शासन व्यवस्था
PVTG के लिये आवास
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह, प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान, जनजाति गौरव दिवस मेन्स के लिये:PVTG हेतु सतत् आजीविका, आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये कल्याण योजनाएँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
केंद्र ने 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 75 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) के बीच प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) के पात्र लाभार्थियों की पहचान करने के लिये एक व्यापक सर्वेक्षण और पंजीकरण प्रक्रिया शुरू की है।
- ग्रामीण विकास मंत्रालय, ग्रामीण आवास योजना के लाभार्थियों की पहचान करने के लिये अपने समर्पित ऑनलाइन एप्लीकेशन Aawas+ ऐप का उपयोग करता है।
- प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (PM JANMAN) के तहत PVTG के लिये कुल 4.9 लाख आवास निर्माण कराने की योजना है।
प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM JANMAN) क्या है?
- जनजातीय मामलों के मंत्रालय के नेतृत्व में PM JANMAN एक व्यापक योजना के माध्यम से जनजातीय समुदायों को मुख्यधारा में एकीकृत करना चाहता है। राज्यों एवं PVTG समुदायों के सहयोग से यह पहल आवास, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आजीविका के अवसरों सहित विभिन्न क्षेत्रों में 11 प्रमुख हस्तक्षेपों पर केंद्रित है।
- इस योजना की देखरेख 9 संबंधित मंत्रालयों द्वारा की जाएगी, जो PVTG वाले गाँवों में मौजूदा योजनाओं के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करेंगे।
- इस पहल की घोषणा प्रधानमंत्री ने जनजाति गौरव दिवस- 2023 (15 नवंबर) को की थी।
प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) क्या है?
- परिचय:
- यह केंद्र सरकार की एक प्रमुख योजना है। इसका शुभारंभ 1 अप्रैल, 2016 को ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) द्वारा किया गया था।
- इस योजना का लक्ष्य ग्रामीण परिवेश के गरीबों के लिये किफायती आवास उपलब्ध कराना है। इसमें जर्जर तथा कच्चे घरों में रहने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाएँ एवं स्वच्छ रसोई उपलब्ध कराना शामिल है।
- PMAY-G के तहत 2.95 करोड़ पक्के घरों के निर्माण के लक्ष्य की निर्धारित समय सीमा 31 मार्च, 2024 है।
- लाभार्थी:
- इसके लाभार्थियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, PVTG, मुक्त बँधुआ मज़दूर तथा गैर-SC/ST श्रेणियों से संबंधित लोग कार्रवाई में शहीद हुए रक्षा कर्मियों की विधवाएँ अथवा करीबी नातेदार, पूर्व सैनिक एवं अर्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्य, दिव्यांग व्यक्ति व अल्पसंख्यक शामिल हैं।
- कॉस्ट शेयरिंग:
- यूनिट सहायता की लागत केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच मैदानी क्षेत्रों में 60:40 एवं उत्तर पूर्वी व पहाड़ी राज्यों के लिये 90:10 के अनुपात में साझा की जाती है।
- विशेषताएँ:
- PVTG में PMAY-G घरों की इकाई लागत बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दी गई है, जबकि मैदानी क्षेत्रों में यह 1.2 लाख रुपए तथा पहाड़ी क्षेत्रों में 1.30 लाख रुपए है।
- PMAY-G लाभार्थी शौचालय निर्माण के लिये 12,500 रुपए की अतिरिक्त वित्तीय सहायता और राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (NREGS) के तहत 90 दिनों के काम का लाभ उठा सकते हैं, जिससे कुल लाभ 2.39 लाख रुपए हो जाएगा।
भारत के PVTGs क्या हैं?
- 75 PVTGs में से अधिकतम 13 ओडिशा में हैं, इसके बाद 12 आंध्र प्रदेश में हैं।
- PVTGs के लिये अन्य पहलें:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा , विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में विशिष्टत: असुरक्षित जनजातीय समूहों ख्पर्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स (PVTGs)] के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) 1. PVTGs देश के 18 राज्यों तथा एक संघ राज्यक्षेत्र में निवास करते हैं। उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं? (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गईं दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017) प्रश्न. क्या कारण है कि भारत में जनजातियों को 'अनुसूचित जनजातियाँ' कहा जाता है? भारत के संविधान में प्रतिष्ठापित उनके उत्थान के लिये प्रमुख प्रावधानों को सूचित कीजिये। (2016) |
भारतीय राजव्यवस्था
ब्रिटिश कालीन आपराधिक कानूनों को बदलने हेतु संसद द्वारा विधेयक पारित
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023, भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023, राजद्रोह, संसदीय स्थायी समिति, संगठित अपराध, महिलाओं के विरुद्ध लैंगिक अपराध मेन्स के लिये:भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023, भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023, दांडिक न्याय प्रणाली से संबंधित सरकारी पहल के प्रमुख उपबंध |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद द्वारा तीन प्रमुख विधेयक भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 तथा भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 पारित किये गए। हालाँकि, उनके निलंबन के कारण 97 विपक्षी सदस्यों की अनुपस्थिति के कारण उनका पारित होना एक विवादास्पद स्थिति बन गयी।
- अगस्त, 2023 में प्रस्तुत किये जाने के बाद विधेयकों को 31-सदस्यीय संसदीय स्थायी समिति के समक्ष भेजा गया।
भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 के प्रमुख उपबंध क्या हैं?
