प्रौद्योगिकी दिग्गजों का परमाणु ऊर्जा की ओर रुझान
प्रिलिम्स के लिये:स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR), स्टार्टअप ओक्लो, पवन और सौर ऊर्जा, कार्बन फुटप्रिंट, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, परमाणु ऊर्जा, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम, भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम, परमाणु विखंडन, भारत स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर, यूरेनियम, चेर्नोबिल आपदा (1986), फुकुशिमा दुर्घटना (2011), परमाणु अपशिष्ट। मेन्स के लिये:ऊर्जा आवश्यकताओं और जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये परमाणु ऊर्जा का बढ़ता महत्त्व। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गूगल सहित कुछ बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों ने AI डेटा केंद्रों में बढ़ती बिज़ली की मांग को पूरा करने के क्रम में परमाणु ऊर्जा खरीदने संबंधी समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
कौन सी बड़ी टेक कंपनियाँ परमाणु ऊर्जा में निवेश कर रही हैं?
- गूगल: गूगल ने कैरोस पावर द्वारा विकसित किये जा रहे कई स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) से परमाणु ऊर्जा खरीदने के लिये समझौता किया है।
- यह AI प्रौद्योगिकियों के विकास के लिये 500 मेगावाट कार्बन मुक्त बिजली उपलब्ध कराएगा।
- माइक्रोसॉफ्ट: माइक्रोसॉफ्ट ने अमेरिका में थ्री माइल आइलैंड परमाणु ऊर्जा संयंत्र को पुनः शुरू करने के लिये कांस्टेलेशन एनर्जी के साथ 20 वर्ष का विद्युत क्रय समझौता किया है।
- इससे लगभग 835 मेगावाट कार्बन-मुक्त ऊर्जा उपलब्ध होगी, जिससे माइक्रोसॉफ्ट के कार्बन-नेगेटिव बनने के लक्ष्य को समर्थन मिलेगा।
- अमेज़न: अमेज़न ने परमाणु ऊर्जा को समर्थन देने के लिये तीन समझौते किये हैं। इसमें वॉशिंगटन में SMR के लिये एनर्जी नॉर्थवेस्ट के साथ साझेदारी, एक्स-एनर्जी के साथ SMR विकास में निवेश और वर्जीनिया में डोमिनियन एनर्जी के साथ सहयोग शामिल है।
- OpenAI: OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने न्यूक्लियर स्टार्टअप ओक्लो का समर्थन किया है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2027 तक परिचालन करना है।
- ऑल्टमैन ने वर्ष 2021 में परमाणु संलयन कंपनी हेलियन में भी निवेश किया।
बड़ी टेक कम्पनियाँ परमाणु ऊर्जा की ओर रुख क्यों कर रही हैं?
- AI से ऊर्जा की बढ़ती मांग: इलेक्ट्रिक पावर रिसर्च इंस्टीट्यूट (EPRI), एक गैर-लाभकारी संगठन, ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि डेटा केंद्रों की विद्युत् की खपत वर्ष 2030 तक दोगुनी से भी अधिक हो सकती है।
- अनुमान है कि डेटा केंद्र (जो AI परिचालनों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं) वर्ष 2030 तक संयुक्त राज्य अमेरिका की 9% विद्युत् की खपत करेंगे, जो उनके वर्तमान उपयोग से दोगुने से भी अधिक है।
- नवीकरणीय ऊर्जा की सीमाएँ: परमाणु ऊर्जा से AI कंपनियों के परिचालन हेतु चौबीस घंटे निरंतर और कार्बन मुक्त विद्युत् उपलब्ध होती है।
- पवन और सौर जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत अस्थायी प्रकृति के हैं।
- स्थिरता: प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियाँ अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने और स्थिरता लक्ष्यों को प्राप्त करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
- उदाहरण के लिये गूगल के अनुसार वर्ष 2023 में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 13% की वृद्धि हुई, जिससे विकास और स्थिरता के बीच संतुलन बनाने की चुनौतियों पर प्रकाश पड़ता है।
- रणनीतिक साझेदारी और निवेश: प्रौद्योगिकी दिग्गज कंपनियाँ परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करने के लिये ऊर्जा कंपनियों के साथ रणनीतिक साझेदारी कर रही हैं।
- उदाहरण के लिये माइक्रोसॉफ्ट ने दीर्घकालिक कार्बन-मुक्त ऊर्जा सुनिश्चित करने के लिये अमेरिका में थ्री माइल आइलैंड परमाणु संयंत्र को पुनर्जीवित करने के क्रम में कांस्टेलेशन एनर्जी के साथ साझेदारी की।
- आर्थिक लाभ की संभावना: परमाणु ऊर्जा में निवेश करने से अब प्रौद्योगिकी कंपनियों को एक विश्वसनीय ऊर्जा स्रोत प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जो ऊर्जा प्रतिस्पर्द्धा के तीव्र होने के साथ-साथ और भी अधिक मूल्यवान हो जाएगा।
- जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंता: जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा विश्वसनीयता संबंधी चिंताओं के कारण परमाणु ऊर्जा अधिक आकर्षक हो गई है, जिससे प्रौद्योगिकी कंपनियाँ इस क्षेत्र में अपने निवेश को उचित ठहराने के लिये प्रेरित हो रही हैं।
भारत में परमाणु ऊर्जा परिदृश्य क्या है?
