शासन व्यवस्था
UPI भुगतान: उपयोगकर्त्ताओं का सशक्तीकरण, बैंकों को चुनौती
प्रिलिम्स के लिये:UPI, नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया मेन्स के लिये:UPI के बुनियादी ढाँचे से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
भारत में UPI लेन-देन में हो रही भारी वृद्धि को देखते हुए विभिन्न बैंकों और एप्लीकेशन कंपनियों ने इसे सीमित करने का निर्णय लिया है, जो भारत में प्रतिदिन के आधार पर UPI लेन-देन की संख्या और अंतरण की जाने वाली राशि पर सीमा निर्धारण करता है।
- UPI लेन-देन में वृद्धि को देखते हुए बैंकिंग क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे और तकनीकी क्षमताओं के निरंतर विकास एवं सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
UPI भुगतान पर दैनिक सीमाएँ:
- भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India- NPCI) ने वर्ष 2021 में एक दिन में कुल 20 लेन-देन और 1 लाख रुपए की सीमा निर्धारित की, जबकि बैंकों और एप्लीकेशनों द्वारा अपनी अलग सीमाएँ लागू करने से इसमें और जटिलता आ गई है।
- उदाहरण के लिये ICICI बैंक 24 घंटे में 10 लेन-देन की अनुमति देता है, जबकि बैंक ऑफ बड़ौदा और HDFC बैंक एक दिन में 20 लेन-देन की अनुमति देते हैं।
- पूंजी बाज़ार, संग्रह, बीमा और अग्रेषित आवक प्रेषण जैसी लेन-देन की कुछ विशिष्ट श्रेणियों के लिये यह सीमा 2 लाख रुपए से अधिक है।
- IPO के लिये UPI-आधारित अवरुद्ध राशि द्वारा समर्थित अनुप्रयोग (Application Supported By Blocked Amount- ASBA) और खुदरा प्रत्यक्ष योजनाओं के लिये प्रत्येक लेन-देन की सीमा दिसंबर 2021 में बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दी गई थी।
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI):
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UPI भुगतान में समय के साथ किये गए बदलाव:
- भारत में नोटबंदी के बाद नकद लेन-देन के विकल्प के रूप में UPI भुगतान को काफी लोकप्रियता मिली।
- मई 2018 से मई 2023 तक लेन-देन में मात्रा की तुलना में संख्यात्मक स्तर पर अधिक वृद्धि हुई।
- मई 2018 में UPI लेन-देन मूल्य 33,288 करोड़ रुपए (1,756 रुपए प्रति लेन-देन) था।
- मई 2023 में यह मूल्य (मात्रात्मक स्तर पर) बढ़कर 14,89,145 करोड़ रुपए (प्रति लेन-देन 1,581 रुपए) हो गया, यह पाँच वर्षों में प्रति लेन-देन पर 175 रुपए की कमी दर्शाता है।
UPI व्यवस्था में हालिया बदलाव:
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उपयोगकर्त्ताओं और बैंकों पर इन रुझानों के प्रभाव:
- सकारात्मक प्रभाव:
- सुविधा और दक्षता: स्मार्टफोन के माध्यम से त्वरित और परेशानी मुक्त डिजिटल लेन-देन।
- वित्तीय समावेशन: व्यक्तियों की डिजिटल भुगतान तक पहुँच।
- नकदी पर कम निर्भरता: जोखिम को कम करना और अवैध लेन-देन के समस्या का समाधान करना।
- पारदर्शिता में वृद्धि: वित्तीय गतिविधियों पर नज़र रखना और निगरानी करना।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: डिजिटल उद्यमशीलता और नवाचार को बढ़ावा देना।
- नकारात्मक प्रभाव:
- उपयोगकर्त्ता पर:
- पेट्टी कैश (Petty Cash) के विकल्प के रूप में UPI:
- पेट्टी कैश की जगह छोटे लेन-देन के लिये उपभोक्ता तेज़ी से UPI का उपयोग कर रहे हैं। यह समय के साथ प्रति लेन-देन मूल्य में गिरावट की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
- पेट्टी कैश (Petty Cash) के विकल्प के रूप में UPI:
- सीमित लेन-देन लचीलापन:
- UPI लेन-देन पर विभिन्न एप्स और बैंकों द्वारा निर्धारित सीमाओं का जटिल वेब (Web) भ्रम पैदा करता है और लेन-देन की मात्रा एवं मूल्य के संदर्भ में उपयोगकर्त्ताओं के लचीलेपन को प्रतिबंधित करता है।
- उपयोगकर्त्ताओं की आवश्यकता के अनुसार लेन-देन करने की उनकी क्षमता को प्रभावित कर उन्हें अलग-अलग सीमा के माध्यम से लेन-देन करने को बाध्य होना पड़ता है।
- लेन-देन में वृद्धि:
- UPI भुगतान में वृद्धि को बनाए रखने के लिये अपने बुनियादी ढाँचे और तकनीकी प्रणालियों को उन्नत करने हेतु बैंकों के संघर्ष के परिणामस्वरूप लेन-देन विफलता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह उपयोगकर्त्ताओं को निराश कर सकता है और उनके सहज भुगतान अनुभव में बाधा डाल सकता है।
- बैंक:
- बैंकों के लिये बुनियादी ढाँचा चुनौतियाँ:
- UPI भुगतानों में वृद्धि के चलते बैंकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे लेन-देन में विफलता की स्थिति उत्पन्न होती है।
- बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये बैंकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और तकनीकी प्रणालियों को अपग्रेड करना आवश्यक है।
- बैंकों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनके सर्वर बिना किसी ग्लिच या डाउनटाइम (Glitches or Downtime) के UPI लेन-देन की बढ़ती मात्रा और आवृत्ति को संभालने में सक्षम हैं।
