जैव विविधता और पर्यावरण
रूस का परमाणु-संचालित आइसब्रेकर
प्रिलिम्स के लिये:आर्कटिक परिषद, जलवायु परिवर्तन, आर्कटिक क्षेत्र, भारत की आर्कटिक नीति। मेन्स के लिये:भारत की आर्कटिक नीति। भारत के लिये आर्कटिक का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूस ने ध्वजारोहण समारोह में अपनी आर्कटिक शक्ति का प्रदर्शन किया और दो परमाणु-संचालित आइसब्रेकर के लिये डॉक लॉन्च किया, जो पश्चिमी आर्कटिक में साल भर नेविगेशन सुनिश्चित करेगा।
आइसब्रेकर का महत्त्व:
- ‘महान आर्कटिक शक्ति’ के रूप में रूस की स्थिति को मज़बूत करना:
- यह "महान आर्कटिक शक्ति" के रूप में रूस की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये घरेलू आइसब्रेकरों को नए रूप से आकार देने, सुविधाओं से लैस करने और पुनर्स्थापित करने के लिये रूस द्वारा बड़े पैमाने पर किये जाने वाले व्यवस्थित कार्य का हिस्सा है।
- पिछले दो दशकों में रूस ने कई सोवियत काल के आर्कटिक सैन्य ठिकानों को फिर से सक्रिय किया है और अपनी क्षमताओं को उन्नत किया है।
- यह "महान आर्कटिक शक्ति" के रूप में रूस की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये घरेलू आइसब्रेकरों को नए रूप से आकार देने, सुविधाओं से लैस करने और पुनर्स्थापित करने के लिये रूस द्वारा बड़े पैमाने पर किये जाने वाले व्यवस्थित कार्य का हिस्सा है।
- आर्कटिक क्षेत्र का अध्ययन करना:
- रूस के लिये आर्कटिक का अध्ययन और विकास करना, इस क्षेत्र में सुरक्षित, स्थायी नेविगेशन सुनिश्चित करना एवं उत्तरी समुद्री मार्ग के साथ यातायात बढ़ाना आवश्यक है।
- एशिया पहुँचने में लगने वाले समय में कमी:
- इस सबसे महत्त्वपूर्ण परिवहन गलियारे के विकास से रूस को अपनी निर्यात क्षमता को पूरी तरह से उपयोग करने और दक्षिण-पूर्व एशिया सहित कुशल लॉजिस्टिक मार्ग स्थापित करने की अनुमति मिलेगी।
- रूस के लिये उत्तरी समुद्री मार्ग के खुलने से स्वेज़ नहर के माध्यम से वर्तमान मार्ग की तुलना में एशिया तक पहुँचने में दो सप्ताह तक का समय कम हो जाएगा।
आर्कटिक क्षेत्र का महत्त्व:
- आर्थिक महत्त्व:
- आर्कटिक क्षेत्र में कोयले, जिप्सम और हीरे के समृद्ध भंडार के साथ ही जस्ता, सीसा, सोना एवं क्वार्ट्ज के पर्याप्त भंडार मौजूद हैं। अकेले ग्रीनलैंड में ही विश्व के दुर्लभ मृदा तत्त्व भंडार का लगभग एक-चौथाई भाग मौजूद है।
- ज़्यादातर तटवर्ती स्रोतों से आर्कटिक पहले से ही दुनिया को लगभग 10% तेल और 25% प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करता है। इसके पास पृथ्वी के तेल एवं प्राकृतिक गैस भंडार का 22% का वह हिस्सा होने का भी अनुमान है जिसकी अभी खोज भी नहीं की गई है।
- भौगोलिक महत्त्व:
- आर्कटिक विश्व भर में ठंडे और गर्म जल को स्थानांतरित कर विश्व की महासागरीय धाराओं को प्रवाहित करने में मदद करता है।
- इसके अलावा आर्कटिक समुद्री बर्फ ग्रह के शीर्ष पर एक विशाल श्वेत परावर्तक के रूप में कार्य करता है जो सूर्य की कुछ किरणों को अंतरिक्ष में परावर्तित कर देता है, जिससे पृथ्वी को एक समान तापमान पर रखने में मदद मिलती है।
- सामरिक महत्त्व:
- जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक के सामरिक महत्त्व में अधिक वृद्धि हो रही है क्योंकि पिघलती बर्फ की चादर नए समुद्री मार्ग का निर्माण करती है।
- आर्कटिक और इसके आसपास के राज्य आर्कटिक के पिघलने से होने वाले लाभ अर्जित करने हेतु तैयार रहने के प्रयास में अपनी क्षमता में सुधार करने के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिये उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) इस क्षेत्र में नियमित अभ्यास करता रहा है।
- चीन, जो खुद को निकट-आर्कटिक राज्य कहता है, ने यूरोप से जुड़ने के लिये एक ध्रुवीय रेशम मार्ग की महत्त्वाकांक्षी योजना की घोषणा की है।
- पर्यावरणीय महत्त्व:
- आर्कटिक और हिमालय हालाँकि भौगोलिक रूप से दूर हैं, लेकिन वे परस्पर जुड़े हुए हैं और सदृश चिंताएँ साझा करते हैं।
- आर्कटिक का पिघलना वैज्ञानिक समुदाय को हिमालय में हिमनदों के पिघलने को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर रहा है। उल्लेखनीय है कि हिमालय को प्रायः 'तीसरा ध्रुव' भी कहा जाता है और उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों के बाद यह मीठे जल का सबसे बड़ा भंडार है।
आर्कटिक के संबंध में भारत की स्थिति:
- भारत ने वर्ष 2007 से आर्कटिक अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया जिसमें अब तक 13 अभियान चलाए जा चुके हैं।
- मार्च 2022 में भारत ने अपनी पहली आर्कटिक नीति का अनावरण किया जिसका शीर्षक था: 'भारत और आर्कटिक: सतत् विकास के लिये साझेदारी का निर्माण'।
- यह नीति छह स्तंभों का निर्धारण करती है: भारत के वैज्ञानिक अनुसंधान और सहयोग को मज़बूत करना, जलवायु एवं पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक व मानव विकास, परिवहन तथा कनेक्टिविटी, प्रशासन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, आर्कटिक क्षेत्र में राष्ट्रीय क्षमता निर्माण।
- भारत, आर्कटिक परिषद के 13 पर्यवेक्षक देशों में से एक है, यह आर्कटिक में सहयोग को बढ़ावा देने वाला प्रमुख अंतर-सरकारी मंच है।
- आर्कटिक परिषद एक अंतर-सरकारी निकाय है जो आर्कटिक क्षेत्र के पर्यावरण संरक्षण और सतत् विकास से संबंधित मुद्दों पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करता है तथा आर्कटिक देशों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।
आर्कटिक:
- आर्कटिक एक ध्रुवीय क्षेत्र है जो पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित है।
- आर्कटिक क्षेत्र के भीतर की भूमि में मौसम के अनुसार बर्फ के अलग-अलग आवरण होते हैं।
- आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस तथा स्वीडन को शामिल किया जाता है।
आगे की राह
- पृथ्वी का गर्म होना ध्रुवों पर अधिक देखा जा सकता है और आर्कटिक महाद्वीप के संसाधनों को प्राप्त करने की यह दौड़ और तेज़ होने वाली है जिसके कारण आर्कटिक क्षेत्र अगला भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट बन सकता है, जिसमें पर्यावरण, आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य हित शामिल हैं।
- भारत की आर्कटिक नीति उचित समय पर बनाई गई है और यह भारत के नीति-निर्माताओं को एक दिशा प्रदान करेगी जिससे सभी क्षेत्रों के साथ भारत के संबंधों की रूपरेखा तैयार करने में सहायता मिलेगी।
- बढ़ते हुए पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखते हुए कुशल बहुपक्षीय कार्यों के साथ आर्कटिक क्षेत्र में सुरक्षित और टिकाऊ संसाधन अन्वेषण तथा विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त में से कौन 'आर्कटिक परिषद' के सदस्य हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (d) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न.1 भारत आर्कटिक क्षेत्र के संसाधनों में गहरी रुचि क्यों ले रहा है? (2018) प्रश्न.2 आर्कटिक सागर में तेल की खोज और इसके संभावित पर्यावरणीय परिणामों का आर्थिक महत्त्व क्या है? (2015) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
सोलर रूफटॉप
प्रिलिम्स के लिये:नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य की प्राप्ति के लिये योजनाएँ और कार्यक्रम मेन्स के लिये:नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य, चुनौतियाँ और इसे प्राप्त करने के लिये की गई पहल। |
चर्चा में क्यों?
