।

नोट:

यूनिसेफ बाल विवाह को लड़कियों और लड़कों दोनों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में वर्गीकृत करता है।

  • सतत् विकास लक्ष्य 5.3 में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता और महिलाओं एवं लड़कियों के सशक्तीकरण के लक्ष्य के साथ सतत् विकास लक्ष्य 5 को प्राप्त करने में बाल विवाह उन्मूलन महत्त्वपूर्ण है।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2022 में दुनिया भर में 5 में से 1 लड़की (19%) की शादी बचपन में ही कर दी गई।

भारत में बाल विवाह से संबंधित विधायी ढाँचा और पहल क्या हैं?

  • वैधानिक ढाँचा: भारत ने 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम लागू किया, जिसमें पुरुषों के लिये विवाह की कानूनी उम्र 21 वर्ष और महिलाओं के लिये 18 वर्ष निर्धारित की गई।
    • बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 16 राज्य सरकारों को विशिष्ट क्षेत्रों के लिये 'बाल विवाह निषेध अधिकारी (CMPO' नियुक्त करने की अनुमति देती है।
      • CMPO बाल विवाह को रोकने, अभियोजन के लिये साक्ष्य एकत्र करने, ऐसे विवाहों को बढ़ावा देने या सहायता के खिलाफ परामर्श देने, उनके हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और समुदायों को संवेदनशील बनाने के लिये ज़िम्मेदार है।
    • सरकार ने महिलाओं की शादी की उम्र को पुरुषों के बराबर करने के लिये इसे 21 साल करने के लिये 'बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021' नाम से एक विधेयक पेश किया है।
  • संबंधित पहल:
    • धनलक्ष्मी योजना: यह बीमा कवरेज वाली बालिका के लिये एक सशर्त नकद हस्तांतरण योजना है।
      • इसका उद्देश्य माता-पिता को चिकित्सा खर्चों के लिये बीमा कवरेज की पेशकश और लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित कर बाल विवाह प्रथा को खत्म करना है।
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) जैसी योजनाओं का उद्देश्य लड़कियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के माध्यम से सशक्त बनाना एवं बाल विवाह को हतोत्साहित करना है।

नोट:

ओडिशा सरकार ने बाल विवाह से निपटने के लिये एक व्यापक रणनीति तैयार की है। इसमें लड़कियों की स्कूल में उपस्थिति और गाँव में उपस्थिति पर नज़र रखी जाती है तथा 10-19 वर्ष की लड़कियों के लिये "अद्विका" मंच का प्रयोग किया जाता है।

  • कमज़ोर जनजातीय समूहों को प्रोत्साहन के साथ गाँवों को बाल विवाह मुक्त घोषित करने के लिये दिशा-निर्देश मौजूद हैं।
  • ज़िले विभिन्न दृष्टिकोण लागू करते हैं, जैसे- लड़कियों का डेटाबेस बनाए रखना और विवाह में आधार संख्या अनिवार्य करना।

आगे की राह

  • आर्थिक सशक्तीकरण पहल: जोखिमपूर्ण स्थिति वाली लड़कियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण और उद्यमिता के अवसर प्रदान करना, शीघ्र विवाह के लिये व्यवहार्य विकल्प प्रदान करना चाहिये।
    • परिवारों के लिये सूक्ष्म ऋण तक पहुँच को सुविधाजनक बनाने, आय सृजन को प्रोत्साहित करने और कम उम्र में विवाह के लिये वित्तीय दबाव को कम करने की आवश्यकता है।
  • कला और मीडिया के माध्यम से सामुदायिक जुड़ाव: बाल विवाह के परिणामों को लेकर जागरूक करने और शिक्षित करने के लिये कला-आधारित कार्यशालाएँ, थिएटर प्रदर्शन या सामुदायिक कथा सत्र आयोजित करने की आवश्यकता है।
    • संगीत, नुक्कड़ नाटक या लघु फिल्मों के माध्यम से प्रभावी ढंग से अभियानों के संचालन के लिये स्थानीय कलाकारों और प्रभावशाली लोगों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
  • सहकर्मी शिक्षा और परामर्श कार्यक्रम: युवा नेताओं को बाल विवाह के विरुद्ध वकालत करने के लिये प्रशिक्षित करने, उन्हें अपने समुदायों के भीतर साथियों को शिक्षित करने और सलाह देने हेतु सशक्त करने की आवश्यकता है।
    • स्कूलों में व्यापक शिक्षा मॉड्यूल पेश करने, छात्रों के बीच चर्चा और जागरूकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति की विवेचना कीजिये। (2016)