- बैंकों के लिये बुनियादी ढाँचा चुनौतियाँ:
- सुरक्षा और धोखाधड़ी की रोकथाम:
- UPI लेन-देन में वृद्धि के साथ साइबर खतरों और धोखाधड़ी जैसी गतिविधियों का जोखिम भी बढ़ता है।
- बैंकों को उपयोगकर्त्ता डेटा को सुरक्षित रखने और अनधिकृत पहुँच को रोकने के लिये एन्क्रिप्शन, टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन तथा फ्रॉड डिटेक्शन मैकेनिज़्म सहित मज़बूत सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है।
- उपयोगकर्त्ता पर:
आगे की राह
- त्वरित (Agile) अवसंरचना का विकास:
- UPI लेन-देन की बढ़ती मात्रा और आवृत्ति हेतु व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत बुनियादी ढाँचे और उन्नत प्रौद्योगिकी समाधानों में निवेश किया जाना चाहिये।
- एज कंप्यूटिंग और डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी (DLT) को स्वीकार करना।
- DLT एक विकेंद्रीकृत डिजिटल प्रणाली है जो उपयोगिता, सुरक्षा और वास्तविक समय में लेन-देन सुनिश्चित करने के लिये नेटवर्क में शामिल विभिन्न प्रतिभागियों के बीच सुरक्षित एवं पारदर्शी रिकॉर्डिंग, भंडारण तथा जानकारी को साझा करने में सक्षम बनाती है।
- व्यक्तिगत वित्तीय अंतर्दृष्टि:
- UPI उपयोगकर्त्ताओं को व्यक्तिगत वित्तीय जानकारी प्रदान करने के लिये डेटा विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का लाभ उठाना चाहिये।
- उपयोगकर्त्ताओं को वित्तीय निर्णय लेने में सशक्त बनाने के लिये वास्तविक समय में व्यय विश्लेषण, बजट उपकरण और अनुरूप अनुशंसाएँ प्रदान करना चाहिये।
- ब्लॉकचेन का एकीकरण:
- पारदर्शिता, सुरक्षा और उपयोगिता बढ़ाने के लिये UPI के बुनियादी ढाँचे में ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी के एकीकरण को बढ़ावा देना चाहिये।
- स्मार्ट अनुबंध के माध्यम से लेन-देन प्रक्रियाओं को स्वचालित किया जा सकता है, साथ ही मध्यवर्ती लोगों की भूमिका को कम कर निर्बाध सीमा पार भुगतान को सक्षम कर सकते हैं।
- धोखाधड़ी की रोकथाम हेतु AI का उपयोग:
- वास्तविक समय में धोखाधड़ी वाले UPI लेन-देन का पता लगाने और रोकने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं मशीन लर्निंग की शक्ति का उपयोग करना चाहिये।
- उन्नत एनोमली डिटेक्शन एल्गोरिथम को लागू करना चाहिये जो संदिग्ध गतिविधियों की पहचान करने के लिये उपयोगकर्त्ता के व्यवहार प्रारूप तथा लेन-देन डेटा का विश्लेषण करता हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. डिजिटल भुगतान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI)' को लागू करने का सबसे संभावित परिणाम है? (2017) उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |
प्रारंभिक परीक्षा
ल्यूकेमिया के उपचार हेतु मेडिसिन पेटेंट पूल के साथ समझौता
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र समर्थित समूह मेडिसिन पेटेंट पूल (MPP) ने कैंसर की कुछ दवाओं को रोगियों हेतु अधिक सुलभ और सस्ता बनाने के लिये तीन भारत-आधारित कंपनियों के साथ उप-लाइसेंस समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- ये समझौते कई देशों में नोवार्टिस की कैंसर उपचार दवा निलोटिनिब के जेनेरिक संस्करणों के उत्पादन की अनुमति देते हैं, जिसका उपयोग मुख्य रूप से क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (CML) हेतु किया जाता है।
- इस लाइसेंस में भारत, सात मध्यम-आय वाले देशों और 44 क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जो स्थानीय नियामक प्राधिकरण के तहत निलोटिनिब के जेनेरिक संस्करणों की आपूर्ति की अनुमति देता है।
मेडिसिन पेटेंट पूल:
- MPP एक संयुक्त राष्ट्र समर्थित सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन है, जो कम और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) के लिये जीवन-रक्षक दवाओं के विकास को बढ़ावा देने तथा सुविधा प्रदान करने हेतु काम कर रहा है।
- इसकी स्थापना जुलाई 2010 में जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में की गईथी।
- MPP सिविल सोसाइटी, सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, उद्योग, रोगी समूहों और अन्य हितधारकों के साथ साझेदारी सुनिश्चित करता है, ताकि जेनेरिक निर्माण और नए फॉर्मूलेशन के विकास को प्रोत्साहित करने हेतु आवश्यक दवाओं को प्राथमिकता तथा लाइसेंस दिया जा सके एवं बौद्धिक संपदा अधिकार हासिल किया जा सके।
- अब तक MPP ने तेरह ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) एंटी-रेट्रोवायरल, एक HIV प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म, तीन हेपेटाइटिस सी डाइरेक्ट-एक्टिंग एंटीवायरल, एक तपेदिक उपचार, एक लंबे समय तक काम करने वाली तकनीक, कोविड-19 के लिये दो एक्सपेरीमेंटल ओरल एंटीवायरल उपचार और एक कोविड-19 सीरोलॉजिकल एंटीबॉडी तकनीक के लिये बारह पेटेंट धारकों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (CML):
- परिचय:
- यह ल्यूकेमिया के प्रकारों में से एक है जो एक रक्त-कोशिका कैंसर है जो अस्थि मज्जा (Bone Marrow) और रक्त को प्रभावित करता है। अन्य प्रकार हैं,
- एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL)
- एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (AML)
- क्रोनिक लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (CLL)
- असामान्य श्वेत रक्त कोशिकाओं, जिन्हें माइलॉयड कोशिकाएँ कहा जाता है, की अनियंत्रित वृद्धि इसकी प्रमुख विशेषता है।
- आमतौर पर CML धीरे-धीरे बढ़ता है और इसका निदान अक्सर क्राॅनिक चरण के दौरान किया जाता है।
- यह ल्यूकेमिया के प्रकारों में से एक है जो एक रक्त-कोशिका कैंसर है जो अस्थि मज्जा (Bone Marrow) और रक्त को प्रभावित करता है। अन्य प्रकार हैं,
- नैदानिक परीक्षण:
- CML का निदान आमतौर पर रक्त और अस्थि मज्जा परीक्षण के माध्यम से किया जाता है।
प्रारंभिक परीक्षा
ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2023
द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स (Global Liveability Index) 2023 पर अपनी रिपोर्ट जारी की, जिसमें ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना ने वर्ष 2023 में रहने योग्य उत्तम शहरों की सूची में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह पाँच श्रेणियों में 173 शहरों में रहने की स्थिति का मूल्यांकन करता है, या हैं स्थिरता, स्वास्थ्य देखभाल, संस्कृति और पर्यावरण, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचा।
- ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2023 में शामिल शीर्ष दस शहरों की सूची:
- विकासशील देशों की प्रगति से संबंधित टिप्पणियाँ: अनेक विकासशील देशों ने अपनी रहने योग्य रैंकिंग में वृद्धिशील सुधार हासिल किया है।
- एशिया-प्रशांत शहरों ने महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की है, जबकि पश्चिमी यूरोपीय शहर वर्ष 2023 की रैंकिंग में फिसल गए ।
- यह रिपोर्ट एशियाई, अफ्रीकी और मध्य-पूर्वी देशों में स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा के बढ़ते महत्त्व पर प्रकाश डालती है जो एक सकारात्मक प्रवृत्ति का संकेत है।
- हालाँकि यह विश्व के कुछ हिस्सों में नागरिक अशांति के कारण स्थिरता स्कोर में गिरावट को प्रदर्शित करती है।
- भारतीय शहर:
- नई दिल्ली और मुंबई 141वें स्थान पर तथा चेन्नई 144वें स्थान पर है, इसके बाद अहमदाबाद और बंगलूरू क्रमशः 147वें व 148वें स्थान पर हैं।
- कुछ विशिष्ट शहरों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ:
- कीव, यूक्रेन: स्थिति में सुधार लाने के जारी प्रयासों के बावजूद कीव 173 शहरों में से 165वें स्थान पर है, यह युद्ध से तबाह राजधानी के समक्ष आने वाली चुनौतियों को दर्शाता है।
- दमिश्क, सीरिया और त्रिपोली, लीबिया: वर्ष 2022 के आँकड़ों के समान ये शहर उक्त सूचकांक में निचले स्थान पर ही हैं।
- नीचे के 10 रैंक:
सामाजिक न्याय
ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी को दूर करने हेतु लघु चिकित्सा पाठ्यक्रम
प्रिलिम्स के लिये: आयुष्मान भारत, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता मेन्स के लिये:भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र की संभावनाएँ, भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित मुद्दे, स्वास्थ्य से संबंधित हालिया सरकारी पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने उन चिकित्सकों के लिये एक लघु चिकित्सा पाठ्यक्रम प्रस्तावित किया जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) पर अपनी सेवाएँ देंगे।
- इस प्रस्ताव का उद्देश्य उन ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी को दूर करना है जहाँ भारतीय आबादी का एक महत्त्वपूर्ण प्रतिशत (लगभग 65%) रहता है।
- इसी प्रकार की पहल छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों में भी लागू की गई है जहाँ गाँवों में सेवा देने के लिये ग्रामीण चिकित्सा सहायक (RMA) तैयार करने वाला तीन वर्षीय सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किया गया है।
ग्रामीण क्षेत्रों के लिये प्रस्तावित लघु चिकित्सा पाठ्यक्रम:
- परिचय:
- भारत में प्रस्तावित लघु चिकित्सा पाठ्यक्रम चिकित्सकों के लिये तीन वर्ष का चिकित्सा डिप्लोमा पाठ्यक्रम है जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) पर अपनी सेवाएँ देंगे। यह पाठ्यक्रम नियमित MBBS पाठ्यक्रम से भिन्न है।
- लघु चिकित्सा पाठ्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में प्रथम-स्तरीय देखभाल प्रदान करने पर केंद्रित है, जबकि नियमित MBBS पाठ्यक्रम चिकित्सा विज्ञान और अभ्यास के सभी पहलुओं को शामिल करता है।
