उत्तरकाशी सुरंग हादसा
प्रिलिम्स के लिये:
सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग, चारधाम परियोजना, राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड, ड्रिल एवं ब्लास्ट विधि, अटल सुरंग, पीर पंजाल रेलवे सुरंग, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रोड सुरंग
मेन्स के लिये:
भारत में सुरंग निर्माण से संबंधित मुद्दे, भारतीय हिमालयी क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे एक निर्माणाधीन सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग ढह गई, जिससे बड़ी संख्या में श्रमिक सुरंग के अंदर फँस गए।
- यह घटना सुरंग निर्माण के विषय में चिंताएँ बढ़ाती है, साथ ही संभावित कारणों और निवारक उपायों की बारीकी से जाँच करने के लिये प्रेरित करती है।
सुरंग ढहने का संभावित कारण क्या हो सकता है?
- परिचय:
- सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी चारधाम ऑल वेदर रोड परियोजना का हिस्सा है।
- सुरंग के निर्माण का टेंडर भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी, राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (NHIDCL) द्वारा हैदराबाद की नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी को दिया गया था।
- सुरंग ढहने के संभावित कारण: सुरंग ढहने का सटीक कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है, लेकिन एक संभावित कारण यह हो सकता है:
- सुरंग के मुहाने से लगभग 200-300 मीटर की दूरी पर स्थित ढहे हुए भाग में अज्ञात खंडित या कमज़ोर चट्टान का हिस्सा हो सकता है, जिसका निर्माण के दौरान पता नहीं चल पाया।
- इस क्षतिग्रस्त चट्टान से जल का रिसाव, जो समय के साथ ढीले चट्टानी कणों को नष्ट कर देता है, ने सुरंग संरचना के ऊपर एक अदृश्य रिक्त स्थान बना दिया।
सुरंग निर्माण के महत्त्वपूर्ण पहलू क्या हैं?
- सुरंग खुदाई तकनीक:
- ड्रिल और ब्लास्ट विधि (DBM): इसमें चट्टान में छेद करना और उसे तोड़ने के लिये विस्फोटकों का उपयोग करना शामिल है।
- चुनौतीपूर्ण क्षेत्र के कारण हिमालय (जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड) जैसे क्षेत्रों में प्रायः DBM का उपयोग किया जाता है।
- टनल-बोरिंग मशीनें (TBM): यह पूर्वनिर्मित कंक्रीट खंडों के साथ सुरंग को पीछे से सहारा देते हुए चट्टान में छेद करती है। यह अधिक महँगा लेकिन सुरक्षित तरीका है।
- TBM का उपयोग तब आदर्श माना जाता है जब चट्टान का आवरण 400 मीटर तक ऊँचा हो। दिल्ली मेट्रो के लिये भूमिगत सुरंगें TBM का उपयोग करके कम गहराई पर खोदी गईं।
- ड्रिल और ब्लास्ट विधि (DBM): इसमें चट्टान में छेद करना और उसे तोड़ने के लिये विस्फोटकों का उपयोग करना शामिल है।
- सुरंग निर्माण के पहलू:
- चट्टान की जाँच: इसकी भार वहन क्षमता और स्थिरता का आकलन करने के लिये भूकंपीय तरंगों एवं पेट्रोग्राफिक विश्लेषण के माध्यम से चट्टान की क्षमता व संरचना की पूरी तरह से जाँच करना।
- निगरानी और समर्थन: शॉटक्रीट, रॉक बोल्ट, स्टील रिब्स और विशेष सुरंग पाइप छतरियों जैसे विभिन्न समर्थन तंत्रों के साथ-साथ तनाव एवं विरूपण मीटर के उपयोग से निरंतर निगरानी करना।
- भूविज्ञानी आकलन: भूवैज्ञानिक सुरंग की जाँच करने, संभावित विफलताओं की भविष्यवाणी करने और चट्टान की स्थिरता अवधि निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में अन्य प्रमुख सुरंगें कौन-सी हैं?
- अटल सुरंग: अटल सुरंग (रोहतांग सुरंग के रूप में भी जाना जाता है) भारत के हिमाचल प्रदेश में लेह-मनाली राजमार्ग पर हिमालय की पूर्वी पीर पंजाल शृंखला में रोहतांग दर्रे के नीचे बनी एक राजमार्ग सुरंग है।
- 9.02 किमी. की लंबाई के साथ यह विश्व में 10,000 फीट (3,048 मीटर) से ऊपर की सबसे लंबी सुरंग है।
- पीर पंजाल रेल सुरंग: 11.2 किमी. लंबी यह सुरंग भारत की सबसे लंबी रेल परिवहन सुरंग है।
- यह काज़ीगुंड तथा बारामूला के बीच पीर पंजाल पर्वत शृंखला से होकर गुज़रती है।
- जवाहर सुरंग: इसे बनिहाल सुरंग भी कहा जाता है। इस सुरंग की लंबाई 2.85 किमी. है।
- यह सुरंग श्रीनगर तथा जम्मू के बीच पूरे वर्ष सड़क संपर्क की सुविधा प्रदान करती है।
- डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी सड़क सुरंग: इसे पहले चेनानी-नशरी सुरंग के नाम से जाना जाता था तथा यह भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग है। इस सड़क सुरंग की लंबाई 9.3 किमी. है।
आगे की राह
- नियमित रखरखाव: संबंधित मुद्दों की तुरंत पहचान करने तथा उनके निपटान के लिये संरचनात्मक अखंडता, जल निकासी प्रणालियों एवं वेंटिलेशन के निरीक्षण सहित एक सुदृढ़ रखरखाव कार्यक्रम लागू करने की आवश्यकता है।
- संरचनात्मक स्थिति का निरंतर आकलन करने, किसी भी संभावित कमज़ोरी अथवा विसंगतियों का शीघ्र पता लगाने के लिये सेंसर एवं निगरानी प्रौद्योगिकियों को नियोजित किया जाना चाहिये।
- जोखिम मूल्यांकन तथा तत्परता: आवर्ती बाहरी जोखिम मूल्यांकन करते समय उपयोग कारकों, पर्यावरण तथा भूवैज्ञानिक पहलुओं की समीक्षा करना।
- किसी भी संरचनात्मक चिंता के मामले में आकस्मिक योजनाओं का विकास तथा आपातकालीन प्रोटोकॉल लागू करना चाहिये।
- प्रशिक्षण तथा जागरूकता: सुरंग प्रबंधन तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रक्रियाओं के संबंध में कर्मियों को प्रशिक्षण देना। जन जागरूकता अभियान के माध्यम से उपयोगकर्त्ताओं एवं समीप के निवासियों को सुरक्षा उपायों एवं रिपोर्टिंग तंत्र के बारे में शिक्षित किया जा सकता है।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण: अधिक कुशल निरीक्षण, रखरखाव तथा संभावित मुद्दों का शीघ्र पता लगाने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन अथवा रोबोटिक्स जैसी नवीन तकनीकों का अन्वेषण किया जाना चाहिये।
भारत-ऑस्ट्रेलिया 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता
प्रिलिम्स के लिये:भारत-ऑस्ट्रेलिया 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता, मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (MDA), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), पनडुब्बी रोधी युद्ध, परमाणु अप्रसार संधि, व्यापक सामरिक साझेदारी मेन्स के लिये:भारत-ऑस्ट्रेलिया 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह, भारत और/या इसके हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दूसरी भारत-ऑस्ट्रेलिया 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता नई दिल्ली, भारत में आयोजित की गई, जहाँ दोनों देशों के विदेश मंत्रियों तथा रक्षा मंत्रियों ने बैठक में भाग लिया।
वार्ता की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- बेहतर सहयोग:
