मुख्य परीक्षा
NSO समय उपयोग सर्वेक्षण 2024
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने समय उपयोग सर्वेक्षण (TUS) 2024 जारी किया है जो वर्ष 2019 में किये गए पहले सर्वेक्षण के बाद दूसरा ऐसा राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण है।
- इस सर्वेक्षण में महिलाओं के बीच रोज़गार वृद्धि, देखभाल सेवाओं में पुरुषों की अधिक भागीदारी तथा अवकाश एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में व्यतीत होने वाले समय में वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, जो भारत में लैंगिक भूमिकाओं में बदलाव का संकेत है।
नोट: TUS के तहत भुगतान एवं भुगतान रहित गतिविधियों में आवंटित समय पर ध्यान दिया जाता है तथा दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की जाती है जबकि पारंपरिक सर्वेक्षण में कार्यों के विशिष्ट पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, कोरिया, अमेरिका और चीन में आयोजित इस अध्ययन में कार्य, देखभाल, शिक्षा और अवकाश के संदर्भ में लैंगिक भागीदारी का विश्लेषण किया गया है।
TUS 2024 के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- रोज़गार भागीदारी: वर्ष 2024 के दौरान 15-59 वर्ष आयु वर्ग के 75 प्रतिशत पुरुष और 25 प्रतिशत महिलाओं ने रोज़गार और संबंधित गतिविधियों में भाग लिया। वर्ष 2019 के दौरान यह भागीदारी पुरुषों के लिये 70.9 प्रतिशत तथा महिलाओं के लिये 21.8 प्रतिशत थी।
- अवैतनिक घरेलू सेवाओं में कार्यरत 15-59 वर्ष की आयु की महिला प्रतिभागियों ने वर्ष 2019 के दौरान इन गतिविधियों में प्रतिदिन लगभग 315 मिनट खर्च किये, जो वर्ष 2024 के दौरान घटकर 305 मिनट रह गए हैं, जो अवैतनिक से सशुल्क गतिविधियों की ओर बदलाव को दर्शाता है।
- शहरी महिलाओं की रोज़गार भागीदारी में ग्रामीण महिलाओं की तुलना में अधिक वृद्धि देखी गई, जो संभवतः बेहतर रोज़गार के अवसरों, शिक्षा और सहायता प्रणालियों से प्रेरित है।
- देखभाल: 15-59 आयु वर्ग में 41% महिलाओं ने देखभाल कार्यों में भाग लिया, जबकि पुरुषों में यह आँकड़ा 21.4% था।
- महिलाओं द्वारा देखभाल कार्यों पर प्रतिदिन 140 मिनट खर्च किये गए जबकि पुरुषों के बीच यह आँकड़ा 74 मिनट का है। हालांकि देखभाल का कार्य अभी भी महिलाओं द्वारा ही किया जा रहा है, लेकिन इसमें पुरुषों की भागीदारी बढ़ी है।
- बच्चों के पालन-पोषण तथा बुजुर्गों की देखभाल में पिता की अधिक भागीदारी देखने को मिल रही है, जो बदलती लैंगिक भूमिकाओं एवं शहरीकरण से प्रभावित है।
- महिलाओं द्वारा देखभाल कार्यों पर प्रतिदिन 140 मिनट खर्च किये गए जबकि पुरुषों के बीच यह आँकड़ा 74 मिनट का है। हालांकि देखभाल का कार्य अभी भी महिलाओं द्वारा ही किया जा रहा है, लेकिन इसमें पुरुषों की भागीदारी बढ़ी है।
- अवकाश एवं सांस्कृतिक तथा शैक्षिक गतिविधियाँ: 6 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों द्वारा वर्ष 2024 के दौरान अपने दिन का 11 प्रतिशत समय संस्कृति, अवकाश, जनसंचार माध्यम और खेल गतिविधियों में व्यतीत किया गया जबकि वर्ष 2019 के दौरान यह आँकड़ा 9.9 प्रतिशत था।
- 6-14 वर्ष आयु वर्ग के 89.3 प्रतिशत बच्चों ने शिक्षण गतिविधियों में भाग लिया और उन्होंने ऐसी गतिविधियों के लिये प्रतिदिन लगभग 413 मिनट का समय खर्च किया।
