अवैध रेत खनन रोकने संबंधी सरकारी दिशा-निर्देश
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय हरित अधिकरण, अवैध रेत खनन रोकने हेतु सरकारी दिशा-निर्देश मेन्स के लिये:अवैध रेत खनन का पर्यावरण पर कुप्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अवैध रेत खनन के विनियमन की चुनौती को देखते हुए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) ने धारणीय दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
मुख्य बिंदु:
- MoEFCC ने ये दिशा-निर्देश राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) द्वारा वर्ष 2018 में दिये गए आदेशों की श्रृंखला के क्रम में जारी किये हैं।
- इन दिशा-निर्देशों को सतत् रेत प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016 (Sustainable Sand Management Guidelines, 2016) के साथ लागू किया जाना है।
क्या है दिशा-निर्देशों का सार?
- प्रत्येक राज्य द्वारा नदियों का समय-समय पर सर्वेक्षण किया जाए।
- सभी खनन क्षेत्रों की विस्तृत सर्वेक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से रखते हुए ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाए।
- नदी के तल की स्थिति का बार-बार अध्ययन किया जाए।
- ड्रोन द्वारा हवाई सर्वेक्षण एवं ज़मीनी सर्वेक्षण के माध्यम से खनन क्षेत्रों की लगातार निगरानी की जाए।
- ज़िला स्तरीय समर्पित कार्य बलों की स्थापना की जाए।
- रेत और अन्य नदी सामग्री की ऑनलाइन बिक्री प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए।
- रात में भी नाइट-विज़न ड्रोन के माध्यम से खनन गतिविधियों की निगरानी की जाए।
- मानसून के दौरान किसी भी नदी के किनारे खनन की अनुमति नहीं होगी।
- ऐसे मामलों में जहाँ नदियाँ ज़िले की सीमा या राज्य की सीमा बनाती हैं उनमें सीमा को साझा करने वाले ज़िले या राज्य खनन गतिविधियों तथा खनन सामग्री की निगरानी के लिये संयुक्त टास्क फोर्स का गठन करेंगे और उपयुक्त जानकारी का प्रयोग करके ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट (District Survey Reports- DSR) तैयार करेंगे।
जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट:
- सतत् रेत प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016 के अनुसार खनन पट्टे देने से पहले एक महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक कदम के रूप में खनन संबंधी ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने की आवश्यकता होती है।
- यह देखा गया है कि राज्य और ज़िला प्रशासन द्वारा प्रस्तुत ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रायः पर्याप्त एवं व्यापक स्तर की नहीं होती है जिससे अवैध खनन संबंधी कार्य जारी रहते हैं।
- नए दिशा-निर्देश ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट के लिये विस्तृत प्रक्रिया को सूचीबद्ध करेंगे।
- पहली बार ज़िले में नदी तल सामग्री और अन्य रेत स्रोतों की जानकारी के लिये एक इन्वेंट्री का विकास किया जाएगा।
अन्य प्रावधान:
- खान और खनिज (विनियमन और विकास) अधिनियम, 1957 [The Mines and Minerals (Development and Regulation) Act, 1957] राज्य सरकारों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने के लिये नियम बनाने का अधिकार देता है।
दिशा-निर्देश जारी करने का उद्देश्य?
- अवैध रेत खनन की निगरानी और जाँच करना।
- इन दिशा-निर्देशों का मूल उद्देश्य खनिजों का संरक्षण, अवैध खनन की रोकथाम के लिये सुरक्षात्मक कदम उठाना।
- रेत खनन को कानूनी रूप से पर्यावरण हेतु धारणीय और सामाजिक रूप से उत्तरदायी तरीके से सुनिश्चित करना।
- नदी की साम्यावस्था एवं इसके प्राकृतिक पर्यावरण के लिये पारिस्थितिकी तंत्र के जीर्णोद्धार तथा प्रवाह को सुनिश्चित करना।
- तटवर्ती क्षेत्रों के अधिकारों तथा आवास की पुनर्स्थापना और पर्यावरण मंज़ूरी की प्रक्रिया को मुख्यधारा में शामिल करना।
अवैध खनन का पर्यावरण पर प्रभाव:
- नदी धारा के साथ-साथ अत्यधिक रेत खनन नदी के क्षरण का कारण बन सकता है।
- यह नदी के तल को गहरा कर देता है, जिसके कारण तटों का कटाव बढ़ सकता है।
- धारा की तली तथा तटों से रेत (बालू) हटने के कारण नदियों तथा ज्वारनदमुख की गहराई बढ़ जाती है जिससे नदी के मुहानों तथा तटीय प्रवेशिकाओं का विस्तार हो जाता है।
- इसके कारण नज़दीकी समुद्र से खारे पानी का प्रवेश भी हो सकता है। अत्यधिक खनन के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि का प्रभाव नदियों के ऊपर अधिक पड़ेगा।
- अत्यधिक बालू खनन पुलों, तटों तथा नज़दीकी संरचनाओं के लिये खतरा पैदा कर सकता है।
- यह संलग्न भूमिगत जल परितंत्र को भी प्रभावित करता है।
- अत्यधिक धारारेखीय खनन के कारण जलीय तथा तटवर्ती आवासों को नुकसान पहुँचता है। इसके प्रभाव से नदी तल का क्षरण, नदी तल का कठोर हो जाना, नदी तल के समीप जल स्तर में कमी होना तथा जलग्रीवा की अस्थिरता इत्यादि शामिल हैं।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी ये दिशा-निर्देश आशाजनक प्रकृति के हैं। इनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति, सख्त विनियमन के साथ-साथ विभिन्न हितधारकों को शामिल किये जाने की आवश्यकता है।