जैव विविधता और पर्यावरण
पश्चिमी घाट के घास के मैदानों को नुकसान
- 03 Jan 2019
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चर्चा में क्यों?
नए साल के आगमन के साथ ही पश्चिमी घाट के घास के मैदानों के लिये एक बुरी खबर ने भी दस्तक दी है। अंतर्राष्ट्रीय जर्नल ‘जैविक संरक्षण’ में प्रकाशित एक अध्ययन में यह खुलासा किया गया है कि पिछले चार दशकों में इस क्षेत्र से लगभग एक-चौथाई घास के मैदान गायब हो चुके हैं।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके पीछे मुख्य वज़ह विदेशी आक्रामक पेड़ हैं। हालाँकि पाइन, बबूल और नीलगिरि का उपयोग करते हुए घास के मैदान का वनीकरण का कार्य 1996 में ही समाप्त कर दिया गया था, लेकिन फिर भी विदेशी पेड़ इन पारिस्थितिक तंत्रों को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
- सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों के आधार पर भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER, तिरुपति) के वैज्ञानिकों सहित एक टीम ने तमिलनाडु के पलानी की पहाड़ियों में घास के मैदानों में ह्रास की स्थिति दर्ज़ की है। जिसके बाद इस टीम ने शोला घास के मैदानों में आए बदलावों के अध्ययन के बारे में सोचा।
- सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों की सूचना के आधार पर यह बताया गया कि शोला घास के मैदानी क्षेत्रों से करीब 60 फ़ीसदी क्षेत्र पूरी तरह बदल चुके हैं, जबकि 40 फ़ीसदी घास के मैदान गायब हो चुके हैं।
- इस नुकसान का अधिकांश हिस्सा नीलगिरि, पलानी और अनामलाई पर्वत श्रृंखलाओं के पहाड़ की चोटी पर हुआ, जहाँ पश्चिमी घाट के शोला-घास के मैदान के आधे से अधिक पारिस्थितिकी तंत्र इस क्षेत्र में शामिल हैं। इस नुकसान की मुख्य वज़ह विदेशी पेड़ों (देवदार, बबूल और नीलगिरी) का विस्तार ही है।
- शेष बचे घास के मैदानों के संरक्षण हेतु सभी संभव प्रयास किये जाने चाहिये।