- भारत का वर्ष 2032 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाकर 22,480 मेगावाट तथा वर्ष 2050 तक 25% विद्युत् परमाणु स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य है।
- REC (ग्रामीण विद्युतीकरण निगम) द्वारा वर्ष 2030 तक नवीकरणीय और परमाणु परियोजनाओं के लिये 6 ट्रिलियन रुपए आवंटित करने की योजना है।
- NTPC, NPCIL (भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम) के साथ साझेदारी कर अणुशक्ति विद्युत निगम का गठन कर रही है, जिसका ध्यान परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण एवं संचालन पर केंद्रित होगा।
- भारत की योजना 10 नए रिएक्टर स्थापित करने तथा SMR का विकास और परमाणु प्रौद्योगिकियों में नवप्रवर्तन के लिये निजी कंपनियों के साथ सहयोग करने की है।
स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) के बारे में मुख्य बातें क्या हैं?
- SMR के बारे में: SMR उन्नत परमाणु रिएक्टर हैं जो पारंपरिक परमाणु रिएक्टरों के आकार का लगभग एक तिहाई हैं।
- लघु आकार (S): 300 मेगावाट (E) तक की विद्युत क्षमता।
- मॉड्यूलर (M): घटकों को पूर्वनिर्मित किया जाता है और स्थापना स्थल तक ले जाया जाता है।
- परमाणु रिएक्टर (R): कम कार्बन बिजली उत्पन्न करने के लिये परमाणु विखंडन का उपयोग करें।
- लाभ:
- स्मॉलर फूटप्रिंट: SMR को बड़े रिएक्टरों के लिये अनुपयुक्त स्थानों पर स्थापित किया जा सकता है।
- लागत और निर्माण दक्षता: प्रीफैब्रिकेशन और मॉड्यूलर डिज़ाइन निर्माण समय और लागत को कम करते हैं।
- ऑफ-ग्रिड क्षमता: SMR, विशेष रूप से माइक्रो रिएक्टर (10 मेगावाट तक), दूरदराज़ के क्षेत्रों में बिजली प्रदान कर सकते हैं।
- रीफ्यूलिंग आवृत्ति में कमी: SMR को केवल प्रत्येक 3 से 7 वर्षों में रीफ्यूलिंग की आवश्यकता होती है, तथा कुछ बिना रीफ्यूलिंग के 30 वर्षों तक चलते हैं।
- वैश्विक स्तर पर संचालन: रूस के फ्लोटिंग SMR पावर प्लांट, अकादमिक लोमोनोसोव का वर्ष 2020 में वाणिज्यिक संचालन शुरू किया गया था।
- भारत का लक्ष्य कैप्टिव थर्मल पावर प्लांट्स की जगह भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर नाम से 40-50 SMR स्थापित करना है।
- अर्जेंटीना, कनाडा, चीन, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे अन्य देश भी SMR परियोजनाओं को अपना रहे हैं।
- विद्युत् उत्पादन, तापन, जल विलवणीकरण और औद्योगिक भाप सहित विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये विश्व स्तर पर 80 से अधिक वाणिज्यिक SMR डिज़ाइन विकसित किये जा रहे हैं।
- चुनौतियाँ: यद्यपि SMR की प्रति इकाई अग्रिम पूंजी लागत कम होती है, फिर भी वास्तविक रूप से विश्व में उनकी आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सिद्ध करना अभी बाकी है।
परमाणु ऊर्जा के क्या लाभ हैं?
