डेली न्यूज़ (26 Apr, 2023)



जी-20


आर्मेनियाई नरसंहार

प्रिलिम्स के लिये:

नरसंहार, नरसंहार अपराध की रोकथाम और सज़ा पर अभिसमय, संयुक्त राष्ट्र महासभा, भारतीय दंड संहिता (IPC), अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 21

मेन्स के लिये:

नरसंहार और इसके नतीजे, अंतर्राष्ट्रीय उपाय, नरसंहार से निपटने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

ऐसा माना जाता है कि आर्मेनियाई नरसंहार की शुरुआत 24 अप्रैल, 1915 को हुई, यह वह समय था जब ओटोमन/तुर्क साम्राज्य (वर्तमान में तुर्किये) ने कांस्टेंटिनोपल में आर्मेनियाई बुद्धिजीवियों और नेताओं को हिरासत में लेना शुरू कर दिया था।

नरसंहार:

  • उदय:
    • 'नरसंहार' शब्द का पहली बार प्रयोग वर्ष 1944 में पोलिश वकील राफेल लेमकिन ने अपनी पुस्तक एक्सिस रूल इन ऑक्युपाइड यूरोप में किया था।
  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, नरसंहार एक विशेष जातीय, नस्लीय, धार्मिक अथवा राष्ट्रीय समूह का उद्देश्यपूर्ण और व्यवस्थित विध्वंश है।
    • इसे विभिन्न तरीकों से अंजाम दिया जा सकता है, जिसमें सामूहिक हत्या, जबरन स्थानांतरण और कठोर परिस्थितियों में जीने के लिये बाध्य करना शामिल है, जिस कारण बड़े पैमाने पर मौतें होती हैं।
  • शर्तें/स्थिति:
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, नरसंहार अपराध के दो प्रमुख घटक होते हैं:
      • मानसिक घटक: इसके अंतर्गत किसी राष्ट्रीय, सांस्कृतिक अथवा धार्मिक समूह को आंशिक या फिर पूरी तहत नष्ट करने का प्रयास किया जाता है।
      • शारीरिक घटक: इसके अंतर्गत होने वाली निम्नलिखित पाँच प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं:
        • किसी समूह के सदस्यों की हत्या करना।
        • किसी समूह के सदस्यों को शारीरिक अथवा मानसिक रूप से गंभीर क्षति पहुँचाना।
        • बदहाल जीवन जीने के लिये मजबूर करना।
        • ऐसे उपाय लागू करना जिससे किसी समूह विशेष की जनसंख्या में वृद्धि अथवा जन्म दर को पूर्ण रूप से बाधित अथवा सीमित किया जा सके।
        • एक समूह के बच्चों को किसी दूसरे समूह में जबरन स्थानांतरित करना।
    • साथ ही किसी घटना को नरसंहार तभी कहा जा सकता है जब हमले में व्यक्ति के बजाय लक्षित समूह के सदस्यों को निशाना बनाया जाता है।
  • नरसंहार अभिसमय:
    • नरसंहार अभिसमय एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसे नरसंहार की रोकथाम और सज़ा पर अभिसमय के रूप में भी जाना जाता है, इसे UNGA द्वारा 9 दिसंबर, 1948 को अपनाया गया था।
    • इसका उद्देश्य नरसंहार के अपराध को रोकना और हस्ताक्षरकर्त्ता राष्ट्रों को नरसंहार को रोकने तथा संबद्ध तत्त्वों को दंडित करने के लिये कार्रवाई हेतु प्रोत्साहित करना है। इसके अंतर्गत नरसंहार को आपराधिक श्रेणी में शामिल करने वाले कानूनों को लागू करना एवं इस कृत्य में शामिल संदिग्ध व्यक्तियों की जाँच तथा अभियोजन कार्य में अन्य देशों को सहयोग करना शामिल है।
    • इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस/अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को इस अभिसमय की व्याख्या करने और लागू करने की ज़िम्मेदारी के साथ प्राथमिक न्यायिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया है।
    • यह 9 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई पहली मानवाधिकार संधि थी।

आर्मेनियाई नरसंहार:

  • पृष्ठभूमि: आर्मेनियाई लोगों का इतिहास प्राचीन है जिनकी पारंपरिक मातृभूमि 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक रूसी और तुर्क साम्राज्यों (Ottoman Empires) के बीच विभाजित थी।
    • मुसलमानों के प्रभुत्त्व वाले तुर्क साम्राज्य में आर्मेनियाई समृद्ध ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय थे।
    • अपने धर्म के कारण उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसका वे विरोध कर रहे थे और सरकार में अधिक प्रतिनिधित्त्व की मांग कर रहे थे। इससे इस समुदाय के खिलाफ काफी नाराज़गी जताई गई और इन पर हमले किये गए थे।
  • युवा तुर्कों और प्रथम विश्व युद्ध की भूमिका: वर्ष 1908 में यंग तुर्क नामक एक समूह ने क्रांति कर संघ और प्रगति समिति (CUP) के लिये सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया, जो साम्राज्य का 'तुर्कीकरण' करना चाहती थी, साथ ही यह अल्पसंख्यकों के प्रति कठोर थी।
    • अगस्त 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के परिणामस्वरूप तुर्क साम्राज्य ने रूस, ग्रेट ब्रिटेन और फ्राँस के खिलाफ जर्मनी एवं ऑस्ट्रिया-हंगरी का साथ दिया।
    • इस युद्ध ने आर्मेनियाई लोगों के प्रति शत्रुता बढ़ा दी, विशेष रूप से कुछ आर्मेनियाई, रूस के प्रति सहानुभूति रखते थे और यहाँ तक कि युद्ध में उसकी मदद करने को तैयार थे।
      • जल्द ही सभी आर्मेनियाई लोगों को एक खतरे के रूप में देखा जाने लगा।
    • 14 अप्रैल, 1915 को कांस्टेंटिनोपल में प्रमुख नागरिकों की गिरफ्तारी के साथ समुदाय पर कार्रवाई शुरू हुई, जिनमें से कई को मार दिया गया था।
      • सरकार ने तब आर्मेनियाई लोगों को बलपूर्वक निर्वासित करने का आदेश दिया।
    • वर्ष 1915 में तुर्क सरकार ने अपने पूर्वोत्तर सीमावर्ती क्षेत्रों से आर्मेनियाई आबादी को निर्वासित कर दिया।
  • 'नरसंहार' के रूप में मान्यता: आर्मेनियाई नरसंहार को अब तक 32 देशों द्वारा मान्यता दी गई है, जिसमें अमेरिका, फ्राँस, जर्मनी शामिल हैं।
    • भारत और यूके आर्मेनियाई नरसंहार को मान्यता नहीं देते हैं। भारत के रुख का कारण उसकी व्यापक विदेश नीति के फैसले और क्षेत्र में भू-राजनीतिक हितों को माना जा सकता है।
    • तुर्की, जो कि आर्मेनियाई नरसंहार को मान्यता नहीं देता है, ने हमेशा दावा किया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मौतें नियोजित और लक्षित थीं।
  • आर्मेनिया-तुर्की संबंधों की वर्तमान स्थिति: आर्मेनिया के तुर्की के साथ अतीत में बेहतर संबंध रहे हैं, हालाँकि अब नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में जो कि अज़रबैजान का आर्मेनियाई बहुल हिस्सा एक विवादित क्षेत्र है, को लेकर तुर्की, अज़रबैजान का समर्थन करता है।