- दोनों देशों ने अपने रणनीतिक संबंधों को सशक्त करने में इन पहलुओं के महत्त्व को रेखांकित करते हुए सूचना के आदान-प्रदान तथा इंडो-पैसिफिक मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (MDA) में अधिक सहयोग पर ज़ोर दिया।
- क्वाड का इंडो-पैसिफिक MDA कार्यान्वयन चरण में है, जिसे भारत द्वारा आयोजित आगामी क्वाड शिखर सम्मेलन में एक प्रमुख एजेंडा के रूप में माना जाएगा।
- कार्यान्वयन संबंधी व्यवस्थाएँ:
- दोनों पक्षों ने हाइड्रोग्राफी सहयोग तथा हवा-से-हवा में ईंधन भरने में सहयोग को लेकर क्रियान्वयन व्यवस्था सुनिश्चित करने पर चर्चा की, जो रक्षा क्षेत्र में ठोस सहयोग की दिशा में कदम का संकेत है।
- गहन प्रशिक्षण क्षेत्र:
- कृत्रिम बुद्धिमता (AI), पनडुब्बी रोधी, ड्रोन रोधी युद्ध तथा साइबर जैसे विशेष प्रशिक्षण क्षेत्रों में सहयोग का साझा दृष्टिकोण उन्नत रक्षा क्षमताओं को विकसित करने की प्रतिबद्धता को उजागर करता है।
- रक्षा उद्योग सहयोग:
- दोनों देशों ने माना कि रक्षा उद्योग और अनुसंधान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सहयोग पहले से मजबूत संबंधों को और मज़बूती प्रदान करेगा।
- उन्होंने पोत निर्माण, मरम्मत और रखरखाव तथा एयरक्राफ्ट के रखरखाव, मरम्मत तथा कायाकल्प सहित सहयोग के संभावित क्षेत्रों की पहचान की।
- अंडरवाटर टेक्नोलॉजी में अनुसंधान:
- पानी के भीतर प्रौद्योगिकियों के मामले में संयुक्त अनुसंधान में सहयोग तथा रक्षा स्टार्ट-अप्स के क्षेत्र में गठबंधन पर चर्चा की गई जो रक्षा रणनीतियों में नवाचार एवं तकनीकी प्रगति का प्रतीक है।
- द्विपक्षीय रक्षा संबंधों की पुनः पुष्टि:
- दोनों देशों ने द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को मज़बूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई तथा रक्षा क्षेत्र में संयुक्त युद्धाभ्यास, आदान-प्रदान और संस्थागत बातचीत सहित दोंनों देशों के बीच सैन्य क्षेत्र में बढ़ते सहयोग पर संतोष व्यक्त किया।
भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध अब तक कैसे रहे हैं?
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- ऑस्ट्रेलिया और भारत ने सर्वप्रथम स्वतंत्रता से पूर्व राजनयिक संबंध स्थापित किये, जब भारत के वाणिज्य दूतावास को पहली बार वर्ष 1941 में सिडनी में एक व्यापार कार्यालय के रूप में स्थापित किया गया था।
- भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध उस समय ऐतिहासिक निम्न स्तर पर पहुँच गए जब ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने भारत के वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों की निंदा की थी।
- वर्ष 2014 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत के साथ एक यूरेनियम आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो भारत के "त्रुटिहीन" (Impeccable) अप्रसार रिकॉर्ड को मान्यता देते हुए परमाणु अप्रसार संधि के गैर-हस्ताक्षरकर्त्ता देश के साथ अपनी तरह का पहला समझौता था।
- सामरिक संबंध:
- वर्ष 2020 में भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने द्विपक्षीय संबंधों को सामरिक साझेदारी से व्यापक सामरिक साझेदारी में परिवर्तित किया।
- वर्ष 2021 में ग्लासगो में COP26 के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात हुई।
- वर्ष 2022 और 2023 में भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल शिखर सम्मेलन तथा विदेश मंत्रियों की बैठक सहित उच्च स्तरीय वार्ताओं तथा मंत्रिस्तरीय यात्राओं की एक शृंखला हुई है। दूसरे भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान कई प्रमुख घोषणाएँ की गईं, जिनमें शामिल हैं:
- कौशल के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये प्रवासन और गतिशीलता साझेदारी व्यवस्था पर आशय पत्र।
- रक्षा सहयोग:
- 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता सितंबर 2021 में हुई और ऑस्ट्रेलिया के उप प्रधानमंत्री तथा रक्षा मंत्री ने जून 2022 में भारत का दौरा किया।
- रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिये जून 2020 में वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान म्यूचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट (MLSA) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- संयुक्त सैन्य अभ्यास:
- ऑस्ट्रेलिया ने अगस्त 2023 में "मालाबार" अभ्यास की मेज़बानी की, जिसमें भारत, जापान और अमेरिका ने भागीदारी की।
- भारत को 2023 में टैलिसमैन सेबर अभ्यास में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया है।
- चीन कारक:
- ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध कई कारणों से तनावपूर्ण बने हुए हैं, जिनमें ऑस्ट्रेलिया द्वारा 5G नेटवर्क से हुआवेई पर प्रतिबंध लगाना, कोविड-19 की उत्पत्ति की जाँच के लिये कॉल करना और शिनजियांग तथा हॉन्गकॉन्ग, चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करना शामिल है।
- इसके प्रत्युत्तर में चीन ने ऑस्ट्रेलियाई निर्यात पर व्यापार बाधाएँ आरोपित कीं और सभी मंत्रिस्तरीय संपर्क निरस्त कर दिये।
- भारत को सीमा पर चीनी आक्रामकता का सामना करना पड़ रहा है जो गलवान घाटी झड़प जैसी घटनाओं से उजागर हुआ है।
- ऑस्ट्रेलिया-भारत दोनों नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करते हैं और वे इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय संस्थान बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो समावेशी हों तथा जिससे आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिले।
- क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान) में देशों की भागीदारी साझा चिंताओं के आधार पर उनके हितों के अभिसरण का एक उदाहरण है।
- ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध कई कारणों से तनावपूर्ण बने हुए हैं, जिनमें ऑस्ट्रेलिया द्वारा 5G नेटवर्क से हुआवेई पर प्रतिबंध लगाना, कोविड-19 की उत्पत्ति की जाँच के लिये कॉल करना और शिनजियांग तथा हॉन्गकॉन्ग, चीन में मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करना शामिल है।
- बहुपक्षीय सहयोग:
- दोनों क्वाड, कॉमनवेल्थ, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), आसियान क्षेत्रीय फोरम, जलवायु और स्वच्छ विकास पर एशिया-प्रशांत साझेदारी के सदस्य हैं तथा पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग ले चुके हैं।
- दोनों देश विश्व व्यापार संगठन के संदर्भ में पाँच इच्छुक पार्टियों (FIP) के सदस्यों के रूप में भी सहयोग कर रहे हैं।
- ऑस्ट्रेलिया एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) में एक महत्त्वपूर्ण सदस्य है और संगठन में भारत की सदस्यता का समर्थन करता है।
