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डेली न्यूज़

  • 25 Apr, 2023
  • 57 min read
शासन व्यवस्था

लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक 2023

प्रिलिम्स के लिये:

लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (LPI), राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP), पीएम गति शक्ति पहल।

मेन्स के लिये:

पीएम गति शक्ति, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति का महत्त्व, आर्थिक विकास के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

विश्व बैंक द्वारा जारी किये गए लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक (LPI) 2023 में 139 देशों के सूचकांक में भारत अब 38वें स्थान पर है।

  • वर्ष 2018 और 2014 में भारत क्रमशः 44वें और 54वें स्थान पर था। अतः प्रगति के संदर्भ में वर्तमान में भारत की रैंक काफी बेहतर है।
  • इससे पहले वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने लॉजिस्टिक्स ईज़ अक्रॉस डिफरेंट स्टेट्स (LEADS) रिपोर्ट 2022 जारी की थी।

लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक:

  • LPI विश्व बैंक समूह द्वारा विकसित एक इंटरैक्टिव बेंचमार्किंग टूल है।
    • यह देशों को व्यापार लॉजिस्टिक के प्रदर्शन में आने वाली चुनौतियों और अवसरों की पहचान करने में मदद करता है।
  • यह विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला कड़ियों और इसे सक्षम करने वाले मूलभूत घटकों को स्थापित करने की सुलभता का आकलन करता है। लॉजिस्टिक की प्रभावशीलता का आकलन 6 कारकों के आधार पर किया जाता है:
    • सीमा शुल्क प्रदर्शन
    • आधारभूत संरचना की गुणवत्ता
    • शिपमेंट की सुलभ व्यवस्था
    • लॉजिस्टिक सेवाओं की गुणवत्ता
    • प्रेषित वस्तु की ट्रैकिंग और अनुरेखण
    • शिपमेंट की समयबद्धता
  • विश्व बैंक ने वर्ष 2010 से 2018 तक प्रत्येक दो वर्ष में LPI जारी किया, जिसमें कोविड-19 महामारी और सूचकांक पद्धति में संशोधन के कारण वर्ष 2020 में देरी हुई। रिपोर्ट अंततः वर्ष 2023 में प्रकाशित की गई।
    • पहली बार LPI में 2023 शिपमेंट पर नज़र रखने वाले बड़े डेटाबेस से उत्पन्न मेट्रिक्स का उपयोग करके व्यापार की गति का विश्लेषण किया गया है, जिससे 139 देशों में तुलना की जा सकती है।

भारत द्वारा बेहतर लॉजिस्टिक प्रदर्शन हेतु अपनाई गई नीति:

  • नीतिगत हस्तक्षेप:
    • PM गति शक्ति पहल: अक्तूबर 2021 में सरकार ने PM गति शक्ति पहल की घोषणा की, जो मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी हेतु एक राष्ट्रीय मास्टर प्लान है।
      • इस पहल का उद्देश्य लॉजिस्टिक लागत को कम करना और वर्ष 2024-25 तक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
    • राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति (National Logistics Policy- NLP): प्रधानमंत्री ने वर्ष 2022 में राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति (NLP) की शुरुआत की, ताकि अंतिम छोर तक समयबद्ध वितरण, परिवहन संबंधी चुनौतियों का अंत, विनिर्माण क्षेत्र हेतु समय और धन की बचत एवं लॉजिस्टिक क्षेत्र में वांछित गति सुनिश्चित की जा सके।
    • ये नीतिगत हस्तक्षेप लाभदायक हैं, जिन्हें LPI और इसके अन्य मापदंडों में भारत की निरंतर प्रगति में देखी जा सकती है।
  • बुनियादी ढाँचे में सुधार:
    • LPI रिपोर्ट के अनुसार, भारत का बुनियादी ढाँचा स्कोर वर्ष 2018 में 52वें स्थान से पाँच स्थान बढ़कर वर्ष 2023 में 47वें स्थान पर पहुँच गया।
    • सरकार ने व्यापार से संबंधित सॉफ्ट और हार्ड इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश किया है जो दोनों तटों पर स्थित पोर्ट गेटवे को देश के आंतरिक क्षेत्रों में स्थित प्रमुख आर्थिक केंद्रों से जोड़ता है।
      • इस निवेश से भारत को लाभ हुआ है और अंतर्राष्ट्रीय परिवहन में भारत वर्ष 2018 के 44वें स्थान से वर्ष 2023 में 22वें स्थान पर पहुँच गया है।
  • प्रौद्योगिकी की भूमिका:
    • भारत की रसद आपूर्ति के सुधार में प्रौद्योगिकी एक महत्त्वपूर्ण घटक रही है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत सरकार ने एक आपूर्ति शृंखला दृश्यता मंच लागू किया है, जिसने आपूर्ति में लगने वाले अधिक समय में उल्लेखनीय कमी लाने में योगदान दिया है।
      • NICDC लॉजिस्टिक्स डेटा सर्विसेज़ लिमिटेड कंटेनरों पर रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन टैग लागू करता है जिससे रसद आपूर्ति शृंखला के दौरान एंड-टू-एंड ट्रैकिंग की जाती है।
    • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण के कारण भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ विकसित देशों को पीछे छोड़ रही हैं।
  • ड्वेल टाइम में कमी:
    • ड्वेल टाइम यानी जहाज़ किसी विशिष्ट बंदरगाह या टर्मिनल पर कितना समय व्यतीत करता है। यह उस समय को भी संदर्भित करता है जो एक कंटेनर या कार्गो को जहाज़ पर लादे जाने से पहले या जहाज़ से उतारने के बाद एक बंदरगाह या टर्मिनल पर ठहराव में व्यतीत होता है।
      • भारत का बहुत कम ड्वेल टाइम (2.6 दिन) इस बात का एक उदाहरण है कि कैसे देश ने अपनी आपूर्ति के प्रदर्शन में सुधार किया है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, भारत और सिंगापुर के लिये मई एवं अक्तूबर 2022 के बीच कंटेनरों के औसत ठहराव का समय 3 दिन था, जो कि कुछ औद्योगिक देशों की तुलना में काफी बेहतर है।
      • अमेरिका के लिये ठहराव का समय 7 दिन था और जर्मनी हेतु यह 10 दिन था।
    • कार्गो ट्रैकिंग की शुरुआत के साथ विशाखापत्तनम के पूर्वी बंदरगाह में ठहराव का समय वर्ष 2015 में 32.4 दिनों से घटकर वर्ष 2019 में 5.3 दिन हो गया।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के आलोक में चर्चा कीजिये। (वर्ष 2021)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

