डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर
प्रिलिम्स के लिये:डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI), भारत का डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर- भारत के डिजिटल समावेशन में तेज़ी लाना, आधार, UPI (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) और फास्टैग। मेन्स के लिये:डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPIs), डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की चुनौतियाँ एवं लाभ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में नैसकॉम तथा आर्थर डी. लिटिल ने संयुक्त रूप से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसका शीर्षक है- भारत का डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर: भारत के डिजिटल समावेशन में तेज़ी, जिसमें कहा गया है कि भारत के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI), 2030 तक भारत को 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने की संभावना है।
DPI क्या है?
- परिचय: DPI डिजिटल पहचान, भुगतान बुनियादी ढाँचे एवं डेटा एक्सचेंज समाधान जैसे ब्लॉक या प्लेटफॉर्म को संदर्भित करता है जो देशों को अपने लोगों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने, नागरिकों को सशक्त बनाने के साथ-साथ डिजिटल समावेशन को सक्षम करके जीवन में सुधार करने में सहायता प्रदान करता है।
- DPI पारिस्थितिकी तंत्र: DPI लोगों, धन एवं सूचना के प्रवाह में मध्यस्थता करते हैं। ये तीन सेट एक प्रभावी DPI पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की नींव का भी निर्माण करते हैं:
- पहला, डिजिटल ID सिस्टम के माध्यम से लोगों का प्रवाह।
- दूसरा, वास्तविक समय में त्वरित भुगतान प्रणाली के माध्यम से धन का प्रवाह।
- और तीसरा, DPI के लाभों को वास्तविक बनाने तथा नागरिकों को डेटा को नियंत्रित करने की वास्तविक क्षमता के साथ सशक्त बनाने के लिये सहमति-आधारित डेटा साझाकरण प्रणाली के माध्यम से व्यक्तिगत जानकारी का प्रवाह।
- इंडियास्टैक: यह API (एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस) का एक सेट है जो सरकारों, व्यवसायों, स्टार्टअप के साथ-साथ डेवलपर्स को उपस्थिति-रहित, कागज़ रहित और कैशलेस सेवा वितरण की दिशा में भारत की कठिन समस्याओं को हल करने के लिये एक अद्वितीय डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करने की अनुमति देता है।
- भारत, इंडिया स्टैक के माध्यम से, डेटा एम्पावरमेंट प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) पर निर्मित सभी तीन मूलभूत DPI, डिजिटल पहचान (आधार), रियल-टाइम फास्ट पेमेंट (UPI) एवं अकाउंट एग्रीगेटर विकसित करने वाला पहला देश बन गया।
- DEPA एक डिजिटल ढाँचे का निर्माण करते है जो उपयोगकर्त्ताओं को तीसरे पक्ष की इकाई के माध्यम से अपनी शर्तों पर अपना डेटा साझा करने की अनुमति देता है, जिन्हें सहमति प्रबंधक के रूप में जाना जाता है।
- भारत, इंडिया स्टैक के माध्यम से, डेटा एम्पावरमेंट प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) पर निर्मित सभी तीन मूलभूत DPI, डिजिटल पहचान (आधार), रियल-टाइम फास्ट पेमेंट (UPI) एवं अकाउंट एग्रीगेटर विकसित करने वाला पहला देश बन गया।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- आर्थिक प्रभाव:
- रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की हो जाएगी जिसमें प्रमुख योगदान DPI को होगा जिससे देश को 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में मदद मिलेगी।
- DPI नागरिकों की दक्षता बढ़ाने और सामाजिक तथा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में भूमिका निभा सकता है।
- व्यापक उपयोग और पहुँच:
- वर्ष 2022 के अनुसार आधार, UPI और फास्टैग (FASTag) जैसे उन्नत DPI को व्यापक स्तर पर अपनाया गया है तथा आगामी 7-8 वर्षों में इसके विस्तार में और वृद्धि होने की संभावना है जिससे इसकी सेवाओं का प्रसार दूरवर्ती क्षेत्रों में भी संभव हो सकेगा।
- उक्त DPI का भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 0.9% का योगदान रहा है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रभावों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2030 तक GDP में इसका योगदान 2.9% -4.2% तक बढ़ने का अनुमान है।
- आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) जिसका उद्देश्य भारत के डिजिटल स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे का समर्थन करना है GDP की वृद्धि में योगदान करेगा।
- वैश्विक नेतृत्व:
