भारतीय इतिहास
औरंगज़ेब और मराठा साम्राज्य
प्रिलिम्स के लिये:मुगल, मराठा, जज़िया कर, संभाजी, छत्रपति शिवाजी। मेन्स के लिये:मुगलों के बारे में, उनका प्रशासन, कराधान प्रणाली, मराठा साम्राज्य के बारे में |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
नागपुर में सार्वजनिक जनाक्रोश के कारण खुल्दाबाद, छत्रपति संभाजी नगर में मुगल शासक औरंगज़ेब के 17वीं सदी के मकबरे को ध्वस्त करने की मांग उठने लगी है, जिससे औरंगज़ेब और मराठों के बारे में चर्चा शुरू हो गई है।
औरंगज़ेब
- शाहजहाँ का पुत्र औरंगज़ेब (आलमगीर) छठा मुगल सम्राट था (बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के बाद) जिसने वर्ष 1658 से वर्ष 1707 तक शासन किया।
- वे उत्तराधिकार के युद्ध में दारा शिकोह, शुजा और मुराद सहित सभी प्रतिद्वंद्वियों को खत्म करने के बाद सिंहासन पर बैठे।
- वे अंतिम शक्तिशाली मुगल शासक थे, उनके अधीन साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ, लेकिन इसके साथ ही साथ उन्हें महत्त्वपूर्ण आंतरिक संघर्षों का भी सामना करना पड़ा।
औरंगज़ेब की प्रमुख नीतियाँ क्या थीं?
- धार्मिक नीतियाँ:
- इस्लामी रूढ़िवाद: उन्होंने रूढ़िवादी सुन्नी इस्लाम की सख्त व्याख्या का पालन किया और कठोर धार्मिक प्रथाओं पर ज़ोर दिया।
- जज़िया का पुनर्रोपण: उन्होंने वर्ष 1679 में गैर-मुसलमानों पर जज़िया कर को पुनः लागू कर दिया, जिसे विशेष रूप से हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण माना गया।
- धार्मिक नेताओं का उत्पीड़न: उन्होंने गुरु तेग बहादुर (नौवें सिख गुरु) का इस्लाम में धर्मांतरण से इनकार करने पर उत्पीड़न किया, जिससे सिख प्रतिरोध को बढ़ावा मिला और मुगल सत्ता के खिलाफ उनके सशस्त्र संघर्ष में योगदान मिला।
- मंदिरों का विध्वंसीकरण: वर्ष 1669 में, औरंगज़ेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी) और केशवदेव मंदिर (मथुरा) सहित प्रमुख हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया।
- प्रशासनिक नीतियाँ:
- प्रशासनिक केंद्रीकरण: औरंगज़ेब ने सूबेदारों और ज़मींदारों की स्वायत्तता पर अंकुश लगाया, मनसबदारों के लिये निश्चित वेतन लागू किया और शाही नियंत्रण को मज़बूत करने के लिये नौकरशाही नियुक्तियों को केंद्रीकृत कर दिया।
- मनसबदारी में सुधार: औरंगज़ेब ने मनसबदारों की वित्तीय स्वायत्तता पर अंकुश लगाया, जिससे वे केंद्रीय कोष पर निर्भर हो गए, तथा धोखाधड़ी को रोकने के लिये दाग (घोड़े पर दाग लगाना) और चेहरा (सैनिक पहचान) प्रणालियों के माध्यम से सैन्य दक्षता में वृद्धि की।
- दाग और चेहरा प्रणालियाँ अलाउद्दीन खिलजी (वर्ष 1296 से वर्ष 1316) द्वारा शुरू की गई थीं।
- फतवा-ए-आलमगीरी: प्रशासनिक और न्यायिक मामलों को संचालित करने के लिये इस्लामी कानूनों को संकलित किया गया, जिससे राज्य की प्रकृति अधिक धर्मतंत्रात्मक हो गयी।
- आर्थिक एवं कराधान नीतियाँ:
- उन्होंने राजस्व संग्रह की ज़ब्त प्रणाली जारी रखी, जिसने फसल की विफलता के बावजूद उच्च, अनम्य कर लगाए, जिससे किसान संकटग्रस्त हो गए और खाद्यान्न की कमी हो गई। सिंचाई और कृषि सुधारों में निवेश की कमी से आर्थिक स्थिरता और खराब हो गई।
- अकबर के अधीन राजा टोडरमल द्वारा शुरू की गई दहसाला (ज़ब्ती) प्रणाली, फसल उत्पादन और कीमतों के 10-वर्षीय औसत पर आधारित एक व्यवस्थित राजस्व मूल्यांकन पद्धति थी।
- अत्यधिक सैन्य व्यय: मराठों और राजपूतों के विरुद्ध लंबे समय तक चले युद्धों से वित्तीय घाटा हुआ, कर का बोझ बढ़ा, तथा किसान विद्रोहों को बढ़ावा मिला, जिससे क्षेत्रीय प्रतिरोध में तेज़ी आई।