- भारतीय न्याय संहिता (द्वितीय) (BNS-2), भारतीय दंड संहिता, 1860 का स्थान लेगा तथा इसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं:
- अपराधों का प्रतिधारण तथा शामिल करना: BNS2 संगठित अपराध, आतंकवाद तथा सामूहिक गंभीर आघात अथवा हत्या जैसे नए अपराधों को शामिल करते हुए हत्या, हमले तथा चोट पहुँचाने पर मौजूदा IPC प्रावधानों को बनाए रखता है। इसमें दंड के रूप में सामुदायिक सेवा को भी शामिल किया गया है।
- आतंकवाद: इसे राष्ट्र की अखंडता को खतरे में डालने अथवा जनता के बीच आतंक उत्पन्न करने वाले कृत्यों के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसके तहत मृत्यु दंड अथवा आजीवन कारावास से लेकर ज़ुर्माने सहित कारावास तक हो सकता है।
- संगठित अपराध: इसमें अपहरण, जबरन वसूली, वित्तीय घोटाले, साइबर अपराध इत्यादि शामिल हैं। संगठित अपराध करने अथवा प्रयास करने वालों के लिये दंड के प्रावधान आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड तक भिन्न-भिन्न हैं जिसमें ज़ुर्माना भी शामिल है।
- मॉब लिंचिंग: BNS2 विशिष्ट आधारों (नस्ल, जाति, आदि) पर पाँच अथवा अधिक व्यक्तियों द्वारा की गई हत्या अथवा गंभीर चोट की पहचान एक दंडनीय अपराध के रूप में करता है, जिसमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है।
- महिलाओं के विरुद्ध लैंगिक अपराध: बलात्कार, ताक-झाँक/दृश्यरति कता तथा अन्य उल्लंघनों पर IPC की धाराओं को बरकरार रखते हुए, BNS2 सामूहिक बलात्कार के मामले में पीड़िता को वयस्क के रूप में वर्गीकृत करने की सीमा को 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष करता है। यह किसी महिला के साथ धोखे से या झूठे वादे करके यौन संबंध बनाने को भी अपराध मानता है।
- राजद्रोह संशोधन: BNS2 राजद्रोह के अपराध को समाप्त करता है तथा इसके स्थान पर फूट, सशस्त्र विद्रोह अथवा विभिन्न माध्यमों से राष्ट्रीय संप्रभुता अथवा एकता को खतरे में डालने वाली गतिविधियों से संबंधित दंडात्मक गतिविधियों को लागू करता है।
- हालाँकि आलोचकों का तर्क है कि राजद्रोह कानून के 'राजद्रोह' से 'देशद्रोह' में बदलने के बावजूद, इसके सार तथा अनुप्रयोग पर चिंताएँ लगातार बनी हुई हैं।
- लापरवाही से हुई मौतें: BNS2 आईपीसी की धारा 304A के तहत लापरवाही से मौत के लिये सज़ा को दो से बढ़ाकर पाँच साल कर देता है।
- हालाँकि, यह निर्धारित करता है कि अगर चिकित्सक दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें अभी भी दो साल की कैद की सज़ा का सामना करना पड़ेगा।
- सर्वोच्च न्यायालय का अनुपालन: इनमें व्यभिचार को अपराध के तौर नहीं शामिल किया गया है और आजीवन कारावास की सज़ा पाए व्यक्ति द्वारा हत्या या हत्या के प्रयास के लिये दंड के रूप में आजीवन कारावास का प्रावधान करके इसे सर्वोच्च न्यायालय के कुछ निर्णयों के अनुरूप बनाया है।
BNS2 की आलोचना:
- आपराधिक उत्तरदायित्व आयु विसंगति: आपराधिक उत्तरदायित्व की आयु सात वर्ष बनी हुई है, आरोपी की परिपक्वता के आधार पर इसे 12 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की अनुशंसाओं के अनुरूप नहीं है।
- बाल अपराध परिभाषाओं में विसंगतियाँ: BNS2 एक बच्चे को 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है तथा बच्चों के विरुद्ध कई अपराधों के लिये आयु सीमा भिन्न होती है। उदाहरण के लिये बलात्कार एवं सामूहिक बलात्कार जैसे अपराधों के लिये उम्र की आवश्यकता भिन्न-भिन्न होती है, जिससे असंगतता की स्थिति उत्पन्न होती है।
- राजद्रोह के प्रावधान तथा संप्रभुता संबंधी चिंताएँ: BNS2 राजद्रोह को एक अपराध के रूप में समाप्त करता है जिससे भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को खतरे में डालने से संबंधित कृत्य राजद्रोह के पहलुओं को बरकरार रख सकते हैं।
- बलात्कार और यौन उत्पीड़न पर IPC प्रावधानों को बरकरार रखना: BNS2 ने बलात्कार और यौन उत्पीड़न पर IPC के प्रावधानों को बरकरार रखा है। यह न्यायमूर्ति वर्मा समिति (2013) की सिफारिशों पर विचार नहीं करता है जैसे कि बलात्कार के अपराध को लिंग तटस्थ बनाना और वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में शामिल करना।
भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 (BNSS2) आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) को प्रतिस्थापित करने का प्रयास करती है, जिसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं:
- हिरासत की शर्तें: BNSS2 ने विचाराधीन कैदियों के लिये नियमों में बदलाव किया है, आजीवन कारावास के मामलों और कई आरोपों का सामना करने वाले व्यक्तियों सहित गंभीर अपराधों के आरोपियों के लिये व्यक्तिगत ज़मानत पर रिहाई को प्रतिबंधित कर दिया है।
- चिकित्सीय परीक्षण: यह चिकित्सा परीक्षण के दायरे को व्यापक बनाता है, जिससे किसी भी पुलिस अधिकारी (सिर्फ एक उप-निरीक्षक नहीं) को अनुरोध करने की अनुमति मिलती है, जिससे प्रक्रिया अधिक सुलभ हो जाती है।
- फॉरेंसिक जाँच: कम से कम सात साल की कैद की सज़ा वाले अपराधों के लिये फोरेंसिक जाँच अनिवार्य है।
- इसमें फोरेंसिक विशेषज्ञों को अपराध स्थलों पर साक्ष्य एकत्र करने और प्रक्रिया को इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिकॉर्ड करने की आवश्यकता होती है। जिन राज्यों में फोरेंसिक सुविधाओं की कमी है, उन्हें अन्य राज्यों में मौजूद सुविधाओं का उपयोग करना चाहिये।
- नमूना संग्रहण: CrPC के नमूना हस्ताक्षरों या लिखावट (specimen signatures) आदेशों से आगे बढ़कर, उन व्यक्तियों से भी, जो गिरफ्तार नहीं हुए हैं, उंगली के निशान और आवाज़ के नमूने एकत्र करने की शक्ति प्रदान करता है।
- समय-सीमा: BNSS2 सख्त समय-सीमा निर्धारित करता है: बलात्कार पीड़ितों के लिये 7 दिनों के भीतर मेडिकल रिपोर्ट, 30 दिनों के भीतर निर्णय (45 तक बढ़ाया जा सकता है), पीड़िता की प्रगति के बारे में 90 दिनों के भीतर अपडेट और पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय करना।
- न्यायालय पदानुक्रम: CrPC भारत की आपराधिक अदालतों को मजिस्ट्रेट अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पदानुक्रमित रूप से व्यवस्थित करती है। इसने पहले दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट रखने की अनुमति दी थी, लेकिन BNSS2 इस अंतर और मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की भूमिका को समाप्त कर देता है।
BNSS2 की आलोचनाएँ:
- अपराध से अर्जित संपत्ति की कुर्की और सुरक्षा उपायों की कमी: अपराध की आय से संपत्ति जब्त करने की शक्ति में धन शोधन निवारण अधिनियम में प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों का अभाव है, जिससे संभावित दुरुपयोग या निगरानी की कमी के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- एकाधिक आरोपों के लिये ज़मानत पर प्रतिबंध: जबकि CrPC किसी अपराध के लिये अधिकतम कारावास की आधी सज़ा के लिये हिरासत में लिये गए आरोपी को ज़मानत की अनुमति देता है, BNSS2 कई आरोपों का सामना करने वाले व्यक्तियों के लिये इस सुविधा से इनकार करता है।
- कई धाराओं से जुड़े मामलों में प्रचलित यह प्रतिबंध ज़मानत के अवसरों को सीमित कर सकता है।