यूरोपीय संघ ने क्रिप्टो विनियमन हेतु MiCA की शुरुआत की

प्रिलिम्स के लिये:

क्रिप्टोकरेंसी, वर्चुअल डिजिटल एसेट्स, बिटकॉइन

मेन्स के लिये:

क्रिप्टोकरेंसी बाज़ार में नियामक चुनौतियाँ, क्रिप्टो करेंसी एवं अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव, क्रिप्टोकरेंसी और मनी लॉन्ड्रिंग, क्रिप्टो के प्रति भारत का दृष्टिकोण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संसद ने क्रिप्टो संपत्ति बाज़ार (Markets in Crypto Assets- MiCA) विनियमन को मंज़ूरी दे दी है, यह नियमों का विश्व का पहला व्यापक समूह है जिसका लक्ष्य बड़े पैमाने पर अनियमित क्रिप्टोकरेंसी बाज़ारों को सरकारी विनियमन के तहत लाना है।

  • यह विनियमन सदस्य देशों के औपचारिक अनुमोदन के बाद लागू होगा।
  • यूरोपीय संसद यूरोपीय संघ का विधायी निकाय है।

MiCA:

  • परिचय:
    • MiCA क्रिप्टो फर्मों हेतु विनियमन प्रथाओं को लाएगा। क्रिप्टो फर्मों को विनियमित करके MiCA वित्तीय क्षेत्र में जैसे- राउट एवं कन्टेजन को रोक सकता है जो अर्थव्यवस्था को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
      • "राउट" का अर्थ है, जब लोग भय के कारण क्रिप्टोकरेंसी बेचते हैं तो कीमतों में तेज़ी से गिरावट आती है।
      • "कन्टेजन" इस संभावना को संदर्भित करता है कि एक बाज़ार में गिरावट का अन्य बाज़ारों, वित्तीय संस्थानों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • क्रिप्टो संपत्ति के प्रकार के आधार पर क्रिप्टो एसेट सर्विस प्रोवाइडर्स (CASPs) हेतु विनियमन आवश्यकताओं के विभिन्न समूहों को निर्धारित करता है।
  • MiCA के अंतर्गत आने वाली संपत्तियाँ:
    • MiCA कानून क्रिप्टो परिसंपत्तियों पर लागू होगा, यह मुख्यतः "एक मूल्य या अधिकार का डिजिटल प्रतिनिधित्त्व है, जो सुरक्षा हेतु क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करता है और एक सिक्के या टोकन या किसी अन्य डिजिटल माध्यम के रूप में होता है तथा जिसे स्थानांतरित किया जा सकता है, साथ ही वितरित बहीखाता तकनीक या इसी तरह की तकनीक का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिक रूप से संग्रहीत किया जाता है।
    • इस परिभाषा का तात्पर्य है कि यह न केवल बिटकॉइन और एथेरियम जैसी पारंपरिक क्रिप्टोकरेंसी पर लागू होगा, बल्कि स्टेबलकॉइन्स जैसी नई क्रिप्टोकरेंसी पर भी लागू होगा।
      • MiCA तीन प्रकार के स्टेबलकॉइन्स के लिये नए नियम भी स्थापित करेगा।
  • संपत्तियाँ जो MiCA के दायरे से बाहर होंगी:
    • MiCA उन डिजिटल संपत्तियों को विनियमित नहीं करेगा जो हस्तांतरणीय प्रतिभूतियों के रूप में योग्य होंगी और शेयरों या उनके समकक्ष तथा अन्य क्रिप्टो संपत्तियों की तरह कार्य करेंगी एवं जो पहले से ही मौजूदा विनियमन के तहत वित्तीय साधनों के रूप में योग्य हैं।
    • यह नॉन-फंजिबल टोकन (NFT) को भी बाहर कर देगा।
    • MiCA यूरोपीय सेंट्रल बैंक द्वारा जारी केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के राष्ट्रीय केंद्रीय बैंकों द्वारा जारी की गई डिजिटल संपत्तियों को भी नियंत्रित नहीं करेगा, जब वे मौद्रिक अधिकारों के रूप में अपनी क्षमता के साथ प्रदान की जाने वाली क्रिप्टो संपत्ति से संबंधित सेवाओं के रूप में कार्य करेगा।
  • MiCA के तहत नए नियम:
    • CASP का विनियमन:
      • CASP को यूरोपीय संघ में एक कानूनी इकाई के रूप में शामिल किया जाना चाहिये।
      • वे किसी एक सदस्य देश में अधिकृत हो सकते हैं और सभी 27 देशों में काम कर सकते हैं।
      • यूरोपीय बैंकिंग प्राधिकरण जैसे नियामक CASP की निगरानी करेंगे।
      • CASP को स्थिरता, सुदृढ़ता और उपयोगकर्त्ता निधियों को सुरक्षित रखने की क्षमता का प्रदर्शन करना चाहिये।
      • CASP को बाज़ार के दुरुपयोग और हेर-फेर से बचाव करने में सक्षम होना चाहिये।
    • स्टेबलकॉइन सेवा प्रदाताओं के लिये श्वेत पत्र की आवश्यकता:
      • स्टेबलकॉइन सेवा प्रदाताओं को क्रिप्टो उत्पाद और कंपनी में मुख्य प्रतिभागियों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी के साथ एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिये। इसमें जनता के लिये प्रस्ताव की शर्तें, उनके द्वारा उपयोग किये जाने वाले ब्लॉकचेन सत्यापन तंत्र का प्रकार, प्रश्न में क्रिप्टो संपत्ति से जुड़े अधिकार, निवेशकों के लिये शामिल प्रमुख जोखिम और संभावित खरीदारों को उनके निवेश के संबंध में सूचित निर्णय लेने में मदद करने के लिये एक सारांश होना चाहिये।
    • स्टेबलकॉइन जारीकर्त्ताओं के लिये आरक्षित संपत्ति की शर्त:
      • स्टेबलकॉइन जारीकर्त्ताओं को तरलता संकट से बचने के लिये उनके मूल्य के अनुरूप पर्याप्त भंडार बनाए रखने की आवश्यकता होगी।
      • स्टेबलकॉइन उपयोगकर्त्ताओं के लिये अपर्याप्त भंडार का अप्रत्याशित प्रभाव हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप अधिक क्षति हो सकती है।
    • स्टेबलकॉइन फर्मों (गैर-यूरो मुद्राओं) के लिये लेन-देन की सीमाएँ:
      • गैर-यूरो मुद्राओं से जुड़ी स्थिर मुद्रा फर्मों को एक निर्दिष्ट क्षेत्र में €200 मिलियन ($220 मिलियन) की दैनिक लेन-देन सीमा (Daily Volume) के साथ निर्धारित करना होगा।
      • लेन-देन की सीमा का उद्देश्य स्टेबलकॉइन से जुड़े जोखिमों और वित्तीय स्थिरता पर उनके प्रभाव का प्रबंधन करना है।
    • क्रिप्टो कंपनियों के लिये एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग उपाय:
      • मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण गतिविधियों को रोकने के लिये क्रिप्टो कंपनियों को अपने स्थानीय एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग प्राधिकरण को क्रिप्टो संपत्ति के प्रेषकों एवं प्राप्तकर्त्ताओं के बारे में जानकारी भेजनी चाहिये।
      • एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग आवश्यकताओं का पालन करने में विफलता क्रिप्टो कंपनियों की प्रतिष्ठा पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है।
    • कानून की आवश्यकता:
      • वैश्विक क्रिप्टो उद्योग का लगभग 22% मध्य, उत्तरी और पश्चिमी यूरोप ($1.3 ट्रिलियन मूल्य की क्रिप्टो संपत्ति) में केंद्रित है, MiCA जैसा एक व्यापक ढाँचा है जिससे अमेरिका या ब्रिटेन की तुलना में यूरोपीय संघ को अपने विकास में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त मिलेगी।
      • बढ़ते निवेश और क्रिप्टो उद्योग के आकार ने दुनिया भर के नीति निर्माताओं को स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये क्रिप्टो फर्मों में शासन प्रथाओं को सुनिश्चित करने हेतु प्रेरित किया है।
    • महत्त्व:
      • यह FTX (Futures Exchange) संकट के बाद भी क्षेत्र में अपने विश्वास को बहाल करते हुए उपभोक्ताओं को धोखाधड़ी से सुरक्षित रखेगा। यह क्रिप्टो संपत्ति और CASP जारीकर्त्ताओं के लिये अनुपालन सुनिश्चित करेगा।