मेरकॉम रिसर्च इंडिया के अनुसार, जुलाई से सितंबर 2022 की अवधि में भारत में रूफटॉप सौर क्षमता स्थापना 29% घटकर 320 मेगावाट हो गई।
रिसर्च के निष्कर्ष:
- संचयी स्थापना:
- 2022 की तीसरी तिमाही के अंत में संचयी रूफटॉप सोलर (Rooftop Solar- RTS) स्थापना (इंस्टॉलेशन) 3 GW तक पहुँच गई।
- उच्चतम रूफटॉप सौर प्रतिष्ठानों के साथ गुजरात अग्रणी राज्य बन गया, इसके बाद महाराष्ट्र और राजस्थान का स्थान रहा।
- संचयी रूफटॉप सौर प्रतिष्ठानों का लगभग 73% हिस्सा शीर्ष 10 राज्यों में है।
- इंस्टॉलेशन में गिरावट:
- वर्ष 2022 में जनवरी-सितंबर के दौरान 1,165 मेगावाट का इंस्टॉलेशन वर्ष 2021 के इन्ही नौ महीने की अवधि में 1,310 मेगावाट इंस्टॉलेशन की तुलना में 11% कम है।
- गिरावट का कारण:
- लागत में वृद्धि होने के कारण सौर इंस्टॉलेशन में कमी आ रही है।
- निर्माता और मॉड्यूल की स्वीकृत सूची (Approved List of Module and Manufacturers- ALMM) के कारण बाज़ार आपूर्ति की समस्या से जूझ रहा है, जिससे इंस्टॉलर के लिये आमतौर पर व्यवसाय करना मुश्किल हो रहा है।
रूफटॉप सोलर:
- परिचय:
- रूफटॉप सोलर एक फोटोवोल्टिक प्रणाली है जिसमें बिजली पैदा करने वाले सौर पैनल आवासीय या व्यावसायिक भवन या संरचना की छत पर लगे होते हैं।
- रूफटॉप माउंटेड सिस्टम मेगावाट रेंज क्षमता वाले ग्राउंड-माउंटेड फोटोवोल्टिक पावर स्टेशनों की तुलना में छोटे होते हैं।
- आवासीय भवनों पर रूफटॉप पीवी सिस्टम में आमतौर पर लगभग 5 से 20 किलोवाट (kW) की क्षमता होती है, जबकि वाणिज्यिक भवनों पर यह 100 किलोवाट या उससे अधिक होती हैैं।
- चुनौतियाँ:
- फ्लिप-फ्लॉपिंग नीतियाँ:
- हालाँकि कई कंपनियों ने सौर ऊर्जा का उपयोग करना शुरू कर दिया है, किंतु ‘फ्लिप-फ्लॉपिंग’ नीतियाँ (नीतियों में अचानक परिवर्तन) इस संबंध में एक बड़ी बाधा बनी हुई हैं, खासकर बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के संदर्भ में।
- उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि जब डिस्कॉम और राज्य सरकारों ने इस क्षेत्र के लिये नियमों को कड़ा करना शुरू किया तो RTS कई उपभोक्ता क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण बन गया।
- भारत के वस्तु और सेवा कर (GST) परिषद ने हाल ही में सौर प्रणाली के कई घटकों के GST को 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया है।
- इससे RTS की पूंजीगत लागत 4-5% बढ़ जाएगी।
- नियामक ढाँचा:
- RTS खंड का विकास नियामक ढाँचे पर अत्यधिक निर्भर है।
- धीमी वृद्धि मुख्य रूप से RTS खंड हेतु राज्य-स्तरीय नीति समर्थन की अनुपस्थिति या वापसी के कारण हुई है, विशेष रूप से व्यापार और औद्योगिक खंड के लिये जो लक्षित उपभोक्ताओं का बड़ा हिस्सा है।
- नेट और ग्रॉस मीटरिंग पर असंगत नियम:
- नेट मीटरिंग नियम इस क्षेत्र की प्रमुख बाधाओं में से एक हैं।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, बिजली मंत्रालय के नए नियम, जो 10 किलोवाट (kW) से ऊपर के रूफटॉप सोलर सिस्टम को नेट-मीटरिंग से बाहर रखते हैं, भारत में इस तरह के इंस्टॉलेशन देश के रूफटॉप सोलर टारगेट को प्रभावित करेंगे।
- नए नियमों में रूफटॉप सोलर प्रोजेक्ट्स के लिये 10 kW तक नेट-मीटरिंग और 10 kW से ऊपर के लोड वाले सिस्टम के लिये ग्रॉस मीटरिंग अनिवार्य है।
- नेट मीटरिंग आरटीएस सिस्टम द्वारा उत्पादित अधिशेष बिजली को ग्रिड में वापस फीड करने की अनुमति देता है।
- सकल मीटरिंग योजना के तहत राज्य बिजली वितरण कंपनियाँ (DISCOMS) उपभोक्ताओं द्वारा ग्रिड को आपूर्ति की जाने वाली सौर ऊर्जा के लिये एक निश्चित फीड-इन-टैरिफ के साथ उपभोक्ताओं को मुआवज़ा देती हैं।
- कम वित्तपोषण:
- वाणिज्यिक संस्थान और आवासीय क्षेत्र बैंक ऋण प्राप्त करके ग्रिड से जुड़े आरटीएस स्थापित करने के इच्छुक हैं।
- केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Union Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) ने बैंकों को आरटीएस के लिये रियायती दरों पर ऋण देने की सलाह दी है। हालाँकि राष्ट्रीयकृत बैंक शायद ही RTS को ऋण देते हैं।
- इस प्रकार कई निजी संस्थान बाज़ार में आ गए हैं जो RTS के लिये 10-12% जैसी उच्च दरों पर ऋण प्रदान करते हैं।
- फ्लिप-फ्लॉपिंग नीतियाँ:
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने हेतु योजनाएँ:
- रूफटॉप सोलर योजना: योजना का मुख्य उद्देश्य घरों की छत पर सोलर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा उत्पन्न करना है। साथ ही नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने ग्रिड से जुड़ी रूफटॉप सोलर योजना के चरण 2 के कार्यान्वयन की घोषणा की है।
- इसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक रूफटॉप सौर परियोजनाओं से 40,000 मेगावाट की संचयी क्षमता हासिल करना है।
- किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान: इस योजना में ग्रिड से जुड़े अक्षय ऊर्जा बिजली संयंत्र (0.5 - 2 मेगावाट) / सौर जल पंप / ग्रिड से जुड़े कृषि पंप शामिल हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) : ISA, भारत की एक पहल है जिसे 30 नवंबर, 2015 को पेरिस, फ्रांँस में भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांँस के राष्ट्रपति द्वारा पार्टियों के सम्मेलन (COP-21) में शुरू किया गया था। इस संगठन के सदस्य देशों में वे 121 सौर संसाधन संपन्न देश शामिल हैं जो पूर्ण या आंशिक रूप से कर्क और मकर रेखा के मध्य स्थित हैं।
- वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG): यह वैश्विक सहयोग को सुविधाजनक बनाने हेतु एक रूपरेखा पर केंद्रित है, जो परस्पर नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों (मुख्य रूप से सौर ऊर्जा) के वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर उसे साझा करता है।
- राष्ट्रीय सौर मिशन (जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में राष्ट्रीय कार्ययोजना का एक हिस्सा)।
आगे की राह
- RTS को आसान वित्तपोषण, अप्रतिबंधित नेट मीटरिंग और एक आसान नियामक प्रक्रिया की आवश्यकता है। सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों व अन्य प्रमुख उधारदाताओं को खंड को उधार देने के लिये निर्धारित किया जा सकता है।
- भारतीय RTS खंड की चुनौतियों का सामना करने के लिये कुछ मौजूदा बैंक लाइन ऑफ क्रेडिट को अनुकूलित किया जा सकता है जिससे इस क्षेत्र को डेवलपर्स के लिये और अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
प्रश्न. 'नेट मीटरिंग' को कभी-कभी समाचारों में किसको बढ़ावा देने के संदर्भ में देखा जाता है? (2016) (a) परिवारों/उपभोक्ताओं द्वारा सौर ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग उत्तर: (a) प्रश्न: भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं। व्याख्या कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020) |