- लघु चिकित्सा पाठ्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में जटिल एवं विविध परिस्थितियों से निपटने के लिये प्रशिक्षुओं को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं कर सकता है, जबकि नियमित MBBS पाठ्यक्रम चिकित्सकों को किसी भी तरह की स्थिति के लिये तैयार या प्रशिक्षित करता है।
- लाभ:
- ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता में वृद्धि करना।
- स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं एवं आपात स्थितियों हेतु त्वरित प्रतिक्रिया देना।
- संसाधन की कमी वाले क्षेत्रों के लिये लागत प्रभावी समाधान उपलब्ध कराना।
- ग्रामीण समुदायों हेतु उन्नत प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ।
- कमियाँ:
- जटिल चिकित्सा क्षेत्रों में सीमित विशेषज्ञता।
- ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल के मुद्दों के संबंध में अपर्याप्त जानकारी।
- चिकित्सा क्षेत्र के शिक्षा मानकों के स्तर में संभावित कमी।
- इससे भेदभाव संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होना स्वाभाविक है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप शहरी आबादी के लिये अधिक योग्य चिकित्सक प्राप्त की तुलना में ग्रामीण आबादी हेतुकम योग्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाता नियुक्त किये जा सकते हैं।
- इससे डॉक्टरों की कमी में योगदान देने वाले अंतर्निहित संरचनात्मक मुद्दों का समाधान नहीं किया जा सकता है।
ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार ग्रामीण भारत में डॉक्टरों की स्थिति:
- ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की काफी कमी है।
- आवश्यक विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या में लगभग 80% की कमी है।
- विशेषज्ञ डॉक्टरों में सर्जन (83.2%), प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ (74.2%), चिकित्सक (79.1%) और बाल रोग विशेषज्ञ (81.6%) शामिल हैं।
- CHC में विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या वर्ष 2005 के 3,550 से 25% बढ़कर वर्ष 2022 में 4,485 हो गई है।
- हालाँकि CHC में वृद्धि के परिणामस्वरूप विशेषज्ञ डॉक्टरों की आवश्यकता बढ़ गई है जिससे असमानता की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
- विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के अतिरिक्त PHC और उप-केंद्रों में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं एवं सहायक नर्सिंग दाइयों की भी संख्या कम है, इनमें से 14.4% पद खाली पड़े हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी की समस्या से संबंधित चुनौतियाँ:
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और संसाधन:
- ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी यहाँ की सीमित स्वास्थ्य सुविधाएँ और संसाधन से संबंधित है।
- विशिष्ट देखभाल व्यवस्था तक सीमित पहुँच:
- ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषज्ञों की कमी के कारण जटिल चिकित्सीय इलाज में देरी होती है अथवा पर्याप्त इलाज नहीं हो पाता है।
- ग्रामीण प्रथा से विमुखता:
- बेहतर कॅरियर की संभावनाओं, जीवनशैली जैसी प्राथमिकताओं और ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित व्यावसायिक विकास के अवसरों के कारण डॉक्टर प्रायः शहरी परिवेश को प्राथमिकता देते हैं।
- मेडिकल कॉलेजों का असमान वितरण:
- शहरी क्षेत्रों में मेडिकल कॉलेजों के संकेंद्रण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी देखी जाती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की निम्न प्रतिधारण दर:
- पर्याप्त सहायता, सुविधाएँ और विकास की संभावनाएँ प्रदान करने में कठिनाइयों के कारण दूर-दराज़ या ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों को बनाए रखना कठिन है।
- सामाजिक आर्थिक कारक:
- गरीबी, सीमित शैक्षिक अवसर और अविकसित बुनियादी ढाँचा ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कम उपलब्धता में योगदान करते हैं।
- शैक्षिक असमानताएँ:
- गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा तक असमान पहुँच शहरी और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को प्रोत्साहित करती है।
हेल्थकेयर से संबंधित हालिया सरकारी पहल:
- मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा)
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
- आयुष्मान भारत
- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना ( AB-PMJAY)
- आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना
- राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग
- प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम
- जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK)
- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK)
आगे की राह
- टेलीमेडिसिन और टेलीहेल्थ सेवाएँ:
- ग्रामीण रोगियों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच अंतर को समाप्त करते हुए दूरस्थ परामर्श एवं चिकित्सा सेवाओं हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