- घरेलू उत्पादन: लगभग 16.8% जनसंख्या ने अंतिम उपयोग संबंधी वस्तुओं के उत्पादन में भाग लिया।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO)
- परिचय: भारत में NSO (जो डेटा का मानकीकरण, समन्वय और प्रसार सुनिश्चित करता है) सांख्यिकीय विकास हेतु नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
- NSO में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO), डेटा सूचना विज्ञान एवं नवाचार प्रभाग (DIID) और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) शामिल हैं।
- कार्य: NSO औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) को संकलित और जारी करता है, उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) आयोजित करता है, और औद्योगिक विकास और आर्थिक रुझानों पर सांख्यिकीय जानकारी प्रदान करता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: समय उपयोग सर्वेक्षण (TUS) 2024 भारत में बदलती लैंगिक भूमिकाओं को किस प्रकार प्रतिबिंबित करता है? |


कृषि
भारतीय कृषि में AI क्रांति
प्रिलिम्स के लिये:आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, प्रोजेक्ट फार्म वाइब्स, पर ड्रॉप मोर क्रॉप, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, एग्रीस्टैक इनिशिएटिव, पीएम-वाणी मेन्स के लिये:सतत् कृषि और जलवायु लचीलेपन में AI, डिजिटल कृषि मिशन |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन सत्य नडेला ने हाल ही में महाराष्ट्र के बारामती में प्रोजेक्ट फार्म वाइब्स (PFV) के माध्यम से कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के परिवर्तनकारी प्रभाव पर प्रकाश डाला, जिससे संसाधनों की खपत कम होने के साथ-साथ फसल की उपज में 40% की वृद्धि हुई है।
प्रोजेक्ट फार्म वाइब्स क्या है?
- परिचय: प्रोजेक्ट फार्म वाइब्स, जिसे माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च द्वारा कृषि विकास ट्रस्ट, बारामती (महाराष्ट्र) के साथ मिलकर विकसित किया गया है, कृषि-केंद्रित प्रौद्योगिकियों का एक ओपन-सोर्स AI सूट है, जो डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि के साथ कृषि को बदल रहा है, शोधकर्त्ताओं और किसानों को सशक्त बना रहा है।
- प्रयुक्त प्रौद्योगिकियाँ:
- कृषि के लिये एज़्योर (Azure) डेटा प्रबंधक: क्षेत्र की स्थितियों के समग्र दृश्य के लिये उपग्रह, मौसम और सेंसर डेटा को एकत्रित करता है।
- फार्म वाइब्स.AI: परिशुद्ध कृषि अनुशंसाओं के लिये मृदा की नमी, तापमान, आर्द्रता और pH का विश्लेषण करने के लिये AI का उपयोग करता है।
- एग्रीपायलट.AI: सतत् कृषि के लिये वास्तविक समय, कार्यवाही योग्य जानकारी प्रदान करता है और स्थानीय भाषाओं में व्यक्तिगत सिफारिशें तैयार करता है।
- प्रभाव: फसल उत्पादन में 40% की वृद्धि, तथा अधिक स्वस्थ एवं लचीली फसलें।
- सटीक, AI-निर्देशित स्पॉट निषेचन के माध्यम से उर्वरक लागत में 25% की कमी।
- 50% कम जल खपत, सतत् सिंचाई को बढ़ावा।
- फसल-उपरांत अपव्यय में 12% की कमी, लाभप्रदता में सुधार।
- रासायनिक अपवाह, मृदा अपरदन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वनों की कटाई में कमी आई, जिससे पर्यावरणीय लाभ हुआ।
AI भारतीय कृषि में किस प्रकार क्रांति ला रहा है?
