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एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी के लिये राष्ट्रीय रणनीति

  • 25 Feb 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

3डी प्रिंटिंग और इसका उपयोग'।

मेन्स के लिये:

एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी के लिये राष्ट्रीय रणनीति, 3डी प्रिंटिंग, 'मेक इन इंडिया', आत्मनिर्भर भारत अभियान।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी (Additive Manufacturing Policy) के लिये राष्ट्रीय रणनीति की घोषणा की गई है।

प्रमुख बिंदु

नीति की मुख्य विशेषताएंँ:

  • इस नीति का लक्ष्य अगले तीन वर्षों के भीतर वैश्विक योज्य निर्माण में भारत की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 5% करना और सकल घरेलू उत्पाद में 1 बिलियन अमेंरिकी डाॅलर की हिस्सेदारी करना है।
  • इसके अलावा इसका उद्देश्य सामग्री, मशीन और सॉफ्टवेयर के लिये 50 भारत विशिष्ट तकनीकों को विकसित करना, एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के लिये 100 नए स्टार्टअप, 500 नए उत्पाद और कम-से-कम 1 लाख नए कुशल श्रमिकों को प्रशिक्षित करना है।
  • यह नीति 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के सिद्धांतों के अनुरूप है जो उत्पादन प्रतिमान में तकनीकी परिवर्तन के माध्यम से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगी।

3डी प्रिंटिंग:

  • 3डी प्रिंटिंग के बारे में: 3डी प्रिंटिंग को एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के रूप में भी जाना जाता है जो प्लास्टिक और धातुओं जैसी सामग्रियों का उपयोग कर कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइन पर परिकल्पित उत्पादों को वास्तविक त्रि-आयामी वस्तुओं में परिवर्तित करती है।
    • 3D प्रिंटिंग सबट्रेक्टिव मैन्युफैक्चरिंग के विपरीत है जिसका उपयोग धातु या प्लास्टिक के एक टुकड़े को काटने/खोखला करने के लिये किया जाता है, जैसे- एक मिलिंग मशीन।
  • तकनीकियों का प्रतिच्छेदन: एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग डिजिटल विनिर्माण की अगली पीढ़ी है जो कंप्यूटिंग इलेक्ट्रॉनिक्स, इमेजिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) के उभरते क्षेत्रों, पैटर्न की पहचान के प्रतिच्छेदन की अनुमति देती है तथा इससे बौद्धिक संपदा और निर्यात के अवसर पैदा होंगे।
  • संभावित प्रभाव: एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (Additive Manufacturing) में डिजिटल प्रक्रियाओं, संचार, इमेजिंग, आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग के माध्यम से भारत के विनिर्माण और औद्योगिक उत्पादन परिदृश्य में क्राँति लाने की अपार संभावनाएँ हैं।
    • इस क्षेत्र में स्टार्टअप्स की अपार संभावनाएँ है।
  • उपयोग: 3डी प्रिंटिंग का पारंपरिक रूप से प्रोटोटाइपिंग (Prototyping) के लिये उपयोग किया जाता रहा है। 3D प्रिंटिंग में कृत्रिम उपकरण, स्टेंट, डेंटल क्राउन, ऑटोमोबाइल के पुर्जे और उपभोक्ता वस्तुएँ आदि बनाने की बहुत गुंज़ाइश है।

भारत के लिये संभावनाएँ:

  • बड़ी पूंजी निवेश की आवश्यकता को खत्म करना: इससे संबंधित मशीनें सस्ती होती हैं, साथ ही इन्वेंट्री के लिये अधिक  जगह की ज़रूरत नहीं होती है।
    • इस प्रकार जम्प-स्टार्टिंग मैन्युफैक्चरिंग को बड़ी पूंजी की आवश्यकता हेतु भारी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता है, साथ ही पारंपरिक छोटे एवं मध्यम उद्यमों को आसानी से अनुकूलित कर उच्च प्रौद्योगिकी निर्माण की ओर ले जाया जा सकता है।
  • भारत की आईटी शक्ति का लाभ उठाना: मौजूदा समय में भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग काफी बेहतर स्थिति में है और कनेक्टिविटी बढ़ाने की योजना 'डिजिटल इंडिया' के हिस्से के रूप में अच्छी तरह से परिचालित हो रही है।
    • यह छोटे शहरों में एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग सुविधाओं के निर्माण और प्रमुख शहरों के बाहर औद्योगिक विकास को बढ़ावा देगा।
  • समान गुणवत्ता मानक: एक समान उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखना कहीं अधिक आसान है, क्योंकि पूरी प्रणाली सामान रूप से कार्य करती है और किसी भी प्रकार की असेंबलिंग की आवश्यकता नहीं होती है।

संबद्ध चुनौतियाँ:

  • मानकों का अभाव: चूँकि 3D प्रिंटिंग एक विशिष्ट और नया डोमेन है, इसलिये कोई वैश्विक योग्यता एवं प्रमाणन मानदंड मौजूद नहीं हैं।
  • प्रयोग संबंधी असमंजसता: एक अन्य और महत्त्वपूर्ण चुनौती अलग-अलग उद्योगों एवं सरकारी मंत्रालयों को अपने संबंधित क्षेत्र में एक नई तकनीक के तौर पर 3D प्रिंटिंग को अपनाने हेतु प्रेरित करना है, क्योंकि इस नई तकनीक को आम लोगों के बीच जगह बनाने में समय लगेगा।
  • रोज़गार में कमी का खतरा: कई जानकार यह कहते हुए इस तकनीक का विरोध करते हैं कि इससे चिकित्सा उपकरण या एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अत्यधिक कुशल श्रमिकों की नौकरियों पर खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
  • उच्च लागत: यद्यपि इस तकनीक में प्रिंटिंग की लागत काफी कम होती है, किंतु एक 3D प्रिंटर बनाने हेतु प्रयोग होने वाले उपकरणों की लागत काफी अधिक होती है। इसके अलावा इस प्रकार के उत्पादों की गुणवत्ता और वारंटी भी एक चिंता का विषय है, जिसके कारण कई कंपनियाँ उत्पादन के लिये 3D प्रिंटिंग के प्रयोग में संकोच करती हैं।
  • क्षेत्र विशिष्ट चुनौतियाँ: भारत समेत संपूर्ण विश्व में 3D प्रिंटिंग उत्पादों का सबसे बड़ा उपभोक्ता मोटर वाहन उद्योग है, जो कि वर्तमान में BS-VI उत्सर्जन मानकों और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे बदलावों का सामना कर रहा है। इसकी वजह से नए वाहनों के निर्माण की गति धीमी हो गई है, इसलिये 3D प्रिंटिंग उत्पादों की मांग भी काफी कम हो गई है।

आगे की राह

  • शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देना: हमारे प्रमुख इंजीनियरिंग कालेजों में विनिर्माण मशीनों और विधियों पर अनुसंधान में तेज़ी लाने और उत्पाद डिज़ाइन केंद्रों के गठन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ताकि उत्पादों को भारतीय पर्यावरण और उपभोक्ताओं के अनुरूप बनाया जा सके।
  • सरकारी सहायता की आवश्यकता: छोटे शहरों में विनिर्माण को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिये सरकारी सहायता की आवश्यकता है और आईटी उद्योग को ऐसे प्लेटफॉर्म एवं मार्केटप्लेस बनाने पर काम करने की आवश्यकता है जो उपभोक्ता मांगों, उत्पाद डिज़ाइनरों व निर्माताओं को एक सहज तरीके से जोड़ता हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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