- मध्य-स्तरीय स्वास्थ्य सेवा प्रदाता:
- डॉक्टरों की देख-रेख में ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक देखभाल सेवाएँ प्रदान करने हेतु चिकित्सा सहायकों और नर्स तथा चिकित्सकों हेतु प्रशिक्षण एवं तैनाती सुनिश्चित करना।
- ग्रामीण स्वास्थ्य क्लिनिक और आउटरीच कार्यक्रम:
- चिकित्सा सेवाओं को सीधे ग्रामीण समुदायों तक पहुँचाने हेतु स्थानीय स्वास्थ्य सुविधाओं और मोबाइल क्लीनिकों की स्थापना करना, साथ ही इस क्षेत्र में पहुँच एवं सुविधा में सुधार करने की आवश्यकता है।
- ग्रामीण चिकित्सा शिक्षा और आवासीय कार्यक्रम:
- मेडिकल छात्रों और निवासियों को ग्रामीण क्षेत्रों में अभ्यास करने हेतु प्रोत्साहित करने, प्रासंगिक प्रशिक्षण एवं सहायता प्रदान करने के लिये विशेष कार्यक्रम शुरू करना।
- वित्तीय प्रोत्साहन:
- डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्र में अभ्यास हेतु आकर्षित करने और वित्तीय बोझ को कम करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन एवं ऋण पुनर्भुगतान कार्यक्रम शुरू करना।
- अनुसंधान और डेटा-संचालित दृष्टिकोण:
- ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों पर निरंतर अनुसंधान और डेटा संग्रह नीति निर्माण लक्षित हस्तक्षेपों के कार्यान्वयन के लिये मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है।
- सामुदायिक सहभागिता और स्वास्थ्य जागरूकता:
- ग्रामीण समुदायों को निवारक देखभाल और स्वास्थ्य देखभाल के महत्त्व के बारे में शिक्षित एवं सशक्त बनाने के लिये जागरूकता अभियान चलाना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संदर्भ में प्रशिक्षित सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता 'आशा' के कार्य निम्नलिखित में से कौन-से हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:उत्तर. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (2021) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-मिस्र संबंध
प्रिलिम्स के लिये:भारत-मिस्र संबंध, खाड़ी क्षेत्र, मुद्रास्फीति, यूक्रेन संघर्ष, धार्मिक उग्रवाद, जलवायु परिवर्तन, G-20, NAM, स्वेज नहर मेन्स के लिये:भारत-मिस्र संबंध, अवसर और चुनौतियाँ तथा आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने भारत और मिस्र के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा करने के लिये वर्ष 1997 के बाद पहली बार मिस्र का दौरा किया है।
- मिस्र की सरकार ने भारत के प्रधानमंत्री को देश के सर्वोच्च सम्मान- ऑर्डर ऑफ द नाइल से सम्मानित किया।
नोट: वर्ष 1915 में स्थापित 'ऑर्डर ऑफ द नाइल' मिस्र अथवा मानवता के लिये अमूल्य सेवाएँ प्रदान करने वाले राष्ट्राध्यक्षों, राजकुमारों (Princes) और उपराष्ट्रपतियों को प्रदान किया जाता है। |
प्रमुख बिंदु
- रणनीतिक साझेदारी समझौता: भारत और मिस्र के बीच रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किया जाना दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के लिये काफी महत्त्व रखता है। इसके प्रमुख घटक इस प्रकार हैं:
- राजनीतिक
- रक्षा और सुरक्षा
- आर्थिक जुड़ाव
- वैज्ञानिक और शैक्षणिक सहयोग
- सांस्कृतिक और जनसंपर्क
- समझौता ज्ञापन: भारत और मिस्र के बीच कृषि, पुरातत्त्व और पुरावशेष तथा प्रतिस्पर्द्धा कानून के क्षेत्र में तीन समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए जिनका उद्देश्य इन क्षेत्रों में सहयोग में वृद्धि करना है।
- द्विपक्षीय चर्चाएँ: भारत के प्रधानमंत्री और मिस्र के राष्ट्रपति ने G-20 में बहुपक्षीय सहयोग, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन तथा स्वच्छ ऊर्जा सहयोग सहित विभिन्न विषयों पर चर्चा की।
- मिस्र मंत्रिमंडल में भारत इकाई/इंडिया यूनिट:
- भारतीय प्रधानमंत्री ने मार्च, 2023 में भारत-मिस्र संबंधों को बढ़ाने के लिये मिस्र के राष्ट्रपति द्वारा मिस्र मंत्रिमंडल में गठित उच्च स्तरीय मंत्रियों के एक समूह, भारतीय इकाई (India Unit) से मुलाकात की।
- कॉमनवेल्थ वार ग्रेव सेमेट्री: भारत के प्रधानमंत्री ने हेलियोपोलिस कॉमनवेल्थ वार ग्रेव सेमेट्री में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मिस्र और अदन में अपनी जान गँवाने वाले 4,300 से अधिक भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
- G-20 शिखर सम्मेलन में मिस्र की भागीदारी: सितंबर में आयोजित होने वाले आगामी G-20 शिखर सम्मेलन में मिस्र को "अतिथि देश" के रूप में नामित किया गया है जिससे इन दोनों के बीच द्विपक्षीय संबंध और मज़बूत होंगे।
- अल-हकीम मस्जिद: भारत के प्रधानमंत्री ने काहिरा में स्थित 11वीं सदी की अल-हकीम मस्जिद का दौरा किया, जिसे भारत के दाऊदी बोहरा समुदाय द्वारा बहाल किया गया था।