- भारत वर्तमान में DPI के क्षेत्र में विकास करने, डिजिटल भुगतान के व्यापक उपयोग में सहायता प्रदान करने, डेटा-शेयरिंग बुनियादी ढाँचे को करने, घरेलू व्यवसायों को बढ़ावा देने तथा देश में उद्यमिता को बढ़ावा देने में वैश्विक नेता की भूमिका निभाता है।
- सरकारी सहायता और सूचना प्रौद्योगिकी इकोसिस्टम:
- DPI की सफलता में सरकार का अथक समर्थन और सूचना प्रौद्योगिकी बौद्धिक पूंजी तथा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान है जिससे नवाचार एवं विकास के लिये अनुकूल वातावरण तैयार होता है।
- विकास और बेहतर उपयोगकर्त्ता अनुभव:
- यह अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान डिजिटल इकाइयाँ AI, वेब 3 और अन्य अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके बेहतर उपयोगकर्त्ता अनुभव प्रदान करने के लिये विकसित होंगी।
- आधार एक प्रमुख योगदानकर्त्ता बना रहेगा क्योंकि इसके उपयोग के मामले सेवाओं की व्यापक श्रेणी तक विस्तारित हो गए हैं जिससे भारत के डिजिटल बुनियादी ढाँचे में इसकी भूमिका और सुदृढ़ हो गई है।
- डिजिटल क्रांति की नींव:
- भारत की डिजिटल क्रांति की नींव को DPI अथवा इंडिया स्टैक द्वारा आधार प्रदान किया गया है जिससे सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक विकास हेतु डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने की देश की क्षमता में वृद्धि हुई है।
- DPI को "टेक-एड" आकार देने के लिये आधारशिला बनाते हैं और अंततः "इंडिया@47" माइलस्टोन का लक्ष्य रखते हुए भारत के विकास पथ को आगे बढ़ाते हैं।
- चुनौतियाँ और सुझाव:
- जबकि DPI अवसर प्रदान करता है, चुनौतियाँ बनी रहती हैं। इनमें हितधारकों के बीच कनेक्शन की कमी, कोई वास्तविक समय डेटा नहीं, सीमित भाषा विकल्प और सरकारी सेवाओं से परे कम पहुँच शामिल है।
- सरकारों को नीतिगत समर्थन और नियामक स्पष्टता प्रदान करनी चाहिये तथा DPI को अपनाने के लिये कार्यबलों का गठन करना चाहिये। उन्हें स्टार्टअप्स और उद्यमों के साथ साझेदारी पर भी विचार करना चाहिये।
भारत के DPI पारिस्थितिकी तंत्र के स्तंभ क्या हैं?
- आधार:
- आधार सामाजिक और वित्तीय समावेशन, सार्वजनिक क्षेत्र की सुविधाओं तक पहुँच में सुधारों, वित्तीय बजटों के प्रबंधन, सुविधा बढ़ाने तथा समस्या मुक्त जन-केंद्रित शासन को बढ़ावा देने के लिये एक रणनीतिक नीति उपकरण है।
- आधार धारक स्वेच्छा से अपने आधार का उपयोग निजी क्षेत्र के उद्देश्यों के लिये कर सकते हैं और निजी क्षेत्र की संस्थाओं को ऐसे उपयोग हेतु विशेष अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
- डिजीयात्रा:
- डिजीयात्रा, चेहरा पहचान प्रणाली (FRT) केआधार पर हवाई अड्डों पर यात्रियों की संपर्क रहित, निर्बाध यात्रा प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये इस परियोजना पर विचार किया गया है।
- इस परियोजना का मूल विचार यह है कि कोई भी यात्री बिना किसी कागज़ के या बिना कोई संपर्क किये विभिन्न चेक पॉइंट से गुज़र सके। इसके लिये उसके चेहरे के फीचर्स का इस्तेमाल किया जाएगा जिससे उसकी पहचान स्थापित होगी जो सीधे उसके बोर्डिंग पास से जुड़ी होगी।
- डिजिलॉकर:
- डिजीलॉकर के 150 मिलियन उपयोगकर्त्ता हैं, जिसमें छह बिलियन दस्तावेज़ संग्रहीत हैं और सात वर्षों में 50 करोड़ रुपए के एक न्यूनतम बजट के साथ इसे कार्यान्वित किया गया है।
- उपयोगकर्त्ता अपने दस्तावेज़ जैसे- बीमा, चिकित्सा रिपोर्ट, पैन कार्ड, पासपोर्ट, विवाह प्रमाण-पत्र, स्कूल प्रमाण-पत्र एवं अन्य दस्तावेज़ डिजिटल प्रारूप में संग्रहीत कर सकते हैं।
- UPI:
- UPI (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) के माध्यम से लेन-देन का आँकड़ा प्रतिमाह आठ बिलियन तक पहुँच गया है, जिसका मासिक मूल्य 180 बिलियन अमेरिकी डॉलर है या यह मूल्य प्रतिवर्ष भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 65% है।
- UPI वर्तमान में नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (NACH), तत्काल भुगतान सेवा (Immediate Payment Service- IMPS), आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (Aadhaar enabled Payment System- AePS), भारत बिल भुगतान प्रणाली (BBPS), रुपे आदि सहित भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India- NPCI) संचालित प्रणालियों में सबसे बड़ा है।
नोट:
- DPI नागरिक-केंद्रित समाधान प्रदान करके मुख्य संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित होते हैं।
- सामाजिक और वित्तीय समावेशन को बढ़ाने के लिये भारत के इंटरऑपरेबल तथा ओपन-सोर्स DPI को अब 30 से अधिक देशों द्वारा अपनाया या विचार किया जा रहा है।
भारत में DPI की चुनौतियाँ क्या हैं?