- आर्थिक सहयोग:
- आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (Economic Cooperation Trade Agreement- ECTA):
- यह एक दशक में किसी विकसित देश के साथ भारत द्वारा हस्ताक्षरित पहला मुक्त व्यापार समझौता है जो दिसंबर 2022 में लागू हुआ।
- इसके परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलिया को होने वाले 96% भारतीय निर्यात (जो कि टैरिफ लाइनों का 98% है) पर तत्काल शुल्क घटाकर शून्य कर दिया गया है और भारत को होने वाले ऑस्ट्रेलिया के 85% निर्यात (मूल्य में) पर शुल्क शून्य कर दिया गया है।
- सप्लाई चेन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI):
- भारत और ऑस्ट्रेलिया जापान के साथ त्रिपक्षीय व्यवस्था में भागीदार हैं जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं के लचीलेपन को बढ़ाना चाहता है।
- द्विपक्षीय व्यापार:
- ऑस्ट्रेलिया भारत का 17वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और भारत ऑस्ट्रेलिया का 9वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021 में 27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, अगले पाँच वर्षों में इसके लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की संभावना है।
- आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (Economic Cooperation Trade Agreement- ECTA):
- स्वच्छ ऊर्जा पर सहयोग:
- फरवरी 2022 में देशों ने बेहद कम लागत वाले सौर और स्वच्छ हाइड्रोजन सहित नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की लागत को कम करने हेतु सहयोग के लिये नई और नवीकरणीय ऊर्जा पर आशय पत्र पर हस्ताक्षर किये।
- भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के तहत प्रशांत द्वीपीय देशों के लिये 10 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (AUD) की घोषणा की।
- दोनों देशों ने तीन वर्ष की भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिटिकल मिनरल्स इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप के लिये 5.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई।
भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों में क्या चुनौतियाँ हैं?
- अडानी कोयला खदान विवाद:
- ऑस्ट्रेलिया में अडानी कोयला खदान परियोजना को लेकर विवाद हो गया था, कुछ कार्यकर्त्ताओं ने इसका विरोध किया था, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव उत्पन्न हो गया था।
- वीज़ा मुद्दे:
- ऑस्ट्रेलिया में कार्य करने के इच्छुक भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिये वीज़ा प्रतिबंधों को लेकर चिंताएँ हैं।
- भारतीय प्रवासियों के साथ हिंसा:
- हाल के दिनों में खालिस्तान समर्थकों द्वारा भारतीय प्रवासियों और मंदिरों पर किये गए हमले तनाव का मुद्दा रहा है।
आगे की राह
- साझा मूल्यों, हितों, भौगोलिक स्थिति और उद्देश्यों के कारण हाल के वर्षों में भारत-ऑस्ट्रेलिया के संबंध मज़बूत हुए हैं।
- दोनों देश एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की कल्पना करते हैं, एकतरफा या ज़बरदस्ती कार्रवाई को प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिये तथा किसी भी असहमति या संघर्ष की स्थिति से बचा जाना चाहिये।
- भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन जैसी पहलों के माध्यम से भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच नवीनीकृत संबंध, भारत-प्रशांत में नियम-आधारित व्यवस्था सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये दोनों देशों के बीच संबंधों को और मज़बूत करने का अवसर देते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त में से कौन आसियान (ASEAN) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं? (A) केवल 1, 2, 4 और 5 उत्तर: C एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) का छह भागीदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौता है, ये देश हैं- पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, कोरिया गणराज्य, जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड। अत: 1, 3, 4 और 5 सही हैं। |
हरियाणा का निजी क्षेत्र कोटा कानून
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 16(4), अनुच्छेद 19, समानता का अधिकार, मौलिक अधिकार मेन्स के लिये:निजी क्षेत्र में रोज़गार आरक्षण, रोज़गार में स्थानीय आरक्षण और निहितार्थ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020 को रद्द कर दिया है, जिसमें निजी क्षेत्र के रोज़गार में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 75% आरक्षण अनिवार्य था।
- न्यायालय ने कानून को असंवैधानिक और नागरिकों एवं नियोक्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया है।
हरियाणा निजी क्षेत्र कोटा कानून क्या है?
- हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020 राज्य सरकार द्वारा मार्च 2021 में अधिनियमित किया गया था।
- कानून में 30,000 रुपए (मूल रूप से 50,000 रुपए) से कम मासिक वेतन वाले निजी क्षेत्र के रोज़गार में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 10 वर्षों तक 75% आरक्षण का प्रावधान है।
- इस अधिनियम में कंपनियों, सोसायटी, ट्रस्ट, साझेदारी फर्म और बड़े व्यक्तिगत नियोक्ताओं सहित विभिन्न संस्थाएँ शामिल थीं।
- इसमें 10 या अधिक कर्मचारियों वाले नियोक्ता शामिल थे, लेकिन केंद्र या राज्य सरकारों और उनके संगठनों को छूट थी।
- कानून के अनुसार, नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों को सरकारी पोर्टल पर पंजीकृत करना होगा और स्थानीय उम्मीदवारों के लिये अधिवास प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा।
- हरियाणा राज्य का निवासी "स्थानीय उम्मीदवार" एक निर्दिष्ट ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण करके आरक्षण का लाभ उठा सकता है।
- इस कानून का उद्देश्य स्थानीय युवाओं, विशेषकर अकुशल तथा अर्द्ध-कुशल श्रमिकों के लिये रोज़गार के अवसर एवं उनका कौशल विकास करना व अन्य राज्यों से आने वाले प्रवासियों की संख्या को कम करना था।
नोट:
- आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड सहित अन्य राज्यों में भी निवासियों के लिये रोज़गार आरक्षण विधेयक अथवा कानूनों की घोषणा की गई है।
- रोज़गार कोटा विधेयक के तहत आंध्र प्रदेश के निवासियों के लिये तीन-चौथाई निजी नौकरियाँ आरक्षित हैं, जिसे वर्ष 2019 में राज्य की विधानसभा द्वारा अनुमोदित किया गया था।
हरियाणा द्वारा निजी क्षेत्र की नौकरियों में दिये गए आरक्षण से संबंधित क्या चिंताएँ हैं?