नरसंहार पर भारत में कानून और विनियम:

  • नरसंहार पर भारत के पास कोई घरेलू कानून नहीं है, भले ही उसने नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की पुष्टि की है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC):
    • भारतीय दंड संहिता (IPC) नरसंहार और संबंधित अपराधों की सज़ा का प्रावधान करती है तथा जाँच, अभियोजन एवं सज़ा के लिये प्रक्रियाओं को निर्धारित करती है।
    • IPC की धारा 153B के तहत नरसंहार को एक अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है, जो धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने वाले कृत्यों को आपराध की श्रेणी में लाती है।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • भारतीय संविधान धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
      • संविधान का अनुच्छेद 15 इन आधारों पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
      • अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।

आगे की राह

नरसंहार की रोकथाम और सज़ा एक जटिल मुद्दा है जिसके लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कुछ संभावित तरीकों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • कानूनी ढाँचे को सशक्त करना: सभी देशों को नरसंहार तथा संबंधित अपराधों को अपराध ठहराने वाले कानूनों को अपनाना और लागू करना जारी रखना चाहिये। सरकारों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि यह कानून अंतर्राष्ट्रीय कानूनी मानकों के अनुरूप हों, जैसे नरसंहार अभिसमय।
  • शिक्षा और जागरूकता को बढ़ाना: शिक्षा और जागरूकता अभियान विभिन्न समूहों के बीच सहिष्णुता एवं समझ को बढ़ावा देने और भेदभाव तथा हिंसा की संभावना को कम करने में सहायता कर सकते हैं। सरकारों, नागरिक समाज संगठनों और अन्य हितधारकों को इन पहलों को बढ़ावा देने के लिये एकमत होकर कार्य करना चाहिये।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: पूर्व चेतावनी प्रणाली के विकास से विभिन्न समूहों के बीच बढ़ते तनाव का पता लगाने और उसे रोकने में सहायता मिल सकती है। इन प्रणालियों में अभद्र भाषा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तथा संभावित हिंसा के अन्य संकेतकों की निगरानी शामिल हो सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: नरसंहार की रोकथाम और दंड में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। नरसंहार के घटनाओं को रोकने और प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये सभी देशों को सूचना, संसाधनों तथा विशेषज्ञता को साझा करने के लिये एकमत होकर कार्य करना चाहिये।
  • पीड़ितों को सहायता: उपचार और सुलह को बढ़ावा देने के लिये नरसंहार के पीड़ितों के लिये समर्थन और क्षतिपूर्ति का प्रावधान करना आवश्यक है। सरकारों एवं अन्य हितधारकों को पीड़ितों को सहायता के लिये एक साथ कार्य करना चाहिये, जिसमें न्याय, क्षतिपूर्ति और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच शामिल है।
  • मूल कारणों को संबोधित करना: नरसंहार की रोकथाम के लिये भेदभाव और हिंसा के मूल कारणों को संबोधित करना आवश्यक है। इसमें गरीबी, असमानता एवं सामाजिक बहिष्कार को संबोधित करने के साथ-साथ समावेशी शासन तथा लोकतांत्रिक संस्थानों को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत की चीता स्थानांतरण परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

चीता पुनःवापसी योजना, कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (KNP), गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य, मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व

मेन्स के लिये:

भारत में चीता स्थानांतरण की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

भारत की महत्त्वाकांक्षी चीता स्थानांतरण परियोजना (Cheetah Translocation Project) को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि दो चीतों की मौत के कारण परियोजना में बचे चीतों की संख्या 20 में से 18 रह गई है।

  • कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 23 अप्रैल, 2023 को छह वर्ष के नर चीते उदय की मौत हो गई और 27 मार्च, 2023 को इसी पार्क में पाँच वर्ष की मादा चीता साशा की मौत हो गई।
  • इसलिये सरकार अब वैकल्पिक संरक्षण मॉडल पर विचार कर रही है, जैसे कि बाड़ वाले रिज़र्व में चीतों के संरक्षण का दक्षिण अफ्रीकी मॉडल।

अपेक्षित मौत:

  • इस परियोजना में उच्च मृत्यु दर का अनुमान लगाया गया था और इसका अल्पकालिक लक्ष्य पहले वर्ष में 50% जीवित रहने की दर हासिल करना था, जो कि 20 चीतों में से 10 है।
    • हालाँकि विशेषज्ञों ने बताया कि परियोजना में कूनो नेशनल पार्क के चीतों हेतु वहन क्षमता को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया था और इसने परियोजना में सलंग्न कर्मचारियों पर वैकल्पिक साइटों की तलाश करने हेतु दबाव डाला।
  • मृत्यु का कारण:
    • एक दक्षिण अफ्रीकी अध्ययन में पाया गया कि चीतों की मृत्यु दर में 53.2% का कारण शिकार की वजह से मौत है। इसके लिये शेर, तेंदुआ, लकड़बग्घा और सियार मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं।
      • मुख्य रूप से परभक्षण के कारण चीतों को उच्च शावक मृत्यु दर का सामना करना पड़ता है, जो विशेषकर संरक्षित क्षेत्रों में 90 प्रतिशत तक है।
      • अफ्रीका में शेर को चीतों का प्रमुख शिकारी माना जाता है लेकिन भारत में जहाँ शेरों की अनुपस्थिति पाई जाती है (गुजरात को छोड़कर), वहाँ संभावित चीता परिदृश्यों में शिकार में तेंदुओं की भूमिका का अनुमान है।
    • मृत्यु दर के अन्य कारणों में शिविर लगाना, स्थिरीकरण/पारगमन, ट्रैकिंग डिवाइस और चीतों (शावकों) को मारने वाले अन्य वन्यजीव हो सकते हैं, जिनमें जंगली सुअर, बबून, साँप, हाथी, मगरमच्छ, गिद्ध, जेब्रा तथा यहाँ तक कि शुतुरमुर्ग भी शामिल हैं।

चीता संरक्षण के लिये दक्षिण अफ्रीकी मॉडल:

  • दक्षिण अफ्रीका में चीतों की सुरक्षा के लिये मेटा-जनसंख्या प्रबंधन नामक एक संरक्षण रणनीति का उपयोग किया गया था।
  • इस रणनीति में चीतों को एक छोटे समूह से दूसरे छोटे समूह में स्थानांतरित करना शामिल था ताकि उनकी पर्याप्त आनुवंशिक विविधता के साथ ही एक स्वस्थ आबादी को बनाए रखा जा सके।
  • यह दृष्टिकोण दक्षिण अफ्रीका में चीतों की व्यवहार्य आबादी को बनाए रखने में सफल रहा जिससे केवल 6 वर्षों में चीतों की मेटा-जनसंख्या बढ़कर 328 हो गई।