- निम्न-कार्बन समाधान: परमाणु ऊर्जा एक विश्वसनीय और सतत् ऊर्जा स्रोत है जो मौसम की स्थिति से प्रभावित नहीं होती है, जिससे कारण यह निरंतर ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिये उपयुक्त है।
- छोटा भूमि पदचिह्न: अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तुलना में परमाणु सुविधाओं के लिये काफी कम भूमि की आवश्यकता होती है।
- एक सामान्य 1,000 मेगावाट परमाणु संयंत्र को केवल एक वर्ग मील भूमि की आवश्यकता होती है, जबकि पवन फार्मों और सौर संयंत्रों को क्रमशः 360 एवं 75 गुना अधिक भूमि की आवश्यकता होती है।
- उच्च विद्युत उत्पादन: परमाणु विद्युत संयंत्रों की क्षमता उच्च होती है, जो लगभग 93% अधिकतम उत्पादन प्रदान करता है।
- न्यूनतम अपशिष्ट उत्पादन: परमाणु ऊर्जा अन्य ऊर्जा स्रोतों की तुलना में अपेक्षाकृत कम मात्रा में अपशिष्ट उत्पन्न करती है।
- प्रयुक्त रूप से ईंधन का उपयोग करने वाले उन्नत रिएक्टर डिज़ाइन किये जा रहे हैं, जिससे अपशिष्ट में और भी कमी आएगी।
परमाणु ऊर्जा से संबद्ध चिंताएँ क्या हैं?
- कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन: परमाणु ऊर्जा रिएक्टर स्वयं संचालन के दौरान प्रत्यक्ष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं करते हैं, लेकिन यूरेनियम अयस्क के खनन एवं शोधन की प्रक्रियाओं के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के लिये जीवाश्म ईंधन से प्राप्त महत्त्वपूर्ण ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- प्रतिष्ठा संबंधी मुद्दे: परमाणु ऊर्जा को अक्सर परमाणु हथियारों के साथ जोड़ कर देखा जाता है, जिससे प्रसार और सुरक्षा जोखिमों के बारे में जनता में भय उत्पन्न होता है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: थ्री माइल आइलैंड घटना (1979), चेर्नोबिल आपदा (1986) और फुकुशिमा दुर्घटना (2011) जैसी गंभीर दुर्घटनाओं ने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा के बारे में भय उत्पन्न कर दिया है, जिससे उनकी सुरक्षा के बारे में व्यापक संदेह व्याप्त है।
- 'फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ' जैसे पर्यावरण समूहों ने परमाणु ऊर्जा की आलोचना की है तथा दुर्घटनाओं, रेडियोधर्मी रिसाव और परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियों जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाला है।
- लागत और वित्तीय व्यवहार्यता: परमाणु ऊर्जा अक्सर उच्च प्रारंभिक निर्माण और परिचालन लागतों से संबंधित है, जिससे यह वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की तुलना में कम आकर्षक हो जाती है।
आगे की राह:
- सुरक्षा प्रोटोकॉल में वृद्धि: सुरक्षा और दक्षता को प्राथमिकता देने वाले उन्नत रूप से डिज़ाइन किये गए रिएक्टर, जैसे कि जनरेशन IV रिएक्टर और स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR)हैं, को अपनाना।
- नवीन अपशिष्ट प्रबंधन: उन्नत परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन समाधानों में निवेश करना, जैसे कि गहरे भू-वैज्ञानिक भंडारण, जिसे फिनलैंड जैसे देशों में सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया गया है।
- नवीकरणीय ऊर्जा के साथ एकीकरण: परमाणु ऊर्जा को नवीकरणीय स्रोतों के पूरक संसाधन के रूप में बढ़ावा देना, जिससे समग्र ग्रिड स्थिरता और ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि होगी।
- नियामक सुधार: परमाणु सुविधाओं में जनता का विश्वास बहाल करने के लिये कड़े नियामक ढाँचे और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों को लागू करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) को उनकी अनुकूलनशीलता और दक्षता के कारण परमाणु ऊर्जा के भविष्य के रूप में सराहा जा रहा है।" आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का कार्य है: (2011) (a) न्यूट्रॉन की गति धीमा करना उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से जुड़े तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018) |
संविधान के अभिन्न अंग के रूप में समाजवादी एवं पंथनिरपेक्षता
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, मूल ढाँचा, 42वाँ संशोधन 1976, प्रस्तावना, संविधान सभा, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संसाधनों का समान वितरण, मिश्रित अर्थव्यवस्था, नियोजित अर्थव्यवस्था, उदारीकरण, अनुच्छेद 25 और 26, अनुच्छेद 25-28, जीवन का अधिकार, मूल अधिकार, राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (DPSP), अनुच्छेद 31C। मेन्स के लिये:संसाधनों का न्यायसंगत वितरण, भारतीय संविधान में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों का महत्त्व, समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों से संबंधित न्यायिक व्याख्या। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने "समाजवादी" और "पंथनिरपेक्ष" शब्दों को प्रस्तावना से हटाने की याचिका को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि यह संविधान के मूल ढाँचे के अभिन्न अंग हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने 42वें संशोधन, 1976 को बनाए रखा, जिसके तहत समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों को शामिल किया गया था और कहा गया था कि ये शब्द भारतीय संदर्भ में विशिष्ट महत्त्व रखते हैं, जो इनकी पश्चिमी व्याख्याओं से अलग है।
समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों को हटाने के लिये क्या तर्क प्रस्तुत किये गए?
