गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता और आकाशगंगा विकास
प्रिलिम्स के लिये:गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता और गैलेक्सी विकास, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA), गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता, स्पिट्ज़र फोटोमेट्री एंड सटीक रोटेशन कर्व्स (SPARC) मेन्स के लिये:गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता और आकाशगंगा विकास |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) द्वारा एक अध्ययन जारी किया गया, जिसका उद्देश्य गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता और आकाशगंगा विकास के बीच संबंधों को समझना है।
नोट:
- गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता एक मौलिक भौतिक घटना को संदर्भित करती है जो खगोल भौतिकीय प्रणालियों, विशेष रूप से आकाशगंगाओं, तारों और ग्रहीय प्रणालियों जैसे आकाशीय पिंडों में घटित होती है।
- ये अस्थिरताएँ गुरुत्वाकर्षण बल से प्रेरित होती हैं और इन ब्रह्मांडीय कार्यप्रणालियों की संरचना, विकास और गतिशीलता को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अध्ययन की पद्धति:
- शोधकर्ताओं ने स्पिट्ज़र फोटोमेट्री और एक्यूरेट रोटेशन कर्व्स (SPARC) डेटाबेस से 175 आकाशगंगाओं के नमूने के स्थिरता स्तर का विश्लेषण कर आस-पास की आकाशगंगाओं में गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता वृद्धि के लिये तारों की निर्माण दर, गैस अंश और समय के पैमाने की तुलना की।
- अध्ययन में जाँच की गई कि आकाशगंगाओं में स्थिरता के स्तर को कैसे नियंत्रित किया जाता है, जिसमें डार्क मैटर की संभावित भूमिका भी शामिल है। इसने यह निर्धारित करने की कोशिश की कि क्या तारे और गैस स्थिरता के स्तर को स्व-विनियमित कर सकते हैं।
- उन्होंने आस-पास की आकाशगंगाओं में स्थिरता के स्तर की तुलना उच्च रेडशिफ्ट पर देखे गए स्थिरता स्तरों से की, जिन्हें स्थानीय ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं का अग्रदूत माना जाता है।
- रेडशिफ्ट:
- वैज्ञानिक रेडशिफ्ट के माध्यम से ब्रह्मांडीय दूरियों को मापते हैं, ब्रह्मांड में अपनी लंबी यात्रा के दौरान प्रकाश किस हद तक विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के लाल (कम ऊर्जा) भाग की ओर स्थानांतरित होता है।
- दूरी जितनी अधिक होगी, रेडशिफ्ट उतना ही अधिक होगा।
अध्ययन के मुख्य तथ्य:
- सर्पिल आकाशगंगाएँ:
- आकाशगंगा जैसी सर्पिल आकाशगंगाओं ने विशिष्ट विशेषताओं का प्रदर्शन किया।
- उनके पास उच्च औसत तारा निर्माण दर, कम स्थिरता, कम गैस अंश और गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता के विकास के लिये एक छोटा समय पैमाना था।
- आकाशगंगा जैसी सर्पिल आकाशगंगाओं ने विशिष्ट विशेषताओं का प्रदर्शन किया।
- गैस का तारों में रूपांतरण:
- कम स्थिरता वाली सर्पिल आकाशगंगाओं में गुरुत्वाकर्षण अस्थिरताएँ बड़ी मात्रा में गैस को कुशलतापूर्वक तारों में परिवर्तित कर देती हैं।
- इस प्रक्रिया के कारण इन आकाशगंगाओं में गैस भंडार कम हो गए हैं।
- कम स्थिरता वाली सर्पिल आकाशगंगाओं में गुरुत्वाकर्षण अस्थिरताएँ बड़ी मात्रा में गैस को कुशलतापूर्वक तारों में परिवर्तित कर देती हैं।
- तारा निर्माण तंत्र:
- सीमांत स्थिरता स्तर वाली आकाशगंगाएँ थोड़े समय के पैमाने पर तीव्र तारा निर्माण गतिविधि से गुज़रती हैं, जिससे गैस भंडार कम हो जाता है।
- इसके विपरीत अत्यधिक स्थिर आकाशगंगाएँ लंबे समय के पैमाने पर धीमी और क्रमिक तारा निर्माण प्रक्रियाओं का प्रदर्शन करती हैं, जो उपलब्ध गैस को तारों में परिवर्तित करती हैं।
- भविष्य और महत्त्व:
- विभिन्न रेडशिफ्ट्स में आकाशगंगाओं के रूपात्मक विकास पर गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता के प्रभाव की भविष्य में जाँच की आवश्यकता है।
- आकाशगंगा निर्माण और विकास में मूलभूत प्रक्रियाओं को समझने के लिये यह अंतर्दृष्टि महत्त्वपूर्ण है।
महिला आरक्षण विधेयक 2023
प्रिलिम्स के लिये:संसद और राज्य विधानसभाएँ, दिल्ली को विशेष दर्जा, आरक्षण प्रावधान और सकारात्मक नीतियाँ मेन्स के लिये:लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये आरक्षण प्रावधानों के बीच अंतर्संबंध, अन्य राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा के बीच अंतर |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने महिला आरक्षण विधेयक 2023 (128वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक) अथवा नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित कर दिया।
- यह विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है। यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
विधेयक की पृष्ठभूमि और आवश्यकता:
- पृष्ठभूमि:
- महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा वर्ष 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के कार्यकाल से ही की जाती रही है।
- चूँकि तत्कालीन सरकार के पास बहुमत नहीं था, इसलिये विधेयक को मंज़ूरी नहीं मिल सकी।
- महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु किये गए प्रयास:
- 1996: पहला महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया गया।
- 1998 - 2003: सरकार ने 4 अवसरों पर विधेयक पेश किया लेकिन पारित कराने में असफल रही।
- 2009: विभिन्न विरोधों के बीच सरकार ने विधेयक पेश किया।
- 2010: केंद्रीय मंत्रिमंडल और राज्यसभा द्वारा पारित।
- 2014: विधेयक को लोकसभा में पेश किये जाने की उम्मीद थी।
- महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा वर्ष 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के कार्यकाल से ही की जाती रही है।
- आवश्यकता:
- लोकसभा में 82 महिला सांसद (15.2%) और राज्यसभा में 31 महिलाएँ (13%) हैं।
- जबकि पहली लोकसभा (5%) के बाद से यह संख्या काफी बढ़ी है लेकिन कई देशों की तुलना में अभी भी काफी कम है।
- हाल के संयुक्त राष्ट्र महिला आँकड़ों के अनुसार, रवांडा (61%), क्यूबा (53%), निकारागुआ (52%) महिला प्रतिनिधित्व में शीर्ष तीन देश हैं। महिला प्रतिनिधित्व के मामले में बांग्लादेश (21%) और पाकिस्तान (20%) भी भारत से आगे हैं।
- लोकसभा में 82 महिला सांसद (15.2%) और राज्यसभा में 31 महिलाएँ (13%) हैं।
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
- निचले सदन में महिलाओं को आरक्षण:
- विधेयक में संविधान में अनुच्छेद 330A शामिल करने का प्रावधान किया गया है, जो अनुच्छेद 330 के प्रावधानों से लिया गया है। यह लोकसभा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- विधेयक में प्रावधान किया गया कि महिलाओं के लिये आरक्षित सीटें राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जा सकती हैं।
- अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों में, विधेयक में रोटेशन के आधार पर महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने की मांग की गई है।
- राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये आरक्षण:
- विधेयक अनुच्छेद 332A प्रस्तुत करता है, जो हर राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण को अनिवार्य करता है। इसके अतिरिक्त SC और ST के लिये आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई महिलाओं के लिये आवंटित की जानी चाहिये तथा विधान सभाओं के लिये सीधे मतदान के माध्यम से भरी गई कुल सीटों में से एक-तिहाई भी महिलाओं के लिये आरक्षित होनी चाहिये।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में महिलाओं के लिये आरक्षण (239AA में नया खंड):
- संविधान का अनुच्छेद 239AA केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को उसके प्रशासनिक और विधायी कार्य के संबंध में राष्ट्रीय राजधानी के रूप में विशेष दर्जा देता है।
- विधेयक द्वारा अनुच्छेद 239AA(2)(b) में तद्नुसार संशोधन किया गया और इसमें यह जोड़ा गया कि संसद द्वारा बनाए गए कानून दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर लागू होंगे।
- आरक्षण की शुरुआत (नया अनुच्छेद - 334A):
- इस विधेयक के लागू होने के बाद होने वाली जनगणना के प्रकाशन में आरक्षण प्रभावी होगा। जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा।
- आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा। हालाँकि यह संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित तिथि तक जारी रहेगा।
- सीटों का रोटेशन:
- महिलाओं के लिये आरक्षित सीटें प्रत्येक परिसीमन के बाद रोटेट की जाएंगी, जैसा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
विधेयक के विरोध में तर्क:
- विधेयक में केवल इतना कहा गया है कि यह "इस उद्देश्य के लिये परिसीमन की कवायद शुरू होने के बाद पहली जनगणना के लिये प्रासंगिक आँकड़े प्राप्त करने के बाद लागू होगा।" यह चुनाव के चक्र को निर्दिष्ट नहीं करता है जिससे महिलाओं को उनका उचित हिस्सा मिलेगा।
- वर्तमान विधेयक राज्यसभा और राज्य विधानपरिषदों में महिला आरक्षण प्रदान नहीं करता है। राज्यसभा में वर्तमान में लोकसभा की तुलना में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। प्रतिनिधित्व एक आदर्श है जो निचले और ऊपरी दोनों सदनों में प्रतिबिंबित होना चाहिये।
नोट: विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 334 के प्रावधानों से भी लिया गया है, जो संसद को कानूनों के अस्तित्व में आने के 70 वर्षों के बाद आरक्षण के प्रावधानों की समीक्षा करने के लिये बाध्य करता है। लेकिन महिला आरक्षण विधेयक के मामले में, विधेयक में महिलाओं के लिये आरक्षण प्रावधानों की संसद द्वारा समीक्षा किये जाने के लिये 15 वर्ष के सनसेट क्लॉज़ का प्रावधान किया गया है।
कानूनी अंतर्दृष्टि: नारी शक्ति वंदन अधिनियम
स्टेट ऑफ द राइनो, 2023
प्रिलिम्स के लिये:राइनो के प्रकार, विश्व गैंडा दिवस, गैंडे की स्थिति रिपोर्ट मेन्स के लिये:वन्यजीवों के संरक्षण का प्रयास |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन (IRF) ने स्टेट ऑफ द राइनो, 2023 रिपोर्ट प्रकाशित की, जो अफ्रीका और एशिया में पाँच जीवित गैंडा प्रजातियों के वर्तमान जनसंख्या अनुमान एवं रुझान का दस्तावेज़ीकरण करती है।
- गैंडे की सभी पाँच प्रजातियों और उन्हें बचाने के लिये किये जा रहे कार्यों के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु प्रत्येक वर्ष 22 सितंबर को विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है।
- इसकी घोषणा पहली बार विश्व वन्यजीव कोष (WWF)- दक्षिण अफ्रीका द्वारा वर्ष 2010 में की गई थी।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- प्रमुख खतरे:
- अवैध शिकार, आवास स्थान की हानि: अवैध शिकार अभी भी सभी पाँच गैंडों की प्रजातियों के लिये खतरा है और कई क्षेत्रों में यह बढ़ गया है जिन्हें पहले लक्षित नहीं किया गया था।
- दक्षिण अफ्रीका अपने सफेद गैंडों के अवैध शिकार से होने वाली विनाशकारी क्षति से जूझ रहा है।
- लगातार अवैध शिकार के दबाव के बावजूद काले गैंडों की आबादी बढ़ रही है।
- जलवायु परिवर्तन:
- अफ्रीका में, जलवायु परिवर्तन-प्रेरित सूखा असंख्य हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर रहा है।
- एशिया में नाटकीय रूप से वर्षा में वृद्धि और लंबी मानसून अवधि के कारण प्रत्यक्ष तौर पर अधिक गैंडों एवं मनुष्यों की मृत्यु हो सकती है।
- मौसम की बदलती परिस्थितियों और परिदृश्यों में भी आक्रामक पौधों की प्रजातियों में वृद्धि हो सकती है, जो देशी गैंडे के भोजन के आवश्यक पौधों को खत्म कर सकती है या उनके सामान्य निवास स्थान के हानि का कारण बन सकती है।
- अवैध शिकार, आवास स्थान की हानि: अवैध शिकार अभी भी सभी पाँच गैंडों की प्रजातियों के लिये खतरा है और कई क्षेत्रों में यह बढ़ गया है जिन्हें पहले लक्षित नहीं किया गया था।
- गैंडों की स्थिति:
- जावा राइनो/गैंडे: शेष बचे लगभग 76 जावा राइनो में से 12 की स्थिति और ठिकाना अज्ञात है।
- सुमात्रन राइनो/गैंडे: सुमात्रन राइनो के चिह्नों को ढूँढना कठिन होता जा रहा है, जिससे वन में उनकी आबादी के विषय में अधिक अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
- व्हाइट राइनो/गैंडे: "विश्व के सबसे बड़े राइनो फार्म" के 2,000 व्हाइट राइनो को पूरे अफ्रीका के जंगलों में छोड़ा जाएगा।
- बेहतर स्थिति वाले क्षेत्र (Bright Spots):
- बेहतर संरक्षण के परिणामस्वरूप भारत और नेपाल में एक सींग वाले गैंडों की आबादी में लगातार वृद्धि हो रही है।
- पिछले कुछ दशकों में अवैध शिकार के कारण भारी नुकसान के बावजूद अफ्रीका में काले गैंडों की मज़बूत वापसी से इनकी दर में वृद्धि हो रही है।
- सही हस्तक्षेप के साथ सभी पाँच गैंडों की प्रजातियाँ हमारे बदलते विश्व में फिर से उभर सकती हैं और बढ़ सकती हैं।
- सिफारिशें:
- अवैध शिकार, आवास संरक्षण, सामुदायिक भागीदारी, क्षमता निर्माण, मांग में कमी, समर्थन और वन्यजीव तस्करी व्यवधान को संबोधित कर गैंडों की सुरक्षा के लिये एक समग्र रणनीति लागू करना।
भारत द्वारा संरक्षण प्रयास:
- स्थानांतरण: वर्ष 2023 की शुरुआत में मानस राष्ट्रीय उद्यान में गैंडों के स्थानांतरण को वर्ष 2024 के लिये पुनर्निर्धारित किया गया था, जबकि जनवरी में एक अवैध गैंडे की खोज के बाद सुरक्षा उपायों को मज़बूत किया गया था।
- राइनो कॉरिडोर: वर्ष 2022 में असम सरकार ने उत्तर-मध्य असम में ओरंग राष्ट्रीय उद्यान में लगभग 200 वर्ग किमी. क्षेत्र जोड़ने को अंतिम रूप दिया, जो इस संरक्षित क्षेत्र और प्रमुख गैंडा आवास के आकार के दोगुना से भी अधिक है।
- इस अतिरिक्त भूमि के साथ ओरंग राष्ट्रीय उद्यान अब पूर्व में बुरहाचपोरी वन्यजीव अभयारण्य से जुड़ गया है, जिससे असम में राइनो वाले सभी संरक्षित क्षेत्रों के बीच जुड़े एक गलियारे का निर्माण पूरा हो गया है, ये हैं: मानस राष्ट्रीय उद्यान, पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, ओरंग राष्ट्रीय उद्यान, लाओखोवा और बुरहाचपोरी वन्यजीव अभयारण्य और काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान।
- एशियाई राइनो पर नई दिल्ली घोषणा: भारत, भूटान, नेपाल, इंडोनेशिया और मलेशिया ने राइनो प्रजातियों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिये एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।
- सभी राइनो का DNA प्रोफाइल: यह परियोजना अवैध शिकार को रोकने और राइनो से जुड़े वन्यजीव अपराधों में सबूत इकट्ठा करने में मदद करेगी।
- राष्ट्रीय राइनो संरक्षण रणनीति: इसे एक सींग वाले गैंडे के संरक्षण के लिये वर्ष 2019 में शुरू किया गया था।
- इंडियन राइनो विज़न 2020: यह वर्ष 2020 तक भारतीय राज्य असम के सात संरक्षित क्षेत्रों में विस्तृत कम-से-कम 3,000 से अधिक एक सींग वाले राइनो की संख्या में वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |
एलीफैंट कॉरिडोर
प्रिलिम्स के लिये:एलीफैंट कॉरिडोर, प्रोजेक्ट एलीफैंट, विश्व हाथी दिवस मेन्स के लिये:वन्यजीव संरक्षण में एलीफैंट कॉरिडोर का महत्त्व, हाथी संरक्षण से संबंधित पहलें |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने 62 नए हाथी गलियारों (एलीफैंट कॉरिडोर) की पहचान की है, ये कॉरिडोर वन्यजीव संरक्षण के प्रति देश की प्रतिबद्धता की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है। वर्तमान में ऐसे गलियारों (कॉरिडोर) की कुल संख्या 150 हो गई है, जो कि वर्ष 2010 में पंजीकृत 88 गलियारों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है।
एलीफैंट कॉरिडोर/हाथी गलियारे से संबंधित प्रमुख बिंदु:
- परिचय:
- हाथी गलियारों को भूमि के एक खंड के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो हाथियों को दो अथवा दो से अधिक अनुकूल आवास स्थानों के बीच आवागमन में सुलभता प्रदान करता है।
- नए गलियारों की सूचना संबद्ध राज्य सरकारों द्वारा दी गई थी और ग्राउंड वेलिडेशन विधि की सहायता से उन्हें सत्यापित किया गया।
- राज्यवार वितरण:
- रिपोर्ट के अनुसार, 26 गलियारों के साथ पश्चिम बंगाल सबसे शीर्ष पर है, यह कुल गलियारों का का 17% है।
- पूर्वी मध्य भारत का योगदान 35% (52 गलियारे) है, जबकि उत्तर-पूर्व क्षेत्र का योगदान 32% (48 गलियारे) है।
- दक्षिणी भारत का योगदान 21% (32 गलियारे) और उत्तरी भारत का योगदान 12%, जो कि सबसे कम (18 गलियारे) है।
- गलियारों के उपयोग की स्थिति:
- केंद्र सरकार द्वारा जारी हाथी गलियारा रिपोर्ट में भारत के 15 हाथी रेंज वाले राज्यों में हाथी गलियारों में 40% की वृद्धि देखी गई है।
- 19% गलियारे (29) उपयोग में कमी दर्शाते हैं और 10 को हुई हानि के कारण बहाली की आवश्यकता है।
- उपयोग में कमी का कारण निवास स्थान का विखंडन और विनाश है।
- गलियारों में वृद्धि का कारण:
- हाथियों ने महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र और कर्नाटक की सीमा से लगे दक्षिणी महाराष्ट्र में अपना विस्तार किया है।
- इन इलाकों में हाथियों का गलियारा बढ़ गया है।
- मध्य प्रदेश और उत्तरी आंध्र प्रदेश में भी हाथियों को बढ़ी संख्या में देखा गया है।
- हाथी:
- भारत में हाथी:
- हाथी प्रमुख प्रजाति के साथ-साथ भारत का प्राकृतिक धरोहर पशु भी है।
- भारत में एशियाई हाथियों की संख्या सबसे अधिक है। देश में हाथियों की संख्या 30,000 से अधिक होने का अनुमान है।
- भारत में हाथियों की सबसे अधिक आबादी कर्नाटक में है।
- संरक्षण स्थिति:
- प्रवासी प्रजातियों का सम्मेलन (CMS): परिशिष्ट I
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट:
- एशियाई हाथी: लुप्तप्राय
- अफ्रीकी वन हाथी: गंभीर रूप से लुप्तप्राय
- अफ्रीकी सवाना हाथी: लुप्तप्राय
- संरक्षणात्मक प्रयास:
- भारत:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय हाथियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A)केवल 1 और 2 उत्तर: (A) व्याख्या :
अत: विकल्प (A) सही उत्तर है। |
राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता ढाँचा
प्रिलिम्स के लिये:NHEFQ, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, शैक्षणिक क्रेडिट बैंक मेन्स के लिये:शिक्षा से संबंधित पहल, भारत में उच्च शिक्षा का विनियमन |
चर्चा में क्यों?