परियोजना के लिये उपलब्ध विकल्प:

  • अधिकारी चीतों के लिये दूसरे निवास स्थान के रूप में चंबल नदी घाटी में गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य तैयार करने की संभावना तलाश रहे हैं।
  • एक अन्य विकल्प कुनो से कुछ चीतों को राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व में 80 वर्ग किलोमीटर के घेरे वाले क्षेत्र की सुरक्षा के लिये स्थानांतरित करना है।
    • हालाँकि दोनों विकल्पों का मतलब है कि परियोजना का लक्ष्य एक खुले परिदृश्य (Open Landscape) में चीतों को रखने के बजाय अफ्रीकी आयातों को प्रबंधित करने के लिये बाड़े या प्रतिबंधित क्षेत्रों में कुछ कम आबादी (Pocket Populations) के रूप में उन्हें स्थानांतरित करना होगा।

गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य:

  • यह राजस्थान से सटे मंदसौर और नीमच ज़िलों की उत्तरी सीमा पर मध्य प्रदेश में स्थित है।
  • इसकी विशेषता विशाल खुले परिदृश्य और चट्टानी इलाके हैं।
  • वनस्पतियों में उत्तरी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, मिश्रित पर्णपाती वन और झाड़ी शामिल हैं।
  • अभयारण्य में पाई जाने वाली कुछ वनस्पतियाँ खैर, सलाई, करधई, धावड़ा, तेंदू और पलाश हैं।
  • जीवों में चिंकारा, नीलगाय, चित्तीदार हिरण, धारीदार लकड़बग्घा, सियार और मगरमच्छ शामिल हैं।

मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व:

  • यह कोटा, राजस्थान के पास दो समानांतर पहाड़ों मुकुंदरा एवं गगरोला द्वारा निर्मित घाटी में स्थित है।
  • यह टाइगर रिज़र्व चार नदियों रमज़ान, आहू, काली और चंबल से घिरा हुआ है और चंबल नदी की सहायक नदियों के अपवाह क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
  • संरक्षित क्षेत्र:
    • मुकुंदरा हिल्स को वर्ष 1955 में एक वन्यजीव अभयारण्य और वर्ष 2004 में एक राष्ट्रीय उद्यान (मुकुंदरा हिल्स (दर्रा) राष्ट्रीय उद्यान) घोषित किया गया था।
  • पार्क और अभयारण्य:
    • मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व में तीन वन्यजीव अभयारण्य दर्रे, जवाहर सागर और चंबल शामिल हैं तथा इसमें राजस्थान के चार ज़िले कोटा, बूंदी, चित्तौड़गढ़ और झालावाड़ शामिल हैं।

आगे की राह

  • चीता परियोजना की सफलता के लिये इसे भारत के पारंपरिक संरक्षण पद्धति के अनुरूप होना चाहिये। भारत का संरक्षण दृष्टिकोण व्यवहार्य गैर-खंडित आवासों में प्राकृतिक रूप से फैले वन्यजीवों की सुरक्षा पर ज़ोर देता है।
  • चीता परियोजना दक्षिण अफ्रीकी मॉडल को अपना कर जोखिम को कम करने का विकल्प चुन सकती है, जिसमें कुछ निर्धारित आबादी को संरक्षित रिज़र्व में रखा जा सकता है।
    • हालाँकि चीतों को तेंदुए से सुरक्षित बाड़ों में रखना एक स्थायी समाधान नहीं हो सकता है। साथ ही चीतों को अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों तक सीमित करने जैसे हस्तक्षेप से पशुओं को नुकसान पहुँच सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2012)

  1. ब्लैक नेक क्रेन
  2. चीता
  3. उड़न गिलहरी
  4. हिम तेंदुआ

उपर्युक्त में से कौन-से स्वाभाविक रूप से भारत में पाए जातें हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राज्य विधेयकों पर राज्यपाल की शक्ति

प्रिलिम्स के लिये:

राज्य विधेयकों पर राज्यपाल की शक्ति, सर्वोच्च न्यायालय, विधानसभाएँ, अनुच्छेद 200, अनुच्छेद 201, राज्यपाल द्वारा विलंब, अनुच्छेद 355

मेन्स के लिये:

राज्य विधेयकों पर राज्यपाल की शक्ति, राज्यपाल द्वारा विलंब और इससे संबंधित मुद्दे.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल की सहमति के लिये भेजे गए विधेयकों को "जितनी जल्दी हो सके" वापस कर दिया जाना चाहिये, उन्हें रोकना नहीं चाहिये, क्योंकि राज्यपाल की शिथिलता के कारण राज्य विधानसभाओं को अनिश्चित काल तक इंतजार करना पड़ता है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने तेलंगाना राज्य द्वारा दायर एक याचिका में अपने न्यायिक आदेश में कहा कि राज्यपाल के पास भेजे गए कई महत्त्वपूर्ण विधेयकों को लंबित रखा गया है।

राज्य विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियाँ:

  • अनुच्छेद 200:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200 किसी राज्य की विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को सहमति के लिये राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को रेखांकित करता है, जो या तो सहमति दे सकता है, सहमति को रोक सकता है या राष्ट्रपति द्वारा विचार के लिये विधेयक को आरक्षित कर सकता है।
    • राज्यपाल सदन या सदनों द्वारा पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले संदेश के साथ विधेयक को वापस भी कर सकता है।
  • अनुच्छेद 201:
    • इसमें कहा गया है कि जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित होता है, तो राष्ट्रपति विधेयक पर सहमति दे सकता है या उस पर रोक लगा सकता है।
    • राष्ट्रपति विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिये राज्यपाल को उसे सदन या राज्य के विधानमंडल के सदनों को वापस भेजने का निर्देश भी दे सकता है।
  • राज्यपाल के पास उपलब्ध विकल्प:
    • वह सहमति दे सकता है या विधेयक के कुछ प्रावधानों या विधेयक पर स्वयं पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हुए इसे विधानसभा को वापस भेज सकता है।
    • वह राष्ट्रपति के विचार के लिये विधेयक को आरक्षित कर सकता है, लेकिन ऐसा केवल तभी किया जा सकता है जब राज्यपाल की यह राय है कि विधेयक उच्च न्यायालय की स्थिति को जोखिम में डाल सकता है।
    • वह राष्ट्रपति के विचार हेतु विधेयक को आरक्षित कर सकता है। आरक्षण अनिवार्य है जहाँ राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक राज्य उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता है। हालाँकि राज्यपाल विधेयक को आरक्षित भी कर सकता है यदि यह निम्नलिखित प्रकृति का हो:
      • संविधान के प्रावधानों के खिलाफ
      • नीति निदेशक तत्त्वों का विरोध
      • देश के व्यापक हित के खिलाफ
      • गंभीर राष्ट्रीय महत्त्व का,
      • संविधान के अनुच्छेद 31A के तहत संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण से संबंधित हो।
    • एक अन्य विकल्प सहमति को रोकना है, लेकिन ऐसा सामान्य रूप से किसी भी राज्यपाल द्वारा नहीं किया जाता है क्योंकि यह एक अत्यंत अलोकप्रिय कार्यवाही होगी।