- व्यापार विनियमन: व्यापार प्रतिबंधों ने मुस्लिम व्यापारियों को लाभ पहुँचाया, जबकि सख्त इस्लामी वाणिज्यिक कानूनों ने उद्यमशीलता को हतोत्साहित किया, जिससे साम्राज्य की आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो गई।
- कला, संस्कृति और बुनियादी ढाँचे में गिरावट: कारीगरों को मिलने वाले संरक्षण में कमी आई, स्मारकीय वास्तुकला पर रोक लगी, सैन्य किलेबंदी पर ध्यान केंद्रित हुआ, जिससे आर्थिक विकास सीमित हो गया।
- उन्होंने राजस्व संग्रह की ज़ब्त प्रणाली जारी रखी, जिसने फसल की विफलता के बावजूद उच्च, अनम्य कर लगाए, जिससे किसान संकटग्रस्त हो गए और खाद्यान्न की कमी हो गई। सिंचाई और कृषि सुधारों में निवेश की कमी से आर्थिक स्थिरता और खराब हो गई।
मराठा साम्राज्य से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- मराठों का उदय:
- दक्कन में कमज़ोर पड़ते आदिलशाही और मुगल शासन का विरोध करके, छत्रपति शिवाजी (1630-1680) ने 17वीं सदी के मराठा साम्राज्य की आधारशिला रखी।
- मराठा साम्राज्य की औपचारिक स्थापना वर्ष 1674 में शिवाजी के छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक के साथ हुई और यह वर्ष 1819 तक चला, जब इसे अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी ने हरा दिया।
- मराठा साम्राज्य का उदय: मराठों के उत्थान को सामरिक, भौगोलिक और राजनीतिक कारकों के संयोजन के कारण माना जा सकता है।
- भौगोलिक लाभ: पश्चिमी घाट के बीहड़ इलाके ने प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान की और गुरिल्ला युद्ध रणनीति को सुविधाजनक बनाया, जबकि पहाड़ी पर स्थित अनेक किलों ने मराठा प्रतिरोध और सैन्य अभियानों को मज़बूत किया।
- धार्मिक और राजनीतिक एकता: शिवाजी के नेतृत्व ने मराठों को राजनीतिक रूप से एकीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि भक्ति आंदोलन ने धार्मिक सामंजस्य को बढ़ावा दिया।
- संत तुकाराम, समर्थ रामदास और एकनाथ जैसे आध्यात्मिक नेताओं ने लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया।
- प्रशासनिक और सैन्य अनुभव: मराठों ने बीजापुर और अहमदनगर सल्तनत में प्रमुख पदों पर कार्य करके बहुमूल्य प्रशासनिक और सैन्य अनुभव प्राप्त किया।
संभाजी महाराज
- परिचय: छत्रपति शिवाजी महाराज और साईबाई निंबालकर के सबसे बड़े पुत्र, संभाजी महाराज (1657-1689), वर्ष 1681 में मराठा सिंहासन पर बैठे।
- उनका शासनकाल मुगल साम्राज्य, विशेषकर औरंगज़ेब के विरुद्ध अटूट प्रतिरोध के लिये जाना जाता है।
- प्रारंभिक जीवन और राज्याभिषेक: उनका जन्म 14 मई 1657 को हुआ था, 2 वर्ष की आयु में उनकी माँ का निधन हो गया और उनका पालन-पोषण उनकी दादी जीजाबाई की देखरेख में हुआ।
- उन्होंने छोटी उम्र से ही सैन्य कौशल दिखाया, जब वे केवल 16 वर्ष के थे तब उन्होंने रामनगर में अपनी पहली लड़ाई का नेतृत्व किया।
- उन्होंने येसुबाई से विवाह किया और उनका एक पुत्र शाहू महाराज था।
- मुगलों के साथ संघर्ष:
- औरंगज़ेब के विरुद्ध प्रतिरोध: संभाजी ने मुगलों और अन्य क्षेत्रीय शत्रुओं के विरुद्ध अपने पिता के संघर्ष को जारी रखा।
- बुरहानपुर पर आक्रमण (1681): उन्होंने सफलतापूर्वक मुगल गढ़ बुरहानपुर पर आक्रमण किया, जिससे औरंगज़ेब की सेना को बड़ा झटका लगा।
- गुरिल्ला युद्ध: उन्होंने निरंतर होने वाले मुगल आक्रमणों का मुकाबला करने के लिये गुरिल्ला रणनीति का प्रभावी रूप से उपयोग किया, जिससे दुश्मनों को व्यापक नुकसान हुआ।
- प्रग्रहण और फाँसी:
- वर्ष 1689 में संभाजी के साले गणोजी शिर्के ने उनके साथ छल किया और मुगलों को उनके स्थान की सूचना दी।
- उन्हें उनके करीबी सहयोगी कवि कलश के साथ संगमेश्वर में पकड़ लिया गया।