- फरीदाबाद इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन तथा अन्य हरियाणा-आधारित एसोसिएशंस ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया कि हरियाणा "धरती के पुत्र" की नीति शुरू कर निजी क्षेत्र में आरक्षण सुनिश्चित करना चाहता है, जो नियोक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि निजी क्षेत्र की नौकरियाँ पूर्ण रूप से कौशल तथा विश्लेषणात्मक विवेक पर आधारित होती हैं एवं कर्मचारियों को भारत के किसी भी हिस्से में कार्य करने का मौलिक अधिकार है।
- उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नियोक्ताओं को स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिये बाध्य करने का सरकार का कृत्य संविधान के संघीय ढाँचे का उल्लंघन है, जो सार्वजनिक हित के विपरीत है एवं केवल एक वर्ग को लाभ पहुँचा रहा है।
- हरियाणा सरकार ने तर्क दिया कि उसके पास संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत इस तरह के आरक्षण प्रदान करने की शक्ति है, जिसमें कहा गया है कि सार्वजनिक रोज़गार में समानता का अधिकार राज्य को किसी भी पिछड़े वर्ग के लिये आरक्षण प्रदान करने से नहीं रोकता है, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- हरियाणा सरकार ने कहा कि राज्य में रहने वाले लोगों के जीवन और आजीविका के अधिकार तथा उनके स्वास्थ्य, रहने की स्थिति एवं रोज़गार के अधिकार की रक्षा के लिये कानून आवश्यक था।
उच्च न्यायालय ने क्या फैसला दिया?
- न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 6, स्थानीय उम्मीदवारों पर त्रैमासिक रिपोर्ट अनिवार्य करती है और धारा 8, जो अधिकृत अधिकारियों को सत्यापन करने में सक्षम बनाती है, की "इंस्पेक्टर राज" स्थापित करने के रूप में आलोचना की गई।
- इंस्पेक्टर राज का तात्पर्य कारखानों और औद्योगिक इकाइयों पर सरकार द्वारा अत्यधिक विनियमन/पर्यवेक्षण से है।
- न्यायालय ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह कानून जन्म स्थान और निवास स्थान के आधार पर नागरिकों व नियोक्ताओं के खिलाफ भेदभाव करता है।
- अनुच्छेद 14 भारत के क्षेत्र के भीतर सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण की गारंटी देता है।
- कानून ने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) के तहत व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन किया, क्योंकि इसने योग्य तथा उपयुक्त स्थानीय उम्मीदवारों के बावजूद नियोक्ताओं द्वारा उन्हें नियुक्त करने पर अनुचित प्रतिबंध लगा दिया।
- न्यायालय का मानना है कि निजी नियोक्ताओं को केवल स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिये मजबूर करना संविधान की दृष्टि से अनुचित है, क्योंकि इससे राज्यों द्वारा अपने निवासियों के लिये समान सुरक्षा प्रदान करने हेतु व्यापक अधिनियम बनाए जा सकते हैं, जिससे ऐसी बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं जो संविधान के निर्माताओं द्वारा नहीं बनाई गई थीं।
विधिक दृष्टिकोण: हरियाणा अधिवास आरक्षण पर निर्णय
रेत और धूल भरी आँधी
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD), रेत और धूल भरी आँधी, कृषि, वनों की कटाई, अरल सागर, संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन मेन्स के लिये:रेत और धूल भरी आँधी के स्रोत, रेत और धूल भरी आँधी के प्रभाव को कम करने के प्रभावी तरीके |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCCD) की हालिया बैठक में रेत और धूल भरी आँधियों के दूरगामी परिणामों पर प्रकाश डाला गया तथा उनके प्रभावों को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण नीतिगत सिफारिशें प्रस्तावित की गईं।
रेत और धूल भरी आँधी क्या है?
- परिचय:
- रेत और धूल भरी आँधियाँ मौसम संबंधी घटनाएँ हैं जो तब घटित होती हैं जब तेज हवाएँ ज़मीन से बड़ी मात्रा में रेत और धूल के कण उठाती हैं तथा उन्हें लंबी दूरी तक ले जाती हैं।
- वे मुख्य रूप से शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं लेकिन अपने स्रोत से दूर के क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
- प्रतिवर्ष दो अरब टन से अधिक धूल वायुमंडल में प्रवेश करती है जो गहरे प्रभाव वाली एक वैश्विक घटना का निर्माण करती है।
- रेत और धूल भरी आँधियाँ मौसम संबंधी घटनाएँ हैं जो तब घटित होती हैं जब तेज हवाएँ ज़मीन से बड़ी मात्रा में रेत और धूल के कण उठाती हैं तथा उन्हें लंबी दूरी तक ले जाती हैं।
- रेत और धूल भरी आँधी के स्रोत:
- UNCCD के अनुसार, रेत और धूल भरी आँधियाँ प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारकों के कारण होती हैं।
- वैश्विक धूल उत्सर्जन का लगभग 75% दुनिया के शुष्क क्षेत्रों में प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न होता है, जैसे अति-शुष्क क्षेत्र, स्थलाकृतिक अवसाद और शुष्क प्राचीन झील तल।
- शेष 25% का श्रेय मानवीय गतिविधियों, मुख्यतः कृषि को दिया जाता है।
- रेत और धूल भरी आँधियों के कुछ मानवजनित कारण हैं:
- अस्थिर कृषि पद्धतियाँ: कृषि एक प्राथमिक मानवजनित स्रोत है, जिसमें जुताई, भूमि साफ करना और परित्यक्त फसल भूमि जैसी गतिविधियाँ धूल उत्सर्जन में योगदान करती हैं।
- भूमि उपयोग परिवर्तन: वनों की कटाई और शहरीकरण सहित भूमि उपयोग के तरीको में परिवर्तन, सतहों की अस्थिरता में योगदान करते हैं, धूल उत्सर्जन को बढ़ाते हैं।
- जल प्रवाह की दिशा को मोड़ना: कृषि उद्देश्यों के लिये नदियों से जल के अत्यधिक बहाव के कारण जल निकायों का संकुचन हो सकता है, जिससे रेत और धूल भरी आँधियों के नए स्रोत बन सकते हैं।
- उदाहरण के लिये कई दशकों में मध्य एशिया की अधिकांश नदियों के जल को कृषि की ओर मोड़ने से अरल सागर सिकुड़ गया है, जो उत्तर में कज़ाखस्तान और दक्षिण में उज़्बेकिस्तान के बीच पहले से मौजूद एक झील है।