शासन व्यवस्था

स्वच्छता प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये :

स्वच्छता प्रणालियाँ, ऑन-साइट स्वच्छता प्रणालियाँ, ट्विन पिट और सेप्टिक टैंक, शहरी सीवर प्रणालियाँ, मल कीचड़ उपचार संयंत्र (FSTPs)

मेन्स के लिये :

स्वच्छता प्रणालियाँ, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप एवं उनके प्रारूप तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

उपयोग किया गया पानी जो ज़मीन, खुली जगह, नालियों या नहरों में प्रवाहित होता है, उसे सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के लिये उचित स्वच्छता प्रणालियों में प्रवाहित किया जाना चाहिये।

  • सर्वप्रथम स्वच्छता की शुरुआत 4000 ईसा पूर्व के आसपास प्राचीन सभ्यताओं द्वारा की गई थी, जबकि आधुनिक स्वच्छता प्रणाली वर्ष 1800 के आसपास लंदन में बनाई गई थी।

स्वच्छता प्रणालियों के प्रकार क्या हैं?

  • ऑन-साइट स्वच्छता प्रणालियाँ (OSS):
    • ट्विन पिट, सेप्टिक टैंक, बायो-डाइजेस्टर शौचालय, बायो-टैंक और यूरिन डायवर्ज़न शुष्क शौचालय ग्रामीण या विशाल शहरी सेटिंग्स में प्रचलित ऑन-साइट स्वच्छता प्रणालियों (OSS) के रूप में काम करते हैं। ये प्रणालियाँ अलग-अलग स्थानिक बाधाओं को दूर करते हुए मल कीचड़ या सेप्टेज युक्त उपयोग किये गए पानी का निष्क्रिय रूप से उपचार करती हैं।
    • ट्विन पिट (गड्डे) और सेप्टिक टैंक:
      • ट्विन पिट्स कार्यक्षमता: इसमें एक-एक करके उपयोग किये जाने वाले ट्विन पिट्स होते हैं, जुड़वाँ गड्ढे तरल पदार्थ को ज़मीन में सोखने की सुविधा प्रदान करते हैं, जबकि ठोस पदार्थ जम जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं।
        • एक पिट्स दो साल तक निष्क्रिय रहता है, जिससे पुन: उपयोग के लिये रोगजनक मुक्त सामग्री सुनिश्चित होती है, लेकिन यह चट्टानी मिट्टी के लिये अनुपयुक्त होता है।
      • सेप्टिक टैंक संचालन: सेप्टिक टैंक जलरोधक होते हैं; जैसे ही इस्तेमाल किया हुआ पानी टैंक से बहता है, ठोस पदार्थ नीचे बैठ जाते हैं, जबकि मैल- अधिकतर तेल और ग्रीस ऊपर तैरता रहता है।
        • जबकि सेप्टिक टैंक में जमे हुए ठोस पदार्थ समय के साथ अपघटित हो जाते हैं, जमा हुए मल-कीचड़ और मैल को नियमित अंतराल पर हटाया जाना चाहिये।
        • यह काम वैक्यूम पंपों से सुसज्जित ट्रकों का उपयोग करके किया जाता है जो मल कीचड़ को निष्कासित करते हैं और इसे मल कीचड़ उपचार संयंत्र (FSTP) नामक उपचार सुविधाओं तक पहुँचाते हैं।
  • शहरी सीवर प्रणाली:
    • घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में, जहाँ प्रोपर्टीज़ के भीतर जगह की कमी है, पाइपों का एक भूमिगत नेटवर्क, जिसे सीवर भी कहा जाता है, उपयोग किये गए जल को एकत्र करता है और उपचार सुविधाओं तक पहुँचाता है।
    • आपस में जुड़े पाइपों का यह नेटवर्क उपयोग किये गए पानी को शौचालयों, स्नानघरों, रसोई से गुरुत्वाकर्षण द्वारा या पंपों की मदद से उपचार सुविधाओं तक पहुँचाता है। सीवरों में रख-रखाव और रुकावटों को दूर करने के लिये मशीन-होल्स होते हैं।
    • यह प्रयुक्त जल, जिसे सीवेज कहा जाता है, सीवर द्वारा सीवेज उपचार संयंत्रों (STP) तक पहुँचाया जाता है।

उपचार सुविधाओं के क्या कार्य हैं?