- औरंगज़ेब के अधीन होने से इनकार करते हुए, उन्हें 11 मार्च 1689 को पुणे के समीप तुलापुर में फाँसी दिये जाने से पहले क्रूर यातनाएँ दी गईं।
छत्रपति शिवाजी से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- मुगलों के साथ संघर्ष: शिवाजी ने अहमदनगर और जुन्नार (1657) के पास मुगल क्षेत्रों पर आक्रमण किया, जिसके प्रत्युत्तर में औरंगज़ेब ने नासिरी खान को भेजा, जिसने शिवाजी की सेना को पराजित किया।
- वर्ष 1659 में शिवाजी ने पुणे में शाइस्ता खान और बीजापुर सेना को हराया और वर्ष 1664 में व्यापारिक बंदरगाह को अपने कब्ज़े में ले लिया।
- राजा जय सिंह प्रथम के साथ पुरंदर की संधि (1665) के कारण मुगलों को कई किले सौंपने पड़े। शिवाजी आगरा में औरंगज़ेब के दरबार में जाने और अपने पुत्र संभाजी को भेजने के लिये भी सहमत हुए।
- प्रग्रहण और पलायन: वर्ष 1666 में, शिवाजी को आगरा में औरंगज़ेब के दरबार में बंदी बना लिया गया, लेकिन वे संभाजी के साथ भेष बदलकर भाग निकलने में सफल रहे।
- इसके बाद वर्ष 1670 तक मराठों और मुगलों के बीच शांति बनी रही। मुगलों द्वारा संभाजी को दी गई बरार की जागीर उनसे वापस ले ली गई थी। शिवाजी ने जवाबी कार्रवाई करते हुए तेजी से खोए हुए इलाकों को वापस हासिल किया और दक्कन में मराठा नियंत्रण का विस्तार किया।
शिवाजी के उत्तराधिकारी
- संभाजी (1681-1689): उन्होंने विस्तारवादी नीतियाँ जारी रखीं लेकिन मुगलों ने उन्हें बंदी बना लिया और उन्हें फाँसी की सज़ा दी।
- राजाराम (1689-1700): मुगलों के खिलाफ प्रतिरोध किया और गिन्जी किले में शरण ली तथा बाद में सतारा में उनकी मृत्यु हो गई।
- शिवाजी द्वितीय और तारा बाई का शासन (1700-1714): राजाराम की मृत्यु के पश्चात् उनकी पत्नी तारा बाई ने संरक्षिका के रूप में शासन किया और मराठा प्रतिरोध का नेतृत्व किया।
- शाहू और पेशवाओं का उदय (1713 के बाद): संभाजी के पुत्र शाहू ने वर्ष 1713 में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा नियुक्त किया, जिससे मराठा प्रशासन में पेशवा प्रणाली का उदय हुआ।
शिवाजी के प्रशासन से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- केंद्रीय प्रशासन: शिवाजी ने दक्कन शैली, विशेष रूप से अहमदनगर में मलिक अंबर के सुधारों से प्रेरणा लेते हुए एक सुव्यवस्थित प्रशासन की स्थापना की।
- इसके अंतर्गत राजा सर्वोच्च अधिकारी होता था, जिसकी सहायता के लिये अष्टप्रधान (आठ मंत्रियों की परिषद) होता था, जिसमें निम्नलिखित शामिल होते थे:
- पेशवा (प्रधानमंत्री): समग्र प्रशासन की देखरेख की ज़िम्मेदारी।
- अमात्य (वित्त मंत्री): राज्य के वित्त का प्रबंधन।
- सचिव: शाही आदेश जारी करना।
- मंत्री (आंतरिक मंत्री): आंतरिक कार्यों का प्रबंधन।
- सेनापति (कमांडर-इन-चीफ): सैन्य अभियानों का नेतृत्व करता था।
- सुमंत (विदेश मंत्री): विदेश नीति, युद्ध और शांति जैसे मामलों पर राजा को परामार्श देना।
- न्यायाध्यक्ष (मुख्य न्यायाधीश): न्यायिक मामलों की देखरेख करना।
- पंडितराव: धार्मिक कार्यों का प्रबंधन।
- चिटनिस (शाही सचिव) ने शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसके अंतर्गत राजा सर्वोच्च अधिकारी होता था, जिसकी सहायता के लिये अष्टप्रधान (आठ मंत्रियों की परिषद) होता था, जिसमें निम्नलिखित शामिल होते थे:
- प्रांतीय प्रशासन: साम्राज्य को प्रांतों, ज़िलों (तरफों) और उप-ज़िलों (परगना) में बाँटा गया था।
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स्थानीय अधिकारियों में देशमुख और देशपांडे (राजस्व संग्रहकर्ता) शामिल थे।
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राजस्व प्रशासन: शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और रैयतवाड़ी व्यवस्था की शुरुआत की, जिससे देशमुख, देशपांडे, पाटिल और कुलकर्णी जैसे वंशानुगत राजस्व अधिकारियों की भूमिका में बदलाव आया।
