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डेली न्यूज़

  • 23 Dec, 2023
  • 30 min read
सामाजिक न्याय

नरसंहार पर UNODC की वैश्विक अध्ययन रिपोर्ट, 2023

प्रिलिम्स के लिये:

नरसंहार (होमिसाइड) रिपोर्ट, 2023 पर वैश्विक अध्ययन, ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय  (UNODC), होमिसाइड, सतत विकास लक्ष्य।

मेन्स के लिये:

UNODC की होमिसाइड रिपोर्ट 2023 पर वैश्विक अध्ययन, गरीबी और भूखमरी से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) ने मानव वध  (Homicide) 2023 रिपोर्ट पर एक वैश्विक अध्ययन जारी किया है, जिसमें पाया गया कि नरसंहार सशस्त्र संघर्ष तथा आतंकवाद से भी बड़ा अपराध है।

  • नरसंहार (Homicide) किसी व्यक्ति की हत्या है, चाहे वह जानबूझकर या अनजाने में वैध या गैरकानूनी हो, जबकि हत्या (Murder) किसी व्यक्ति की पूर्व विचारपूर्वक इरादे या द्वेष से की गई गैरकानूनी है।
  • रिपोर्ट आपराधिक गतिविधियों और पारस्परिक संघर्ष से संबंधित हत्याओं के साथ-साथ "सामाजिक-राजनीतिक रूप से प्रेरित हत्याओं" जैसे मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं, मानवीय कार्यकर्त्ताओं एवं पत्रकारों की जानबूझकर हत्या की जाँच करती है।

नरसंहार रिपोर्ट, 2023 पर वैश्विक अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • हत्या की प्रवृत्तियाँ:
    • वर्ष 2019 और 2021 के बीच सालाना हत्या के कारण औसतन लगभग 440,000 मौतें हुईं।
    • वर्ष 2021 असाधारण रूप से विनाशकारी था, जिसमें 458,000 हत्याएँ हुईं। कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव तथा संगठित अपराध, गिरोह-संबंधी एवं सामाजिक-राजनीतिक हिंसा में वृद्धि ने इसे और अधिक बढ़ाने में अहम योगदान दिया।
    • 2021 और 2022 के बीच संघर्ष में होने वाली मौतों में 95% से अधिक वृद्धि के बावजूद, उपलब्ध आँकड़ों से पता चलता है कि 2022 में वैश्विक हत्या का बोझ संघर्ष में होने वाली मौतों से दोगुना था।
  • मानव वध  में योगदान देने वाले कारक:
    • वैश्विक नरसंहार में संगठित अपराध का योगदान 22% है, जो अमेरिका में 50% तक पहुँच गया है। संगठित अपराध समूहों और गिरोहों के बीच प्रतिस्पर्धा जानबूझकर की जाने वाली हत्याओं को काफी हद तक बढ़ा सकती है।
    • जलवायु परिवर्तन, जनसांख्यिकीय बदलाव, असमानता, शहरीकरण और तकनीकी परिवर्तन जैसे कारक विभिन्न क्षेत्रों में नरसंहार की दर को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करते हैं।

  • क्षेत्रीय विविधताएँ:
    • अमेरिका में प्रति व्यक्ति क्षेत्रीय नरसंहार दर उच्चतम है जोकि 2021 में प्रति 100,000 जनसंख्या पर 15 हत्याएँ थी।
    • अफ्रीका में प्रति 100,000 जनसंख्या पर 12.7 की नरसंहार दर के साथ सर्वाधिक हत्याएँ (176,000) दर्ज़ की गईं। अन्य क्षेत्रों की तुलना में अफ्रीका में हत्या की दरों में गिरावट नहीं देखी गयी।
    • एशिया, यूरोप और ओशिनिया में 2021 में प्रति 100,000 आबादी पर 5.8 के वैश्विक प्रति व्यक्ति औसत से नरसंहार दर बहुत कम  थी।
  • पीड़ित:  
    • हत्या के शिकार 81% और संदिग्धों में से 90% पुरुष थे, जबकि महिलाओं की हत्या की अधिक संभावना परिवार के सदस्यों या सुपरिचितों द्वारा की गईं, ऐसा पाया गया।
    • वर्ष 2021 में हत्या के शिकार 15% बच्चे थे, जिनकी संख्या 71,600 लड़के और लड़कियाँ थीं।
  • लक्षित हत्याएँ और सहायता कर्मियों पर प्रभाव:
    • मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों, सहायता कर्मियों आदि की जानबूझकर की गई हत्याएँ, वैश्विक हत्याओं का कुल 9% है।
    • मानवीय सहायता कर्मियों को वर्ष 2010-2016 की तुलना में वर्ष 2017-2022 के दौरान अधिक औसत मृत्यु का सामना करना पड़ा, जो खतरे के स्तर में वृद्धि का संकेत देता है।
  • अनुमान और भेद्यता:
    • वर्ष 2030 में वैश्विक मानवहत्या दर घटकर 4.7 होने का अनुमान है, हालाँकि यह सतत् विकास लक्ष्य लक्ष्य से कम है।
    • अफ्रीका को उसकी युवा आबादी, लगातार असमानता और जलवायु संबंधी चुनौतियों के कारण सबसे सुभेद्य क्षेत्र के रूप में पेश किया गया है।