  • मल कीचड़ उपचार संयंत्र (FSTP):
    • FSTP की किस्में: FSTP या तो यांत्रिक (स्क्रू प्रेस जैसे उपकरण का उपयोग करके) या गुरुत्वाकर्षण-आधारित सिस्टम (रेत सुखाने वाले बेड का उपयोग करके) में कार्य करते हैं। ये सुविधाएँ प्रभावी रोकथाम, परिवहन और उपचार के उद्देश्य से मल कीचड़ का प्रबंधन करती हैं, जिसे प्रायः मल कीचड़ प्रबंधन (FSM) के रूप में जाना जाता है।
      • छोटे शहरों अथवा ग्रामों में OSS-FSM प्रचलित है।
    • पुन: उपयोग तथा निपटान: FSTPs से उपचारित ठोस पदार्थ को जैविक नगरपालिका अपशिष्ट के साथ मिश्रित कर खाद निर्मित हो सकती है जो कृषि में पुन: प्रयोज्य के रूप में कार्य करती है।
      • उपचारित जल को अमूमन FSTP परिसर के भीतर भूनिर्माण के लिये पुन: उपयोग किया जाता है, जो एक सतत् दृष्टिकोण को उजागर करता है।
  • वाहित मल उपचार संयंत्र (STPs):
    • व्यापक जल उपचार: STPs उपयोग किये गए जल से प्रदूषकों को नष्ट करने के लिये भौतिक, जैविक एवं रासायनिक प्रक्रियाओं को नियोजित करते हैं।
      • FSTPs के समान इसके प्राथमिक चरण में ठोस पदार्थों को अलग किया जाता है तथा इसके बाद शुद्धिकरण होता है जहाँ सूक्ष्मजीव ठोस पदार्थों को समाप्त करते हैं जिससे अंततः कीटाणुशोधन होता है।
    • उन्नत तकनीकें तथा विभिन्न प्रकार: उन्नत STPs जल के पुन: उपयोग को बढ़ाने के लिये झिल्ली निस्यंदन (Membrane Filtration) जैसी विधियों का उपयोग करते हैं।
      • ये सुविधाएँ यंत्रीकृत तथा गैर-यंत्रीकृत प्रकारों में उपलब्ध हैं, जिनका चयन शहर प्रशासन की तकनीकी तथा वित्तीय क्षमताओं के आधार पर किया जाता है।

नोट: FSTPs छोटे होते हैं तथा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन साइटों के साथ नियोजित किये जा सकते हैं अथवा कीचड़ स्रोतों के समीप स्थापित किये जा सकते हैं। इसके विपरीत STPs बड़ी, केंद्रीकृत सुविधाएँ हैं जो संपूर्ण समुदायों अथवा शहरी क्षेत्रों में उपयोग की जाती हैं तथा अमूमन उपचारित जल के निर्वहन के लिये जल निकायों के समीप स्थित होती हैं।

ऐसी जटिल स्वच्छता प्रणाली की क्या आवश्यकता है?

  • जैसे-जैसे पानी अपने विभिन्न घरेलू और गैर-घरेलू उपयोगों के माध्यम से आगे बढ़ता है, यह प्राकृतिक तथा साथ ही मानव-निर्मित अशुद्धियों को जमा करता है जिसमें कार्बनिक पदार्थ, डिटर्जेंट से पोषक तत्त्व, बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी जैसे रोगजनक, सॉल्वैंट्स एवं कीटनाशकों से लेकर भारी धातुएँ शामिल हैं।  इसमें मिट्टी, मलबा, खनिज व लवण जैसे ठोस पदार्थ भी शामिल हैं।
  • यह सुनिश्चित करने के लिये कि उपयोग किया गया पानी प्राकृतिक वातावरण में पुन: शामिल होने पर इन अशुद्धियों के परिणामस्वरूप प्रदूषित या सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण नहीं बनता है, उपयोग किये गए पानी का निपटान या पुन: उपयोग करने से पहले उसमें शामिल प्रदूषकों को हटाना और उसका उपचार करना आवश्यक है।
  • स्वच्छता के प्राथमिक प्रेरक हमेशा गंध और सौंदर्यशास्त्र रहे हैं, लेकिन जब तक सार्वजनिक तथा पर्यावरणीय स्वास्थ्य के साथ उनका संबंध स्पष्ट नहीं हुआ तब तक लोगों को यह एहसास नहीं हुआ कि "आउट ऑफ साइट" दृष्टिकोण का उपयोग करना अपर्याप्त था।