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उन्होंने मीरासदारों पर कड़ी नज़र रखी, जिनके पास वंशानुगत भूमि अधिकार थे। उनकी राजस्व प्रणाली मलिक अंबर की काठी प्रणाली के अनुरूप थी, जिसमें भूमि को काठी (Rod) का उपयोग करके मापा जाता था।
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प्रमुख राजस्व स्रोत:
- चौथ (राजस्व का 1/4) गैर-मराठा क्षेत्रों पर संरक्षण कर के रूप में इसकी वसूली की गई।
- सरदेशमुखी (10% कर) राज्य के बाहर के क्षेत्रों पर अधिरोपित।
- भ्रष्टाचार की रोकथाम करने के लिये मीरासदारों (वंशानुगत ज़मींदारों) की शक्ति को नियंत्रित किया गया।
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- सैन्य प्रशासन: शिवाजी के पास एक अत्यंत अनुशासित और कुशल सेना थी, जिसमें 30,000-40,000 सैनिकों की घुड़सवार सेना भी शामिल थी ।
- साधारण सैनिकों का भुगतान नकद में किया जाता था, जबकि सरदारों और कमांडरों को जागीर अनुदान (सरंजाम या मोकासा) प्रदान किया जाता था। उनकी सेना में शामिल थे:
- पैदल सेना (मावली पैदल सैनिक)
- घुड़सवार सेना (घुड़सवार और उपकरण प्रबंधकर्त्ता) तटीय क्षेत्रों की रक्षा के लिये एक मज़बूत नौसैनिक बल था।
- गुरिल्ला युद्ध की रणनीति शुरू की गई और कई रणनीतिक स्थानों को सुरक्षित किया गया।
- समुद्री व्यापार और तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये भारत की पहली नौसेना बल की स्थापना की गई।
- साधारण सैनिकों का भुगतान नकद में किया जाता था, जबकि सरदारों और कमांडरों को जागीर अनुदान (सरंजाम या मोकासा) प्रदान किया जाता था। उनकी सेना में शामिल थे:
निष्कर्ष:
शिवाजी के नेतृत्व और मराठों के दृढ़ विश्वास से मुगल सेना के प्रभुत्व पर नियंत्रण स्थापित हुआ और एक स्व-शासित राज्य की स्थापना के साथ भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। उनकी सैन्य शक्ति, प्रशासनिक दक्षता और शक्तिशाली साम्राज्यों के प्रति प्रतिरोधक्षमता की भारत के राजनीतिक पुनरुत्थान में अहम भूमिका रही।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. मराठा साम्राज्य के पतन के कारणों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'अष्ट प्रधान' ____________ मंत्रिपरिषद थी (a) गुप्त प्रशासन में उत्तर: (d) प्रश्न. मुगल भारत के संदर्भ में, जागीरदार और ज़मींदार के बीच क्या अंतर है/हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 उत्तर: (d) |


अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत की अध्यक्षता में IORA का विकास पथ
प्रिलिम्स के लिये:इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA), हिंद महासागर, आतंकवाद, मानव तस्करी, आपदा जोखिम प्रबंधन, समुद्री सुरक्षा, मत्स्य प्रबंधन, ब्लू इकोनॉमी, क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास (SAGAR) विज़न मेन्स के लिये:IORA में भारत की भूमिका और योगदान, क्षेत्रीय सहयोग में IORA की भूमिका |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत नवंबर 2025 में इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) के अध्यक्ष (वर्तमान में उपाध्यक्ष) का कार्यभार ग्रहण करेगा। इसका उद्देश्य संगठन के प्रशासन को और अधिक स्थिति स्थापक बनाना है।
- भारत आगामी दो वर्षों में IORA के बजट में वृद्धि करने, प्रौद्योगिकी के साथ डेटा प्रबंधन को उन्नत बनाने और समुद्री कार्य करने हेतु संस्थानों के साथ सहयोग करने की योजना बना रहा है।
इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) क्या है?