भारत से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • हत्याओं के पीछे के उद्देश्य:
    • वर्ष 2019 और 2021 के दौरान भारत में दर्ज किये गए हत्या के लगभग 16.8% मामले संपत्ति, भूमि या जल तक पहुँच के विवादों से जुड़े थे।
    • वर्ष 2019 और 2021 के दौरान भारत में दर्ज की गई हत्याओं में से लगभग 0.5% (300 मामले) को विशेष रूप से जल से संबंधित संघर्षों के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया था, जो इस मुद्दे को मानव हत्याओं के एक महत्त्वपूर्ण करक के रूप में उभरने पर प्रकाश डालता है।
  • जल-संबंधी संघर्षों को बढ़ाने वाले कारक:
    • जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक विस्तार और जलवायु परिवर्तन: इन कारकों की पहचान जल अभिगम पर तनाव बढ़ाने वाले, जल संसाधनों पर विवादों से संबंधित हिंसा में वृद्धि में योगदान देने वाले कारकों के रूप में की गई थी।


शासन व्यवस्था

डाकघर विधेयक, 2023

प्रिलिम्स के लिये:

डाकघर अधिनियम, 1898, सार्वजनिक व्यवस्था, आपातकाल, सार्वजनिक सुरक्षा, भू-राजस्व, वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता का अधिकार

मेन्स के लिये:

डाकघर विधेयक, 2023 का महत्त्व

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रस्तुत किये गए डाकघर विधेयक, 2023 का उद्देश्य भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 को निरसित करना है, जो 125 वर्षों से अस्तित्त्व में है।

  • यह अधिनियम केंद्र सरकार के एक विभागीय उपक्रम भारतीय डाक का विनियमन करता है। उक्त विधेयक के तहत आपातकालीन अथवा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में अथवा किसी भी उल्लंघन की घटना पर केंद्र को किसी भी वस्तु को रोकने, खोलने अथवा हिरासत में लेने एवं सीमा शुल्क अधिकारियों को सौंपने का अधिकार दिया जाएगा।

विधेयक की मुख्य बातें क्या हैं?

  • डाक अधिकारी किसी भी वस्तु को "अंतर्रुद्ध" कर सकते हैं:
    • यह विधेयक केंद्र को राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, आपातकाल, सार्वजनिक सुरक्षा अथवा अन्य कानूनों के उल्लंघन के हित में किसी भी अधिकारी को "किसी भी वस्तु को रोकने, खोलने अथवा हिरासत में लेने" का अधिकार देने की अनुमति प्रदान करता है।
    • यह उपबंध डाक अधिकारियों को डाक वस्तुओं को सीमा शुल्क अधिकारियों को सौंपने की भी अनुमति देता है यदि उन्हें संदेह हो कि उनमें कोई निषिद्ध वस्तु है अथवा यदि ऐसी वस्तुओं पर शुल्क लगाया जा सकता है।
  • डाकघर को दायित्व से छूट:
    • यह विधेयक डाकघर तथा उसके अधिकारी को “डाकघर द्वारा प्रदान की गई किसी भी सेवा के दौरान वस्तु की किसी भी हानि, गलत डिलीवरी, देरी अथवा क्षति के कारण किसी भी दायित्व से छूट देता है, सिवाय ऐसे दायित्व के जो निर्धारित किया जा सकता है।” 
  • दोष और दंडों की समाप्ति:
    • यह विधेयक 1898 अधिनियम के तहत सभी दोष और दंडों को समाप्त करता है।
      • उदाहरणार्थ डाकघर के अधिकारियों द्वारा किये गए अपराध जैसे कदाचार, धोखाधड़ी तथा चोरी सहित अन्य अपराधों को पूर्ण रूप से से हटा दिया गया है।
      • यदि कोई व्यक्ति डाकघर द्वारा प्रदान की गई सेवा का लाभ उठाने के लिये शुल्क का भुगतान करने से इनकार करता है अथवा उपेक्षा करता है तो ऐसी राशि वसूली योग्य होगी जैसे कि यह उसे देय भू-राजस्व का बकाया हो।
  • केंद्र की विशिष्टता हटाना:
    • वर्तमान विधेयक के तहत 1898 के अधिनियम की धारा 4 को हटा दिया गया है, जो केंद्र को सभी पत्रों को डाक से भेजने का विशेष विशेषाधिकार प्रदान करता था।
      • हालाँकि कुरियर सेवाएँ अपने कोरियर को "पत्र" के स्थान पर केवल "दस्तावेज़" एवं "पार्सल" कहकर वर्ष 1898 के अधिनियम की अवहेलना कर रही हैं।
  • निजी कूरियर सेवाओं पर नियंत्रण:
    • 2023 विधेयक पहली बार निजी कूरियर सेवाओं को अपने दायरे में लाकर उन्हें नियंत्रित करता है।