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत समलैंगिक विवाह
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, विशेष विवाह अधिनियम, 1954, LGBTQ+ समुदाय मेन्स के लिये:ट्रांसजेंडर से संबंधित मुद्दे, विशेष विवाह अधिनियम, 1954। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाले दो समलैंगिक जोड़ों की याचिका पर केंद्र और भारत के महान्यावादी को नोटिस जारी किया है।
- कई याचिकाओं के परिणामस्वरूप भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली दो-न्यायाधीशों की पीठ ने नोटिस जारी किया।
- समलैंगिक विवाह की गैर-मान्यता प्राप्त भेदभाव के बराबर थी, जो LGBTQ+ जोड़ों की गरिमा का अपमान करती थी।
याचिकाकर्त्ताओं का पक्ष:
- यह अधिनियम संविधान से उस सीमा तक अधिकारातीत है जिस हद तक यह समलैंगिक जोड़ों और विपरीत लिंग वाले जोड़ों के बीच भेदभाव करता है, समलैंगिक जोड़ों को कानूनी अधिकारों के साथ-साथ विवाह से मिलने वाली सामाजिक मान्यता और स्थिति दोनों से वंचित करता है।
- वर्ष 1954 का विशेष विवाह अधिनियम किसी भी दो व्यक्तियों के बीच विवाह पर लागू होना चाहिये, चाहे उनकी लिंग पहचान और यौन अभिविन्यास कुछ भी हो।
- यदि नहीं, तो अधिनियम को अपने वर्तमान रूप में गरिमापूर्ण जीवन और समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाना चाहिये क्योंकि "यह समलैंगिक जोड़े के बीच विवाह करने का प्रावधान नहीं करता है"।
- अधिनियम को समलैंगिक जोड़ों को भी वही सुरक्षा प्रदान करनी चाहिये जो अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को मिलती है।
- समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने में अपर्याप्त प्रगति हुई है; LGBTQ+ व्यक्तियों के लिये समानता का विस्तार जीवन के सभी क्षेत्रों में होना चाहिये जिसमें घर, कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थान शामिल हैं।
- LGBTQ+ की वर्तमान जनसंख्या देश की जनसंख्या का 7% से 8% है।
भारत में समलैंगिक विवाह की वैधता:
- विवाह के अधिकार को भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है।
- यद्यपि विवाह को विभिन्न वैधानिक अधिनियमों के माध्यम से विनियमित किया जाता है लेकिन मौलिक अधिकार के रूप में इसकी मान्यता केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है। संविधान के अनुच्छेद 141 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय का निर्णय पूरे भारत में सभी अदालतों के लिये बाध्यकारी है।
सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय:
- मौलिक अधिकार के रूप में विवाह (शफीन जहान बनाम असोकन के.एम. और अन्य, 2018):
- सर्वोच्च न्यायालय ने मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 16 और पुट्टस्वामी मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के अनुसार विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
- अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार, राज्य के अधीन किसी भी पद के संबंध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इसमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
- विवाह करने का अधिकार आंतरिक विषय है। इस अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत सुरक्षा प्रदान की गई है। विश्वास और निष्ठा के मामले, जिसमें विश्वास करना भी शामिल है, संवैधानिक स्वतंत्रता के मूल में हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 16 और पुट्टस्वामी मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के अनुसार विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
- LGBTQ समुदाय सभी संवैधानिक अधिकारों (नवजेत सिंह जोहर और अन्य बनाम केंद्र सरकार, 2018) के हकदार हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि LGBTQ समुदाय के सदस्य अन्य नागरिकों की तरह संविधान द्वारा प्रदान किये गए सभी संवैधानिक अधिकारों के हकदार हैं, जिसमें “समान नागरिकता” और "कानून का समान संरक्षण" भी शामिल है।
विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954:
- परिचय:
- भारत में विवाह संबंधित व्यक्तिगत कानूनों- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955; मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954, या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत पंजीकृत किये जा सकते हैं।
- इसके अंतर्गत यह सुनिश्चित करना न्यायपालिका का कर्तव्य है कि पति और पत्नी दोनों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत की संसद का एक अधिनियम है जिसमें भारत और विदेशों में सभी भारतीय नागरिकों के लिये विवाह का प्रावधान है, चाहे दोनों पक्षों द्वारा किसी भी धर्म या आस्था का पालन किया जाए।
- जब कोई व्यक्ति इस कानून के तहत विवाह करता है तो विवाह व्यक्तिगत कानूनों द्वारा नहीं बल्कि विशेष विवाह अधिनियम द्वारा शासित होता है।
- विशेषताएँ:
- दो अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों को शादी के बंधन में एक साथ आने की अनुमति देता है।
- जहाँ पति या पत्नी या दोनों में से कोई हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं है, वहाँ विवाह के अनुष्ठापन तथा पंजीकरण दोनों के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है।
- एक धर्मनिरपेक्ष अधिनियम होने के कारण यह व्यक्तियों को विवाह की पारंपरिक आवश्यकताओं से मुक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आगे की राह:
- LGTBQ समुदाय के लिये एक ऐसे भेदभाव-रोधी कानून की आवश्यकता है, जो उन्हें लैंगिक पहचान या यौन उन्मुखता के बावजूद एक बेहतर जीवन और संबंधों का निर्माण करने में सहायता करे और जो व्यक्ति को बदलने के स्थान पर समाज में बदलाव लाने पर ज़ोर दे।
- LGBTQ समुदाय के सदस्यों को संपूर्ण संवैधानिक अधिकार दिये जाने के बाद यह भी आवश्यक है कि समलैंगिक विवाह के इच्छुक लोगों को भी अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार दिया जाए। ज्ञात हो कि वर्तमान में विश्व के दो दर्जन से अधिक देशों ने समलैंगिक विवाह को स्वीकृति दी है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
राष्ट्रीय दुग्ध दिवस
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय दुग्ध दिवस, भारत की श्वेत क्रांति, ऑपरेशन फ्लड, एनिमल हसबेंडरी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (AHIDF), राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम, राष्ट्रीय पशुधन मिशन मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था में डेयरी और पशुधन क्षेत्र की भूमिका, संबंधित मुद्दे और इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये की गई पहल। |
चर्चा में क्यों?