- स्मार्ट सिंचाई: भारतीय कृषि में जल की कमी एक बड़ी चुनौती है। AI सिंचाई कार्यक्रम को अनुकूलित करने के लिये मृदा नमी और जलवायु विश्लेषण के माध्यम से इस मुद्दे को संबोधित कर रहा है।
- "पर ड्रॉप मोर क्रॉप" योजना के अंतर्गत AI-एकीकृत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली, जल दक्षता में सुधार करती है।
- ICAR द्वारा विकसित IoT-आधारित सिंचाई समाधान, जो वास्तविक समय क्षेत्र की स्थितियों के आधार पर जल आपूर्ति को स्वचालित करता है, जिससे अपव्यय कम होता है।
- कीट एवं खरपतवार नियंत्रण: राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली, जो कीटों की गतिविधि पर नजर रखने और वास्तविक समय पर अलर्ट प्रदान करने के लिये AI का लाभ उठाती है।
- स्वचालित खरपतवार का पता लगाना, जहाँ AI-संचालित कंप्यूटर दृष्टि फसलों से खरपतवारों को पृथक करती है और केवल आवश्यक होने पर ही खरपतवारनाशकों का प्रयोग करती है, जिससे रसायनों का उपयोग कम हो जाता है।
- कृषि में AI का आर्थिक प्रभाव: कृषि बाज़ार में वैश्विक कृत्रिम बुद्धिमत्ता का मूल्य वर्ष 2023 में 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और वर्ष 2028 तक 23.1% की CAGR के साथ इसके 4.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर पहुँचने का अनुमान है, जो परिशुद्ध कृषि, ड्रोन एनालिटिक्स और श्रम प्रबंधन में प्रगति से प्रेरित होगा।
- किसान ई-मित्र, एक AI-संचालित चैटबॉट है जो पीएम किसान सम्मान निधि योजना के बारे में किसानों के प्रश्नों में सहायता करता है।
कृषि क्षेत्र में AI को अपनाने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- जागरूकता का अभाव: अनेक किसानों, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, AI-आधारित साधनों का उपयोग करने के लिये डिजिटल साक्षरता का अभाव है, जो बृहद स्तर पर इस प्रौद्योगिकी के अंगीकरण में बाधा उत्पन्न करता है।
- उच्च कार्यान्वयन लागत: ड्रोन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) सेंसर और स्वचालित सिंचाई प्रणाली जैसे AI समाधानों के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है।
- लघु और सीमांत किसान, जो भारत के कृषक समुदाय में 85% का हिस्सा हैं, सामर्थ्य के अभाव में संघर्ष करते हैं।
- बुनियादी ढाँचे का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में अस्थिर इंटरनेट कनेक्टिविटी से AI-संचालित प्लेटफॉर्मों तक पहुँच बाधित होती है।
- देश के 5,97618 आवासित गाँवों में से 25067 गाँवों में मोबाइल कनेक्टिविटी और इंटरनेट की सुविधा नहीं है।
- डेटा की उपलब्धता और गुणवत्ता: सटीक पूर्वानुमान के लिये AI वास्तविक समय और ऐतिहासिक डेटा पर निर्भर करता है। अपूर्ण या गलत कृषि डेटा AI की प्रभावशीलता को सीमित करता है।
- सीमित अनुकूलन: अधिकांश AI मॉडल भारत की विविध कृषि-जलवायु स्थितियों के अनुरूप नहीं हैं।
- क्षेत्र-विशिष्ट AI समाधान विकसित करने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।
आगे की राह
- डेटा फ्रेमवर्क: AgriStack पहल और भारत डिजिटल इकोसिस्टम फॉर एग्रीकल्चर (IDEA) का उपयोग कृषि डेटा प्रबंधन के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में किया जा सकता है, जिससे निर्बाध डेटा एकीकरण के माध्यम से सटीक पूर्वानुमान संभव हो सकेगा।