- यह मस्जिद वर्ष 1012 में बनाई गई थी और यह काहिरा की चौथी सबसे पुरानी मस्जिद है। दाऊदी बोहरा मुसलमान फातिमी इस्माइली तैयबी विचारधारा का पालन करने हेतु जाने जाते हैं एवं 11वीं शताब्दी में भारत में अपनी उपस्थिति स्थापित करने से पहले मिस्र में पैदा हुए थे।
भारत-मिस्र संबंध:
- इतिहास:
- विश्व की दो सबसे पुरानी सभ्यताओं, यथा- भारत और मिस्र के बीच संपर्क का इतिहास काफी पुराना है और इसका पता सम्राट अशोक के समय से लगाया जा सकता है।
- अशोक के अभिलेखों में टॉलेमी-द्वितीय के तहत मिस्र के साथ उसके संबंधों का उल्लेख है।
- आधुनिक काल में महात्मा गांधी और मिस्र के क्रांतिकारी साद जगलुल का साझा लक्ष्य ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करना था।
- 18 अगस्त, 1947 को राजदूत स्तर पर राजनयिक संबंधों की स्थापना की संयुक्त रूप से घोषणा की गई थी।
- वर्ष 1955 में भारत और मिस्र ने एक मित्रता संधि पर हस्ताक्षर किये। वर्ष 1961 में भारत और मिस्र ने यूगोस्लाविया, इंडोनेशिया एवं घाना के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement- NAM) की स्थापना की।
- वर्ष 2016 में भारत और मिस्र ने राजनीतिक-सुरक्षा सहयोग, आर्थिक जुड़ाव, वैज्ञानिक सहयोग तथा लोगों के बीच संबंधों के सिद्धांतों पर एक नए युग के लिये नई साझेदारी बनाने के अपने इरादे को रेखांकित करते हुए एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया।
- विश्व की दो सबसे पुरानी सभ्यताओं, यथा- भारत और मिस्र के बीच संपर्क का इतिहास काफी पुराना है और इसका पता सम्राट अशोक के समय से लगाया जा सकता है।
- द्विपक्षीय व्यापार:
- वर्ष 2022-23 में मिस्र के साथ भारत का व्यापार 6,061 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 17% कम है।
- इस व्यापार का लगभग एक-तिहाई हिस्सा पेट्रोलियम से संबंधित था।
- वर्ष 2022-23 में भारत मिस्र का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जबकि मिस्र भारत का 38वाँ व्यापारिक भागीदार है।
- भारत ने मिस्र में 50 परियोजनाओं में निवेश किया है, जिसका कुल मूल्य 3.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। मिस्र ने भारत में 37 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
- वर्ष 2022-23 में मिस्र के साथ भारत का व्यापार 6,061 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 17% कम है।
- रक्षा सहयोग:
- दोनों देशों की वायु सेनाओं ने 1960 के दशक में लड़ाकू विमानों के विकास पर सहयोग किया और भारतीय पायलटों ने 1960 के दशक से 1980 के दशक के मध्य तक मिस्र के अपने समकक्षों को प्रशिक्षित किया।
- भारतीय वायु सेना (Indian Air Force- IAF) और मिस्र की वायु सेना दोनों ही फ्राँसीसी राफेल लड़ाकू जेट से युक्त हैं।
- वर्ष 2022 में दोनों देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए जिसके तहत सैन्य अभ्यास में भाग लेने और प्रशिक्षण में सहयोग करने का निर्णय लिया गया है।
- भारतीय सेना और मिस्र की सेना के बीच पहला संयुक्त विशेष बल अभ्यास, "अभ्यास चक्रवात- I" 14 जनवरी, 2023 को राजस्थान के जैसलमेर में संपन्न हुआ।
- दोनों देशों की वायु सेनाओं ने 1960 के दशक में लड़ाकू विमानों के विकास पर सहयोग किया और भारतीय पायलटों ने 1960 के दशक से 1980 के दशक के मध्य तक मिस्र के अपने समकक्षों को प्रशिक्षित किया।
- सांस्कृतिक संबंध:
- वर्ष 1992 में काहिरा में मौलाना आज़ाद सेंटर फॉर इंडियन कल्चर (MACIC) की स्थापना हुई। यह केंद्र दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देता रहा है।
भारत के लिये अवसर और चुनौतियाँ:
- अवसर:
- धार्मिक उग्रवाद का मुकाबला: भारत का लक्ष्य क्षेत्र में उदारवादी देशों का समर्थन करके और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देकर धार्मिक उग्रवाद का मुकाबला करना है।
- भारत ने इसे खाड़ी क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी (Key Player) के रूप में पहचाना है क्योंकि यह धर्म पर उदार रुख रखता है, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब (जिन्होंने मिस्र में पर्याप्त निवेश किया है) के साथ मज़बूत संबंध रखता है।
- रणनीतिक रूप से स्थित: मिस्र स्वेज़ नहर के साथ रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, जिसके माध्यम से वैश्विक व्यापार के 12% का परिचालन किया जाता है।
- मिस्र के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाकर भारत इस क्षेत्र में अपने लक्ष्यों को आगे बढ़ाने की उम्मीद करता है।
- भारतीय निवेश: मिस्र काहिरा और अलेक्जेंड्रिया में बुनियादी ढाँचा मेट्रो परियोजनाओं, स्वेज़ नहर आर्थिक क्षेत्र, स्वेज़ नहर के दूसरे चैनल तथा काहिरा उपनगर में एक नई प्रशासनिक राजधानी में भारत द्वारा निवेश किये जाने की अपेक्षा करता है।
- 50 से अधिक भारतीय कंपनियों ने मिस्र में 3.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