पशुपालन विभाग 26 नवंबर, 2022 को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस मना रहा है।
- राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार, 2022 समारोह के दौरान प्रदान किया गया।
- पशु संगरोध प्रमाणन सेवाओं का भी उद्घाटन किया गया है।
- प्रत्येक वर्ष 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राष्ट्रीय दुग्ध दिवस:
- यह दिवस एक व्यक्ति के जीवन में दूध के महत्त्व को रेखांकित करता है और इसका उद्देश्य दुग्ध से संबंधित लाभों को बढ़ावा देना तथा दूध एवं दुग्ध उत्पादों के महत्त्व के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना है।
- 26 नवंबर, 2022 को "भारत में श्वेत क्रांति के जनक" डॉ. वर्गीज़ कुरियन की 101वीं जयंती मनाई जा रही है।
- ‘डॉ. वर्गीज़ कुरियन (1921-2012):
- उन्हें 'भारत में श्वेत क्रांति के जनक' के रूप में जाना जाता है।
- वह अपने 'ऑपरेशन फ्लड' के लिये काफी प्रसिद्ध हैं, जिसे दुनिया के सबसे बड़े कृषि कार्यक्रम के रूप में जाना जाता है।
- उन्होंने विभिन्न किसानों और श्रमिकों द्वारा चलाए जा रहे 30 संस्थानों की स्थापना की।
- उन्होंने ‘अमूल ब्रांड’ की स्थापना और सफलता में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्ही के प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत वर्ष 1998 में अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया था।
- उन्होंने ‘दिल्ली दूध योजना’ के प्रबंधन में भी मदद की और कीमतों में सुधार किया। उन्होंने भारत को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनने में भी मदद की।
- उन्हें ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ (1963), ‘कृषि रत्न’ (1986) और ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ (1989) सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
- वह भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार- पद्मश्री (1965), पद्मभूषण (1966) और पद्मविभूषण (1999) के प्राप्तकर्त्ता भी हैं।
भारत की श्वेत क्रांति:
- परिचय:
- ऑपरेशन फ्लड 13 जनवरी, 1970 को लॉन्च किया गया था। यह विश्व का सबसे बड़ा डेयरी विकास कार्यक्रम था।
- 30 वर्षों के भीतर ऑपरेशन फ्लड ने भारत में प्रति व्यक्ति दूध उत्पादन को दोगुना करने में मदद की, जिससे डेयरी फार्मिंग भारत का सबसे बड़ा आत्मनिर्भर ग्रामीण रोज़गार उत्पन्न करने वाला क्षेत्र बन गया।
- ऑपरेशन फ्लड ने किसानों को उनके द्वारा उत्पन्न संसाधनों पर सीधा नियंत्रण प्रदान किया, जिससे उन्हें अपने स्वयं के विकास को निर्देशित करने में मदद मिली। इससे न केवल बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ, बल्कि इसे अब ‘श्वेत क्रांति’ (White Revolution) के रूप में भी जाना जाता है।
- चरण:
- चरण I (1970-1980): इस चरण को विश्व खाद्य कार्यक्रम के माध्यम से यूरोपीय संघ द्वारा दान किये गए बटर आयल और स्किम्ड मिल्क पाउडर की बिक्री से प्राप्त धन से वित्तपोषित किया गया था।
- चरण II (1981 से 1985): इस चरण के दौरान दुग्धशालाओं की संख्या 18 से बढ़कर 136 हो गई, दूध की दुकानों का विस्तार लगभग 290 शहरी बाज़ारों में किया गया, एक आत्मनिर्भर प्रणाली स्थापित की गई जिसमें 43,000 ग्राम सहकारी समितियों के 42,50,000 दूध उत्पादक शामिल थे।
- चरण III (1985-1996): इस चरण में डेयरी सहकारी समितियों का विस्तार कर उन्हें सक्षम बनाया गया और कार्यक्रम को अंतिम रूप प्रदान किया गया। इसने दूध की बढ़ती मात्रा की खरीद और बाज़ार के लिये आवश्यक बुनियादी ढांँचे को भी मज़बूत किया।
- उद्देश्य:
- दूध उत्पादन को बढ़ाना।
- ग्रामीण आय में वृद्धि।
- उपभोक्ताओं के लिये उचित मूल्य।
- महत्त्व:
- इसने डेयरी किसानों को स्वयं के विकास के लिये निर्देशित करने में मदद की, उनके संसाधनों पर उन्हें नियंत्रण प्रदान किया।
- इसने भारत को वर्ष 2016-17 में दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बनने में मदद की है।
- वर्तमान में भारत 22% वैश्विक उत्पादन के साथ दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है।
- संबंधित पहल:
- पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (Animal Husbandry Infrastructure Development Fund- AHIDF)
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन
- राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है? (मुख्य परीक्षा, 2017) |
स्रोत: पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय वार्ता (IPRD -2022)
प्रिलिम्स के लिये:इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय वार्ता, भारतीय नौसेना, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, दुर्लभ पृथ्वी धातु, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, विशेष आर्थिक क्षेत्र मेन्स के लिये:हिंद-प्रशांत का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय वार्ता का चौथा संस्करण दिल्ली में संपन्न हुआ।
हिंद प्रशांत क्षेत्रीय संवाद (IPRD)
- परिचय:
- IPRD भारतीय नौसेना का एक शीर्ष स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन है।
- वर्ष 2018 में IPRD की प्रारंभिक अवधारणा बनाई गई थी।
- वर्ष 2020 के अपवाद के साथ जब इसे कोविड -19 के कारण स्थगित करना पड़ा, तो इस आयोजन को वर्ष 2018 में अपने प्रारंभिक वर्ष से प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता रहा है।
- नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन (NMF) नौसेना का ज्ञान भागीदार और आयोजन के प्रत्येक संस्करण का मुख्य आयोजक है।
- IPRD भारतीय नौसेना का एक शीर्ष स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन है।
- वर्ष 2022 हेतु थीम:
- हिंद-प्रशांत महासागर पहल का संचालन
- उद्देश्य:
- IPRD हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वर्तमान भू-राजनीति की समीक्षा करता है और अवसरों, खतरों एवं समस्याओं की पहचान करता है।
- IPRD अपने हितों के लिये महत्त्वपूर्ण बना हुआ है क्योंकि NMF के मुख्य लक्ष्यों में से एक अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और भू-राजनीतिक कारकों का विश्लेषण करना है जो रणनीतिक रूप से भारत के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
हिंद-प्रशांत महासागर पहल (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI):