- संविधान सभा द्वारा अस्वीकृति: 15 नवंबर 1948 को प्रोफेसर केटी शाह ने प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन संविधान सभा ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
- संविधान के अनुच्छेद 18 में "पंथनिरपेक्ष" शब्द को शामिल करने के प्रयासों को भी संविधान सभा ने इसी तरह अस्वीकार कर दिया था।
- प्रस्तावना में संशोधन की तिथि: एक याचिकाकर्त्ता ने दावा किया कि 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों को शामिल करना असंवैधानिक था, क्योंकि इसे अपनाने की निश्चित तिथि 26 नवंबर, 1949 थी और संशोधन पूर्वव्यापी प्रभाव से 1976 से लागू किये गए थे।
- हालाँकि न्यायालय ने संविधान को एक जीवंत दस्तावेज माना जो सामाजिक आवश्यकताओं के साथ विकसित होता है तथा कहा कि इसमें समाजवादी एवं पंथनिरपेक्षता का समावेश इस विकास को दर्शाता है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में वर्ष 1989 का संशोधन: याचिकाकर्त्ताओं ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 में वर्ष 1989 के संशोधन को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि राजनीतिक दलों को पंजीकरण के लिये समाजवादी एवं पंथनिरपेक्षता के प्रति निष्ठा की शपथ लेने की आवश्यकता अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
पंथनिरपेक्षता की पश्चिमी अवधारणा भारतीय अवधारणा से किस प्रकार भिन्न है?
पहलू |
पंथनिरपेक्षता की पश्चिमी अवधारणा |
पंथनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा |
परिभाषा |
मुख्य रूप से इसका तात्पर्य धर्म के मामलों से राज्य का पूर्ण अलगाव है। |
राज्य और धर्म के बीच पूरी तरह से अलगाव नहीं होता है। सभी धर्मों के लिये समान सम्मान और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने में राज्य की सकारात्मक भूमिका पर बल दिया जाता है। उदाहरण के लिये, मंदिर में प्रवेश को रोकना और तीन तलाक को अपराध बनाना |
धर्म की भूमिका |
धर्म को प्रायः निजी मामला माना जाता है और राज्य इससे तटस्थ रहता है। |
राज्य विभिन्न धर्मों को मान्यता देने तथा उन्हें महत्त्व देने के साथ उनके सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है। |
सरकार का दायित्व |
सरकार पर किसी भी धर्म को समर्थन करने का कोई दायित्व नहीं है। |
सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करे तथा समाज में उनका उचित सम्मान सुनिश्चित करे। |
व्यक्तिवाद बनाम सामूहिकता |
राज्य के हस्तक्षेप के बिना धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन करने के व्यक्तिगत अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करना। |
धार्मिक समुदायों के सामूहिक अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करना तथा यह सुनिश्चित करना कि उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं की सुरक्षा की जाए। |
सांस्कृतिक संदर्भ |
अक्सर धार्मिक संघर्ष के इतिहास वाले समाजों में विकसित है जिसमें तटस्थता पर बल दिया जाता है। |
यह विभिन्न धर्मों के बीच सह-अस्तित्व के लंबे इतिहास वाले बहुलवादी समाज में विकसित है। |
शिक्षण संस्थान |
सरकारी स्कूल आमतौर पर पंथनिरपेक्ष होते हैं तथा उनमें धार्मिक शिक्षा पर प्रतिबंध होता है। |
स्कूलों में धार्मिक शिक्षा को शामिल किया जा सकता है, जिससे समुदाय की सांस्कृतिक विविधता प्रतिबिंबित होती है। |
समाजवाद की पश्चिमी अवधारणा भारतीय अवधारणा से किस प्रकार भिन्न है?