- हथकड़ी का उपयोग और विरोधाभासी सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश: BNSS2 संगठित अपराध सहित विभिन्न मामलों में हथकड़ी के इस्तेमाल की अनुमति देता है, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित निर्देशों का खंडन करता है।
- परीक्षण प्रक्रिया और सार्वजनिक व्यवस्था रखरखाव का एकीकरण: BNSS2 सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव से संबंधित CrPC प्रावधानों को बरकरार रखता है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या परीक्षण प्रक्रियाओं और सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव को एक ही कानून के तहत विनियमित किया जाना चाहिये या अलग से संबोधित किया जाना चाहिये।
भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 (BSB2) ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) का स्थान लिया है। यह IEA के अधिकांश प्रावधानों को बरकरार रखता है जिनमें स्वीकारोक्ति, तथ्यों की प्रासंगिकता और साक्ष्य का दायित्व शामिल है। हालाँकि इसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं:
- दस्तावेज़ी/लिखित साक्ष्य:
- परिभाषा विस्तार: BSB2 पारंपरिक लेखन, मानचित्र और कैरिकेचर के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को शामिल करने के लिये दस्तावेज़ों की परिभाषा को व्यापक बनाता है।
- प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य: प्राथमिक साक्ष्य अपनी स्थिति बरकरार रखता है, जिसमें मूल दस्तावेज़, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और वीडियो रिकॉर्डिंग शामिल हैं।
- दस्तावेज़ों की जाँच करने वाले योग्य व्यक्ति की गवाही के साथ-साथ मौखिक और लिखित स्वीकारोक्ति को अब द्वितीयक साक्ष्य माना जाता है।
- मौखिक साक्ष्य: BSB2 मौखिक साक्ष्य के इलेक्ट्रॉनिक प्रावधान की अनुमति देता है, जिससे गवाहों, आरोपी व्यक्तियों और पीड़ितों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गवाही देने में सहायता मिलती है।
- इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता: इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड को कागज़ी रिकॉर्ड के बराबर कानूनी दर्जा दिया जाता है।
- इसमें सेमीकंडक्टर मेमोरी, स्मार्टफोन, लैपटॉप, ईमेल, सर्वर लॉग, स्थान संबंधी साक्ष्य और ध्वनि मेल में संग्रहीत सूचनाएँ शामिल है।
- संयुक्त परीक्षणों के लिये संशोधित स्पष्टीकरण: संयुक्त परीक्षणों में ऐसे मामले शामिल हैं जिनमें एक आरोपी पक्ष उपस्थित नहीं है या उसने गिरफ्तारी वारंट का प्रत्युत्तर नहीं दिया है, जिन्हें अब संयुक्त परीक्षणों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
BSB2 की आलोचना:
- हिरासत में आरोपी से सूचना की स्वीकार्यता: BSB2 ऐसी जानकारी को स्वीकार्य होने की अनुमति देता है यदि वह उस समय प्राप्त की गई थी जब आरोपी पुलिस हिरासत में था, लेकिन तब नहीं जब वह हिरासत से बाहर था। विधि आयोग ने इस अंतर को समाप्त करने की सिफारिश की।
- अनिगमित विधि आयोग की सिफारिशें: विधि आयोग की कई सिफारिशें, जैसे कि पुलिस हिरासत में किसी आरोपी को लगी चोटों के लिये पुलिस की ज़िम्मेदारी मानना, को उनके महत्त्व के बावज़ूद, BSB2 में शामिल नहीं किया गया है।
- इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़: सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़ हो सकती है।
- जबकि BSB2 ऐसे रिकॉर्ड की स्वीकार्यता प्रदान करता है, लेकिन जाँच प्रक्रिया के दौरान ऐसे रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ व संदूषण/हेरफेर को रोकने के लिये कोई सुरक्षा उपाय नहीं हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:Q. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (2014) Q. भीड़ हिंसा भारत में एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है। उपयुक्त उदाहरण देते हुए ऐसी हिंसा के कारणों और परिणामों का विश्लेषण कीजिये। भीड़ हिंसा को रोकने के लिये उपाय भी सुझाइये। (2015) |
सामाजिक न्याय
स्वास्थ्य बीमा की निगरानी के लिये नियामक
प्रिलिम्स के लिये:स्वास्थ्य बीमा, IRDAI विज़न 2047, स्वास्थ्य बीमा, अपनी जेब से किये गए खर्च (OOPE) की निगरानी के लिये नियामक। मेन्स के लिये:स्वास्थ्य बीमा की निगरानी के लिये नियामक। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सरकार एक स्वास्थ्य क्षेत्र नियामक (Health sector regulator) स्थापित करने पर विचार कर रही है जो सभी के लिये किफायती बीमा कवरेज़ की सुविधा के लिये निजी और सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को अपने अधिकार क्षेत्र में लाएगा।
स्वास्थ्य क्षेत्र नियामक स्थापित करने की क्या आवश्यकता है?
- न्यूनतम प्रवेश:
- IRDAI विज़न 2047 के तहत सरकार का लक्ष्य '2047 तक सभी के लिये बीमा' प्रदान करना है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक के पास उचित जीवन, स्वास्थ्य और संपत्ति बीमा कवरेज है तथा प्रत्येक उद्यम को उचित बीमा समाधान द्वारा समर्थित किया जाता है।
- राष्ट्रीय बीमा एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, कम पहुँच, कवरेज अपर्याप्तता और बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागत के कारण 400 मिलियन से अधिक व्यक्तियों या लगभग एक तिहाई आबादी के पास स्वास्थ्य बीमा की कमी है।
- एकीकृत निगरानी:
- निजी और सरकारी दोनों स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को एक नियामक के तहत लाने से मानकीकृत निरीक्षण सुनिश्चित होता है।
- यह विनियमों, नीतियों और प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करता है, जिससे संपूर्ण स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र के लिये एक सामंजस्यपूर्ण ढाँचा तैयार होता है।
- उचित व्यवहार सुनिश्चित करना:
- एक नियामक बोर्ड भर में निष्पक्ष प्रथाओं को सुनिश्चित करने में मदद करता है। यह प्रीमियम, दावा निपटान और कवरेज मानदंड की निगरानी कर सकता है, कदाचार को रोक सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि निजी एवं सरकारी दोनों बीमाकर्त्ता पारदर्शी तरीके से कार्य करते हैं।
- उन्नत पहुँच क्षमता:
- एक नियामक के साथ, स्वास्थ्य देखभाल की पहुँच में सुधार करने का अवसर है।
- निजी बीमा की पहुँच तेज़ी से बढ़ रही है और सरकार द्वारा संचालित बीमा के साथ भारत का लक्ष्य शीघ्र ही 70% जनसंख्या को कवर/ करना है।
- सामर्थ्य और स्थिरता:
- बीमा योजनाओं की देखरेख करके, नियामक स्वास्थ्य बीमा की सामर्थ्य बनाए रखने की दिशा में कार्य कर सकता है।
- यह लागतों को नियंत्रित करने, उचित मूल्य निर्धारण संरचना स्थापित करने और अनुचित प्रीमियम बढ़ोतरी को नियंत्रित करने में सहायता कर सकता है, जिससे लंबे समय में बीमा अधिक संधारणीय हो जाता है।
- गुणवत्ता नियंत्रण:
- नियामक, बीमा द्वारा कवर की गई स्वास्थ्य सेवाओं के लिये मानकों को निर्धारित और लागू कर सकता है। इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि पैनल में शामिल अस्पताल कुछ गुणवत्ता मानकों को पूरा करते हैं, जिससे बीमित व्यक्तियों के लिये उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल को बढ़ावा मिलता है।
स्वास्थ्य बीमा क्या है?