विधेयक की समीक्षा क्या है?

  • यह विधेयक भारतीय डाक के माध्यम से प्रेषित लेखों की रोकथाम के लिये प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट नहीं करता है।
  • अवरोधन के आधारों में आपात्कालीन स्थितियाँ शामिल हैं, जो उचित प्रतिबंधों से परे हो सकती हैं।
  • यह विधेयक भारतीय डाक को डाक सेवाओं में चूक के लिये दायित्व से छूट देता है।
    • उत्तरदायित्व केंद्र सरकार द्वारा नियमों के माध्यम से निर्धारित किया जा सकता है, जो भारतीय डाक का प्रशासन भी करती है। इससे हितों का टकराव हो सकता है।
  • विधेयक में किसी अपराध और दंड का उल्लेख नहीं है।
    • किसी डाक अधिकारी द्वारा डाक लेखों को अनाधिकृत रूप से खोलने पर कोई परिणाम नहीं होगा। इससे उपभोक्ताओं की निजता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

आगे की राह

  • मज़बूत प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को शामिल करना:
    • भारतीय डाक के माध्यम से प्रेषित लेखों की रोकथाम के लिये प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का परिचय दीजिये। इसमें भाषण, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तियों की निजता के अधिकार की रक्षा हेतु निरीक्षण तंत्र, न्यायिक वारंट तथा संवैधानिक सिद्धांतों का पालन शामिल होना चाहिये।
  • अवरोधन के लिये आधार परिभाषित करना:
    • अवरोधन के आधारों को परिष्कृत और स्पष्ट रूप से परिभाषित करना, विशेष रूप से 'आपातकाल' शब्द को, यह सुनिश्चित करने के लिये कि यह संविधान के तहत उचित प्रतिबंधों के साथ संरेखित हो। संभावित दुरुपयोग को रोकने और व्यक्तिगत अधिकारों को बनाए रखने हेतु आपातकालीन शक्तियों के प्रयोग को सीमित करना।
  • संतुलित दायित्व ढाँचा:
    • डाकघर की स्वतंत्रता और दक्षता को खतरे में डाले बिना दायित्व के लिये स्पष्ट नियम निर्धारित करके उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करना। संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताओं का समाधान करना और हितों के टकराव को रोकना।
  • अनधिकृत उद्घाटन को संबोधित करना:
    • डाक अधिकारियों द्वारा डाक लेखों को अनाधिकृत रूप से खोलने को संबोधित करते हुए, विधेयक के भीतर विशिष्ट अपराधों और दंडों को फिर से प्रस्तुत करना। उपभोक्ताओं की निजता के अधिकार की सुरक्षा के लिये एक कानूनी ढाँचा स्थापित करना जो व्यक्तियों को कदाचार, धोखाधड़ी, चोरी तथा अन्य अपराधों हेतु ज़िम्मेदार ठहराए।

जैव विविधता और पर्यावरण

भारत का प्रथम शीतकालीन आर्कटिक अनुसंधान

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष मौसम, समुद्री बर्फ, महासागर परिसंचरण गतिशीलता, पारिस्थितिकी तंत्र, हिमाद्रि, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल, अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत का आर्कटिक क्षेत्र में शीतकालीन आर्कटिक अनुसंधान का महत्त्व।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने आर्कटिक में स्वालबार्ड के नॉर्वेजियन द्वीपसमूह के अंदर नाइ-एलेसुंड(Ny-Ålesund) में स्थित देश के आर्कटिक अनुसंधान स्टेशन हिमाद्रि के लिये भारत के पहले शीतकालीन वैज्ञानिक अभियान को आरंभ किया।

शीतकालीन आर्कटिक अनुसंधान अभियान का महत्त्व क्या है?