- परिचय: इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) हिंद महासागर की सीमा से लगे देशों के बीच आर्थिक सहयोग एवं क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने हेतु स्थापित एक अंतर-सरकारी संगठन है।
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IORA के सदस्य देश हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में व्यापार, निवेश तथा सतत् विकास से संबंधित विभिन्न पहलों पर कार्य करते हैं।
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पृष्ठभूमि: इसकी स्थापना 7 मार्च 1997 को हुई थी। IORA की परिकल्पना वर्ष 1995 में दक्षिण अफ्रीका के दिवंगत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला की भारत यात्रा के दौरान की गई।
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इस विचार के परिणामस्वरूप वर्ष 1995 में हिंद महासागर रिम पहल (IORI) और वर्ष 1997 में हिंद महासागर रिम क्षेत्रीय सहयोग संघ (IOR-ARC) का गठन हुआ, जिसे वर्तमान में IORA कहते हैं।
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सदस्यता: हिंद महासागर क्षेत्र के सभी संप्रभु देश जो चार्टर के सिद्धांतों और उद्देश्यों का पालन करने के लिये सहमत हैं, वे इसकी सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं।
- वर्तमान में, इसमें 23 सदस्य देश और 10 संवाद साझेदार शामिल हैं तथा IORA हिंद महासागर क्षेत्र के माध्यम से देशों को जोड़ते हुए एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया को कवर करता है।
हिंद महासागर क्षेत्र
- हिंद महासागर क्षेत्र, व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भीतर एक अद्वितीय भू-राजनीतिक और आर्थिक अंचल है।
- यहाँ विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या का वास है और वैश्विक व्यापार तथा ऊर्जा सुरक्षा में इसकी अहम भूमिका है।
- वैश्विक व्यापार का 75% और दैनिक तेल खपत का 50% व्यापार हिंद महासागर से होता है, जिससे 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है तथा वर्ष 2023 में अंतर-IORA व्यापार 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
IORA में भारत की भूमिका और रणनीतिक योगदान क्या है?
- SAGAR विज़न के साथ संरेखण: क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास (SAGAR) का भारत का दृष्टिकोण IORA के रणनीतिक उद्देश्यों के साथ निकटता से संबद्ध है, जिसमें समुद्री सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और सतत् विकास पर ज़ोर दिया गया है।
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राजनयिक और आर्थिक संबंधों का पूर्णतम उपयोग: भारत को क्षेत्रीय चुनौतियों के लिये दीर्घकालिक, सतत् और सहयोगात्मक समाधान को बढ़ावा देने के लिये IORA सदस्य देशों के साथ अपने सुदृढ़ राजनयिक और आर्थिक संबंधों का पूर्णतम उपयोग करना चाहिये।
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IORA के बजट में वृद्धि: भारत आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये शिपिंग, तेल, गैस और पर्यटन जैसे समुद्री क्षेत्रों का लाभ उठाते हुए सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से IORA के लिये स्थायी वित्तपोषण प्राप्त करने की योजना बना रहा है।
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प्रौद्योगिकी का एकीकरण: भारत का लक्ष्य डिजिटल उपकरणों के माध्यम से डेटा प्रशासन और नीति विश्लेषण को बढ़ाना है, ताकि पारदर्शिता, दक्षता और तेज़ी से निर्णय लेना सुनिश्चित हो सके।
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समुद्री क्षमता निर्माण: भारत समुद्री-केंद्रित पाठ्यक्रम शुरू करने के लिये शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी करेगा, तथा नीली अर्थव्यवस्था में नवाचार और विकास को बढ़ावा देने के लिये कुशल कार्यबल का निर्माण करेगा।
हिंद महासागर क्षेत्र में IORA की भूमिका क्या है?
- क्षेत्रीय सहयोग में भूमिका: IORA को सबसे दीर्घकालिक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठनों में से एक माना जाता है, तथा यह अपने सदस्य देशों के बीच बहुमुखी सहयोग को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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संवाद की सुविधा: IORA सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान, आपदा जोखिम प्रबंधन और समुद्री सुरक्षा पर संरचित संवाद को सक्रिय रूप से सुविधाजनक बनाता है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय लचीलापन को मज़बूत करना और सतत् विकास को बढ़ावा देना है।