- स्वास्थ्य सेवा के संदर्भ में:
- स्वास्थ्य बीमा एक प्रकार का कवरेज है जो बीमित व्यक्ति द्वारा किये गए चिकित्सा खर्चों का भुगतान करता है।
- यह अस्पताल में भर्ती होने, डॉक्टर विज़िट्स, सर्ज़री, दवाओं और निवारक देखभाल सहित विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल लागतों को कवर करने के लिये वित्तीय सुरक्षा प्रदान करके कार्य करता है।
- स्वास्थ्य बीमा का महत्त्व:
- यह स्वास्थ्य संबंधी आपदाओं के प्रति अधिक वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिये भारत में आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंडीचर (OOPE) के उच्चतम स्तर को एकत्रित करने का एक तंत्र है।
- स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से पूर्व-भुगतान जोखिम-पूंजीकरण और स्वास्थ्य संबंधी विपत्तियों से होने वाले विध्वंसक (एवं प्रायः कंगाल कर देने वाले) खर्चों से सुरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण तंत्र के रूप में कार्य करता है।
- इसके अलावा, प्री-पेड पूल्ड फंड भी स्वास्थ्य सेवा प्रावधान की दक्षता में सुधार कर सकता है।
- स्वास्थ्य बीमा से संबंधित मुद्दे:
- असमान रूप से वितरित जीवन की स्थिति: स्वतंत्रता के बाद से लोगों की जीवन प्रत्याशा में 35 वर्ष से 65 वर्ष तक उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लेकिन देश के विभिन्न भागों में जीवन प्रत्याशा की स्थिति असमान है। भारत में स्वास्थ्य समस्याएँ अभी भी गंभीर चिंता का कारण बनी हुई हैं।
- कम सरकारी व्यय: स्वास्थ्य पर कम सरकारी व्यय ने सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता तथा गुणवत्ता को बाधित किया है।
- यह अधिकांश व्यक्तियों, लगभग दो-तिहाई, को महँगे निजी क्षेत्र में इलाज कराने के लिये प्रेरित करता है।
- महत्त्वपूर्ण जनसंख्या की अनदेखी: कम से कम 30% आबादी अथवा 40 करोड़ व्यक्ति स्वास्थ्य के लिये दिये जाने वाले किसी भी वित्तीय सुरक्षा से वंचित हैं।
- संबंधित सरकारी योजनाएँ:
- आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY): यह प्रति परिवार द्वितीयक देखभाल और तृतीयक देखभाल के लिये 5 लाख रुपए की बीमा राशि प्रदान करता है।
- वर्ष 2019 दावों की अंतरसंचालनीयता को सक्षम करने के लिये एक हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (HCX) विकसित किया है।
नोट:
भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) उन बीमाकर्ताओं को नियंत्रित करता है जो अन्य उत्पादों के साथ स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करते हैं।
सामाजिक न्याय
भारत कौशल रिपोर्ट, 2024
प्रिलिम्स के लिये:इंडिया स्किल्स रिपोर्ट, 2024, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (AICTE), कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री एंड एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज़, AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता)। मेन्स के लिये:इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2024। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में व्हीबॉक्स ने अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (AICTE) भारतीय उद्योग परिसंघ और भारतीय विश्वविद्यालय संघ सहित विभिन्न एजेंसियों के सहयोग से भारत कौशल रिपोर्ट- 2024 प्रकाशित की है, जिसमें भारत का कौशल परिदृश्य एवं कार्यबल पर AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है।
- थीम: कार्य, कौशल और गतिशीलता के भविष्य पर AI का प्रभाव।
- इस रिपोर्ट के निष्कर्ष 3.88 लाख उम्मीदवारों के मूल्यांकन का परिणाम हैं, जिन्होंने भारत के शैक्षणिक संस्थानों में व्हीबॉक्स नेशनल एम्प्लॉयबिलिटी टेस्ट (WNET) दिया था।
नोट: व्हीबॉक्स दूरस्थ प्रॉक्टर्ड मूल्यांकन और परामर्श सेवाओं में अग्रणी फर्मों में से एक है, जिसका मुख्यालय भारत में है तथा GCC (खाड़ी सहयोग परिषद्) देशों में विस्तृत हुआ है, व्हीबॉक्स विश्व भर में निगमों, संस्थानों और सरकारों के लिये लाखों मूल्यांकन एवं आँकड़े प्रदान करता है।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- AI नेतृत्व और प्रतिभा सघनता:
- भारत AI कौशल पैठ और प्रतिभा सघनता में एक प्रमुख वैश्विक स्थान रखता है, जो AI पेशेवरों का एक मज़बूत आधार दर्शाता है।
- देश में अगस्त 2023 तक 4.16 लाख AI पेशेवर थे, जो वर्ष 2026 तक 1 मिलियन के आँकड़े तक पहुँचने की उम्मीद की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये तैयार हैं।
- भारत में ML इंजीनियर, डेटा साइंटिस्ट, DevOps इंजीनियर और डेटा आर्किटेक्ट जैसी प्रमुख भूमिकाओं में मांग-आपूर्ति का अंतर 60-73% तक है।
- रोज़गार संबंधी रुझान:
- भारत में समग्र युवा रोज़गार क्षमता में सुधार हुआ है, जो 51.25% तक पहुँच गया है। हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, केरल और तेलंगाना जैसे राज्य अत्यधिक रोज़गार योग्य युवाओं की उच्च सांद्रता प्रदर्शित करते हैं।
- हरियाणा में रोज़गार योग्य युवाओं की संख्या सबसे अधिक है, इस क्षेत्र के 76.47% परीक्षार्थियों ने WNET पर 60% और उससे अधिक अंक प्राप्त किये हैं।
- आयु-विशिष्ट रोज़गार योग्यता:
- विभिन्न आयु समूहों में रोज़गार योग्यता के विभिन्न स्तर प्रदर्शित होते हैं। उदाहरण के लिये 22 से 25 वर्ष की आयु सीमा में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य उच्च प्रतिभा सांद्रता के साथ सामने आते हैं।
- तेलंगाना में 18-21 आयु वर्ग में रोज़गार योग्य प्रतिभाओं की संख्या सबसे अधिक है, जहाँ 85.45% रोज़गार योग्य पाए गए, इसके बाद केरल में इस आयु वर्ग में 74.93% रोज़गार योग्य संसाधन पाए गए।
- गुजरात में 26-29 आयु वर्ग में रोज़गार योग्य संसाधनों की उपलब्धता सबसे अधिक है, इस आयु वर्ग में 78.24% रोज़गार योग्य पाए गए हैं।
- रोज़गार योग्य प्रतिभा वाले शहर:
- 18-21 आयु वर्ग में रोज़गार योग्य प्रतिभा वाले शीर्ष शहरों में पुणे पहले स्थान पर आया, जहाँ 80.82% उम्मीदवार अत्यधिक रोज़गार योग्य पाए गए, उसके बाद बंगलुरु और तिरुवनंतपुरम थे।
- शीर्ष शहरों में 22-25 आयु वर्ग में रोज़गार योग्यता के लिये लखनऊ 88.89% के साथ पहले स्थान पर है, उसके बाद मुंबई और फिर बंगलुरु हैं।
- रोज़गार हेतु सर्वाधिक पसंदीदा राज्य:
- केरल पुरुष तथा स्त्री दोनों रोज़गार योग्य प्रतिभाओं के लिये कार्य करने के लिये सबसे पसंदीदा राज्य है, जबकि कोचीन स्त्रियों के लिये कार्य करने के लिये सर्वाधिक पसंदीदा क्षेत्र है।
- शिक्षण में AI एकीकरण:
- विज्ञान की शिक्षा में AI के एकीकरण को एक प्रमुख घटक के रूप में देखा जाता है, जो वैयक्तिकृत, विश्लेषण-संचालित तथा कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि को सक्षम बनाता है। प्रभावी व्यावसायिक विकास के लिये यह एकीकरण आवश्यक माना जाता है।
- उद्योग तत्परता:
- उद्यमों से अपेक्षा की जाती है कि वे शुरुआती कॅरियर कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कौशल बढ़ाने की पहल में अधिक निवेश करें। उक्त रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि नियुक्तियों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा शुरुआती कॅरियर क्षेत्रों की ओर निर्देशित किया जाएगा।
- सहयोगात्मक प्रयास:
- यह रिपोर्ट चुनौतियों का समाधान करने तथा AI द्वारा उत्प्रेरित परिवर्तनकारी भविष्य को आगे बढ़ाने के लिये समावेशी कौशल विकसित करने की पहल पर ध्यान केंद्रित करने के लिये सरकारी निकायों, व्यवसायों एवं शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?
- INDIAai
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी (GPAI)
- यू.एस. इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पहल
- युवाओं के लिये ज़िम्मेदार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिसर्च, एनालिटिक्स और नॉलेज एसिमिलेशन प्लेटफ़ॉर्म
कौशल विकास से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में आईटी उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं?(2022) प्रश्न."चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने की पहल की है"। विवेचन कीजिये। (2020) |
भारतीय राजव्यवस्था
न्यायाधिकरण
प्रिलिम्स के लिये:न्यायाधिकरण, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल (AFT), जज एडवोकेट जनरल, संविधान का अनुच्छेद 226। मेन्स के लिये:न्यायाधिकरण, वैधानिक, नियामक और विभिन्न अर्ध-न्यायिक निकाय। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने यूनियन ऑफ इंडिया (UoI) और अन्य बनाम AIR कमोडोर एन. के. शर्मा (2023) मामले में स्पष्ट किया है कि अपने शासी कानूनों के सख्त मापदंडों के तहत काम करने वाले न्यायाधिकरण सरकार को नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय इस सवाल पर विचार कर रहा था कि क्या सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) सरकार को जज एडवोकेट जनरल (Air) के पद को भरने के लिये एक नीति बनाने का निर्देश दे सकता था।
UoI और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या है? बनाम AIR कमोडोर एन. के. शर्मा मामला?
- सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) सहित न्यायाधिकरणों के पास सरकार को विशिष्ट नीतियाँ बनाने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है।
- नीति बनाने की भूमिका न्यायपालिका के क्षेत्र में नहीं है, जिसमें AFT जैसे अर्द्ध-न्यायिक निकाय भी शामिल हैं।
- AFT को सिविल न्यायालय के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं किंतु इसमें सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालयों के प्राधिकार का अभाव है। इसके अतिरिक्त, उच्च न्यायालय, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, सरकार अथवा उसके विभागों को विशेष नीतियाँ बनाने का निर्देश नहीं दे सकते हैं।
- अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को किसी नागरिक के अधिकारों तथा स्वतंत्रता का उल्लंघन होने पर सरकारी संस्था के विरुद्ध मुकदमा दायर करने का अधिकार प्रदान करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के पास किसी भी व्यक्ति अथवा प्राधिकारी को आदेश एवं रिट जारी करने की व्यापक शक्तियाँ हैं।
- रक्षा कर्मियों की सेवा या उनके नियमितीकरण के संबंध में नीतियों का निर्माण या मंज़ूरी पूरी तरह से सरकार के विशेषाधिकार के अंतर्गत आती है।
- अपने शासी कानून के दायरे में काम करने वाले एक न्यायाधिकरण के पास नीति के निर्माण को अनिवार्य करने की शक्ति का अभाव है।
न्यायाधिकरण क्या है?
- परिचय :
- न्यायाधिकरण एक अर्ध-न्यायिक संस्था है जिसे प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों को सुलझाने जैसी समस्याओं से निपटने के लिये स्थापित किया गया है। यह कई कार्य करता है, जैसे– विवादों का निपटारा करना, चुनाव लड़ने वाले पक्षों के बीच अधिकारों का निर्धारण करना, प्रशासनिक निर्णय लेना, मौजूदा प्रशासनिक निर्णय की समीक्षा करना आदि।
- संवैधानिक प्रावधान:
- न्यायाधिकरण मूल संविधान का हिस्सा नहीं था, इसे 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारतीय संविधान में शामिल किया गया था।
- अनुच्छेद 323-A प्रशासनिक न्यायाधिकरणों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 323-B अन्य मामलों के लिये न्यायाधिकरण से संबंधित है।
- अनुच्छेद 323 B के तहत संसद और राज्य विधानमंडल निम्नलिखित मामलों से संबंधित विवादों के निपटारे के लिये न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये अधिकृत हैं–
- कराधान
- विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात
- औद्योगिक और श्रम
- भूमि सुधार
- शहरी संपत्ति पर सीमा
- संसद और राज्य विधानमंडलों के लिये चुनाव
- खाद्य सामग्री
- किराया और किरायेदारी अधिकार
- अनुच्छेद 323A और 323B में अंतर :
- अनुच्छेद 323 A केवल सार्वजनिक सेवा मामलों के लिये न्यायाधिकरणों की स्थापना पर विचार करता है, अनुच्छेद 323 B कुछ अन्य मामलों (ऊपर दिये गए) के लिये न्यायाधिकरणों की स्थापना पर विचार करता है।
- अनुच्छेद 323 A के तहत अधिकरण केवल संसद द्वारा स्थापित किये जा सकते हैं, अनुच्छेद 323 B के तहत अधिकरण उनकी विधायी क्षमता के अंतर्गत आने वाले मामलों के संबंध में संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों द्वारा स्थापित किये जा सकते हैं।
- अनुच्छेद 323 A के तहत, केंद्र के लिये केवल एक तथा प्रत्येक राज्य के लिये एक अथवा दो अथवा दो से अधिक राज्यों के लिये एक अधिकरण स्थापित किया जा सकता है। इसके तहत अधिकरणों के पदानुक्रम की कोई प्रावधान नहीं है, जबकि अनुच्छेद 323 B के तहत अधिकरणों का एक पदानुक्रम बनाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 262: भारतीय संविधान राज्य/क्षेत्रीय सरकारों के बीच उत्पन्न होने वाली अंतर्राज्यिक नदियों के जल विवादों पर निर्णय लेने में केंद्र सरकार को एक भूमिका प्रदान करता है।
- न्यायाधिकरण मूल संविधान का हिस्सा नहीं था, इसे 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारतीय संविधान में शामिल किया गया था।
भारत में विभिन्न अधिकरण कौन-कौन से हैं?