पहलू |
समाजवाद की पश्चिमी अवधारणा |
समाजवाद की भारतीय अवधारणा |
सकेंद्रण |
आर्थिक समानता प्राप्त करने के क्रम में उत्पादन के साधनों पर सामूहिक या सरकारी स्वामित्व पर बल देना। |
संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के माध्यम से लोकतांत्रिक समाजवाद पर बल देना तथा सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के साथ मिश्रित अर्थव्यवस्था को महत्त्व देना। |
आर्थिक संरचना |
इसमें एक अनिवार्य नियोजन मॉडल शामिल है, जहाँ राज्य प्रमुख उद्योगों को नियंत्रित करता है, विशेष रूप से मार्क्सवादी या लेनिनवादी संदर्भों में। |
इसमें एक सांकेतिक नियोजन मॉडल शामिल है, जहाँ राज्य सहयोग की भूमिका निभाता है और निजी क्षेत्र भी लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। |
वर्ग संघर्ष |
सामाजिक परिवर्तन और क्रांति के लिये प्रेरक के रूप में वर्गों (सर्वहारा बनाम पूंजीपति) के बीच संघर्ष देखा जाता है। पूंजीवादी और समाजवादी एक दूसरे को अपना दुश्मन मानते हैं। |
वर्ग संघर्ष की वकालत किये बिना सामाजिक न्याय के साथ हाशिये पर स्थित समुदायों के उत्थान पर बल दिया जाता है। |
राज्य की भूमिका |
राज्य अक्सर आर्थिक नियोजन और संसाधन आवंटन में प्रमुख भूमिका निभाता है, विशेष रूप से समाजवाद के अधिक कट्टरपंथी रूपों में। |
राज्य नियामक भूमिका में होता है और वह कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने के साथ निजी उद्यमों एवं उदारीकरण को प्रोत्साहित करता है। |
सांस्कृतिक संदर्भ |
पश्चिम के औद्योगिक पूंजीवाद और शहरीकरण की प्रतिक्रिया में विकसित और अक्सर मार्क्सवादी सिद्धांत पर आधारित। |
उपनिवेशवाद, स्वतंत्रता, तथा गहरी सामाजिक असमानताओं एवं विविध सांस्कृतिक पहचानों को संबोधित करने की आवश्यकता के संदर्भ से विकसित। |
वैश्वीकरण और व्यापार |
इसमें वैश्वीकरण की आलोचना की जाने के साथ इसे पूंजीवादी शोषण का एक रूप माना जा सकता है। |
इसमें वैश्वीकरण का सामान्यतः समर्थन करते हुए, भारत के लिये सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करने के साथ वैश्विक बाज़ारों से जुड़ने की आवश्यकता को मान्यता दी गई है। |
पंथनिरपेक्षता को आकार देने में भारतीय न्यायपालिका की क्या भूमिका है?
- सरदार ताहिरुद्दीन सैयदना साहब मामला, 1962: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 (धर्म की स्वतंत्रता) से भारतीय लोकतंत्र की पंथनिरपेक्ष प्रकृति पर प्रकाश पड़ता है।
- केशवानंद भारती मामला, 1973: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पंथनिरपेक्षता संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा है।
- मूल ढाँचा सिद्धांत के अनुसार भारतीय संविधान के कुछ मुख्य तत्त्वों को बदला या हटाया नहीं जा सकता है।
- एसआर बोम्मई मामला, 1994: इसमें न्यायालय ने कहा कि पंथनिरपेक्षता का अर्थ सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार से है और कहा कि 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया पंथनिरपेक्ष शब्द अनुच्छेद 25-28 के तहत संरक्षित मूल अधिकारों के अनुरूप है।
- इस्माइल फारुकी मामला, 1994: इसमें न्यायालय ने माना कि किसी धार्मिक समुदाय से संबंधित किसी भी संपत्ति को राज्य द्वारा (यदि आवश्यक समझा जाए) उचित मुआवजा देने के बाद अधिग्रहित किया जा सकता है।
- अरुणा रॉय मामला, 2002: इसमें भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पंथनिरपेक्षता का सार, राज्य द्वारा धार्मिक मतभेदों के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव न करना है।
- न्यायालय ने धार्मिक निर्देश और धार्मिक शिक्षा या धर्म के अध्ययन के बीच अंतर किया और कहा कि धार्मिक शिक्षा अनुमेय है और वास्तव में वांछनीय भी है, जबकि धार्मिक निर्देश पर प्रतिबंध है।
- अभिराम सिंह मामला, 2017: इसमें न्यायालय ने माना कि पंथनिरपेक्षता के लिये राज्य को धर्म से अलग रहने की आवश्यकता नहीं है; बल्कि इसे सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करना आवश्यक है।
- इसमें यह स्वीकार किया गया कि धर्म और जाति समाज का अभिन्न अंग हैं तथा इन्हें राजनीति से पूरी तरह से अलग नहीं किया जा सकता है।
- कोई राजनीतिक उम्मीदवार या उसका एजेंट चुनाव के दौरान धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर प्रचार नहीं कर सकता है क्योंकि इसे भ्रष्ट आचरण माना जाता है (RPA की धारा 123 (3)।
समाजवाद को आकार देने में भारतीय न्यायपालिका की क्या भूमिका है?