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मध्यम और छोटी शक्तियों का प्रभाव: जबकि अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसी वैश्विक शक्तियाँ संवाद भागीदार (Dialogue Partners) के रूप में संलग्न हैं, IORA मुख्य रूप से मध्यम और छोटी शक्तियों द्वारा संचालित है जो इसके एजेंडे और निर्णयों को आकार देते हैं।
IORA के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
- वित्तीय बाधाएँ: IORA को महत्वपूर्ण वित्तीय बाधाओं (वर्ष 2020-2025 के लिये 1.3 बिलियन अमरीकी डॉलर का बजट) का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इसका वार्षिक बजट सदस्य-राज्य के योगदान पर बहुत अधिक निर्भर रहता है, जो इसके संचालन का विस्तार करने और व्यापक पैमाने पर पहल को लागू करने की क्षमता को सीमित करता है।
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सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात और फ्राँस को छोड़कर अधिकांश IORA सदस्य, सीमित बजट वाली विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ हैं, जिससे संगठन की वित्तीय स्थिरता कमज़ोर हो रही है।
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संसाधन-गहन सहभागिता क्षेत्र: समुद्री सुरक्षा, मत्स्य प्रबंधन, आपदा जोखिम न्यूनीकरण, नीली अर्थव्यवस्था जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में IORA का विस्तारित अधिदेश, निरंतर वित्तीय और संस्थागत संसाधनों की मांग करता है, जो इसके प्रभावी कार्यान्वयन और दीर्घकालिक प्रभाव के लिये चुनौती प्रस्तुत करता है।
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निजी क्षेत्र की भागीदारी: IORA को शिपिंग, तेल एवं गैस, तथा पर्यटन जैसे प्रमुख समुद्री उद्योगों से निजी क्षेत्र की भागीदारी आकर्षित करने में कठिनाई हो रही है।
- मज़बूत साझेदारी के बिना, वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों, बेहतर परिचालन दक्षता और दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता से वंचित होने का जोखिम है।
- सीमित संस्थागत क्षमता: मॉरीशस में IORA का सचिवालय एक छोटे कार्यबल और सीमित संसाधनों के साथ काम करता है, जो प्रशासनिक और रणनीतिक कार्यों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की इसकी क्षमता को सीमित करता है।
- डेटा प्रबंधन में चुनौतियाँ: उन्नत डेटा प्रबंधन प्रणालियों की कमी के कारण रिकॉर्ड रखने में अक्षमता होती है, त्रुटि की संभावना बढ़ जाती है और सटीक नीति निर्माण और निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न होती है।
निष्कर्ष
- कुशल समुद्री कार्यबल के निर्माण के लिये उद्योग-अकादमिक सहयोग और प्रमुख क्षेत्रों में विशेष पाठ्यक्रमों की आवश्यकता होती है। साझेदारी को मज़बूत करने से नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है, चुनौतियों का समाधान हो सकता है और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो सकती है। चूँकि भारत IORA का नेतृत्व करता है, इसलिये क्षेत्रीय सहयोग और संसाधन संग्रहण में वृद्धि से इसका प्रभाव अधिकतम होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: IORA में भारत की रणनीतिक भूमिका का परीक्षण कीजिये। भारत सतत् क्षेत्रीय शासन के लिये निवेश और पारंपरिक ज्ञान का लाभ कैसे उठा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल को-ऑपरेशन (IOR-ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |


सामाजिक न्याय
कोविड-19 पश्चात् भारत में प्रवासन की प्रवृत्ति
प्रिलिम्स के लिये:प्रवासन, स्मार्ट सिटीज़ मिशन, ई-श्रम पोर्टल, विप्रेषण, डंकी रूट मेन्स के लिये:कोविड-19 के बाद भारत में प्रवासन की प्रवृत्ति, प्रवासन शासन और नीति कार्यान्वयन में चुनौतियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
कोविड-19 महामारी के पाँच वर्ष पश्चात्, भारत के प्रवासन पैटर्न में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन दर्ज किया गया है। जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में पुनः प्रवास शुरू हो गया है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय उत्प्रवासन भी अधिक विविध हुआ है।
- इन प्रवृत्तियों को समझना तथा प्रवासन शासन में सुधार करना, प्रवासियों की चुनौतियों का समाधान करने तथा प्रवासन के लाभों को अधिकतम करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
कोविड-19 पश्चात् भारत में प्रवासन की प्रमुख प्रवृत्ति क्या है?
