डेली न्यूज़ (27 Sep, 2023)



जलवायु परिवर्तन और भारतीय डेयरी क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

कृत्रिम गर्भाधान, डेयरी क्षेत्र, हीट स्ट्रेस, दुग्ध उत्पादन

मेन्स के लिये:

डेयरी क्षेत्र पर बढ़ते तापमान और हीट स्ट्रेस का प्रभाव

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों ?

वर्ष 2022 में 'लैंसेट' में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि बढ़ते तापमान से वर्ष 2085 में सदी के अंत तक भारत के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में दुग्ध उत्पादन 25% तक कम हो सकता है।

शुष्क और अर्ध-क्षेत्रों के लिये दुग्ध उत्पादन में कमी का यह अनुमान पाकिस्तान (28.7% ) के बाद भारत में दूसरा सबसे अधिक है। आर्द्र और उप-आर्द्र क्षेत्रों में यह कमी 10% तक अनुमानित की गई थी।

हीट स्ट्रेस का मवेशियों पर प्रभाव:

  • उच्च तापमान गाय के प्राकृतिक मेटिंग व्यवहार को प्रदर्शित करने की क्षमता को प्रभावित करता है, क्योंकि यह ओस्ट्रस (मादा पशु की मेटिंग के लिये तत्परता) अभिव्यक्ति की अवधि और तीव्रता दोनों को कम करता है।
    • अध्ययन के अनुसार गर्मी के मौसम में मवेशियों की गर्भधारण दर में 20% से 30% के बीच कमी आ सकती है।
  • लैंसेट के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि स्तनपान कराने वाली दुधारू गायों में स्तनपान न कराने वाली गायों की तुलना में हीट स्ट्रेस के प्रति संवेदनशीलता अधिक होती है।
    • इसके अलावा, दूध के उत्पादन और ऊष्मा उत्पादन के बीच सकारात्मक संबंध (अधिक दूध देने वाली गायें शुष्क गायों की तुलना में अधिक ऊष्मा उत्सर्जित करती हैं।) के कारण, अधिक दूध देने वाली गायों को कम दूध देने वाले पशुओं की तुलना में हीट स्ट्रेस से अधिक परेशानी होती है।
  • देश का दुग्ध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। हालाँकि बढ़ते तापमान का असर, विशेषकर संकर नस्ल की गायों पर पड़ने से घरेलू मांग को पूरा करना मुश्किल हो जाएगा और अंततः प्रति व्यक्ति खपत में गिरावट आ सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन से डेयरी क्षेत्र के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने की संभावना है।
    • सीधा प्रभाव:
      • तापमान-आर्द्रता सूचकांक में बदलाव के कारण पशुओं को होने वाला तनाव सीधे तौर पर दुग्ध उत्पादन को प्रभावित करेगा।
    • अप्रत्यक्ष प्रभाव:
      • मवेशियों के लिये चारण और जल की उपलब्धता पर प्रतिकूल जलवायु स्थितियों का अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।

भारत में दुग्ध-उत्पादन की स्थिति:

  • 'आधारभूत पशुपालन सांख्यिकी- 2022’ के अनुसार, सत्र 2021-2022 में भारत में कुल दुग्ध उत्पादन 221.06 मिलियन टन था, जिसके कारण भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना हुआ है।
    • देश में कुल दुग्ध उत्पादन में स्वदेशी नस्ल के मवेशियों का योगदान 10.35% है, जबकि गैर-वर्णित मवेशियों का योगदान 9.82% और गैर-वर्णात्मक भैंसों का योगदान देश के कुल दुग्ध उत्पादन में 13.49% है।
  • शीर्ष पाँच प्रमुख दुग्ध उत्पादक राज्य राजस्थान (15.05%), उत्तर प्रदेश (14.93%), मध्य प्रदेश (8.06%), गुजरात (7.56%) और आंध्र प्रदेश (6.97%) हैं।
  • वैश्विक दुग्ध उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 23% है।

डेयरी किसानों की समस्याएँ:

  • सामने किये गए मुद्दे:
    • किसानों का आरोप है कि सरकार ने मूल मुद्दों का समाधान करने के बदले ऐसी नीतियाँ पेश की हैं जिनसे देश की दुग्ध उत्पादकता में और कमी आने का खतरा है।
    • ऐसी ही एक नीति दुधारू मवेशियों का लिंग-आधारित वीर्य उत्पादन है, जिसका लक्ष्य "90% सटीकता" के साथ केवल मादा बछड़े पैदा कराना है। ऐसा दुग्ध उत्पादन बढ़ाने और आवारा मवेशियों की आबादी को नियंत्रित करने के लिये किया गया है।
    • अगले पाँच वर्षों में, कार्यक्रम के तहत 5.1 मिलियन मवेशियों का गर्भाधान कराया जाएगा, जो सुनिश्चित गर्भाधान पर 750 रुपए या लिंग-आधारित वीर्य की लागत का 50% सब्सिडी प्रदान करता है।
      • इस नीति का दुष्परिणाम नर मवेशियों को नज़रअंदाज़ करना और धीरे-धीरे उनकी संख्या कम करना है।
  • मादा मवेशियों की संख्या में वृद्धि:
    • कृत्रिम गर्भाधान और प्राकृतिक सेवा में 50% नर बछड़े और 50% मादा बछड़े होते हैं। इस नीति के तहत मादा मवेशियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है।
    • सरकार ने इस बात को अनदेखा कर दिया है कि नर मवेशियों का प्रयोग कृषि कार्यों में ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जा सकता है।
    • मादा पशुओं की जनन क्षमता समाप्त हो जाने के बाद उनकी उपयोगिता भी एक मुद्दा है, क्योंकि कई राज्यों में मवेशियों की हत्या विरोधी नियमों के कारण गायों को बेचना मुश्किल हो गया है।

कृत्रिम गर्भाधान:

  • परिचय:
    • कृत्रिम गर्भाधान मादा नस्लों में गर्भधारण की एक नवीन विधि है।
    • यह मवेशियों में जननांग संबंधित बीमारियों को फैलने से भी रोकता है जिससे नस्ल की दक्षता बढ़ती है।
  • कमियाँ:
    • मवेशियों की प्राकृतिक मेटिंग को अनदेखा कर या रोककर कृत्रिम रूप से प्रजनन करवाना सैद्धांतिक रूप से क्रूरता है, कृत्रिम गर्भाधान प्रक्रिया से होने वाली क्रूरता या दर्द का ज़िक्र आमतौर पर नहीं किया जाता है।

आगे की राह

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये पशु प्रजनन और प्रबंधन प्रथाओं में अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करना।
  • सतत् कृषि पद्धतियों और डेयरी संचालन के लिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • ऐसी नीतियों का समर्थन करना जो नर और मादा दोनों प्रकार के मवेशियों के कल्याण पर विचार करे।
  • उन मादा मवेशियों के नैतिक प्रबंधन के लिये विकल्पों का अन्वेषण करना चाहिये जिनकी जनन क्षमता समाप्त हो जाती हैं।
  • चूँकि जलवायु परिवर्तन एक चुनौती है जो हम सभी को प्रभावित करती है, तो डेयरी क्षेत्र को न केवल अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित करनी चाहिये बल्कि डेयरी क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिये योगदान देकर सहायता करनी चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. भारतीय पशु कल्याण बोर्ड, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अधीन स्थापित है।
  2. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एक सांविधिक निकाय है।
  3. राष्ट्रीय गंगा नदी द्रोणी प्राधिकरण की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


टी.वी. न्यूज़ चैनलों के सुदृढ़ अनुशासन तंत्र के लिये सर्वोच्च न्यायालय का आह्वान

प्रिलिम्स के लिये:

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA)

मेन्स ले लिये:

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मीडिया के प्रभावी स्व-नियमन का समर्थन

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने टी.वी. समाचार चैनलों में अनुशासन एवं जवाबदेही की कमी पर चिंता व्यक्त की है और एक सुदृढ़ स्व-नियमन का आह्वान किया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने टी.वी. समाचार चैनलों के दो प्रतिनिधि निकायों, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (NBF) से गलत चैनलों से निपटने के लिये तंत्र को सुदृढ़ करने के तरीकों पर विचार करने के लिये कहा है।
  • इस मुद्दे की शुरुआत समाचार चैनल संघों द्वारा उपयोग किये जाने वाले स्व-नियामक तंत्र को कानूनी मान्यता नहीं देने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ NBDA की याचिका से हुई।