सर्वोच्च न्यायालय की सलाह:

  • संविधान के अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान का उल्लेख करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि विधानसभाओं द्वारा पारित किये जाने के बाद उन्हें सहमति के लिये भेजे गए विधेयकों पर राज्यपालों को देरी नहीं करनी चाहिये।
  • "जितनी जल्दी हो सके" उन्हें लौटा दिया जाना चाहिये और अपने पास लंबित नहीं रखना चाहिये। इस अनुच्छेद में अभिव्यक्ति "जितनी जल्दी हो सके" का महत्त्वपूर्ण संवैधानिक उद्देश्य है और संवैधानिक प्राधिकारी को इसे ध्यान में रखना चाहिये।

राज्यपाल द्वारा विलंब के हाल के उदाहरण:

  • तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें केंद्र सरकार और राष्ट्रपति से आग्रह किया गया है कि सदन में लाए गए विधेयकों पर राज्यपाल की सहमति के लिये एक समय-सीमा निर्धारित की जाए।
  • केरल में राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक रूप से की गई घोषणा कि वह लोकायुक्त संशोधन विधेयक और केरल विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक को स्वीकृति नहीं देंगे, की वजह से अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है ।

विलंबित सहमति के खिलाफ कानूनी तर्क:

  • राज्यों का संवैधानिक दायित्त्व:
    • विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल की निष्क्रियता एक ऐसी स्थिति पैदा करती है जहाँ राज्य सरकार संविधान के अनुसार कार्य करने में असमर्थ होती है।
    • यदि राज्यपाल संविधान के अनुसार कार्य करने में विफल रहता है, तो राज्य सरकार का संवैधानिक दायित्त्व है कि वह अनुच्छेद 355 को लागू करे और यह अनुरोध करते हुए राष्ट्रपति को सूचित करे कि सरकार की प्रक्रिया संविधान के अनुसार संचालित हो, यह सुनिश्चित करने के लिये राज्यपाल को उचित निर्देश जारी किये जाएँ।
  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
    • संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को अपनी शक्तियों का प्रयोग कर किये गए किसी भी कार्य के लिये अदालती कार्यवाही से पूर्ण छूट प्राप्त है।
      • यह प्रावधान तब एक अजीब स्थिति उत्पन्न करता है जब किसी सरकार को किसी विधेयक पर सहमति रोकने की राज्यपाल की कार्रवाई को चुनौती देने की आवश्यकता हो सकती है।
      • अत: राज्यपाल को यह घोषणा करते हुए कि वह किसी विधेयक पर सहमति नहीं देता/देती है, उसे इस तरह की अस्वीकृति के कारण का खुलासा करना होगा, एक उच्च संवैधानिक प्राधिकारी होने के नाते वह मनमाने ढंग से कार्य नहीं कर सकता/सकती है।
    • यदि इनकार करने का आधार दुर्भावनापूर्ण या बाहरी विचार या अधिकारातीत प्रतीत होता है, तो राज्यपाल के इनकार करने की कार्रवाई को असंवैधानिक करार दिया जा सकता है।
      • रामेश्वर प्रसाद और ओआरएस बनाम भारत संघ एवं एएनआर मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने इन बिंदुओं को तय किया है।
      • न्यायालय ने निर्णय दिया कि "अनुच्छेद 361(1) द्वारा प्रदान की गई प्रतिरक्षा दुर्भावना के आधार पर कार्रवाई की वैधता की समीक्षा करने की न्यायालय की क्षमता को सीमित नहीं करती है।

विदेशों में उपयोग में लाई जाने वाली प्रथाएँ:

  • यूनाइटेड किंगडम:
    • किसी विधेयक को कानून बनाने के लिये शाही सहमति की आवश्यकता की प्रथा यूनाइटेड किंगडम में मौजूद है, लेकिन अभ्यास और उपयोग से क्राउन के पास कानून को खत्म करने का अधिकार नहीं है। विवादास्पद आधारों पर शाही सहमति को अस्वीकार करना असंवैधानिक के रूप में देखा जाता है।
  • अमेरिका:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति किसी विधेयक को स्वीकृति देने से इनकार कर सकता है, लेकिन इसे प्रत्येक सदन के दो-तिहाई सदस्यों के साथ फिर से पारित किये जाने के बाद यह विधेयक कानून बन जाता है।

नोट:

  • अन्य लोकतांत्रिक देशों में सहमति से इनकार की प्रथा देखने को नहीं मिलती है और कुछ मामलों में संविधान द्वारा एक उपाय प्रदान किया जाता है ताकि सहमति से इनकार के बावजूद विधायिका द्वारा पारित विधेयक कानून बन सके।

आगे की राह

  • संविधान निर्माताओं को इस बात का अनुमान नहीं था कि अनुच्छेद 200 के तहत राजपाल किसी विधेयक पर कोई कार्रवाई किये बिना अनिश्चितकाल तक के लिये उसे अपने पास रख सकता है।
  • राज्यपाल की ओर से टालमटोल एक नई घटना है जिसके लिये संविधान के ढाँचे में कुछ नए बदलाव किये जाने की आवश्यकता है। इसलिये सर्वोच्च न्यायालय को देश में संघवाद के हित में विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर निर्णय लेने के लिये राज्यपालों हेतु एक उचित समय सीमा निर्धारित करनी चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी भी न्यायालय में कोई दांडिक कार्यवाही संस्थित नहीं की जाएगी।
  2. किसी राज्य के राज्यपाल की परिलब्धियाँ और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जाएंगे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना।
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना।
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना।
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2013)

(a) भारत में एक ही व्यक्ति को एक समय में दो या अधिक राज्यों में राज्यपाल नियुक्त नहीं किया जा सकता।
(b) भारत में राज्यों के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये जातें हैं, ठीक वैसे ही जैसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जातें हैं।
(c) भारत के संविधान में राज्यपाल को उसके पद से हटाने हेतु कोई भी प्रक्रिया अधिकथित नहीं है।
(d) विधायी व्यवस्था वाले संघ राज्यक्षेत्र में मुख्यमंत्री की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा बहुमत समर्थन के आधार पर की जाती है।

उत्तर: (c)


प्रश्न. क्या उच्चतम न्यायालय का फैसला (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनीतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)

प्रश्न. 69वें संविधान संशोधन अधिनियम के उन अत्यावश्यक तत्त्वों और विषमताओं, यदि कोई हों, पर चर्चा कीजिये, जिन्होंने दिल्ली के प्रशासन में निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं उप-राज्यपाल के बीच हाल में समाचारों में आए मतभेदों को पैदा कर दिया है। क्या आपके विचार में इससे भारतीय परिसंघीय राजनीति के प्रकार्यण में एक नई प्रवृत्ति का उदय होगा? (मुख्य परीक्षा, 2016)

