प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11अप्रैल, 2023

  • 11 Apr 2023
  • 8 min read

3D प्रिंटिंग  

बेंगलुरु का उल्सूर बाज़ार डाकघर 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करके निर्मित भारत का पहला डाकघर बनने के लिये तैयार है। त्रि-आयामी मुद्रण, जिसे एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के रूप में भी जाना जाता है, एक क्रांतिकारी तकनीक है जिसका निर्माण उद्योग में तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है। 3D प्रिंटिंग के साथ, कंप्यूटर एडेड डिज़ाइन (CAD) सॉफ्टवेयर का उपयोग करके जटिल और अनुकूलित डिज़ाइन का निर्माण संभव है। 

इस तकनीक का उपयोग किसी एक भाग, संरचना और यहाँ तक कि पूरी इमारतों को बनाने के लिये किया जा सकता है। निर्माण में 3D प्रिंटिंग के मुख्य लाभों में से एक निर्माण समय और लागत को कम करने की क्षमता है। व्यापक संरचना (संरचनात्मक आकृतियों में कंक्रीट बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाले मोल्ड), पाइट और श्रम की आवश्यकता को समाप्त करके, निर्माण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जा सकता है और महत्त्वपूर्ण बचत की जा सकती है। इसके अलावा, 3D प्रिंटिंग लाइटर और अधिक टिकाऊ संरचनाओं के निर्माण की अनुमति देती है जो पर्यावरण के अनुकूल भी हैं। इसके कई लाभों के बावजूद, अभी भी निर्माण में 3D प्रिंटिंग से जुड़ी कुछ चुनौतियाँ हैं। मुख्य चुनौतियों में से एक प्रिंटर का सीमित आकार है, जिससे बड़ी इमारतों का निर्माण करना मुश्किल हो जाता है। इसके अतिरिक्त, 3D प्रिंटिंग के लिये उपयोग की जाने वाली सामग्री अभी भी सीमित है, जो कि बनाई जा सकने वाली संरचनाओं की विविधता को सीमित करती है।

और पढ़े: एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी के लिये राष्ट्रीय रणनीति

तमिलनाडु विधानसभा द्वारा विधेयकों की स्वीकृति हेतु समय सीमा के निर्धारण का आग्रह 

तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें केंद्र सरकार और राष्ट्रपति से आग्रह किया गया है कि सदन में लाए गए विधेयकों को राज्यपालों द्वारा अपनी सहमति देने के लिये एक समय सीमा निर्धारित की जाए। यह प्रस्ताव राज्यपाल की इस टिप्पणी के बाद आया जिसमें इन्होंने कहा कि रोके जाने वाले विधेयकों को "डेड" माना जाना चाहिये।

संविधान के अनुसार विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयक को राज्यपाल अस्वीकार नहीं कर सकता है। वह अपनी आपत्तियों या टिप्पणियों के साथ सरकार को विधेयक वापस कर सकता है और यदि विधानसभा इसे दूसरी बार मंज़ूरी देती है तो वह या तो अपनी सहमति दे सकता है या राष्ट्रपति के विचार के लिये विधेयक को सुरक्षित रख सकता है। वह विधेयक को अपने पास भी रख सकता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय  द्वारा परिभाषित किया गया है। विधेयक को अपने पास रख लेने की स्थिति में यह मृत हो जाता है। हालाँकि संविधान में विधेयक को मंज़ूरी देने हेतु राज्यपाल के लिये समय सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है।

और पढ़ें:  

अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र 

हैदराबाद में बोवेनपल्ली सब्जी बाज़ार ने एक अभिनव अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू की है। बाज़ार में प्रतिदिन लगभग 10 टन अपशिष्ट इकट्ठा होता है, जिसे अब अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र के माध्यम से जैव-विद्युत, बायोगैस और जैव-खाद में परिवर्तित किया जाता है। बिना बिकी और सड़ी हुई सब्जियों को काट दिया जाता है और उसकी लुगदी बना दिया जाता है, जो बायोगैस का उत्पादन करने के लिये एनारोबिक डाइजेस्टर से गुजरता है। बायोगैस को गुब्बारों में एकत्र और संग्रहीत किया जाता है तथा बायोगैस जनरेटर के माध्यम से भोजन पकाने एवं बाज़ार सुविधाओं को उर्जा प्रदान करने में उपयोग किया जाता है। जैव-खाद का उत्पादन भी प्रक्रिया के उप-उत्पाद के रूप में किया जाता है। उत्पन्न अपशिष्ट, जो पहले भराव- क्षेत्र (लैंडफिल) में समाप्त होता था, अब प्रतिदिन लगभग 500 यूनिट विद्युत और 30 किलोग्राम जैव ईंधन उत्पन्न करने हेतु उपयोग किया जाता है। 

अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र महिलाओं हेतु विभिन्न भूमिकाओं में कार्य करने के अवसर प्रदान करके उनके लिये रोज़गार भी सृजित करता है। संयंत्र जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित है तथा CSIR-IICT के कृषि विपणन विभाग, तेलंगाना के मार्गदर्शन एवं पेटेंट तकनीक के तहत स्थापित किया गया है। अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र न केवल अपशिष्ट प्रबंधन समस्या का एक अभिनव समाधान है, बल्कि सतत् विकास की दिशा में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है।  

और पढ़ें…….ऊर्जा की बर्बादी 

रामकृष्ण मठ की 125वीं वर्षगाँठ 

भारतीय प्रधान मंत्री ने हाल ही में चेन्नई में रामकृष्ण मठ संस्थान की 125 वीं वर्षगाँठ समारोह में चेन्नई में विवेकानंद हाउस का दौरा किया। रामकृष्ण मठ एक विश्वव्यापी, गैर-राजनीतिक, गैर-सांप्रदायिक आध्यात्मिक संगठन है जो सौ से अधिक वर्ष से विभिन्न प्रकार के मानवतावादी, त्याग और सेवा के आदर्शों से प्रेरित और सामाजिक सेवा गतिविधियों में लगा हुआ है। इस मठ की सहायता से बिना किसी जातिगत, धार्मिक अथवा नस्लवादी भेदभाव के लाखों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की सेवा की जाती है, क्योंकि वे उन्हें ईश्वर के समान मानते हैं। इन संगठनों को अस्तित्त्व में लाने का श्रेय श्री रामकृष्ण (1836-1886) को जाता है, जो 19वीं सदी के बंगाल के महान संत थे तथा उन्हें आधुनिक युग का पैगंबर माना जाता है। वे त्याग, ध्यान और पारंपरिक तरीकों से धार्मिक मुक्ति की मांग करते हैं। वह एक संत व्यक्ति थे जिन्होंने सभी धर्मों की मौलिक एकता की पहचान की और इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर और मोक्ष प्राप्ति के कई मार्ग हैं और मनुष्य की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। रामकृष्ण परमहंस का संदेश रामकृष्ण आंदोलन का आधार बना। साथ ही उनके विचारों ने श्री रामकृष्ण के प्रमुख शिष्य, स्वामी विवेकानंद (1863-1902) का भी मार्ग प्रशस्त किया, जिन्हें वर्तमान युग के अग्रणी विचारकों और धार्मिक नेताओं तथा आधुनिक विश्व को दिशा प्रदान करने वाला माना जाता है।

और पढ़ें…रामकृष्ण मिशन के 'जागृति' कार्यक्रम

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2