टी.वी. समाचार चैनलों के मौजूदा स्व-नियमन तंत्र में समस्याएँ: 

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जवाबदेही में संतुलन:
    • सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित स्वतंत्र वाक् और अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा के महत्त्व को स्वीकृति देता है।
      • वर्तमान में इस मौलिक अधिकार और समाचार चैनलों के मध्य जवाबदेही एवं अनुशासन सुनिश्चित करने के साथ संतुलन बनाना एक चुनौती है।
  • वर्तमान स्व-नियमन की अप्रभाविता:
    • टी.वी. समाचार चैनलों का वर्तमान स्व-नियमन तंत्र NBDA और NBF द्वारा जारी दिशानिर्देशों पर आधारित है, जो प्रसारकों के स्वैच्छिक संघ हैं।
    • NBDA के पास न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (NBSA) नामक एक नियामक पर्यवेक्षक है, जिसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश करते हैं, जो उल्लंघन पर ₹1 लाख तक का ज़ुर्माना लगा सकते हैं।
      • स्व-नियामक निकायों द्वारा लगाए गए ज़ुर्माने को अनैतिक या सनसनीखेज़ रिपोर्टिंग में शामिल चैनलों के लिये पर्याप्त दंड के रूप में नहीं देखा जा सकता है। चैनल अपनी प्रथाओं को बदलने के बजाय व्यवसायिक लागत के रूप में यह ज़ुर्माना देने के लिये तैयार हो सकते हैं।
    • NBF, जो आधे समाचार प्रसारकों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है, ने अब तक कोई विनियमन नहीं बनाया है और यह सरकार के साथ पंजीकृत भी नहीं है।
    • न्यायालय का कहना है कि मौजूदा प्रणाली टी.वी. चैनलों को नियमों का उल्लंघन करने से प्रभावी तौर पर नहीं रोकती है।
      • न्यायालय ने कहा कि समाचार चैनल कभी-कभी अत्यधिक उत्तेजित हो जाते हैं और जाँच पूरी होने से पहले आपराधिक मामलों जैसे संवेदनशील विषयों को सनसनीखेज़ बना देते हैं।
  • पंजीकरण और मान्यता:
    • सरकार के केबल टेलीविज़न नेटवर्क (CTN) संशोधन नियम 2021 में स्व-नियामक निकायों के पंजीकरण की आवश्यकता है।
      • NBSA ने पंजीकरण करने से इनकार कर दिया है, जबकि NBF का स्व-नियामक निकाय, जिसे प्रोफेशनल न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड अथॉरिटी (PNBSA) कहा जाता है, पंजीकृत है और यह समाचार चैनलों के लिये एकमात्र वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त स्व-नियामक निकाय है।
  • एकाधिकार संबंधी चिंताएँ:
    • ऐसी संभावित चिंताएँ हैं कि स्व-नियामक निकाय, जैसे कि NBDA, को सरकार या वैधानिक निरीक्षण को अनदेखा करते हुए समाचार प्रसारकों के शिकायत निवारण तंत्र पर एकाधिकार नियंत्रण बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।

मामले के निहितार्थ:

  • इस मामले का सीधा असर टी.वी. समाचार चैनलों पर पड़ेगा, जिन पर पत्रकारिता के मानदंडों और नैतिकता का उल्लंघन करने, गलत सूचना फैलाने, सनसनीखेज़, घृणा फैलाने वाले भाषण तथा मानहानि जैसे कई शिकायतें व आरोप लग रहे हैं।
    • मामले के परिणाम के आधार पर उन्हें सख्त नियमों और दंड प्रावधानों का सामना करना पड़ सकता है या वे अपनी प्रतिरक्षा तथा स्वायत्तता का लाभ उठाना जारी रख सकते हैं।
  • इस मामले का मीडिया और लोकतंत्र की कार्यप्रणाली एवं अखंडता के साथ-साथ जनता के अधिकारों व हितों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। मामले के नतीजे के आधार पर, यह मीडिया की जवाबदेही और पारदर्शिता को मज़बूत या कमज़ोर कर सकता है तथा ज़िम्मेदार व नैतिक पत्रकारिता को प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित कर सकता है।

भारत में मीडिया नियामक निकाय:

  • पारंपरिक मीडिया:
    • प्रिंट:
      • सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिये ज़िम्मेदार है। 
      • MIB अपनी सूचना विंग के माध्यम से प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करता है।
      • भारतीय प्रेस परिषद (PCI) भारत में प्रिंट मीडिया को विनियमित करने वाली सर्वोच्च संस्था है।
    • सिनेमा:
      • केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CFBC) की स्थापना सिनेमैटोग्राफिक अधिनियम 1952 द्वारा की गई थी। CFBC सार्वजनिक प्रदर्शन के लिये फिल्मों के प्रमाणन और प्रदर्शन को नियंत्रित करता है।
    • दूरसंचार क्षेत्र::
      •  भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण।
    • विज्ञापन:
      • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एक स्व-नियामक निकाय)।
  • डिजिटल मीडिया:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. डिजिटल मीडिया के माध्यम से धार्मिक मतारोपण का परिणाम भारतीय युवकों का आई.एस.आई.एस. में शामिल होना रहा है। आई.एस.आई.एस. क्या है और उसका ध्येय (लक्ष्य) क्या है? आई.एस.आई.एस. हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये किस प्रकार खतरनाक हो सकता है?2015)

प्रश्न. ‘सामाजिक संजाल स्थल’ (Social Networking Sites) क्या होते हैं और इन स्थलों से क्या सुरक्षा उलझनें प्रस्तुत होती हैं? (2013)  


उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली, राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन, परख

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की मुख्य विशेषताएँ, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने में चुनौतियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

संसद के एक विशेष सत्र में शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति ने "उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन" को लेकर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की।

  • इस रिपोर्ट में भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में इस प्रमुख नीतिगत बदलाव को लागू करने में प्रगति और चुनौतियों की समीक्षा की गई है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • उच्च शिक्षा संस्थानों की विविधता:
    • रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली का एक बड़ा भाग राज्य अधिनियमों के तहत संचालित होता है, जिसमें 70% विश्वविद्यालय इस श्रेणी में आते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, 94% छात्र राज्य या निजी संस्थानों में नामांकित हैं, केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकित छात्रों का अनुपात मात्र 6% है।
      • यह उच्च शिक्षा प्रदान करने में राज्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
  • चर्चा के प्रमुख बिंदु: 
    • अनुशासनात्मक कठोरता: पैनल ने विषयों के विभाजन में बरती जाने वाली सख्ती को लेकर चिंता जताई, जो अंतःविषय शिक्षा और नवाचार के लिये बाधक हो सकता है।
    • वंचित क्षेत्रों में सीमित पहुँच: सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में उच्च शिक्षा तक पहुँच सीमित है, जिससे शैक्षिक अवसरों के समान वितरण में बाधा आती है।
    • भाषा संबंधी बाधाएँ: स्थानीय भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या काफी कम है, जिससे संभावित रूप से आबादी का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा से वंचित रह जाता है।
    • संकाय की कमी: योग्य संकाय सदस्यों की कमी उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये सबसे प्रमुख बाधा बनती जा रही है, जिसका शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
    • संस्थागत स्वायत्तता का अभाव: कई संस्थानों को स्वायत्तता की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे अनुकूलन और नवाचार करने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।
    • अनुसंधान पर ज़ोर: पैनल ने वर्तमान उच्च शिक्षा प्रणाली के अंदर अनुसंधान पर कम ज़ोर दिया।
    • अप्रभावी नियामक प्रणाली: उच्च शिक्षा को नियंत्रित करने वाले नियामक ढाँचे को अप्रभावी माना गया, जिसमें व्यापक सुधार की आवश्यकता थी।
    • मल्टीपल एंट्री मल्टीपल एग्जिट प्रोग्राम से संबंधित चिंता: पैनल ने चिंता व्यक्त की कि भारतीय संस्थानों में MEME प्रणाली को लागू करना प्रभावी ढंग से संरेखित नहीं हो सकता है क्योकि यह  सिद्धांत लचीला जरूर है किंतु इसमें छात्र प्रवेश और निकास अनिश्चित हैं। यह अनिश्चितता छात्र-शिक्षक अनुपात को बाधित कर सकती है।
  • सिफारिशें:
    • समान निधीकरण: केंद्र एवं राज्य दोनों को उच्च शिक्षा में सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों (SEDG) को समर्थन प्रदान करने के लिये पर्याप्त धनराशि आवंटित करनी चाहिये।
      • उच्च शिक्षा तक पहुँच में वृद्धि सुनिश्चित करने हेतु SEDG के लिये सकल नामांकन अनुपात के स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिये।
    • लैंगिक संतुलन: उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश हेतु लैंगिक संतुलन बढ़ाने के प्रयास किये जाने चाहिये।
    • समावेशी प्रवेश और पाठ्यक्रम: छात्रों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रवेश प्रक्रियाओं और पाठ्यक्रम को अधिक समावेशी बनाया जाना चाहिये।
    • क्षेत्रीय भाषा पाठ्यक्रम: क्षेत्रीय भाषाओं और द्विभाषी रूप से पढ़ाए जाने वाले अन्य डिग्री पाठ्यक्रमों के विकास को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • दिव्यांगों के लिये पहुँच: उच्च शिक्षण संस्थानों को दिव्यांग छात्रों के लिये अधिक सुलभ बनाने के लिये विशिष्ट कदम उठाए जाने चाहिये, जिनमें ढाँचा आधारित कदम महत्त्वपूर्ण हैं ।
    • भेदभाव-विरोधी उपाय: सुरक्षित एवं समावेशी वातावरण सुनिश्चित करने के लिये भेदभाव-रहित और उत्पीड़न-विरोधी नियमों को सख्ती से लागू करने की सिफारिश की जानी चाहिये।
    • HEFA विविधीकरण: उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (HEFA) को सरकारी आवंटन से परे अपने निधीकरण स्रोतों में विविधता लानी चाहिये।
      • वित्त पोषण के लिये निजी क्षेत्र के संगठनों, परोपकारी फाउंडेशनों और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ साझेदारी के विकल्प तलाशने चाहिये।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020:  