निष्कर्ष:

  • स्वच्छता प्रणालियों के आविष्कार के बाद से सार्वजनिक स्वास्थ्य में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है, लेकिन सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच एक चुनौती बनी हुई है।
  • खराब डिज़ाइन पर निर्मित प्रणाली और असुरक्षित संचालन तथा रखरखाव प्रथाओं जैसे मुद्दों का समाधान उपयोग किये गए पानी के प्रभावी ढंग से प्रबंधन एवं हमारे मूल्यवान जल निकायों व भूजल जलभृतों की रक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।

शासन व्यवस्था

डिकोडिंग गुड गवर्नेंस

प्रिलिम्स के लिये:

अटल बिहारी वाजपेयी और सुशासन दिवस, विश्व बैंक, भ्रष्टाचार अनुभूति सूचकांक 2022, केंद्रीय लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली, सूचना का अधिकार अधिनियम, 73वाँ और 74वाँ  सांविधानिक संशोधन, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, नागरिक चार्टर

मेन्स के लिये:

भारत में शासन व्यवस्था से संबंधित प्रमुख मुद्दे, भारत में सुशासन से संबंधित प्रमुख पहल

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

25 दिसंबर को भारत ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर सुशासन दिवस मनाया।

  • वार्षिक तौर पर मनाया जाने वाला यह दिवस शासन व्यवस्था तथा सरकारी प्रक्रियाओं में उत्तरदायित्व के संबंध में नागरिक जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करता है।
  • इस अवसर पर एकीकृत सरकारी ऑनलाइन प्रशिक्षण (Integrated Government Online Training- iGOT) कर्मयोगी प्लेटफॉर्म पर तीन नई सुविधाओं, माई iGOT, ब्लेंडेड प्रोग्राम और क्यूरेटेड प्रोग्राम का शुभारंभ किया गया।

सुशासन क्या है?

  • परिचय: 
    • शासन व्यवस्था उन प्रक्रियाओं, प्रणालियों तथा संरचनाओं को संदर्भित करती है जिनके माध्यम से संगठनों, समाजों अथवा समूहों को निर्देशित, नियंत्रित एवं प्रबंधित किया जाता है।
      • सुशासन को मूल्यों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके माध्यम से एक सार्वजनिक संस्थान सार्वजनिक मामलों का संचालन करती है तथा सार्वजनिक संसाधनों का प्रबंधन इस तरह से करती है जो मानवाधिकारों, विधि सम्मत शासन एवं समाज की ज़रूरतों के अनुरूप हो।
    • विश्व बैंक सुशासन को उन परंपराओं तथा संस्थानों के संदर्भ में परिभाषित करता है जिनके द्वारा किसी देश में प्राधिकार का प्रयोग किया जाता है। इनमें शामिल हैं:
      • वह प्रक्रिया जिसके द्वारा सरकारों का चयन, निगरानी तथा प्रतिस्थापन किया जाता है।
      • प्रभावी नीतियों को प्रभावी ढंग से तैयार कर उन्हें कार्यान्वित करने की सरकार की क्षमता।
      • उन संस्थानों के प्रति नागरिकों तथा राज्य का सम्मान जो उनके बीच आर्थिक एवं सामाजिक संबंधों को नियंत्रित करते हैं।

सुशासन के मूल सिद्धांत:

विश्वव्यापी शासन संकेतक क्या है?

  • विश्व बैंक की विश्वव्यापी शासन संकेतक परियोजना शासन के छह मूलभूत उपायों के आधार पर 200 से अधिक देशों का मूल्यांकन करती है।
  •  छह संकेतक हैं:
    • अभिव्यक्ति और दायित्व 
    • राजनीतिक स्थिरता और हिंसा का अभाव
    • सरकारी प्रभावशीलता
    • नियामक गुणवत्ता
    • विधि का शासन
    • भ्रष्टाचार पर नियंत्रण

