अंतर्राष्ट्रीय संबंध
यूरेनियम आपूर्ति
- 21 Oct 2020
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प्रिलिम्स के लिये:परमाणु ऊर्जा विभाग, परमाणु-हथियार संपन्न देश मेन्स के लिये:परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा लिये गए निर्णय का भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy-DAE) ने प्रस्तावों की व्यवहार्यता की कमी (Lack of Viability of the Proposals) का हवाला देते हुए भारत को यूरेनियम अयस्क की आपूर्ति शुरू करने वाली दो ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों को रद्द कर दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत-ऑस्ट्रेलिया के संबंधों में वर्ष 2012 से ही उतार-चढ़ाव देखा गया है, जब ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा भारत को परमाणु अप्रसार संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता देश नहीं होने के बावज़ूद यूरेनियम देने का फैसला लिया गया था ।
- उपर्युक्त निर्णय को औपचारिक रूप देते हुए दोनों देशों के मध्य वर्ष 2014 में संपन्न हुए द्विपक्षीय समझौते को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग (Cooperation in the Peaceful Uses of Nuclear Energy) के रूप में जाना गया।
- ऑस्ट्रेलिया से आयातित यूरेनियम का उपयोग भारतीय परमाणु रिएक्टरों की ईंधन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये किया गया जो अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) द्वारा निर्धारित सुरक्षा उपायों के तहत है।
- हालाँकि दोनों देशों के प्रयासों के बावजूद यूरेनियम आपूर्ति के मुद्दे पर प्रगति बहुत कम हुई है। वर्ष 2017 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को अपना पहला यूरेनियम शिपमेंट/जहाज़ भेजा, लेकिन यह यूरेनियम की बहुत छोटी खेप थी एवं इसका उपयोग पूर्ण रूप से परीक्षण प्रयोजनों के लिये किया जाना था।
इंडियन सिविल न्यूक्लियर कैपेसिटी:
- भारत में 6,780 मेगावाट की स्थापित क्षमता के साथ 22 रिएक्टर हैं। इनमें से आठ रिएक्टर स्वदेशी यूरेनियम से संचालित हैं, जबकि शेष 14 रिएक्टर IAEA सुरक्षा उपायों के अंतर्गत आयातित यूरेनियम द्वारा संचालित हैं।
- वर्ष 2005 में अमेरिका के साथ संपन्न परमाणु समझौते के बाद भारत को वर्ष 2006 में घोषित चरणबद्ध तरीके से IAEA सुरक्षा उपायों के तहत 14 अलग-अलग रिएक्टर लगाने की आवश्यकता थी।
- वर्तमान में भारत द्वारा रूस, कज़ाखस्तान, उज़्बेकिस्तान, फ्राँस और कनाडा से यूरेनियम ईंधन का आयात किया जाता है।
- कज़ाखस्तान विश्व में यूरेनियम का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
- कई ईंधन चक्र सुविधाओं (Several Fuel Cycle Facilities) के साथ-साथ यूरेनियम की स्थिर आपूर्ति से भारतीय परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के प्रदर्शन में और सुधार होने की उम्मीद है।
अप्रसार संधि:
- अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty) एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों तथा हथियारों की तकनीक के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देते हुए निशस्त्रीकरण के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है।
- इस संधि पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किये गए तथा वर्ष 1970 में यह संधि लागू हुई। वर्तमान में इसमें 190 सदस्य देश शामिल हैं।
- परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिये आवश्यक है कि देशों को वर्तमान या भविष्य में परमाणु हथियार बनाने की किसी भी योजना का परित्याग करना होगा।
- यह परमाणु हथियार संपन्न देशों द्वारा निशस्त्रीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक बहुपक्षीय एवं बाध्यकारी संधि है।
- NPT के तहत उन देशों को परमाणु-हथियार संपन्न देशों की श्रेणी में शामिल किया जाता है जिनके द्वारा 1 फरवरी, 1967 से पहले परमाणु हथियारों या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों का निर्माण और परमाणु परीक्षण किये जा चुके है।
NPT पर भारत का रुख:
- भारत उन पाँच देशों में शामिल है जिन्होंने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, अन्य देश हैं- पाकिस्तान, इज़रायल, उत्तर कोरिया और दक्षिण सूडान हैं।
- भारत ने हमेशा ही NPT को एक भेदभावपूर्ण संधि माना और इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
- भारत द्वारा परमाणु अप्रसार वाली अंतर्राष्ट्रीय संधियों का विरोध किया गया है क्योंकि वे गैर-परमाणु संपन्न देशों पर एक निश्चित रूप में लागू होती हैं, वही दूसरी ओर ये संधियाँ पाँच परमाणु हथियार संपन्न देशों के एकाधिकार को वैधता प्रदान करती हैं ।
- भारत का मानना है कि परमाणु निशस्त्रीकरण के लक्ष्य को एक सार्वभौमिक प्रतिबद्धता के तहत चरण-दर-चरण प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही इसके लिये एक-दूसरे के प्रति विश्वास एवं सार्थक संवादों के माध्यम से बहुपक्षीय ढाँचे पर सहमति व्यक्त करने की ज़रूरत है।
आगे की राह:
- भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय संबंध काफी हद तक ‘एक कदम आगे, दो कदम पीछे’( One Step Forward, Two Steps Back) हटने की रणनीति का हिस्सा रहे हैं । हालाँकि ऑस्ट्रेलिया द्वारा भारत को यूरेनियम की बिक्री पर प्रतिबंध हटाया जाना दोनों देशों के मध्य चल रहे कूटनीतिक गतिरोध के दूर होने के रूप में देखा गया जो कि संभावित रूप से ऑस्ट्रेलियाई आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये एक नया और बढ़ता हुआ बाज़ार खोल रहा है।
- जून 2020 में भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों देशों द्वारा अपने संबंधों को एक 'व्यापक रणनीतिक साझेदारी' के तहत आगे बढ़ाने का फैसला किया गया।
- उपर्युक्त विकास के मद्देनज़र भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही यूरेनियम की आपूर्ति में आने वाली बाधाओं को दूर करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।