- बुनियादी ढाँचे तक पहुँच का अभाव:
- कई क्षेत्रों में, विशेष रूप से ग्रामीण एवं दूर-दराज़ के क्षेत्रों में, विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल बुनियादी ढाँचे तक अपर्याप्त या कोई पहुँच नहीं है। बिज़ली तक सीमित पहुँच और कंप्यूटर व स्मार्टफोन जैसे आवश्यक डिजिटल हार्डवेयर की अनुपस्थिति समस्या को और भी बढ़ा देती है।
- डिजिटल डिवाइड:
- भारत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक बहुत बड़े डिजिटल विभेद का सामना कर रहा है। जबकि शहरी केंद्रों में आमतौर पर डिजिटल बुनियादी ढाँचे और सेवाओं तक बेहतर पहुँच होती है, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी होती है एवं तकनीकी असमानताओं का सामना करना पड़ता है।
- वहनीयता:
- भले ही डिजिटल बुनियादी ढाँचा उपलब्ध हो, इंटरनेट एक्सेस और डिजिटल उपकरणों की लागत कई व्यक्तियों एवं परिवारों के लिये निषेधात्मक हो सकती है, विशेषकर कम आय वाले समुदायों में।
- भाषा और विषय वस्तु बाधाएँ:
- गैर-अंग्रेज़ी बोलने वालों या जो लोग प्रचलित भाषा में पारंगत नहीं हैं, उन्हें कुछ प्रमुख भाषाओं में विषय-वस्तु की प्रबलता/प्रभुत्व के कारण बाहर रखा जा सकता है। स्थानीयकृत और प्रासंगिक विषय-वस्तु की कमी महत्त्वपूर्ण जानकारी तथा सेवाओं तक पहुँच में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
- शारीरिक और संज्ञानात्मक अक्षमताएँ:
- डिजिटल प्लेटफॉर्म में सीमित पहुँच सुविधाओं और डिज़ाइन संबंधी विचारों के कारण अक्षम व्यक्तियों को प्रायः डिजिटल प्रौद्योगिकियों तक पहुँचने एवं उनका उपयोग करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
- गोपनीयता के उल्लंघन और डेटा सुरक्षा के मुद्दों का डर व्यक्तियों को डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने से रोक सकता है, विशेषकर जब संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी की बात आती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
LAC पर चीन के 'ज़ियाओकांग' सीमा रक्षा गाँव
प्रिलिम्स के लिये:वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC), ज़ियाओकांग सीमा रक्षा गाँव, तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, नियंत्रण रेखा, वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम मेन्स के लिये:भारत चीन सीमा विवाद, भारत और उसके पड़ोस, भारत के हितों पर देशों की नीतियों का प्रभाव |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर हाल के घटनाक्रम में, चीनी नागरिकों ने पहले से खाली पड़े "ज़ियाओकांग" सीमा रक्षा गाँवों पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया है।
- वर्ष 2019 में चीन द्वारा निर्मित इन गाँवों ने भारतीय सेना के लिये चिंताएँ बढ़ा दी हैं, विशेषकर चीन-निर्मित बस्तियों पर कब्ज़ा करने वालों की प्रकृति और रणनीतिक निहितार्थों को लेकर।
"ज़ियाओकांग" सीमा रक्षा गाँव क्या हैं?