- समान सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ: मिस्र एक बड़ा देश (जनसंख्या 105 मिलियन) और अर्थव्यवस्था (378 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है। यह राजनीतिक रूप से स्थिर है और इसकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ काफी हद तक भारत के समान हैं।
- मिस्र का सबसे बड़ा आयात परिष्कृत पेट्रोलियम, गेहूँ (दुनिया का सबसे बड़ा आयातक), कार, मक्का और फार्मास्यूटिकल्स हैं जिनकी आपूर्ति करने में भारत सक्षम है।
- बुनियादी ढाँचा विकास: इसके अलावा मिस्र सरकार का एक महत्त्वाकांक्षी बुनियादी ढाँचा विकास एजेंडा है, जिसमें 49 मेगा परियोजनाएँ शामिल हैं जिनमें न्यू काहिरा (58 बिलियन अमेरिकी डॉलर), 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर का परमाणु ऊर्जा संयंत्र और 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हाई-स्पीड रेल नेटवर्क का निर्माण शामिल है।
- 2015-19 के दौरान मिस्र दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक था। यह भारत के लिये एक अवसर के रूप में है।
- धार्मिक उग्रवाद का मुकाबला: भारत का लक्ष्य क्षेत्र में उदारवादी देशों का समर्थन करके और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देकर धार्मिक उग्रवाद का मुकाबला करना है।
- चुनौतियाँ:
- मिस्र में आर्थिक संकट: मिस्र की अर्थव्यवस्था की विशाल वित्तीय प्रतिबद्धताएँ एक स्थिर अर्थव्यवस्था, महामारी, वैश्विक मंदी और यूक्रेन संघर्ष के साथ मेल खाती हैं।
- इसके परिणामस्वरूप पर्यटन में गिरावट आई है और अनाज जैसे आयात महँगे हो गए हैं। वार्षिक मुद्रास्फीति 30% से ऊपर है तथा फरवरी 2022 से मुद्रा ने अपना आधे से अधिक मूल्य खो दिया है।
- भीषण ऋण और विदेशी मुद्रा: मिस्र का विदेशी ऋण 163 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 43%) से अधिक है तथा इसकी शुद्ध विदेशी परिसंपत्ति -24.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- गंभीर विदेशी मुद्रा स्थिति ने सरकार को जनवरी 2023 में बड़ी विदेशी मुद्रा घटक वाली परियोजनाओं को स्थगित करने तथा गैर-आवश्यक खर्चों में कटौती का आदेश जारी करने के लिये मजबूर कर दिया था।
- चीन का बढ़ता प्रभाव: चीन के संबंध में मिस्र को लेकर भारत की चिंताएँ चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव, रणनीतिक क्षेत्रों में बढ़ती उपस्थिति, द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के इर्द-गिर्द घूमती हैं जिनका भारत के क्षेत्रीय हितों एवं सुरक्षा पर संभावित प्रभाव हो सकता है।
- मिस्र के साथ चीन का द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान में 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है जो वर्ष 2021-22 के भारत के 7.26 बिलियन अमेरिकी डॉलर से दोगुना है।
- मिस्र के राष्ट्रपति चीनी निवेश को लुभाने के लिये विगत आठ वर्षों के दौरान सात बार चीन की यात्रा कर चुके हैं।
- मिस्र में आर्थिक संकट: मिस्र की अर्थव्यवस्था की विशाल वित्तीय प्रतिबद्धताएँ एक स्थिर अर्थव्यवस्था, महामारी, वैश्विक मंदी और यूक्रेन संघर्ष के साथ मेल खाती हैं।
आगे की राह
- भारत को मौजूदा अवसरों के साथ मिस्र में अपने प्रदर्शन को सावधानीपूर्वक संतुलित करने की आवश्यकता है।
- भारत को विभिन्न नवाचारों जैसे- EXIM क्रेडिट लाइन, वस्तु विनिमय तथा रुपए व्यापार के माध्यम से मिस्र के आकर्षक अवसरों में भागीदारी के लिये प्रबंधनीय पर्यावरण-राजनीतिक जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है।
- हालाँकि भारत को 1980 और 1990 के दशक में इराक के अपने अनुभव को दोहराने से बचना चाहिये जब अपनी कड़ी मेहनत से अर्जित निर्माण परियोजना के बकाए को तब तक के लिये स्थगित कर दिया गया था जब तक कि अंततः भारतीय करदाता द्वारा भुगतान नहीं किया गया था।
- इसके अतिरिक्त इस तरह की व्यवस्था एक मिसाल कायम कर सकती है जिसका उदाहरण अन्य समान मित्र देश भी प्रस्तुत कर सकते हैं। इसके बजाय भारत मिस्र या अन्य जगहों पर खाड़ी में अपने साझेदारों, G20 या बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों के साथ ऐसी परियोजनाओं के लिये त्रिपक्षीय वित्तपोषण व्यवस्था पर विचार कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. वर्ष 1956 में स्वेज़ संकट को पैदा करने वाली घटनाएँ क्या थीं? उसने एक विश्व शक्ति के रूप में ब्रिटेन की आत्म-छवि पर किस प्रकार अंतिम प्रहार किया? (2014) |
प्रारंभिक परीक्षा
WHO ने भारत में उत्पादित अवमानक कफ सिरप हेतु अलर्ट जारी किया
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने भारत में बने अवमानक कफ सिरप पर चिंता जताई है, इस सिरप के उपयोग के कारण 300 बच्चों की मौत हो गई, इसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल एवं एथिलीन ग्लाइकॉल का उच्च स्तर होता है, जो स्वास्थ्य हेतु खतरा उत्पन्न करता है।
- WHO ने भारत में उत्पादित सात सिरप को लेकर अलर्ट जारी किया है, जबकि देश के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ने निर्यात से पहले निर्दिष्ट प्रयोगशालाओं में कफ सिरप का परीक्षण अनिवार्य कर दिया है।