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने योग्यताओं को मानकीकृत करने और शैक्षणिक गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता ढाँचा (NHEQF) तैयार किया है।
- हालाँकि मौजूदा कई दिशा-निर्देशों और रूपरेखाओं के कारण इसके कार्यान्वयन को लेकर चिंताएँ बढ़ गईं हैं जिससे हितधारकों के बीच भ्रम पैदा हो गया है।
राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता ढाँचा:
- पृष्ठभूमि:
- 1990 के दशक के अंत से ही विश्व भर में उच्च शिक्षा योग्यता के लिये रूपरेखा निर्दिष्ट करने की मांग को लेकर कई आंदोलन हुए, लेकिन भारत में NHEQF को लेकर चर्चाएँ उतनी मुखर नहीं रहीं।
- इस पर वर्ष 2012 में केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की 60वीं बैठक में विचार-विमर्श किया गया था, जिसमें UGC को इसका कार्यभार सौंपा गया।
- परिचय:
- UGC ने सभी स्तरों पर उच्च शिक्षा योग्यताओं में पारदर्शिता और तुलनीयता की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से NHEQF तैयार किया है। इसके बाद सभी शैक्षणिक संस्थानों पर लागू की जाने वाली रूपरेखा जारी कर दी गई है।
- NHEQF राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर आधारित है, जो कि भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के लिये एक नई और दूरगामी दृष्टि की परिकल्पना करती है।
- UGC ने सभी स्तरों पर उच्च शिक्षा योग्यताओं में पारदर्शिता और तुलनीयता की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से NHEQF तैयार किया है। इसके बाद सभी शैक्षणिक संस्थानों पर लागू की जाने वाली रूपरेखा जारी कर दी गई है।
- मुख्य विशेषताएँ:
- यह ढाँचा शिक्षा को आठ स्तरों में वर्गीकृत करता है, जिसमें से पहले चार राष्ट्रीय स्कूल शिक्षा योग्यता ढाँचा (NSEQF) का हिस्सा हैं और बाद के चार उच्च शिक्षा योग्यता (स्तर 4.5 से स्तर 8) से संबंधित हैं।
- NHEQF अध्ययन हेतु कार्यक्रमों के विकास और कार्यान्वयन के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करता है, जैसे- कार्यक्रम के बाद के परिणाम, पाठ्यक्रम को सीखने के बाद के परिणाम, पाठ्यक्रम डिज़ाइन, शिक्षा शास्त्र, मूल्यांकन और प्रतिक्रिया।
- UGC के क्रेडिट फ्रेमवर्क दस्तावेज़ में कहा गया है कि प्रत्येक सेमेस्टर में न्यूनतम 20 क्रेडिट होने चाहिये।
- यह दस्तावेज़ सुझाव देता है कि एक क्रेडिट में 15 घंटे प्रत्यक्ष और 30 घंटे अप्रत्यक्ष शिक्षण शामिल होना चाहिये। इसका अर्थ है कि छात्रों को प्रति सेमेस्टर कम-से-कम 900 घंटे या प्रतिदिन लगभग 10 घंटे अध्ययन करना आवश्यक है।
- योग्यता प्रकार व्यापक और अनुशासन-स्वतंत्र हैं, जिनमें प्रमाणपत्र, डिप्लोमा, स्नातक डिग्री, स्नातकोत्तर डिग्री और पीएच.डी शामिल हैं। NHEQF में चिकित्सा और कानूनी शिक्षा को छोड़कर, तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा तथा पेशेवर व तकनीकी शिक्षा कार्यक्रमों की योग्यताएँ भी एक ढाँचे के अंतर्गत शामिल हैं।
- NHEQF नियामकों, उच्च शिक्षा संस्थानों और बाहरी एजेंसियों की भूमिकाओं तथा ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ कार्यक्रमों एवं योग्यताओं के अनुमोदन, निगरानी व मूल्यांकन के लिये प्रक्रियाओं तथा मानदंडों जैसे गुणवत्ता आश्वासन तंत्र स्थापित करता है।
नए राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता ढाँचे की समस्याएँ:
- दिशा-निर्देशों की बहुलता:
- UGC ने दो अलग-अलग रूपरेखाएँ निर्धारित की हैं- राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क मसौदा(NHEQF) और राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क।
- उच्च शिक्षण संस्थानों को पाठ्यक्रमों और संस्थानों में क्रेडिट को पहचान करने, स्वीकार करने तथा स्थानांतरित करने के लिये एक अनिवार्य पद्धति के रूप में एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट को लागू करने की आवश्यकता होती है।