- मॉडल गाँव:
- ज़ियाओकांग या "समृद्ध गाँव" सीमा रक्षा गाँव चीन की सीमाओं, विशेषकर भारत के साथ LAC पर रणनीतिक बुनियादी ढाँचे के विकास की पहल का एक हिस्सा हैं।
- कब्ज़े के उल्लेखनीय क्षेत्रों में लोहित घाटी और अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के गाँव शामिल हैं।
- इनका निर्माण उन क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ क्षेत्रीय दावों का विरोध किया जाता है या संप्रभुता को सुदृढ़ करने की आवश्यकता अनुभव की जाती है।
- ज़ियाओकांग या "समृद्ध गाँव" सीमा रक्षा गाँव चीन की सीमाओं, विशेषकर भारत के साथ LAC पर रणनीतिक बुनियादी ढाँचे के विकास की पहल का एक हिस्सा हैं।
- दोहरे उपयोग वाला बुनियादी ढाँचा:
- "इन गाँवों को नागरिक उपनिवेश/व्यवस्था और सैन्य उपस्थिति सहित कई उद्देश्यों को पूरा करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, इसलिये इन्हें "दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढाँचे" के रूप में जाना जाता है।
- इनका निर्माण उन क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ क्षेत्रीय दावों का विरोध किया जाता है या जहाँ संप्रभुता को सुदृढ़ करने की आवश्यकता होती है।
- भारत के लिये संबद्ध चिंताएँ:
- क्षेत्रीय दावे: तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ भारत की सीमाओं पर चीन द्वारा 628 ऐसे गाँवों का निर्माण LAC के साथ क्षेत्रीय दावों पर बल देने के लिये एक ठोस प्रयास का प्रतीक है। यह भारतीय सैन्य रणनीतिकारों के लिये चिंताएँ बढ़ाता है, जो सीमा पर सतर्कता की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
- सैन्य निहितार्थ: गाँवों की दोहरे उपयोग की क्षमता पहले से ही तनावपूर्ण LAC पर बढ़ते सैन्यीकरण के बारे में चिंता उत्पन्न करती है।
- अनिश्चित प्रयोजन: इन गाँवों में नागरिक आबादी के विशिष्ट उद्देश्य और पैमाने के संबंध में पारदर्शिता की कमी संदेह तथा विश्वास-निर्माण के प्रयासों में बाधा उत्पन्न करती है।
LAC से संबंधित भारत की क्या पहल हैं?
चीन द्वारा किये गए बुनियादी ढाँचा विकास के प्रत्युत्तर में भारत ने वर्ष 2019 से अपने सीमा बुनियादी ढाँचे की क्षमता में वृद्धि करने के प्रयास तीव्र कर दिये हैं।
- वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम:
- वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम का लक्ष्य 663 सीमावर्ती गाँवों का आधुनिकीकरण करना है जिनमें से 17 को लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में चीन-भारत सीमा पर विकास के लिये चुना गया है।
- लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में चीन-भारत सीमा पर विकास करने के लिये चयनित 17 गाँवों के साथ, वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम का लक्ष्य 663 सीमावर्ती गाँवों का आधुनिकीकरण करना है।
- सीमा सड़क संगठन (BRO):
- BRO ने भारत-चीन सीमा पर 2,941 करोड़ रुपए परिव्यय की 90 बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ पूरी की हैं।
- इनमें से 36 परियोजनाएँ अरुणाचल प्रदेश से, 26 लद्दाख से और 11 जम्मू-कश्मीर से संबंधित हैं।
- BRO ट्रांस-अरुणाचल हाईवे, फ्रंटियर हाईवे और ईस्ट-वेस्ट इंडस्ट्रियल कॉरिडोर हाईवे सहित प्रमुख राजमार्गों के विकास में शामिल है जो विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी हिस्से तथा तवांग क्षेत्र में कनेक्टिविटी में सुधार के लिये निर्माणाधीन हैं।
- BRO ने भारत-चीन सीमा पर 2,941 करोड़ रुपए परिव्यय की 90 बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ पूरी की हैं।
- सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम (BADP):
- BADP एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास स्थित दूरवर्ती और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों की विशेष विकास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना है।
- इस कार्यक्रम का उपयोग बुनियादी ढाँचे, आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, संबद्ध क्षेत्रों से संबंधित परियोजनाओं के लिये किया जा सकता है।
- भारतीय रेल:
- भारतीय रेल भारतीय सेना की त्वरित लामबंदी की सुविधा के लिये पूर्वोत्तर क्षेत्र में रणनीतिक रेल लाइनों का निर्माण कर रहा है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) क्या है?