- इसे वर्ष 2019 में 14वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit- EAS) में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- यह क्षेत्रीय सहयोग के लिये एक व्यापक और समावेशी निर्माण है जो सात परस्पर संबंधित स्तंभों पर केंद्रित है:
- समुद्री सुरक्षा
- समुद्री पारिस्थितिकी
- समुद्री संसाधन
- आपदा जोखिम में कमी और प्रबंधन
- व्यापार-कनेक्टिविटी और समुद्री परिवहन
- क्षमता निर्माण और संसाधन साझाकरण
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शैक्षणिक सहयोग
हिंद-प्रशांत क्षेत्र:
- परिचय:
- हिंद-प्रशांत एक हालिया अवधारणा है। लगभग एक दशक पहले दुनिया ने हिंद-प्रशांत के बारे में बात करना शुरू किया; इसका उदय काफी महत्त्वपूर्ण रहा है।
- इस शब्द की लोकप्रियता के पीछे के कारणों में से एक यह है कि हिंद एवं प्रशांत महासागर एक-दूसरे से रणनीतिक रूप से निकटता से जुड़े हैं।
- साथ ही एशिया आकर्षण का केंद्र बन गया है। इसका कारण यह है कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर समुद्री मार्ग प्रदान करते हैं। दुनिया का अधिकांश व्यापार इन्हीं महासागरों के माध्यम से होता है।
- महत्त्व:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से है जिसमें चार महाद्वीप शामिल हैं: एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका।
- क्षेत्र की गतिशीलता और जीवन शक्ति स्वयं स्पष्ट है, दुनिया की 60% आबादी और वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 2/3 भाग इस क्षेत्र को वैश्विक आर्थिक केंद्र बनाता है।
- यह क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का एक बड़ा स्रोत और गंतव्य भी है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनिया की कई महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी आपूर्ति शृंखलाओं संबंधित है।
- हिंद और प्रशांत महासागरों में संयुक्त रूप से समुद्री संसाधनों का विशाल भंडार है, जिसमें अपतटीय हाइड्रोकार्बन, मीथेन हाइड्रेट्स, समुद्री खनिज और पृथ्वी की दुर्लभ धातु शामिल हैं।
- बड़े समुद्र तट और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) इन संसाधनों के दोहन के लिये तटीय देशों को प्रतिस्पर्द्धी क्षमता प्रदान करते हैं।
- दुनिया की कई सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थित हैं, जिनमें भारत, यू.एस.ए, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्स:प्रश्न. नई त्रि-राष्ट्रीय साझेदारी AUKUS का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह गठबंधन इस क्षेत्र में मौजूदा ‘साझेदारियों’ का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की ताकत और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (UPSC 2021) |
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय राजनीति
संविधान दिवस
प्रिलिम्स के लिये:भारत का संविधान, संविधान दिवस, भारत सरकार अधिनियम 1935 मेन्स के लिये:भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करना, भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री ने 26 नवंबर, 2022 को संविधान दिवस पर वर्चुअल जस्टिस क्लॉक, JustIS मोबाइल एप 2.0, डिजिटल कोर्ट और S3WaaS वेबसाइटों सहित ई-कोर्ट परियोजना के तहत विभिन्न नई पहलों का शुभारंभ किया।
ई-कोर्ट परियोजना:
- वर्चुअल जस्टिस क्लॉक न्याय वितरण प्रणाली के महत्त्वपूर्ण आँकड़ों को प्रदर्शित करने के लिये अदालत स्तर पर एक पहल है।
- JustIS मोबाइल एप 2.0 न्यायिक अधिकारियों के लिये अदालत और मुकदमों के कारगर प्रबंधन के लिये उपलब्ध एक उपकरण है।
- डिजिटल कोर्ट न्यायालय सभी रिकॉर्ड को डिजिटल रूप में न्यायाधीश के सामने उपलब्ध करवाने की एक पहल है ताकि पेपरलेस कार्यप्रणाली कोसबढ़ावा दिया जा सके।
- S3WaaS वेबसाइट ज़िला न्यायपालिका से संबंधित निर्दिष्ट जानकारी और सेवाओं को प्रकाशित करने के लिये वेबसाइट सेवाओं को प्रकाशित करने हेतु विभिन्न वेबसाइटों को बनाने, कॉन्फिगर करने, तैनात करने और प्रबंधित करने के लिये एक रूपरेखा है।
संविधान दिवस:
- परिचय:
- यह हर वर्ष 26 नवंबर को मनाया जाता है।
- इसे राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
- इस दिन वर्ष 1949 में भारत की संविधान सभा ने औपचारिक रूप से भारत के संविधान को अपनाया जो 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।
- 19 नवंबर, 2015 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' के रूप में मनाने के भारत सरकार के निर्णय को अधिसूचित किया।
- संविधान का निर्माण:
- वर्ष 1934 में एम.एन. रॉय ने पहली बार संविधान सभा के विचार का प्रस्ताव रखा।
- वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा के गठन के लिये चुनाव हुए।
- भारत के संविधान का निर्माण संविधान सभा द्वारा किया गया। भारत की संविधान सभा ने संविधान के निर्माण से संबंधित विभिन्न कार्यों से निपटने के लिये कुल 13 समितियों का गठन किया।
- इनमें 8 प्रमुख समितियाँ थीं और शेष अन्य थीं। प्रमुख समितियों और उनके प्रमुखों की सूची नीचे दी गई है:
- मसौदा समिति- बी.आर. अंबेडकर
- संघ शक्ति समिति- जवाहरलाल नेहरू
- केंद्रीय संविधान समिति- जवाहरलाल नेहरू
- प्रांतीय संविधान समिति- वल्लभभाई पटेल
- मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों और जनजातीय तथा बहिष्कृत क्षेत्रों पर सलाहकार समिति- वल्लभभाई पटेल।
- प्रक्रिया समिति नियम- राजेंद्र प्रसाद
- राज्य समिति (राज्यों के साथ बातचीत के लिये समिति)- जवाहरलाल नेहरू
- संचालन समिति- राजेंद्र प्रसाद
- भारत के संविधान के संदर्भ में प्रमुख तथ्य:
- दुनिया का सबसे विस्तृत संविधान।
- एकात्मक विशेषताओं के साथ संघीय प्रणाली।
- सरकार का संसदीय स्वरूप।
- संविधान के निर्माण में 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन का समय लगा।
- भारतीय संविधान की मूल प्रतियाँ टाइप या मुद्रित नहीं थीं। वे हस्तलिखित हैं और अब उन्हें संसद के पुस्तकालय में हीलियम में रखा गया है। प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने भारत की संरचना की अनूठी प्रतियाँ लिखी थीं।
- मूल रूप से भारत का संविधान अंग्रेज़ी और हिंदी में लिखा गया था।
- भारतीय संविधान की मूल संरचना भारत सरकार अधिनियम, 1935 पर आधारित है।