भारत में शासन से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • भ्रष्टाचार और नौकरशाही अक्षमता: भ्रष्टाचार बोध सूचकांक- 2022 में रिश्वतखोरी और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के बारे में चिंताओं को उजागर करते हुए भारत 180 देशों में 85वें स्थान पर था।
  • असमानता और सामाजिक बहिष्कार: आर्थिक विकास के बावजूद, अमीर और गरीब के बीच बहुत बड़ा अंतर बना हुआ है। वर्ष 2022 की ऑक्सफैम रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में सबसे अमीर 1% लोगों के पास देश की 40% से अधिक संपत्ति है, जबकि निम्न स्तरीय 50% के पास सिर्फ 3% संपत्ति है। इससे स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अवसरों तक पहुँच में असमानताएँ बढ़ती हैं।
  • नीतियों और योजनाओं का अप्रभावी कार्यान्वयन: कई अच्छे इरादे वाले सरकारी कार्यक्रम खराब निष्पादन के कारण प्रभावित होते हैं, जिससे उनका प्रभाव सीमित हो जाता है।
    • वर्ष 2023 में CAG ने आयुष्मान भारत योजना में अनियमितताएँ पाईं, इसके अलावा CAG की एक अन्य रिपोर्ट में झारखंड में पुरुषों को विधवा पेंशन के हस्तांतरण पर प्रकाश डाला गया है।
  • अपर्याप्त न्यायिक अवसंरचना: भारत के न्यायालय बड़े पैमाने पर लंबित मामलों के बोझ से दबे हुए हैं, जिससे विवाद समाधान और न्याय तक पहुँच में देरी हो रही है, खासकर हाशिये पर रहने वाले लोगों को।
    • वर्ष 2023 में सर्वोच्च न्यायालय में 80,000 से अधिक मामले लंबित थे, जिससे कानूनी सहायता तक समय पर पहुँच को लेकर चिंताएँ बढ़ गईं।
  • पर्यावरणीय गिरावट और जलवायु परिवर्तन: भारत को वायु प्रदूषण, जल की कमी और वनों की कटाई जैसी प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2023 की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट ने पर्यावरणीय नियमों के कमज़ोर प्रवर्तन को उजागर करते हुए कई भारतीय शहरों को विश्व स्तर पर सबसे प्रदूषित शहरों में स्थान दिया है।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण और जवाबदेही का अभाव: बढ़ते पक्षपात और चुनावी लाभ पर ध्यान कभी-कभी भारत में दीर्घकालिक नीति नियोजन और लोक कल्याण पर भारी पड़ जाता है।

भारत में सुशासन से संबंधित प्रमुख पहल क्या हैं?

  • पारदर्शिता और दायित्व:
    • सूचना का अधिकार अधिनियम (2005): यह अधिनियम नागरिकों को सरकारी जानकारी तक पहुँचने, पारदर्शिता को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार को कम करने का अधिकार देता है।
    • केंद्रीय लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (CPGRAMS): सरकारी विभागों के खिलाफ शिकायतें दर्ज करने और उन पर नज़र रखने के लिये ऑनलाइन मंच।
    • ई-गवर्नेंस पहल: बढ़ी हुई दक्षता और कम मानवीय संपर्क के लिये सरकारी सेवाओं (जैसे, ऑनलाइन टैक्स फाइलिंग, संपत्ति पंजीकरण) का डिजिटलीकरण।
    • सिटीज़न चार्टर: सरकारी एजेंसियों द्वारा सेवा मानकों और समय-सीमा के प्रति प्रतिबद्धता, जवाबदेही बढ़ाना।
  • नागरिक भागीदारी और सशक्तीकरण:
    • MyGov प्लेटफॉर्म: यह नागरिकों को नीतिगत चर्चाओं में भाग लेने, विचार प्रस्तुत करने और सरकार को प्रतिक्रिया प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
    • ग्राम सभाएँ: ग्रामीण क्षेत्रों में सहभागी निर्णय लेने के लिये ग्राम-स्तरीय बैठकें।
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009): समुदायों को सशक्त बनाते हुए 6-14 आयु वर्ग के बच्चों के लिये मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है।
  • विकेंद्रीकरण और स्थानीय शासन:
    • 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन: स्थानीय लोकतंत्र को बढ़ावा देते हुए वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों के साथ पंचायतों (ग्राम परिषदों) तथा नगर पालिकाओं को सशक्त बनाना।
    • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम: भौगोलिक रूप से वंचित 112 ज़िलों में सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • स्मार्ट सिटी मिशन: बेहतर जीवन के लिये बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी समाधान के साथ 100 शहरों का विकास।
  • अन्य पहल:
    • डिजिटल इंडिया कार्यक्रम: इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी तक व्यापक पहुँच के साथ भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज में बदलना है।
    • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण: बैंक खातों के माध्यम से सीधे लाभार्थियों को सब्सिडी और लाभ का हस्तांतरण, रिसाव और भ्रष्टाचार को कम करना।
    • आधार कार्ड: नागरिकों के लिये विशिष्ट पहचान प्रणाली, वित्तीय समावेशन और सेवा वितरण को बढ़ावा देना।
    • दिवाला और दिवालियापन संहिता (2016): यह खराब ऋण की समस्या को हल करने और व्यापार पुनरुद्धार की सुविधा प्रदान करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करती है।
    • यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI): भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा विकसित त्वरित वास्तविक समय मोबाइल भुगतान प्रणाली।
      • यह एकल मोबाइल एप का उपयोग करके निर्बाध अंतर-बैंक लेन-देन सक्षम बनाता है।