क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने के मामले में भारत की स्थिति:

  • क्रिप्टो संपत्तियों के लिये भारत के पास अभी तक एक व्यापक नियामक ढाँचा नहीं है हालाँकि इस पर एक मसौदा कानून कथित तौर पर काम कर रहा है।
  • वर्ष 2017 में RBI ने चेतावनी जारी की कि आभासी मुद्राएँ/क्रिप्टोकरेंसी भारत में कानूनी निविदा नहीं हैं।
    • हालाँकि आभासी मुद्राओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगा।
  • वर्ष 2019 में RBI ने जारी किया कि क्रिप्टोकरेंसी में व्यापार, धारण अथवा हस्तांतरण/उपयोग भारत में वित्तीय दंड या/और 10 वर्ष तक के कारावास की सज़ा के अधीन है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 में भारत में RBI द्वारा क्रिप्टोकरेंसी पर लगाए गए प्रतिबंध को हटा दिया।
  • वर्ष 2022 में भारत सरकार के केंद्रीय बजट 2022-23 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि किसी भी आभासी मुद्रा/क्रिप्टोकरेंसी संपत्ति का हस्तांतरण 30% कर कटौती के अधीन होगा।
    • जुलाई 2022 में RBI ने देश के मौद्रिक और राजकोषीय व्यवस्था के लिये 'अस्थिर प्रभाव' का हवाला देते हुए क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी।
    • भारत ने दिसंबर 2022 में अपनी सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) अथवा ई-रुपया लॉन्च किया। यह अभी अपने पायलट/आरंभिक चरण में है।
  • सरकार ने ब्लॉकचेन तकनीकी के उपयोग और सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) जारी करने की संभावना का पता लगाने के लिये एक पैनल भी स्थापित किया है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रिलिम्स:

प्रश्न. "ब्लॉकचेन तकनीकी" के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. यह एक सार्वजनिक खाता है जिसका हर कोई निरीक्षण कर सकता है, लेकिन जिसे कोई भी एक उपयोगकर्त्ता नियंत्रित नहीं करता।
  2. ब्लॉकचेन की संरचना और अभिकल्प ऐसा है कि इसका समूचा डेटा क्रिप्टो करेंसी के विषय में है।
  3. ब्लॉकचेन के आधारभूत विशेषताओं पर आधारित अनुप्रयोगों को बिना किसी की अनुमति के विकसित किया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 2

(d) केवल 1 और 3

उत्तर: d


मेन्स:

प्रश्न. चर्चा कीजिये की किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइये (2021)

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

IMF और विश्व बैंक समूह की स्प्रिंग मीटिंग 2023

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक समूह (WBG), ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20)ऋण पुनर्गठन, वित्त मंत्रियों का वल्नरेबल ट्वेंटी ग्रुप (V20), गरीबी में कमी तथा विकास ट्रस्ट (PRGT)

मेन्स के लिये:

वर्ष 2023 की स्प्रिंग मीटिंग में IMF और WBG की प्रमुख उपलब्धियाँ, अकरा माराकेश एजेंडा, जलवायु परिवर्तन एवं ऋण संकट और कम विकसित देशों में भेद्यता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक समूह (WBG) ने संयुक्त राज्य अमेरिका के वाशिंगटन DC में स्प्रिंग मीटिंग का आयोजन किया।