- परिचय:
- LAC का आशय भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र को चीनी-नियंत्रित क्षेत्र से अलग करने वाली सीमा से है।
- भारत का दावा है कि LAC की लंबाई 3,488 किमी. है, जबकि चीन का तर्क है कि यह लगभग 2,000 किमी. है।
- इस सीमांकन को तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है:
- पूर्वी क्षेत्र जिसमें अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम शामिल हैं।
- मध्य क्षेत्र उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश तक फैला हुआ है।
- पश्चिमी क्षेत्र लद्दाख में स्थित है।
- LAC का आशय भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र को चीनी-नियंत्रित क्षेत्र से अलग करने वाली सीमा से है।
- LAC को लेकर असहमति:
- LAC के संबंध में प्राथमिक विवाद विभिन्न क्षेत्रों में इसके संरेखण से उत्पन्न होता है। पूर्वी क्षेत्र में LAC वर्ष 1914 मैकमोहन रेखा का अनुसरण करती है, जिसमें ज़मीनी स्थिति को लेकर मामूली विवाद हैं।
- पश्चिमी क्षेत्र में प्रमुख असहमतियाँ मौजूद हैं, जो वर्ष 1959 में चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाई द्वारा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लिखे गए पत्रों से शुरू हुई हैं।
- मानचित्रों पर LAC का वर्णन केवल सामान्य शब्दों में किया गया था, न कि चीनी भाषा में।
- वर्ष 1962 के युद्ध के बाद नवंबर 1959 में चीनियों ने LAC से 20 किमी. पीछे हटने का दावा किया।
- वर्ष 2017 में डोकलाम संकट के दौरान, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारत से "1959 LAC" का पालन करने का आग्रह किया था।
- बाद के स्पष्टीकरणों के बावजूद, अस्पष्टता बनी रही, जिससे दोनों देशों द्वारा विपरीत व्याख्याएँ की गईं।
- चीन के LAC पदनाम पर भारत की प्रतिक्रिया:
- भारत ने शुरू में वर्ष 1959 और 1962 में LAC की अवधारणा को खारिज़ कर दिया था, इसकी अस्पष्ट परिभाषा तथा सैन्य बल के माध्यम से ज़मीनी वास्तविकताओं को बदलने के लिये चीन द्वारा संभावित शोषण पर चिंताओं का हवाला देते हुए।
- LAC के दृष्टिकोण में भारत का बदलाव 1980 के दशक के मध्य में सीमा पर बढ़ती मुठभेड़ों के कारण शुरू हुआ, जिससे सीमाओं पर गश्त की समीक्षा शुरू हुई।
- भारत ने वर्ष 1993 में औपचारिक रूप से LAC की अवधारणा को स्वीकार कर लिया और दोनों पक्षों ने LAC पर शांति बनाए रखने के लिये समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- भारत तथा चीन ने केवल LAC के मध्य क्षेत्र के लिये मानचित्रों का आदान-प्रदान किया है। पश्चिमी क्षेत्र के लिये मानचित्र "साझा" किये गए लेकिन औपचारिक रूप से कभी आदान-प्रदान नहीं और साथ ही LAC को स्पष्ट करने की प्रक्रिया वर्ष 2002 से प्रभावी रूप से स्थगित रही है।
- संघर्ष के सबसे गंभीर हालिया प्रकरण वर्ष 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी एवं वर्ष 2022 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में थे।
- LAC के दोनों ओर के पर्यवेक्षक इस बात से सहमत हैं कि वर्ष 2013 के बाद से गंभीर सैन्य टकरावों में वृद्धि हुई है।
- भारत ने शुरू में वर्ष 1959 और 1962 में LAC की अवधारणा को खारिज़ कर दिया था, इसकी अस्पष्ट परिभाषा तथा सैन्य बल के माध्यम से ज़मीनी वास्तविकताओं को बदलने के लिये चीन द्वारा संभावित शोषण पर चिंताओं का हवाला देते हुए।
- LAC बनाम पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा(LoC):
- नियंत्रण रेखा (LoC) की स्थापना वर्ष 1972 में कश्मीर युद्ध के बाद की गई थी, जो वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा वार्ता की गई युद्धविराम रेखा पर आधारित थी। इसकी अंतर्राष्ट्रीय कानूनी वैधता है और इसे दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षरित मानचित्रित किया गया है।
- दूसरी ओर, LAC पर दोनों देश सहमत नहीं हैं और इसे मानचित्रित नहीं किया गया है अथवा ज़मीन पर सीमांकित नहीं किया गया है।