  • शीतकाल के समय आर्कटिक में भारतीय वैज्ञानिक अभियान शोधकर्त्ताओं को ध्रुवीय रातों के दौरान अद्वितीय वैज्ञानिक अवलोकन करने की अनुमति देंगे, जहाँ लगभग 24 घंटों तक सूर्य का प्रकाश नहीं होता है और तापमान शून्य से कम हो जाता है
  • यह पृथ्वी के ध्रुवों में हमारी वैज्ञानिक क्षमताओं का विस्तार करने में भारत के लिये और अधिक अवसर प्रदान करता है।
  • इससे आर्कटिक, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष मौसम, सागरीय-बर्फ और महासागर परिसंचरण गतिशीलता, पारिस्थितिकी तंत्र अनुकूलन आदि की समझ बढ़ाने में मदद मिलेगी, जो मानसून सहित उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मौसम और जलवायु को प्रभावित करते हैं।
  • भारत ने वर्ष 2008 से आर्कटिक में हिमाद्रि नामक एक अनुसंधान आधार संचालित किया है, जो ज़्यादातर ग्रीष्मकाल  (अप्रैल से अक्तूबर) के दौरान वैज्ञानिकों की मेज़बानी करता रहा है।
  • प्राथमिकता वाले अनुसंधान क्षेत्रों में वायुमंडलीय, जैविक, सागरीय और अंतरिक्ष विज्ञान, पर्यावरण रसायन विज्ञान और क्रायोस्फीयर, स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र और खगोल भौतिकी पर अध्ययन शामिल हैं।
  • भारत उन देशों के एक छोटे समूह में शामिल हो जाएगा जो शीतकाल के दौरान अपने आर्कटिक अनुसंधान क्षेत्रो का संचालन करते हैं।
  • हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग अनुसंधान वैज्ञानिकों को आर्कटिक क्षेत्र की ओर आकर्षित कर रहा है।

आर्कटिक पर वार्मिंग का क्या प्रभाव है?

  • पिछले 100 वर्षों में आर्कटिक क्षेत्र में तापमान औसतन लगभग 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, वर्ष 2023 के आँकड़ों के अनुसार यह सबसे गर्म वर्ष था।
  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल के अनुसार, आर्कटिक सागरीय बर्फ की सीमा 13% प्रतिदशक की दर से घट रही है।
  • पिघलती सागरीय बर्फ का आर्कटिक क्षेत्र से आगे तक वैश्विक प्रभाव हो सकता है।
  • सागर का बढ़ता स्तर वायुमंडलीय परिसंचरण को प्रभावित कर सकता है।
  • उष्णकटिबंधीय समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि हो सकती है, अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र में बदलाव हो सकता है और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि की संभावना हो सकती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण अनुकूल मौसम आर्कटिक को अधिक रहने योग्य और कम प्रतिकूल क्षेत्र बना सकता है।
  • आर्कटिक के खनिजों सहित उसके संसाधनों का पता लगाने और उनका दोहन करने की होड़ मच सकती है तथा देश इस क्षेत्र में व्यापार, नेविगेशन एवं अन्य रणनीतिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने की कोशिश कर सकते हैं।

नोटः

  • अंटार्कटिका में दक्षिण गंगोत्री की स्थापना बहुत पहले वर्ष 1983 में की गई थी। दक्षिण गंगोत्री अब बर्फ के नीचे डूबी हुई है, लेकिन भारत के दो अन्य स्टेशन, मैत्री और भारती, वर्तमान में संचालित हैं।
  • पृथ्वी के ध्रुवों (आर्कटिक और अंटार्कटिक) पर भारतीय वैज्ञानिक अभियानों को MoES की PACER (ध्रुवीय और क्रायोस्फीयर) योजना के तहत सुविधा प्रदान की जाती है, जो पूरी तरह से राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), गोवा, जो MoES की एक स्वायत्त संस्थान के तत्वावधान में कार्य करती है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रीलिम्स:

Q1. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला शब्द 'इन्डआर्क' किसका नाम है?