- केशवानंद भारती मामला, 1973: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि समाजवाद संविधान के मूल ढाँचे का पहलू है, जिसे सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका में देखा जा सकता है।
- कर्नाटक राज्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी मामला, 1977: इसमें न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि समाजवाद के तहत लोक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये तथा तर्क दिया कि राष्ट्रीयकरण या अधिग्रहण का लक्ष्य लोक कल्याण और न्यायसंगत धन वितरण होना चाहिये।
- मेनका गांधी मामला, 1978: इसमें इस बात पर बल दिया गया कि जीवन के अधिकार में सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है, जो सभी नागरिकों के लिये जीवन की उचित गुणवत्ता सुनिश्चित करने के समाजवादी सिद्धांत हेतु आवश्यक है।
- मिनर्वा मिल्स मामला, 1980: सर्वोच्च न्यायालय ने मूल अधिकारों एवं राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों (DPSP) के बीच सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें कहा गया कि समाजवादी सिद्धांतों के अनुरूप सामाजिक एवं आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के क्रम में DPSP को राज्य की नीतियों का मार्गदर्शक होना चाहिये।
- संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड मामला, 1982: इसमें कोयला उद्योग को पुनर्गठित करने के साथ लोक कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधनों की सुरक्षा के क्रम में राष्ट्रीयकरण को एक आवश्यक कदम बताया गया।
- इसमें कहा गया कि अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होने पर अनुच्छेद 31C के तहत विधिक संरक्षण प्राप्त होगा।
- अनुच्छेद 31C के तहत उन विधियों को विधिक संरक्षण मिलता है जिनसे यह सुनिश्चित होता है कि "समुदाय के भौतिक संसाधन" लोक कल्याण को ध्यान में रखते हुए वितरित किये जाएँ ( अनुच्छेद 39 (b) और धन एवं उत्पादन के साधन "जनसामान्य की हानि" पर "केंद्रित" न हों (अनुच्छेद 39 (c)।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा "समाजवाद" और "पंथनिरपेक्ष" को संविधान के मूल ढाँचे का अभिन्न अंग मानना भारतीय संदर्भ में इन अवधारणाओं की व्याख्या करने में न्यायपालिका की भूमिका को दर्शाता है। पश्चिमी व्याख्याओं से इसकी भिन्नता भारत के अद्वितीय सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य पर प्रकाश डालती है जिसमें समावेशिता, सामाजिक न्याय और समान संसाधन वितरण को केंद्र में रखा जाता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारतीय संविधान में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द समय के साथ किस प्रकार विकसित हुए हैं और ये पश्चिमी व्याख्याओं से किस प्रकार भिन्न हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न: 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021) (a) लोकतंत्रात्मक गणराज्य उत्तर: (B) प्रश्न: भारत के संविधान की उद्देशिका: (2020) (a) संविधान का भाग है किंतु कोई विधिक प्रभाव नहीं रखती उत्तर: (d) प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन 1948 में स्थापित “हिंद मज़दूर सभा” के संस्थापक थे? (2018) (a) बी. कृष्णा पिल्लई, ई. एम. एस. नंबूदिरिपाद और के. सी. जॉर्ज उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न: 'उद्देशिका (प्रस्तावना)' में शब्द 'गणराज्य' के साथ जुड़े प्रत्येक विशेषण पर चर्चा कीजिये। क्या वर्तमान परिस्थितियों में वे प्रतिरक्षणीय है? (2016) |
विजयनगर साम्राज्य के ताम्रपत्र की खोज
प्रिलिम्स के लिये:विजयनगर साम्राज्य, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), राजा कृष्णदेवराय, हम्पी, यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल, हज़ारा राम मंदिर, उग्र नरसिंह प्रतिमा मेन्स के लिये:विजयनगर साम्राज्य के दौरान सांस्कृतिक और साहित्यिक विकास, कृष्णदेवराय का साहित्यिक योगदान। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, तमिलनाडु के तिरुवल्लूर ज़िले के मप्पेडु गाँव स्थित श्री सिंगेश्वर मंदिर में 16वीं शताब्दी के दो पृष्ठों वाले ताम्रपत्र अभिलेख के एक समूह की खोज की गई है।
- तांबे की प्लेटों के दो पृष्ठों/पत्तों को एक अंगूठी की सहायता से आपस में पिरोया गया है जिस पर विजयनगर साम्राज्य की मुहर बनी हुई है।
- चंद्रगिरी के राजा द्वारा ब्राह्मणों को एक गाँव दान में देने का उल्लेख करने वाला अभिलेख संस्कृत और नंदीनगरी लिपि में लिखा गया है। इसे राजा कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान 1513 ई. में उत्कीर्ण किया गया था।
राजा कृष्णदेवराय कौन थे?