- भारतीय कृषि के लिये क्षेत्र-विशिष्ट AI समाधान विकसित करने हेतु राष्ट्रीय AI उत्कृष्टता केंद्रों का उपयोग किया जाना चाहिये।
- डिजिटल अवसंरचना: प्रधानमंत्री वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (पीएम-वाणी) और भारतनेट परियोजना के अंतर्गत सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट ग्रामीण कनेक्टिविटी को बढ़ा सकते हैं, जिससे किसानों को AI-संचालित प्लेटफॉर्मों तक पहुँच प्राप्त हो सकेगी।
- कौशल और जागरूकता: राष्ट्रीय कृषि ई-गवर्नेंस योजना (NeGPA) का उद्देश्य किसानों को AI अनुप्रयोगों के बारे में शिक्षित करना है, जबकि फ्यूचर स्किल्स प्राइम कार्यक्रम के अंतर्गत कृषि के लिये AI और उभरती प्रौद्योगिकियों में पेशेवरों को पुनः कौशल प्रदान किया जाता है।
- वित्तीय सहायता: कृषि में नवाचार को बढ़ावा देते हुए डिजिटल कृषि मिशन (2021-2025) के तहत, कृषि-तकनीक स्टार्टअप और किसान सहकारी समितियों को रियायती ऋण प्रदान किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. चर्चा कीजिये कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) भारतीय कृषि को किस प्रकार रूपांतरित कर रही है। कृषि में AI अपनाने से संबंधित मुख्य लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017) |


आपदा प्रबंधन
आपदा जोखिम एवं तन्यकता आकलन रूपरेखा (DRRAF)
प्रिलिम्स के लिये:दूरसंचार सेवा प्रदाता, दूरसंचार विभाग (DoT), आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI), मेन्स के लिये:दूरसंचार क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये DRRAF की सिफारिशें, भारत में दूरसंचार क्षेत्र के प्रमुख चालक, भारत में दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
दूरसंचार विभाग (DoT) ने आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) के साथ मिलकर आपदा जोखिम एवं तन्यकता आकलन रूपरेखा (DRRAF) पर एक रिपोर्ट जारी की है।
यह रिपोर्ट राष्ट्रीय एवं उप-राष्ट्रीय आपदा जोखिम एवं तन्यकता आकलन पर CDRI के अध्ययन का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ भारत के दूरसंचार क्षेत्र की तन्यकता/लचीलेपन को बढ़ाना है।
दूरसंचार अवसंरचना की स्थिति
- वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में दूरसंचार क्षेत्र का 15% योगदान है और अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह 2.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (6.2% CAGR) तक पहुँच जाएगा।
- वैश्विक स्तर पर बुनियादी ढाँचे हेतु आपदा जोखिम बढ़ रहे हैं और UN INFORM जोखिम सूचकांक (2024-25) में शामिल 191 देशों में से भारत 35वें स्थान पर है।
- UN INFORM जोखिम सूचकांक मानवीय संकटों एवं आपदाओं के संदर्भ में एक वैश्विक तथा ओपन सोर्स जोखिम मूल्यांकन उपकरण है।
- भारत भूकंप (58% भूमि क्षेत्र), बाढ़ (12%), भूस्खलन (15%), और वनाग्नि (10%) के प्रति अत्यधिक सुभेद्य है, जबकि इसकी 5,700 किमी. तटरेखा चक्रवात और सुनामी प्रवण है।
आपदा जोखिम एवं तन्यकता आकलन रूपरेखा (DRRAF) क्या है?