- नियंत्रण रेखा (LoC) की स्थापना वर्ष 1972 में कश्मीर युद्ध के बाद की गई थी, जो वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा वार्ता की गई युद्धविराम रेखा पर आधारित थी। इसकी अंतर्राष्ट्रीय कानूनी वैधता है और इसे दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षरित मानचित्रित किया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सियाचिन ग्लेशियर स्थित है? (2020) (a) अक्साई चिन के पूर्व में उत्तर: (D) मेन्स:प्रश्न: दुर्गम क्षेत्र एवं कुछ देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारण सीमा प्रबंधन एक कठिन कार्य है। प्रभावशाली सीमा प्रबंधन की चुनौतियों एवं रणनीतियों पर प्रकाश डालिये। (मुख्य परीक्षा, 2016) |
भारत में बागवानी क्षेत्र
प्रिलिम्स के लिये:उद्यान कृषि, पोमोलॉजी, ओलेरीकल्चर, आर्बोरीकल्चर, आभूषणात्मक, पुष्पों की खेती, लैंडस्केप, बागवानी, एकीकृत बागवानी विकास मिशन, हरित क्रांति - कृष्णोन्नति योजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, उत्तर पूर्व और हिमालयी राज्यों के लिये बागवानी मिशन, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, केंद्रीय बागवानी संस्थान, भारत डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र (IDEA), बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB), कृषि अवसंरचना कोष, बीज प्रौद्योगिकी मेन्स के लिये:बागवानी और अर्थव्यवस्था में इसका योगदान। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल के वर्षों में भारत में आहार संबंधी प्राथमिकताओं में महत्त्वपूर्ण बदलाव देखा गया है जिसमें कैलोरी सेवन के साथ-साथ पोषण आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा रहा है।
- जनसंख्या में वृद्धि के साथ बदलती आहार संबंधी आवश्यकताओं के अनुरूप उद्यान कृषि/बागवानी कृषि (Horticulture) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
उद्यान कृषि क्या है?
- उद्यान कृषि (Horticulture), कृषि की वह शाखा है जो खाद्यान्न, औषधीय प्रयोजनों और शृंगारिक महत्त्व के लिये मनुष्यों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से उपयोग किये जाने वाले सघन रूप से संवर्द्धित पौधों से संबंधित है।
- यह सब्ज़ियों, फलों, फूलों, जड़ी-बूटियों, आभूषणात्मक अथवा विदेशी पौधों की कृषि, उत्पादन और बिक्री है।
- हॉर्टिकल्चर शब्द लैटिन शब्द Hortus (उद्यान) और Cultūra (कृषि) से मिलकर बना है।
- एल.एच.बेली को अमेरिकी उद्यान कृषि का जनक माना जाता है और एम.एच.मैरीगौड़ा को भारतीय उद्यान कृषि का जनक माना जाता है।
- वर्गीकरण:
- पोमोलॉजी (Pomology): फल और अखरोट की फसल का रोपण, कटाई, भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन।
- ओलरीकल्चर (Olericulture): सब्ज़ियों का उत्पादन और विपणन।
- आर्बोरिकल्चर (Arboriculture): अलग-अलग पेड़ों, झाड़ियों या अन्य बारहमासी लकड़ी के पौधों का अध्ययन, चयन और देखभाल।
- सजावटी बागवानी: इसके दो उपभाग हैं:
- फ्लोरीकल्चर (Floriculture): फूलों की कृषि, उपयोग एवं विपणन।
- लैंडस्केप बागवानी (Landscaping): बाह्य वातावरण को सुशोभित करने वाले पौधों का उत्पादन एवं विपणन।
भारत में बागवानी क्षेत्र की स्थिति क्या है?
- भारत फलों और सब्ज़ियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- भारतीय बागवानी क्षेत्र कृषि सकल मूल्य वर्धित ( Gross Value Added - GVA) में लगभग 33% योगदान देता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- भारत वर्तमान में खाद्यान्नों की तुलना में अधिक बागवानी उत्पादों का उत्पादन कर रहा है, जिसमें 25.66 मिलियन हेक्टेयर बागवानी से 320.48 मिलियन टन और बहुत छोटे क्षेत्रों से 127.6 मिलियन हेक्टेयर खाद्यान्न का उत्पादन होता है।
- बागवानी फसलों की उत्पादकता खाद्यान्नों की उत्पादकता (2.23 टन/हेक्टेयर के मुकाबले 12.49 टन/हेक्टेयर) की तुलना में बहुत अधिक है।
- वर्ष 2004-05 से वर्ष 2021-22 के बीच बागवानी फसलों की उत्पादकता में लगभग 38.5% की वृद्धि हुई है।
- खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारत कुछ सब्ज़ियों (अदरक तथा भिंडी) के साथ-साथ फलों (केला, आम तथा पपीता) के उत्पादन में अग्रणी है।
- निर्यात के मामले में भारत सब्ज़ियों में 14वें और फलों में 23वें स्थान पर है, और वैश्विक बागवानी बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी मात्र 1% है।
- भारत में लगभग 15-20% फल और सब्ज़ियाँ आपूर्ति शृंखला या उपभोक्ता स्तर पर बर्बाद हो जाती हैं, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) में योगदान करती हैं।