- कृष्णदेवराय का शासनकाल:
- विजयनगर साम्राज्य पर 1509 से 1529 ई. तक कृष्णदेवराय का शासन रहा।
- कृष्णदेव राय के बाद, 1530 ई. में अच्युत राय और उसके बाद 1542 ई. में सदा शिव राय ने शासन संभाला।
- उन्हें विभिन्न उपाधियों से जाना जाता था, जिनमें “कन्नड़राय (Kannadaraya)” और “कन्नड़ राज्य रामरमण (Kannada Rajya Ramaramana)” शामिल थे।
- उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे महान राजनेताओं में से एक माना जाता है तथा उन्हें मध्यकालीन दक्षिण भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण शासकों में से एक माना जाता है।
- साहित्यिक योगदान:
- वह एक प्रख्यात विद्वान थे और उन्होंने मदालसा चरित, सत्यवेदु परिणय, रसमंजरी, जाम्बवती कल्याण (Jambavati Kalyana) और अमुक्तमालक्यदा (Amuktamalkyada) जैसी रचनाएँ लिखीं।
- अनेक भाषाओं में निपुण होने के कारण उन्होंने संस्कृत, तेलुगु, तमिल और कन्नड़ में लिखने वाले कवियों को सहयोग दिया।
- शिक्षा और साहित्य का संरक्षण:
- उनके दरबार में अष्टदिग्गज, आठ प्रमुख विद्वान शामिल थे, उनमें अल्लासानि पेद्दन्ना भी शामिल थे, जिन्हें आंध्र-कवितापितामह के नाम से जाना जाता था, जो अपने कार्य मनुचरितमु के लिये प्रसिद्ध थे।
- कन्नड़ कवि थिमन्ना ने कृष्णदेवराय के अनुरोध पर कन्नड़ महाभारत को पूरा किया, जो मूल रूप से कुमार व्यास द्वारा शुरू किया गया था।
- उनके शासनकाल के दौरान अन्य उल्लेखनीय कवियों को संरक्षण प्राप्त हुआ।
- कन्नड़ कवि मल्लनार्य, वीरशैवमृत और भावचिंतरत्न के लेखक।
- चतु विट्ठलनाथ , जिन्होंने भागवत लिखी।
- तिम्मन्ना कवि अपनी स्तुति कृष्णराय भरत के लिये जाने जाते हैं।
- तेलुगु कवि पेद्दन्ना को तेलुगु और संस्कृत में उनकी दक्षता के लिये सम्मानित किया गया।
- सांस्कृतिक विकास:
- कृष्णदेवराय ने कर्नाटक संगीत परंपरा को पोषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी सहित शास्त्रीय नृत्य शैलियों को भी प्रोत्साहित किया।
- बुनियादी ढाँचा विकास:
- उन्हें कुछ बेहतरीन मंदिरों के निर्माण और कई महत्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मंदिरों में प्रभावशाली गोपुरम जोड़ने का श्रेय दिया जाता है।
- उन्होंने विजयनगर के निकट अपनी माँ के नाम पर नागलपुरम नामक एक उपनगरीय नगर भी बसाया।
विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- साम्राज्य की स्थापना और अवधि:
- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. से दक्कन क्षेत्र में हुई थी, जिसकी स्थापना हरिहर (जिसे हक्का भी कहा जाता है) और उनके भाई बुक्का राय ने की थी।
- उन्होंने हम्पी को राजधानी शहर बनाया (जिसे वर्ष 1986 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया)।
- विजयनगर साम्राज्य पर चार महत्त्वपूर्ण राजवंशों (संगामा, सलुवा, तुलुवा, अरविडु) का शासन था।
- यह साम्राज्य 1336 ई. से लेकर लगभग 1660 ई. तक चला, हालाँकि अंतिम शताब्दी में दक्कन सल्तनतों के गठबंधन द्वारा विनाशकारी पराजय के बाद इसे धीरे-धीरे पतन का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप राजधानी पर कब्ज़ा कर उसे नष्ट का दिया गया।
- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. से दक्कन क्षेत्र में हुई थी, जिसकी स्थापना हरिहर (जिसे हक्का भी कहा जाता है) और उनके भाई बुक्का राय ने की थी।
- पुर्तगाली संबंध:
- वर्ष 1510 के आसपास पुर्तगालियों ने विजयनगर के सहयोग से बीजापुर के सुल्तान के अधीन गोवा पर कब्जा कर लिया।
- पुर्तगालियों ने विजयनगर साम्राज्य को बंदूकें और अरबी घोड़े उपलब्ध कराए, जबकि कपास, चावल, चीनी, मसाले, नील और लकड़ी के सामान निर्यात किया गया।
- सांस्कृतिक एवं स्थापत्य कला का उत्कर्ष:
- आमतौर पर यह माना जाता है कि कृष्णदेव राय के शासनकाल में यह साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था, जिन्होंने दक्कन के पूर्व में उन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की थी जो पहले उड़ीसा का हिस्सा थे।