एथिलीन ग्लाइकॉल और डायथिलीन ग्लाइकॉल:
- एथिलीन ग्लाइकॉल और डायथिलीन ग्लाइकॉल मीठे स्वाद वाले ज़हरीले अल्कोहल हैं।
- इन ग्लाइकॉल के साथ कफ सिरप का विशेषकर पैरासिटामोल युक्त उत्पादों में संदूषण हो सकता है।
- कफ सिरप में मौजूद पैरासिटामोल, संक्रमण वाले बच्चों हेतु उपयोगी और सुरक्षित है। यह एक दर्द निवारक है जो बुखार को कम करने में सहायता करता है।
- डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल मिलावटी पदार्थ हैं जिन्हें कभी-कभी लागत में कमी करने हेतु ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकॉल जैसे गैर-विषैले विलायक के विकल्प के रूप में तरल दवाओं में विलायक के रूप में अवैध रूप से उपयोग किया जाता है।
- एक घातक ओरल डोज़ शरीर के वज़न के प्रति किलोग्राम लगभग 1,000-1,500 मिलीग्राम है।
- कई दिनों या हफ्तों तक कम खुराक लेने से भी विषाक्तता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- संदूषण के लक्षण तब तक प्रकट नहीं होते जब तक कि बड़ी मात्रा में सेवन न किया गया हो।
- एंटीफ्रीज़ में इसके उपयोग के अलावा एथिलीन ग्लाइकॉल का उपयोग हाइड्रोलिक तरल पदार्थ, प्रिंटिंग स्याही और पेंट सॉल्वैंट्स में एक घटक के रूप में किया जाता है तथा डायथिलीन ग्लाइकॉल का उपयोग एंटीफ्रीज़, ब्रेक तरल पदार्थ, सिगरेट एवं कुछ रंगों की व्यावसायिक निर्माण में किया जाता है।
अवमानक कफ सिरप से जुड़े जोखिम:
- हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति:
- अवमानक कफ सिरप में उच्च स्तर के डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल हो सकते हैं, जो किडनी को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं।
- अवैज्ञानिक संयोजन:
- कुछ कफ सिरप में रासायनिक घटकों का अवैज्ञानिक संयोजन हो सकता है जो एक-दूसरे के साथ परस्पर क्रिया कर सकते हैं और संभावित रूप से नुकसान पहुँचा सकते हैं।
- चिकित्सीय प्रासंगिकता का अभाव:
- अवमानक कफ सिरप में चिकित्सीय प्रासंगिकता की कमी हो सकती है, जिसका अर्थ है कि वे खाँसी उत्पन्न करने वाली अंतर्निहित स्थिति का प्रभावी ढंग से इलाज नहीं कर सकते हैं।
- बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव:
- कोडीन युक्त कुछ कफ सिरप बच्चों को दिये जाने पर नशे की लत लगने एवं जानलेवा भी हो सकते हैं। इसके साथ सुस्ती, चक्कर आना, धुँधला दिखाई देना, मतली और बोलने में कठिनाई का भी अनुभव किया जा सकता है जो संभावित नुकसान का संकेत देता है।
भारत में संबंधित विनियमन:
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940:
- औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 ने औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधनों के विनियमन के लिये केंद्रीय और राज्य नियामकों को विभिन्न जिम्मेदारियाँ सौंपी हैं।
- यह आयुर्वेदिक, सिद्ध, यूनानी दवाओं के निर्माण हेतु लाइसेंस जारी करने के लिये नियामक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- निर्माताओं के लिये सुरक्षा एवं प्रभावशीलता के प्रमाण, बेहतर विनिर्माण प्रथाओं (GMP) के अनुपालन सहित विनिर्माण इकाइयों एवं दवाओं के लाइसेंस हेतु निर्धारित आवश्यकताओं का पालन करना अनिवार्य है।
- केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO):
- CDSCO औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत केंद्र सरकार को सौंपे गए कार्यों के निर्वहन के लिये केंद्रीय औषधि प्राधिकरण है।
- प्रमुख कार्य:
- दवाओं के आयात, नई दवाओं और नैदानिक परीक्षणों की मंज़ूरी पर नियामक नियंत्रण।
- केंद्रीय लाइसेंस अनुमोदन प्राधिकारी के रूप में कुछ लाइसेंसों का अनुमोदन।
- केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO):
भारत में औषधियों और फार्मास्यूटिकल को विनियमित करने वाली प्रमुख संस्थाएँ | ||||
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय | रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय | वाणिज्य मंत्रालय | विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय | पर्यावरण मंत्रालय |
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) | भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) | औषधि विभाग | पेटेंट कार्यालय | जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) |
विनिर्माण के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी | केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO), जिसकी अध्यक्षता भारत का औषधि महानियंत्रक (DCGI) करता है + वैधानिक समितियाँ + सलाहकार समितियाँ | राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA); औषधि (मूल्य नियंत्रण) आदेश (DPCO 2013 | पेटेंट महानियंत्रक (Controller General of Patent) | वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) प्रयोगशालाएँ |