- भारत के संविधान में कई देशों के संविधान की विशेषताओं को अपनाया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021) (a) एक लोकतांत्रिक गणराज्य उत्तर: B व्याख्या:
अतः विकल्प B सही उत्तर है। मेन्सप्रश्न. स्वतंत्र भारत के लिये संविधान का मसौदा केवल तीन साल में तैयार करने के ऐतिहासिक कार्य को पूर्ण करना संविधान सभा के लिये कठिन होता, यदि उनके पास भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्राप्त अनुभव नहीं होता। चर्चा कीजिये। (2015) |
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
प्लास्टिक का जीवनचक्र
प्रिलिम्स के लिये:प्लास्टिक कचरा, प्लास्टिक कचरे के प्रकार, संबंधित पहल मेन्स के लिये:प्लास्टिक कचरा, प्लास्टिक कचरे के प्रकार, प्लास्टिक कचरे का प्रभाव, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में चुनौतियाँ, सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में "द प्लास्टिक लाइफ-साइकल" शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने पॉलिमर कचरे को ठीक से एकत्रित और पुनर्चक्रित नहीं कर रहा है।
- रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि इस मुद्दे को तब तक हल नहीं किया जा सकता जब तक कि प्लास्टिक के उत्पादन से लेकर निपटान तक के पूरे जीवन चक्र को प्रदूषण के प्राथमिक कारण के रूप में चिह्नित नहीं किया जाता।
प्लास्टिक अपशिष्ट:
- परिचय:
- कागज़, खाद्यान्नों के छिलके, पत्ते आदि जैसे कचरे के अन्य रूप जो प्रकृति में बायोडिग्रेडेबल (बैक्टीरिया या अन्य जीवित जीवों द्वारा विघटित होने में सक्षम) होते हैं, के विपरीत प्लास्टिक कचरा अपनी गैर-बायोडिग्रेडेबल प्रकृति के कारण सैकड़ों (या हज़ारों) वर्षों तक पर्यावरण में बना रहता है।
- प्रमुख प्रदूषणकारी प्लास्टिक अपशिष्ट:
- माइक्रोप्लास्टिक आकार में पाँच मिलीमीटर से भी कम छोटे प्लास्टिक के टुकड़े हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक में माइक्रोबीड्स (उनके सबसे बड़े परिमाप में एक मिलीमीटर से कम के ठोस प्लास्टिक कण) शामिल हैं जो सौंदर्य प्रसाधन और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, औद्योगिक स्क्रबर्स, वस्त्रों में उपयोग किये जाने वाले माइक्रोफाइबर और प्लास्टिक निर्माण प्रक्रियाओं में उपयोग किये जाने वाले वर्जिन रेजिन पेल्लेट्स में उपयोग किये जाते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक और सूक्ष्मतर टुकड़ों में विखंडित होते हुए ये ‘प्लास्टिक माइक्रोफाइबर’ का निर्माण करते हैं। ये खतरनाक रूप से नगरपालिका की पेयजल प्रणालियों में और हवा में बहते हुए पाए गए हैं।
- सिंगल-यूज़ प्लास्टिक एक डिस्पोज़ेबल सामग्री है जिसे फेंकने या पुनचक्रण करने से पहले केवल एक बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक बैग, पानी की बोतलें, सोडा की बोतलें, स्ट्रॉ, प्लास्टिक प्लेट, कप, अधिकांश खाद्य पैकेजिंग और कॉफी स्टिरर आदि।
- माइक्रोप्लास्टिक आकार में पाँच मिलीमीटर से भी कम छोटे प्लास्टिक के टुकड़े हैं।
- संबंधित समस्याएँ:
- प्रति व्यक्ति अधिक प्लास्टिक का जमा होना:
- प्रतिदिन 10,000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा एकत्र नहीं किया जाता है।
- प्रति व्यक्ति अधिक प्लास्टिक का जमा होना:
- असंधारणीय पैकेजिंग:
- भारत का पैकेजिंग उद्योग प्लास्टिक का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है।
- भारत में पैकेजिंग पर वर्ष 2020 के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि असंधारणीय पैकेजिंग के कारण अगले कुछ दशकों में प्लास्टिक के मूल्य में लगभग 133 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा।
- असंधारणीय पैकेजिंग में सिंगल यूज़ प्लास्टिक के तहत सामान्य प्लास्टिक पैकेजिंग भी शामिल है।
- ऑनलाइन वितरण:
- ऑनलाइन खुदरा और खाद्य वितरण एप की लोकप्रियता जो हालाँकि केवल बड़े शहरों तक ही सीमित है लेकिन फिर भी यह प्लास्टिक कचरे की वृद्धि में योगदान दे रहा है।
- भारत के सबसे बड़े ऑनलाइन वितरण करने वाले स्टार्टअप जैसे कि स्विगी और जोमैटो प्रत्येक कथित तौर पर एक महीने में लगभग 28 मिलियन ऑर्डरस का वितरण करते हैं।
- खाद्य शृंखला में उलटफेर:
- प्रदूषणकारी प्लास्टिक दुनिया के सबसे छोटे जीवों जैसे कि प्लवक को प्रभावित कर सकता है।
- जब ये जीव इस प्लास्टिक को ग्रहण करने के कारण ज़हरीले बन जाते हैं, तो यह बड़े उन जानवरों के लिये समस्याएँ भी पैदा करते हैं जो भोजन के लिये इन छोटें जानवरों पर निर्भर रहते हैं।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ:
- प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन में दो अलग-अलग चरण शामिल हैं:
- संग्रहण और पुनर्चक्रण
- पुनर्चक्रण का निपटान।
- भारत में दोनों को ठीक से निष्पादित नहीं किया जाता
- अनुचित कार्यान्वयन और निगरानी:
- प्लास्टिक कचरे के संग्रह की ज़िम्मेदारी स्थानीय सरकारी निकायों, उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों की है।
- हालाँकि, भारत में प्लास्टिक कचरा ज़्यादातर प्राधिकरणों के बजाय कचरा बीनने वालों द्वारा एकत्र किया जाता है।
- भारत में स्थानीय सरकारों या अन्य गैर-लाभकारी संगठनों के सहयोग से बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा संचालित सुविधाओं में 42%- 86% प्लास्टिक अपशिष्ट का पुनर्चक्रण किया जाता है।
- भारत सरकार का दावा है कि देश अपने 60% प्लास्टिक कचरे को पुनर्चक्रण कर रहा है। हालाँकि यह पुनर्चक्रण विशिष्ट प्रकार के पॉलिमर (प्लास्टिक) तक सीमित है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आँकड़ों का उपयोग करके सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा किये गए एक सांख्यिकीय विश्लेषण के अनुसार, भारत अपने प्लास्टिक कचरे के 12% का पुनर्चक्रण केवल (यांत्रिक पुनर्चक्रण के माध्यम से) कर रहा है।
- प्लास्टिक कचरे के संग्रह की ज़िम्मेदारी स्थानीय सरकारी निकायों, उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों की है।
- अपशिष्ट दहन:
- लगभग 20% प्लास्टिक अपशिष्ट के लिये सह-भस्मीकरण, प्लास्टिक-से-ईंधन और सड़क बनाने जैसे अंतिम समाधानों हेतु अपनाया जाता है, जिसका अर्थ है कि भारत 20% प्लास्टिक अपशिष्ट जला रहा है।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन हेतु भारत की पहल:
- एकल उपयोग प्लास्टिक के उन्मूलन और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन पर राष्ट्रीय डैशबोर्ड (National Dashboard on Elimination of Single Use Plastic and Plastic Waste Management):
- भारत ने जून 2022 में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान शुरू किया।
- नागरिकों को अपने क्षेत्र में सिंगल यूज़ प्लास्टिक की बिक्री/उपयोग/विनिर्माण को नियंत्रित करने और प्लास्टिक के खतरे से निपटने हेतु सशक्त बनाने के लिये ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक शिकायत निवारण’ के लिये एक मोबाइल एप भी लॉन्च किया गया।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2022:
- यह 1 जुलाई, 2022 से विभिन्न एकल उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध आरोपित करता है।
- इसने ‘विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (Extended Producer Responsibility- EPR) को भी अनिवार्य बनाया है जिसमें उत्पादों के निर्माताओं के लिये उत्पादों के जीवनकाल के अंत में इन उत्पादों को एकत्र और संसाधित करने की जवाबदेही के साथ ‘सर्कुलरिटी’ की अवधारणा शामिल है।
- ‘इंडिया प्लास्टिक पैक्ट’:
- यह एशिया में अपनी तरह का पहला प्रयास है। इंडिया प्लास्टिक पैक्ट, सामग्री की मूल्य शृंखला के भीतर प्लास्टिक को कम करने, पुन: उपयोग करने और पुनर्चक्रण करने के लिये हितधारकों को एक साथ लाने का एक महत्त्वाकांक्षी और सहयोगी पहल है।
- ‘प्रकृति’ शुभंकर:
- बेहतर पर्यावरण के लिये जीवन-शैली में स्थायी रूप से अपनाए जा सकने वाले छोटे बदलावों के बारे में जनता के बीच जागरूकता के प्रसार के उद्देश्य से ‘प्रकृति’ शुभंकर को लॉन्च किया गया है।
- ‘प्रोजेक्ट रिप्लान’:
- खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा प्रोजेक्ट रिप्लान (REPLAN: REducing PLastic in Nature) लॉन्च किया गया है जिसका उद्देश्य अधिक संवहनीय विकल्प प्रदान कर प्लास्टिक थैलियों की खपत को कम करना है।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के प्रभावी समाधान:
- ‘हॉटस्पॉट’ की पहचान:
- प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और निपटान से संबद्ध प्लास्टिक लीकेज के प्रमुख हॉटस्पॉट की पहचान करने से सरकारों को ऐसी प्रभावी नीतियाँ विकसित करने में मदद मिल सकती है जो प्रत्यक्ष रूप से प्लास्टिक की समस्या का समाधान करें।
- विकल्पों की अभिकल्पना:
- इस दिशा में पहला कदम होगा प्लास्टिक की उन वस्तुओं की पहचान करना जिन्हें गैर-प्लास्टिक, पुनर्चक्रण-योग्य या जैव-निम्नीकरणीय (बायोडिग्रेडेबल) सामग्री से बदला जा सकता है। उत्पाद डिज़ाइनरों के सहयोग से एकल उपयोग प्लास्टिक के विकल्पों और पुन: प्रयोज्य डिज़ाइन वस्तुओं का निर्माण किया जाना चाहिये।
- ‘ऑक्सो-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक’ (Oxo-biodegradable plastics) के उपयोग को बढ़ावा देना जो कि आम प्लास्टिक की तुलना में अल्ट्रा-वायलेट विकिरण और ऊष्मा से अधिक तीव्रता से विखंडित हो सकते हैं।
- इस दिशा में पहला कदम होगा प्लास्टिक की उन वस्तुओं की पहचान करना जिन्हें गैर-प्लास्टिक, पुनर्चक्रण-योग्य या जैव-निम्नीकरणीय (बायोडिग्रेडेबल) सामग्री से बदला जा सकता है। उत्पाद डिज़ाइनरों के सहयोग से एकल उपयोग प्लास्टिक के विकल्पों और पुन: प्रयोज्य डिज़ाइन वस्तुओं का निर्माण किया जाना चाहिये।
- प्रौद्योगिकियों और नवाचारों के माध्यम से पुनर्चक्रण:
- अपशिष्ट, विशेष रूप से प्लास्टिक मूल्यवान और एक उपयोगी संसाधन भी सिद्ध हो सकता है। पुनर्चक्रण, विशेष रूप से प्लास्टिक पुनर्चक्रण, एक ऐसी प्रणाली स्थापित करता है जो अपशिष्ट के लिये एक मूल्य शृंखला का निर्माण करता है।
- प्लास्टिक प्रबंधन के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था:
- चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular economy) सामग्री के उपयोग को कम कर सकती है, सामग्री को कम संसाधन गहन बनाने के लिये पुन:अभिकल्पित कर सकती है और नई सामग्री एवं उत्पादों के निर्माण के लिये अपशिष्ट का संसाधन के रूप में पुनः उपयोग कर सकती है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था न केवल प्लास्टिक और कपड़ों की वैश्विक धाराओं पर लागू होती है, बल्कि सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. पर्यावरण में निर्मुक्त होने वाली ‘सूक्ष्ममणिकाओं (माइक्रोबीड्स)’ के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (a) ये समुद्री पारितंत्र के लिये हानिकारक मानी जाती हैं। उत्तर: (a) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
KKNP हेतु रूस का उन्नत ईंधन विकल्प
प्रिलिम्स के लिये:परमाणु ऊर्जा, भारत के परमाणु संयंत्र मेन्स के लिये:परमाणु ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा का महत्त्व, भारत के परमाणु संयंत्र |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूसी राज्य के स्वामित्व वाली परमाणु ऊर्जा निगम रोसाटॉम ने तमिलनाडु के कुडनकुलम में भारत के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा केंद्र के लिये अधिक उन्नत ईंधन विकल्प की पेशकश की है।
- यह अपने रिएक्टरों को ताज़ा ईंधन लोड करने के लिये रोके बिना दो साल के विस्तारित चक्र के लिये चलने में सहायता करेगा।
रूस द्वारा भारत को पेशकश:
- KKNPP रिएक्टरों में अद्यतन:
- रोसाटॉम का परमाणु ईंधन प्रभाग, TVEL फ्यूल कंपनी कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना (Kudankulam Nuclear Power Project- KKNPP) में बिजली पैदा करने वाले दो VVER 1,000 मेगावाट रिएक्टरों के लिये TVS-2M ईंधन का वर्तमान आपूर्तिकर्त्ता है। इस ईंधन में 18 महीने का ईंधन चक्र होता है, जिसका अर्थ है कि रिएक्टर को प्रत्येक डेढ़ वर्ष में ताज़ा ईंधन लोड करने के लिये रोकना पड़ता है।
- TVEL ने अब अधिक आधुनिक उन्नत प्रौद्योगिकी ईंधन (Advanced Technology Fuel- ATF) की पेशकश की है, जिसका ईंधन चक्र 24 महीने का है।
- रोसाटॉम का परमाणु ईंधन प्रभाग, TVEL फ्यूल कंपनी कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना (Kudankulam Nuclear Power Project- KKNPP) में बिजली पैदा करने वाले दो VVER 1,000 मेगावाट रिएक्टरों के लिये TVS-2M ईंधन का वर्तमान आपूर्तिकर्त्ता है। इस ईंधन में 18 महीने का ईंधन चक्र होता है, जिसका अर्थ है कि रिएक्टर को प्रत्येक डेढ़ वर्ष में ताज़ा ईंधन लोड करने के लिये रोकना पड़ता है।