- परिचय: CDRI, दूरसंचार विभाग और NDMA द्वारा विकसित DRRAF सभी कनेक्टिविटी स्तरों और क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक सिस्टम-स्केल कार्यप्रणाली पर आधारित है।
- इसका उद्देश्य ‘वर्ष 2027 तक सभी के लिये प्रारंभिक चेतावनी (EW4All)’ पहल के साथ संरेखित करते हुए बुनियादी ढाँचे की क्षति, वित्तीय घाटे को कम करना और आपातकालीन कनेक्टिविटी और सेवा बहाली में सुधार करना है।
- EW4All को संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2027 तक प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से जलवायु संबंधी आपदाओं के प्रति वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2022 में लॉन्च किया गया था।
- इसके अंतर्गत 5 प्रमुख आयामों में आपदा प्रतिरोधक्षमता के उपायों के मूल्यांकन और प्रस्ताव किया गया है:
- तकनीकी योजना एवं डिज़ाइन: दूरसंचार बुनियादी ढाँचे का सुदृढ़ीकरण।
- परिचालन एवं अनुरक्षण: सेवा की निरंतरता सुनिश्चित करना।
- नीति, संस्थाएँ एवं प्रक्रियाएँ (PIP): आपदा प्रतिरोधक्षमता को शासन व्यवस्था में एकीकृत करना।
- वित्तीय व्यवस्था: जोखिम-साझाकरण तंत्र को बढ़ावा देना।
- विशेषज्ञता: क्षेत्रीय क्षमता और ज्ञान आदान-प्रदान को बढ़ाना।
- यह हितधारकों को लक्षित प्रतिरोधक्षमता उपायों के माध्यम से आपदा जोखिमों की पहचान करने और उनका समाधान करने में सहायता करता है।
- इसका उद्देश्य ‘वर्ष 2027 तक सभी के लिये प्रारंभिक चेतावनी (EW4All)’ पहल के साथ संरेखित करते हुए बुनियादी ढाँचे की क्षति, वित्तीय घाटे को कम करना और आपातकालीन कनेक्टिविटी और सेवा बहाली में सुधार करना है।
- फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताएँ:
- राज्य स्तर: अध्ययन में 5 राज्यों (असम, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तराखंड और गुजरात) में दूरसंचार क्षेत्र में आपदा जोखिमों का आकलन किया गया है।
- अध्ययन के अनुसार असम और उत्तराखंड में 100% दूरसंचार अवसंरचना भूकंप के प्रति सुभेद्य है।
- असम में 83% टावर तथा ओडिशा और तमिलनाडु में 57% टावर चक्रवातों से प्रभावित हैं।
- असम के 43% टावर बाढ़ के संपर्क में हैं, इसके बाद तमिलनाडु (33%), ओडिशा और गुजरात का स्थान है।
- राष्ट्रीय स्तर पर: 0.77 मिलियन दूरसंचार टावरों के राष्ट्रीय मूल्यांकन में पाया गया कि 75% टावर वज्रपात के संपर्क में हैं, इसके बाद चक्रवात (57%), भूकंप (27%), और बाढ़ (17%) का स्थान आता है।
- आपदा जोखिम और लचीलापन सूचकांक (DRRI): खतरों की तीव्रता, आवृत्ति, अवधि और स्थानिक सीमा के आधार पर विभिन्न इलाकों (पर्वत, मैदान, तट) में दूरसंचार टावर भेद्यता का आकलन करने के लिये एक नया सूचकांक ( DRRI) विकसित किया गया है।
- राज्य स्तर: अध्ययन में 5 राज्यों (असम, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तराखंड और गुजरात) में दूरसंचार क्षेत्र में आपदा जोखिमों का आकलन किया गया है।
- दूरसंचार अवसंरचना के लिये चुनौतियाँ:
- संरचनात्मक भेद्यता: दूरसंचार टावर, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में, तीव्र पवनों और चक्रवातों से क्षतिग्रस्त होने का खतरा रहता है।
- ओवरहेड फाइबर ऑप्टिक केबल भूमिगत नेटवर्क की तुलना में अधिक नाजुक होते हैं।
- विद्युत व्यवधान: लंबे समय तक विद्युत कटौती और बैकअप जनरेटर के लिये ईंधन की कमी से नेटवर्क की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
- समुद्र के नीचे केबलों को खतरा: समुद्र के नीचे केबल लैंडिंग स्टेशनों के क्षतिग्रस्त होने से राष्ट्रीय कनेक्टिविटी बाधित हो सकती है, जिसकी मरम्मत के लिये विशेष उपकरण और समय की आवश्यकता होती है।
- संरचनात्मक भेद्यता: दूरसंचार टावर, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में, तीव्र पवनों और चक्रवातों से क्षतिग्रस्त होने का खतरा रहता है।
और पढ़ें: भारत में दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
लचीले दूरसंचार बुनियादी ढाँचे के लिये रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?