स्रोत: द हिंदू


भारत में उर्वरक की खपत

प्रिलिम्स के लिये:

उर्वरक सब्सिडी, यूरिया, डाइ-अमोनियम फॉस्फेट, पोषक तत्त्वों पर आधारित सब्सिडी (NBS) योजना।

मेन्स के लिये:

उर्वरक सब्सिडी से संबंधित मुद्दे।


चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिये कई उपायों को लागू किया है। इन प्रयासों के बावजूद यूरिया की खपत में वृद्धि हुई है, जिससे नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में कमी और उर्वरक उपयोग के अनुरूप फसल की पैदावार में गिरावट आई है।

संतुलित उर्वरता को बढ़ावा देने हेतु किये गए उपाय:

  • पहल:
  • किये गए उपायों का प्रभाव:
    • प्रारंभ में नीम कोटेड यूरिया के उपयोग से खपत में गिरावट आई, जिससे गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये यूरिया का उपयोग करना मुश्किल हो गया।
    • हालाँकि यह प्रवृत्ति वर्ष 2018-19 से उलट गई है। वर्ष 2022-23 में यूरिया की बिक्री वर्ष 2015-16 की तुलना में लगभग 5.1 मिलियन टन अधिक थी और अप्रैल 2010 में पोषक तत्त्वों पर आधारित सब्सिडी (NBS) व्यवस्था की शुरुआत से पहले वर्ष 2009-10 की तुलना में 9 मिलियन टन अधिक थी।

यूरिया की प्रमुखता के कारण:

  • अनुकूल विशेषताएँ: यूरिया सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला उर्वरक है क्योंकि यह नाइट्रोजन का एक समृद्ध स्रोत है, जो पौधों की वृद्धि के लिये एक आवश्यक पोषक तत्त्व है।
    • यूरिया किसानों के लिये आसानी से उपलब्ध और किफायती नाइट्रोजन स्रोत है, जो इसे एक लोकप्रिय विकल्प बनाता है।
    • इसे आसानी से स्टोर और ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है, जिससे यह किसानों एवं निर्माताओं दोनों के लिये एक सुविधाजनक विकल्प बन जाता है।
    • यूरिया भी एक बहुमुखी उर्वरक है जिसे विभिन्न प्रकार की फसलों और मिट्टी में उपयोग किया जा सकता है।
  • भारी सब्सिडी: भारत में यूरिया सबसे अधिक उत्पादित, आयातित, खपत की जाने वाली और भौतिक रूप से विनियमित उर्वरक है।
    • वर्ष 2009-10 से यूरिया की खपत में एक-तिहाई से अधिक की वृद्धि देखी गई है; यह मोटे तौर पर 4,830 रुपए से 5,628 रुपए प्रति टन के रूप में इसके अधिकतम खुदरा मूल्य में मात्र 16.5% की वृद्धि के कारण है।
    • DAP प्रति टन 27,000 रुपए और MOP प्रति टन 34,000 रुपए के मुकाबले यूरिया का वर्तमान प्रति टन मूल्य 4:2:1 NPK उपयोग अनुपात के साथ संगत नहीं है, जिसे आमतौर पर भारतीय मृदा के लिये आदर्श माना जाता है।

पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (Nutrient-based Subsidy- NBS) योजना:

  • लक्षित लाभार्थी:
    • NBS का उद्देश्य देश भर के किसानों को लाभान्वित करना है, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसान जो बाज़ार दरों पर उर्वरकों का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।
    • यह योजना किसानों को उनकी उर्वरक आवश्यकताओं के आधार पर सब्सिडी प्रदान करती है और सब्सिडी राशि सीधे उनके बैंक खातों में अंतरित कर दी जाती है।
  • फायदे:
    • यह मृदा की उर्वरता और फसल उत्पादकता में सुधार करने में मदद करता है।
    • यह रियायती दरों पर उर्वरक उपलब्ध कराकर किसानों के लिये कृषि की लागत कम करता है।
    • कृषि उपज की गुणवत्ता में सुधार आने से किसानों को बाज़ार में अपनी फसलों के लिये बेहतर कीमत प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
    • यह मृदा स्वास्थ्य के संरक्षण एवं उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में मदद करता है।
  • NBS की विफलता:
    • यूरिया को इस योजना से बाहर रखा गया है और इसलिये यह मूल्य नियंत्रण के अधीन रहती है। तकनीकी रूप से देखें तो अन्य उर्वरकों पर कोई मूल्य नियंत्रण नहीं है।
      • जिन अन्य उर्वरकों पर से नियंत्रण हटा लिया गया, उनकी कीमतें बढ़ गई हैं, जिससे किसान पहले की तुलना में अधिक यूरिया का उपयोग करने लगे हैं।
      • इससे उर्वरक असंतुलन और बिगड़ गया है।
    • DAP के मूल्य को नियंत्रित करने का कार्य फिर से शुरू किया गया है, कंपनियों को प्रति टन 27,000 रुपए से अधिक चार्ज करने की अनुमति नहीं है। इससे वर्ष 2022-23 में यूरिया और DAP दोनों की बिक्री में बढ़ोतरी हुई है।

असंतुलित उर्वरता के प्रभाव:

  • फसल की पैदावार और गुणवत्ता में कमी:
    • बहुत कम अथवा बहुत अधिक उर्वरक का उपयोग करने से फसल की पैदावार और गुणवत्ता में कमी आ सकती है जिसके परिणामस्वरूप किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।
  • मृदा क्षरण:
    • असंतुलित उर्वरक से मृदा में पोषक तत्त्वों का असंतुलन हो सकता है, जिससे मृदा का क्षरण, अवनयन एवं समय के साथ मृदा की उर्वरता में कमी हो सकती है।
  • पर्यावरण प्रदूषण:
    • उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से जल निकायों में अतिरिक्त पोषक तत्त्वों, जैसे नाइट्रोजन और फास्फोरस का निक्षालन (Leaching) हो सकता है, जिससे सुपोषण (Eutrophication), एल्गी ब्लूम एवं अन्य पर्यावरणीय समस्याएँ हो सकती हैं।
  • स्वास्थ्य संबंधी खतरा:
    • उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से फसलों में नाइट्रेट का संचय हो सकता है, जिनका अधिक मात्रा में सेवन करना मानव स्वास्थ्य हेतु हानिकारक हो सकता है।