वर्ष 2023 की स्प्रिंग मीटिंग में IMF और WBG की प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • ऋण संकट:
    • ग्लोबल सॉवरेन डेट राउंडटेबल (GSDR):
      • IMF, WBG और भारत [जो कि ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20) 2023 का अध्यक्ष है] ने ग्लोबल सॉवरेन डेट राउंडटेबल (GSDR) की सह-अध्यक्षता की।
      • GSDR ने द्विपक्षीय लेनदारों (फ्रांँस - पेरिस क्लब का अध्यक्ष, संयुक्त राष्ट्र, यूनाइटेड किंगडम, चीन, सऊदी अरब एवं जापान) और देनदार देशों (इक्वाडोर, सूरीनाम, जाम्बिया, श्रीलंका, इथियोपिया तथा घाना) तथा ब्राज़ील (जो कि वर्ष 2024 में आगामी G20 की अध्यक्षता करेगा) के साथ बैठक की।
    • प्रमुख मुद्दे:
      • कई विकासशील देश महामारी, बढ़ती महँगाई और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उच्च ऋण का सामना कर रहे हैं, जो जलवायु शमन एवं अनुकूलन परियोजनाओं में निवेश करने की उनकी क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
        • अफ्रीकी देशों पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया जो कि कोविड-19 और इसके परिणामस्वरूप आर्थिक मंदी के कारण असमान रूप से प्रभावित हुए हैं।
    • सुझाए गए तरीके:
      • GSDR ने ऋण स्थिरता और ऋण पुनर्गठन चुनौतियों का समाधान करने के तरीकों पर चर्चा की।
        • 'ऋण पुनर्गठन' उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके द्वारा देश, निजी कंपनियाँ या व्यक्ति अपने ऋण की शर्तों को बदल सकते हैं ताकि ऋणी के लिये ऋण चुकाना आसान हो।
  • जलवायु संकट:
    • प्रमुख मुद्दे:
      • वित्त मंत्रियों का वल्नरेबल ट्वेंटी ग्रुप (V20), जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिये सबसे व्यवस्थित रूप से कमज़ोर 58 देशों का प्रतिनिधित्त्व करता है, ने वैश्विक वित्तीय प्रणाली में संक्रमण की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला जो सबसे कमज़ोर लोगों के लिये विकासोन्मुख जलवायु कार्रवाई प्रदान कर सके।
      • इसने जलवायु संकट के बारे में बढ़ती चिंताओं पर प्रकाश डाला जिसमें जलवायु वित्त, ऊर्जा सुरक्षा, स्थायी आपूर्ति शृंखला और हरित रोज़गारों के लिये कार्यबल की तत्परता जैसे विषय शामिल थे।
      • समयबद्ध रियायती वित्त तक पहुँच को जलवायु-संवेदी राष्ट्रों द्वारा सामना की जाने वाली एक बड़ी बाधा के रूप में चिह्नित किया गया, क्योंकि ऋण संकट और पूंजी की उच्च लागत से निपटने के अलावा जलवायु जोखिम को प्रबंधित करने के लिये उनकी बजटीय क्षमता दबाव में है।
    • प्रस्तावित सुझाव:
      • अकरा-माराकेश एजेंडा: V20 ने अकरा-माराकेश एजेंडा प्रस्तावित किया है जो असुरक्षित विश्व में जलवायु अनुकूलन के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन बनाने, ऋण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की समस्या का निपटान करने, अंतर्राष्ट्रीय और विकास वित्त प्रणाली को बदलने, कार्बन वित्तपोषण तथा जलवायु जोखिम प्रबंधन से संबंधित है।
      • आगामी IMF और WBG वार्षिक बैठक माराकेश में अक्तूबर 2023 में आयोजित की जाएगी।
      • V20 ने वर्ष 2023 की स्प्रिंग मीटिंग में बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों और विकास एजेंसियों से जून 2023 में एक 'नए वैश्विक वित्तीय समझौता' विकसित करने की दिशा में सहयोग करने का आग्रह किया।
  • निम्न आय वाले देशों को वित्तीय सहायता:
    • IMF ने निम्न आय वाले देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने में अपनी भूमिका को रेखांकित किया और गरीबी में कमी तथा विकास ट्रस्ट (PRGT) को बनाए रखने के लिये प्रतिबद्धता जताई है ताकि वह निम्न आय वाले देशों की सहायता करना जारी रख सके।
      • IMF PRGT के माध्यम से निम्न आय वाले देशों को रियायती वित्त प्रदान करता है।
      • हालाँकि कोविड-19 का प्रकोप, रूस-यूक्रेन युद्ध और इसके परिणामस्वरूप ऋण प्रदान करने में वृद्धि ने PRGT के संसाधनों पर दबाव डाला है।
  • मानव पूंजी क्षमता को सक्रिय करने के लिये डिजिटल समाधान:
    • IMF ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यह वर्तमान में नए सार्वजनिक और निजी डिजिटल बुनियादी ढाँचे के लिये नीतिगत दृष्टिकोण को आकार देने हेतु डिजिटल विकास के व्यापक आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण कर रहा है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. 'व्यापार करने की सुविधा के सूचकांक' में भारत की रैंकिंग समाचारों में कभी-कभी दिखती है। निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है? (2016)

(a) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)
(b) विश्व आर्थिक मंच
(c) विश्व बैंक
(d) विश्व व्यापार संगठन (WTO)

उत्तर: (c)

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले 'आई.एफ.सी. मसाला बाॅण्ड (IFC Masala Bonds)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (इंटरनेशनल फाइनेंस काॅरपोरेशन), जो इन बाॅण्ड को प्रस्तावित करता है, विश्व बैंक की एक शाखा है।
  2. ये रुपया-अंकित मूल्य वाले बाॅण्ड हैं और सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रक के ऋण वित्तीयन के स्रोत हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

LockBit रैनसमवेयर

प्रिलिम्स के लिये:

LockBit रैनसमवेयर, साइबर अटैक, साइबर-क्राइम, क्रिप्टो वायरस, साइबर सुरक्षित भारत, साइबर स्वच्छता केंद्र।

मेन्स के लिये:

LockBit रैनसमवेयर और इसके विरुद्ध सुरक्षा, भारत में साइबर हमलों के उदाहरण, भारत में साइबर अपराध का बढ़ता खतरा और राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसका प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में LockBit रैनसमवेयर द्वारा Mac उपकरणों को लक्षित करने का मामला सामने आया है।

  • इससे पहले जनवरी 2023 में कथित तौर पर ब्रिटेन की डाक सेवाओं पर साइबर हमले के पीछे LockBit गैंग का हाथ था, जिससे अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग बाधित हो गई थी।
  • रैनसमवेयर एक प्रकार का मैलवेयर है जो कंप्यूटर डेटा को हाईजैक कर लेता है और उस डेटा को वापस बहाल करने के बदले फिरौती (आमतौर पर बिटकॉइन में) की मांग करता है।