- प्रशासनिक अधिकरण:
- प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 के तहत स्थापित प्रशासनिक अधिकरण, संविधान के अनुच्छेद 323 A के अंतर्गत स्थापित किये गए हैं। वे विशेष अर्द्ध-न्यायिक निकायों के रूप में कार्य करते हैं जो संघ तथा राज्य शासन के तहत सार्वजनिक पदों पर व्यक्तियों की भर्ती एवं कार्यकाल की शर्तों से संबंधित विवादों व शिकायतों का निपटारा करते हैं।
- इन अधिकरणों में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT), अनुरोध पर स्थापित राज्य-विशिष्ट अधिकरण तथा विभिन्न राज्यों के लिये संयुक्त अधिकरण शामिल हैं।
- जल विवाद अधिकरण:
- संसद ने अंतर्राज्यिक जल विवाद (ISRWD) अधिनियम, 1956 अधिनियमित किया है तथा अंतर्राज्यिक नदियों तथा नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों के निपटारे के लिये विभिन्न जल विवाद अधिकरण का गठन किया है।
- आत्म-नियोजित अधिकरण: अंतर्राज्यिक नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 को मौजूदा ISRWD अधिनियम, 1956 में संशोधन करने के लिये संसद द्वारा पारित किया गया ताकि प्रत्येक जल विवाद के लिये एक पृथक अधिकरण स्थापित करने की आवश्यकता को दूर करने के लिये एक आत्म-नियोजित (Standalone) अधिकरण का गठन किया जा सके। यह निश्चित रूप से एक समय लेने वाली प्रक्रिया है।
- संसद ने अंतर्राज्यिक जल विवाद (ISRWD) अधिनियम, 1956 अधिनियमित किया है तथा अंतर्राज्यिक नदियों तथा नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों के निपटारे के लिये विभिन्न जल विवाद अधिकरण का गठन किया है।
- सशस्त्र बल अधिकरण (AFT):
- यह भारत का एक सैन्य अधिकरण है। इसकी स्थापना सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007 के तहत की गई थी।
- इसके द्वारा सेना अधिनियम, 1950, नौसेना अधिनियम, 1957 तथा वायु सेना अधिनियम 1950 के अधीन व्यक्तियों के संबंध में आयोग, नियुक्तियों, नामांकन तथा कार्यकाल की शर्तों के संबंध में विवादों एवं शिकायतों पर AFT द्वारा निर्णय अथवा परीक्षण की शक्ति प्रदान की जाती है।
- न्यायिक सदस्य सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश होते हैं और प्रशासनिक सदस्य सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त सदस्य होते हैं, जिन्होंने तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिये मेजर जनरल/समकक्ष या उससे ऊपर का पद धारण किया हो या जज एडवोकेट जनरल (JAG) जिन्होंने इस पद पर नियुक्ति प्राप्त की हो, कम-से-कम एक वर्ष तक प्रशासनिक सदस्य के रूप में नियुक्त होने के भी हकदार हैं।
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT):
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल अधिनियम, 2010 द्वारा स्थापित पर्यावरणीय विवादों को शीघ्र-अतिशीघ्र हल करने के लिये समर्पित एक निकाय है।
- न्यायाधीशों और पर्यावरण विशेषज्ञों को शामिल करते हुए, यह प्रकृति संरक्षण तथा क्षति मुआवज़े से जुड़े मामलों को तेज़ी से निपटाता है।
- आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण:
- आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 252 में प्रावधान है कि केंद्र सरकार एक अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन करेगी जिसमें कई न्यायिक सदस्य और लेखाकार सदस्य शामिल होंगे क्योंकि वह अधिनियम द्वारा न्यायाधिकरण को प्रदत्त शक्तियों एवं कार्यों का प्रयोग करना उचित समझती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q1. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010 भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-सा/से प्रावधान के आनुरूप्य अधिनियमित हुआ था/थे? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: A |
शासन व्यवस्था
FAME इंडिया चरण- II योजना
प्रिलिम्स के लिये:संसदीय समिति, फेम इंडिया योजना चरण- II, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना, वाहन स्क्रैपिंग नीति। मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ, इलेक्ट्रिक वाहन: लाभ, चुनौतियाँ |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
उद्योग पर संसदीय स्थायी समिति ने हाल ही में भारत में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेज़ी से अपनाने तथा विनिर्माण (FAME इंडिया) योजना चरण- II के विस्तार एवं संवर्द्धन के संबंध में महत्त्वपूर्ण सिफारिशें दी हैं।
- समिति ने विद्युत गतिशीलता में परिवर्तन की गति को सुविधाजनक बनाने के लिये फेम इंडिया चरण-II योजना की समय सीमा को कम-से-कम तीन वर्ष और बढ़ाने का सुझाव दिया है।
- समिति ने फेम इंडिया फेज-2 योजना की समय सीमा को कम-से-कम तीन साल और बढ़ाने का सुझाव दिया है ताकि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में बदलाव की गति को सुविधाजनक बनाया जा सके।
- 10,000 करोड़ रुपए के बजट आवंटन के साथ इसकी वर्तमान समय सीमा 31 मार्च, 2024 है।
सुधार के लिये समिति की सिफारिशें क्या हैं?
- इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों पर सब्सिडी की बहाली:
- समिति ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों पर सब्सिडी बहाल करने का सुझाव दिया है, जिसे जून 2023 में कम कर दिया गया था।
- सरकार ने 1 जून 2023 के बाद इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के लिये FAME-II सब्सिडी कम कर दी थी।
- पूर्व-कारखाना मूल्य पर प्रारंभिक 40% प्रोत्साहन को घटाकर 15% कर दिया गया। सब्सिडी में कमी से इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की बिक्री पर नकारात्मक असर पड़ा। सब्सिडी पुनः आवंटन के लिये बजट की कमी को एक कारण बताया गया है।
- सरकार ने 1 जून 2023 के बाद इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के लिये FAME-II सब्सिडी कम कर दी थी।
- यह इलेक्ट्रिक वाहन प्रवेश की गति को बनाए रखने के लिये यदि आवश्यक हो, बढ़े हुए बजट आवंटन का अनुमान लगाने की भी सिफारिश करता है।
- समिति ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों पर सब्सिडी बहाल करने का सुझाव दिया है, जिसे जून 2023 में कम कर दिया गया था।
- निजी इलेक्ट्रिक चार पहिया वाहनों का समावेश:
- मंत्रालय को चार पहिया वाहनों की श्रेणी में समर्थित इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में वृद्धि करनी चाहिये और वाहन की लागत तथा बैटरी क्षमता के आधार पर एक सीमा के साथ FAME-II योजना में निजी इलेक्ट्रिक चार पहिया वाहनों को शामिल करना चाहिये।
- सहायक सरकारी ढाँचे:
- यह समिति भारत को वैश्विक EV केंद्र बनाने के लिये राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर सहायक, पारदर्शी तथा सुसंगत सरकारी ढाँचे की आवश्यकता पर बल देती है।
- यह बैटरी, सेल और EV ऑटो घटकों के लिये समर्पित विनिर्माण केंद्र तथा औद्योगिक पार्क स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करने की भी सिफारिश करता है।
- यह समिति भारत को वैश्विक EV केंद्र बनाने के लिये राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर सहायक, पारदर्शी तथा सुसंगत सरकारी ढाँचे की आवश्यकता पर बल देती है।
- BHEL और चार्जिंग स्टेशनों के लिये वित्त पोषण:
- EV गतिशीलता को लोकप्रिय बनाने की सुविधा के लिये भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) को अधिक धनराशि आवंटित की जानी चाहिये।
- BHEL ने EV चार्जिंग स्टेशनों के लिये इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन (EPC) समाधान प्रदान किये। इनमें सौर ऊर्जा आधारित चार्जिंग स्टेशन और बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियाँ शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकारी संस्थानों को अपने परिसरों में चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने में भाग लेना चाहिये।
- EV गतिशीलता को लोकप्रिय बनाने की सुविधा के लिये भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) को अधिक धनराशि आवंटित की जानी चाहिये।
- चार्जिंग स्टेशन स्थापना को प्रोत्साहित करना:
- FAME-II को चार्जिंग स्टेशनों में व्यक्तिगत निवेशकों को प्रोत्साहित करना चाहिये। महिला स्वयं सहायता समूहों और सहकारी समितियों को चार्जिंग स्टेशन खोलने तथा संचालित करने में सरकार द्वारा अपने फंड से सुनिश्चित रिटर्न प्रदान करने में सहायता की जानी चाहिये।
फेम इंडिया योजना क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- फेम इंडिया नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन (NEMM) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- योजना का मुख्य उद्देश्य खरीद पर अग्रिम प्रोत्साहन देकर इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को अपनाने को प्रोत्साहित करना है।
- इस योजना में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक तकनीक, जैसे– माइल्ड हाइब्रिड, स्ट्रांग हाइब्रिड, प्लग इन हाइब्रिड तथा बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन शामिल हैं।
- पहला चरण:
- यह वर्ष 2015 में शुरू हुआ और 895 करोड़ रुपए की लागत से 31 मार्च, 2019 को पूरा हुआ।
- FAME योजना के पहले चरण में चार फोकस क्षेत्र थे अर्थात् प्रौद्योगिकी विकास, मांग निर्माण, पायलट परियोजना और चार्जिंग बुनियादी ढाँचा।
- उपलब्धियाँ:
- योजना के पहले चरण में, लगभग 2.78 लाख xEV को कुल मांग प्रोत्साहन के साथ समर्थन दिया गया था। इसके अलावा इस योजना के तहत विभिन्न शहरों/राज्यों के लिये 465 बसें स्वीकृत की गईं।
- फेम इंडिया का दूसरा चरण
- भारी उद्योग मंत्रालय ने 1 अप्रैल, 2019 से पाँच वर्ष के लिये इस योजना को लागू किया, जिसका कुल बजट 10,000 करोड़ रुपए है।
- यह चरण मुख्य रूप से सार्वजनिक और साझा परिवहन के विद्युतीकरण का समर्थन करने पर केंद्रित है तथा इसका उद्देश्य e-बसों, e-3 व्हीलर, e-4 व्हीलर पैसेंजरकारों एवं e-2 व्हीलर को मांग प्रोत्साहन के माध्यम से समर्थन देना है।
- इसके अलावा योजना के तहत चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के निर्माण का भी समर्थन किया जाता है।
उपलब्धियाँ:
EV अंगीकरण को प्रोत्साहन देने के लिये अन्य सरकारी पहल क्या हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न1: दक्ष और किफायती (ऐफोर्डेबल) शहरी सार्वजनिक परिवहन किस प्रकार भारत के तीव्र आर्थिक विकास की कुंजी है? (2019) |
जैव विविधता और पर्यावरण
अवैध रेत खनन
प्रिलिम्स के लिये:रेत खनन, खान और खनिज़ (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957, खान और खनिज़ (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023, रेत खनन 2020 के लिये प्रवर्तन और निगरानी दिशानिर्देश, विनिर्मित रेत (एम-रेत) मेन्स के लिये:भारत में समुद्री रेत निष्कर्षण, रेत खनन के पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार पुलिस ने अवैध रेत खनन के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए रेत तस्करों को गिरफ्तार किया था।
- सोन नदी के पास यह ऑपरेशन अवैध रेत खनन गतिविधियों में शामिल शक्तिशाली आपराधिक सिंडिकेट के खिलाफ चल रही लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण कदम का प्रतीक है।
रेत खनन क्या है?