- तकनीकी योजना एवं डिजाइन को बढ़ाना: दूरसंचार टावरों की नेटवर्क अतिरेकता, समुद्री केबल सुरक्षा और भूकंपीय लचीलेपन को मज़बूत करना।
- सड़कों में सामान्य नलिकाओं का उपयोग करके अंतर-संचालनीयता, डेटा केंद्रों के लिये पावर बैकअप और फाइबर ऑप्टिक केबल सुरक्षा में सुधार करना।
- बहु-खतरा सूचना भंडार का विकास करना: आपदा प्रभाव डेटा संग्रहण को बढ़ाना, उप-ज़िला स्तर पर बहु-खतरा क्षेत्र मानचित्र विकसित करना, तथा निर्बाध सेवा के लिये महत्त्वपूर्ण दूरसंचार अवसंरचना की पहचान करना।
- जोखिम-सूचित शासन: आपदा पूर्वानुमान में सुधार, सुदृढ़ भवन संहिताओं को लागू करना तथा शिकायत निवारण के लिये संचार साथी पोर्टल को उन्नत करना।
- जोखिम-साझाकरण उपकरणों का विकास: आपदा ट्रिगर्स के आधार पर पूर्वनिर्धारित भुगतान प्रदान करके दूरसंचार ऑपरेटरों की वित्तीय अनुकूलता हेतु पैरामीट्रिक बीमा शुरू करना, जिससे तेज़ी से वसूली सुनिश्चित हो सके।
- जोखिम-साझाकरण उपकरणों का विकास: आपदा ट्रिगर्स के आधार पर पूर्व निर्धारित भुगतान प्रदान करके दूरसंचार ऑपरेटरों की वित्तीय स्थिरता में सुधार करने के लिये पैरामीट्रिक बीमा को लागू करना, ताकि शीघ्र पुनर्प्राप्ति की गारंटी सुनिश्चित हो सके।
- हितधारक सहयोग को बढ़ाना: ज्ञान-साझाकरण मंच, निर्बाध विद्युत आपूर्ति तथा आपात स्थितियों के दौरान समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये अंतिम छोर तक सम्पर्कता और सूचना तक पहुँच को बढ़ावा देना।
अधिक पढ़ें: भारत के दूरसंचार क्षेत्र में सुधार के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भारत के दूरसंचार क्षेत्र की कमज़ोरियों पर चर्चा कीजिये तथा इसकी तन्यकता में वृद्धि हेतु उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से कौन दूरसंचार, बीमा, बिजली आदि क्षेत्रों में स्वतंत्र नियामकों की समीक्षा करता है? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: a प्रश्न. भारत में ‘पब्लिक की इंफ्रास्ट्रक्चर’ पदबंध किसके प्रसंग में प्रयुक्त किया जाता है? (2020) (a) डिजिटल सुरक्षा अवसंरचना उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |


जैव विविधता और पर्यावरण
राष्ट्रीय हरित वित्तपोषण संस्थान
प्रिलिम्स के लिये:NaBFID, NABARD, IREDA, InvITs, पंचामृत रणनीति, ग्रीन बॉण्ड, स्वच्छ पर्यावरण उपकर, प्राथमिकता क्षेत्रक ऋण (PSL), ग्रीन मसाला बॉण्ड, COP29 UNFCCC, क्रेडिट रेटिंग। मेन्स के लिये:भारत में एक समर्पित हरित वित्तपोषण संस्थान की आवश्यकता, जलवायु परिवर्तन शमन में वित्त की भूमिका। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सरकार विभिन्न स्रोतों से हरित वित्त को एकत्रित करने एवं वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने के क्रम में पूंजी लागत को कम करने हेतु एक राष्ट्रीय हरित वित्तपोषण संस्थान स्थापित करने की दिशा में कार्य कर रही है।
- नीति आयोग द्वारा राष्ट्रीय हरित वित्तपोषण संस्थान हेतु NaBFID /NABARD, IREDA, ग्रीन InvITs और वैश्विक ग्रीन बैंक जैसे मॉडलों का मूल्यांकन किया जा रहा है।
भारत में हरित वित्त की क्या आवश्यकता है?
- जलवायु परिवर्तन संबंधी जोखिम में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक कुल आर्थिक मूल्य में अनुमानतः 10% की हानि हो सकती है तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 18% तक की कमी आ सकती है।
- यह आर्थिक जोखिम विशेष रूप से भारत (जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था को 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है) के लिये चिंताजनक है।
- भारत की शुद्ध-शून्य उत्सर्जन संबंधी महत्त्वाकांक्षाएँ: COP26 UNFCCC में भारत ने पंचामृत रणनीति के तहत वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने की प्रतिज्ञा व्यक्त की, जिसके लिये 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक निवेश की आवश्यकता है।
- वित्तीय संस्थानों के लिये खतरा: बैंक ऊर्जा-कुशल भवनों, नवीकरणीय ऊर्जा, हरित बुनियादी ढाँचे और औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन का समर्थन करके जलवायु परिवर्तन के संभावित वित्तीय प्रभाव को कम कर सकते हैं। वित्तीय सेवा क्षेत्र इस क्षति के 72% के लिये ज़िम्मेदार है।
- निवेश घाटा: भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य तक पहुँचने के लिये कुल निवेश में 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर या सालाना 28 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है।
- फरवरी, 2023 तक भारत का ग्रीन बॉण्ड जारी करने का कुल मूल्य केवल 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसमें निजी क्षेत्र का योगदान 84% था।
भारत में वर्तमान हरित ऊर्जा वित्तपोषण पहल क्या हैं?
- NCEEF: राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण कोष (NCEEF) कोयले पर स्वच्छ पर्यावरण उपकर के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा उपक्रमों और अनुसंधान को वित्तपोषित करता है।
- IREDA, NCEEF के वित्त के एक हिस्से का उपयोग करके, 2% की दर पर बैंकों को ऋण देकर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये रियायती ऋण को संभव बनाता है।
- वैश्विक संस्थाएँ भी IREDA को वित्तपोषण प्रदान करती हैं; उदाहरण के लिये विश्व बैंक ने सौर पार्कों के लिये 100 मिलियन डॉलर का दान दिया है।
- IREDA, NCEEF के वित्त के एक हिस्से का उपयोग करके, 2% की दर पर बैंकों को ऋण देकर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये रियायती ऋण को संभव बनाता है।
- PSL की मान्यता: पीएसएल मान्यता: अप्रैल 2015 में RBI ने नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) के रूप में नामित किया, तथा यह अनिवार्य किया कि बैंक इस उद्देश्य के लिये शुद्ध ऋण का 40% तक अलग रखें।
- सौर, बायोमास, पवन, सूक्ष्म जलविद्युत और गैर-पारंपरिक ऊर्जा उपयोगिताओं के लिये प्रति उधारकर्त्ता 15 करोड़ रुपए तक का ऋण उपलब्ध है।
- ग्रीन बैंक: ग्रीन बैंक पर्यावरणीय दृष्टि से सतत् परियोजनाओं को वित्तपोषित करके स्वच्छ ऊर्जा वित्तपोषण में तेज़ी लाते हैं।
- भारत में, IREDA, SBI और अन्य बैंक नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये रियायती ऋण प्रदान करते हैं।
- ग्रीन बॉण्ड: ये पर्यावरण के लिये लाभकारी परियोजनाओं के लिये पूंजी जुटाने हेतु बाज़ार आधारित वित्तीय साधन हैं। उदाहरण के लिये, IREDA द्वारा जारी ग्रीन मसाला बॉण्ड।
- क्राउडफंडिंग: यह एक विकेंद्रीकृत वित्तपोषण मॉडल है जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा के लिये छोटे निजी निवेशों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये, क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म बेटरवेस्ट का ग्रामीण भारत में मेरागाओ (MeraGao) पावर और बूँद (Boond) इंजीनियरिंग के लिये समर्थन।
भारत में हरित ऊर्जा वित्तपोषण में क्या चुनौतियाँ हैं?