  • परिचय: 
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 भारत की उभरती विकास आवश्यकताओं से निपटने का प्रयास करती है।
      • यह भारत की सांस्कृतिक विरासत और मूल्यों का सम्मान करते हुए, सतत् विकास लक्ष्य 4 (SDG4) सहित 21 वीं सदी के शैक्षिक लक्ष्यों के साथ संरेखित एक आधुनिक प्रणाली स्थापित करने के लिये इसके नियमों एवं प्रबंधन के साथ शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव का आह्वान करता है।
    • यह वर्ष 1992 में संशोधित (NPE 1986/92) 34 वर्ष पुरानी राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986,  का स्थान लेती है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • सार्वभौमिक पहुँच: NEP 2020 प्री-स्कूल से लेकर माध्यमिक स्तर तक स्कूली शिक्षा के सार्वभौमिक अभिगम पर केंद्रित है।
    • प्रारंभिक बाल शिक्षा: 10+2 संरचना 5+3+3+4 प्रणाली में स्थानांतरित हो जाएगी, जिसमें 3-6 वर्ष के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाया जाएगा, जिसमें प्रारंभिक बाल्यकाल देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education- ECCE) पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
    • बहुभाषावाद: कक्षा 5 तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी, जिसमें संस्कृत और अन्य भाषाओं के विकल्प भी होंगे।
      • भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) को मानकीकृत किया जाएगा।
    • समावेशी शिक्षा: सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित समूहों (SEDG) को विशेष प्रोत्साहन, विकलांग बच्चों के लिए सहायता और "बाल भवन" की स्थापना।
    • बाधाओं का उन्मूलन: इस नीति का लक्ष्य कला एवं विज्ञान, पाठ्यचर्या और पाठ्येतर गतिविधियों तथा व्यावसायिक व शैक्षणिक धाराओं के बीच सख्त सीमाओं के बिना एक निर्बाध शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना है। 
    • GER वृद्धि: वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात को 26.3% से बढ़ाकर 50% करने का लक्ष्य 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ना है।
    • अनुसंधान फोकस: अनुसंधान संस्कृति और क्षमता को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन का निर्माण।
    • भाषा संरक्षण: अनुवाद और व्याख्या संस्थान (IITI) सहित भारतीय भाषाओं के लिये समर्थन एवं भाषा विभागों को मज़बूत करना।
    • अंतर्राष्ट्रीयकरण: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की सुविधा और शीर्ष क्रम वाले विदेशी विश्वविद्यालयों का आगमन।
    • फंडिंग: शिक्षा में सार्वजनिक निवेश को सकल घरेलू उत्पाद के 6% तक बढ़ाने के लिए संयुक्त प्रयास।
    • परख मूल्यांकन केंद्र: राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र के रूप में परख (समग्र विकास के लिये प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण) की स्थापना शिक्षा में योग्यता को आधार बनाने तथा समग्र मूल्यांकन करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • लिंग समावेशन निधि: यह नीति एक लिंग समावेशन निधि की शुरुआत करती है, जो शिक्षा में लैंगिक समानता के महत्त्व पर ज़ोर देती है और वंचित समूहों को सशक्त बनाने की पहल का समर्थन करती है।
    • विशेष शिक्षा क्षेत्र: वंचित क्षेत्रों और समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विशेष शिक्षा क्षेत्रों की कल्पना की गई है, जो सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच  की नीति की प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का भारत की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है? (2012)