आगे की राह

  • यूरिया को शामिल करते हुए NBS व्यवस्था का विस्तार:
    • NBS व्यवस्था से यूरिया के मौजूदा बहिष्करण से इसकी खपत में वृद्धि हुई है, जिससे उर्वरकों के असंतुलन की समस्या बढ़ गई है।
      • NBS व्यवस्था में यूरिया को शामिल करने से इसके संतुलित उपयोग को बढ़ावा मिलेगा और इसकी खपत कम होगी, जिससे किसानों हेतु खेती की लागत कम होगी, साथ ही फसल उत्पादकता में सुधार होगा।
  • वैकल्पिक उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहित करना:
    • जैविक और जैव-उर्वरक जैसे वैकल्पिक उर्वरकों का उपयोग, परिष्कृत उर्वरकों (जो असंतुलित उर्वरक हो सकता है) पर निर्भरता को कम करने में मदद कर सकता है,।
    • सब्सिडी, जागरूकता अभियान और क्षमता निर्माण के माध्यम से वैकल्पिक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने से मृदा के स्वास्थ्य में सुधार एवं पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • मृदा परीक्षण और संतुलित उर्वरता को बढ़ावा देना:
    • मृदा परीक्षण फसलों की पोषक तत्त्वों की आवश्यकताओं को निर्धारित करने में मदद कर सकता है, जिससे किसानों को संतुलित तरीके से उर्वरकों का प्रयोग करने में मदद मिल सकती है।
    • मृदा परीक्षण को बढ़ावा देने और इसके लिये सब्सिडी प्रदान करने से किसानों को उर्वरकों के संतुलित उपयोग की विधियों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे फसल की पैदावार एवं मृदा के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
  • अनियंत्रित उर्वरकों की कीमतों की निगरानी और विनियमन:
    • DAP जैसे नियंत्रित उर्वरकों की कीमतों को विनियमित करने से उनके अत्यधिक उपयोग को रोकने एवं उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
    • सरकार उर्वरकों की वहनीयता सुनिश्चित करने और उनके अत्यधिक उपयोग को रोकने हेतु विनियंत्रित उर्वरकों पर मूल्य नियंत्रण फिर से शुरू करने पर विचार कर सकती है।
  • सतत् उर्वरकों का अनुसंधान एवं विकास:
    • सतत् उर्वरकों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने से ऐसे उर्वरक विकसित करने में मदद मिल सकती है जो पर्यावरण के अनुकूल हों, उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा दें और फसल उत्पादकता में सुधार कर सकें।
    • सरकार निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के अतिरिक्त स्थायी उर्वरकों के अनुसंधान एवं विकास के लिये धन उपलब्ध कराएगी।
  • NUE (नाइट्रोजन उपयोग दक्षता) में सुधार:
    • NUE मुख्य रूप से यूरिया के माध्यम से लागू नाइट्रोजन के अनुपात को संदर्भित करता है जो वास्तव में फसलों की अधिक पैदावार के लिये उपयोग किया जाता है।
    • यह किसानों को कम यूरिया के साथ समान या अधिक अनाज की पैदावार करने में सक्षम करेगा।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

1. वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार संचालित है और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है।

2. अमोनिया जो यूरिया बनाने में काम आता है, प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है।

3. सल्फर जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये कच्चा माल है, तेल शोधन कारखानों का उपोत्पाद है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत सरकार कृषि में 'नीम अलेपित यूरिया (Neem-coated Urea)' के उपयोग को क्यों प्रोत्साहित करती है? (2016)

(a) मृदा में नीम तेल के निर्मुक्त होने से मृदा सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन यौगिकीकरण बढ़ाती है।
(b) नीम लेप, मृदा में यूरिया के घुलने की दर को धीमा कर देता है।
(c) नाइट्रस ऑक्साइड, जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है, फसल वाले खेतों से वायुमंडल में बिल्कुल भी विमुक्त नहीं होती है।
(d) विशेष फसलों के लिये यह एक अपतृणनाशी (वीडिसाइड) और एक उर्वरक का संयोजन है।

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


थिरुनेल्ली मंदिर

हाल ही में कला और सांस्कृतिक विरासत हेतु भारतीय राष्ट्रीय न्यास (Indian National Trust for Art and Cultural Heritage- INTACH) ने सरकार के समक्ष थिरुनेल्ली, केरल के श्री महाविष्णु मंदिर में स्थित 600 वर्ष पुरानी 'विलक्कुमाडोम (एक उत्तम कोटि की ग्रेनाइट संरचना)' के संरक्षण का प्रस्ताव रखा है।

चिंता का प्रमुख विषय:

  • उत्तम ग्रेनाइट से बनी 600 वर्ष पुरानी 'विलक्कुमाडोम संरचना, वायनाड ज़िले के थिरुनेल्ली में श्री महाविष्णु मंदिर में स्थित है।
  • मंदिर में चल रहे जीर्णोद्धार कार्य ने इसकी विरासत के संरक्षण को लेकर चिंता जताई है।
  • 15वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व की इस संरचना का एक समृद्ध इतिहास है और नवीनीकरण प्रक्रिया के दौरान इसके प्रमुख तत्त्वों पर उचित ध्यान नहीं दिया गया है।
  • चुट्टाम्बलम (मंदिर को ढकने वाली आयताकार संरचना) के ढहने तथा 'विलक्कुमाडोम भवन के संभावित ध्वस्त से विरासत का नुकसान हुआ है और इसका मूल्य एवं महत्त्व कम हुआ है जिसे भविष्य में भुला दिया जा सकता है या गलत समझा जा सकता है।
  • अधूरी संरचना एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक के रूप में मौजूद थी लेकिन इसे असंवेदनशील/अनुचित तरीके से फिर से तैयार किया गया है।
    • ऐसा कहा जाता है कि कूर्ग के राजा ने मंदिर के संरक्षक कोट्टायम राजा की अनुमति के बिना काम शुरू किया था। बाद में कोट्टायम राजा ने निर्माण कार्य का आदेश दिया और तबसे संरचना मौजूद है।

थिरुनेल्ली मंदिर:

  • परिचय:
    • थिरुनेल्ली मंदिर, जिसे अमलका या सिद्ध मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, केरल के वायनाड ज़िले में एक विष्णु मंदिर है।
    • इस मंदिर का नाम एक घाटी में एक आँवले के पेड़ पर आराम कर रहे भगवान विष्णु की मूर्ति से पड़ा है, जिसे भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए खोजा था।
  • थिरुनेल्ली मंदिर की वास्तुकला:
    • थिरुनेल्ली मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक केरल शैली का अनुसरण करती है। मंदिर में एक आंतरिक गर्भगृह है, जिसकी छत की संरचना टाइल से बनी हुई है और इसके चारों ओर एक खुला प्रांगण है।
    • मंदिर के पूर्व प्रवेश द्वार को ग्रेनाइट के दीपस्तंभ से सजाया गया है। मंदिर की बाहरी दीवार ग्रेनाइट के खंभों से बनी है और यह कक्ष शैली में काटे गए हैं, जो सामान्यतः केरल में नहीं देखे जाते हैं।

सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिये प्रयास:

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ): 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय संविधान में निर्धारित नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों में से है/हैं? (2012)

  1. हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को संरक्षित करना।
  2. सामाजिक अन्याय से कमज़ोर वर्गों की रक्षा करना।
  3. वैज्ञानिक सोच और जाँच की भावना का विकास करना।
  4. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू


विश्व मलेरिया दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

मलेरिया - कारण, लक्षण, वैक्सीन, मलेरिया को नियंत्रित करने के प्रयास

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, मलेरिया और इसका उन्मूलन

चर्चा में क्यों?