LockBit रैनसमवेयर:

  • परिचय:
    • LockBit, जिसे पहले "ABCD" रैनसमवेयर के रूप में जाना जाता था, एक प्रकार का कंप्यूटर वायरस है जो किसी के कंप्यूटर में प्रवेश कर महत्त्वपूर्ण फाइलों को एन्क्रिप्ट करता है ताकि उन्हें एक्सेस न किया जा सके।
      • यह वायरस पहली बार सितंबर 2019 में पाया गया था और इसे “क्रिप्टो वायरस” कहा जाता है क्योंकि यह पीड़ित की फाइल को डिक्रिप्ट करने के लिये क्रिप्टोकरेंसी में भुगतान की मांग करता है।
    • LockBit का उपयोग आमतौर पर उन कंपनियों या संगठनों पर हमला करने के लिये किया जाता है जो अपनी फाइलों को वापस पाने के लिये बहुत अधिक कीमत देने के लिये तैयार होते हैं।
    • इस संबंध में डार्क वेब पर एक वेबसाइट है जिसमें उन सदस्यों और पीड़ितों का विवरण होता है जो भुगतान करने से इनकार करते हैं।
    • LockBit का उपयोग यू.एस., चीन, भारत, यूक्रेन और यूरोप सहित कई अलग-अलग देशों में कंपनियों को लक्षित करने के लिये किया गया है।
  • कार्य प्रणाली:
    • यह अपनी हानिकारक (नुकसान पहुँचाने वाली) फाइलों को हानिरहित छवि वाली फाइलों की तरह बनाकर छुपाता है। LockBit भरोसेमंद होने का नाटक कर लोगों को कंपनी के नेटवर्क तक पहुँच प्रदान करने के लिये उन्हें झाँसा देता है।
    • एक बार सिस्टम में प्रवेश करने के बाद LockBit कंपनी को उसकी फाइलों को पुनर्प्राप्त करने में मदद करने वाली सभी सुविधाओं को अक्षम कर देता है और सभी फ़ाइलों को इस प्रकार प्रबंधित करता है कि उन्हें किसी विशेष कुंजी के बिना खोला नही जा सकता जो केवल LockBit गिरोह के पास होती है।
    • इससे प्रभावित व्यक्ति/संस्था के पास LockBit गिरोह से संपर्क करने और डेटा के लिये भुगतान करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। इस डेटा को ये गिरोह डार्क वेब पर बेच सकते हैं भले ही उन्हें इसका भुगतान किया जाए अथवा नहीं।
  • LockBit गैंग:
    • LockBit गैंग/गिरोह साइबर अपराधियों का एक समूह है जो धन की वसूली के लिये सर्विस मॉडल के रूप मे रैनसमवेयर का उपयोग करता है।
    • वे इस प्रकार के हमले किसी के आदेश पर करते हैं जिसके लिये उन्हें भुगतान प्राप्त होता है और फिर भुगतान राशि को अपनी टीम और सहयोगियों में बाँट लेते हैं।
      • वे अत्यधिक कुशल होते हैं और पकड़ में आने से बचने के लिये रूसी व्यवस्था अथवा स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल ( Commonwealth of Independent States) पर हमला नहीं करते हैं।

LockBit द्वारा mac OS को लक्षित करने का कारण:

  • LockBit अपने हमलों के दायरे का विस्तार करने और संभावित रूप से अपने वित्तीय लाभ को बढ़ाने के तरीके के रूप में mac OS को लक्षित कर रहा है।
    • हालाँकि ऐतिहासिक रूप से रैनसमवेयर ने मुख्य रूप से विंडोज़, लाइनक्स और वीएमवेयर ESXi सर्वरों को लक्षित किया है, यह अब mac OS के लिये एन्क्रिप्टर्स का परीक्षण कर रहा है।
  • ऐसा पाया गया है कि वर्तमान एन्क्रिप्टर्स पूरी तरह से चालू नहीं हो पाए हैं लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ये समूह mac OS को लक्षित करने के लिये सक्रिय रूप से एक पृथक उपकरण/तकनीक विकसित कर रहे हैं।
  • इन सभी का उद्देश्य विभिन्न प्रणालियों/सिस्टम्स को लक्षित करके रैनसमवेयर ऑपरेशन की सहायता से अधिक पैसा वसूलना है।

भारत में साइबर हमले की हालिया घटनाएँ:

  • वर्ष 2020 में लगभग 82% कंपनियों के प्रभावित होने के साथ भारत में रैनसमवेयर हमलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली है।
  • हाल के वर्षों में कई हाई-प्रोफाइल हमले हुए हैं, जिनमें वर्ष 2017 का वानाक्राई हमला, Juspay के डेटा उल्लंघन का मामला शामिल है। इसने वर्ष 2021 में अमेज़न सहित 35 मिलियन ग्राहकों को प्रभावित किया और हाल ही में दिसंबर 2022 में दिल्ली स्थित एम्स भी रैनसमवेयर हमले का शिकार हुआ।
    • वर्ष 2022 में एयर इंडिया को एक बड़े साइबर हमले का सामना करना पड़ा, जिसमें पासपोर्ट, टिकट और क्रेडिट कार्ड की जानकारी सहित 4.5 मिलियन ग्राहक रिकॉर्ड से समझौता किया गया।

साइबर सुरक्षा से संबंधित वर्तमान सरकार की पहल:

LockBit रैनसमवेयर से बचाव:

  • मज़बूत पासवर्ड:
    • खाता सुरक्षा का उल्लंघन प्रायः कमज़ोर पासवर्ड के कारण होता है क्योंकि हैकर्स इसे आसानी से अनुमान लगा सकता है या एल्गोरिद्म टूल को क्रैक कर सकता है। अतः सुरक्षा के लिये मज़बूत पासवर्ड चुनें जो लंबा होने के साथ ही उसमें अलग-अलग तरह के कैरेक्टर हों।
  • बहु-कारक प्रमाणीकरण:
    • ब्रूट फोर्स अटैक को रोकने हेतु अपने सिस्टम में लॉग इन करते समय अपने पासवर्ड के अलावा बायोमेट्रिक्स (जैसे- फिंगरप्रिंट या चेहरे की पहचान) या वास्तविक USB कुंजी प्रमाणक का उपयोग करना चाहिये।
      • ब्रूट फोर्स अटैक एक प्रकार का साइबर हमला है जहाँ हमलावर वर्णों के विभिन्न संयोजनों को बार-बार आज़माकर एक पासवर्ड का अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं जब तक कि उन्हें सही पासवर्ड नहीं मिल जाता।
  • खाता अनुमति का पुनर्मूल्यांकन:
    • सुरक्षा जोखिमों को कम करने हेतु उपयोगकर्त्ता अनुमति पर कड़े प्रतिबंध लगाना महत्त्वपूर्ण है। यह विशेष रूप से दूसरे छोर पर (Endpoint) उपयोगकर्त्ताओं द्वारा उपयोग किये जाने वाले संसाधनों एवं प्रशासनिक पहुँच वाले IT खातों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • साथ ही यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वेब डोमेन, सहयोगी प्लेटफाॅर्म, वेब मीटिंग सेवाएँ और एंटरप्राइज़ डेटाबेस सभी सुरक्षित हों।
  • तंत्र-व्यापी बैकअप:
    • स्थायी डेटा हानि से बचने हेतु अपने महत्त्वपूर्ण डेटा का ऑफलाइन बैकअप बनाना महत्त्वपूर्ण है।
    • यह सुनिश्चित करने हेतु समय-समय पर बैकअप बनाकर अपने सिस्टम की अप-टू-डेट कॉपी सुनिश्चित करना। किसी मैलवेयर से संक्रमित होने की स्थिति में एक स्वच्छ बैकअप चुनने में सक्षम होने हेतु कई बैकअप साइट्स तथा उन्हें बदलने का विकल्प खुला रखना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'वानाक्राई, पेट्या और इटरनलब्लू' जो हांल ही में समाचारों में उल्लिखित थे, निम्नलिखित में से किससे संबंधित हैं? (2018)

(a) एक्सोप्लैनेट्स
(b) क्रिप्टोकरेंसी
(c) साइबर आक्रमण
(d) लघु उपग्रह

उत्तर: (c)

प्रश्न. भारत में किसी व्यक्ति के साइबर बीमा कराने पर निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त सामान्यतः निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं?(2020)

  1. यदि कोई मैलवेयर कंप्यूटर तक उसकी पहुँच बाधित कर देता है, तो कंप्यूटर प्रणाली को पुन प्रचालित करने में लगने वाली लागत।
  2. यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि किसी शरारती तत्त्व द्वारा जान-बूझकर कंप्यूटर को नुकसान पहुँचाया गया है तो नए कंप्यूटर की लागत।
  3. यदि साइबर बलात-ग्रहण होता है तो इस हानि को न्यूनतम करने के लिये विशेषज्ञ परामर्शदाता की सेवाएँ लेने पर लगने वाली लागत।
  4. यदि कोई तीसरा पक्ष मुकदमा दायर करता है तो अदालत में बचाव करने में लगने वाली लागत।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)

प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है? (2017)

  1. सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर)
  2. डेटा सेंटर
  3. कॉर्पोरेट निकाय (बॉडी कॉर्पोरेट)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सीमा पार से होने वाले साइबर हमलों के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। साथ ही इन परिष्कृत हमलों के विरुद्ध रक्षात्मक उपायों की चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न. विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों और खतरे से लड़ने के लिये आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिये। (2020)

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सूडान संकट और ऑपरेशन कावेरी

प्रिलिम्स के लिये:

लाल सागर, नील नदी, सूडान संकट, ऑपरेशन कावेरी, रैपिड सपोर्ट फोर्सेज़

मेन्स के लिये:

सूडान संकट के कारक और इस क्षेत्र में भारत की विदेश नीति के संभावित निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

सूडान में मौजूदा संकट के कारण भारत ने अपने नागरिकों को वहाँ से निकालने के लिये 'ऑपरेशन कावेरी' शुरू किया है।

  • लगभग 3,000 भारतीय सूडान के विभिन्न हिस्सों में फँसे हुए हैं, जिनमें राजधानी खार्तूम और दारफुर जैसे दूरस्थ प्रांत भी शामिल हैं।

ऑपरेशन कावेरी:

  • ‘ऑपरेशन कावेरी’ सूडान में सेना और एक प्रतिद्वंद्वी अर्द्धसैनिक बल के बीच तीव्र लड़ाई के चलते वहाँ फंसे अपने नागरिकों को वापस लाने हेतु भारत के निकासी प्रयास का एक कोडनेम है।
  • इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना के INS सुमेधा, एक गुप्त अपतटीय गश्ती पोत और जेद्दा में स्टैंडबाय पर दो भारतीय वायु सेना C-130J के विशेष संचालन विमानों की तैनाती शामिल है।
  • सूडान में लगभग 2,800 भारतीय नागरिक हैं जिनमें से लगभग 1,200 भारतीयों का समुदाय वहाँ पर बसा हुआ है।

सूडान में वर्तमान संकट:

  • पृष्ठभूमि:
    • व्यापक विरोध के बाद अप्रैल 2019 में सैन्य जनरलों द्वारा लंबे समय से राष्ट्रपति पद पर काबिज उमर अल-बशीर को उखाड़ फेंकना सूडान में संघर्ष का कारण है।
    • इसके कारण सेना और प्रदर्शनकारियों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत वर्ष 2023 के अंत में सूडान में चुनावों का नेतृत्त्व करने के लिये संप्रभुता परिषद नामक एक शक्ति-साझाकरण निकाय की स्थापना की गई।
    • हालाँकि सेना ने अक्तूबर 2021 में अब्दुल्ला हमदोक के नेतृत्त्व वाली संक्रमणकालीन सरकार को उखाड़ फेंका, बुरहान देश के वास्तविक नेता बन गए और दगालो उनके सेकंड-इन-कमांड बन गए।
  • सेना और RSF के बीच तनाव:
    • वर्ष 2021 के तख्तापलट के तुरंत बाद दो सैन्य (SAF) और अर्द्धसैनिक (RSF) जनरलों के बीच सत्ता संघर्ष छिड़ गया, जिससे चुनावों में संक्रमण की योजना बाधित हो गई।
      • इस राजनीतिक परिवर्तन के लिये दिसंबर 2021 में एक प्रारंभिक सौदा किया गया था लेकिन समय सारिणी और सुरक्षा क्षेत्र के सुधारों पर असहमति के कारण सूडानी सशस्त्र बलों (SAF) के साथ अर्द्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्स (RSF) के एकीकरण पर बातचीत में बाधा उत्पन्न हुई।
    • संसाधनों के नियंत्रण और RSF के एकीकरण को लेकर तनाव बढ़ गया, जिसके कारण झड़पें हुईं।
      • इस बात पर असहमति थी कि 10,000 सैनिकों की मज़बूत RSF को सेना में कैसे एकीकृत किया जाए और किस प्राधिकरण को उस प्रक्रिया की देख-रेख की ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिये।
    • इसके अलावा दगालो (RSF जनरल) एकीकरण में 10 वर्ष की देरी करना चाहते थे, लेकिन सेना का दावा था कि यह अगले दो वर्षों में होना चाहिये।

