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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन नहीं मानता मैकमोहन (McMahon) रेखा

  • 07 Jul 2017
  • 13 min read

संदर्भ और मुद्दा
1962 के बाद 55 वर्षों में पहली बार भारत और चीन की सेनाएँ एक महीने से अधिक समय से सिक्किम-भूटान-तिब्बत सीमा पर आमने-सामने खड़ी हैं। दोनों ओर से बयानबाजी का दौर जारी है और स्थिति यहाँ तक तनावपूर्ण हो चुकी है कि चीन ने अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिये युद्ध तक की चुनौती दे दी है। जवाब में भारत ने कहा कि वह अब 1962 वाला भारत नहीं है, तो चीन ने भी इससे मिलता-जुलता बयान जारी कर दिया। चीनी सैनिकों ने जून महीने की शुरुआत में भारतीय सेना से डोका-ला के लालटेन में 2012 में स्थापित दो बंकरों को हटाने को कहा था, जो चुंबी घाटी के पास और भारत-भूटान-तिब्बत ट्राईजंक्शन के कोने में पड़ते हैं। असल विवाद तब शुरू हुआ, जब चीन की सेना ने भारत के दो बंकरों को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद भारत ने इस इलाके में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिये और अधिक सैनिकों को तैनात कर दिया। अब चीन का कहना है कि यदि भारत गतिरोध खत्म करना चाहता है तो डोका-ला से अपने सैनिक हटा ले।

आइये, प्रश्नोत्तर के माध्यम से यह जानने-समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर मामला है क्या? विवाद ने इतना गंभीर रूप क्यों ले लिया? चीन उत्तेजक बयान देकर क्या जताना चाहता है? भारत के अमेरिका के साथ प्रगाढ़ संबंध क्या चीन को परेशान कर रहे हैं? कैसे पहले जैसी स्थिति को बहाल किया जा सकता है? इसके अलावा वर्तमान भारत-चीन विवाद पर भी कुछ प्रकाश डाला गया है।

1. कितने देशों के साथ चीन सीमा विवाद में उलझा हुआ है?
चीन के साथ 14 देशों (भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, कज़ाखस्तान, मंगोलिया, रूस, उत्तर कोरिया, वियतनाम, लाओस, म्याँमार, भूटान और नेपाल) की सीमाएँ लगती हैं, जो विश्व में सबसे अधिक है; इसके अलावा रूस के साथ भी इतने ही देशों की सीमाएँ लगती हैं। अपने अधिकांश पड़ोसी देशों के साथ चीन का सीमा विवाद बराबर चलता रहता है। समय के साथ चीन ने अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान, कज़ाखस्तान, म्याँमार, पाकिस्तान और रूस से अपने विवाद काफी हद तक सुलझा लिये हैं। वर्तमान समय में चीन का सबसे बड़ा सीमा विवाद भारत और कुछ हद तक भूटान के साथ चल रहा है। भू-सीमा के अलावा चीन के साथ चार देशों (जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और फिलिपींस) की समुद्री सीमा भी लगती है। इन समुद्री सीमाओं को लेकर भी चीन का विवाद चलता रहता है।

2. इन विवादों का प्रमुख कारण क्या है?
विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि एशियाई देशों के बीच सीमा विवाद की जड़ों में उन पर हुआ औपनिवेशिक शासन प्रमुख कारण है। एक-जैसा अतीत या उभयनिष्ठ संस्कृति न होने के बावजूद औपनिवेशिक शक्तियों ने मनमाने तरीके से कई आधुनिक देशों का निर्माण किया था। जबकि अफ्रीका, एशिया और दोनों अमेरिकी देशों के कई क्षेत्रों के बीच कठोर सीमाओं की अवधारणा कभी थी ही नहीं। इन क्षेत्रों या देशों के बीच विभिन्न जातीयताओं या संस्कृतियों के आधार पर अपेक्षाकृत लचीली (कम बाधित) सीमाएँ थीं। पूरी तरह सर्वेक्षित क्षेत्रीय राज्य का विचार एक आधुनिक पश्चिमी अवधारणा है, जो उनके उपनिवेशों पर भी थोप दी गई और कई बेमेल देश अस्तित्व में आए। इसी समयावधि में चीन को भी कई संधियों में शामिल होने के लिये मज़बूर किया गया था, जिनके बारे में उसका मानना है कि वे असमान थीं और वर्तमान विवादों में से अधिकांश इन्हीं की वजह से हैं।