- अद्यतन के लाभ:
- यह अधिक दक्षता, रिएक्टर के लंबे समय तक संचालन के कारण अतिरिक्त बिजली उत्पादन और रूस से ताज़ा ईंधन खरीदने के लिये आवश्यक विदेशी मुद्रा की बड़ी बचत सुनिश्चित करेगी।
परमाणु ऊर्जा:
- परिचय:
- परमाणु ऊर्जा, रिएक्टर में परमाणु विखंडने से जल को भाप में गर्म करने, टरबाइन को चालू करने और बिजली उत्पन्न करने से उत्पन्न होती है।
- परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अंदर परमाणु रिएक्टर और उनके उपकरण विखंडन के माध्यम से गर्मी पैदा करने के लिये यूरेनियम-235 द्वारा सबसे अधिक ईंधन वाली शृंखला प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
- परमाणु ऊर्जा उत्पादन से उत्सर्जन:
- परमाणु ऊर्जा शून्य-उत्सर्जन करती है। इसमें कोई ग्रीनहाउस गैस या वायु प्रदूषक नहीं होते।
- भूमि उपयोग:
- अमेरिकी सरकार के आँकड़ों के अनुसार, 1,000 मेगावाट क्षमता के परमाणु संयंत्र को इतनी ही क्षमता के पवन ऊर्जा संयंत्र या ‘विंड फार्म’ की तुलना में 360 गुना कम और सौर संयंत्रों की तुलना में 75 गुना कम भूमि की आवश्यकता होती है।
- भारत के लिये महत्त्व:
- थोरियम की उपलब्धता:
- भारत थोरियम नामक परमाणु ईंधन के नए संसाधन का अगुआ है, जिसे भविष्य का परमाणु ईंधन माना जाता है।
- थोरियम की उपलब्धता के साथ भारत जीवाश्म ईंधन मुक्त राष्ट्र के सपने को साकार करने वाला पहला राष्ट्र बनने की क्षमता रखता है।
- आयात बिलों में कटौती:
- परमाणु ऊर्जा उत्पादन से राष्ट्र को सालाना लगभग 100 बिलियन डॉलर की बचत होगी जिसे हम पेट्रोलियम और कोयले के आयात पर खर्च करते हैं।
- स्थिर और विश्वसनीय स्रोत:
- विद्युत के सबसे हरित स्रोत निश्चित रूप से सौर एवं पवन हैं।
- लेकिन अपने सभी लाभों के बावजूद सौर एवं पवन ऊर्जा स्थिर नहीं हैं और मौसम व धूप की स्थिति पर अत्यधिक निर्भर हैं।
- दूसरी ओर परमाणु ऊर्जा अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति के साथ विश्वसनीय ऊर्जा का अपेक्षाकृत स्वच्छ, उच्च घनत्व वाला स्रोत प्रदान करती है।
- विद्युत के सबसे हरित स्रोत निश्चित रूप से सौर एवं पवन हैं।
- थोरियम की उपलब्धता:
परमाणु ऊर्जा संबंधी भारत की पहल:
- भारत ने बिजली उत्पादन के उद्देश्य से परमाणु ऊर्जा के दोहन की संभावना का पता लगाने के लिये सचेत रूप से कदम आगे बढ़ाए हैं।
- इस दिशा में होमी जहाँगीर भाभा द्वारा 1950 के दशक में एक तीन चरणीय परमाणु उर्जा कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई।
- भारतीय परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में दो प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तत्त्वों यूरेनियम और थोरियम को परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग करने के निर्धारित उद्देश्यों के साथ परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 को तैयार एवं कार्यान्वित किया गया।
- दिसंबर 2021 में भारत सरकार ने संसद को बताया कि 10 स्वदेशी ‘दाबित भारी जल रिएक्टरों (Pressurised Heavy Water Reactors- PHWRs) का निर्माण किया जा रहा है जिन्हें फ्लीट मोड में स्थापित किया जाएगा, जबकि 28 अतिरिक्त रिएक्टरों के लिये सैद्धांतिक अनुमोदन प्रदान कर दिया गया है जिनमें से 24 रिएक्टर फ्राँस, अमेरिका और रूस से आयात किये जाएंगे।
- हाल ही में केंद्र ने महाराष्ट्र के जैतापुर में छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर स्थापित करने के लिये सैद्धांतिक (प्रथम चरण) मंज़ूरी प्रदान की है।
- जैतापुर संयंत्र विश्व का सबसे शक्तिशाली परमाणु ऊर्जा संयंत्र होगा।
- यहाँ 6 गीगावाट की स्थापित क्षमता वाले छह अत्याधुनिक इवोल्यूशनरी पावर रिएक्टर (EPRs) होंगे जो निम्न-कार्बन वाली बिजली का उत्पादन करेंगे।
- ये छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर (जिनमें प्रत्येक की क्षमता 1,650 मेगावाट होगी) फ्राँस के तकनीकी सहयोग से स्थापित किये जाएंगे।
भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र:
- वर्तमान में भारत में 22 प्रचालनरत परमाणु ऊर्जा रिएक्टर हैं, जिनकी क्षमता 6780 मेगावाट विद्युत (MWe) है।
- तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन (TAPS), महाराष्ट्र में 4 इकाइयाँ
- राजस्थान परमाणु ऊर्जा स्टेशन (RAPS), राजस्थान में 6 इकाइयाँ
- मद्रास एटॉमिक पावर स्टेशन (MAPS), तमिलनाडु में 2 इकाइयाँ
- कैगा जनरेटिंग स्टेशन (KGS), कर्नाटक में 4 इकाइयाँ
- कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा स्टेशन (KKNPS), तमिलनाडु में 2 इकाइयाँ
- नरोरा परमाणु ऊर्जा स्टेशन (NAPS), उत्तर प्रदेश में 2 इकाइयाँ
- काकरापार परमाणु ऊर्जा स्टेशन (KAPS), गुजरात में 2 इकाइयाँ
- इनमें से 18 रिएक्टर दाबित भारी जल रिएक्टर (PHWRs) हैं और 4 हल्के जल रिएक्टर (LWRs) हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. प्रकृति के ज्ञात बलों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, अर्थात् गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुंबकत्व, दुर्बल नाभिकीय बल और प्रबल नाभिकीय बल। उनके संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है? (2013) (a) गुरूत्व, चारों में सबसे प्रबल है उत्तर: (a) प्रश्न. एक नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का क्या कार्य होता है? (a) न्यूट्रॉन की गति को कम करना उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. जीवाश्म ईंधन की बढ़ती कमी के साथ परमाणु ऊर्जा भारत में अधिक-से-अधिक महत्त्व प्राप्त कर रही है। भारत और विश्व में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के लिये आवश्यक कच्चे माल की उपलब्धता पर चर्चा कीजिये। (2013) प्रश्न. भारत में परमाणु विज्ञान और प्रौद्योगिकी की वृद्धि और विकास का लेखा-जोखा दीजिये। भारत में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है? (2017) प्रश्न. बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के साथ क्या भारत को अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से जुड़े तथ्यों और आशंकाओं पर चर्चा कीजिये। (2018) |