रैपिड सपोर्ट फोर्स (RSF):

  • RSF एक समूह है, यह जंजावीड रक्षक योद्धाओं से विकसित हुआ है, जिसने 2000 के दशक में चाड की सीमा के समीप पश्चिम सूडान के दारफुर क्षेत्र के संघर्ष में भागीदारी की।
    • समय के साथ रक्षक योद्धाओं की संख्या बढ़ी और वर्ष 2013 में इसमें RSF में शामिल हो गई, जिनका विशेष रूप से सीमा रक्षकों के रूप में इस्तेमाल किया गया।
  • RSF और सूडानी सेना ने सऊदी एवं अमीराती बलों के साथ लड़ने हेतु वर्ष 2015 में यमन में सैनिकों को तैनात करना शुरू कर दिया था।
  • RSF को दारफुर क्षेत्र के अलावा दक्षिण कोर्डोफन और ब्लू नाइल जैसी जगहों पर भेजा गया था, जहाँ उस पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।
  • वर्ष 2015 की एक रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपने बलों को "दयाहीन पुरुष (Men with no Mercy)" के रूप में वर्णित किया।

वर्तमान संकट का परिणाम:

  • लोकतांत्रिक परिवर्तन के लिये चुनौती: सेना और RSF के बीच लड़ाई ने सूडान के लोकतंत्र में संक्रमण को और अधिक कठिन बना दिया है।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि झगड़ा व्यापक संघर्ष में बदल सकता है और देश के पतन का कारण बन सकता है।
  • आर्थिक संकट: अति मुद्रास्फीति और भारी मात्रा में विदेशी ऋण के कारण सूडान की अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही है।
    • हमदोक सरकार को हटाने के बाद अन्य देशों से अरबों डॉलर की सहायता और ऋण राहत पर रोक लगा दी गई।
  • पड़ोसी देशों में अशांति: सूडान की सात अन्य देशों से निकटता के कारण यह संघर्ष वहाँ फैल सकता है और क्षेत्र में अस्थिरता उत्पन्न कर सकता है। चाड एवं दक्षिण सूडान विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
    • यदि लड़ाई जारी रहती है, तो स्थिति बड़े बाहरी हस्तक्षेप का कारण बन सकती है। सूडान के संघर्षग्रस्त क्षेत्रों से शरणार्थी पहले ही चाड आ चुके हैं।

भारत-सूडान संबंध:

  • सूडान का सामरिक महत्त्व:
    • सूडान पूर्वोत्तर अफ्रीका में स्थित है और तीसरा सबसे बड़ा अफ्रीकी राष्ट्र है।
    • लाल सागर पर अपनी रणनीतिक अवस्थिति, नील नदी तक पहुँच, सोने के विशाल भंडार और कृषि क्षमता के कारण अपने पड़ोसी देशों, खाड़ी देशों, रूस तथा पश्चिमी देशों सहित बाहरी शक्तियों के लिये आकर्षण का केंद्र रहा है।
  • द्विपक्षीय परियोजनाएँ:
    • इसने वर्ष 2021 में सूडान में ऊर्जा, परिवहन और कृषि व्यवसाय उद्योग जैसे क्षेत्रों में 612 मिलियन अमेरिकी डॉलर के रियायती ऋण के माध्यम से 49 द्विपक्षीय परियोजनाओं को पहले ही लागू कर दिया था।
  • ज़ुबा शांति समझौते का समर्थन:
    • भारत ने एक संक्रमणकालीन सरकार बनाने के सूडान के प्रयासों का समर्थन किया और अक्तूबर 2020 में सरकार द्वारा हस्ताक्षरित जुबा शांति समझौते का भी समर्थन किया।
    • चाड, संयुक्त अरब अमीरात और विकास पर अंतर-सरकारी प्राधिकरण (IGAD) इसके समर्थक थे, जबकि मिस्र तथा कतर शांति समझौते के साक्षी थे।
    • इस समझौते में शासन, सुरक्षा और न्याय जैसे विभिन्न क्षेत्रों को शामिल किया गया था तथा यह भविष्य की संवैधानिक वार्ताओं के लिये महत्त्वपूर्ण था।
    • भारत ने वार्ता प्रक्रिया के तहत बाह्य रूप से सशस्त्र सहायता प्रदान कर और 1,200 कर्मियों के साथ नागरिक सुरक्षा के लिये एक राष्ट्रीय योजना का भी समर्थन किया।
  • भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग:
    • भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) के तहत भारत ने क्षमता निर्माण के लिये सूडान को 290 छात्रवृत्ति/अनुदान प्रदान किया। इसके अतिरिक्त भारत ने वर्ष 2020 में सूडान को खाद्य आपूर्ति सहित मानवीय सहायता भी प्रदान की थी।
  • द्विपक्षीय व्यापार:
    • इन वर्षों में भारत और सूडान के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2005-06 के 327.27 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 1663.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
    • सूडान और दक्षिण सूडान में भारत का निवेश मोटे तौर पर 3 अरब अमेरिकी डॉलर का था जिसमें से 2.4 अरब अमेरिकी डॉलर पेट्रोलियम क्षेत्र (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ONGC विदेश) में निवेश किया गया था।

भारत द्वारा चलाए गए निकासी अभियान:

ऑपरेशन गंगा (2022):
  • यह वर्तमान में यूक्रेन में फँसे सभी भारतीय नागरिकों को वापस लाने के लिये एक निकासी मिशन है।
  • रूसी सेना द्वारा हमलों की शृंखला शुरू करने के बाद यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के साथ ही वर्तमान में रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ गया है।
ऑपरेशन देवी शक्ति (2021):
  • ऑपरेशन देवी शक्ति तालिबान द्वारा तेज़ी से कब्ज़े के बाद काबुल से अपने नागरिकों और अफगान भागीदारों को निकालने के लिये भारत का जटिल मिशन था।
वंदे भारत (2020):
  • कोरोनावायरस के कारण वैश्विक यात्रा पर प्रतिबंध होने के कारण विदेश में फँसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने हेतु ‘वंदे भारत मिशन’ चलाया गया।
  • इस मिशन के तहत कई चरणों में 30 अप्रैल, 2021 तक लगभग 60 लाख भारतीयों को वापस लाया गया।
ऑपरेशन समुद्र सेतु (2020):
  • यह कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय नागरिकों को विदेशों से घर वापस लाने के राष्ट्रीय प्रयास के हिस्से के रूप में एक नौसैनिक अभियान था।
  • इसके तहत 3,992 भारतीय नागरिकों को समुद्र के रास्ते मातृभूमि में सफलतापूर्वक वापस लाया गया।
  • भारतीय नौसेना के जहाज़ जलाश्व (लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक), ऐरावत, शार्दुल तथा मगर (लैंडिंग शिप टैंक) ने इस ऑपरेशन में भाग लिया, जो 55 दिनों तक चला और इसमें समुद्र द्वारा 23,000 किमी. से अधिक की यात्रा शामिल थी।
ब्रुसेल्स से निकासी (2016):
  • मार्च 2016 में बेल्जियम ज़ेवेंटेम में ब्रुसेल्स हवाई अड्डे पर तथा मध्य ब्रुसेल्स में मालबीक मेट्रो स्टेशन पर एक आतंकवादी हमले की चपेट में आ गया था।
  • इसके तहत जेट एयरवेज़ की फ्लाइट से 28 क्रू मेंबर्स समेत कुल 242 भारतीयों को भारत लाया गया।
ऑपरेशन राहत (2015):
  • वर्ष 2015 में यमन सरकार और हौथी विद्रोहियों के बीच संघर्ष छिड़ गया।
  • सऊदी अरब द्वारा घोषित नो-फ्लाई ज़ोन के कारण हज़ारों भारतीय फँसे हुए थे और यमन हवाई मार्ग सुलभ नहीं था।
  • ऑपरेशन राहत के तहत भारत ने यमन से लगभग 5,600 लोगों को निकाला।

ऑपरेशन मैत्री (2015):

  • वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप में बचाव और राहत अभियान के रूप में ऑपरेशन मैत्री का संचालन भारत सरकार और भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा किया गया था।
  • सेना-वायु सेना के संयुक्त ऑपरेशन में नेपाल से वायु सेना और नागरिक विमानों द्वारा 5,000 से अधिक भारतीयों को वापस लाया गया। भारतीय सेना ने अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और जर्मनी से 170 विदेशी नागरिकों को सफलतापूर्वक निकाला।
ऑपरेशन सुरक्षित घर वापसी (2011):
  • संघर्षग्रस्त लीबिया में फँसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने के लिये भारत ने 'ऑपरेशन घर वापसी' शुरू की।
  • ऑपरेशन के तहत भारत ने 15,400 भारतीय नागरिकों को निकाला।
  • इस ऑपरेशन में लगभग 15,000 नागरिकों को बचाया गया था।
  • एयर-सी ऑपरेशन भारतीय नौसेना और एयर इंडिया द्वारा आयोजित किया गया था।
ऑपरेशन सुकून (2006):
  • जुलाई 2006 में जैसे ही इज़रायल और लेबनान में सैन्य संघर्ष शुरू हुआ, भारत ने ऑपरेशन सुकून शुरू कर वहाँ फँसे अपने नागरिकों को बचाया, जिसे अब 'बेरूत सीलिफ्ट' के नाम से जाना जाता है।
  • यह 'डनकर्क' निकासी के बाद से सबसे बड़ा नौसैनिक बचाव अभियान था।
  • टास्क फोर्स ने 19 जुलाई और 1 अगस्त, 2006 के बीच कुछ नेपाली और श्रीलंकाई नागरिकों सहित लगभग 2,280 लोगों को निकाला था।
कुवैत एयरलिफ्ट (1990):
  • वर्ष 1990 में जब 700 टैंकों से लैस 1,00,000 इराकी सैनिकों ने कुवैत पर हमला किया, तब शाही और अति विशिष्ट व्यक्ति सऊदी अरब भाग गए थे।
  • वहीं आम जनता के जीवन को जोखिम में डाला दिया गया।
  • कुवैत में फँसे लोगों में 1,70,000 से अधिक भारतीय थे।
  • भारत ने निकासी अभियान शुरू किया, जिसमें 1,70,000 से अधिक भारतीयों को एयरलिफ्ट किया गया और भारत वापस लाया गया।

आगे की राह

  • चूँकि भारत केवल ईरान, इराक और सऊदी अरब जैसे पश्चिम एशियाई देशों पर निर्भर नहीं रह सकता है जो वैश्विक ऊर्जा केंद्र का गठन करते हैं, इसने अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिये सूडान, नाइजीरिया तथा अंगोला जैसे तेल-समृद्ध अफ्रीकी राज्यों के साथ संबंध स्थापित किये हैं।
    • हॉर्न ऑफ अफ्रीका में अपने निवेश, व्यापार और अन्य हितों की रक्षा करना भारत के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
    • लाल सागर क्षेत्र भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति के लिये अत्याधिक महत्त्वपूर्ण है
  • भारत-सूडान संबंधों की मौजूदा संरचना और अफ्रीका के हॉर्न में सूडान के स्थान को देखते हुए नए शासन को मान्यता देने के लिये भारत को जल्दबाज़ी में कोई भी कदम उठाने से पहले क्षेत्र में अपने व्यापार, निवेश एवं हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित में से किन देशों में लाखों लोग या तो भयंकर अकाल या कुपोषण से प्रभावित हुए हैं या उनकी युद्ध या संजातीय संघर्ष के चलते भुखमरी के कारण मृत्यु हुई है? (2018)

(a) अंगोला और ज़ाम्बिया
(b) मोरक्को और ट्यूनीशिया
(c) वेनेज़ुएला और कोलंबिया
(d) यमन और दक्षिण सूडान

उत्तर: (d)

स्रोत: द हिंदू


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