- सीमित अंतर्राष्ट्रीय वित्त: COP29 UNFCCC में, विकसित देशों ने जलवायु शमन हेतु वर्ष 2035 तक प्रतिवर्ष कम से कम 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने का संकल्प लिया, जो कि आवश्यक वित्तपोषण की तुलना में अपर्याप्त है।
- कई विशेषज्ञों का मानना है कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद के लिये वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की धनराशि जुटाना आवश्यक है।
- उच्च उधार लागत: उच्च ब्याज दरें, लंबी अवधि तथा उधारदाताओं के लिये वित्तीय प्रोत्साहनों की कमी, हरित वित्त को महंगा बना देती है, जिससे परियोजनाएँ प्रायः वित्तीय रूप से अव्यवहारिक हो जाती हैं।
- निधियों का विचलन: NCEEF की स्थापना स्वच्छ ऊर्जा पहलों के लिये की गई थी, लेकिन इसकी अधिकांश निधियों को GST क्षतिपूर्ति और नमामि गंगे जैसी गैर-नवीकरणीय परियोजनाओं में स्थानांतरित कर दिया गया है।
- ग्रीन बैंकों के लिये संस्थागत बाधाएँ: RBI के स्पष्ट दिशानिर्देशों और कानूनी मान्यता की कमी के कारण भारत में अभी तक ग्रीन बैंकों को संस्थागत रूप नहीं दिया जा सका है, जिससे उनकी विश्वसनीयता और निधि संग्रहण पर असर पड़ रहा है।
- अविकसित ग्रीन बॉण्ड मार्केट: ग्रीन बॉण्ड को उच्च क्रेडिट रेटिंग की आवश्यकता होती है, जो कई नवीकरणीय परियोजनाओं में खराब वित्तीय स्वास्थ्य के कारण नहीं होती है। निवेशकों में फंड के उपयोग को लेकर अविश्वास बना रहता है।
आगे की राह
- जलवायु वित्त को बढ़ावा देना: रियायती वित्तपोषण जुटाने के लिये वैश्विक ग्रीन बॉण्ड मार्केट और बहुपक्षीय संस्थाओं (विश्व बैंक, AIIB) जैसे प्लेटफार्मों का लाभ उठाना।
- निवेशकों को आकर्षित करने के लिये कर-मुक्त ग्रीन बॉण्ड योजना शुरू करते हुए हरित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये संप्रभु गारंटी और ब्याज दर सब्सिडी प्रदान करना।
- हरित बैंकिंग पारिस्थितिकी तंत्र: स्पष्ट विनियमन और विधिक ढाँचे के साथ RBI के तहत हरित बैंकों को संस्थागत बनाने और साथ साथ ही वैश्विक हरित पूंजी को आकर्षित करने के लिये सार्वजनिक-निजी सह-वित्तपोषण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- वैकल्पिक वित्तपोषण तंत्र: निजी भागीदारी को बढ़ावा देने और हरित वित्तपोषण साधनों से जुड़े कार्बन क्रेडिट बाज़ार विकसित करने के लिये हरित अवसंरचना निवेश ट्रस्टों (ग्रीन इनविट्स) का विस्तार करने की आवश्यकता है।
- सूक्ष्म वित्त पोषण: महिलाओं के नेतृत्व वाले हरित व्यवसायों को समर्थन प्रदान करना तथा न केवल शमन पर ध्यान केंद्रित करने अपितु अनुकूलन में सहायता प्रदान करने के लिये लघु किसानों के लिये संवहनीय जलवायु जोखिम बीमा प्रदान करने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वर्ष 2070 तक भारत के नेट-ज़ीरों लक्ष्य को प्राप्त करने में हरित वित्त की भूमिका की विवेचना कीजिये। इसके समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं और इनका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'हरित जलवायु निधि (ग्रीन क्लाइमेट फण्ड) के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न. नवंबर, 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन सी.ओ.पी. 26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में, आरंभ की गई हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आई.एस.ए.) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था? (2021) |