आगे की राह

  • जनडेटा प्लेटफॉर्म: वैयक्तिकृत सेवाओं और नीतिगत निर्णयों में नागरिकों की प्रत्यक्ष भागीदारी के लिये ब्लॉकचेन तकनीक द्वारा समर्थित एक सुरक्षित डेटा प्लेटफॉर्म बनाए जाने की आवश्यकता।
    • इसमें स्मार्ट गवर्नेंस डैशबोर्ड, विभिन्न सरकारी विभागों के लिये प्रमुख पहल की पारदर्शिता और पहुँच को बढ़ावा देना शामिल होना चाहिये।
  • नौकरशाही में सुधार: प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना, लालफीताशाही को कम करना और सार्वजनिक सेवा के भीतर व्यावसायिकता तथा जवाबदेही को बढ़ाना भी महत्त्वपूर्ण है। विकास (वेरिएबल एंड इमर्सिव कर्मयोगी एडवांस्ड सपोर्ट) इस दिशा में एक आवश्यक कदम होगा।
  • त्वरित न्यायिक सुधार: लंबित मामलों का समाधान करके न्यायालय प्रणाली के भीतर बुनियादी ढाँचे और दक्षता में सुधार करना और सभी के लिये न्याय तक त्वरित पहुँच सुनिश्चित करना। ई-कोर्ट और अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • AI-संचालित शिकायत समाधान: एक AI संचालित प्रणाली विकसित करना जो सार्वजनिक शिकायतों का विश्लेषण, पैटर्न की पहचान करती है और स्वचालित रूप से उन्हें त्वरित समाधान के लिये संबंधित अधिकारियों को निर्देशित करती है।
  • नागरिक सहभागिता की पुनः कल्पना: शहरी स्थानीय निकायों और पंचायतों की देख-रेख में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में समुदाय-आधारित नवाचार प्रयोगशालाएँ स्थापित करना, नागरिकों को सरकारी एजेंसियों के सहयोग से स्थानीय समस्याओं का स्थानीय समाधान खोजने के लिये सशक्त बनाना।
  • भविष्योन्मुखी शिक्षा पाठ्यक्रम: आलोचनात्मक सोच, डिजिटल साक्षरता और डेटा विश्लेषण जैसे कौशल को शिक्षा प्रणाली में एकीकृत करना, भविष्य की पीढ़ियों को प्रौद्योगिकी-संचालित शासन परिदृश्य में सक्रिय भागीदारी के लिये तैयार करना।

इसलिये भारत को सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 16: शांति, न्याय और मज़बूत संस्थानों के साथ संरेखित करते हुए "न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन" के सिद्धांत का पालन करना चाहिये।

अटल बिहारी वाजपेयी:

  • 25 दिसंबर, 1924 को ग्वालियर, जो अब मध्य प्रदेश का हिस्सा है, में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राजनीति में प्रवेश किया।
  • 1996 और 1999 में प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया, जवाहरलाल नेहरू के बाद लगातार जनादेश हासिल करने वाले पहले व्यक्ति बने। (वर्तमान में नरेन्द्र मोदी)
    • 9 लोकसभा और 2 राज्यसभा चुनाव जीते, 1994 में भारत के 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' का खिताब अर्जित किया।
  • 1994 में पद्म विभूषण प्राप्त हुआ और 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. विभिन्न स्तरों पर सरकारी तंत्र की प्रभावशीलता और शासन तंत्र में जनसहभागिता अन्योन्याश्रित होती है। भारत के संदर्भ में इनके बीच संबंध पर चर्चा कीजिये। (2016)

प्रश्न. 'शासन', 'सुशासन' और 'नैतिक शासन' से आप क्या समझते हैं? (2016)


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