- साम्राज्य के कई उल्लेखनीय स्मारक, जिनमें हज़ारा राम मंदिर, कृष्ण मंदिर और उग्र नरसिंह प्रतिमा शामिल हैं, उनके समय के हैं।
- विजयनगर शासकों ने भव्य मंदिरों के निर्माण को बढ़ावा दिया, जैसे विरुपाक्ष मंदिर और विट्ठल मंदिर, जो अपनी जटिल नक्काशी और आश्चर्यजनक वास्तुकला के लिये जाने जाते हैं।
- दक्षिणी भारत में प्रभुत्त्व:
- दो शताब्दियों से अधिक समय तक विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिणी भारत पर अपना प्रभुत्त्व बनाए रखा और इस अवधि के दौरान यह भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था।
- यह साम्राज्य सिंधु-गंगा के मैदान के तुर्क सल्तनतों के आक्रमणों के विरुद्ध रक्षा के रूप में कार्य करता था।
- दक्कन सल्तनत और मुगलों के साथ संघर्ष:
- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना आंशिक रूप से मुहम्मद बिन तुगलक के अधीन दिल्ली सल्तनत के कमज़ोर होने की प्रतिक्रियास्वरूप की गई थी, जिसकी नीतियों के कारण दक्कन में अशांति का वातावरण था।
- अपनी राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित करने के उनके प्रयास और उनकी कठोर कर नीतियों के कारण विद्रोह हुए, जिससे विजयनगर सहित स्वतंत्र क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ।
- साम्राज्य का अक्सर बहमनी सल्तनत के साथ संघर्ष होता रहता था, जो दक्कन में तुगलक के नियंत्रण के पतन के बाद उभरा था।
- दक्कन सल्तनत के साथ क्षेत्रीय संघर्ष, विशेष रूप से रायचूर दोआब को लेकर, विशुद्ध धार्मिक मतभेदों के बजाय सामरिक और आर्थिक संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा से प्रेरित थे।
- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना आंशिक रूप से मुहम्मद बिन तुगलक के अधीन दिल्ली सल्तनत के कमज़ोर होने की प्रतिक्रियास्वरूप की गई थी, जिसकी नीतियों के कारण दक्कन में अशांति का वातावरण था।
- विजयनगर के अधीन शासन का क्षेत्र:
- अपने चरम पर, साम्राज्य दक्षिणी भारत के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था, जिसमें वर्तमान कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना के कुछ हिस्से शामिल थे।
- यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर भारतीय प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिणी सिरे तक तथा पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ था।
- गिरावट और पतन:
- वर्ष 1565 में, तालीकोटा के युद्ध (रक्कसगी-तांगदागी की लड़ाई) के परिणामस्वरूप मित्र देशों की दक्कन सल्तनतों द्वारा विजयनगर सेना की निर्णायक हार हुई।
नायक
- नायक सैन्य कमांडर थे, जिन्हें सेना के रखरखाव और वित्तीय योगदान के बदले में राजा द्वारा भूमि (अमरम) प्रदान की जाती थी।
- उन्हें अपने क्षेत्रों में पर्याप्त स्वायत्तता प्राप्त थी, वे स्थानीय प्रशासन और रक्षा का प्रबंधन करते थे तथा केंद्रीय सत्ता के प्रति वफादार बने रहते थे।
- नायक स्थानीय शासन के लिये ज़िम्मेदार थे, जिसमें भूमि वितरण और कर संग्रह शामिल था तथा सामंती जैसी व्यवस्था बनी हुई थी।
- समय के साथ, कुछ नायकों ने महत्त्वपूर्ण शक्ति प्राप्त कर ली, जिसके कारण केंद्रीय प्राधिकार, के साथ विशेषकर साम्राज्य के पतन के दौरान, संघर्ष हुआ।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: विजयनगर साम्राज्य के दक्षिण भारत में सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक योगदान पर चर्चा कीजिये। इन योगदानों ने बाद के भारतीय इतिहास को कैसे प्रभावित किया? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक:प्रसिद्ध विरुपाक्ष मंदिर कहाँ स्थित है? (2009) (a) भद्राचलम उत्तर: (c) मुख्य:Q. विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय न केवल स्वयं एक कुशल विद्वान थे, बल्कि वे शिक्षा और साहित्य के महान संरक्षक भी थे। चर्चा कीजिये। (2016) |