विश्व मलेरिया दिवस प्रत्येक वर्ष 25 अप्रैल को मनाया जाता है।

  • इसकी स्थापना विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) द्वारा वर्ष 2007 में मलेरिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु की गई थी।
  • विश्व मलेरिया दिवस 2023 की थीम "शून्य मलेरिया का समय: निवेश, नवाचार, कार्यान्वयन” (Time to deliver zero malaria: invest, innovate, implement) है।

मलेरिया:

  • परिचय:
    • मलेरिया प्लाज़्मोडियम परजीवी के कारण होने वाली एक जानलेवा बीमारी है।
      • यह परजीवी संक्रमित मादा एनोफिलीज़ मच्छर के काटने से मनुष्यों में फैलता है।
    • मलेरिया बीमारी सामान्यतः उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण अमेरिका सहित दुनिया के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
      • जबकि प्लाज़्मोडियम फाल्सीपेरम के कारण अधिक मौतें होती हैं, प्लाज़्मोडियम विवैक्स सभी मलेरिया प्रजातियों में सबसे व्यापक है।
  • लक्षण:
    • एक बार मानव शरीर में प्रवेश हो जाने के बाद ये परजीवी यकृत में गुणात्मक रूप से बढ़ते हैं और फिर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं, जिससे बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द एवं थकान जैसी समस्याएँ होने लगती हैं।
    • गंभीर मामलों में मलेरिया अंग विफलता, कोमा और मृत्यु का कारण बन सकता है।
  • वैक्सीन:
    • अब तक किसी भी मलेरिया वैक्सीन ने WHO द्वारा निर्धारित 75% की बेंचमार्क प्रभावकारिता नहीं दिखाई है। फिर भी WHO ने मलेरिया नियंत्रण और रोकथाम की तात्कालिकता को समझते हुए उच्च संचरण वाले अफ्रीकी देशों में RTS,S नामक पहले मलेरिया वैक्सीन के उपयोग की अनुमति दी है
      • इसकी प्रभावकारिता 30-40 प्रतिशत के बीच कहीं अपेक्षाकृत कम है।
      • यह टीका ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GSK), बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन आदि कई संगठनों के सहयोगात्मक प्रयास से विकसित किया गया है।
    • भारत में इस वैक्सीन को बनाने के लिये भारत बायोटेक को लाइसेंस दिया गया है।
      • RTS,S वैक्सीन की तरह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने R21 नामक एक वैक्सीन विकसित की है जिसे अभी WHO की मंजूरी मिलना बाकी है।
        • इस वैक्सीन को घाना और नाइजीरिया ने अपने देशों में इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है।
        • इसका निर्माण भी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा किया जा रहा है।
  • मलेरिया के मामले:
    • विश्व मलेरिया रिपोर्ट वर्ष 2022 के अनुसार, इस बीमारी ने वर्ष 2021 में अनुमानित 6,19,000 लोगों की जान ली।
    • रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत ने पिछले 10 वर्षों में मलेरिया के मामलों और मौतों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की है।

मलेरिया को रोकने के प्रयास:

  • वैश्विक स्तर पर:
    • वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम:
      • यह WHO द्वारा शुरू किया गया था और इसका उद्देश्य वैश्विक प्रयासों के समन्वय से मलेरिया को नियंत्रित तथा खत्म करना है।
      • इसका कार्यान्वयन "मलेरिया वर्ष 2016-2030 के लिये वैश्विक तकनीकी रणनीति" द्वारा निर्देशित है।
        • रणनीति का लक्ष्य मलेरिया मामलों और मृत्यु दर को वर्ष 2020 तक कम-से-कम 40 प्रतिशत, वर्ष 2025 तक कम-से-कम 75 प्रतिशत और वर्ष 2015 की आधार रेखा के मुकाबले वर्ष 2030 तक कम-से-कम 90 प्रतिशत कम करना है।
    • मलेरिया उन्मूलन हेतु पहल:
      • इसे बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा लॉन्च किया गया था।
      • यह पहल रणनीतियों के संयोजन के माध्यम से दुनिया के कुछ क्षेत्रों में मलेरिया को खत्म करने पर केंद्रित है, जिसमें प्रभावी उपचारों तक पहुँच बढ़ाना, मच्छरों की आबादी को कम करना और बीमारी से निपटने के लिये नए उपकरण और तकनीक विकसित करना शामिल है।
    • ई-2025 पहल:
      • वर्ष 2021 में WHO ने वर्ष 2025 तक 25 चिह्नित देशों में मलेरिया के संचरण को रोकने के लिये E-2025 पहल शुरू की है।
  • भारत के प्रयास:
    • राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम: यह मलेरिया, जापानी एन्सेफेलाइटिस (JE), डेंगू, चिकनगुनिया, कालाज़ार और हाथीपाँव रोग जैसे वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये एक व्यापक कार्यक्रम है।
    • राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (NMCP): वर्ष 1953 में शुरू किया गया यह तीन प्रमुख गतिविधियों पर केंद्रित है:
      • DDT के साथ कीटनाशक अवशिष्ट स्प्रे (IRS)
      • मामलों की जाँच और निगरानी
      • रोगियों का उपचार
    • मलेरिया उन्मूलन 2016-2030 के लिये राष्ट्रीय ढाँचा:
      • मलेरिया उन्मूलन हेतु वर्ष 2016-2030 (GTS) के लिये WHO की वैश्विक तकनीकी रणनीति के आधार पर NFME के लक्ष्य हैं:
        • वर्ष 2030 तक पूरे देश से मलेरिया (शून्य स्वदेशी मामले) को खत्म करना।
        • उन क्षेत्रों में मलेरिया-मुक्त स्थिति बनाए रखना जहाँ मलेरिया संचरण बाधित हो गया है और मलेरिया के पुन: संचरण को रोकना।
    • 'हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट' (High Burden to High Impact-HBHI) पहल का कार्यान्वयन जुलाई 2019 में चार राज्यों (पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) में शुरू किया गया था।
      • उच्च दबाव वाले क्षेत्रों में लंबे समय तक चलने वाली कीटनाशक युक्त मच्छरदानियों (LLINs) के वितरण से इन 4 अति उच्च स्थानिक राज्यों में मलेरिया के प्रसार में कमी आई है।
    • मलेरिया एलिमिनेशन रिसर्च एलायंस-इंडिया (MERA-India): इसकी स्थापना भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा मलेरिया नियंत्रण पर काम करने वाले भागीदारों के समूह के साथ की गई है।

निष्कर्ष:

भारत का उद्देश्य वर्ष 2027 तक मलेरिया मुक्त होना और वर्ष 2030 तक इस बीमारी को पूरी तरह खत्म करना है। विभिन्न उपायों के माध्यम से भारत ने वर्ष 2018 और 2022 के बीच इस बीमारी को 66% तक कम करके मलेरिया के मामलों में कमी लाने में शानदार प्रगति की है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के प्रति मलेरिया परजीवी के व्यापक प्रतिरोध ने मलेरिया से निपटने हेतु टीका विकसित करने के प्रयासों को प्रोत्साहित किया है। प्रभावी मलेरिया टीका विकसित करने में क्या कठिनाइयाँ हैं? (2010)