- नगरीय क्षत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासन: कोविड-19 संकट के कारण अभूतपूर्व रूप से नगरों से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने प्रवास किया, जिसमें पहले लॉकडाउन के दौरान 44.13 मिलियन व्यक्तियों ने नगरीय क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवास किया और दूसरे लॉकडाउन के दौरान 26.3 मिलियन व्यक्तियों ने प्रवास किया।
- वापस लौटने वाले प्रवासियों, मुख्य रूप से कम-कुशल श्रमिकों को अल्प वेतन, खाद्य असुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल का अभाव, भेदभाव, आर्थिक तनाव और बेरोज़गारी का सामना करना पड़ा क्योंकि नगरीय क्षेत्रों में रोज़गार नहीं था।
- ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र प्रवासन में पुनः वृद्धि: ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएँ वापस लौटने वाले कार्यबल को समायोजित करने की दृष्टि से अनुपयुक्त थीं, क्योंकि अपर्याप्त रोज़गार (मनरेगा से केवल आंशिक राहत प्राप्त हुई), निम्न पारिश्रमिक और नगरीय आकांक्षाओं के कारण प्रवासी व्यक्ति पुनः शहरों की ओर गमन करने के लिये प्रेरित हुए।
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन (जिसका लक्ष्य 100 नगरों को आधुनिक नगरीय केंद्रों के रूप में विकसित करना है और जो मुख्यतः प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर है) के कारण श्रमिक नगरों में प्रवास करने हेतु प्रोत्साहित होते हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत की 40% से अधिक आबादी का नगरीय क्षेत्रों में निवास होगा।
- जलवायु-प्रेरित प्रवासन: जलवायु परिवर्तन से विशेष रूप से ओडिशा जैसे कृषि प्रधान राज्यों से आकांक्षी और संकटपूर्ण प्रवासन प्रभावित हो रहा है (FAO-IIMAD रिपोर्ट)।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में परिवर्तन: हालाँकि कोविड-19 के दौरान, भारतीय प्रवासियों को नौकरी छूटने, वेतन में कटौती और अनुपयुक्त स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं का सामना करना पड़ा किंतु विप्रेषण सुदृढ़ रहा (वर्ष 2020 में 83.15 बिलियन अमरीकी डॉलर) तथा इसके साथ ही भारतीय स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की वैश्विक माँग में भी वृद्धि हुई है।
- कोविड के बाद, कई भारतीय प्रवासी बेहतर अवसरों की तलाश में खाड़ी देशों से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (AE) की ओर गमन किया।
- भारतीय मूल के व्यक्ति सूचना प्रौद्योगिकी, विनिर्माण में अवसरों के लिये यूरोप (कुशल पेशेवरों हेतु वर्ष 2023 के यूरोपीय संघ ब्लू कार्ड कार्यक्रम के माध्यम से) और अफ्रीका में संभावनाओं की खोज कर रहे हैं।
- कनाडा की एक्सप्रेस एंट्री और ऑस्ट्रेलिया की आव्रजन नीतियों से भारत के कुशल पेशेवर आकर्षित हुए हैं जिसमें उच्च वेतन वाला रोज़गार प्रदान किया जाता है जिससे विप्रेषण में बढ़ोतरी हुई (वर्ष 2023-24 में 118.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर)।
- महामारी के बाद छात्र प्रवास में वृद्धि हुई है जिसमें केरल में छात्र प्रवासियों की संख्या वर्ष 2018 के 1.29 लाख से बढ़कर वर्ष 2023 में 2.5 लाख हो गई है।
- शिक्षा से संबंधित विप्रेषण वर्ष 2021 में 3,171 मिलियन अमेरिकी डॉलर के उच्चतम स्तर पर रहा, जो अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन प्रवृत्तियों में वृद्धि को दर्शाता है।
- कोविड के बाद, कई भारतीय प्रवासी बेहतर अवसरों की तलाश में खाड़ी देशों से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (AE) की ओर गमन किया।
प्रवासन प्रशासन में भारत के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- अपर्याप्त प्रवासन डेटा प्रणाली: वर्ष 2021 की जनगणना में हुए विलंब और पुराने प्रवासन आँकड़ों से नीति नियोजन सीमित होता है।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2020-21 में 28.9% की प्रवासन दर दर्ज की गई, जो वर्ष 2007-08 के 28.5% में हुई सामान्य वृद्धि को दर्शाता है।
- हालाँकि, कोविड-19 प्रवास प्रवाह के दौरान एकत्र किया गया यह डेटा दीर्घकालिक रुझानों को प्रतिबिंबित करने की दृष्टि से अनुपयुक्त है।
- विदेश मंत्रालय (MEA) के आँकड़ों में प्रवासियों, विशेषकर अस्थायी और मौसमी प्रवासियों की संख्या को कम करके आँका जाता है। इसके अतिरिक्त, 'डंकी रूट' के माध्यम से अवैध प्रवासन को आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया है।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का कमज़ोर कार्यान्वयन: असंगठित श्रमिकों को कवर करने के उद्देश्य से बनाया गया ई-श्रम पोर्टल (वर्ष 2021) कम जागरूकता और डिजिटल बहिष्कार से ग्रस्त है।
- वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) का उद्देश्य प्रवासियों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है, लेकिन अभी भी एक बड़ा वर्ग इससे वंचित है।
- अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 के कमज़ोर कार्यान्वयन के कारण अपर्याप्त निगरानी और गैर-लाइसेंस प्राप्त ठेकेदारों के कारण कई श्रमिक अपंजीकृत और असुरक्षित रह जाते हैं।
- वर्ष 2020 में शुरू किये गए चार नए श्रम संहिताओं का उद्देश्य प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा का विस्तार करना है, लेकिन नियम बनाने और लागू करने में देरी का सामना करना पड़ रहा है।
- पात्रता की सीमित पोर्टेबिलिटी: दूसरे क्षेत्रों में जाने पर प्रवासी प्रायः राज्य-विशिष्ट योजनाओं तक पहुँच खो देते हैं। ONORC और आयुष्मान भारत के बावजूद, अंतर-राज्यीय नीति सामंजस्य कमज़ोर बना हुआ है।
- सुभेद्द समूहों की उपेक्षा: प्रवासन नीतियों में प्रायः महिलाओं और बच्चों की अनदेखी की जाती है।
- महिलाओं को तस्करी और शोषण जैसे खतरों का सामना करना पड़ता है, जबकि प्रवासी बच्चों को शिक्षा में व्यवधान, खराब स्वास्थ्य सेवा से जूझना पड़ता है, जिससे उनके हाशिये पर जाने और उनके साथ दुर्व्यवहार होने की संभावना बढ़ जाती है।
- कम कुशल प्रवासियों के लिये कमज़ोर संरक्षण: खाड़ी देशों के राष्ट्रीयकरण की नीतियों (निताकत, अमीरातीकरण) के कारण रोज़गार के अवसर कम हो रहे हैं, जबकि कम कुशल प्रवासियों को खराब कार्य स्थितियों और वेतन चोरी का सामना करना पड़ रहा है।
- प्रवासियों को पर्याप्त कौशल और प्रस्थान-पूर्व अभिविन्यास प्रदान करने में कमियाँ हैं, जो विदेश में उनकी तैयारी और सुरक्षा को प्रभावित करती हैं।
- स्थानीय शासन की सीमित भूमिका: पंचायतों में प्रायः प्रवासी आबादी को सहायता देने के लिये आवश्यक अधिकार, संसाधन और क्षमता का अभाव होता है।
- जलवायु-प्रेरित प्रवासन की अनदेखी: जलवायु तनाव (जैसे, बाढ़, सूखा, समुद्र-स्तर में वृद्धि) के कारण होने वाले प्रवासन को आपदा या जलवायु अनुकूलन नीतियों में मान्यता नहीं दी जाती है।
- इससे संकट से प्रेरित गतिशीलता से गुज़र रहे समुदायों के प्रति नीतिगत उपेक्षा होती है।
- बहिष्करण और भेदभाव: प्रवासियों को प्रायः विशेष रूप से गंतव्य शहरों में विदेशी द्वेष, सांस्कृतिक अलगाव और सामाजिक समावेशन की कमी का सामना करना पड़ता है।
भारत अपनी प्रवासन प्रशासन को कैसे मज़बूत कर सकता है?
- राष्ट्रीय प्रवासन डेटा मॉडल: केरल प्रवासन सर्वेक्षण मज़बूत डेटा प्रदान करते हैं, जिससे बेहतर नीतियाँ बनती हैं। ओडिशा, तमिलनाडु, गुजरात और पंजाब जैसे राज्य इस मॉडल को अपना रहे हैं।
- राष्ट्रीय स्तर पर इसे अपनाने से प्रवासन शासन को मानकीकृत और उन्नत किया जा सकेगा।
- राष्ट्रीय प्रवासन नीति: प्रवासी श्रमिकों पर नीति आयोग की राष्ट्रीय नीति के मसौदे को शीघ्र लागू करना, जो उनके समग्र विकास पर केंद्रित है।
- आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन दोनों को संबोधित करने के लिये एक एकीकृत ढाँचा तैयार करने पर विचार करना, अधिकार-आधारित और लैंगिक-संवेदनशील प्रावधानों के साथ अंतर-मंत्रालयी समन्वय (श्रम, विदेश मंत्रालय, शहरी मामले) सुनिश्चित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन ढाँचे को बढ़ाना: यूरोपीय संघ (EU) और अफ्रीका में उभरते गंतव्यों के साथ श्रम गतिशीलता समझौतों का विस्तार करना।
- भारत प्रवासन केंद्र (विदेश मंत्रालय का शोध थिंक टैंक) प्रस्थान-पूर्व अभिविन्यास प्रशिक्षण (PDOT) और कौशल निर्माण कार्यक्रमों को मज़बूत बनाने में मदद कर सकता है, तथा उन्हें गंतव्य-विशिष्ट मांगों के साथ संरेखित कर सकता है।
- सामाजिक सुरक्षा पहुँच और पोर्टेबिलिटी में सुधार: लाभों की अंतर-राज्य पोर्टेबिलिटी सहित सभी असंगठित और प्रवासी श्रमिकों की कवरेज़ सुनिश्चित करने के लिये सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 को प्रभावी ढंग से लागू करना।
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डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से राज्यों में पात्रताओं (राशन, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन) की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करना।
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नामांकन, कानूनी सहायता और शिकायत निवारण के लिये शहरी क्षेत्रों में वन-स्टॉप प्रवासी सुविधा केंद्र स्थापित करना।
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प्रवासन क्या है?
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: कोविड-19 के बाद भारत के प्रवासन शासन में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और सुधार के लिये नीतिगत उपाय सुझाइए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं? (2021) प्रश्न. पिछले चार दशकों में भारत के अंदर और बाहर श्रम प्रवास के रुझानों में बदलाव पर चर्चा कीजिये। (2015) |