- अनेक विनियमों की उपस्थिति उच्च शिक्षा योग्यताओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
- अस्पष्टता:
- NHEQF स्पष्ट रूप से पात्रता शर्तों और मार्गों की व्याख्या नहीं करता है जिसके माध्यम से एक छात्र किसी विशेष स्तर पर कार्यक्रम में प्रवेश कर सकता है।
- स्पष्ट पात्रता शर्तों और मार्गों के अभाव के कारण छात्रों एवं संस्थानों के बीच भ्रम उत्पन्न हो सकता है।
- आम सहमति का अभाव:
- कृषि, कानून, चिकित्सा और फार्मेसी जैसे विषय अलग-अलग नियामकों के अधिकार क्षेत्र में हो सकते हैं, लेकिन उन्हें विभिन्न नियामक निकायों में सर्वसम्मति के माध्यम से NHEQF में शामिल किया जा सकता था।
- सर्वसम्मति की कमी से उच्च शिक्षा प्रणाली खंडित हो सकती है और शैक्षणिक गतिशीलता बाधित हो सकती है।
- एक डिग्री के अंतर्गत डिग्री (Degrees Within a Degree):
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- यह ढाँचा एक पदानुक्रम बनाता प्रतीत होता है, जो कुछ छात्रों को पीएच.डी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिये पात्र होने की अनुमति देता है, जिनके पास न्यूनतम 7.5 CGPA के साथ चार वर्ष की स्नातक डिग्री है।
- यह दृष्टिकोण अभिजात्यवाद को जन्म दे सकता है, क्योंकि शैक्षणिक प्रदर्शन अक्सर सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से प्रभावित होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मॉडल का प्रभाव:
- NHEQF यूरोपीय बोलोग्ना प्रक्रिया और डबलिन विवरणकों से बहुत अधिक प्रभावित है।
- बोलोग्ना प्रक्रिया उच्च शिक्षा योग्यताओं की गुणवत्ता और तुलनीयता सुनिश्चित करने हेतु यूरोपीय देशों के बीच समझौतों की एक शृंखला है।
- डबलिन डिस्क्रिप्टर स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट डिग्री के लिये छात्रों के मूल्यांकन हेतु योग्यता ढाँचे की एक प्रणाली है।
- भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली यूरोपीय मॉडल की तुलना में अधिक जटिल और विविध है। NHEQF के विकास को भारतीय राज्यों के साथ व्यापक विचार-विमर्श से लाभ हो सकता है।
आगे की राह
- भ्रम को कम करने और योग्यता मानकों को सुव्यवस्थित करने के लिये NHEQF तथा नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क को एक व्यापक ढाँचे में विलय करना।
- भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली की विविधता और जटिलता को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिये राज्यों के साथ व्यापक एवं अधिक गहन परामर्श में संलग्न रहना चाहिये।
- सामाजिक-सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक कारकों पर विचार करते हुए भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के अनुरूप अधिगम के परिणाम विकसित करना चाहिये।
- यह पहचान करना कि अधिगम के परिणाम केवल रोज़गार योग्यता पर ही केंद्रित नहीं होने चाहिये बल्कि समग्र व्यक्तिगत और सामाजिक विकास पर भी केंद्रित होने चाहिये।
- उच्च शिक्षा प्रणाली को अभिजात्य वर्ग बनाने से रोकने के लिये पीएच.डी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिये पात्रता मानदंड की समीक्षा करनी चाहिये।
- उच्च शिक्षा परिदृश्य विकसित होने पर आवश्यक समायोजन करने के लिये NHEQF की चल रही निगरानी और मूल्यांकन के लिये एक तंत्र स्थापित करन चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 धारणीय विकास लक्ष्य-4 (2030) के साथ अनुरूपता में है। उसका ध्येय भारत में शिक्षा प्रणाली की पुनः संरचना और पुनः स्थापना है। इस कथन का समालोचनात्मक निरीक्षण कीजिये। (2020) प्रश्न. भारत की डिजिटल इंडिया में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2021) |