(a) देशज रूप से विकसित, भारतीय रक्षा (डिफेन्स) में अधिष्ठापित रेडार सिस्टम
(b) हिंद महासागर रिम के देशों को सेवा प्रदान करने हेतु भारत का उगप्रह
(c) भारत द्वारा अन्टार्कटिक क्षेत्र में स्थापित एक वैज्ञानिक प्रतिष्ठान
(d) आर्कटिक क्षेत्र के वैज्ञानिक अध्ययन हेतु भारत की अंतर्जलीय वेधशाला (अंडरवॉटर ऑब्जर्वेटरी)

उत्तर: D


मेन्स:

Q.1 भारत आर्कटिक प्रदेश के संसाधनों में किस कारण गहन रूचि ले रहा है?

Q.2 उत्तरध्रुव सागर में तेल की खोज के क्या आर्थिक महत्त्व हैं और उसके संभव पर्यावरणीय परिणाम क्या होंगे?


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

निकोटीन की लत का उपचार

प्रिलिम्स के लिये:

निकोटीन, निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी, राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम

मेन्स के लिये: 

निकोटीन की लत और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बोझ, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

निकोटीन की लत के उपचार को फिर से परिभाषित करने के लिये हाल ही में किये गए एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने विटामिन सी और कोटिनीन, निकोटीन मेटाबोलाइट का लाभ उठाने वाली एक सफल विधि, का अनावरण किया है।

  • यह दृष्टिकोण पारंपरिक निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी (NRT) से अलग है।

नोट:

  • निकोटीन एक पौधा एल्कलॉइड है जिसमें नाइट्रोजन होता है, जो तंबाकू के पौधे सहित कई प्रकार के पौधों में पाया जाता है और इसे कृत्रिम रूप से भी उत्पादित किया जा सकता है।
  • निकोटीन शामक और उत्तेजक दोनों गुणों वाला होता है। यह तंबाकू उत्पादों में मुख्य मनो-सक्रिय घटक है।
  • तंबाकू धूम्रपान के बाद कोटिनीन निकोटीन के एक प्रमुख मेटाबोलाइट के रूप में बनता है।

अध्ययन से संबंधित मुख्य बातें क्या हैं?

  • कोटिनीन का प्रयोग:
    • वर्तमान NRT पैच अथवा लोज़ेंज (औषधीय गोलियाँ) के माध्यम से शरीर को अतिरिक्त निकोटीन प्रदान करने पर निर्भर करता है।
      • व्यक्तियों के लिये धूम्रपान छोड़ना चुनौतीपूर्ण होता है, जो तलब, चिड़चिड़ापन, चिंता, भूख में वृद्धि और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई के रूप में प्रकट होता है।
    • शोधकर्त्ता एक वैकल्पिक दृष्टिकोण के रूप में कोटिनीन (निकोटीन के ऑक्सीडेटिव मेटाबोलाइट) का पता लगाते हैं।
      • मनुष्यों में आम तौर पर 80% निकोटीन शरीर में कोटिनीन के रूप में जमा होता है, जबकि शेष 20% मूत्र के माध्यम से शरीर के बाहर हो जाता है। कोटिनीन कैंसर का कारण बन सकता है।
      • शोधकर्त्ताओं ने कोटिनिन को वापस निकोटीन में परिवर्तित करने के लिये एक अवकारक/अपचायक अभिकर्मक के रूप में एस्कॉर्बिक एसिड (विटामिन C) का उपयोग किया, जो निकोटीन उत्प्रेरण रोकने के लिये रक्त में पुन: प्रसारित होता है।
      • शोधकर्त्ताओं ने धूम्रपान करने वालों के लिये विटामिन C के साथ एक घुलनशील झिल्ली निर्मित की, जिसका उपयोग धूम्रपान करने की इच्छा होने पर किया जा सके।
      • निर्दिष्ट खुराक में एस्कॉर्बिक एसिड धूम्रपान करने वालों के प्लाज़्मा (रक्त का तरल भाग) के भीतर कोटिनिन को निकोटीन में परिणत करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • परिणाम:
    • विटामिन C बिना किसी दुष्प्रभाव के कोटिनीन को निकोटीन में बदलने में मदद करता है। अतिरिक्त निकोटीन की आवश्यकता के बिना अंत में शरीर विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पा लेता है।
  • भविष्य के विचार और अध्ययन संबंधी आवश्यकताएँ:
    • जैसा कि अध्ययन से संकेत मिलता है, परिवर्तित निकोटीन को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) प्रभावों को उत्प्रेरित करने के लिये पुन: प्रसारित किया जा सकता है, जो संभावित रूप से निकोटीन विथड्राॅल के उपचार में सहायता करता है।
    • शोध दल अपने निष्कर्षों को मान्य करने के लिये बड़े नमूनों के साथ आगामी अध्ययन की आवश्यकता को स्वीकार करता है।

निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी (NRT):

  • यह व्यक्तियों को धूम्रपान रोकने में सहायता करने वाला एक उपचार है। यह ऐसे उत्पादों का उपयोग करता है जिनके सेवन से कम निकोटीन ग्रहण किया जाता है।
    • इन उत्पादों में धुएँ में पाए जाने वाले अन्य विषाक्त पदार्थ नहीं होते हैं। निकोटीन की तलब को कम करना और वापसी के लक्षणों को कम करना थेरेपी का मुख्य उद्देश्य है।
  • NRT उत्पाद कई रूपों में आते हैं, जिनमें गम, ट्रांसडर्मल पैच, नेज़ल स्प्रे, ओरल इन्हेलर और टैबलेट शामिल हैं।

भारत में तंबाकू उपभोग की स्थिति क्या है?

  • ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया, 2016-17 के अनुसार, भारत में लगभग 267 मिलियन वयस्क (15 वर्ष और उससे अधिक) (सभी वयस्कों का 29%) तंबाकू का सेवन करते हैं।
    • भारत में तंबाकू के उपयोग का सबसे प्रचलित रूप धुआँ रहित तंबाकू है और इसके तहत आमतौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले उत्पाद खैनी, गुटखा और पानमसाला हैं।
    • धूम्रपान के रूप में बीड़ी, सिगरेट और हुक्का का उपयोग किया जाता है।
    • तंबाकू कैंसर, फेफड़ों की बीमारी, हृदय रोग और स्ट्रोक सहित कई बीमारियों के जोखिम का प्रमुख कारक है।
    • यह भारत में मृत्यु व बीमारी के प्रमुख कारणों में से एक है और इससे हर वर्ष लगभग 1.35 मिलियन लोगों की मौत होती है।
    • भारत तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक भी है। देश में कई तरह के तंबाकू उत्पाद बेहद कम कीमत पर उपलब्ध हैं।
    • वर्ष 2017-18 में भारत में 35 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को होने वाली सभी बीमारियों में तंबाकू के उपयोग के कारण होने वाली बीमारियों की कुल आर्थिक लागत 27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।

 तंबाकू उपभोग से संबंधित सरकारी पहल:

  • सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिषेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय तथा वितरण का विनियमन) अधिनियम, 2003:
    • उपरोक्त अधिनियम, अनुसूची में उल्लिखित सभी तंबाकू युक्त उत्पादों पर लागू होता है। भारत में सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है तथा व्यापार, वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण को नियंत्रित करता है।
  • राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (NTCP):
    • इसे 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान वर्ष 2007-08 में शुरू किया गया था, ताकि तंबाकू सेवन के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता दी जा सके, तंबाकू उत्पादों के उत्पादन और आपूर्ति को कम किया जा सके, COTPA 2003 के तहत शामिल प्रावधानों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके तथा इससे प्रभावित लोगों की सहायता की जा सके। 
  • राष्ट्रीय तंबाकू क्विटलाइन सेवाएँ (NTQLS):
    • NTQLS का उद्देश्य तंबाकू छोड़ने के लिये टेलीफोन आधारित जानकारी, सलाह, समर्थन और रेफरल प्रदान करना है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. निम्नलिखित में से कौन-से कारण/कारक बेंज़ीन प्रदूषण उत्पन्न करते हैं? (2020)

  1. स्वचालित वाहन (Automobile) द्वारा निष्कासित पदार्थ
  2.  तंबाकू का धुआँ
  3.  लकड़ी का जलना
  4.  रोगन किये गए लकड़ी के फर्नीचर का उपयोग 
  5.  पॉलियूरिथेन से निर्मित उत्पादों का उपयोग

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये– 

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: A


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