(a) मलेरिया प्लाज़्मोडियम की कई प्रजातियों के कारण होता है।
(b) प्राकृतिक संक्रमण के दौरान मनुष्य में मलेरिया के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होती है।
(c) टीका केवल बैक्टीरिया के विरुद्ध ही विकसित किया जा सकता है।
(d) मनुष्य केवल एक मध्यवर्ती मेज़बान होता है, न कि निश्चित मेज़बान।

उत्तर: b

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC), अनुच्छेद 22, अनुच्छेद 23, निवारक निरोध, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार।

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 और इसकी संरचना, कार्य और निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक अभियुक्त की उस याचिका पर सुनवाई की जिसमें उसने अपने विरुद्ध बिहार में दर्ज प्राथमिकियों को तमिलनाडु की प्राथमिकी से जोड़ने की मांग की थी।

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980:

  • विषय:
    • NSA सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के लिये वर्ष 1980 में बनाया गया एक निवारक निरोध कानून है।
    • निवारक निरोध कानून भविष्य में किसी व्यक्ति को अपराध करने से रोकने और/या भविष्य में अभियोजन से बचने के लिये उसे हिरासत में लेना है।
      • संविधान का अनुच्छेद 22 (3) (b) राज्य को सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के कारणों से निवारक निरोध और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध की अनुमति देता है।
      • अनुच्छेद 22(4) में कहा गया है कि निवारक नज़रबंदी का प्रावधान करने वाला कोई भी कानून किसी व्यक्ति को तीन महीने से अधिक की अवधि के लिये हिरासत में रखने का अधिकार नहीं देगा।
  • सरकार की शक्तियाँ:
    • NSA केंद्र या राज्य सरकार को अधिकार देता है कि वह किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रतिकूल किसी भी तरह से कार्य करने से रोकने के लिये उसे हिरासत में ले सकता है।
    • सरकार किसी व्यक्ति को सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने से रोकने या समुदाय के लिये आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के रखरखाव के लिये भी हिरासत में ले सकती है।
  • कारावास की अवधि:
    • इसके तहत हिरासत में रखने की अधिकतम अवधि 12 महीने है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना:
    • यह अधिनियम एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के गठन का भी प्रावधान करता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों पर प्रधानमंत्री को सलाह देती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC):

  • परिचय:
    • भारत में NSC एक उच्च स्तरीय निकाय है जो भारत के प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय सुरक्षा, सामरिक नीति और रक्षा से संबंधित मामलों पर सलाह देता है।
      • ‘राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद’ (NSC) एक त्रिस्तरीय संगठन है, जो सामरिक चिंता के राजनीतिक, आर्थिक, ऊर्जा और सुरक्षा मुद्दों को देखता है।
    • प्रधानमंत्री NSC का अध्यक्ष होता है।
    • इसका गठन वर्ष 1998 में किया गया था और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श करता है।
  • सदस्य:
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA)
    • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS)
    • उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
    • रक्षा मंत्री
    • विदेश मंत्री
    • गृह मंत्री
    • वित्त मंत्री
    • नीति आयोग का उपाध्यक्ष
  • कार्य:
    • NSC भारत के प्रधानमंत्री के कार्यकारी कार्यालय के तहत संचालित है, सरकार की कार्यकारी शाखा और खुफिया सेवाओं के बीच संपर्क सुनिश्चित करता है एवं खुफिया तथा सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर नेतृत्त्व को सलाह देता है।
      • यह देश की सुरक्षा स्थिति की नियमित समीक्षा भी करता है और आवश्यकता पड़ने पर नीतिगत बदलावों पर प्रधानमंत्री को सिफारिशें करता है।
    • यह सशस्त्र बलों, खुफिया एजेंसियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों सहित देश की सुरक्षा में शामिल विभिन्न एजेंसियों की गतिविधियों का समन्वय करता है।
    • यह उभरते सुरक्षा खतरों का विश्लेषण कर सरकार को प्रारंभिक चेतावनी देता है और विभिन्न आकस्मिक सुरक्षा संबंधी योजनाएँ तैयार करता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की आलोचना:

  • शक्ति का दुरुपयोग: NSA की प्रमुख चुनौतियों में से एक अधिकारियों द्वारा इसका संभावित दुरुपयोग है। कानून सरकार को एक वर्ष तक बिना मुकदमे के व्यक्तियों को हिरासत में लेने की शक्ति देता है।
    • असहमति को दबाने या राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिये अधिकारियों द्वारा इस शक्ति का आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: यदि NSA का दुरुपयोग किया जाता है, तो मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
  • पारदर्शिता की कमी: NSA के साथ एक और चुनौती निरोध/कारावास प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है।
    • बंदियों को अक्सर उनके कारावास के कारणों के बारे में सूचित नहीं किया जाता है और कारावास आदेशों को सार्वजनिक नहीं किया जाता है। पारदर्शिता की इस कमी से अधिकारियों द्वारा शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है।
  • कानूनी चुनौतियाँ: आलोचकों ने तर्क दिया है कि कानून असंवैधानिक है और भारतीय संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी NSA के तहत जारी किये गए कई हिरासत आदेशों को रद्द कर दिया है।
  • सीमित प्रभावशीलता: हालाँकि NSA का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु खतरों को रोकना है, इसके बावजूद इसकी प्रभावशीलता सीमित है।
  • साथ ही यह भी ध्यान देने की बात है कि बिना मुकदमा चलाए किसी व्यक्तियों को हिरासत में लेने से खतरे को रोकने के बजाय कुछ मामलों में यह व्यक्तियों को कट्टरपंथी बनाकर समस्या को बढ़ा भी सकता है।

आगे की राह

  • पारदर्शिता सुनिश्चित करना: हिरासत में लिये गए लोगों को उनके कारावास के कारणों की जानकारी देकर और निरोध आदेशों को सार्वजनिक करके सरकार को निरोध प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिये। इससे अधिकारियों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में मदद मिलेगी।
  • सख्त कार्यान्वयन: अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि NSA को कानून के अनुसार, सख्ती से लागू किया जाए और राजनीतिक विरोधियों को लक्षित करने या असहमति को दबाने हेतु इसका दुरुपयोग न किया जाए।
  • न्यायिक निरीक्षण को मज़बूत करना: NSA के तहत निवारक निरोध आदेशों के न्यायिक निरीक्षण को यह सुनिश्चित करने हेतु मज़बूत किया जाना चाहिये कि वे मनमाने या असंवैधानिक नहीं हैं।
  • खुफिया जानकारी एकत्र करने पर ध्यान केंद्रित करना: सरकार को खुफिया जानकारी एकत्र करने और अन्य उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो कि निवारक निरोध का सहारा लिये बिना राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु खतरों को रोकने में मदद कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस