कृषि-खाद्य प्रणालियों में संलग्न महिलाओं पर जलवायु का प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय महिला किसान दिवस, लॉस एंड डैमेज फंड, जलवायु परिवर्तन मेन्स के लिये:महिला किसानों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, कृषि, रोज़गार और उत्पादन, खाद्य सुरक्षा में महिलाओं की भूमिका |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
फ्रंटियर्स इन सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पूरे विश्व में कृषि-खाद्य प्रणालियों में संग्लग्न महिलाओं पर जलवायु संकट के असमान प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है।
- यह शोध कृषि क्षेत्र में महिलाओं की असुरक्षा पर प्रकाश डालते हुए उन हॉटस्पॉट की पहचान करता है जहाँ जलवायु जोखिम की सबसे गंभीर स्थिति है।
नोट:
- कृषि-खाद्य प्रणालियाँ व्यक्तियों, गतिविधियों और संसाधनों का नेटवर्क हैं जो खाद्यान्न का उत्पादन, प्रसंस्करण, वितरण तथा उपभोग करते हैं।
- इनमें किसान, व्यापारी, प्रोसेसर, खुदरा विक्रेता, उपभोक्ता आदि शामिल हैं, जो कि खाद्य मूल्य शृंखला में शामिल हैं।
अध्ययन के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- जलवायु परिवर्तन के खतरों की वैश्विक रैंकिंग:
- अध्ययन में कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले जलवायु परिवर्तन के खतरे के आधार पर 87 देशों को रैंक दिया गया है।
- भारत 12वें स्थान पर है, अन्य एशियाई देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल को भी गंभीर जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।
- अध्ययन में कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले जलवायु परिवर्तन के खतरे के आधार पर 87 देशों को रैंक दिया गया है।
- उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान:
- कृषि-खाद्य प्रणालियाँ, जिनमें उत्पादन, कटाई के बाद देख-रेख और वितरण शामिल है, विशेष रूप से जोखिम में हैं।
- अफ्रीकी और एशियाई क्षेत्रों में मध्य, पूर्व व दक्षिणी अफ्रीका तथा पश्चिम एवं दक्षिण एशिया अत्यधिक भेद्यता वाले क्षेत्रों के रूप में उभरे हैं।
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में रहने वाले व्यक्तियों को अधिक जोखिम है।
- जलवायु-कृषि-लिंग असमानता हॉटस्पॉट:
- अनुसंधान ने क्षेत्रों को 'जलवायु-कृषि-लिंग असमानता हॉटस्पॉट' के रूप में मैप करने के लिये जलवायु, लिंग और कृषि-खाद्य प्रणालियों पर संयुक्त अंतर्दृष्टि प्रदान की।
- अध्ययन ने इन संकेतकों के आधार पर प्रत्येक देश के जोखिम की गणना की और प्रत्येक LMIC देश के लिये रंग-कोडित मानचित्र पर स्कोर अंकित किया।
- ये हॉटस्पॉट मानचित्र लिंग-उत्तरदायी जलवायु कार्रवाई के संबंध में मार्गदर्शन कर सकते हैं, विशेष रूप से जलवायु सम्मेलन (COP 28) और जलवायु निवेश जैसे आगामी जलवायु सम्मेलनों में।
- यह लॉस एंड डैमेज फंड और अन्य जलवायु निवेशों के संबंध में जारी वार्ता में विशेष रूप से प्रासंगिक है।
- नीति निर्माण और जलवायु कार्रवाई:
- यह अध्ययन कृषि में महिलाओं पर खतरों के असमान प्रभाव को दर्शाते हुए नीति निर्माण के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य करता है।
- पिछले अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी प्राकृतिक आपदाओं के बाद महिलाओं और लड़कियों के भूखे रहने की संभावना अधिक है।
- भारत में पुरुषों की तुलना में दोगुनी संख्या में महिलाओं ने सूखे के कारण कम खाना खाने की बात कही।
- हॉटस्पॉट मानचित्र निर्णय निर्माताओं और निवेशकों को उन क्षेत्रों में वित्त और निवेश को लक्षित करने में सहायता कर सकते हैं, जहाँ महिलाएँ जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से सबसे ज़्यादा प्रभावित होती हैं।
कृषि-खाद्य प्रणालियों में संलग्न महिलाओं को जलवायु परिवर्तन कैसे प्रभावित करता है?
- खाद्य सुरक्षा और आय में कमी:
- जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादन को बाधित करता है, फसल की पैदावार और गुणवत्ता को कम करता है तथा कीटों और बीमारियों का खतरा बढ़ाता है।
- इससे महिला किसानों की खाद्य सुरक्षा और आय प्रभावित होती है, जो प्राय अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर रहती हैं।
- महिला किसानों को बाज़ार, ऋण, इनपुट और विस्तार सेवाओं तक पहुँचने में भी अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे जलवायु संकट एवं तनाव से निपटने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादन को बाधित करता है, फसल की पैदावार और गुणवत्ता को कम करता है तथा कीटों और बीमारियों का खतरा बढ़ाता है।
- बढ़ा हुआ कार्यभार:
- जलवायु परिवर्तन से जल, श्रम और प्राकृतिक संसाधनों की मांग बढ़ जाती है, जिससे महिला किसानों पर कार्य का बोझ बढ़ जाता है, उन पर अक्सर जल, ईंधन हेतु लकड़ी और चारा इकट्ठा करने के साथ-साथ घरेलू एवं देखभाल कर्त्तव्यों का पालन करने की ज़िम्मेदारी होती है।
- महिला किसानों को भी बदलते मौसम और वर्षा पैटर्न के अनुरूप ढलना पड़ता है, जिसके लिये उन्हें नई फसलें, तकनीकें या प्रथाएँ अपनाने या अन्य क्षेत्रों में पलायन करने की आवश्यकता हो सकती है।
- स्वास्थ्य और खुशहाली में कमी:
- जलवायु परिवर्तन महिला किसानों के स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करता है, जो हीट स्ट्रोक, जलजनित एवं वेक्टर जनित बीमारियों, कुपोषण व मानसिक तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- महिला किसानों के पास स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और स्वच्छता सुविधाओं तक भी कम पहुँच है, जिससे जलवायु से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
- जलवायु परिवर्तन लिंग आधारित हिंसा को भी बढ़ाता है, विशेषकर संघर्ष और आपदा स्थितियों में।
- जलवायु परिवर्तन महिला किसानों के स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करता है, जो हीट स्ट्रोक, जलजनित एवं वेक्टर जनित बीमारियों, कुपोषण व मानसिक तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- सीमित भागीदारी तथा सशक्तीकरण:
- जलवायु परिवर्तन महिला किसानों की भागीदारी तथा सशक्तीकरण प्रयासों को प्रभावित करता है, जिन्हें अमूमन कृषि तथा जलवायु परिवर्तन से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं एवं संस्थानों से बाहर रखा जाता है।
- महिला किसानों की पहुँच सूचना, शिक्षा तथा प्रशिक्षण तक कम है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी जागरूकता एवं अनुकूलन की क्षमता सीमित हो जाती है।
- महिला किसानों को सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानदंडों व बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है जो उनकी गतिशीलता, स्वायत्तता तथा अधिकारों को प्रतिबंधित करते हैं।
कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं से संबंधित सरकारी पहलें क्या हैं?
- राष्ट्रीय महिला किसान दिवस (कृषि क्षेत्र में महिला किसानों के बहुमूल्य योगदान को पहचानने तथा उसकी सराहना करने के लिये भारत में प्रतिवर्ष 15 अक्तूबर को मनाया जाता है)।
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA)।
- परंपरागत कृषि विकास योजना।
- महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (MKSP)।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)।
आगे की राह
- भूमि, जल, ऋण, इनपुट, बाज़ार, विस्तार तथा सामाजिक सुरक्षा जैसे संसाधनों, सेवाओं एवं अवसरों तक महिलाओं की पहुँच व नियंत्रण बढ़ाना।
- कृषक समूह, सहकारी समिति, बैठक तथा नीति प्लेटफॉर्म जैसे निर्णय लेने एवं शासन संरचनाओं में महिलाओं की भागीदारी व नेतृत्व को बढ़ावा देना।
- जलवायु-स्मार्ट कृषि, आपदा जोखिम में कमी, जलवायु सूचना एवं प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों पर महिलाओं के ज्ञान तथा कौशल को सशक्त करना।
- सामाजिक व सांस्कृतिक मानदंडों, कानूनी एवं संस्थागत बाधाओं व लिंग आधारित हिंसा जैसे लैंगिक असमानता के अंतर्निहित कारणों का संधान कर महिला सशक्तीकरण एवं अभिकरण का समर्थन करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. उन विभिन्न आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बलों पर चर्चा कीजिये जिनसे भारत में कृषि में महिलाकरण को बढ़ावा मिल रहा है। (2014) |
वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ का दूसरा शिखर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट, G20 शिखर सम्मेलन, G-77, ब्रांट लाइन, लॉस एंड डैमेज फंड, संयुक्त राष्ट्र, IMF, विश्व बैंक, SAARC, आसियान, बिम्सटेक (BIMSTEC) मेन्स के लिये:ग्लोबल साउथ का पुनरुत्थान, ग्लोबल साउथ की आवाज़ के रूप में भारत के लिये चुनौतियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत ने हाल ही में वर्चुअल तरीके से आयोजित अपना दूसरा 'वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मलेन' (VOGSS) संपन्न किया। यह शिखर सम्मेलन जनवरी 2023 में उद्घाटन शिखर सम्मेलन के बाद संपन्न हुआ, जो राष्ट्रों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देने तथा ग्लोबल साउथ में अपने नेतृत्व को सशक्त करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शता है।
दूसरे VOGSS की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- थीम: उद्घाटन सत्र 'टूगैदर, फॉर एवरीवन्स ग्रोथ, विद एवरीवन्स ट्रस्ट' पर केंद्रित था, जबकि समापन सत्र में 'ग्लोबल साउथ: टुगेदर फॉर वन फ्यूचर' पर ज़ोर दिया गया।
- शिखर सम्मेलन का उद्देश्य: भारत द्वारा आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के परिणामों का प्रसार करना तथा विकासशील देशों के हितों पर विशेष ध्यान देने के साथ G20 निर्णयों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये निरंतर गति सुनिश्चित करना।
- प्रमुख परिणाम:
- ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस 'दक्षिण': इस पहल का उद्घाटन भारतीय प्रधानमंत्री ने किया, जिसका उद्देश्य ज्ञानकोश तथा थिंक टैंक के रूप में कार्य करके विकासशील देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है।
- विषयगत चर्चाएँ: मंत्रिस्तरीय सत्रों में सतत् विकास लक्ष्य, ऊर्जा परिवर्तन, जलवायु वित्त, डिजिटल परिवर्तन, महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास, आतंकवाद रोधी तथा वैश्विक संस्थान में सुधार सहित विषयों की एक विस्तृत शृंखला पर चर्चा हुई।
- इज़रायल-हमास संघर्ष के बीच संयम बरतने का आह्वान: भारत ने इज़रायल-हमास संघर्ष से प्रभावित नागरिकों की दुर्दशा को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की।
- उन्होंने सभी संबंधित पक्षों को संयम बरतने, निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने तथा तनाव कम करने की दिशा में कार्य करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- ग्लोबल साउथ के लिये 5 ‘Cs’: भारत ने ग्लोबल साउथ के लिये 5 ‘Cs’ का भी आह्वान किया, जिसमें परामर्श (Consultation), सहयोग (Cooperation), संचार (Communication), रचनात्मकता (Creativity) एवं क्षमता निर्माण (Capacity Building) शामिल हैं।
ग्लोबल साउथ क्या है?
- परिचय:
- ग्लोबल साउथ, जिसे अमूमन पूर्णतः भौगोलिक अवधारणा के रूप में गलत समझा जाता है, भू-राजनीतिक, ऐतिहासिक तथा विकासात्मक कारकों पर आधारित विविध देशों को संदर्भित करता है।
- हालाँकि यह मात्र अवस्थिति द्वारा परिभाषित नहीं है, यह मोटे तौर पर विकास संबंधी चुनौतियों का सामना करने वाले देशों का प्रतिनिधित्व करता है।
- ग्लोबल साउथ में शामिल कई देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं, जैसे- भारत, चीन तथा अफ्रीका के अर्द्ध उत्तरी हिस्से में स्थित सभी देश।
- जबकि, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड जो दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं, ग्लोबल साउथ में शामिल नहीं हैं।
- ग्लोबल साउथ, जिसे अमूमन पूर्णतः भौगोलिक अवधारणा के रूप में गलत समझा जाता है, भू-राजनीतिक, ऐतिहासिक तथा विकासात्मक कारकों पर आधारित विविध देशों को संदर्भित करता है।
- ऐतिहासिक संदर्भ:
- ब्रांट लाइन (Brandt Line): यह रेखा 1980 के दशक में पूर्व जर्मन चांसलर विली ब्रांट द्वारा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर उत्तर-दक्षिण विभाजन के दृश्य चित्रण के रूप में प्रस्तावित की गई थी।
- यह रेखा वैश्विक आर्थिक विभाजन का प्रतीक है, जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को छोड़कर, अफ्रीका, मध्य पूर्व, भारत एवं चीन के कुछ हिस्सों को कवर करते हुए महाद्वीपों में टेढ़ी-मेढ़ी होती जा रही है।
- यह रेखा वैश्विक आर्थिक विभाजन का प्रतीक है, जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को छोड़कर, अफ्रीका, मध्य पूर्व, भारत एवं चीन के कुछ हिस्सों को कवर करते हुए महाद्वीपों में टेढ़ी-मेढ़ी होती जा रही है।
- G-77: वर्ष 1964 में 77 देशों का समूह (G-77) तब अस्तित्व में आया जब इन देशों ने जिनेवा में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के पहले सत्र के दौरान एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये।
- G-77 उस समय विकासशील देशों का सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन बन गया।
- ब्रांट लाइन (Brandt Line): यह रेखा 1980 के दशक में पूर्व जर्मन चांसलर विली ब्रांट द्वारा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर उत्तर-दक्षिण विभाजन के दृश्य चित्रण के रूप में प्रस्तावित की गई थी।
- ग्लोबल साउथ का पुनरुत्थान:
- आर्थिक गतिशीलता:
- कोविड-19 के कारण आर्थिक असंतुलन: महामारी ने मौजूदा आर्थिक असमानताओं को बढ़ा दिया, सीमित स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे, बाधित आपूर्ति शृंखलाओं और लॉकडाउन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों पर भारी निर्भरता के कारण इसने ग्लोबल साउथ देशों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
- व्यापार और आपूर्ति शृंखलाओं में बदलाव: महामारी के बाद तथा रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे हालिया भू-राजनीतिक संघर्षों के संदर्भ में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के पुनर्मूल्यांकन ने उत्पादन केंद्रों को फिर से स्थापित करने पर चर्चा शुरू की, जिससे कुछ ग्लोबल साउथ अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्गठन तथा अपनी भूमिकाओं को बढ़ाने का अवसर मिला।
- भू-राजनीतिक वास्तविकताएँ:
- ग्लोबल साउथ की सामूहिक आवाज़ ने G20 जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर लोकप्रियता हासिल की, जिससे शक्ति की गतिशीलता में बदलाव आया और उनके दृष्टिकोण तथा हितों पर अधिक ध्यान देने के विचार को बढ़ावा मिला।
- पर्यावरण एवं जलवायु प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता: ग्लोबल साउथ जलवायु परिवर्तन से असमान रूप से प्रभावित है, जिससे जलवायु अनुकूलन, लचीलापन-निर्माण और न्यायसंगत वैश्विक जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता पर चर्चा चल रही है।
- नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् विकास: ग्लोबल साउथ के अंतर्गत सतत् विकास लक्ष्यों, नवीकरणीय ऊर्जा निवेश और पर्यावरण संरक्षण पहल पर ज़ोर दिये जाने से इसने वैश्विक समर्थन एवं ध्यान आकर्षित किया।
- आर्थिक गतिशीलता:
कौन-सा साक्ष्य ग्लोबल साउथ के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है?
- मिस्र में COP27 के दौरान 'लॉस एंड डैमेज फंड' की स्थापना ने ग्लोबल साउथ के सामने आने वाले अनुपातहीन भार को उजागर किया।
- जापान के G7 शिखर सम्मेलन ने अधिक समावेशी संवाद को बढ़ावा देते हुए भारत और ब्राज़ील जैसे देशों को शामिल करने का सराहनीय प्रयास किया।
- ब्रिक्स के 11 सदस्यों तक इसके विस्तार से ग्लोबल साउथ के साथ जुड़ाव बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया।
- क्यूबा में G-77 शिखर सम्मेलन महत्त्वपूर्ण मुद्दों के समाधान के लिये कई विकासशील देशों को सफलतापूर्वक एक साथ लेकर आया।
- G20 में 55 देशों वाले अफ्रीकी संघ का शामिल होना अफ्रीकी देशों के वैश्विक महत्त्व और वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में उनके बहुमूल्य योगदान की बढ़ती मान्यता का प्रतीक है।
वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ के रूप में भारत के लिये क्या चुनौतियाँ हैं?
- भिन्न हितों को संबोधित करना: ग्लोबल साउथ में विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं, आर्थिक संरचनाओं और भू-राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं वाले देश शामिल हैं। व्यापार, जलवायु परिवर्तन तथा सुरक्षा जैसे वैश्विक मुद्दों पर एकीकृत रुख प्रस्तुत करने के लिये इन मतभेदों में सामंजस्य बिठाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- शक्ति विषमता पर काबू पाना: ग्लोबल साउथ में अल्प विकसित देशों के साथ-साथ भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसी उभरती हुई शक्तियाँ भी शामिल हैं.
- इस समूह के भीतर शक्ति की गतिशीलता को संतुलित करना और समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि मज़बूत राष्ट्र छोटे, कम प्रभावशाली देशों पर हावी हो सकते हैं।
- वैश्विक शक्तियों के साथ बातचीत: वैश्विक शक्तियों के प्रभुत्व के बीच ग्लोबल साउथ के हितों का समर्थन करने के लिये कुशल रणनीतिक वार्ता की आवश्यकता होती है। भारत को अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी स्थापित शक्तियों के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि ग्लोबल साउथ के मत को वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सुना और माना जाता है।
- संसाधन की कमी: भारत को ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधि के रूप में भूमिका के साथ अपनी विकासात्मक प्रयासों को संतुलित करने की आवश्यकता है। ग्लोबल साउथ देशों के भीतर सीमित संसाधन और प्रतिस्पर्द्धी घरेलू प्राथमिकताएँ प्रायः भारत के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
आगे की राह
- क्षेत्रीय गठबंधनों को मज़बूत करना: क्षेत्रीय चुनौतियों का सामूहिक रूप से समाधान करने, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने के लिये SAARC, आसियान, बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय समूहों के भीतर मज़बूत गठबंधन बनाना।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग को सुगम बनाना: प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सतत् विकास जैसे क्षेत्रों में एक-दूसरे की शक्ति का लाभ उठाते हुए, ग्लोबल साउथ देशों के बीच सहयोग एवं ज्ञान के साझाकरण को बढ़ावा देना।
- वैश्विक शासन में समानता का समर्थन: ग्लोबल साउथ के लिये निष्पक्ष प्रतिनिधित्व और अधिक निर्णय लेने की शक्ति सुनिश्चित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र, IMF, विश्व बैंक जैसी वैश्विक शासन संरचनाओं में सुधारों पर ज़ोर देना।
- जलवायु परिवर्तन और स्थिरता को संबोधित करना: भारत टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करने तथा ग्लोबल साउथ देशों की विकास संबंधी ज़रूरतों पर विचार करते हुए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वैश्विक प्रयासों का समर्थन करने में उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित में से किस एक समूह के चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. ‘उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है’। विस्तार से समझाइये। (2019) |
ट्रांज़िट अग्रिम ज़मानत
प्रिलिम्स के लिये:प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), अग्रिम ज़मानत, ज़मानत और उसके प्रकार, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973, अनुच्छेद 21 मेन्स के लिये:आपराधिक न्याय प्रक्रिया में मौलिक अधिकारों का संरक्षण, न्यायपालिका, संवैधानिक संरक्षण, ज़मानत के प्रकार |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने प्रिया इंदौरिया बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य, 2023 के मामले में निर्णय सुनाया कि एक राज्य में एक सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी आरोपी को उस स्थिति में भी ट्रांज़िट अग्रिम ज़मानत दे सकता है प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर दर्ज़ की गई हो।
- सर्वोच्च न्यायालय भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा की संवैधानिक अनिवार्यता पर ज़ोर देता है।
नोट:
- ट्रांज़िट अग्रिम ज़मानत अभियुक्तों के लिये गिरफ्तारी से सुरक्षा के रूप में कार्य करती है जब तक कि वे कथित अपराध के लिये क्षेत्रीय अधिकार वाले न्यायालय में नहीं पहुँच जाते।
- शब्द "ट्रांज़िट अग्रिम ज़मानत" को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) या किसी अन्य कानून में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1998 में असम राज्य बनाम ब्रोजेन गोगोल मामले में ट्रांज़िट अग्रिम ज़मानत की अवधारणा पेश की।
- इस प्रकार की ज़मानत विशेष रूप से एक अलग राज्य में रहने वाले व्यक्तियों के लिये न्यायसंगत और अंतरिम राहत प्रदान करती है, जिससे उन्हें अग्रिम ज़मानत लेने की अनुमति मिलती है।
ट्रांज़िट अग्रिम ज़मानत पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या है?
- सर्वोच्च न्यायालय का नियम है कि उच्च न्यायालय/सत्र न्यायालयों को उक्त न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बाहर दर्ज FIR के संबंध में न्याय के हित में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 438 के तहत अंतरिम सुरक्षा के रूप में ट्रांज़िट अग्रिम ज़मानत देनी चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अधिकार क्षेत्र पर पूर्ण वर्जन से, विशेष रूप से गलत, दुर्भावनापूर्ण अथवा राजनीति से प्रेरित अभियोजन का सामना करने वाले वास्तविक (Bona Fide) आवेदकों के लिये अन्यायपूर्ण परिणाम हो सकते हैं
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आवेदक को अपूरणीय क्षति से बचाने हेतु ट्रांज़िटअग्रिम ज़मानत "केवल असाधारण तथा बाध्यकारी परिस्थितियों" में ही स्वीकृत की जानी चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम सुरक्षा के लिये शर्तें निर्धारित कीं:.
- पहली सुनवाई के दौरान जाँच अधिकारी तथा सरकारी वकील को सूचना देना अनिवार्य है।
- सीमित राहत देने वाले आदेश में स्पष्ट रूप से उन कारणों को दर्ज किया जाना चाहिये जो बताते हैं कि आवेदक अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी की आशंका क्यों रखता है तथा इस तरह की सुरक्षा का चल रही जाँच पर संभावित प्रभाव पड़ सकता है।
- आवेदक को FIR पर क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र वाले न्यायालय द्वारा अग्रिम ज़मानत देने में असमर्थता के बारे में न्यायालय को तुष्ट करना होगा।
- तुष्टि उस क्षेत्राधिकार में जीवन अथवा दैहिक स्वतंत्रता के लिये खतरे की आशंका, मनमानी के बारे में चिंताओं अथवा चिकित्सा कारणों पर आधारित हो सकती है जहाँ FIR दर्ज की गई है।
- निर्णय में आरोपी व्यक्तियों द्वारा अंतरिम सुरक्षा के लिये अनुकूल न्यायालय चुनने की संभावना को स्वीकार किया गया है।
- इसके दुरुपयोग को रोकने के लिये न्यायालय अभियुक्त तथा न्यायालय की अधिकारिता के बीच राज्यक्षेत्र संबंध के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
ज़मानत क्या है तथा इसके प्रकार क्या हैं?
- परिभाषा:
- ज़मानत कानूनी हिरासत में रखे गए व्यक्ति को, जब भी आवश्यक हो न्यायालय में उपस्थित होने के वादे के साथ, सशर्त/अनंतिम रिहाई है (ऐसे मामलों जिनमें न्यायालय द्वारा फैसला सुनाया जाना बाकी है)।
- यह न्यायालय में प्रतिभूति/सांपार्श्विक जमा के रूप में रखने की आवश्यकता को दर्शाता है।
- विधिक मामलों के अधीक्षक और परामर्शी बनाम अमिय कुमार रॉय चौधरी (1973) मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ज़मानत स्वीकृत करने के सिद्धांत की व्याख्या की है।
- भारत में ज़मानत के प्रकार:
- नियमित ज़मानत:
- यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा दिया गया एक निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार और पुलिस हिरासत में रखे गए व्यक्ति को रिहा करने हेतु उपलब्ध है।
- ऐसी ज़मानत के लिये कोई व्यक्ति आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 437 और 439 के तहत आवेदन दायर कर सकता है।
- यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा दिया गया एक निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार और पुलिस हिरासत में रखे गए व्यक्ति को रिहा करने हेतु उपलब्ध है।
- अंतरिम ज़मानत:
- न्यायालय द्वारा अस्थायी और अल्प अवधि हेतु ज़मानत दी जाती है, यह ज़मानत तब तक दी जा सकती है, जब तक कि नियमित या अग्रिम ज़मानत हेतु आवेदन न्यायालय के समक्ष लंबित नहीं होता है।
- अग्रिम ज़मानत या पूर्व-गिरफ्तारी ज़मानत:
- यह एक कानूनी प्रावधान है जो आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार होने से पहले ज़मानत हेतु आवेदन करने की अनुमति देता है। भारत में पूर्व-गिरफ्तारी ज़मानत का प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 में किया गया है।
- इसे केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा दिया जाता है।
- अग्रिम ज़मानत का प्रावधान विवेकाधीन है तथा न्यायालय अपराध की प्रकृति और गंभीरता, आरोपी के पूर्ववृत्त एवं अन्य प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद ज़मानत दे सकता है।
- न्यायालय ज़मानत देते समय कुछ शर्तें भी लगा सकता है, जिसमें पासपोर्ट ज़ब्त करना, देश छोड़ने पर प्रतिबंध या पुलिस स्टेशन में नियमित रूप से रिपोर्ट करना आदि शामिल हैं।
- वैधानिक ज़मानत:
- वैधानिक ज़मानत, जिसे डिफाॅल्ट ज़मानत के रूप में भी जाना जाता है, CrPC की धारा 437, 438 और 439 के तहत सामान्य प्रक्रिया में प्राप्त ज़मानत से अलग है।
- जैसा कि नाम से पता चलता है, वैधानिक ज़मानत तब दी जाती है जब पुलिस या जाँच एजेंसी एक निश्चित समय-सीमा के भीतर अपनी रिपोर्ट/शिकायत दर्ज करने में विफल रहती है।
- यह CrPC की धारा 167(2) में निहित है।
- नियमित ज़मानत:
विधिक दृष्टिकोण: अभिवहन अग्रिम ज़मानत
म्याँमार में गृहयुद्ध
प्रिलिम्स के लिये:म्याँमार में गृहयुद्ध, 1946 का विदेशी अधिनियम, शरणार्थी मेन्स के लिये:म्याँमार में गृहयुद्ध, सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में म्याँमार में चल रहे गृहयुद्ध के कारण म्याँमार की सेना और मिज़ोरम से लगे पश्चिमी चिन राज्य में लोकतंत्र समर्थक मिलिशिया के बीच तीव्र गोलीबारी के बाद म्याँमार के 1,500 नागरिकों ने मिज़ोरम के चम्फाई ज़िले में शरण ली।
गृहयुद्ध क्या है?
- गृहयुद्ध एक ही देश या राष्ट्र के भीतर संगठित समूहों के बीच लंबे समय तक चलने वाला संघर्ष है।
- इसमें अलग-अलग सामाजिक, राजनीतिक या वैचारिक मत वाले गुटों या समूहों के बीच सशस्त्र टकराव शामिल है, जो देश के शासन, क्षेत्र या संसाधनों पर नियंत्रण या प्रभुत्व के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं।
म्याँमार में वर्तमान गृहयुद्ध की पृष्ठभूमि क्या है?
- 2020 का चुनाव और सैन्य तख्तापलट:
- नवंबर 2020 के चुनाव में आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi's) की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) ने चुनाव जीता। हालाँकि सैन्य जुंटा (Military Junta), जिसे टाटमाडॉ (Tatmadaw) के नाम से जाना जाता है, ने बिना पर्याप्त सबूत के चुनावी धोखाधड़ी का दावा करते हुए चुनाव परिणामों को खारिज़ कर दिया।
- फरवरी 2021 में सेना ने तख्तापलट किया, आंग सान सू की और अन्य निर्वाचित नेताओं को हिरासत में ले लिया, आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी गई तथा सरकार का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।
- विरोध तथा प्रतिरोध:
- तख्तापलट के बाद पूरे म्याँमार में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, नागरिकों ने लोकतंत्र की बहाली तथा हिरासत में लिये गए नेताओं की रिहाई की मांग की।
- सिविल सेवक, कार्यकर्त्ता तथा विभिन्न समूह हड़ताल एवं प्रदर्शन करते हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हुए।
- प्रतिरोध हेतु बलों का गठन:
- टाटमाडॉ (Tatmadaw) द्वारा असहमति पर अपनी कार्रवाई तेज़ करते ही एथनिक आर्म्ड ऑर्गेनाइज़ेशंस (EAO) तथा सशस्त्र नागरिकों सहित विपक्षी समूहों ने सैन्य जुंटा का विरोध करने के लिये पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज़ (PDF) का गठन किया।
- इन समूहों ने सेना के अधिकार को चुनौती देने के उद्देश्य से अपदस्थ सांसदों द्वारा स्थापित नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (NUG) का समर्थन किया।
- वर्तमान परिदृश्य:
- देश के अन्य हिस्सों, जैसे- राखीन राज्य, कायिन राज्य, मणिपुर की सीमा से लगे सांगांग
- क्षेत्र तथा मिज़ोरम की सीमा से लगे चिन राज्य में भी विभिन्न स्थानीय प्रतिरोध बलों के नेतृत्व में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई है।
म्यांमार में चल रहे गृहयुद्ध का भारत के लिये क्या अर्थ है?
- संतुलित रुख:
- भारत ने म्याँमार में लोकतंत्र के "व्यवधान" पर चिंता व्यक्त करने तथा उसके "महत्त्वपूर्ण हितों" की रक्षा के लिये जुंटा का सहयोग करने के बीच अब तक संतुलन स्थापित कर रखा है।
- भारत के लिये तात्कालिक चिंताः
- पूर्वोत्तर भारत के सीमावर्ती राज्यों में म्याँमार के नागरिकों का प्रवेश।
- वह भी ऐसे समय में जब मणिपुर में स्थिति अस्थिर बनी हुई है।
- विद्रोहियों द्वारा दो प्रमुख नगरों पर कब्ज़ा:
- जुंटा विरोधी ताकतों ने म्याँमार और भारत के बीच केवल दो सीमा पार बिंदुओं के करीब दो महत्त्वपूर्ण शहरों पर कब्ज़ा कर लिया है। ये हैं:
- रिखावदार, मिज़ोरम में ज़ोखावथर के करीब और
- मणिपुर में मोरेह से लगभग 60 किमी. दूर सांगांग क्षेत्र में खम्पट।
- उत्तरार्द्ध (सांगांग क्षेत्र में खम्पट) में भी प्रस्तावित भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना का हिस्सा है।
- जुंटा विरोधी ताकतों ने म्याँमार और भारत के बीच केवल दो सीमा पार बिंदुओं के करीब दो महत्त्वपूर्ण शहरों पर कब्ज़ा कर लिया है। ये हैं:
शरणार्थियों से निपटने के लिये भारत में वर्तमान विधायी ढाँचा क्या है?
- भारत सभी विदेशियों के साथ अच्छा व्यवहार करता है, चाहे वे अवैध अप्रवासी हों, शरणार्थी या वीज़ा परमिट से अधिक समय तक रहने वाले हों।
- 1946 का विदेशी अधिनियम: धारा 3 के तहत केंद्र सरकार को अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने का अधिकार है।
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920: धारा 5 के तहत अधिकारी भारत के संविधान के अनुच्छेद 258(1) के तहत किसी अवैध विदेशी को बलपूर्वक हटा सकते हैं।
- विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम 1939: इसके तहत एक अनिवार्य आवश्यकता है जिसके तहत दीर्घकालिक वीज़ा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने वाले सभी विदेशी नागरिकों (भारत के विदेशी नागरिकों को छोड़कर) को भारत पहुँचने के 14 दिनों के भीतर खुद को जीकरण अधिकारी के साथ पंजीकृत करना आवश्यक है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955: इसमें नागरिकता के त्याग, समाप्ति और वंचित करने के प्रावधान प्रदान किये गए।
- इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA) बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सताए गए हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख तथा बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना चाहता है।
- भारत ने शरणार्थी होने का दावा करने वाले विदेशी नागरिकों से निपटने के लिये सभी संबंधित एजेंसियों द्वारा पालन की जाने वाली एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत की सुरक्षा को गैर-कानूनी सीमा पार प्रवसन किस प्रकार एक खतरा प्रस्तुत करता है? इसे बढ़ावा देने के कारणों को उजागर करते हुए ऐसे प्रवसन को रोकने की रणनीतियों का वर्णन कीजिये। (2014) |
दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने हेतु सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण, केयरिंग्स पोर्टल, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 मेन्स के लिये:भारत में बाल दत्तक ग्रहण और संबंधित मुद्दे, बच्चों से संबंधित मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) द्वारा दायर याचिका के मामले में सुनवाई करते हुए देश में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने और इसे सरल बनाने के लिये केंद्र, राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को कई निर्देश जारी किये हैं।
- न्यायालय ने दत्तक ग्रहण की कम दर और स्थायी परिवार के बिना बाल देखभाल संस्थानों (CCI) में बड़ी संख्या में रहने वाले बच्चों को लेकर भी चिंता व्यक्त की है।
दत्तक ग्रहण के विषय में सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कहा?
- न्यायालय ने कहा कि CCI में रहने वाले बच्चों, जिनके माता-पिता एक वर्ष से अधिक समय से उनसे मिलने नहीं आए हैं या जिनके माता-पिता या अभिभावक "अयोग्य" हैं, उनकी पहचान की जानी चाहिये और उन्हें दत्तक श्रेणी के अंतर्गत लाना चाहिये।
- न्यायालय ने ‘अयोग्य अभिभावक’ को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जो “माता-पिता बनने के लिये अयोग्य या अनिच्छुक’ है, जो मादक द्रव्यों का सेवन करता है, दुर्व्यवहार या शराब में लिप्त है, बच्चे के साथ दुर्व्यवहार या उसकी उपेक्षा करता है, जिसका आपराधिक रिकॉर्ड है, जिसे स्वयं देखभाल की आवश्यकता है या जो मानसिक रूप से अस्वस्थ है आदि”।
- न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को CCI में अनाथ-परित्यक्त-आत्मसमर्पित (OAS) श्रेणी में बच्चों की पहचान करने हेतु द्विमासिक अभियान शुरू करने का आदेश दिया।
- न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दत्तक ग्रहण के लिये संभावित बच्चों, विशेष रूप से CCI में कमज़ोर बच्चों पर डेटा संकलित करने तथा विवरण केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority- CARA) और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपने का भी निर्देश दिया।
- न्यायालय ने कहा कि राज्यों को भारत में दत्तक ग्रहण के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म चाइल्ड एडॉप्शन रिसोर्स इंफॉर्मेशन एंड गाइडेंस सिस्टम (CARINGS) पोर्टल पर ज़िले के सभी OAS बच्चों का पंजीकरण सुनिश्चित करना चाहिये।
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) क्या है?
- CARA, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का एक वैधानिक निकाय है।
- यह भारतीय बच्चों के दत्तक ग्रहण के लिये नोडल निकाय है और इसे देश में दत्तक ग्रहण की निगरानी करने एवं विनियमन का अधिकार है।
- CARA को वर्ष 2003 में भारत सरकार द्वारा अनुसमर्थित हेग कन्वेंशन ऑन इंटरकंट्री एडॉप्शन, 1993 के प्रावधानों के अनुसार अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण (Adoptions) की गतिविधियों से निपटने के लिये केंद्रीय प्राधिकरण के रूप में भी नामित किया गया है।
- CARA मुख्य रूप से अपनी संबद्ध/मान्यता प्राप्त दत्तक ग्रहण एजेंसियों के माध्यम से अनाथ, परित्यक्त और आत्मसमर्पण करने वाले बच्चों को गोद लेने का कार्य करता है।
भारत में दत्तक ग्रहण के वर्तमान रुझान तथा आँकड़े क्या हैं?
- CARA के अनुसार, देश में सालाना लगभग 4,000 बच्चे गोद लिये जाते हैं, जबकि वर्ष 2021 तक 3 करोड़ से अधिक अनाथ थे।
- CARA के ऑनलाइन पोर्टल CARINGS के अनुसार, विधिक रूप से गोद लेने के लिये उपलब्ध बच्चों तथा संभावित दत्तक माता-पिता (Prospective Adoptive Parents- PAPs) की संख्या के बीच भी एक बड़ा अंतराल है।
- PAPs ऐसे व्यक्ति अथवा युग्म हैं जो दत्तक माता-पिता बनने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
- CARA द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के राज्य-वार विश्लेषण से पता चला कि अक्तूबर 2023 तक 2,146 बच्चे गोद लेने के लिये उपलब्ध थे।
- इसके विपरीत अक्तूबर 2023 तक लगभग 30,669 PAPs को देश में गोद लेने के लिये पंजीकृत किया गया है।
- पंजीकृत PAPs तथा गोद लेने के लिये उपलब्ध बच्चों की संख्या में भारी बेमेल के कारण PAPs को 'स्वस्थ तथा छोटा बच्चा' गोद लेने के लिये तीन से चार वर्ष तक प्रतीक्षा करना पड़ती है।
- CARA के सारणीकरण से पता चलता है कि 69.4% पंजीकृत PAPs शून्य से दो वर्ष की आयु के बच्चों को चुनते हैं; 10.3% दो से चार वर्ष के आयु वर्ग को तथा 14.8% चार से छह वर्ष के आयु वर्ग को चुनते हैं।
- इसके अतिरिक्त देश के 760 ज़िलों में से केवल 390 ज़िलों में विशिष्ट दत्तक ग्रहण अभिकरण मौजूद हैं।
भारत में दत्तक ग्रहण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- लंबी तथा जटिल दत्तक ग्रहण प्रक्रिया:
- भारत में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जिसे बाद में 2021 में संशोधित किया गया था) तथा हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) द्वारा शासित गोद लेने की प्रक्रिया में अनेक जटिल चरण शामिल हैं।
- इसके चरणों में पंजीकरण, गृह अध्ययन, बच्चे का रेफरल, मिलान, स्वीकृति, गोद लेने से पहले पालन-पोषण की देखभाल, न्यायालय का आदेश तथा अनुवर्ती कार्रवाई शामिल है।
- गोद लेने की प्रक्रिया की विस्तारित समय-सीमा बच्चों की उपलब्धता, माता-पिता की प्राथमिकताएँ, अधिकारियों की दक्षता तथा विधिक औपचारिकताओं जैसे कारकों से प्रभावित होती है।
- भारत में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जिसे बाद में 2021 में संशोधित किया गया था) तथा हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) द्वारा शासित गोद लेने की प्रक्रिया में अनेक जटिल चरण शामिल हैं।
- दत्तक को वापस लौटाने की उच्च दर:
- वर्ष 2017-19 के बीच CARA द्वारा रिपोर्ट किये गए चाइल्ड रिटर्न में असामान्य वृद्धि चिंता का विषय है।
- आँकड़ों के अनुसार, लौटाए गए बच्चों में से 60% लड़कियाँ थीं, 24% दिव्यांग थे तथा कई छह वर्ष से अधिक उम्र के थे।
- ऐसी चुनौतियाँ इसलिये उत्पन्न होती हैं क्योंकि दिव्यांग तथा बड़े बच्चों को दत्तक परिवारों में विस्तारित समायोजन अवधि का सामना करना पड़ता है, जो नए पारिवारिक वातावरण में ढलने को लेकर अपर्याप्त तैयारी तथा संस्थानों से परामर्श के कारण और भी जटिल हो जाता है।
- वर्ष 2017-19 के बीच CARA द्वारा रिपोर्ट किये गए चाइल्ड रिटर्न में असामान्य वृद्धि चिंता का विषय है।
- दिव्यांग बच्चों का सीमित दत्तक ग्रहण:
- वर्ष 2018 तथा 2019 के बीच केवल 40 दिव्यांग बच्चों को गोद लिया गया, जो वर्ष में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या का लगभग 1% था।
- वार्षिक रुझानों से पता चलता है कि दिव्यांग बच्चों को घरेलू तौर पर गोद लेने की संख्या में कमी आई है, जो गोद लेने के परिदृश्य में असमानता को उजागर करता है।
- वर्ष 2018 तथा 2019 के बीच केवल 40 दिव्यांग बच्चों को गोद लिया गया, जो वर्ष में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या का लगभग 1% था।
- बाल तस्करी के मुद्दे:
- गोद लेने योग्य बच्चों की घटती संख्या के कारण अवैध दत्तक ग्रहण की गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
- महामारी के दौरान बाल तस्करी का खतरा, विशेष रूप से गरीब या हाशिये पर रहने वाले परिवारों के प्रभावित होने से नैतिक और कानूनी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- दत्तक ग्रहण के लिये बाल तस्करी से कानूनी दत्तक ग्रहण की प्रक्रियाओं की अखंडता कमज़ोर होती है और प्रणाली के प्रति विश्वास की कमी के कारण सामाजिक व्यवधान की स्थिति उत्पन्न होती है।
- पारंपरिक पारिवारिक मानदंड और LGBTQ+ परिवार:
- गोद लेने के इच्छुक LGBTQ+ परिवारों के लिये कानूनी मान्यता चुनौतियाँ, दत्तक माता-पिता बनने की उनकी क्षमता में बाधा डालती हैं, जिससे समलैंगिक समुदाय के भीतर अवैध दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में वृद्धि होती है।
- सामाजिक कलंक और जागरूकता की कमी:
- गोद लेने को लेकर सामाजिक कलंक, विशेष रूप से कुछ जनसांख्यिकी के लिये गोद लेने की दर को प्रभावित करता है।
- गोद लेने की प्रक्रिया के बारे में सीमित जागरूकता गलत धारणाओं को बढ़ावा देती है और भावी दत्तक माता-पिता के लिये बाधाएँ उत्पन्न करती है।
- भ्रष्टाचार और मुकदमेबाज़ी:
- दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार के मामले इसकी अखंडता से समझौता करते हैं और चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
- कानूनी विवाद और मुकदमे दत्तक ग्रहण की कार्यवाही को और धीमा कर देते हैं, जिससे समग्र प्रक्रिया में जटिलताएँ बढ़ जाती हैं।
बच्चों और समाज के लिये दत्तक ग्रहण के क्या लाभ हैं?
- माता-पिता की देखभाल से वंचित बच्चों को गोद लेने से एक प्रेम भरा और स्थिर पारिवारिक माहौल मिल सकता है।
- दत्तक ग्रहण से बच्चों का समग्र विकास और कल्याण सुनिश्चित हो सकता है, जिसमें उनकी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक एवं शैक्षणिक ज़रूरतें भी शामिल हैं।
- दत्तक ग्रहण से राज्य और समाज पर बोझ कम करके और बच्चों को उत्पादक और ज़िम्मेदार नागरिक बनने के लिये सशक्त बनाकर देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भी योगदान दिया जा सकता है।
- यह एक सकारात्मक दत्तक ग्रहण की संस्कृति विकसित करता है, सामाजिक कलंक को तोड़ता है और दत्तक ग्रहण के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है।
आगे की राह
- CCI में अयोग्य माता-पिता या अभिभावकों वाले बच्चों की सक्रिय रूप से पहचान करना, यह सुनिश्चित करना कि उन्हें स्थायी परिवार में शामिल होने का मौका देने के लिये तुरंत दत्तक ग्रहण श्रेणी में लाया जाए।
- नए दत्तक परिवारों में स्थानांतरित होने के लिये बच्चों, विशेष रूप से बड़ी उम्र के और विकलांग बच्चों को तैयार करने तथा परामर्श देने के लिये संस्थागत प्रयासों को बढ़ाना।
- एक सहज एकीकरण प्रक्रिया सुनिश्चित करते हुए समायोजन चुनौतियों का समाधान करने के लिये व्यापक कार्यक्रम विकसित करना।
- गोद लेने के लाभों, कलंक और गलतफहमियों को दूर करने के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाना।
- गोद लेने के लिये बाल तस्करी को रोकने और अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण के नियमों को मज़बूत करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग करना।
- संस्थागतकरण के विकल्प के रूप में पालन-पोषण देखभाल कार्यक्रमों को विकसित करना और बढ़ावा देना, गोद लेने की प्रतीक्षा कर रहे बच्चों के लिये एक अस्थायी और पोषण वातावरण प्रदान करना।