  1. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत 
  2. ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय निकाय
  3. पाँचवीं अनुसूची 
  4. छठी अनुसूची 
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2 
(b)
केवल 3, 4 और  5 
(c)
केवल 1, 2 और 5 
(d)
1, 2, 3, 4 और 

उत्तर: (D)


मेन्स:

प्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)


जोशीमठ में भू-अवतलन का अध्ययन

प्रिलिम्स के लिये:

हिमालय, भूकंप, भूस्खलन, जोशीमठ, भू-अवतलन, ISRO

मेन्स के लिये:

जोशीमठ में भू-अवतलन पर प्राकृतिक और मानवजनित कारकों का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में भूमि धँसने का कारण जानने के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) सहित भारत के आठ प्रमुख संस्थानों द्वारा अलग-अलग अध्ययन किये गए और हिमालयी शहर के धँसने के विभिन्न कारण बताए गए।

जोशीमठ में भू-अवतलन के विषय में संस्थानों की रिपोर्ट:

  • केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (Central Building Research Institute- CBRI):
    • अपनी रिपोर्ट में, CBRI ने कहा कि जोशीमठ शहर में क्रमशः 44%, 42% व 14% निर्माण चिनाई (Masonry), RCC और अन्य (पारंपरिक, संकर) प्रकार हैं, जिनमें से 99% गैर-इंजीनियर्ड हैं।
    • अन्य निष्कर्ष:
      • जोशीमठ शहर वैक्रिटा चट्टानों (मोटे अभ्रक-गार्नेट-कायनाइट और सिलिमेनाइट-असर वाले सैममिटिक मेटामोर्फिक्स से बनी) के समूह पर स्थित है जो मोरेनिक जमाव से ढका हुआ है जो अनियमित बोल्डर और अलग-अलग प्रकार की मृदा से बना है।
      • इस तरह के जमाव कम एकजुट होते हैं और धीमी गति से अवतलन तथा भूस्खलन धंसाव के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (National Institute of Hydrology- NIH) की रिपोर्ट:
    • इस रिपोर्ट में विभिन्न झरनों, जल निकासी नेटवर्कों और भू-अवतलन वाले क्षेत्रों का मानचित्रण किया गया, जिससे अनुमान लगाया गया कि जोशीमठ में भूमि अवतलन एवं उपसतह जल के बीच कुछ संबंध हो सकते हैं।
    • संस्था ने ऊपरी इलाकों से आने वाले पानी के सुरक्षित निपटान और अपशिष्ट निपटान को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में सुझाया।
  • वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) रिपोर्ट: 
    • संस्था ने धीमी और क्रमिक भू-अवतलन का कारण भूकंप को बताया है।
    • साथ ही संस्था ने कहा कि भू-अवतलन का मुख्य कारण उपसतह जल निकासी के कारण आंतरिक क्षरण प्रतीत होता है, जो वर्षा जल की प्रविष्टि/हिम के पिघलने/घरों और होटलों से अपशिष्ट जल के निर्वहन के कारण हो सकता है।
  • ISRO का रुख:
    • जोशीमठ क्षेत्र में भू-अवतलन टो-कटिंग (Toe-Cutting) के कारण हो सकता है।
    • इसके अलावा मिट्टी में स्थानीय जल निकासी के पानी के रिसाव के परिणामस्वरूप ढलान की अस्थिरता भी होती है।
    • भू-भाग और भू-भागीय विशेषताएँ भी भू-अवतलन के लिये उत्तरदायी हैं।
    • ढलान की ढीली और असंगठित मोराइन अर्थात् हिमोढ़ हिमनद मलबे (पुराने भूस्खलन के कारण) एवं वर्तमान में शहरी क्षेत्र तथा उसके आसपास बाढ़ की घटनाओं ने भी भूमि अवतलन में योगदान दिया।