भारत में बागवानी क्षेत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- जलवायु परिवर्तन सुभेद्यता:
- अनियमित मौसम प्रणाली: तापमान, वर्षा एवं अप्रत्याशित मौसम की घटनाओं में बदलाव बागवानी फसलों के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है, जिससे उत्पादकता कम हो जाती है और फसल को हानि पहुँचती है।
- चरम घटनाएँ: सूखे, बाढ़ तथा चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता बागवानी उत्पादन को बाधित करती है और साथ ही फसल की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है।
- जल प्रबंधन संबंधी मुद्दे:
- जल की कमी:सिंचाई के जल तक सीमित पहुँच, अकुशल जल प्रबंधन प्रथाओं के साथ मिलकर, बागवानी फसलों के विकास में बाधा उत्पन्न करती है, विशेषकर जल-तनावग्रस्त क्षेत्रों में।
- जल संसाधनों का अतिदोहन: अस्थिर भू-जल निष्कर्षण एवं अकुशल सिंचाई तकनीकों के कारण जल संसाधनों में कमी हो रही है, जिससे जल की कमी की समस्या बढ़ गई है।
- कीट एवं रोग:
- कीटनाशक प्रतिरोध: पारंपरिक कीटनाशकों के प्रति कीटों एवं रोगों की बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता के लिये एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) को विकसित करने एवं अपनाने की आवश्यकता है।
- आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक कीटों (जैसे रेगिस्तानी टिड्डियों) तथा रोगों के विस्तार एवं प्रसार बागवानी फसलों के लिये खतरा उत्पन्न करता है, जिसके लिये सतर्क निगरानी तथा प्रबंधन रणनीतियों की आवश्यकता होती है।
- फसल कटाई के बाद के हानि तथा बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ:
- अपर्याप्त भण्डारण सुविधाएँ: उचित भंडारण अवसंरचना के अभाव के कारण फसल कटाई के बाद हानि होता है, जिससे बागवानी उत्पादों की शेल्फ लाइफ तथा बाज़ार मूल्य कम हो जाता है।
- कोल्ड चेन तथा परिवहन चुनौतियाँ: अपर्याप्त कोल्ड चेन सुविधाओं और अपर्याप्त परिवहन नेटवर्क के कारण खराब होने वाली बागवानी वस्तुओं की बर्बादी होती है।
बागवानी क्षेत्र में सुधार कैसे किया जा सकता है?
- जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं को अपनाना:
- बागवानी पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये जलवायु-लचीली फसल प्रजातियों तथा सतत् कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये बढ़ावा देना।
- बदलती जलवायु परिस्थितियों के लिये उपयुक्त सूखा-सहिष्णु एवं गर्मी प्रतिरोधी फसल प्रजातियों के अनुसंधान और विकास में निवेश करना।
- कुशल जल प्रबंधन:
- बागवानी में जल उपयोग दक्षता को अनुकूलित करने के लिये ड्रिप सिंचाई, वर्षा जल संचयन के साथ-साथ कुशल जल संरक्षित प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
- जल की कमी के मुद्दों के समाधान के लिये जल प्रबंधन रणनीतियों जैसे जल मूल्य निर्धारण तंत्र और वाटरशेड प्रबंधन पहल को लागू करना।
- एकीकृत कीट एवं रोग प्रबंधन:
- एकीकृत कीट और रोग प्रबंधन (IPM) अभ्यासों को अपनाने पर बढ़ावा देना, जैविक नियंत्रण, सांस्कृतिक प्रथाओं और कीटनाशकों के विवेकपूर्ण उपयोग पर जोर देना।
- कीटों और बीमारियों के प्रकोप की प्रभावी ढंग से निगरानी तथा प्रबंधन करने के लिये निगरानी तथा शीघ्र पहचान प्रणालियों को मज़बूत करना।
- बुनियादी ढाँचे और मूल्य शृंखला विकास में निवेश:
- फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने और बागवानी करने वाले किसानों के लिये बाज़ार पहुँच में सुधार करने हेतु कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं, पैकहाउसों तथा परिवहन नेटवर्क का उन्नयन एवं विस्तार करना।
- बागवानी मूल्य शृंखला की दक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास में सार्वजनिक-निजी भागीदारी और निवेश की सुविधा प्रदान करना।
- क्षमता निर्माण और ज्ञान हस्तांतरण:
- बागवानी किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों, अच्छी कृषि पद्धतियों और बाज़ार-उन्मुख उत्पादन पर प्रशिक्षण तथा विस्तार सेवाएँ प्रदान करना।
- बागवानी में सर्वोत्तम प्रथाओं और तकनीकी नवाचारों का प्रसार करने के लिये अनुसंधान संस्थानों, विश्वविद्यालयों तथा कृषि विस्तार एजेंसियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
बागवानी में सुधार के लिये सरकारी पहल क्या हैं?
- एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH):
- परिचय:
- एकीकृत बागवानी विकास मिशन फल, सब्ज़ी, मशरूम, मसालों, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको, बाँस आदि बागवानी क्षेत्र की फसलों के समग्र विकास हेतु एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
- नोडल मंत्रालय: कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय हरित क्रांति-कृषोन्नति योजना (Green Revolution - Krishonnati Yojana) के तहत एकीकृत बागवानी विकास मिशन (2014-15 से) लागू कर रहा है।
- फंडिंग पैटर्न: इस योजना के तहत भारत सरकार पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में विकास कार्यक्रमों के कुल परिव्यय का 60% योगदान करती है, जिसमें 40% हिस्सा राज्य सरकारों द्वारा दिया जाता है।
- भारत सरकार उत्तर-पूर्वी राज्यों और हिमालयी राज्यों के मामले में 90% योगदान करती है।
- MIDH के अंतर्गत उप-योजनाएँ:
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन: इसे राज्य बागवानी मिशन (State Horticulture Mission) द्वारा 18 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों के चयनित ज़िलों में लागू किया जा रहा है।
- पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये बागवानी मिशन (HMNEH): इस योजना को पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों में बागवानी के समग्र विकास के लिये लागू किया जा रहा है।
- केंद्रीय बागवानी संस्थान (CIH): इस संस्थान की स्थापना वर्ष 2006-07 में मेडी ज़िप हिमा (Medi Zip Hima), नगालैंड में की गई थी ताकि पूर्वोत्तर क्षेत्र में किसानों और खेतिहर मज़दूरों के क्षमता निर्माण तथा प्रशिक्षण के माध्यम से उन्हें तकनीकी ज्ञान प्रदान किया जा सके।
- परिचय:
- बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम:
- परिचय:
- यह एक केंद्रीय क्षेत्र का कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य चिह्नित उद्यान कृषि समूहों को विकसित करना और उन्हें विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाना है।
- उद्यान कृषि क्लस्टर' लक्षित उद्यान कृषि फसलों का एक क्षेत्रीय/भौगोलिक संकेंद्रण है।
- कार्यान्वयन: इसका कार्यान्वयन कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (National Horticulture Board- NHB) द्वारा किया जाता है। मंत्रालय ने 55 बागवानी/उद्यान समूहों की पहचान की है।
- उद्देश्य:
- CDP का लक्ष्य लक्षित फसलों के निर्यात में लगभग 20% सुधार करना और क्लस्टर फसलों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये क्लस्टर-विशिष्ट ब्रांड बनाना है।
- पूर्व-उत्पादन, उत्पादन, कटाई के बाद प्रबंधन, रसद, विपणन और ब्रांडिंग सहित भारतीय उद्यान क्षेत्र से संबंधित सभी प्रमुख मुद्दों का समाधान करना।
- भौगोलिक विशेषज्ञता का लाभ उठाना और उद्यान समूहों के एकीकृत एवं बाज़ार आधारित विकास को बढ़ावा देना।
- कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund) जैसी सरकार की अन्य पहलों के साथ तालमेल बिठाना।
- परिचय:
निष्कर्ष:
- मांग-संचालित उत्पादन, बढ़ी हुई उत्पादकता, प्रभावी ऋण, जोखिम प्रबंधन और बेहतर बाज़ार कनेक्शन प्राप्त करने के लिये, किसानों, सरकार, उपभोक्ताओं, उद्योग एवं शिक्षा/अनुसंधान को शामिल करते हुए बहु-हितधारक भागीदारी को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
- जैसा कि भारत फलों और सब्जियों (F&V) के लिये एक अग्रणी वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने का प्रयास कर रहा है, आगे का रास्ता सहयोगी प्रयासों और देश के छोटे पैमाने के किसानों के लिये ठोस आय एवं आजीविका की प्रगति को बढ़ावा देने हेतु सामूहिक समर्पण द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:Q.1 बागवानी फार्मों के उत्पादन, उसकी उत्पादकता एवं आय में वृद्धि करने में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एन.एच.एम.) की भूमिका का आकलन कीजिये। यह किसानों की आय बढ़ाने में कहाँ तक सफल हुआ है? (2018) Q.2 फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती है? (2021) Q.3 भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017) |