- परिचय:
- रेत खनन को बाद के प्रसंस्करण के लिये मूल्यवान खनिजों, धातुओं, पत्थर, रेत और बजरी को निकालने के लिये प्राकृतिक पर्यावरण (स्थलीय, नदी, तटीय या समुद्री) से प्राथमिक प्राकृतिक रेत और रेत संसाधनों (खनिज रेत और समुच्चय) को हटाने के रूप में परिभाषित किया गया है। विभिन्न कारकों से प्रेरित यह गतिविधि पारिस्थितिक तंत्र और समुदायों के लिये गंभीर खतरा पैदा करती है।
- भारत में रेत का स्रोत::
- सतत रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश (SSMMG) 2016 सुझाव देते हैं कि भारत में रेत के स्रोत हैं
- नदी (नदी तटवर्ती और बाढ़ का मैदान),
- झीलें और जलाशय,
- कृषि क्षेत्र,
- तटीय/समुद्री रेत,
- पैलियो-चैनल,
- निर्मित रेत (एम-सैंड)।
- सतत रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश (SSMMG) 2016 सुझाव देते हैं कि भारत में रेत के स्रोत हैं
- अवैध रेत खनन में योगदान देने वाले कारक:
- विनियमन और प्रवर्तन का अभाव:
- अपर्याप्त नियामक ढाँचे और कमज़ोर प्रवर्तन तंत्र अवैध रेत खनन के प्रसार में योगदान करते हैं।
- निर्माण सामग्री की उच्च मांग:
- निर्माण उद्योग में रेत ईंधन की भारी मांग के कारण अवैध उत्खनन हो रहा है, जिससे निर्माण परियोजनाओं में रेत की बढ़ती आवश्यकता के कारण नदी तलों और तटीय क्षेत्रों पर दबाव बढ़ रहा है।
- तेज़ी से जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण के कारण निर्माण की आवश्यकता बढ़ गई है, जिससे रेत की मांग बढ़ गई है।
- विनियमन और प्रवर्तन का अभाव:
- भ्रष्टाचार और माफिया प्रभाव:
- भ्रष्ट आचरण और संगठित रेत माफियाओं का प्रभाव अवैध खनन को जारी रखने में योगदान देता है।
- अधिकारियों और अवैध ऑपरेटरों के बीच मिलीभगत रेत खनन उद्योग को नियंत्रित तथा विनियमित करने के प्रयासों को कमज़ोर करती है।
- भ्रष्ट आचरण और संगठित रेत माफियाओं का प्रभाव अवैध खनन को जारी रखने में योगदान देता है।
- स्थायी विकल्पों का अभाव:
- विनिर्मित रेत (M-sand) जैसे टिकाऊ विकल्पों को सीमित रूप से अपनाने से नदी तल की रेत पर अत्यधिक निर्भरता में योगदान होता है।
- पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों का अपर्याप्त प्रचार प्राकृतिक रेत की मांग को बनाए रखता है, जिससे पर्यावरणीय परिणाम बिगड़ते हैं।
- कमजोर पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) कार्यान्वयन:
- रेत खनन गतिविधियों के लिये EIA का अप्रभावी कार्यान्वयन अनधिकृत निष्कर्षण की अनुमति देता है।
- अपर्याप्त जन जागरूकता और निगरानी तंत्र अवैध खनन गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिये जाने में योगदान करते हैं।
- रेत खनन के परिणाम:
- कटाव और आवास विघटन:
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) का कहना है कि अनियमित रेत खनन से नदी तल बदल जाता है, जिससे कटाव बढ़ जाता है, चैनल आकारिकी में बदलाव होता है और जलीय आवासों में व्यवधान होता है।
- रेत खनन से धारा चैनलों में स्थिरता का नुकसान होता है, जिससे खनन पूर्व आवास स्थितियों के लिये अनुकूलित देशी प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा होता है
- बाढ़ और बढ़ा हुआ अवसादन:
- नदी तल से रेत की कमी नदियों और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ तथा अवसादन में वृद्धि में योगदान करती है।
- परिवर्तित प्रवाह पैटर्न और तलछट भार जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिससे वनस्पति तथा जीव दोनों प्रभावित होते हैं।
- भूजल का ह्रास:
- रेत खनन के कारण बने गहरे गड्ढे भूजल स्तर में गिरावट का कारण बन सकते हैं।
- यह स्थानीय पेयजल कुओं को प्रभावित करता है, जिससे आसपास के क्षेत्रों में जल की कमी हो जाती है।
- रेत खनन के कारण बने गहरे गड्ढे भूजल स्तर में गिरावट का कारण बन सकते हैं।
- जैव-विविधता हानि:
- रेत खनन जैसी गतिविधियों से उत्पन्न आवास व्यवधान तथा क्षरण से जैवविविधता को गंभीर क्षति होती है, जिससे जलीय एवं तटवर्ती दोनों प्रजातियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके विनाशकारी प्रभाव मैंग्रोव वनों तक व्याप्त हैं।
- कटाव और आवास विघटन:
भारत में रेत खनन को रोकने के लिये क्या पहल की गई हैं?
- खान और खनिज विकास तथा विनियमन अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम):
- खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) के तहत रेत को "लघु खनिज" के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा लघु खनिजों पर प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकारों के अधीन है।
- MMDR अधिनियम की धारा 3(e) का उद्देश्य सरकार द्वारा अवैध प्रथाओं पर अंकुश लगाने के साथ अवैध खनन को रोकना है।
- MMDR अधिनियम, 1957 में संशोधन के लिये खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया था।
- 2006 पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA):
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी रेत खनन संग्रहण गतिविधियों (5 हेक्टेयर से कम क्षेत्रों में भी) के लिये अनुमोदन आवश्यक है।
- इस निर्णय का उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र पर रेत खनन के गंभीर प्रभाव का समाधान करना है, जो पौधों, पशुओं तथा नदियों को प्रभावित करता है।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी रेत खनन संग्रहण गतिविधियों (5 हेक्टेयर से कम क्षेत्रों में भी) के लिये अनुमोदन आवश्यक है।
- सतत रेत खनन प्रबंधन दिशानिर्देश (SSMG) 2016:
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी, इन दिशानिर्देशों के मुख्य उद्देश्यों में पर्यावरण की दृष्टि से सतत् तथा सामाजिक रूप से ज़िम्मेदारीपूर्ण खनन, पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा व बहाली द्वारा नदी संतुलन एवं उसके प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण, प्रदूषण से सुरक्षा तथा नदी जल की कमी व भूजल भंडार की कमी को रोकना शामिल है।
- रेत खनन हेतु प्रवर्तन और निगरानी दिशानिर्देश 2020:
- ये दिशानिर्देश पूरे भारत में रेत खनन की निगरानी के लिये एक समान प्रोटोकॉल प्रदान करते हैं।
- दिशानिर्देशों में रेत खनिज स्रोतों की पहचान, उनके प्रेषण और उनके अंतिम उपयोग को शामिल किया गया है।
- दिशानिर्देश रेत खनन प्रक्रिया की निगरानी के लिये ड्रोन और नाइट विज़न जैसी नई निगरानी प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर भी विचार करते हैं।
- ये दिशानिर्देश पूरे भारत में रेत खनन की निगरानी के लिये एक समान प्रोटोकॉल प्रदान करते हैं।
सोन नदी
- सोन नदी, मध्य भारत की एक चिरस्थायी नदी है और गंगा की दूसरी सबसे बड़ी दक्षिणी सहायक नदी है।
- छत्तीसगढ़ में अमरकंटक पहाड़ी के पास से निकलकर, यह छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार से होकर बहती है, तथा अमरकंटक पठार पर जलप्रपात बनाती है।
- यह बिहार के पटना के निकट गंगा में मिल जाती है।
- सहायक नदियों में घाघर, जोहिला, छोटी महानदी, बनास, गोपद, रिहंद, कन्हर और उत्तरी कोएल नदी शामिल हैं।
- प्रमुख बाँधों में मध्य प्रदेश में बाणसागर बाँध और उत्तर प्रदेश में पिपरी के पास रिहंद बाँध शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सQ. तटीय बालू खनन, चाहे वह वैध हो या अवैध हो, हमारे पर्यावरण के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है। भारतीय तटों पर बालू खनन के प्रभाव का, विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए, विश्लेषण कीजिये। (2019) |