3. क्या थी यह संधियाँ?
19वीं शताब्दी तथा 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में चीन को ब्रिटेन, फ्राँस, जर्मनी, अमेरिका, रूस और जापान के साथ कई प्रकार की संधियाँ करने को मज़बूर किया गया। इनमें से अधिकांश संधियों में चीनी सरकार ने उपनिवेशवादियों को संरक्षण दिया, उन्हें व्यापार करने के लिये विशेषाधिकार दिये और कुछ इलाके भी उन्हें सौंपे। चीन ने ब्रिटेन को हांगकांग, पुर्तगाल को मकाउ, अपने उत्तरी क्षेत्र का एक बड़ा भूभाग रूस के जार को , फ्राँस को अन्नम (अब वियतनाम में) तथा जापान को ताइवान का भूभाग सौंपा था। रूसी क्रांति के बाद बने सोवियत संघ ने तो चीन को उसका इलाका लौटा दिया, लेकिन अन्य उपनिवेशवादी शक्तियों ने इसके बाद भी कई दशकों तक एशिया से जाना गवारा नहीं किया और चीन के अधिकांश सीमा विवाद इसी औपनिवेशिक काल की देन हैं।

4. भारत और चीन के बीच क्या सीमा विवाद है?
भारत मैकमोहन रेखा को मान्यता देता है और इसे स्वीकार भी करता है, लेकिन चीन इसे मान्यता नहीं देता और न ही स्वीकार करता है। यह रेखा तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार में विदेश सचिव रहे सर हेनरी मैकमोहन ने खींची थी, जो ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के बीच हुए शिमला सम्मेलन के मुख्य वार्ताकार भी थे। इस सम्मेलन में चीन के वार्ताकार इवान चेन ने कहा था कि उन्हें भारत के साथ तिब्बत की सीमा पर चर्चा करने के लिये अधिकृत नहीं किया गया था। चीन की अनुपस्थिति में ब्रिटिश और तिब्बतियों के बीच मैकमोहन लाइन पर चर्चा हुई थी और जब चीन ने इस पर अपनी आपत्ति जताई तो इसे भारत और तिब्बत के बीच एक द्विपक्षीय समझौते के रूप में घोषित कर दिया गया था। तिब्बत के दक्षिण में स्थित क्षेत्र को ब्रिटिश भारत में घोषित कर दिया गया। इससे अरुणाचल प्रदेश का तवांग क्षेत्र भारत का हिस्सा बन गया। ऐतिहासिक रूप से इस हिस्से को दक्षिण तिब्बत के नाम से जाना जाता था। 1950 में तिब्बत ने स्वतंत्र क्षेत्र का अपना दर्जा खो दिया और यह क्षेत्र भारत के नियंत्रण में आ गया। चीन के इस क्षेत्र पर दावे के जवाब में भारत यह तर्क देता है कि जब मैकमोहन रेखा खींची गई थी, तब तिब्बत पर चीन की संप्रभुता नहीं थी। इसके अलावा, ऐतिहासिक रूप से भी अरुणाचल प्रदेश पर चीन का कोई दावा नहीं बनता। चीन ने तिब्बत पर कब्जा करने के बाद ही अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताना शुरू किया। ऐतिहासिक रूप से तवांग के अहोम राजाओं और देब राजाओं के अरुणाचल की जनजातियों के साथ आर्थिक संबंध थे। ल्हासा के साथ तवांग मठ के आध्यात्मिक संबंध थे और उसका प्रभाव अस्थायी नहीं था। वैसे भी अरुणाचल प्रदेश की जनजातियाँ दक्षिण को अपने अधिक निकट मानती थीं, क्योंकि 14 हजार से 18 हजार फीट ऊँचे दर्रों के कारण तिब्बत के साथ संपर्क करना बेहद कठिन था। ‘सीमा’ का केवल 65 से 70 किमी. क्षेत्र ऐसा था, जहाँ से नियमित संपर्क कर पाना संभव था। कुछ विचारकों का मत है कि इस प्रकार शिमला सम्मेलन में तिब्बत ने अपना कुछ क्षेत्र ब्रिटिश भारत के हाथों गँवा दिया। इसके अलावा ह्वेनसांग जैसे प्राचीन यात्रियों ने भी अपने वृत्तान्त में स्थानीय राज्यों के प्रभाव की बात कही है। यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि तिब्बत पर चीन के कब्जे से पहले तिब्बत के भारत के साथ संबंध कमोबेश शांतिपूर्ण थे।