- यह अब अरलकुम रेगिस्तान बन गया है, जो रेत और धूल भरी आँधियों का एक महत्त्वपूर्ण नया स्रोत है।
- जलवायु-संबंधित एम्पलीफायर:
- शुष्कता और न्यूनतम वर्षा: उच्च वायु तापमान, न्यूनतम वर्षा और शुष्क परिस्थितियाँ इसके चालक के रूप में कार्य करती हैं, जो इन तूफानों की संभावना और तीव्रता को बढ़ाती हैं।
- चरम मौसम की घटनाएँ: जलवायु परिवर्तन के कारण तेज़ पवन और लंबे समय तक सूखा, रेत एवं धूल भरी आँधियों की गंभीरता व आवृत्ति को बढ़ा देते हैं।
- UNCCD के अनुसार, रेत और धूल भरी आँधियाँ प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारकों के कारण होती हैं।
- प्रभाव:
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- मृदा का क्षरण: रेत और धूल भरी आँधियाँ उपजाऊ ऊपरी मृदा को अलग कर देती हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता और उर्वरता प्रभावित होती है।
- इस क्षरण से भूमि की वनस्पति को सहारा देने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे कृषि प्रभावित होती है और मरुस्थलीकरण होता है।
- उपजाऊ मृदा के नष्ट होने से जल प्रतिधारण और पोषक तत्त्वों की उपलब्धता भी प्रभावित होती है।
- पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: ये तूफान वनस्पति को नष्ट करके प्राकृतिक आवासों को बाधित और वन्य जीवन को प्रभावित करके पारिस्थितिकी तंत्र को बदल सकते हैं।
- तूफानों द्वारा लाई गई आक्रामक प्रजातियाँ देशी प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं, जिससे जैवविविधता की हानि और पारिस्थितिक असंतुलन हो सकता है।
- मृदा का क्षरण: रेत और धूल भरी आँधियाँ उपजाऊ ऊपरी मृदा को अलग कर देती हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता और उर्वरता प्रभावित होती है।
- सामाजिक आर्थिक प्रभाव:
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव व्यापक होते हैं, जो श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, एलर्जी उत्पन्न करते हैं और अस्थमा जैसी मौजूदा स्थितियों को बढ़ा देते हैं।
- हाल की घटनाएँ, जैसे कि वर्ष 2021 में मंगोलिया में दो दिवसीय तूफान, मानव जीवन पर विनाशकारी प्रभाव को दर्शाता है, इससे हज़ारों लोग विस्थापित हुए और पशुधन की भारी हानि हुई।
- आर्थिक हानि: रेत और धूल भरी आँधियाँ बुनियादी ढाँचे को नुकसान, कृषि उत्पादकता में कमी तथा परिवहन को बाधित कर एवं स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि करके आर्थिक नुकसान पहुँचाती हैं।
- ये घटनाएँ स्थानीय और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करते हुए पर्यटन एवं व्यापार को भी प्रभावित कर सकती हैं।
- सामाजिक विघटन: इन आँधियों के कारण दैनिक जीवन बाधित होने से सामाजिक अशांति, प्रवासन और विस्थापन हो सकता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव व्यापक होते हैं, जो श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, एलर्जी उत्पन्न करते हैं और अस्थमा जैसी मौजूदा स्थितियों को बढ़ा देते हैं।
- वैश्विक निहितार्थ:
- सीमा पार प्रभाव: रेत और धूल भरी आँधियाँ कई देशों को नुकसान पहुँचा सकती हैं क्योंकि वे भू-राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं हैं।
- जलवायु प्रतिक्रिया: इन आँधियों के कारण विश्व स्तर पर धूल के कणों का परिवहन जलवायु प्रतिक्रिया चक्रों और मौसम के पैटर्न को प्रभावित कर सकता है तथा संभावित रूप से जलवायु परिवर्तन में योगदान दे सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
नोट: संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) की रिपोर्ट सैंड एंड डस्ट स्ट्रोमस: ए गाइड टू मिटिगेशन, एडाप्टेशन, पालिसी एंड रिस्क मैनेजमेंट मेसर्स इन एग्रीकल्चर के अनुसार, रेत और धूल भरी आंधियाँ भी 17 सतत् विकास लक्ष्यों में से 11 को प्राप्त करने में एक कठिन चुनौती पेश करती हैं।
रेत और धूल भरी आँधियों के प्रभाव को कम करने के प्रभावी तरीके क्या हैं?
- निवारक उपाय:
- मृदा की नमी प्रबंधन: मृदा की नमी बनाए रखने और मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये प्रभावी जल संरक्षण तरीकों को लागू करना।
- नियामक ढाँचा: मृदा के क्षरण और धूल उत्सर्जन को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों, जैसे- अतिचारण या अनुचित भूमि विकास को रोकने के लिये सख्त भूमि-उपयोग नियमों को लागू करना।
- पर्यावरण-अनुकूल प्रथाएँ: मृदा की संरचना को संरक्षित करने और पवन के कटाव को कम करने हेतु कृषि वानिकी तथा समोच्च जुताई जैसी टिकाऊ कृषि तकनीकों को बढ़ावा देना।
- तैयारी हेतु उपाय:
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: रेत और धूल भरी आँधियों का पूर्वानुमान लगाने के लिये प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास और कार्यान्वयन। यह समुदायों को तैयारी करने और आवश्यक सावधानी बरतने की अनुमति देता है।
- शिक्षा और जागरूकता: समुदायों को रेत और धूल भरी आँधियों के जोखिमों, प्रभावों तथा सुरक्षात्मक उपायों के विषय में शिक्षित करने से भेद्यता को कम करने में सहायता मिल सकती है।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएँ: प्रभावित समुदायों को आश्रय, चिकित्सा देखभाल व सहायता प्रदान करने सहित रेत और धूल भरी आँधी के दौरान तथा उसके बाद प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने हेतु योजनाएँ स्थापित करना।
- शमन रणनीतियाँ:
- बुनियादी ढाँचे का विकास: धूल और रेत ले जाने वाली पवन की गति एवं प्रभाव को कम करने के लिये विंडब्रेक, बैरियर या ग्रीन बेल्ट जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
- तकनीकी समाधान: धूल को रोकने तथा मृदा स्थिरीकरण के लिये नवीन प्रौद्योगिकियों पर शोध एवं निवेश करने की आवश्यकता है।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) क्या है?
- UNCCD मरुस्थलीकरण तथा सूखे के प्रभावों का समाधान करने हेतु स्थापित एकमात्र विधिक रूप से बाध्यकारी ढाँचा है।
- वर्तमान में इस अभिसमय में 197 पक्षकार हैं, जिनमें 196 पक्षकार देश तथा यूरोपीय संघ शामिल हैं।
- भागीदारी, साझेदारी तथा विकेंद्रीकरण के सिद्धांतों पर आधारित यह अभिसमय, भूमि क्षरण के प्रभाव को कम करने तथा भूमि की रक्षा करने के लिये एक बहुपक्षीय प्रतिबद्धता है ताकि सभी लोगों को भोजन, जल, आश्रय एवं आर्थिक अवसर प्रदान कर सकें।
- यह अभिसमय विशेष रूप से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क तथा शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों के प्रभावों का समाधान करता है, जिन्हें शुष्क भूमि के रूप में जाना जाता है, जहाँ कुछ सबसे कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र एवं लोग पाए जा सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification)’ का/के क्या महत्त्व है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिये। (2020) |
एमिशन गैप रिपोर्ट 2023: UNEP
प्रिलिम्स के लिये:एमिशन गैप रिपोर्ट 2023, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), नेट-ज़ीरो मेन्स के लिये:एमिशन गैप रिपोर्ट 2023: UNEP, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक है- एमिशन गैप रिपोर्ट 2023: ब्रोकन रिकॉर्ड - टेम्परेचर हिट न्यू हाई यट वर्ल्ड फेल्स टू कट एमिशन (अगेन), जिसमें कहा गया है कि तापमान वृद्धि की खतरनाक स्थिति से बचने के लिये तत्काल जलवायु कार्रवाई महत्त्वपूर्ण है।
- यह रिपोर्ट शृंखला का 14वाँ संस्करण है जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भविष्य के रुझानों को देखने और ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती के संभावित समाधान प्रदान करने के लिये विश्व के कई शीर्ष जलवायु वैज्ञानिकों को एक साथ लाती है।
उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट (EGR) क्या है?
- एमिशन गैप रिपोर्ट/उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट, UNEP की वार्षिक जलवायु वार्ता से पहले हर वर्ष लॉन्च की जाने वाली स्पॉटलाइट रिपोर्ट है।
- EGR वर्तमान में देशों की प्रतिबद्धताओं के साथ वैश्विक उत्सर्जन और वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के स्तर के बीच अंतर को ट्रैक करती है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- तापमान वृद्धि प्रक्षेपवक्र:
- पेरिस समझौते के तहत मौजूदा प्रतिज्ञाओं ने विश्व को इस सदी के अंत तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2.5-2.9 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ाने की दिशा में अग्रसर किया है।
- पेरिस समझौता (पार्टियों के सम्मेलन 21 या COP 21 के रूप में भी जाना जाता है) एक ऐतिहासिक पर्यावरण समझौता है जिसे जलवायु परिवर्तन और इसके नकारात्मक प्रभावों को संबोधित करने के लिये वर्ष 2015 में अपनाया गया था।
- तापमान वृद्धि को 1.5-2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में 28-42% की कटौती करना आवश्यक है।
- पेरिस समझौते के तहत मौजूदा प्रतिज्ञाओं ने विश्व को इस सदी के अंत तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2.5-2.9 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ाने की दिशा में अग्रसर किया है।
- वैश्विक उत्सर्जन रुझान:
- वर्ष 2022 में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) का 57.4 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड इक्वेलेंट (GtCO2e) का एक नया रिकॉर्ड सामने आया, जो विगत वर्ष की तुलना में 1.2% अधिक है।
- 100 वर्ष की ग्लोबल वार्मिंग क्षमता के साथ जीवाश्म CO2 उत्सर्जन वर्तमान GHG उत्सर्जन का लगभग दो-तिहाई है।
- कई डेटासेट के अनुसार, वर्ष 2022 में जीवाश्म CO2 उत्सर्जन 0.8-1.5% के बीच बढ़ा जो GHG उत्सर्जन की समग्र वृद्धि में मुख्य योगदानकर्त्ता था। वर्ष 2022 में फ्लोराइडयुक्त गैसों का उत्सर्जन 5.5% बढ़ा, इसके बाद मीथेन 1.8% एवं नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) 0.9% में वृद्धि हुई।
- G20 देशों में भी GHG उत्सर्जन में वर्ष 2022 में 1.2% की वृद्धि हुई। हालाँकि सदस्य देशों के उत्सर्जन में भिन्नता है, चीन, भारत, इंडोनेशिया तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्सर्जन में वृद्धि हुई है, जबकि ब्राज़ील, यूरोपीय संघ एवं रूसी संघ में इसमें कमी आई है। सामूहिक रूप से वर्तमान में वैश्विक उत्सर्जन में G20 देशों का 76% योगदान है।
- वर्ष 2022 में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) का 57.4 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड इक्वेलेंट (GtCO2e) का एक नया रिकॉर्ड सामने आया, जो विगत वर्ष की तुलना में 1.2% अधिक है।
- प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों से उत्सर्जन:
- उत्सर्जन को पाँच प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है- ऊर्जा आपूर्ति, उद्योग, कृषि एवं भूमि उपयोग, भूमि-उपयोग परिवर्तन और वानिकी (Land use, Land-Use Change and Forestry- LULUCF), परिवहन व भवन।
- वर्ष 2022 में ऊर्जा आपूर्ति 20.9 GtCO2e (कुल का 36%) उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत थी, इसके बाद उद्योग (25%), कृषि तथा LULUCF CO2 (18%), परिवहन (14%) और भवन (6.7%) का स्थान था।
- शमन प्रयास:
- यदि मौजूदा नीतियाँ और प्रतिज्ञाएँ जारी रहीं, तो सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग पूर्व-औद्योगिक स्तर से 3 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुँच जाएगी।
- बिना शर्त राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को लागू करने से वृद्धि को 2.9 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सकता है, जबकि सशर्त NDC इसे 2.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित कर सकते हैं।
- शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाएँ:
- हालाँकि देशों ने शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाएँ की हैं, लेकिन G20 देशों में से कोई भी अपने लक्ष्य के अनुरूप गति से उत्सर्जन में कमी नहीं कर रहा है।
- यहाँ तक कि सबसे आशावादी परिदृश्य में भी तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की संभावना केवल 14% है।
- प्रगति और चुनौतियाँ:
- पेरिस समझौते के बाद से नीतिगत प्रगति ने कार्यान्वयन अंतर को कम कर दिया है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
- नौ देशों ने अपने NDC को अद्यतन किया, जिससे संभावित रूप से वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में लगभग 9% सालाना की कमी आएगी।
- हालाँकि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने हेतु कम-से-कम लागत के लिये और कटौती करना आवश्यक है।
उत्सर्जन अंतर को पाटने के लिये क्या सिफारिशें हैं?
- निम्न-कार्बन विकास:
- वैश्विक, निम्न-कार्बन विकास परिवर्तनों की आवश्यकता है, विशेष रूप से ऊर्जा परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करने की।
- जीवाश्म ईंधन का निष्कर्षण और नियोजित उपयोग तापमान लक्ष्यों को पूरा करने के लिये कार्बन बजट से कहीं अधिक है।
- समर्थन और वित्तपोषण:
- उत्सर्जन की अधिक क्षमता और ज़िम्मेदारी वाले देशों को अधिक महत्त्वाकांक्षी कार्रवाई करने तथा विकासशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने की आवश्यकता होगी।
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों, जो पहले से ही वैश्विक उत्सर्जन के दो-तिहाई से अधिक के लिये ज़िम्मेदार हैं, को कम उत्सर्जन विकास प्रक्षेप पथ के साथ अपनी वैध विकास आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं को पूरा करना होगा।
- कार्बन डाइऑक्साइड हटाना:
- भविष्य में कार्बन डाइऑक्साइड हटाने की अधिक आवश्यकता होगी। हालाँकि कार्बन डाइऑक्साइड हटाने के नए तरीकों के साथ कई जोखिम हैं, जिनमें से एक मुख्य यह है कि तकनीक अभी तक विकसित नहीं हुई है।
- मूलतः हम जितना लंबा इंतज़ार करेंगे, यह उतना ही कठिन होता जाएगा। विश्व को अपर्याप्त कार्रवाई के इस ढाँचे से बाहर निकलने की ज़रूरत है और उत्सर्जन, हरित और न्यायसंगत बदलाव तथा जलवायु वित्त पर नए रिकॉर्ड स्थापित करने की ज़रूरत है।
भारत में उत्सर्जन कम करने के लिये क्या पहलें की गई हैं?
- भारत स्टेज-IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंड
- उजाला योजना
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC)
- वर्ष 2025 तक भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण
- भारत द्वारा अपने NDC का अद्यतन
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम क्या है?
- परिचय:
- यह 5 जून, 1972 को स्थापित एक अग्रणी वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
- यह वैश्विक पर्यावरण एजेंडा निर्धारित करता है, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देता है और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण हेतु आधिकारिक तौर पर वकालत करता है।
- मुख्यालय:
- नैरोबी, केन्या।
- प्रमुख रिपोर्ट:
- उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट, अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, फ्रंटियर्स, इन्वेस्ट इनटू हेल्दी प्लेनेट।
- प्रमुख अभियान:
- बीट पॉल्यूशन, UN75, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यू. एन. ई. पी. द्वारा समर्थित ‘कॉमन कार्बन मेट्रिक’को किसलिये विकसित किया गया है? (2021) (a) संपूर्ण विश्व में निर्माण कार्यों के कार्बन पदचिह्न का आकलन करने के लिये। उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022) |
प्रतिभूति रहित ऋण के लिये RBI के सख्त पूंजी मानदंड
प्रिलिम्स के लिये :RBI ने प्रतिभूति रहित ऋण, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), बैंक एक्सपोज़र पर जोखिम भार, एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) के लिये पूंजी मानदंडों को सख्त किया। मेन्स के लिये:RBI ने प्रतिभूति रहित ऋण, समावेशी विकास और इससे उत्पन्न होने वाले मुद्दों के लिये पूंजी मानदंडों को सख्त किया है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने व्यक्तिगत ऋण, क्रेडिट कार्ड से प्राप्य आदि जैसे प्रतिभूति रहित ऋणों की जाँच करने के लिये बैंक एक्सपोज़र पर जोखिम भार बढ़ा दिया है।
- प्रतिभूति रहित ऋणों पर जोखिम भार बढ़ाने का RBI का कदम इन श्रेणियों को ऋण देने वाले बैंकों के लिये पूंजी से जोखिम-भारित संपत्ति अनुपात (CRAR) की आवश्यकता को बढ़ाने का एक तरीका है।
- प्रतिभूति रहित ऋण एक ऐसा ऋण है जिसे प्राप्त करने के लिये किसी को कोई संपार्श्विक प्रदान करने की आवश्यकता नहीं होती है। यह ऋणदाता द्वारा उधारकर्त्ता की साख पर जारी किया जाता है और इसलिये प्रतिभूति रहित ऋण की स्वीकृति के लिये उत्कृष्ट क्रेडिट स्कोर होना एक शर्त है।
पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) क्या है?
- CAR किसी बैंक की उपलब्ध पूंजी का एक माप है जिसे बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- पूंजी पर्याप्तता अनुपात, जिसे पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (CRAR) के रूप में भी जाना जाता है, का उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता एवं दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है।
बैंक एक्सपोज़र पर जोखिम भार क्या है?
- परिचय:
- बैंक एक्सपोज़र पर जोखिम भार, बैंकों द्वारा रखी गई विभिन्न प्रकार की परिसंपत्तियों से जुड़े जोखिम का आकलन करने के लिये केंद्रीय बैंकों या वित्तीय पर्यवेक्षी अधिकारियों जैसे नियामकों द्वारा उपयोग की जाने वाली विधि को संदर्भित करता है।
- यह विधि उस पूंजी की मात्रा को निर्धारित करती है जिसे बैंकों को संभावित घाटे को कवर करने के लिये बफर के रूप में इन परिसंपत्तियों के खिलाफ रखने की आवश्यकता होती है।
- परिसंपत्तियों की विभिन्न श्रेणियों को सौंपा गया जोखिम भार उनकी कथित जोखिम क्षमता पर आधारित होता है।
- कम जोखिम वाली संपत्तियों को कम जोखिम भार मिलता है, जिससे बैंकों को उनके खिलाफ कम पूंजी आवंटित करने की आवश्यकता होती है, जबकि उच्च जोखिम वाली संपत्तियों में अधिक जोखिम भार होता है, जिससे अधिक पूंजी आवंटन की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण:
- नकदी या सरकारी प्रतिभूतियों जैसी कम जोखिम वाली संपत्तियों का जोखिम भार 0% या बहुत कम प्रतिशत हो सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि बैंकों को इन परिसंपत्तियों के विरुद्ध न्यूनतम पूंजी आवंटित करने की आवश्यकता है।
- असुरक्षित उपभोक्ता ऋण, कॉर्पोरेट ऋण या डेरिवेटिव जैसी उच्च जोखिम वाली परिसंपत्तियों का जोखिम भार उनके कथित जोखिम के आधार पर 20% से 150% तक या अधिक हो सकता है। इसका अर्थ है कि बैंकों को इन परिसंपत्तियों से होने वाले संभावित नुकसान के खिलाफ बफर के रूप में अधिक पूंजी आवंटित करनी चाहिये।
प्रतिभूति रहित ऋण और इसकी आवश्यकता से संबंधित RBI का कदम क्या है?
- बढ़ा हुआ जोखिम भार:
- RBI ने उपभोक्ता ऋण, क्रेडिट कार्ड से प्राप्य और NBFC जैसी कुछ श्रेणियों में बैंकों के जोखिम पर को बढ़ा दिया है।
- बैंकों के असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण और उपभोक्ता टिकाऊ ऋण पर जोखिम-भार 100% से बढ़ाकर 125% कर दिया गया है तथा क्रेडिट कार्ड पर जोखिम भार 125% से बढ़ाकर 150% कर दिया गया है।
- इसके अलावा NBFC के असुरक्षित व्यक्तिगत और उपभोक्ता टिकाऊ ऋण तथा क्रेडिट कार्ड पर जोखिम भार 100% से बढ़ाकर 125% कर दिया गया है।
- इसका अर्थ है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों को इन विशिष्ट ऋण श्रेणियों से होने वाले संभावित नुकसान के खिलाफ बफर के रूप में अधिक पूंजी अलग रखने की आवश्यकता है।
- हालाँकि RBI ने NBFC द्वारा माइक्रोफाइनेंस ऋणों को जोखिम-भार वृद्धि से छूट दी है।
- RBI ने उपभोक्ता ऋण, क्रेडिट कार्ड से प्राप्य और NBFC जैसी कुछ श्रेणियों में बैंकों के जोखिम पर को बढ़ा दिया है।
- उचित कदम की आवश्यकता:
- अनियंत्रित वृद्धि पर नियंत्रण: प्रतिभूति रहित ऋण, विशेष रूप से उपभोक्ता ऋण, कम जोखिम वाली ऋण परिसंपत्तियों की वृद्धि दर की सीमा को पार करते हुए तेज़ी से बढ़ रहे थे। यह अनियंत्रित वृद्धि वित्तीय प्रणाली की स्थिरता के लिये जोखिम पैदा कर सकती है।
- ये ऋण संपार्श्विक द्वारा समर्थित नहीं होते हैं, जिससे ऋणदाताओं के लिये ये जोखिमपूर्ण हो जाते हैं। यदि उधारकर्त्ता आर्थिक मंदी या व्यक्तिगत वित्तीय मुद्दों के कारण इन ऋणों पर चूक करते हैं, तो इससे बैंकों और अन्य ऋण देने वाले संस्थानों को गंभीर ऋण हानि हो सकती है।
- जोखिम न्यूनीकरण: बैंकों, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non Banking Financial Companies- NBFC) और क्रेडिट कार्ड प्रदाताओं द्वारा प्रदान किये गए उपभोक्ता ऋणों पर जोखिम भार बढ़ाकर, RBI का लक्ष्य वित्तीय संस्थानों के लिये इन ऋणों को अधिक पूंजी-गहन बनाना है।
- इससे पूंजीगत आवश्यकताओं को संबंधित जोखिमों के साथ संरेखित करने में मदद मिलती है, जिससे ऋणदाताओं के लिये ऐसे ऋण देना अधिक महँगा हो जाता है।
- जोखिम वृद्धि पर नियंत्रण: इन अग्रिमों के लिये बोर्ड-निगरानी प्रक्रियाएँ स्थापित करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि बैंकों के पास उचित जोखिम मूल्यांकन तंत्र मौजूद हैं। इस कदम का उद्देश्य असुरक्षित खुदरा ऋण से जुड़े जोखिम को बढ़ने से रोकना है।
- वित्तीय स्थिरता को बनाए रखना: व्यापक लक्ष्य ऋण देने की प्रथाओं में असंतुलन को दूर करके वित्तीय स्थिरता बनाए रखना है और यह सुनिश्चित करना है कि असुरक्षित खुदरा ऋणों में तेज़ी से वृद्धि बैंकिंग तथा वित्तीय क्षेत्रों के लिये प्रणालीगत जोखिम पैदा न करे।
बैंकों के लिये प्रतिभूति रहित ऋण का वर्तमान परिदृश्य क्या है?
- बड़े बैंकों के लिये माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को छोड़कर प्रतिभूति रहित ऋण उनके कुल ऋण का केवल 5-13% है। इसके अलावा NBFC को दिये गए ऋण बैंकों हेतु 5-12% हैं।
- विश्लेषकों के अनुमान के अनुसार, कुल प्रभावित बही का हिस्सा, जो NBFC और प्रतिभूति रहित ऋण है, इंडसइंड बैंक के लिये सबसे कम 10% है तथा अन्य प्रमुख बैंकों के लिये 15 से 20% तक है।
- NBFC में सबसे अधिक प्रभावित SBI कार्ड होगा, क्योंकि 100% ऋण असुरक्षित है।
- दूसरे स्थान पर बजाज फाइनेंस है क्योंकि इसका प्रतिभूति रहित ऋण कुल ऋण का 38% है, इसके बाद आदित्य बिड़ला कैपिटल है जिसका असुरक्षित उपभोक्ता ऋण में 20% निवेश है।
यह कदम बैंकों तथा NBFC को कैसे प्रभावित करेगा?
- ऋण ग्रहण करने की लागत पर प्रभाव:
- इन विनियामक परिवर्तनों के कारण उपभोक्ताओं के लिये ऋण दरों में वृद्धि हो सकती है।
- बैंकों द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों को दी जाने वाली उधार दरों में बढ़ोतरी से कॉर्पोरेट बॉण्ड प्रभावित हो सकते हैं,जिससे इन संस्थानों के लिये दरों में वृद्धि तथा ऋण प्रसार में वृद्धि होगी।
- संबद्ध ऋणों से संबंधित जोखिमों का समाधान:
- उच्च पूंजी आवश्यकताओं से प्रतिभूति रहित ऋणों की वृद्धि को धीमा करने तथा संभावित रूप से ऐसे ऋणों से संबंधित प्रणालीगत जोखिमों का समाधान किये जाने की उम्मीद है।
आगे की राह
- बैंकों तथा NBFC को प्रतिभूति रहित ऋणों के लिये अपने जोखिम मॉडल एवं ऋण देने की प्रथाओं का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
- वे ऋण पात्रता आकलन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं तथा ऋण देना जारी रखते हुए जोखिम प्रबंधन के लिये वैकल्पिक रणनीतियों पर विचार कर सकते हैं।
- प्रतिभूति रहित ऋणों पर बढ़ते जोखिम-भार के प्रभाव को संतुलित करने के लिये वित्तीय संस्थान अधिक सुरक्षित ऋणों पर ध्यान केंद्रित करके अथवा अन्य क्रेडिट योग्य क्षेत्रों की खोज कर अपने ऋण पोर्टफोलियो में विविधता ला सकते हैं।