जोशीमठ का स्थान:

  • जोशीमठ एक पहाड़ी शहर है जो उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-7) पर स्थित है।
  • यह शहर एक पर्यटक शहर के रूप में कार्य करता है क्योंकि यह राज्य के अन्य महत्त्वपूर्ण धार्मिक एवं पर्यटक स्थानों जैसे बद्रीनाथ, औली, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और हेमकुंड साहिब की यात्रा करने वाले लोगों के लिये रात्रि विश्राम स्थल के रूप में कार्य करता है।
  • जोशीमठ भारतीय सशस्त्र बलों के लिये भी बहुत रणनीतिक महत्त्व रखता है और सेना की सबसे महत्त्वपूर्ण छावनियों में से एक है।
  • यह शहर उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्र-V में आता है, और विष्णुप्रयाग(धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों का संगम स्थल) से निकलने वाली उच्च ढाल वाली जलधाराएँ इस शहर से होकर प्रवाहित होती हैं।
  • यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख मठों में से एक है, जो हैं: कर्नाटक में शृंगेरी, गुजरात में द्वारका, ओडिशा में पुरी और उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास जोशीमठ।

Image: Geographical Location of Joshimath 

जोशीमठ को बचाने के उपाय: 

  • विशेषज्ञ क्षेत्र में विकास और जलविद्युत परियोजनाओं को पूरी तरह से बंद करने की सलाह देते हैं। लेकिन तत्काल आवश्यकता निवासियों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने और फिर नए बदलावों व बदलते भौगोलिक कारकों को समायोजित करके शहर की योजना की फिर से कल्पना करने की है।
  • जल निकासी योजना का निर्माण इसके सबसे बड़े कारकों में से एक है, इसका अध्ययन कर इसे पुनः विकसित किये जाने की आवश्यकता है। शहर में जल निकासी और सीवर प्रबंधन की समस्या काफी जटिल है क्योंकि इससे अधिक से अधिक अपशिष्ट मृदा में रिस रहा है, जिस कारण मृदा अंदर से मुलायम व भुरभुरी होती रही है। राज्य सरकार ने सिंचाई विभाग को इस मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित करने तथा जल निकासी व्यवस्था के लिये एक नई योजना बनाने के लिये कहा है।
  • विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र में, विशेष रूप से मृदा की क्षमता बनाए रखने के लिये संवेदनशील स्थानों पर, पुनः रोपण का भी सुझाव दिया है। जोशीमठ को बचाने के लिये सीमा सड़क संगठन जैसे सैन्य संगठनों की सहायता से सरकार तथा नागरिक निकायों के बीच एक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।
  • राज्य की मौजूदा मौसम पूर्वानुमान तकनीक, जो लोगों को स्थानीय घटनाओं के बारे में चेतावनी दे सकती है, के कवरेज में सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
  • राज्य सरकार को वैज्ञानिक अनुसंधानों (वर्तमान समस्या के कारणों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करने वाले) को भी अधिक गंभीरता से लेना चाहिये।

भूस्खलन:

  • भूस्खलन चट्टानों, मलबे अथवा पृथ्वी की शैलों की ढ़लान से नीचे खिसकने की प्रक्रिया है।
  • यह एक प्रकार का वृहत क्षरण (Mass wasting) हैं, जो गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव के कारण मृदा और चट्टान में किसी भी प्रकार से नीचे की ओर गति को दर्शाता है।
  • भूस्खलन शब्द में ढ़लान की गति के पाँच तरीके शामिल हैं: गिरना, पलटना, खिसकना, फैलना और बहना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइये। (2013)

प्रश्न. भूस्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (2021)