5. इन विवादों को सुलझाने के प्रति चीन का क्या रवैया है?
हालाँकि चीन ने किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे देशों को क्षेत्रीय रियायतें दी हैं, लेकिन में किसी भी रूप में चीनी वर्चस्व के अधीन थे। इसके अलावा चीन लगभग हर उस संधि को नकारता है, जिसे उसने कम्युनिस्ट क्रांति होने से पहले मंज़ूरी दी थी। चीन का यह अड़ियल रवैया चर्चा का विषय है, क्योंकि कई विशेषज्ञ ऐतिहासिक संदर्भ में उस तिथि को निश्चित करने की बात करते हैं, जब देशों ने अपनी आधुनिक सीमाओं को परिभाषित किया, उदाहरण के लिये, मौर्य और मुगल साम्राज्यों ने भारत की वर्तमान उत्तरी सीमाओं से काफी आगे जाकर सीमा विस्तार किया था, जबकि चोल साम्राज्य का विस्तार वियतनाम तक हुआ था। अब यदि भारत भी चीन के जैसे तर्क देते हुए इन क्षेत्रों पर अपना ऐतिहासिक दावा जताने लगे तो यह कितना व्यावहारिक होगा? 

क्या है वर्तमान भारत-चीन विवाद का कारण? 
सिक्किम की सीमा पर एक इलाका है डोका-ला, जहाँ चीन, भारत और भूटान की सीमा मिलती है। और इसी इलाके में चीन को भारत ने सड़क बनाने से रोका। इसके बाद चीनी सेना ने भारत के दो बंकर नष्ट कर दिये और घटना के बाद से तनाव बढ़ता गया। भूटान ने भारत की मदद से चीन के सामने अपनी चिंता जाहिर की, क्योंकि चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं। इस बीच चीन ने भारत से उसकी सेना की गतिविधियों को लेकर आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई। चीनी सैनिकों के जमावड़े के बाद भारत ने भी अपने सैनिक डोका-ला में भेजे, जिन्हें नॉन-काम्बैटिव मोड में तैनात किया गया है। इस मोड में सैनिक अपनी बंदूक की नाल को ज़मीन की ओर रखते हैं।

  • भारत और चीन चुंबी घाटी के इलाके में आमने-सामने हैं, जहाँ भारत-भूटान और चीन तीन देशों की सीमाएँ मिलती हैं। डोका-ला पठार चुंबी घाटी का ही हिस्सा है, जहाँ भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तनाव हुआ है।
  • डोका-ला पठार के केवल 10-12 किमी. पर ही चीन का शहर याडोंग है, जो हर मौसम में चालू रहने वाली सड़क से जुड़ा है। डोका-ला पठार से नाथू-ला केवल 15 किमी. दूर है। 
  • जून की शुरुआत में चीनी कामगारों ने याडोंग से इस इलाके में सड़क को आगे बढ़ाने की कोशिश की, जिसकी वजह से ठीक इसी इलाके में भारतीय जवानों ने उन्हें ऐसा करने से रोका। 
  • भूटान सरकार भी डोका-ला इलाके में चीन की मौजूदगी पर विरोध जता चुकी है, जो कि जोम्पलरी रिज में मौजूद भूटान सेना के बेस से निकट है। 
  • इस पूरे विवाद से भारत की चिंता इस बात को लेकर है कि इस इलाके से चीन की तोपें चिकेन्स नेक (सिलीगुड़ी कॉरीडोर) नामक इस सँकरी पट्टी से काफी निकट तक आ सकती हैं, जो उत्तर-पूर्व को पूरे भारत से जोड़ती है।
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